धूत कहौ अवधूत कहौ में कौन सा छंद है? - dhoot kahau avadhoot kahau mein kaun sa chhand hai?

धूत कहौ, अवधूत कहौ

धूत कहौ, अवधूत कहौ, रजपूतु कहौ, जोलहा कहौ कोऊ।

काहू की बेटी सों, बेटा ब्याहब, काहू की जाति बिगार सोऊ।

तुलसी सरनाम गुलामु है राम को, जाको, रुचै सो कहै कछु ओऊ।

माँगि कै खैबो, मसीत को सोईबो, लैबो को, एकु दैबे को दोऊ॥

चाहे कोई मुझे धूर्त कहे अथवा परमहंस कहे, राजपूत कहे या जुलाहा कहे, मुझे किसी की बेटी से तो बेटे का ब्याह करना नहीं है, मैं किसी से संपर्क रखकर उसकी जाति ही बिगाड़ूँगा। तुलसीदास तो श्रीराम का प्रसिद्ध ग़ुलाम है, जिसको जो रुचे सो कहो। मुझको तो माँग के खाना और मसजिद (देवालय) में सोना है, किसी से एक लेना है, दो देना है।

स्रोत :

  • पुस्तक : कवितावली (पृष्ठ 120)
  • रचनाकार : तुलसी
  • प्रकाशन : गीताप्रेस
  • संस्करण : 2017

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सवैया

(कवितावली के उत्तर कांड से उद्धृत)

तुलसीदास

भूमिका : ईश्वर को पूर्णत: समर्पित व्यक्ति जाति, धर्म, खानदान आदि की मान्यताओं से ऊपर उठ जाता है। उसकी सबसे बड़ी पहचान ईश्वर का समर्पित भक्त होना होती है। फ़िर लोग उसके बारे में कितनी भी क्षुद्र बातें क्यों न कहें, भक्ति और आत्मविश्वास के कारण उसे उन क्षुद्र बातों का तिरस्कार करने की शक्ति मिल जाती है। इस प्रकार सच्ची धार्मिकता और सच्चा भक्त सच्चा मनुष्य बन जाता है। इससे यह भी समझ में आता है कि सच्ची धार्मिकता और भक्ति सामाजिक और राजनीतिक भेदभाव को नहीं मानती है।

बाहर से हमें तुलसीदास सीधे-सादे, सरल, निरीह और दयनीय लगते हैं, पर उन्हें भीतर से रामभक्त होने का इतना स्वाभिमान है कि वे दुनिया की क्षुद्र बातों से प्रभावित नहीं होते हैं।

धूत कहौ, अवधूत कहौ, रजपूतु कहौ, जोलहा कहौ कोऊ।

काहू की बेटीसों बेटा न ब्याहब, काहू की जाति बिगार न सोऊ॥

तुलसी सरनाम गुलामु है राम को, जाको रुचै सो कहै कछु ओऊ।

मांगि कै खैबो, मसीत को सोइबो, लैबोको एकु न दैबको दोऊ॥

चाहे कोई मुझे धूर्त कहे, चाहे कोई संन्यासी कहे, चाहे राजपूत कहे या जुलाहा कहे। किसी की बेटी से अपने बेटे का विवाह करके मैं उसकी जाति नहीं बिगाड़ूंगा।

तुलसीदास कहते हैं-मैं तो राम के गुलाम के रूप में जाना जाता हूं और यही मेरी सबसे बड़ी पहचान है। इसलिए जिसको कुछ और कहना अच्छा लगे तो वह भी कह सकता है। मैं मांगकर खा लूंगा, मस्जिद में सो जाऊंगा, पर किसी से कोई मतलब नहीं रखूंगा।

शब्दार्थ

धूत- धूर्त, धोखेबाज़

कहौ-कहो

अवधूत-संन्यासी

रजपूते-राजपूत

जोलहा –कपड़ा बुननेवाला

कोऊ-कोई

काहू की-किसी की

बेटीसों-बेटी से

सरनाम-प्रसिद्ध

गुलामु-गुलाम, दास, सेवक

जाको - जिसको

रुचै –अच्छा लगे

कछु ओऊ- कुछ और

मसीत -मस्जिद

लैबोको एकु न दैबको दोऊ- किसी से कोई  मतलब न रखना

सूक्ष्म प्रश्न

1.   छंद और भाषा का नाम बताइए।

2.   कविता की भाषा पर टिप्पणी कीजिए।

3.   लोग तुलसीदास को क्या-क्या कहते रहे होंगे?

4.   अपनी किन विशेषताओं के कारण तुलसीदास लोगों की बातों का सामना कर पाते हैं?

5.   तुलसीदास का हृदय स्वाभिमानी भक्त का हृदय है। कैसे?

6.   जाति-धर्म को लेकर तुलसीदास का क्या दृष्टिकोण रहा होगा?

7.   तुलसीदास कहते हैं कि ‘काहू की बेटीसों बेटा न ब्याहब, काहू की जाति बिगार न सोऊ’...अगर वे काहू की बेटीसों बेटा न ब्याहब के स्थान पर काहू की बेटासों बेटी न ब्याहब कहते तो सामाजिक अर्थ में क्या परिवर्तन आता?


धूत कहौ अवधूत कही किसकी पंक्तियाँ हैं?

व्याख्या: तुलसीदास कहते हैं-चाहे कोई मुझे धूर्त कह, अथवा तपस्वी साधु, कोई मुझे राजपूत समझे या जुलाहा ही क्यों न कहे।

दूध कहो अब दूध कहो किसकी पंक्तियां है?

दूध-दूध हे वत्स! तुम्हारा दूध खोजने हम जाते हैं.