प्राचीन काल में तक्षशिला और नालंदा की प्रसिद्धि के कारण क्या थे? - praacheen kaal mein takshashila aur naalanda kee prasiddhi ke kaaran kya the?

प्राचीन काल में तक्षशिला और नालंदा की प्रसिद्धि के कारण क्या थे? - praacheen kaal mein takshashila aur naalanda kee prasiddhi ke kaaran kya the?
प्राचीन काल में तक्षशिला और नालंदा की प्रसिद्धि के कारण क्या थे? - praacheen kaal mein takshashila aur naalanda kee prasiddhi ke kaaran kya the?

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आखिर क्‍या कारण था तक्षशिला विश्‍वविद्यालय के पतन का?

लखनऊ

 27-03-2021 10:46 AM

सभ्यताः 10000 ईसापूर्व से 2000 ईसापूर्व

    प्राचीन काल में तक्षशिला और नालंदा की प्रसिद्धि के कारण क्या थे? - praacheen kaal mein takshashila aur naalanda kee prasiddhi ke kaaran kya the?

    भारत और मध्य एशिया के बीच लगभग एक नाली भूमि पर बना तक्षशिला विश्‍वविद्यालय विश्‍व के सबसे प्राचीन विश्‍वविद्यालयों में से एक है. किंतु इसे वर्तमान समय में नालंदा जितनी प्रसिद्धि नहीं मिल पायी. इसके पीछे के कारण को जानने के लिए हमें पहले दोनों विश्‍वविद्यालयों के इतिहास और तक्षशीला के पतन के बारे में जानना होगा.
    तक्षशिला पाकिस्तान के उत्तर-पश्चिमी हिस्सों में हिंदू कुश पहाड़ों के पास स्थित है। यह सामरिक खैबर दर्रे के काफी करीब स्थित है, जो कि मध्य एशिया के आक्रमणकारियों के लिए प्रवेश बिंदु था। जिस कारण इस क्षेत्र से आने वाले सभी आक्रमणकारी तक्षशिला से होते हुए ही आते थे. एक मजबूत साम्राज्य दर्रे का बचाव कर सकता था लेकिन भारत के उत्तर पश्चिमी हिस्सों में अधिकांश जनपद (राज्य) मगध की तुलना में काफी कमजोर थे। जिस कारण यह क्षेत्र आक्रमणकारियों के लिए सबसे कमजोर बन गया. 518 ई.पू. में तक्षशिला पर विजय प्राप्त करने वाला पहला आक्रमणकारी फारस (Iran) के अचमेनिद साम्राज्य का डेरियस (Darius) था. तक्षशिला गांधार जनपद में उसके साम्राज्‍य का सबसे समृद्ध हिस्सा था।
    बाद में 326 ईसा पूर्व में सिकंदर महान तक्षशिला पहुंचा। तक्षशिला के शासक ने उसके सामने आत्मसमर्पण कर दिया। यूनानी कुछ समय के लिए ही तक्षशिला में ठहरे, बाद में चंद्रगुप्त मौर्य ने इस पर हमला करके तक्षशिला को अपने विशाल साम्राज्य में शामिल कर लिया। अशोक के तहत, तक्षशिला बौद्ध सीखने का केंद्र बन गया। अशोक के बाद, इसमें अलग-अलग शासकों का अधिपत्‍य रहा. इसे पहले बैक्ट्रिया (Bactria) के इंडो-यूनानियों (Indo-Greeks) द्वारा संभाला गया था। उनके तहत तक्षशिला भारतीय और ग्रीक कला (Greek art) रूपों के बीच परस्‍पर प्रभाव के कारण समृद्ध हुआ। बाद में शक (इंडो-साइथियन) (Indo- Scythian) ने शहर पर अधिकार कर लिया, जिन्‍हें पार्थियनों (Parthians) द्वारा हराया गया। उसके बाद मध्य एशिया के कुशाण आए। उन्होंने पार्थियनों को उखाड़ फेंका और शहर पर अधिकार कर लिया। तक्षशिला की उनकी विजय शानदार नहीं रही। कई हजार लोग तक्षशिला से भाग गए और कई मारे गए।

    प्राचीन काल में तक्षशिला और नालंदा की प्रसिद्धि के कारण क्या थे? - praacheen kaal mein takshashila aur naalanda kee prasiddhi ke kaaran kya the?
    हालाँकि, तक्षशिला को जीतने के बाद कुषाणों ने इसे अध्‍ययन का एक बड़ा केंद्र बनाया। कुषाण कला और ज्ञान के महान संरक्षक थे और इन क्षेत्रों में इन्‍होंने भारतीय संस्कृति में कई योगदान दिए। तक्षशिला की ख्याति दूर-दूर तक फैली हुई थी और बौद्ध ग्रंथों को सीखने के लिए तीर्थयात्री चीन से यहां आते थे। उन दिनों, चीन और भारत के बीच रेशम मार्ग अभी तक सक्रिय है। कुषाणों के पास एक मजबूत सेना थी और वे तीर्थयात्रियों की रक्षा करने में सक्षम थे। हालांकि, सभी अच्छी चीजें समाप्त हो जाती हैं और तक्षशिला कोई अपवाद नहीं था। कुषाणों को इण्डो-सासानियन्स् (Indo-Sassanids) द्वारा हरा दिया गया। इसके बाद यह पुराने कुषाण साम्राज्य की एक शाखा किदारा कुषाणों के हाथों में आ गया। तक्षशिला का अब तक पतन हो चुका था और यह उसकी प्रतिछाया मात्र रह गयी थी। जिसका जल्‍द ही पतन हो गया था।
    फिर हूण आए। हूण निर्दयी बर्बर लोग थे जिन्होंने अपने रास्ते में आने वाली हर चीज को नष्ट कर दिया। तक्षशिला भी इनमें से एक था। हूणों ने इस प्राचीन शहर को भी नष्ट कर दिया और हजारों को मार डाला। हूणों की हार के बाद, शहर ने पुन: जागृत होने की कोशिश की लेकिन यह कदम असफल रहा। क्‍योंकि कोई अमीर संरक्षक नहीं था और कोई मजबूत राजा भी नहीं बचा था। और तक्षशिला कभी ना खतम होने वाले अंधेंरों की गुमनामी में खो गया। इसके विपरित नालंदा विश्‍वविद्यालय शिक्षा का एक बड़ा केंद्र बनकर उभरा।
    गुप्त साम्राज्य के तत्वावधान में नालंदा शिक्षा का एक बड़ा केंद्र बन गया था। गुप्त ने नालंदा को एक महान विश्वविद्यालय के रूप में स्थापित करने में महत्‍वपूर्ण योगदान दिया। नालंदा विश्‍वविद्यालय काफी सुरक्षित स्‍थान पर मौजूद था। एक मजबूत साम्राज्य नालंदा को विदेशी आक्रमणों से आसानी से बचा सकता है। जिस कारण यह एक महान विश्‍वविद्यालय के रूप में उभरा। गुप्तों के पतन के बाद कन्नौज के हर्षवर्धन आये। उन्होंने विश्वविद्यालय को और भी बेहतर बनाया। उनके शासनकाल के दौरान, चीनी यात्री ह्वेन त्सांग (Xuanzang) बौद्ध धर्म के बारे में जानने के लिए भारत आया था। वह प्राचीन बौद्ध ग्रंथों की तलाश में आया था। हर्ष ने उसका खुलकर स्‍वागत किया और आज हम हर्ष के बारे में जितना भी जानते हैं, उसका कारण ह्वेन त्सांग ही है। वह बौद्ध धर्म को गहनता से जानने के लिए नालंदा भी गया। उन्होंने महावीर, व्‍याकरण, तर्क और संस्कृत के बारे में भी जाना। हर्ष के बाद, नालंदा के अगले महान संरक्षक पाल थे। पाल साम्राज्य के देवपाल ने 9 वीं शताब्दी ईस्वी में नालंदा को शानदार दान दिया। उनके शासन में, लोग यहाँ अध्ययन करने के लिए दूर-दूर से आया करते थे। पाल के पतन के बाद, विश्वविद्यालय को निरस्‍त कर दिया गया और 1193 में मुस्लिम आक्रमणकारियों द्वारा मुहम्मद बख्तियार खिलजी के नेतृत्व में इसे नष्ट कर दिया गया, इन्होंने अधिकांश बौद्ध भिक्षुओं को मार डाला और हजारों पांडुलिपियों को जला दिया।
    अत: नालंदा तक्षशिला की तुलना में एक बड़ा विश्वविद्यालय था, जिसके लिए इसकी स्थिति और बड़े राजाओं का संरक्षण महत्‍वपूर्ण था। रेशम मार्ग के माध्‍यम से यह चीन से भी जुड़ा हुआ था। इस सब ने नालंदा की यात्रा को आसान और सुरक्षित बना दिया। कुषाण शासन के तहत तक्षशिला सुरक्षित और संरक्षित था, लेकिन हूणों के आने के बाद, विश्वविद्यालय का पतन हो गया। यह खंडहर बन कर रह गया और बाद में अरब आक्रमणों ने इसे पूरी तरह से नष्ट कर दिया। इसके अलावा, नालंदा को कई महान सम्राट और राजाओं का संरक्षण मिला जिन्होंने इसे शानदार दान दिया। गुप्त, हर्ष और पाल कला के महान संरक्षक थे और नालंदा के उत्थान के लिए व्‍यापक रूप से खर्च करते थे। तक्षशिला के पास भी कुषाण राजवंश के महान संरक्षक थे, उनके शासन काल के दौरान यह समृद्ध था। तक्षशिला अस्पष्टता में गायब हो गई, क्योंकि कुषाणों के बाद, कला के कोई महान संरक्षक नहीं थे और कोई भी मजबूत राजा नहीं था जिसके तत्वावधान में यह बढ़ सकता था।
    प्राचीन काल में तक्षशिला और नालंदा की प्रसिद्धि के कारण क्या थे? - praacheen kaal mein takshashila aur naalanda kee prasiddhi ke kaaran kya the?
    हमारे लखनउ शहर में भी एतिहासिक विश्‍वविद्यालय मौजूद है, हालांकि यह तक्षशिला और नालंदा जितना तो प्राचीन नहीं है किंतु लगभग 150 पहले बना यह विश्‍वविद्यालय आज देश के अग्रणी शिक्षा केन्‍द्रों से संबंधित है। जिसकी विश्‍वविद्यालय नींव तो ब्रिटिश शासन के दौरान रखी गयी किंतु आज इसे वर्तमान सरकार का संरक्षण प्राप्‍त है। लखनऊ विश्वविद्यालय में कला, विज्ञान, वाणिज्य, शिक्षा, ललित कला, विधि और आयुर्वेद सात संकायों से सम्बद्ध, 59 विभाग हैं। इन संकायों में लगभग 196 पाठ्यक्रम संचालित है, जिसमें 70 से अधिक व्यावसायिक पाठ्यक्रम स्ववित्तपोषित योजना में संचालित हैं। विश्वविद्यालय का केंद्रीय पुस्तकालय टैगोर लाइब्रेरी देश के समृद्ध पुस्तकालयों में से एक है। इसमें 5.25 लाख किताबें, 50,000 जर्नल और लगभग 10,000 प्रतियां अनुमोदित पीएच.डी. (PhD.) और डी.लिट. (D.Litt.) लघु शोध प्रबंध संग्रहित हैं। यह पुस्तकालय कम्प्यूटरीकृत (Computerized) है और इसकी अपनी वेबसाइट (Website) भी है।

    संदर्भ:
    https://bit.ly/3cEJlx9
    https://bit.ly/3eJrtnz
    https://bit.ly/3vy3UnA
    https://bit.ly/2Qbrk28

    चित्र संदर्भ:
    मुख्य चित्र तक्षशिला विश्वविद्यालय को दर्शाता है। (CGTN)
    दूसरी तस्वीर नालंदा विश्वविद्यालय को दिखाती है। (विकिपीडिया)
    तीसरी तस्वीर में लखनऊ विश्वविद्यालय दिखाया गया है। (lkouniv.com)

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