ध्वनि सिद्धांत | परिभाषा | भेद | काव्यशास्त्र Show
ध्वनि सिद्धांत काव्यशास्त्र का विषय है इसका स्वरूप अति विस्तृत और व्यापक है ध्वनि संप्रदाय के प्रवर्तक आनंदवर्धन है। ध्वनि सिद्धांत पर आधारित आनंदवर्धन की पुस्तक ध्वन्यालोक है। जिसका दूसरा नाम सहृदयालोक है । आनंदवर्धन का समय 9 वीं सदी है। ये अवंतिवर्मा के सभापंडित थे। अवंतिवर्मा ने इन्हें राजानक की उपाधि दी । ध्वन्यालोक पर अभिनवगुप्त ने ध्वन्यालोक लोचन नाम से टीका लिखी। ध्वनि विरोधी आचार्य निम्न है ध्वनि समर्थक आचार्य निम्न है पतंजलि ने महाभाष्य में लिखा कि
ध्वनि शब्द का आशयध्वनि शब्द का आविष्कार संस्कृत व्याकरणशास्त्र से माना जाता है। व्याकरणशास्त्र में ध्वनि को स्फोट व्यंजक माना गया है। ‘ध्वन्यते इति ध्वनि‘ अर्थात जो व्यंग्यार्थ को ध्वनित करे वही ध्वनि है। इस व्युत्पत्ति के द्वारा ध्वनि व्यंजक शब्द की बोधिका है। वस्तुतः व्यंजक शब्द ही व्यंग्यार्थ को ध्वनित करता है। ध्वनि सिद्धांत की परिभाषाचिंतामणि त्रिपाठी के अनुसार ध्वनि सिद्धांत की परिभाषा सगुन अलंकारन सहित दोष रहित जो होय । विश्वनाथ के अनुसार धोनी सिद्धांत की परिभाषा ‘वचाट शायिनी व्यंग्ये ध्वनि काव्य उक्तम्’ आनंद वर्धन के अनुसार ध्वनि सिद्धांत की परिभाषा यत्रार्थ शब्दो वा तमर्थमुपसर्जनीकृत स्वार्थो अर्थात जहां शब्द स्वयं को या अर्थ स्वयं के अर्थ का परित्याग करके उस व्यंजना रूप अर्थ को व्यन्जित करें वह ध्वनि है। अभिनव गुप्त के अनुसार ध्वनि की परिभाषा ‘ध्वनितीति ध्वनिः’ अर्थात जो ध्वनित हो वह ध्वनि है। ‘ध्वन्यते इति ध्वनि’ अर्थात जो ध्वनित कराए वह ध्वनि है। ‘ध्वनयति इति ध्वनि’ अर्थात जो ध्वनित करता है वह ध्वनि है। ‘ध्वन्यते अस्मिन इति ध्वनि’ अर्थात जिसमें ध्वनित होता है वह ध्वनि है। ध्वनि सिद्धांत की स्थापनाएध्वनि सिद्धांत की स्थापना में मुख्य रूप से आनंदवर्धन अभिनवगुप्त व
मम्मट का नाम लिया जाता है। अभिनवगुप्त ने लिखा कि जिस प्रकार घंटे पर आघात करने से पहले टंकार फिर मधुर झंकार एक के बाद एक अधिक मधुर निकलती है उसी प्रकार व्यंग्यार्थ ध्वनित होता है। इस प्रकार ध्वनित होने वाला व्यंग्यार्थ जहां पर प्रधान हो वहां ध्वनि मानी जाती है। आनंदवर्धन ध्वनि को काव्य की आत्मा मानते हैं वे ध्वनि को आत्मा और रस को परमात्मा स्वरूप मानते हैं। आनंदवर्धन गुण, रीति व अलंकार को ध्वनि में ही समाहित मानते हैं। आनंदवर्धन ने गुण को चित्त की अवस्था से जोड़ा जिसे द्रुति, दीप्ति और व्यायकत्व कहा। रीति को पदसंघटना कहां। अर्थात कवि की आत्मा या उसके मूल भाव को पकड़ना ध्वनि है। ध्वनि सिद्धांत के भेद⇒आनंद वर्धन ने ध्वनि के तीन भेद या तीन प्रकार बताए हैं 1- वस्तु ध्वनि 2- अलंकार ध्वनि 3- रस ध्वनि नोट- सर्वमान्य ध्वनि के कुल भेद दो है ध्वनि सिद्धांत के महत्वपूर्ण प्रश्न♣ध्वन्यालोक चार उद्योतों में विभक्त है। इसकी रचना कारिका एवं वृत्ति के रूप में हुई है। अच्छी पुस्तक का मार्गदर्शन जरूरी है किसी भी प्रतियोगी परीक्षा में भारतीय काव्यशास्त्र से बनने वाला प्रश्न मुझसे गलत नहीं होता क्योंकि मैंने इस बुक को पढ़ा है। आप घर बैठे amazon से इस बुक को मँगवा सकते है। बुक को मॅगवाने के बाद अगर वह आपको पसंद नहीं आती है तो आप उसे लौटा भी सकते हैं। बुक को खरीदने के लिए क्लिक करेें ध्वनि सिद्धांत की प्रमुख स्थापना कौन कौन सी है?ध्वनि सिद्धांत की स्थापना में मुख्य रूप से आनंदवर्धन अभिनवगुप्त व मम्मट का नाम लिया जाता है। आचार्य मम्मट को ध्वनि प्रतिष्ठापक परमाचार्य कहा जाता है। मम्मट ने काव्यप्रकाश में ध्वनि को उत्तम या श्रेष्ठ काव्य माना उनके अनुसार वाक्यार्थ की अपेक्षा व्यंग्य के अधिक चमत्कार युक्त होने पर उत्तम काव्य होता है।
ध्वनि संप्रदाय और उनके सिद्धांत के लेखक कौन हैं?ध्वनि सिद्धान्त, भारतीय काव्यशास्त्र का एक सम्प्रदाय है। भारतीय काव्यशास्त्र के विभिन्न सिद्धान्तों में यह सबसे प्रबल एवं महत्त्वपूर्ण सिद्धान्त है। अर्थात काव्य की आत्मा ध्वनि है ऐसा मेरे पूर्ववर्ती विद्वानों का भी मत हैं।
ध्वनि सिद्धांत के जन्मदाता कौन है?'भाष' शब्द का अर्थ है 'बोलना' या 'कहना' ।
ध्वनि काव्य के कितने भेद हैं?अलङ्कारसार में भी इस ध्वनि के तीन भेद बतलाये गये हैं- (१) शब्दशक्तिमूलानुरणनरूपव्यङ्ग्य ।
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