Haryana State Board HBSE 12th Class Hindi Solutions Aroh Chapter 2 पतंग Textbook Exercise Questions and Answers. कविता के साथ प्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न 3.
प्रश्न 4. प्रश्न 5. प्रश्न 6. (ख) अगर वे कभी गिरते हैं छतों के खतरनाक किनारों
से → जब मनुष्य एक बार खतरनाक परिस्थितियों का सामना कर लेता है तब उसमें निर्भीकता उत्पन्न हो जाती है। ऐसी स्थिति में मनुष्य सुनहले सूर्य के समान चमकने लगता है। उसका आत्मविश्वास कई गुणा बढ़ जाता है तथा वह कठिन-से-कठिन परिस्थिति का सामना करने में समर्थ हो जाता है। कविता के आसपास प्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न 3. आपकी कविता प्रश्न 1. प्रश्न 2. HBSE 12th Class Hindi पतंग Important Questions and Answersसराहना संबंधी प्रश्न प्रश्न 1. प्रश्न 2. (ii) ‘पृथ्वी घूमती हुई आती है उनके बेचैन पैरों के पास’, तथा ‘दिशाओं को मृदंग की तरह बजाते हुए’ में मानवीकरण अलंकार का प्रयोग हुआ है। (iii) संपूर्ण पद्यांश में ‘बेचैन पैर’, ‘पेंग भरते हुए’, ‘डाल की तरह लचीले वेग’ आदि का सार्थक एवं प्रभावशाली प्रयोग हुआ है। (iv) इन तीनों में उपमा अलंकार का भी सुंदर प्रयोग हुआ है। (v) सहज, सरल तथा साहित्यिक हिंदी भाषा का सफल प्रयोग हुआ है जिसमें तत्सम, तद्भव तथा उर्दू के शब्दों का सुंदर मिश्रण देखा जा सकता है। (vi) शब्द-योजना सर्वथा सटीक एवं सार्थक है। (vii)
बिंबात्मकता के कारण भाव खिल उठे हैं (viii) मुक्त छंद का सफल प्रयोग हुआ है तथा प्रसाद गुण है। प्रश्न 3. विषय-वस्तु पर आधारित लघूत्तरात्मक प्रश्न प्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न 3. प्रश्न 4. प्रश्न 5. प्रश्न 6. प्रश्न 7. प्रश्न 8. बहुविकल्पीय प्रश्नोत्तर 1. आलोक धन्वा का जन्म कब हुआ? 2. आलोक धन्वा का जन्म किस राज्य में हुआ? 3. ‘पतंग’ कविता के रचयिता का नाम बताइए। 4. आलोक धन्वा का जन्म बिहार के किस जनपद में हुआ? 5. आलोक धन्वा की प्रथम कविता का नाम क्या है? 6. ‘जनता का आदमी’ का प्रकाशन कब हुआ? 7. आलोक धन्वा के एकमात्र काव्य संग्रह का नाम क्या है? 8. ‘भागी हुई लड़कियाँ के कवि का नाम है 9. बिहार राष्ट्रभाषा परिषद् ने आलोक धन्वा को किस पुरस्कार से सम्मानित किया? 10. किस कवि को ‘पहल सम्मान’ प्राप्त हुआ? 11. ‘ब्रूनो की बेटियाँ’ काव्य रचना किस कवि द्वारा रचित है? 12. किस कवि की रुचि काव्य रचना की अपेक्षा
सामाजिक कार्यक्रमों में अधिक है? 13. ‘पतंग’ कविता में किस छंद का प्रयोग हुआ है? 14. ‘पतंग’ कविता किसके लिए प्रसिद्ध है? 15. ‘भादो’ महीना किस ऋतु में आता है? 16. पतंग उड़ाते हुए बच्चे किसके सहारे स्वयं भी उड़ते से हैं? 17. उड़ाई जाने वाली सबसे हलकी और रंगीन चीज क्या है? 18. पतंगों की ऊँचाइयाँ कैसी कही गई हैं? 19. ‘खरगोश की आँखों जैसा लाल’
किसे कहा गया है? 20. ‘पतंग’ कविता में तितलियों की इतनी नाज़क दुनिया से कवि का अभिप्राय क्या है? 21. ‘पतंग’ नामक कविता में ‘चमकीले’ विशेषण किसके लिए प्रयुक्त किया गया है? 22. ‘सुनहले सूरज’ में कौन-सा अलंकार है? 23. छत से गिरने और बचने के बाद बच्चे क्या बन जाते हैं? 24. ‘जन्म से ही वे अपने साथ लाते हैं कपास’ में ‘कपास’ शब्द से क्या अभिप्राय है? 25. पतंग उड़ाने वाले बच्चे दिशाओं को किसके समान बजाते हैं? 26. पतंगबाजों के पैर कैसे कहे गए हैं? पतंग पद्यांशों की सप्रसंग व्याख्या एवं अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर [1] सबसे तेज़ बौछारें गयीं
भादो गया शब्दार्थ-भादो = एक महीना जिसमें मूसलाधार वर्षा होती है। शरद = सर्दी का प्रथम माह। झुंड = समूह । मुलायम = कोमल। किलकारी = खुशी से चिल्लाना। नाजुक = कोमल। प्रसंग प्रस्तुत पद्यांश हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘आरोह भाग 2′ में संकलित कविता ‘पतंग’ से अवतरित है। इसके कवि आलोक धन्वा हैं। यह कविता कवि के एकमात्र संग्रह ‘दुनिया रोज़ बनती है’ में संकलित है। इस कविता में कवि ने वर्षा ऋतु के पश्चात् बच्चों द्वारा पतंग उड़ाने के उत्साह का सजीव वर्णन किया है। व्याख्या कवि कहता है कि भादो का महीना अब बीत गया है। उसके साथ-साथ मूसलाधार वर्षा भी अब बंद हो गई है। अब अंधेरे के बाद एक नवीन सवेरा हो गया है अर्थात् अब आकाश साफ है। खरगोश की आँखों के समान शरदकालीन लाल-भूरा सवेरा हो गया है। शरद ऋतु आरंभ हो चुकी है। चारों ओर उमंग तथा उत्साह का वातावरण फैल गया है। पुलों को पार करते हुए नई चमकीली साइकिलों पर सवार होकर बच्चे ज़ोर-ज़ोर से घंटियाँ बजाते हुए बड़ी तीव्र गति से चले आ रहे हैं। वे बड़े ही आकर्षक इशारों से पतंग उड़ाने वाले बच्चों को निमंत्रण देते हुए आकाश को अत्यधिक कोमल बना रहे हैं। भाव यह है कि बच्चे साइकिलों पर सवार होकर एक-दूसरे को पतंगबाज़ी के लिए बुला रहे हैं। बच्चों में अद्भुत उत्साह और उमंग है। धूप चमक रही है। बच्चे बड़े खुश नज़र आ रहे हैं और एक-दूसरे को पतंग उड़ाने के लिए बुला रहे हैं। शरद ऋतु रूपी बालक ने आकाश को अत्यधिक कोमल और उज्ज्वल बना दिया है, ताकि आकाश की ऊँचाइयों को पतंग स्पर्श कर सकें। आकाश भी चाहता है कि पतंग ऊपर उठकर हवा के साथ तैरने लगे। पतंग संसार की सर्वाधिक हलकी और रंगीन वस्तु है जो कि बहुत ही पतले कागज़ से बनाई जाती है। आकाश रूपी बालक चाहता है कि वह उड़कर ऊपर उठे और उसके साथ बाँस की पतली कमानी भी उड़ने लगे। जब आकाश में पतंग उड़ने लगी तो बच्चे खुशी के मारे सीटियाँ बजाएँगे और किलकारियाँ मारने लगेंगे। सारा आकाश पतंगों से भर जाएगा। तब ऐसा लगेगा मानों रंग-बिरंगी कोमल तितलियों का संसार आकाश में उड़ रहा है। तात्पर्य यह है कि सारा आकाश रंग-बिरंगी पतंगों से भर जाएगा और बच्चे सीटियाँ बजाकर तथा किलकारियाँ मारकर एक-दूसरे का उत्साह बढ़ाएँगे। विशेष- पद पर आधारित अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर – प्रश्न- [2] जन्म से ही वे अपने साथ लाते हैं कपास शब्दार्थ-कपास = कोमल तथा गद्देदार अनभतियाँ। बेसध = मस्त और लापरवाह। नरम = कोमल। मृदंग = एक वाद्य यंत्र जिसकी ध्वनि बड़ी मधुर होती है। पेंग भरना = झूले झूलना। लचीले वेग = लचीली चाल। रोमांचित= प्रसन्न। संगीत = मस्त गति। थाम लेना = पकड़ लेना। महज = केवल। रंध्र = छिद्र। प्रसंग-प्रस्तुत पद्यांश हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘आरोह भाग 2′ में संकलित कविता ‘पतंग’ से अवतरित है। इसके कवि आलोक धन्वा हैं। यह कविता कवि के एकमात्र संग्रह ‘दुनिया रोज़ बनती है’ में संकलित है। इस कविता में कवि ने लाक्षणिक भाषा का प्रयोग करते हुए बच्चों की क्रियाओं पर प्रकाश डाला है। व्याख्या कवि कहता है कि बच्चे जन्म से ही अपने साथ कपास जैसी कोमलता लेकर आते हैं। भाव यह है कि उनके शरीर में हर प्रकार की चोट और खरोंच सहन करने की शक्ति होती है। उनके पैरों में एक बेचैनी होती है जिसके कारण वे संपूर्ण पृथ्वी को नाप लेना चाहते हैं। जब बच्चे बेपरवाह होकर दौड़ने लगते हैं तो वे छतों को भी कोमल समझने लगते हैं। उनकी गति के कारण दिशाएँ मृदंग के समान मधुर ध्वनि उत्पन्न करने लगती हैं। जब वे तीव्र गति के साथ झूला झूलते हुए चलते हैं, तो वे पेड़ की शाखा के समान ढीले पड़ जाते हैं। उस समय उनकी गति में एक प्रखर वेग होता है, उन्हें किसी प्रकार का डर नहीं होता। छतों के खतरनाक किनारों पर भी वे कदम रखते हुए आगे बढ़ते हैं। उस समय उनका प्रसन्न शरीर ही उन्हें गिरने से बचाता है। पतंग उड़ाते समय उनका संपूर्ण शरीर रोमांचित हो उठता है। पतंग की ऊपर जाती धड़कनें उन्हें गिरने से रोक लेती हैं। उस समय ऐसा प्रतीत होता है मानों पतंग का केवल एक धागा बच्चों को संभाल लेता है और वे नीचे गिरने से बच जाते हैं। यहाँ कवि पतंग उड़ाने वाले बच्चों का वर्णन करता हुआ कहता है कि कभी-कभी तो ऐसा लगता है कि बच्चे भी पतंगों के साथ उड़ने लगे हैं। वे अपने शरीर के रोम-कूपों से निकलने वाले संगीत का सहारा लेकर उड़ने लगते हैं। विशेष: पद पर आधारित अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर प्रश्न- (ख) बच्चों के मन में पतंग उड़ाने की बेचैनी होती है। पतंगबाजी करते समय बच्चों को धूप, गर्मी, कठोर छत आदि का ध्यान नहीं रहता। वे उछलते-कूदते और पतंग की डोर को थामे हुए पतंग उड़ाने में मस्त हो जाते हैं। इसलिए वे बेसुध होकर दौड़ते हैं। (ग) प्रायः सभी को दीवार से गिरने का डर लगा रहता है, परंतु बच्चे बेसुध होकर अपने शरीर को लहराते हुए छतों के किनारों पर झुक जाते हैं, इस अवसर पर उनके अन्दर का उत्साह और उमंग उनकी रक्षा करता है और वे गिरने से बच जाते हैं। (घ) पतंग की ऊपर उड़ती हुई धड़कनें बच्चों को गिरने से रोक लेती हैं। उस समय पतंग की डोर बच्चों के लिए सहारे का काम करती है और वे स्वयं को सँभाल लेते हैं। [3] अगर वे कभी गिरते हैं छतों के
खतरनाक किनारों से शब्दार्थ-खतरनाक = भयानक। निडर = निर्भय। बेचैन = व्याकुल। प्रसंग-प्रस्तुत पद्य हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘आरोह भाग 2’ में संकलित कविता ‘पतंग’ से अवतरित है। इसके कवि आलोक धन्वा हैं। यह कविता कवि के एकमात्र काव्यसंग्रह ‘दुनिया रोज़ बनती है’ में संकलित है। इसमें कवि ने बच्चों द्वारा पतंग उड़ाने का बहुत ही सजीव व मनोहारी वर्णन किया है। व्याख्या-बच्चे प्रायः पतंग उड़ाते समय कभी नहीं गिरते, परंतु दुर्भाग्य से कभी वे छतों के खतरनाक किनारों से गिर भी जाते हैं तो वे बच जाते हैं और वे अधिक निर्भय हो जाते हैं। अत्यधिक उत्साह के साथ वे सुनहले सूर्य के समान प्रकाशमान हो उठते हैं। ऐसा लगता है कि वे अपने बेचैन पैरों के साथ सारी पृथ्वी को नाप लेना चाहते हैं, वे दुगुने उत्साह के साथ घूमते-फिरते हैं और भाग-भागकर पतंग उड़ाते हैं। विशेष-
पद पर आधारित अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर प्रश्न- पतंग Summary in Hindiपतंग कवि-परिचय प्रश्न- पिछले दो दशकों से वे देश के विभिन्न भागों में सामाजिक तथा सांस्कृतिक कार्यकर्ता के रूप में काम करते रहे हैं। काव्य रचना की अपेक्षा उनकी रुचि सामाजिक कार्यक्रमों में अधिक रही है। जमशेदपुर में उन्होंने अध्ययन मंडलियों का संचालन किया। यही नहीं, उन्होंने अनेक राष्ट्रीय संस्थानों तथा विश्वविद्यालयों में अतिथि व्याख्याता की भूमिका भी निभाई है। 2. प्रमुख रचनाएँ-आलोक धन्वा की प्रथम कविता सन् 1972 में ‘जनता का आदमी’ शीर्षक से प्रकाशित हुई। तत्पश्चात् ‘भागी हुई लड़कियाँ’ तथा ‘ब्रूनो की बेटियाँ’ काव्य-रचनाओं से इनको विशेष प्रसिद्धि मिली। ‘गोली दागो पोस्टर’ इनकी प्रसिद्ध कविता है। इनका एकमात्र संग्रह है-‘दुनिया रोज़ बनती है। आलोक धन्वा को अनेक पुरस्कारों से सम्मानित किया गया है। राहुल सम्मान, बिहार राष्ट्रभाषा परिषद् का साहित्य सम्मान, बनारसी प्रसाद भोजपुरी सम्मान तथा पहल सम्मान आदि से इस कवि को सम्मानित किया गया है। आलोक धन्वा सहज, सरल तथा सामान्य भाषा द्वारा आकर्षक तथा मनोहारी बिंबों की रचना करने में सिद्धहस्त हैं। 3. काव्यगत विशेषताएँ-आलोक धन्वा समकालीन कविता के एक महत्त्वपूर्ण हस्ताक्षर हैं। उनके काव्य में लगभग वे सभी प्रवृत्तियाँ देखी जा सकती हैं जो समकालीन कवियों की काव्य रचनाओं में हैं। आलोक धन्वा की काव्य रचनाओं में सामाजिक चेतना के प्रति सरोकार है। आरंभ में तो वे समाज के शोषितों के प्रति अपनी सहानुभूति व्यक्त करते हुए दिखाई देते हैं। इनकी कविताएँ वर्तमान समाज के ढाँचे की विडम्बनाओं को उद्घाटित करती हैं और मानवीय संबंधों पर भी प्रकाश डालती हैं। कुछ स्थलों पर वे आज की राजनीति पर करारा व्यंग्य भी करती हैं और बुनियादी मानसिकताओं पर चोट भी करती हैं। उनकी काव्य रचनाओं में बार-बार आम आदमी का स्वरूप भी उभरकर आता है। इसके साथ-साथ कवि ने युगीन रुचियों, आवेगों तथा वर्ग-संघर्ष का भी वर्णन किया है। ईश्वर के प्रति उनकी कविता में कोई खास स्थिरता नहीं है। मार्क्सवाद के प्रति आस्था होने के कारण ईश्वर के प्रति उनका विश्वास उठ गया है। हाँ, मानव के प्रति वे निरन्तर अपना सरोकार दिखाते हैं। आज दिन-प्रतिदिन की निराशा, खटास, दुःख, पीड़ा आदि के फलस्वरूप मानव-जीवन अलगावबोध का शिकार बनता जा रहा है। आलोक धन्वा सच्चाई से पूर्णतया अवगत रहे हैं। वे मानव-जीवन की इस त्रासदी को उकेरने में भी सफल रहे हैं। ‘जनता का आदमी’ में वे कहते हैं क्यों पूछा था एक सवाल मेरे पुराने पड़ोसी ने 4. अभिव्यंजना शिल्प-आलोक धन्वा एक जनवादी कवि हैं। अतः उन्होंने सहज, सरल तथा सामान्य हिंदी भाषा का प्रयोग किया है जो आधुनिक परिस्थितियों को व्यक्त करने में समर्थ है। उन्होंने
देशी-विदेशी शब्दों से कोई निष्कर्ष रूप में हम कह सकते हैं कि आलोक धन्वा ने जो थोड़ा-बहुत काव्य लिखा है। वह पाठक को संवेदनशील बना देता हैं। उनके काव्य में वर्ग-संघर्ष, मानवतावाद, राजनीतिक दोगलापन, आधुनिक व्यवस्था की टूटन, युगीन चेतना आदि पर समुचित प्रकाश डाला गया है। लेकिन यह एक कटु सत्य है कि इस समकालीन कवि के काव्य का अभी तक समुचित मूल्यांकन नहीं हो पाया। पतंग कविता का सार प्रश्न- दिशाओं केा मृदंग की तरह बजाने का क्या तात्पर्य है?दिशाओं को मृदंग की तरह बजाते हुए (ख) अगर वे कभी गिरते हैं छतों के खतरनाक किनारों से और बच जाते हैं तब तो और भी निडर होकर सुनहले सूरज के समान आते हैं।
प्रश्न 3 दिशाओं को मृदंग की तरह बजाते हुए पंक्ति का तात्पर्य क्या है?उत्तर: दिशाओं को मृदंग की तरह बेजाने का तात्पर्य है कि जब बच्चे ऊँची पतंगें उड़ाते हैं तो वे दिशाओं तक जाती लगती है। तब ऐसा प्रतीत होता है मानो बच्चों की किलकारियों से दिशाएँ मृदंग बजा रही हैं। जब पतंग सामने हो तो छत कठोर नहीं लगती क्योंकि पैरों में अनजानी थिरकन भर जाती है।
बच्चों को कपास की तरह कोमल और उनके पैरों को बेचैन क्यों कहा गया है पतंग कविता के आधार पर उत्तर दीजिये?शरद ऋतु में आकाश मुलायम हो गया है, जिससे बच्चे दुनिया की सबसे हल्की और रंगीन चीज यानि पतंग आसानी से उड़ा सकें और फिर बच्चों की किलकारियों और रंग-बिरंगी पतंग रूपी तितलियों से आकाश भर जाए। CSScanned with CamScanner 2. जन्म से ही रंधों के सहारे । कपास जैसे कोमल बच्चे बेसुध होकर दौड़ते हैं।
छतो को नरम बनाने से कवि का क्या आशय है?(ख) छतों को नरम बनाने से कवि का आशय यह है कि बच्चे छत पर ऐसी तेजी और बेफ़िक्री से दौड़ते फिर रहे हैं मानो किसी नरम एवं मुलायम स्थान पर दौड़ रहे हों, जहाँ गिर जाने पर भी उन्हें चोट लगने का खतरा नहीं है।
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