Updated: | Mon, 30 May 2022 07:22 AM (IST) Somvati Amavasya 2022 Upay: इस साल की आखिरी सोमवती अमावस्या 30 मई को मनाई जा रही है। इसी दिन शनि जयंति और वट सावित्री व्रत भी है। ज्योतिषाचार्य के अनुसार साल में एक या दो बार ही सोमवती अमावस्या का शुभ योग बनता है। इस शुभ योग में तीर्थ स्नान कर जरुरतमंदो को दान करने से जीवन में सुख-समृद्धि आती है। महाभारत में भी स्वयं भीष्म पितामह ने युधिष्ठिर को इस तिथि का महत्व बताया था। यह दिन को पितृ दोष के उपाय करने के लिए बहुत ही खास माना गया है। जानिए पितृ दोष की शांति के लिए क्या उपाय करना चाहिए - पितृ दोष की शांति के लिए करें ये उपाय 1. सोमवती अमावस्या पर किसी भी तीर्थ स्थान में जाकर पितरों के श्राद्ध, तर्पण आदि कर्म करें। पूजा के बाद जरुरतमंदो को भोजन, कच्चा अनाज, बर्तन, कपड़े आदि चीजों का दान करें। इन कार्यों से पितृ देवता प्रसन्न होते है और आशीर्वाद देते है। 2. इस दिन किसी ब्राह्मण परिवार को भोजन पर बुलाएं। उनकी इच्छा के अनुसार ही भोजन करवाएं। दान- दक्षिणा देकर उनके संतुष्ट होने के बाद ही उन्हें विदा करें। इससे पितृ प्रसन्न होते है। 3. सोमवती अमावस्या पर गाय को हरा चारा खिलाना चाहिए। मछलियों के लिए नदी या तालाब में आटे की गोलियां बनाकर डालना चाहिए। अन्य पशु-पक्षियों के लिए भी भोजन पानी की व्यवस्था करना चाहिए। इससे पितृों को शांति मिलती है, वे तृप्त होते है और पितृ दोष का अशुभ प्रभाव कम होता है। 4. अमावस्या के दिन दूध में काले तिल और पानी मिलाकर पीपल पर चढ़ाना चाहिए। साथ ही पीपल की पूजा कर परिक्रमा करना चाहिए। इससे पितृ दोष में आराम मिलता है। 5. सोमवती अमावस्या पर भगवान शिव की पूजा करनी चाहिए और पितृ दोष निवारण के लिए प्रार्थना करनी चाहिए। अगली सोमवती अमावस्या कब होगी ज्योतिषाचार्य के अनुसार साल 2022 में सोमवती अमावस्या का पहला संयोग 31 जनवरी को बना था। दूसरा संयोग 30 मई को बनने जा रहा है। अब इसके बाद साल 2023 में 20 फरवरी को सोमवती अमावस्या का शुभ संयोग बनने वाला है। वहीं ज्योष्ठ माह की अमावस्या तिथि रविवार 29 मई की दोपहर 02.54 से शुरु होकर सोमवार 30 मई को शाम 04.59 पर समाप्त होगी। Posted By: Arvind Dubey
Somvati Amavasya 2022: 30 मई 2022 सोमवती अमावस्या के दिन बहुत ही दुर्लभ योग संयोग बन रहे हैं। इसी दिन शनि जयंती के साथ ही वट सावित्री का व्रत भी रखा जाएगा। ऐसा दुर्लभ संयोग 30 साल बाद बन रहा है। सोमवती अमावस्या पर 108 प्रकार के दान दिए जाते हैं। आओ जानते हैं 108 की संख्या का महत्व। 1. सोमवती अमावस्या के दिन काल सर्पदोष, पितृदोष और अल्पायु दोष का निवारण किया जाता है। इसीलिए इस दिन शनि पूजा, यम पूजा और भोलेनाथ की पूजा के साथ ही स्नान, दान और पुण्य कार्य करने का खास महत्व है। 2. सोमवती अमावस्या के दिन 108 बार तुलसी की परिक्रमा करना, ओंकार का जप करना, सूर्य नारायण को अर्घ्य देना अत्यंत फलदायी है। मान्यता है कि सिर्फ तुलसी जी की 108 बार प्रदक्षिणा करने से घर की दरिद्रता भाग जाती है। 3. महाभारत में भीष्म पितामह ने युधिष्ठिर को इस दिन का महत्व प्रकट करते हुए कहा था कि इस दिन पवित्र नदियों में स्नान करने वाला मनुष्य समृद्ध, स्वस्थ्य और सभी प्रकार के दुखों से मुक्त हो जाता है। 4. इस दिन गंगा स्नान करने से पितृ भी संतुष्ट हो जाते हैं। पीपल के पेड़ में पितर और सभी देवों का वास होता है। इसलिए सोमवती अमावस्या के दिन जो दूध में पानी और काले तिल मिलाकर सुबह पीपल को चढ़ाते हैं। पीतल की 108 परिक्रमा करते हैं। उन्हें पितृदोष से मुक्ति मिल जाती है। Daan 1. ज्योतिष शास्त्र के अनुसार समस्त ब्रह्मांड को 12 भागों में बांटने पर आधारित है। इन 12 भागों को ‘राशि’ की संख्या दी गई है। हमारे शास्त्रों में प्रमुख रूप से 9 ग्रह (नवग्रह) माने जाते हैं। इस तरह 12 राशियों और 9 ग्रहों का गुणनफल 108 आता है। यह संख्या संपूर्ण विश्व का प्रतिनिधित्व करने वाली सिद्ध हुई है। 2. 1 वर्ष में सूर्य 21,600 (2 लाख 12 हजार) कलाएं बदलता है। चूंकि सूर्य हर 6 महीने में उत्तरायण और दक्षिणायन रहता है, तो इस प्रकार 6 महीने में सूर्य की कुल कलाएं 1,08,000 (1 लाख 8 हजार) होती हैं। अंतिम 3 शून्य हटाने पर 108 अंकों की संख्या मिलती है इसलिए माला जप में 108 दाने सूर्य की 1-1 कलाओं के प्रतीक हैं। 3. 108 अंक की धारणा भारतीय ऋषियों की कुल 27 नक्षत्रों की खोज पर आधारित है। चूंकि प्रत्येक नक्षत्र के 4 चरण होते हैं अत: इनके गुणफल की संख्या 108 आती है, जो परम पवित्र मानी जाती है। इसमें श्री लगाकर ‘श्री 108’ हिन्दू धर्म में धर्माचार्यों, जगद्गुरुओं के नाम के आगे लगाना अति सम्मान प्रदान करने का सूचक माना जाता है। 4. हमारी सांसों की संख्या के आधार पर 108 दानों की माला स्वीकृत की गई है। 24 घंटों में एक व्यक्ति 21,600 बार सांस लेता है। चूंकि 12 घंटे दिनचर्या में निकल जाते हैं, तो शेष 12 घंटे देव-आराधना के लिए बचते हैं अर्थात 10,800 सांसों का उपयोग अपने ईष्टदेव को स्मरण करने में व्यतीत करना चाहिए, लेकिन इतना समय देना हर किसी के लिए संभव नहीं होता इसलिए इस संख्या में से अंतिम 2 शून्य हटाकर शेष 108 सांस में ही प्रभु-स्मरण की मान्यता प्रदान की गई। 5. माला में इसीलिए 108 मणियां या मनके होते हैं। उपनिषदों की संख्या भी 108 ही है। शिवांगों की संख्या 108 होती है। ब्रह्म के 9 व आदित्य के 12 इस प्रकार इनका गुणन 108 होता है। ऋग्वेद में ऋचाओं की संख्या 10 हजार 800 है। 2 शून्य हटाने पर 108 होती है। शांडिल्य विद्यानुसार यज्ञ वेदी में 10 हजार 800 ईंटों की आवश्यकता मानी गई है। 2 शून्य कम कर यही संख्या शेष रहती है। जैन मतानुसार भी अक्ष माला में 108 दाने रखने का विधान है। यह विधान गुणों पर आधारित है। अर्हन्त के 12, सिद्ध के 8, आचार्य के 36, उपाध्याय के 25 व साधु के 27 इस प्रकार पंच परमिष्ठ के कुल 108 गुण होते हैं। 6.गौड़ीय वैष्णव धर्म की बात करें तो वृंदावन में भी 108 गोपियों का ही जिक्र है। श्रीवैष्णव धर्म में भगवान विष्णु के 108 दिव्य क्षेत्रों को बताया गया है। इन्हें '108 दिव्यदेशम' कहा जाता है। पुराणों में 108 ज्योतिर्लिंगों का उल्लेख मिलता है। देवी के शक्तिपीठ भी 108 बताए गए हैं। समुद्र मंथन के दौरान 54 देव और 54 राक्षस, कुल मिलाकर 108 लोग ही शामिल थे।
इस तरह 108 अंक का बहुत महत्व है। सोमवती अमावस्या के दिन कौन सा दान करना चाहिए?पितृ तर्पण व पिंडदान- सोमवती अमावस्या के दिन ही पितरों को जल देने से उन्हें तृप्ति मिलती है महाभारत काल से ही सोमवती अमावस्या पर तीर्थस्थलों पर पिंडदान का विशेष महत्व है। 2. दान- सोमवती अमावस्या के दिन शनि और चंद्र का दान करना चाहिए। मान्यता है कि ऐसा करने से पितृदोष से मुक्ति मिलती है।
अमावस्या के दिन क्या दान देना चाहिए?इस कारण धार्मिक दृष्टि से इस दिन का महत्व और भी बढ़ गया है। वहीं सोमवार के दिन पड़ने के कारण इसे सोमवती अमावस्या भी कहते हैं।. मूंग दाल. |