दिल्ली का ऐतिहासिक नाम क्या है? - dillee ka aitihaasik naam kya hai?

नलिन चौहान

दिल्ली शहर का इतिहास महाभारत के जितना ही पुराना है। इस शहर को इंद्रप्रस्थ के नाम से जाना जाता था, जहां कभी पांडव रहे थे। समय के साथ-साथ इंद्रप्रस्थ के आसपास आठ शहर लाल कोट, दीनपनाह, किला राय पिथौरा, फिरोजाबाद, जहांपनाह, तुगलकाबाद और शाहजहांनाबाद बसते रहे। ऐतिहासिक दृष्टि से दिल्ली का इतिहास हिंदू तोमर राजा अनंगपाल के इस क्षेत्र पर अधिकार करने से शुरू होता है। उसने गुड़गांव जिले में अरावली की पहाडि़यों पर सूरजकुंड के समीप अपनी राजधानी अनंगपुर बनायी। लेकिन, कुछ समय बाद अनंगपाल ने इस स्थान को छोड़ वर्तमान कुतुब के समीप लाल कोट किला बनाया। लाल कोट यानि लाल रंग का किला, जो कि वर्तमान दिल्ली क्षेत्र का प्रथम निर्मित नगर था। इस शहर को दिल्ली का पहला लालकिला भी कहा जाता है। ऐतिहासिक शोधों से पता चलता है कि दिल्ली के पहले नगर लालकोट का निर्माण अनंगपाल ने करवाया था। इसके प्राचीन प्राचीर आज भी कुतुबमीनार के समीप देखे जा सकते हैं। उसके उत्तरी भाग को राय पिथौरा का किला और दक्षिणी भाग को लालकोट कहा जाता है। अंग्रेज इतिहासकार अलेक्जेंडर कनिंघम के अनुसार, अनंगपाल ने 1060 ईस्वी में लालकोट का निर्माण कराया। कनिंघम ने दिल्ली में पुराने सात किलों का होने की बात बतलाते हुए लाल कोट (किले) के निर्माण की बात कही है।

लालकोट को बढ़ाकर एक बड़ा किला बनवाया था और उसका नाम रखा था किला राय पिथौरा। यह दिल्ली का तीसरा शहर था जो दक्षिण में था। राय पिथौरा का निर्माण बारहवीं शताब्दी के मध्य या उत्तरार्ध में दिल्ली नामक हिंदू शहर की बाहरी मुस्लिम हमलों से रक्षा के लिए किया गया था। महरौली से प्रेस एन्कलेव तक राय पिथौरा के किले के अवषेष आज भी देखे जा सकते हैं। राय पिथौरा किला अब केवल 2 से 6 मीटर चौड़ी जीर्णशीर्ण दीवार के अवशेष के रूप में दिखाई देता है। राय पिथौरा का किला लाल कोट को तीन छोर से घेरता था। इसका निर्माण आक्रमणकारियों से दिल्ली की रक्षा के लिए किया गया था।

दिल्ली का सर्वाधिक प्राचीन किला लालकोट था जिसे तोमर शासक अनंगपाल द्वितीय ने ग्यारहवीं शताब्दी के मध्य में बनवाया था। इसकी ऊंची दीवारें, विषाल दुर्ग और प्रवेश द्वार सभी ध्वंस्त हो चुके हैं और मलबों से जहां-तहां ढके हुए हैं। इसके प्राचीर की दीवार की परिधि लगभग 3.6 किलोमीटर थी, जो कि 3 से 9 मीटर की असमान मोटाई की थी। दुर्ग का कुल क्षेत्रफल 7,63,875 वर्ग मीटर है। उल्लेखनीय है कि प्राचीन काल में महरौली मिहिरपुरी कहलाती थी। महरौली के पास प्राचीन अवशेषों का एक समूह अनेक मीलों में फैला हुआ है। इसी क्षेत्र में एक लौह स्तंभ भी हैं, जिसे 400 ईस्वीं में ढाला गया था। अनंगपाल ने मौर्य साम्राज्य के संस्थापक सम्राट चंद्रगुप्त मौर्य के साहसी कारनामों की स्मृति में इस स्तंभ को स्थापित कराया था।लालकोट के भग्नावषेश अब तक वर्तमान है।

दिल्ली का ऐतिहासिक नाम क्या है? - dillee ka aitihaasik naam kya hai?

यह लाल कोट दिल्ली के लाल किले से 500 साल से भी अधिक समय पहले बनाया गया था। महरौली में इसके अवशेष अभी भी दिखाई देते हैं। लालकोट की दीवारें अभी मौजूद हैं। लाल कोट एक विषम आकृति का आयतकार किला है। इसका व्यास सवा दो मील तक फैला है। कुतुब क्षेत्र में स्थित इसकी दीवारें तुगलकाबाद की तरह विशाल और ऊँची है। किले की प्राचीर 28 से 30 फुट चौड़ी और 60 फुट ऊँची है। किले की दीवारें 1475 फुट चौड़ी थीं और उनमें थोड़ी-थोड़ी दूरी पर बुर्ज थे। किले के चार दरवाजे थे जिनमें से तीन अभी तक है। पश्चिमी दरवाजे को रणजीत द्वार कहा जाता था। विदेशी मुस्लिम आक्रमणकारियों ने इसका नाम गजनी द्वार रख दिया। प्रमुख स्थानों पर 60 फुट व्यास के बुर्ज हैं। उत्तर क्षेत्र में स्थित दो बड़े बुर्जों को फतह बुर्ज और सोहन बुर्ज कहा जाता है। यह शहर बनाए जाते समय महरौली के आस पास का इलाका इसलिए चुना गया था, क्योंकि तब यहां पानी पर्याप्त मात्रा में था। शहर को सुरक्षा प्रदान करने के लिए अरावली की पहाडि़यां थीं। इस शहर से होकर पानी की धाराएं यमुना की ओर बहा करती थीं। महरौली बदरपुर रोड लगभग उसी जमीन पर बनी हुई है, जिस पर आज से करीब 1000 हजार साल पहले पानी बहकर यमुना की ओर जाया करता था।

महरौली में किला और नया शहर बसाए जाने के बाद यहां बरसाती पानी के इस्तेमाल के लिए तालाब बनाए गए। अनंगपाल के वंषजों द्वारा बनाए गए तालाब और उनके अवशेष आज भी दिखाई देते हैं। रखरखाव और देखभाल के अभाव में ये आज उतने उपयोगी और भव्य नहीं दिखाई देते, जितने कि ये तब थे, जब बनाए गए थे। योगमाया का मंदिर और उसके आसपास के तालाब का एक हिस्सा आज भी बचा हुआ है। इस लालकोट के पास ही अनंगताल के अवशेष हैं। इतिहासकार पर्सिवल स्पियर के अनुसार, उसने (अनंगपाल) वर्ष 1020 में तुगलकाबाद से तीन मील दूर सूरजकुंड का निर्माण कराया। सूरजकुंड एक घाटी के सिरे पर है। सूरजकुंड में अब प्रतिवर्ष फरवरी में हस्तशिल्प मेला लगता है।

दिल्ली का ऐतिहासिक नाम क्या है? - dillee ka aitihaasik naam kya hai?

अजमेर के शासक विग्रहराज ने वर्ष 1150 में तोमरों को पराजित करके इस क्षेत्र पर अधिकार कर लिया। चौहानों ने कुतुब क्षेत्र में लाल कोट का विस्तार किया और अनेक मंदिरों का निर्माण किया। चौहानों के अंतर्गत दिल्ली उनके राज्य का सुदूरवर्ती नगर और एक प्रांत अथवा भूभाग का मुख्यालय था। विग्रहराज के भतीजे और अनेक लोककथाओं के नायक पृथ्वीराज ने लाल कोट को मजबूत करने के अलावा एक और किले राय पिथौरा का निर्माण कराया। पृथ्वीराज अनेक शौर्य गाथाओं के नायक थे। पृथ्वीराज के पिता और अजमेर के राजा सोमेश्वर शक्तिशाली, निडर और बहादुर योद्वा थे। पृथ्वीराज के ऊपर से 11 वर्ष की आयु में पिता का साया उठ गया। उनकी माता कर्पूरी देवी ने उनका लालन पालन योग्यता से और राज्य का शासन बड़ी कुशलता से किया। 14 वर्ष की आयु में पृथ्वीराज राजगद्दी पर बैठे। गद्दी पर बैठते ही उन्हें अनेक युद्वों में भाग लेना पड़ा। पृथ्वीराज ने अपने सभी विरोधियों को पराजित किया। सर्वत्र जीत हासिल करने के कारण उन्हें दिग्विजयी कहा जाने लगा। उनके नाना अनंगपाल ने उन्हें दिल्ली का राज भी सौंप दिया। अजमेर के चौहान शासकों के लालकोट में शासन संभाले जाने के बाद यहां बनाए गए किले को राय पिथौरा का किला भी कहा जाता है।

ऐसा इसलिए क्योंकि पृथ्वीराज चौहान ने लालकोट को बढ़ाकर एक बड़ा किला बनवाया था और उसका नाम रखा था किला राय पिथौरा। यह दिल्ली का तीसरा शहर था जो दक्षिण में था। राय पिथौरा का निर्माण बारहवीं शताब्दी के मध्य या उत्तरार्ध में दिल्ली नामक हिंदू शहर की बाहरी मुस्लिम हमलों से रक्षा के लिए किया गया था। महरौली से प्रेस एन्कलेव तक राय पिथौरा के किले के अवषेष आज भी देखे जा सकते हैं। राय पिथौरा किला अब केवल 2 से 6 मीटर चौड़ी जीर्णशीर्ण दीवार के अवशेष के रूप में दिखाई देता है। राय पिथौरा का किला लाल कोट को तीन छोर से घेरता था। इसका निर्माण आक्रमणकारियों से दिल्ली की रक्षा के लिए किया गया था। राय पिथौरा का किला लाल कोट से तीन गुना बढ़ा था, लेकिन सामरिक दृष्टि से वह उतना मजबूत नहीं था। इसकी दीवारें अपेक्षाकृत छोटी और इसके रक्षात्मक बुर्ज काफी दूर थे। राय पिथौरा के किले में नौ दरवाजे थे, तीन पश्चिम दिशा में, पांच उत्तर दिशा में और एक पूर्व दिशा में। इसकी दीवारें लगभग साढ़े चार मील तक फैली हुई थी और शहर में, जो मुग़ल शाहजहां की दिल्ली से लगभग आधा था, सत्ताईस मंदिर थे, जिनके स्तंभ तत्कालीन हिन्दू शासकों और समाज की सुरूचि और सम्पदा के परिचायक थे।

लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं। 

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दिल्ली के कितने नाम है?

इस शहर को इंद्रप्रस्थ के नाम से जाना जाता था, जहां कभी पांडव रहे थे। समय के साथ-साथ इंद्रप्रस्थ के आसपास आठ शहर : लाल कोट, दीनपनाह, किला राय पिथौरा, फिरोज़ाबाद, जहांपनाह, तुगलकाबाद और शाहजहानाबाद बसते रहे। पांच शताब्दियों से भी अधिक समय से दिल्ली राजनीतिक उथल-पुथल की गवाह रही है।

दिल्ली का अन्य नाम क्या है?

दिल्ली का प्राचीन नाम इंद्रप्रस्थ था, जो हस्तिनापुर की राजधानी थी। इसके बाद इसको यमपुरी भी कहा गया। इसका मध्यकालीन स्वरुप राजपूत राजा अनंगपाल के द्वारा स्थापित किया गया।

दिल्ली का प्राचीन नाम क्या था *?

भारत की राजधानी दिल्ली का प्राचीन नाम हस्तिनापुर व इंद्रप्रस्थ था

दिल्ली नाम कब पड़ा?

दिल्ली के ही पुराने नाम इंद्रप्रस्थ को पांडवों की बसाई नगरी कहा जाता है, जो उनकी राजधानी थी। जानें दिल्ली के नाम से लेकर दिल्ली की खास बातें.. कुछ इतिहासकार कहते हैं कि तोमरवंश के एक राजा धव ने इलाके का नाम ढीली रख दिया था क्योंकि किले के अंदर लोहे का खंभा ढीला था और उसे बदला गया था। यह ढीली शब्द बाद में दिल्ली हो गया।