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उत्प्रेक्षा अलंकारजहाँ पर उपमान के न होने पर उपमेय को ही उपमान मान लिया जाए। अथार्त जहाँ पर अप्रस्तुत को प्रस्तुत मान लिया जाए वहाँ पर उत्प्रेक्षा अलंकार होता है। इस अलंकार में- मनु, जनु, जनहु, जानो, मानहु मानो, निश्चय, ईव, ज्यों आदि शब्द आते हैं। उत्प्रेक्षा अलंकार के भेदउत्प्रेक्षा अलंकार अलंकार के हिन्दी व्याकरण में मुख्य रूप से तीन भेद होते हैं- वस्तुप्रेक्षा अलंकार, हेतुप्रेक्षा अलंकार, फलोत्प्रेक्षा अलंकार। वस्तुप्रेक्षा अलंकारजहाँ पर प्रस्तुत में अप्रस्तुत की संभावना दिखाई जाए वहाँ पर वस्तुप्रेक्षा अलंकार होता है। वस्तुप्रेक्षा अलंकार का उदाहरण सखि सोहत गोपाल के, उर गुंजन की माल। हेतुप्रेक्षा अलंकारजहाँ अहेतु में हेतु की सम्भावना देखी जाती है। अथार्त वास्तविक कारण को छोडकर अन्य हेतु को मान लिया जाए वहाँ हेतुप्रेक्षा अलंकार होता है। फलोत्प्रेक्षा अलंकारइसमें वास्तविक फल के न होने पर भी उसी को फल मान लिया जाता है वहाँ पर फलोत्प्रेक्षा अलंकार होता है। फलोत्प्रेक्षा अलंकार का उदाहरण खंजरीर नहीं लखि परत कुछ दिन साँची बात। उत्प्रेक्षा अलंकार के उदाहरण1. ले चला साथ मैं तुझे कनक। ज्यों भिक्षुक लेकर स्वर्ण। इस
उदाहरण में कनक का अर्थ धतुरा है। कवि कहता है कि वह धतूरे को ऐसे ले चला मानो कोई भिक्षु सोना ले जा रहा हो। इसमें ‘ज्यों’ शब्द का इस्तेमाल हो रहा है एवं कनक–उपमेय में स्वर्ण–उपमान के होने कि कल्पना हो रही है। इसलिए यह उत्प्रेक्षा अलंकार के अंतर्गत आएगा। सिर फट गया उसका वहीं। मानो अरुण रंग का घड़ा हो। इसमें सिर कि लाल रंग का घड़ा होने कि कल्पना की हो रही है। इसमें सिर–उपमेय है एवं लाल रंग का घड़ा–उपमान है। उपमेय में उपमान के होने कि कल्पना कि जा रही है, इसलिए यह उत्प्रेक्षा
अलंकार के अंतर्गत आएगा। नेत्र मानो कमल हैं। 4. सोहत ओढ़े पीत पट, स्याम सलोने गात Examples of Utpreksha Alankar5. सखि सोहत गोपाल के, उर गुंजन की मालबाहर 6. बहुत काली सिल जरा-से लाल केसर से कि जैसे धुल गई हो। 7. उस वक्त मारे क्रोध के तनु कांपने उनका लगा। 8. कहती
हुई यों उत्तरा के नेत्र जल से भर गए। 9. मानो माई घनघन अंतर दामिनी। 10. नील परिधान बीच सुकुमारी खुल रहा था मृदुल अधखुला अंग, 11. कहती हुई यों उत्तरा के नेत्र जल से भर 12. जान पड़ता है नेत्र देख बड़े 13. पाहून ज्यों आये हों गाँव में शहर के; 14. मुख बाल रवि सम लाल होकर, ज्वाला-सा बोधित हुआ। उत्प्रेक्षालंकारः संस्कृत“सम्भावनमथोपेक्षा प्रकृतस्य समेन यत् ” – इस अलंकार में उपमेय में उपमान की संभावना का वर्णन किया जाता है। उदाहरणस्वरूप :1. उन्मेषं यो मम न सहते जातिवैरी निशाया- 2. लिम्पतीव तमोऽङगानि वर्पतीवाजनं नमः ।। सम्पूर्ण हिन्दी और संस्कृत व्याकरण
Utpreksha Alankar की परिभाषा प्रमुख उदाहरण सहित उत्प्रेक्षा अलंकार किसे कहते है?उत्प्रेक्षा अलंकार की परिभाषा – जहाँ उपमेय में उपमान होने की संभावना या कल्पना की जाती है, वहाँ उत्प्रेक्षा अलंकार होता है। इसके लक्षण है- जनु, मनु, इव, मानो, मनो, मनहुँ, आदि। पहचान – मनो, मानो, मनु, मनुह, जानो, इव, जनु, जानहु, ज्यों आदि शब्द अगर किसी अलंकार में आते है तो वह उत्प्रेक्षा अलंकार होता है। उत्प्रेक्षा अलंकार के उदाहरणसोहत ओढ़े पीत पर, स्याम सलोने गात। चमचमात चंचल नयन, बिच घूँघट पट छीन। फूले कास सकल महि छाई। ले चला मैं तुझे कनक, ज्यों भिक्षुक लेकर स्वर्ण-झनक। चित्रकूट जनु अचल अहेरी। चित्रकूट जनु अचल अहेरी। उस काल मारे क्रोध के, तनु काँपने उसका लगा। “लट लटकनि मनु मत्त, “अरुन भये कोमल चरन, कहती हुई यो उत्तरा के, नेत्र जल से भर गए। “तव पद समता को कमल, मानो माई धनधन अंतर दामिनि। मनु द्रग फारि अनेक जमुन निरखत ब्रज शोभा। यह भी पढ़ें – पल्लवन किसे कहते है? पल्लवन की प्रमुख विशेषताएं आप यह अलंकार भी पढ़ सकते है-
Share On: Trending Posts: उत्प्रेक्षा अलंकार का उदाहरण कौन सा है?उत्प्रेक्षा अलंकार के उदाहरण
ज्यों भिक्षुक लेकर स्वर्ण। इस उदाहरण में कनक का अर्थ धतुरा है। कवि कहता है कि वह धतूरे को ऐसे ले चला मानो कोई भिक्षु सोना ले जा रहा हो। इसमें 'ज्यों' शब्द का इस्तेमाल हो रहा है एवं कनक–उपमेय में स्वर्ण–उपमान के होने कि कल्पना हो रही है।
उत्प्रेक्षा अलंकार की परिभाषा क्या है?परिभाषा - जहां उपमेय में उपमान की संभावना की जाए वहां उत्प्रेक्षा अलंकार होता है । मनु मानो, जनु - जानो, मनहुँ - जनहूँ आदि उत्प्रेक्षा के वाचक शब्द है । जहां पर उपमान के न होने पर उपमेय को ही उपमान मान लिया जाए। आधार से जहां पर अप्रस्तुत को प्रस्तुत मान लिया जाए वहां पर उत्प्रेक्षा अलंकार होता है।
उत्प्रेक्षा अलंकार की पहचान कैसे करें?जहां उपमेय में उपमान की संभावना हो या कल्पना की जाए, उसे उत्प्रेक्षा अलंकार कहते हैं।
यमक अलंकार का उदाहरण क्या है?काली घटा का घमंड घटा।
पहली बार 'घटा' शब्द का प्रयोग बादलों के काले रंग की और संकेत कर रहा है। दूसरी बार 'घटा' शब्द बादलों के कम होने का वर्णन कर रहा है। अतः 'घटा' शब्द का दो बार प्रयोग और अलग अलग अर्थ के कारण उक्त पंक्तियों में यमक अलंकार की छटा दिखती है।
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