अनुस्वार और अनुनासिक में क्या अंतर होता है? - anusvaar aur anunaasik mein kya antar hota hai?

बूँद,  आँखें , हंस ,  हँसना , फंसा , फांस , अंगद, अंतर , अंश , रंजिश , लंका , मंजन , बंदर , अँगूर , लँगूर , मंजूर , गुँजन , गूँज , पूँजी , पूँजीवाद , पूंजीपति, मूँज , चंदन , अंजलि , मुंदरी , चंद्रिका , चाँद , चांदनी , चंद्रमा , चंचल , चंपक , खंजर , मंजरी , टांग , टंकी , टंगा , ताँगा , लंबा , लंबाई , ऊँचाई , ऊँचा , ऊँची , ऊँट , अँगुली , अँगूठी , अँगरेज़ , रंगरेज़ , रंगाई , कंगन , कंगारू , घंटा , शँख ।

अनुस्वार के चिह्न के प्रयोग के बाद आने वाला वर्ण ‘क’ वर्ग, ’च’ वर्ग, ‘ट’ वर्ग, ‘त’ वर्ग और ‘प’ वर्ग में से जिस वर्ग से संबंधित होता है अनुस्वार उसी वर्ग के पंचम-वर्ण के लिए प्रयुक्त होता है।


नियम -


• यदि पंचमाक्षर के बाद किसी अन्य वर्ग का कोई वर्ण आए तो पंचमाक्षर अनुस्वार के रूप में परिवर्तित नहीं होगा। जैसे- वाड्.मय, अन्य, चिन्मय, उन्मुख आदि शब्द वांमय, अंय, चिंमय, उंमुख के रूप में नहीं लिखे जाते हैं।
• पंचम वर्ण यदि द्वित्व रूप में दुबारा आए तो पंचम वर्ण अनुस्वार में परिवर्तित नहीं होगा। जैसे - प्रसन्न, अन्न, सम्मेलन आदि के प्रसंन, अंन, संमेलन रूप नहीं लिखे जाते हैं।
• जिन शब्दों में अनुस्वार के बाद य, र, ल, व, ह आये तो वहाँ अनुस्वार अपने मूल रूप में ही रहता है। जैसे - अन्य, कन्हैया आदि।
• यदि य , र .ल .व - (अंतस्थ व्यंजन) श, ष, स, ह - (ऊष्म व्यंजन) से पहले आने वाले अनुस्वार में बिंदु के रूप का ही प्रयोग किया जाता है चूँकि ये व्यंजन किसी वर्ग में सम्मिलित नहीं हैं। जैसे - संशय, संयम आदि।

पाठ्य-पुस्तक 'स्पर्श-I' में प्रयुक्त अनुस्वार शब्द

• धूल- सुन्दर, पंक्ति, चकाचौंध, श्रृंगार, संसर्ग, वंचित, गंध, उपरांत, सौंदर्य, संस्कृति।

• दुःख का अधिकार- बंद, बंधन , पतंग, संबंध, ज़िंदा, नंगा, अंदाज़ा, संभ्रांत।

• एवरेस्ट: मेरी  शिखर यात्रा- कैंप, अधिकांश, संपूर्ण, सुन्दर, रंगीन, तंबू, नींद, ठंडी, पुंज, हिमपिंड, अत्यंत, कुकिंग, सिलिंडर, चिंतित, कौंधा, शंकु, लंबी, आनंद।

• तुम कब जाओगे, अतिथि- निस्संकोच, फ़ेंक, संभावना, अंकित, अंतरंग, बैंजनी, आशंका, बिंदु, खिंच, अंशों, गेंद, सेंटर, संक्रमण, गुंजायमान, अंतिम, स्टैंड।

• वैज्ञानिक चेतना के वाहक चंद्रशेखर वेंकट रामन्- असंख्य, नींव, संस्था, अत्यंत, क्रांति, संश्लेषण, चिंतन, ढंग, संघर्ष, प्रारंभ, संपादन, सिद्धांत।

• कीचड़ का काव्य- पसंद, गंदा, रौंदते, सींगो, खंभात, पंकज, कंठ।

• धर्म की आड़- भयंकर, प्रपंच, शंख।

• शुक्रतारे के समान- मंडल, मंत्री, सौंप, संक्षिप्त, अंग्रेजी, प्रशंसक, संचालक, ग्रंथकार, धुरंधर, संपन्न।

पाठ्य-पुस्तक 'संचयन-I' में प्रयुक्त अनुस्वार शब्द

गिल्लू - कंधे, चौंका, परंतु, हंस, काकभुशुंडी, संदेश, संधि, चंचल, बंद, बसंत, गंध, झुंड, ठंडक, पंजे।

स्मृति- दिसंबर, प्रारंभ, भयंकर, सायंकाल, आशंका, डंडा, त्योंही, उपरांत, संकल्प, डेंग, इंद्रियों, कंप, खिंच, गुंजल्क, धौंकनी।

कल्लू कुम्हार की उनाकोटी- संदर्भ, आतंक, तांडव, श्रृंखला, शूटिंग, हस्तांतरण, शांति, सींकें, अंधकार।

अनुनासिक

अनुनासिक स्वरों के उच्चारण में मुँह से अधिक तथा नाक से बहुत कम साँस निकलती है। इन स्वरों पर चन्द्रबिन्दु (ँ) का प्रयोग होता है जो की शिरोरेखा के ऊपर लगता है।


जैसे - आँख, माँ, गाँव आदि।


अनुनासिक के स्थान पर बिंदु का प्रयोग


जब शिरोरेखा के ऊपर स्वर की मात्रा लगी हो तब सुविधा के लिए चन्द्रबिन्दु (ँ) के स्थान पर बिंदु (ं) का प्रयोग करते हैं। जैसे - मैं, बिंदु, गोंद आदि।


अनुनासिक और अनुस्वार में अंतर


अनुनासिक स्वर है और अनुस्वार मूल रूप से व्यंजन है। इनके प्रयोग में कारण कुछ शब्दों के अर्थ में अंतर आ जाता है। जैसे - हंस (एक जल पक्षी), हँस (हँसने की क्रिया)।  

इसे सुनेंरोकेंअनुस्वार और अनुनासिक का अंतर अनुनासिक स्वर है और अनुस्वार मूल रूप से व्यंजन है। इनके प्रयोग में कारण कुछ शब्दों के अर्थ में अंतर आ जाता है। जैसे – हंस (एक जल पक्षी), हँस (हँसने की क्रिया)। धूल- गाँव, मुँह, धुँधले, कुआँ, चाँद, भाँति, काँच।

नासिक्य ध्वनि क्या है?

इसे सुनेंरोकेंनासिक्य (Nasals) – जिन ध्वनियों के उच्चारण में वायु मुखविवर में अवरूळ होकर नासिका विवर एवं मुखविवर दोनों मार्ग से एक साथ निकलती है। ऐसी उच्चरित ध्वनियाँ ”नासिक्य ध्वनियाँ” कहलाती हैं। ङ , ञ, ण, न, म नासिक्य ध्वनियाँ हैं। इन व्यंजनों के उच्चारण में कोमलतालु नीचे झुक जाती है।

कौन से शब्द में अनुनासिक का प्रयोग किया जाता है?

इसे सुनेंरोकेंअनुनासिक स्वर जिन स्वरों के उच्चारण में मुख के साथ-साथ नासिका (नाक) की भी सहायता लेनी पड़ती है,अर्थात् जिन स्वरों का उच्चारण मुख और नासिका दोनों से किया जाता है वे अनुनासिक कहलाते हैं। हँसना, आँख, ऊँट, मैं, हैं, सरसों, परसों आदि में चन्द्रबिन्दु या केवल बिन्दु आया है वह अनुनासिक है।

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अनुस्वार कौन सा व्यंजन है?

इसे सुनेंरोकेंअनुस्वार स्वर के बाद आने वाला व्यंजन है। इसकी ध्वनि नाक से निकलती है। हिंदी भाषा में बिंदु अनुस्वार (ं) का प्रयोग विभिन्न जगहों पर होता है।

कौन से शब्द में अनुनासिक का प्रयोग हुआ है अरहर उड़द मोठ मूंग?

इसे सुनेंरोकें(क) अनुनासिक को भी समझें बताएँ- ‘अरहर, उड़द, मूंग, मोठ आदि मेरे पूर्व रूप हैं। ‘ इस वाक्य में मूंग’ शब्द में चंद्रबिंदु का प्रयोग हुआ है।

तुम कब जाओगे अतिथि पाठ में प्रयुक्त अनुनासिक व अनुस्वार वाले शब्द छाँटकर लिखिए?

इसे सुनेंरोकेंअनुनासिक शब्द दुःख का अधिकार- बाँट, अँधेर, माँ, फूँकना, आँखें। एवरेस्ट: मेरी शिखर यात्रा- बाँधकर, पहुँच, ऊँचाई, टाँग, पाँच, दाँते, साँस। तुम कब जाओगे, अतिथि- धुआँ, चाँद, काँप, मँहगाई, जाऊँगा।

अनुनासिक का उच्चारण कैसे होता है?

इसे सुनेंरोकेंअनुनासिक स्वरों के उच्चारण में मुँह से अधिक तथा नाक से बहुत कम साँस निकलती है। इन स्वरों पर चन्द्रबिन्दु (ँ) का प्रयोग होता है जो की शिरोरेखा के ऊपर लगता है। जैसे – आँख, माँ, गाँव आदि। जब शिरोरेखा के ऊपर स्वर की मात्रा लगी हो तब सुविधा के लिए चन्द्रबिन्दु (ँ) के स्थान पर बिंदु (ं) का प्रयोग करते हैं।

अनुस्वार और अनुनासिक में क्या अंतर है?

उत्तर: अनुस्वार वे व्यंजन होते हैं, जो स्वर के बाद आते हैं। अनुस्वार की ध्वनि नाक से निकलती है। अनुस्सवार पंचम वर्ण अर्थात ङ्, ञ़्, ण्, न्, म् के जगह पर प्रयुक्त किये जाते हैं। अनुनासिक वे स्वर होते हैं, जो जिनमें मुँह से अधिक और नाक से कम ध्वनि निकलती है।

अनुस्वार का उदाहरण क्या है?

अनुस्वार एक उच्चारण की मात्रा है जो अधिकांश भारतीय लिपियों में प्रयुक्त होती है। इससे अक्सर ं जैसी ध्वनि नाक के द्वारा निकाली जाती है, अतः इसे नसिक या अनुनासिक कहते हैं। इसको कभी-कभी म (और अन्य) अक्षरों द्वारा भी लिखते हैं। जैसे: कंबल ~ कम्बल; इंफाल ~ इम्फाल इत्यादि।

अनुस्वार का चिन्ह कौन सा होता है?

अनुस्वार - अनुस्वार अनुनासिक व्यंजन का एक रूप है। जिन स्वरों की मात्राएँ शिरोरेखा पर लगती हैं, व्यान पर अनुस्वार चिन्ह (ं ) का प्रयोग होता है।

अनुनासिक को कैसे पहचाने?

उदाहरण सहित बताइए। कई स्वरों को बोलने के लिए मुख और नासिका दोनों का प्रयोग करना पड़ता है या यह कह सकते हैं कि जिन स्वरों का उच्चारण मुख और नासिका दोनों से किया जाता है वे अनुनासिक कहलाते हैं। वर्णों के ऊपर चंद्रबिंदु (ँ) लगा कर anunasik स्वर लिखे जाते हैं। जैसे : हँसना, आँख, ऊँट आदि अनुनासिक है।