इसे सुनेंरोकेंद्वैध शासन का सिद्धान्त सबसे पहले लियोनेल कर्टिस नामक अंग्रेज ने अपनी पुस्तक ‘डायर्की’ में प्रतिपादित किया था। बाद में यह सिद्धान्त ‘भारतीय शासन अधिनियम, 1919’ में लागू किया गया, जिसके अनुसार प्रान्तों में द्वैध शासन स्थापित हुआ। Show द्वैध शासन का अर्थ क्या है? इसे सुनेंरोकें1919 ई. के भारत सरकार अधिनियम द्वारा प्रांतीय सरकार को मजबूत बनाया गया और द्वैध शासन (diarchy) की स्थापना की गई. 1919 के पहले प्रांतीय सरकारों पर केंद्र सरकार का पूर्ण नियंत्रण रहता था. लेकिन अब इस स्थिति में परिवर्तन लाकर प्रांतीय सरकारों को उत्तरदायी बनाने का प्रयास किया गया. 1935 के भारत सरकार अधिनियम के अनुसार प्रांतों में मंत्रिमंडल कब स्थापित हुआ?इसे सुनेंरोकेंसन 1935 मे भारत सरकार अधिनियम के अनुसार प्रांतों में मंत्रिमंडल 1937 में स्थापित हुआ। पढ़ना: एचआईवी कितने दिन में पता चलता है? 1919 के अधिनियम के तहत स्थापित द्वैध शासन से आप क्या समझते हैं? इसे सुनेंरोकें1919 ई. के भारत सरकार अधिनियम द्वारा प्रांतीय सरकार को मजबूत बनाया गया और द्वैध शासन (diarchy) की स्थापना की गई. 1919 के पहले प्रांतीय सरकारों पर केंद्र सरकार का पूर्ण नियंत्रण रहता था. इस द्वैध शासन का एकमात्र उद्देश्य था – भारतीयों को पूर्ण उत्तरदायी शासन के लिए प्रशासनिक शिक्षा देना. बंगाल में द्वैध शासन क्या था?इसे सुनेंरोकेंद्वैध शासन बंगाल में 1765 ई. की इलाहाबाद सन्धि के अंतर्गत लगाया गया था। यह शासन बंगाल के अतिरिक्त बिहार और उड़ीसा में भी लागू किया गया था। सन्धि के फलस्वरूप एक ओर ईस्ट इण्डिया कम्पनी और दूसरी ओर अवध के नवाब शुजाउद्दौला, बंगाल के नवाब मीर कासिम और दिल्ली के सम्राट शाहआलम द्वितीय के बीच युद्ध का अन्त हो गया। बंगाल का द्वैध शासन कब से कब तक चला? इसे सुनेंरोकेंप्रश्न 1. बंगाल में द्वैध शासन प्रणाली कब तक लागू रहा? उत्तर – बंगाल में द्वैध शासन 1765-1772 तक लागू रहा. पढ़ना: स्कार्पियो स२ का कितना किमत है? बंगाल में द्वैध शासन की समाप्ति कब हुई?इसे सुनेंरोकेंक्लाइव ने बंगाल में द्वैध शासन प्रबंध की स्थापना को इसलिए महत्व दिया क्योंकि उस समय बंगाल जैसे विशाल प्रान्त का संपूर्ण शासन प्रबंध अपने हाथों में लेने के लिए कंपनी के पास पर्याप्त अधिकारी नहीं थे । क्लाइव द्वारा स्थापित शासन को 1772 ई. अपनी वेबसाइट पर हम डाटा संग्रह टूल्स, जैसे की कुकीज के माध्यम से आपकी जानकारी एकत्र करते हैं ताकि आपको बेहतर अनुभव प्रदान कर सकें, वेबसाइट के ट्रैफिक का विश्लेषण कर सकें, कॉन्टेंट व्यक्तिगत तरीके से पेश कर सकें और हमारे पार्टनर्स, जैसे की Google, और सोशल मीडिया साइट्स, जैसे की Facebook, के साथ लक्षित विज्ञापन पेश करने के लिए उपयोग कर सकें। साथ ही, अगर आप साइन-अप करते हैं, तो हम आपका ईमेल पता, फोन नंबर और अन्य विवरण पूरी तरह सुरक्षित तरीके से स्टोर करते हैं। आप कुकीज नीति पृष्ठ से अपनी कुकीज हटा सकते है और रजिस्टर्ड यूजर अपने प्रोफाइल पेज से अपना व्यक्तिगत डाटा हटा या एक्सपोर्ट कर सकते हैं। हमारी Cookies Policy, Privacy Policy और Terms & Conditions के बारे में पढ़ें और अपनी सहमति देने के लिए Agree पर क्लिक करें। Agreeद्वैध शासन को समझने से पहले दीवानी और निजाम को समझना आवश्यक है।मुगल काल में प्रांतीय प्रशासन में दो प्रकार के अधिकारी होते थे जिनमें सूबेदार जिसे निजाम भी कहा जाता था, का कार्य सैनिक प्रतिरक्षा, पुलिस और न्याय प्रशासन से जुङा था। दूसरा अधिकारी पद प्रांतीय स्तर पर श्रेष्ठ दीवान का था, जो राजस्व एवं वित्त व्यवस्था की देख-रेख करता था। ये दोनों अधिकारी एक दूसरे पर नजर रखते थे तथा मुगल बादशाह के प्रति उत्तरदायी होते थे। इलाहाबाद की संधि के बाद अंग्रेजों को 26 लाख रुपये वार्षिक देने के बदले दीवानी का अधिकार तथा 53 लाख रु. बंगाल के नवाब को देने पर निजामत का अधिकार प्राप्त हुआ। दीवानी और निजामत दोनों अधिकार प्राप्त कर लेने के बाद ही कंपनी ने बंगाल में द्वैध शासन की शुरुआत की। द्वैध शासन का जनक लियो कार्टिस को माना जाता है। द्वैध शासन की शुरुआत बंगाल में 1765ई. में हुई थी।इसके अंतर्गत कंपनी ने दीवानी और निजामत के कार्यों का निष्पादन भारतीयों के माध्यम से किया था, लेकिन वास्तविक शक्ति कंपनी के हाथों में होती थी। कंपनी और नवाब दोनों द्वारा की गई प्रशासन की व्यवस्था को ही बंगाल में द्वैध शासन कहा जाता था।जिसकी विशेषता थी उत्तरदायित्व रहित अधिकार और अधिकार रहित उत्तरदायित्व। शीघ्र ही बंगाल में द्वैध शासन के दुष्परिणाम देखने को मिले।समूचे बंगाल में अराजकता,अव्यवस्था और भ्रष्टाचार का माहौल बन गया।व्यापार और वाणिज्य का पतन हुआ, व्यापारियों की स्थिति भिखारियों जैसी हो गई,समृद्ध और विकसित उद्योग विशेषतः रेशम और कपङा उद्योग नष्ट हो गये, किसान भयानक गरीबी के शिकार हो गये। क्लाइव ने अवध के नवाब शुजाउद्दौला से 16अगस्त,1765 ई. को इलाहाबाद की द्वितीय संधि की । संधि की शर्तें कुछ इस प्रकार हैं-
अवध के साथ संधि पर रेम्जेम्योर ने लिखा है कि अब से अवध के साथ मित्रता के संबंध रखना अंग्रेजों की स्थायी नीति बन गई,जो मराठों की बढती हुई शक्ति के मार्ग में एक लाभदायक बाधा थी। फरवरी,1765ई. में क्लाइव ने बंगाल के नवाब नज्मुद्दौला से संधि की,जिसकी शर्तें इस प्रकार थी-बंगाल में प्रशासनिक अधिकारियों की नियुक्ति का अधिकार कंपनी को होगा,साथ ही नवाब की सेना को लगभग समाप्त कर दिया गया। बंगाल के नवाब के साथ संधि के बाद बंगाल में द्वैध शासन की शुरुआत हुई। अल्पायु नवाब ने मुहम्मद रजा खां को नायब सूबेदार नियुक्त किया। इस प्रकार कंपनी को मुगल सूबेदार द्वारा इलाहाबाद की संधि से बंगाल,बिहार,उङीसा की दीवानी तथा बंगाल के नवाब के साथ संपन्न संधि से निजामत का अधिकार प्राप्त हो गया। द्वैध शासन के समय ही बंगाल में 1770 ई. में भयंकर अकाल पङा जिसमें करीब एक करोङ लोग भुखमरी के कारण मृत्यु के शिकार हो गये।अकाल के इस भयानक दौर में कार्टियर बंगाल का गवर्नर था। द्वैध शासन के समय बंगाल से 1766-67 के बीच 2,24,67,500 रु. की वसूली हुई, इससे पूर्व यह वसूली मात्र 80 लाख थी। लार्ड क्लाइव ने इंग्लैण्ड की संसद में द्वैध शासन के बारे में कहा कि मैं पूर्ण विश्वास के साथ कहता हूँ कि विश्व में कोई भी ऐसी सभ्य सरकार नहीं रही जो इतनी भ्रष्ट विश्वासघाती और लोभी हो,जितना की भारत में कंपनी की सरकार। क्लाइव ने खुद बंगाल की अव्यवस्था के बारे में कहा कि मैं केवल इतना ही कहूँगा कि अराजकता,अव्यवस्था,भ्रष्टाचार और शोषण का जैसा दृश्य बंगाल में था,वैसा न तो किसी देश में देखा गया और न सुना गया। ऐसे अन्यायुक्त और लोभपूर्ण ढंग से इतने लाभ कभी प्राप्त नहीं किये गये। 1775ई. में कलकत्ता सर्वोच्च न्यायालय के एक न्यायाधीश ने बंगाल के नवाब मुबारक-उद-द्दौला के बारे में कहा कि – वह बेताल(फेंटम)या छाया पुरुष घास-फूस का आदमी है। Reference : https://www.indiaolddays.com/ Tags india old days india olddays indiaolddays अंग्रेजों आधुनिक आधुनिक भारत का इतिहास इलाहाबाद की संधि उङीसा कार्टियर क्लाइव दीवानी नज्मुद्दौला निजामत पूर्व मध्यकालीन भारत प्राचीन प्राचीन भारत प्राचीन भारत का इतिहास बंगाल बिहार मध्यकालीन भारत मध्यकालीन भारत का इतिहास मराठा मुगल बादशाह मुबारक-उद-द्दौला मुहम्मद रजा खां रेम्जेम्योर लियो कार्टिसद्वैध शासन का जनक कौन है?अतः सत्ता के दो केंद्र थे। बंगाल में द्वेध शासन का जनक रोबर्ट क्लाइव को कहा जाता है।
भारत में द्वैध शासन की शुरुआत कब हुई?भारत में द्वैधशासन प्रणाली की शुरुआत रॉबर्ट क्लाइव ने ही की थी। उसने 1765 में बंगाल में द्वैध शासन प्रणाली की शुरुआत की। और इसे 1772 तक जारी रखा गया था। बंगाल के प्रशासन को द्वैध शासन प्रणाली के परिणामस्वरूप दीवानी और निजामत में विभाजित किया गया था।
भारत में द्वैध शासन का अंत कब हुआ?(iv) द्वैध शासन प्रणाली को 1935 ई० के एक्ट के द्वारा समाप्त कर दिया गया.
बंगाल में द्वैध शासन की स्थापना कब और किसने की?बंगाल में द्वैध शासन (1765-72) बक्सर के युद्ध के पश्चात्, रॉबर्ट क्लाइव ने बंगाल में द्वैध शासन की शुरुआत की जिसमें दीवानी (राजस्व वसूलने) और निजामत (पुलिस एवं न्यायिक काय) दोनों कंपनी के नियंत्रण में आ गए।
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