टीवी की बीमारी कैसे ठीक हो सकती है? - teevee kee beemaaree kaise theek ho sakatee hai?

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  • टीबी के मरीज दवाई का कोर्स पूरा कर सकें इसलिए 1396 को दिए फूड बाक्स

भास्कर न्यूज | जांजगीर-चांपा

टीबी के मरीजों को नियमित रूप से दवा खाना पड़ती है। दवा की एमजी भी अधिक होती है, इसलिए शरीर को पर्याप्त मात्रा में प्रोटीन मिले, इसके लिए टीबी मरीजों को स्वास्थ्य विभाग द्वारा फूड बाक्स दिया जा रहा है।

इसमें सोयाबीन, दूध पाउडर और मूंगफली का दाना शामिल हैं, ताकि मरीज हैवी डोज की दवा आराम से खा सके। टीबी संक्रामक रोग है। यह हवा से फैलता है। इसलिए टीबी का मरीज जितनी जल्दी ठीक होता है, यह बीमारी भी कम लोगों में फैल पाती है इसलिए राज्य सरकार अब मरीजों को दवा के साथ प्रोटीन आहार भी दे रही है ताकि मरीज जल्दी से ठीक हो सके और दवा का पूरा कोर्स ले। इस बीमारी से रोगी सामान्य लोगों की तुलना में काफी कमजोर होता है जिससे शरीर को अधिक प्रोटीन की जरूरत है। इसके लिए मरीजों को अब सेहतमंद बनाने के लिए मुख्यमंत्री क्षय पोषण योजना से जोड़ा गया है। बार-बार बीमार पड़ने के चलते उनमें कमजोरी रहती है। यही वजह है कि मरीज का सेहत ठीक नहीं हो पाता। कमजोरी के कारण ही उनके ऊपर दवा का असर जल्दी नहीं होता।

ऐसे में लंबे समय तक उन्हें दवा की खुराक दी जाती है। गरीब तबके के लोग बेहतर खान-पान की व्यवस्था नहीं कर पाते। आरएनटीसीपी कार्यक्रम के अंतर्गत उपचारग्रस्त व भविष्य में पंजीकृत टीबी एवं ड्रग रेजिस्टेंट को निशुल्क दिया जा रहा है। मरीजों को ठीक होने तक यह फूड बॉक्स देना है।

दवा के कारण टीबी के मरीजों को प्रोटीनयुक्त भोजन खाना है जरूरीसीएम क्षय पोषण योजना के तहत बांटे जा रहे फूड बॉक्स।

बाजार से नहीं खरीद पातीफूड बॉक्स लेने पहुंची शांतिनगर की नगीना बाई ने बताया कि जो सामान मिला है उसे खरीदने के लिए 300 से 350 रुपए लगते, रोजी मजदूरी करती है। डॉक्टर ने उन्हें यह फूड लगातार खाने के लिए कहा है। इसमें दूध पावडर का पैकेट, मूंगफली दाना और एक लीटर सोयाबीन का तेल है।

भास्कर न्यूज | जांजगीर-चांपा

टीबी के मरीजों को नियमित रूप से दवा खाना पड़ती है। दवा की एमजी भी अधिक होती है, इसलिए शरीर को पर्याप्त मात्रा में प्रोटीन मिले, इसके लिए टीबी मरीजों को स्वास्थ्य विभाग द्वारा फूड बाक्स दिया जा रहा है।

इसमें सोयाबीन, दूध पाउडर और मूंगफली का दाना शामिल हैं, ताकि मरीज हैवी डोज की दवा आराम से खा सके। टीबी संक्रामक रोग है। यह हवा से फैलता है। इसलिए टीबी का मरीज जितनी जल्दी ठीक होता है, यह बीमारी भी कम लोगों में फैल पाती है इसलिए राज्य सरकार अब मरीजों को दवा के साथ प्रोटीन आहार भी दे रही है ताकि मरीज जल्दी से ठीक हो सके और दवा का पूरा कोर्स ले। इस बीमारी से रोगी सामान्य लोगों की तुलना में काफी कमजोर होता है जिससे शरीर को अधिक प्रोटीन की जरूरत है। इसके लिए मरीजों को अब सेहतमंद बनाने के लिए मुख्यमंत्री क्षय पोषण योजना से जोड़ा गया है। बार-बार बीमार पड़ने के चलते उनमें कमजोरी रहती है। यही वजह है कि मरीज का सेहत ठीक नहीं हो पाता। कमजोरी के कारण ही उनके ऊपर दवा का असर जल्दी नहीं होता।

ऐसे में लंबे समय तक उन्हें दवा की खुराक दी जाती है। गरीब तबके के लोग बेहतर खान-पान की व्यवस्था नहीं कर पाते। आरएनटीसीपी कार्यक्रम के अंतर्गत उपचारग्रस्त व भविष्य में पंजीकृत टीबी एवं ड्रग रेजिस्टेंट को निशुल्क दिया जा रहा है। मरीजों को ठीक होने तक यह फूड बॉक्स देना है।

फूड बॉक्स के चलते हर दो माह में फालोअप जांच भीनए मरीजों के 6 माह, पूर्व उपचारित मरीजों को 8 माह एवं ड्रग रेजिस्टेंट टीबी के मरीजों को 24 माह तक पोषण आहार दिया जा रहा है। पोषण आहार मासिक फूड बास्केट के रूप में दे रहे हैं। इसे मरीज को एक साथ न देकर दो महीने में दे रहे हैं। दो महीने बाद जब मरीज फूड बॉक्स लेने आ रहे हैं तो फालोअप जांच भी हो जा रही है। विभाग को भी पता चल रहा है कि कौन मरीज नियमित रूप से दवा खा रहे हैं इसलिए फूड बॉक्स केवल मरीज को दे रहे हैं।

जांच के साथ इलाज मुफ्तसरकारी अस्पताल में टीबी की जांच से लेकर इलाज और दवा सब मुफ्त मिलती है। दो हफ्ते से अधिक खांसी, लगातार बुखार होना और वजन गिरना टीबी रोग के लक्षण है। ऐसे लक्षण होने से तत्काल जांच करा लें।

टीवी की बीमारी कैसे ठीक हो सकती है? - teevee kee beemaaree kaise theek ho sakatee hai?
मुख्यमंत्री क्षय पोषण आहार योजना की शुरूआत जिले में हुई है। अब तक 1396 मरीजों को फूड बॉक्स दिए जा चुके हैं। टीबी पेशेंट का इम्युनिटी पावर कम हो जाता है जिससे दवा जल्दी काम नहीं करती। लगातार सेवन से आगे चलकर टीबी का खतरा काफी कम हो जाता है। एक मरीज को दो महीने में यह आहार देना है। \\\'\\\' डॉ. एमडी तेंदुवे, नोडल अधिकारी क्षय नियंत्रण कार्यक्रम जांजगीर

बेलारूस के डॉक्टरों ने टीबी के मरीजों पर कई महीनों तक बेडाक्विलिन नाम की इस दवा का दूसरे एंटीबायटिकों के साथ इस्तेमाल किया. नतीजे चौंकाने वाले हैं. जिन 181 मरीजों को नई दवा दी जा रही थी, उनमें 168 लोगों ने इसका कोर्स पूरा किया और उनमें से 144 मरीज पूरी तरह ठीक हो गए. यह सभी मल्टीड्रग रेसिस्टेंट टीबी के शिकार थे, यानी जिन पर टीबी की दो प्रमुख दवाएं बेअसर हो गई थीं.

इस तरह के टीबी का पूरी दुनिया में बहुत तेजी से फैलाव हो रहा है. विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) का कहना है फिलहाल टीबी के महज 55 फीसदी मरीजों का ही सफल इलाज हो पाता है, जबकि इस शोध में 80 फीसदी लोग ठीक हो सके.

बेलारूस में टीबी का शिकार होने वाले लोगों की दर दुनिया में सबसे ज्यादा है. बेलारूस के ट्रायल को पूर्वी यूरोप, अफ्रीका, दक्षिण पूर्व एशिया में भी आजमाया गया और यहां भी नतीजे वही रहे. इस हफ्ते के आखिर में हेग में ट्यूबरक्लोसिस कांफ्रेंस में ट्रायल के इन नतीजों को जारी किया जाएगा. इंटरनेशनल यूनियन अगेंस्ट ट्यूबरक्लोसिस एंड लंग डिजीज की वैज्ञानिक निदेशक पाउला फुजीवारा का कहना है, "इस रिसर्च से यह पक्का हो गया है कि बेडाक्विलिन जैसी नई दवाएं टीबी के साथ जी रहे लोगों के लिए गेमचेंजर हैं."

मिंस्क के रिपब्लिकन रिसर्च एंड प्रैक्टिकल सेंटर फॉर पल्मोनोलॉजी की प्रमुख रिसर्चर एलेना स्क्राहिना ने भी बेडाक्विलिन के नतीजों को "भरोसा देने वाला" बताया है. उन्होंने समाचार एजेंसी एएफपी से कहा, "हमारी स्टडी आमतौर पर क्लिनिकल ट्रायल्स में बेडाक्विलिन के असर की पुष्टि करती है और इससे जुड़ी सुरक्षा की चिंताओं की पुष्टि नहीं करती."

डब्ल्यूएचओ के मुताबिक टीबी की वजह से 2017 में 17 लाख लोगों की जान गई. यह दुनिया की उन सबसे घातक बीमारियों में हैं जो वायु में संक्रमण के जरिए फैलती हैं. यह संख्या मलेरिया से हर साल होने वाली मौतों से करीब तीन गुना ज्यादा है. इसके साथ ही एचआईवी के पीड़ितों की होने वाली मौत की सबसे बड़ी वजह भी टीबी ही है. विशेषज्ञ बताते हैं कि टीबी के मरीजों की ठीक ढंग से देखभाल नहीं होने के कारण यह तेजी से फैल रहा है.

एचआईवी और इस तरह की दूसरी बीमारियों से अलग टीबी का अलाज अलग हो सकता है लेकिन इसके लिए छह महीने तक सख्ती के साथ इलाज कराना होता है, जिसमें कई दवाइयां रोज लेनी पड़ती हैं. दुनिया के कई हिस्से में दवाइयां ठीक से नहीं रखी जाती या फिर इलाज पूरा होने से पहले ही खत्म हो जाती हैं. इसके कारण दवा प्रतिरोध बढ़ जाता है. खासतौर से ऐसी जगहें जहां ज्यादा लोग हों जैसे कि अस्पताल या जेल. डब्ल्यूएचओ का कहना है कि मल्टीड्रग रेसिस्टेंट टीबी दुनिया के 117 देशों में है.

दूसरे एंटीबायोटिक की तरह बेडेक्विलीन सीधे बैक्टीरिया पर हमला नहीं करती है, बल्कि इसकी बजाय वह उन एंजाइमों को निशाना बनाती है, जिन पर यह बैक्टीरिया अपनी ऊर्जा के लिए निर्भर है. सभी मरीजों में कुछ ना कुछ साइड इफेक्ट भी देखा गया लेकिन यह उतना गंभीर नहीं था जितना पहले सोचा गया था. पिछले महीने संयुक्त राष्ट्र के सदस्य देश टीबी के खिलाफ पूरी दुनिया के लिए एक योजना बनाने पर सहमत हुए. इसके साथ ही जरूरी दवाओं को सस्ता बनाने पर भी काम होगा.

एचआईवी जैसी बीमारियों के खिलाफ कोशिशों को हाईप्रोफाइल और मशहूर लोगों का समर्थन मिला है लेकिन टीबी को अब भी दुनिया के दूर दराज के अविकसित हिस्सों की बीमारी समझा जाता है.

अकेले भारत में ही दुनिया के एक चौथाई टीबी मरीज रहते हैं. नई दवा भारत जैसे देशों के लिए उम्मीद की बड़ी रोशनी लेकर आई है. सस्ती दवा दुनिया में इस बीमारी के फैलाव को रोक सकती है. 

एनआर/आईबी (एएफपी)

क्या TV की बीमारी जड़ से खत्म हो सकती है?

पूर्ण और सटीक इलाज से टीबी को जड़ से खत्म किया जा सकता है।

टीवी कितने दिनों में ठीक हो सकती है?

टीबी के ज्यादातर मामले एंटीबायोटिक दवाओं से ठीक हो जाते हैं लेकिन इसमें बहुत वक्त लग जाता है. आमतौर पर इसकी दवा 6 से 9 महीने तक चलती है.

टीबी की सबसे अच्छी दवा कौन सी है?

इथाम्बुटोल (ethambutol) इथाम्बुटोल (ethambutol) टीबी के इलाज में इस्तेमाल होने वाली दवाओं में से एक है। यह सामान्य रूप से शुरुआती दो महीने के इलाज के दौरान दी जाती है।

टीवी होने पर क्या क्या सावधानी बरतनी चाहिए?

टीबी को माइकोबैक्टीरियम ट्यूबरक्लोसिस के नाम से भी जानते हैं. इस बीमारी में संक्रमित व्यक्ति काफी कमजोर हो जाता है. ऐसे में आपको अपने खान-पान का बहुत ध्यान रखने की जरूरत होती है. टीबी के मरीज को अपनी डाइट में फल और सब्जियां खूब शामिल करनी चाहिए, जिससे शरीर में विटामिन और मिनरल्स की कमी पूरी हो सके.