वर्ग क्या है वर्ग की विशेषताएं? - varg kya hai varg kee visheshataen?

इसे सुनेंरोकेंवर्ग व्यवस्था का अर्थ (varg kise kahte hai) जब समाज मे व्यक्तियों की स्थिति का निर्धारण उनके व्यक्तिगक गुणों जैसे शिक्षा, आय, व्यवसाय, आवास की दशा आदि के आधार पर होता है तो समाज मे स्तर विभाजन की यह प्रणाली वर्ग व्यवस्था के नाम से जानी जाती है। यह एक खुली व्यवस्था है।

वर्ग क्या है इसकी विशेषता?

इसे सुनेंरोकेंप्रत्येक विशिष्ट सामाजिक वर्ग का अपना विशिष्ट सामाजिक व्यवहार, अपने निजी स्तर और व्यवसाय होते हैं किसी वर्ग का समाज में क्या स्थान है इस बात का निर्णय वर्ग की समाज में प्रतिष्ठा के आधार पर होता है। जहां प्रतिष्ठा के विचार अथवा ऊँच-नीच के भाव ही राजीनतिक वर्ग विद्यमान होता है।

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वर्ग क्या है समझाइए?

इसे सुनेंरोकेंवर्ग (Square) ज्यामिति की एक आकृति है। यदि किसी चतुर्भुज की चारों भुजाएं बराबर हों और चारो कोण समकोण हों तो उस चतुर्भुज को वर्ग कहते है।

वर्ग क्या है वर्ग विभाजन के आधार?

इसे सुनेंरोकेंमार्क्स तथा एंजेल्स ने वर्ग विभाजन का आधार आर्थिक माना है। उनके अनुसार धन मनुष्य की सामाजिक स्थिति को निश्चित करता है। वेब्लेन के अनुसार वर्ग निर्माण का आधार शारीरिक श्रम है। प्रत्येक समाज मे अशिक्षित व्यक्तियों की अपेक्षा शिक्षित व्यक्तियों को अधिक श्रेष्ठ समझा जाता है और उन्हे अधिक प्रतिष्ठा दी जाती है।

वर्ग का प्रमुख आधार क्या है?

(i ) पादप शरीर के प्रमुख घटकों का पूर्ण विकास और विभेदन । (ii ) पापड़ शरीर में जल तथा अन्य पदार्थों को संवहन करने वाले विशिष्ट ऊतकों की उपस्थिति ।…पादप जगत के प्रमुख वर्ग कौन है? इस वर्गीकरण का क्या आधार है?

Questionपादप जगत के प्रमुख वर्ग कौन है? इस वर्गीकरण का क्या आधार है?Chapter Nameजीवों में विविधताSubjectBiology (more Questions)Class9th

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सामाजिक वर्ग से आप क्या समझते है?

इसे सुनेंरोकेंसामाजिक वर्ग समाज में आर्थिक और सांस्कृतिक व्यवस्थाओं का समूह है। समाजशास्त्रियों के लिये विश्लेषण, राजनीतिक वैज्ञानिकों, अर्थशास्त्रियों, मानवविज्ञानियों और सामाजिक इतिहासकारों आदि के लिये वर्ग एक आवश्यक वस्तु है। सामाजिक विज्ञान में, सामाजिक वर्ग की अक्सर ‘सामाजिक स्तरीकरण’ के संदर्भ में चर्चा की जाती है।

सामाजिक वर्ग कितने प्रकार के होते है?

इसे सुनेंरोकेंवर्ग-विभाजन है, वहीं दूसरी ओर प्रजाति तथा (ब) सामाजिक प्रस्थिति-मान-सम्मान तथा जाति, क्षेत्र तथा समुदाय, जनजाति तथा लिंग समाज के अन्य व्यक्तियों की नज़रों में उच्च इत्यादि सामाजिक स्तरीकरण के आधार बने हैं। स्थान।

इसे सुनेंरोकेंवर्ग (Square) ज्यामिति की एक आकृति है। यदि किसी चतुर्भुज की चारों भुजाएं बराबर हों और चारो कोण समकोण हों तो उस चतुर्भुज को वर्ग कहते है।

सामाजिक वर्ग की आधारभूत विशेषता क्या है व्याख्या कीजिए?

इसे सुनेंरोकेंसामाजिक वर्ग की प्रतिष्ठा मूल्ल निर्धारण पर आधारित है, जिससे समुदाय समाज में प्रचलित विचारों के अनुसार कुछ विशेषताओं को अन्य विशेषताओं की अपेक्षा अधिक महत्वपूर्ण समझता और अपना लेता है। इस प्रकार संभव है कि ज्ञान को धन से अधिक मूल्यवान मान लिया जाये और विद्वान व्यक्ति का समाज में अधिक सम्मान हो।

वर्ग संरचना से आप क्या समझते हैं?

इसे सुनेंरोकेंवर्ग संरचना ‘क्लासिस’ शब्द का प्रयोग व्यक्तियों के सशस्त्र समूह के लिये किया जाता था। प्रसिद्ध रोमन राजा, सर्वियस टुलियस (678-534 ईसा पूर्व) के शासन में रोमन समाज सम्पत्ति के आधार पर पाँच वर्गों में विभक्त था। आगे चलकर वर्ग शब्द का प्रयोग मानव समाज के वृहत् समूहों के लिए किया जाने लगा।

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वर्ग किसे कहते हैं और कितने प्रकार के होते हैं?

इसे सुनेंरोकेंAnswer: वह चतुर्भुज जिसकी चारो रेखाए समान या बराबर होती हैं. तथा चारो कोण समकोण होते हैं. ऐसे चतुर्भुज को वर्ग कहते हैं.

भारतीय सामाजिक वर्ग की विशेषताएं क्या है?

इसे सुनेंरोकेंवर्ग व्यवस्था मे ऊँच नीच की भावना पाई जाती है। प्रत्येक वर्ग के व्यक्ति दूसरे वर्ग के व्यक्तियों को अपने से ऊँचा या नीचा समझते है। अपने वर्ग के प्रति सभी वर्गों मे हम की भावना पाई जाती है। एक वर्ग के व्यक्ति एक-दूसरे के प्रति समानता की भावना रखते है।

वर्ग क्या है समाजशास्त्र?

इसे सुनेंरोकेंदूसरे शब्दों में ” वर्ग समान सामाजिक स्थिति वाले व्यक्तियों का समूह है। व्यक्ति लौकिक आयाम जैसे शिक्षा, पेशा, आय, आवासीय दशा या जीवनस्तर आदि पर अपनी अर्जित स्थिति के आधार पर एक वर्ग का सदस्य होता है। समाज मे समान अर्जित स्थिति वाले व्यक्ति एक वर्ग की रचना करते है। वर्ग के सदस्यों मे वर्ग चेतना पाई जाती है।

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जाति तथा वर्ग में क्या अंतर है?

इसे सुनेंरोकेंवर्ग मुख्य रूप से व्यक्तियों के समूहों के बीच आर्थिक अंतर पर निर्भर करते हैं- भौतिक संसाधनों के कब्जे और नियंत्रण में असमानताएं – जबकि जाति व्यवस्था में गैर-आर्थिक कारक जैसे कि धर्म का प्रभाव [कर्म, पुनर्जन्म और अनुष्ठान (शुद्धता-प्रदूषण) का सिद्धांत] सबसे महत्वपूर्ण।

यहाँ भारतीय संदर्भ में सामाजिक वर्ग की विशेषताओं को प्रस्तुत किया जा रहा है तथा इन विशेषताओं के माध्यम से हम वर्ग की अवधारणा को और भी सूक्ष्मता से समझ पाने में सफल हो सकेंगे 


1. संस्तरण व्यवस्था


समाज में वर्गों की एक श्रेणी होती है तथा इस श्रेणी में कुछ वर्ग उच्च, कुछ मध्यम तथा कुछ निम्न स्थान पर रहते हैं। उच्च वर्ग के सदस्यों की सामाजिक प्रतिष्ठा तथा शक्ति अन्य वर्ग के सदस्यों की अपेक्षा में अधिक रहती है, परंतु उनके सदस्यों की संख्या अन्य वर्गों की तुलना में कम ही होती हैं। इसके विपरीत निम्न वर्ग के सदस्यों सामाजिक प्रतिष्ठा तथा शक्ति कम रहती है तथा उनके सदस्यों की संख्या अन्य की यूलना में ज्यादा होती है। सामाजिक प्रतिष्ठा तथा शक्ति में कम होने के कारण उनकी आर्थिक स्थिति भी कमजोर रहती है तथा इसी कारणवश वे अनेक प्रकार की सुविधाओं के लाभ प्राप्त कर पाने से वंचित रह जाते हैं।

इस प्रकार से यह स्पष्ट है कि वर्ग कि संरचना में नीचे का भाग (निम्न वर्ग) काफी बड़ा तथा ऊपर का भाग (उच्च वर्ग) काफी छोटा होता है। अतः कहा जा सकता है कि वर्ग की संरचना एक पिरामिड की भांति होती है। भारतीय परिदृश्य में लगभग 20 प्रतिशत लोग निम्न वर्ग से संबंधित हैं, जो गरीबी रेखा के नीचे जीवन यापन करते हैं जबकि केवल लगभग 5 प्रतिशत लोग ऐसे हैं जो सभी प्रकार की सुविधाओं का लाभ लेते रहते हैं। 


2. समान प्रस्थिति


एक वर्ग से संबंधित सभी लोगों की सामाजिक प्रस्थिति एक समान होती है। हमारे समाज में प्रस्थिति को निर्धारित करने हेतु कई आधार उत्तरदाई होते हैं। यदि आर्थिक आधारों पर प्रस्थिति का निर्धारण होगा तो उन्हीं लोगों की सामाजिक प्रस्थिति उच्च होगी जिनका अधिक से अधिक संपत्ति पर आधिपत्य रहेगा। इसी प्रकार से यह शैक्षणिक आधार प्रस्थिति को निर्धारित करेगा तो वे लोग उच्च सामाजिक प्रस्थिति वाले होंगे जिनकी शैक्षणिक कुशलता तथा दक्षता अधिक होगी।

अतः शिक्षित तथा अशिक्षित की सामाजिक प्रस्थिति क्रमशः उच्च तथा निम्न के रूप में होगी। कुल मिलाकर यह कहा जा सकता है कि सामाजिक प्रस्थिति का निर्धारण किसी एक आधार पर नहीं किया जा सकता है इसके निर्धारण के लिए अनेक आयाम, जैसे- जाति, व्यवसाय, शिक्षा, संपत्ति आदि आवश्यक होते हैं।


3. सामान्य जीवन


समान्यतः एक वर्ग से संबंधित लोगों की जीवनशैली एक समान रहती है। उच्च वर्ग विभिन्न तरह के ऐश-आराम वाले कार्यों में व्यस्त रहता है, मध्यम वर्ग संस्कृति, परम्परा, संस्कृति आदि को ही सुधारने व संभालने में लगा रहता है तथा निम्न वर्ग अपने अभावपूर्ण जीवन को बेहतर बनाने में ही परेशान रहता है।


4. सीमित सामाजिक संबंध


समान्यतः एक वर्ग अपने सामाजिक संबंधों को अपने लोगों तक ही सीमित रखता है। अन्य वर्गों से पृथकता बनाए हुये वर्ग अपने ही लोगों में से मित्र, जीवन साथी, संबंधी आदि को तलाशने का प्रयास करता है। ऐसा इसलिए भी वर्ग के लिए आवश्यक रहता है

क्योंकि वह एक जैसे सामाजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक आदि संबंधों में सहजता का अनुभव करता है। साथ ही ऐसा किसी भी वर्ग की व्यावहारिक उपयोगिता तथा अस्तित्व के लिए भी आवश्यक रहता है।


5. वर्ग-चेतना


समाज में बहुत सारे वर्ग पाये जाते हैं तथा प्रत्येक वर्ग में वर्ग-चेतना पायी जाती है, प्रत्येक वर्ग की सामाजिक प्रतिष्ठा में भिन्नता पायी जाती है। प्रत्येक वर्ग में उच्च अथवा निम्न अथवा समानता की भावना पायी जाती है। एक वर्ग से संबंधित लोगों के जीवन व्यवहार, खान-पान, सुविधाएं आदि समान रहते हैं तथा उनके बच्चों की समाजीकरण प्रक्रिया भी समान्यतः एक जैसी ही रहती है। इसी कारण एक वर्ग से संबंधित लोगों में अपने वर्ग के लोगों के लिए चेतना का जन्म होता है। यह वर्ग-चेतना उनके आपसी व्यवहारों के साथ साथ वर्गों के परस्परिक संबंधों का निर्धारण भी करती है। वर्ग चेतना ही वर्गों को अपने अधिकारों के प्रति सजग करती है तथा साथ ही अन्य वर्गों से प्रतिस्पर्धा करने हेतु उन्मुख भी करने का काम करती है। हम सभी आए दिन हड़ताल व मांगों को लेकर हो रहे आंदोलनों के बारे में अखबारों आदि में पढ़ते रहते हैं ये आंदोलन किसी संगठित हितों से संबंधित वर्ग द्वारा वर्ग-चेतना के आधार पर ही किए जाते हैं तथा इस प्रकार से वर्ग परस्परिक सहयोग की सहायता से अपने हितों की रक्षा करते हैं।


6. उच्च तथा निम्न की भावना


जाति व्यवस्था के समान ही वर्ग व्यवस्था में भी उच्च तथा निम्न कि भावना पायी जाती है तथा अपने वर्ग के प्रति उनमें 'हम' की भावना पायी जाती है। सम्पन्न तथा शासक वर्ग स्वयं को गरीब तथा शासित वर्ग से उच्च मानते हैं तथा ठीक यह ई धारणा गरीब व शासित वर्ग में भी पायी जाती है। गरीब व शासित वर्ग के लोग स्वयं को अमीर तथा शासक वर्ग से निम्न मानते हैं।


7. जन्म पर आधारित नहीं


यह कदापि आवश्यक नहीं है कि किसी व्यक्ति का जन्म जिस वर्ग में हो, उसकी मृत्यु भी उसी वर्ग में हो। किसी भी वर्ग की सदस्यता का निर्धारण व्यक्ति की शिक्षा, आय, व्यवसाय, संपत्ति, शक्ति, कुशलता आदि पक्षों द्वारा होता है। इन पक्षों की सहायता अथवा अवहेलना से व्यक्ति अपने वर्ग को उच्च अथवा निम्न बनाने के लिए स्वयं ही जिम्मेदार रहता है। 


8. पूर्ण रूप से अर्जित


जैसा कि पहले ही बताया जा चुका है कि वर्ग का निर्धारण जन्म के अनुरूप नहीं होता है अर्थात् यह अर्जित गुणों / तत्वों द्वारा संचालित व्यवस्था है। किसी भी वर्ग का व्यक्ति अपने अर्जित गुणों अथात् शिक्षा, शक्ति, संपत्ति आदि में वृद्धि कर उच्च वर्ग में शामिल हो सकता है।


9. मुक्त व्यवस्था


यह जाति व्यवस्था की भाँति बंद अथवा कठोर व्यवस्था नहीं होती है, अपितु इसमें व्यक्ति का संचरण एक वर्ग से दूसरे वर्ग हो सकता है। यह एक लचीली तथा मुक्त व्यवस्था होती है। एक निम्न वर्ग का व्यक्ति अपने परिश्रम तथा कुशलता की सहायता से उच्च वर्ग मेम शामिल हो सकता है तथा एक उच्च वर्ग का व्यक्ति अपने आलस व अकुशलता की वजह से निम्न वर्ग की परिधि में आ सकता है।

अर्थात् यह आवश्यक नहीं है कि व्यक्ति का जन्म जिस वर्ग में हुआ है वह जीवनपर्यंत उसी वर्ग का सदस्य रहे। उसकी सदस्यता समय तथा परिश्रम व कुशलता आदि के आधार पर उच्च अथवा निम्न हो सकती है। 


10. वर्ग की वस्तुपरक विशेषता


समान्यतः प्रत्येक वर्ग की संरचना दूसरे वर्ग से पृथक प्रकृति पर आधारित होती है। वर्ग की भिन्नता तथा स्पष्ट पहचान हेतु कुछ विशिष्ट प्रकार की संरचनाएँ होती हैं, जैसे- मकान का प्रकार, मोहल्ले कॉलोनी की प्रतिष्ठा, शैक्षणिक स्तर, बोल-चाल का तरीका, जीवनशैली आदि। प्रतिष्ठित तथा सम्पन्न लोग पक्के व अच्छे मकानों में रहते हैं, प्रतिष्ठित व नामचीन कॉलोनी में रहते हैं, उनकी शैक्षणिक व आर्थिक स्थिति उच्च रहती है, व्यवहार, विचार तथा भाषा में वे काफी समृद्ध रहते हैं तथा उनकी जीवन शैली भी उत्कृष्ट प्रकार की होती है। जबकि निम्न वर्ग से संबंधित लोग कच्चे मकानों अथवा झोपड़ियों में रहते हैं, गंदी बस्तियों में उनके आवास स्थान रहते हैं, उनकी शैक्षणिक व आर्थिक स्थिति निम्न रहती है, व्यवहार, विचार, भाषा, जीवनशैली में भी वे गरीब रहते हैं।

इस प्रकार से किसी वर्ग की बाहरी संरचनात्मक विशेषताओं के आधार पर भी उसे आसानी से पहचाना तथा दूसरे वर्ग से पृथक किया जा सकता है।


11. न्यून स्थिरता 


वर्ग व्यवस्था में स्थिरता का प्रायः अभाव होता है अथवा अत्यंत कम स्थिरता पायी जाती है। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि जिन पक्षों के आधार पर वर्गों का निर्धारण होता है वे पक्ष ही परिवर्तनशील होते हैं। शिक्षा, आय, संपत्ति, शक्ति आदि परिवर्तनशील पक्ष होते हैं, इनमें कभी भी परिवर्तन होना सामान्य है। इसके अलावा व्यक्ति कभी भी अपनी दक्षता तथा परिश्रम से एक वर्ग से दूसरे वर्ग की सदस्यता ग्रहण कर सकता है अर्थात् वर्ग एक परिवर्तनशील अवधारणा है। हालांकि इस परिवर्तनशीलता में भी कुछ समय की आवश्यकता रहती है, कुछ ही घंटों में ऐसा नहीं होता है। 


12. उप-वर्ग


प्रत्येक वर्ग में बहुत से उप-वर्ग पाये जाते हैं। उदाहरणस्वरूप, मध्यम वर्ग में भी उच्च, मध्य तथा निम्न वर्ग पाये जाते हैं। ये सभी मध्य वर्ग के उप वर्ग हैं जिनमें विविध स्वरूपों में असमानता पायी जाती है।

इसी प्रकार से धनी वर्ग में भी सभी लोग समान प्रस्थिति वाले नहीं होते हैं, उनकी प्रस्थिति में भी काफी अंतर रहता है।


13. जीवन अवसर


जर्मन विद्वान मैक्स वेबर का मानना है कि एक वर्ग से संबंधित लोगों को जीवन अवसर तथा सुख सुविधाएं भी समान मिलती हैं। एक गरीब वर्ग के व्यक्ति को मजदूरी अथवा शारीरिक श्रम करने एक तथा एक अमीर वर्ग को उद्योग अथवा कारखाना स्थापित करने के अवसर समान रूप से प्राप्त होते हैं।


14. अनिवार्यता


हम सभी इस बात से पूरी तरह से सहमत होंगे कि सभी समाजों में शिक्षा, संपत्ति, व्यवसाय, योग्यता आदि पक्षों में असमानता पायी जाती है। अतः इन भिन्नताओं के कारण समाज में अनेक समूहों का निर्मित होना स्वाभाविक है तथा ये समूह प्रायः सभी समाजों में उच्च अथवा निम्न के रूप में पाये जाते हैं। एक समान विशेषता तथा प्रस्थिति से संबंध समूह के लोग ही एक वर्ग को निर्मित करते हैं। अतः यह सर्वविदित रूप से निश्चित है कि वर्ग सभी समाजों में अनिवार्य रूप से पाये जाते हैं।

वर्ग की विशेषताएं क्या है?

वर्ग की चारों भुजाएं समान होती हैं। चारों कोण समकोण होते हैं। वर्ग के दोनों विकर्ण सामान होते हैं। दोनों विकर्ण एक दूसरे को समकोण पर समद्विभाजित करते हैं।

वर्ग क्या है वर्ग की परिभाषा?

वर्ग किसे कहते है | Square Definition in Hindi | Varg ki Paribhasha. चार भुजाओं से घिरी वह बंद आकृति जिसकी चारों भुजाएं एक दुसरें से बराबर हों तथा चारों कोण समकोण यानी 90 डिग्री के हों, वह वर्ग कहलाता है.

वर्ग किसे कहते हैं इसके कितने प्रकार हैं?

वर्ग किसे कहते हैं :- ऐसा चतुर्भुज जिसमें उसकी चारों भुजाएं समान तथा उसके चारों कोण समान होते हैं उसे वर्ग कहते हैंवर्ग के महत्वपूर्ण बिंदु :- वर्ग के निम्न गुण होते हैंवर्ग के अंदर उसके चारों भुजाओं का माप समान होता है। वर्ग के चारों कोण समान होते हैं अर्थात प्रत्येक कोण समकोण होता है।

सामाजिक वर्ग की विशेषताएं क्या है?

सामाजिक वर्ग की प्रतिष्ठा मूल्ल निर्धारण पर आधारित है, जिससे समुदाय समाज में प्रचलित विचारों के अनुसार कुछ विशेषताओं को अन्य विशेषताओं की अपेक्षा अधिक महत्वपूर्ण समझता और अपना लेता है। इस प्रकार संभव है कि ज्ञान को धन से अधिक मूल्यवान मान लिया जाये और विद्वान व्यक्ति का समाज में अधिक सम्मान हो।