तंत्र-मंत्र से ज्ञान विद्या की प्राप्ति - tantr-mantr se gyaan vidya kee praapti

तंत्र-मंत्र से ज्ञान-विद्या की प्राप्ति

कमजोर विद्यार्थियों के लिए आसान विधि

तंत्र-मंत्र से ज्ञान विद्या की प्राप्ति - tantr-mantr se gyaan vidya kee praapti

आज के युग में तंत्र-मंत्र पर विद्यार्थीगण कम विश्वास करते हैं तथा सरस्वती साधना भी आसान नहीं होती, जिसे प्रत्येक कर सके। जनसाधारण तथा कमजोर विद्यार्थियों हेतु एक आसान विधि का वर्णन किया जा रहा है, जिससे साधक को निश्चित लाभ होगा।

गणेश भगवान एवं विद्या दात्री माँ सरस्वती का एक चित्र लें। पूजन सामग्री सम्मुख रखें (गाय के घी का दीपक, धूप, कपूर, पीले चावल, सफेद या पीला मिष्ठान्न, गंगा जल, भोज पत्र, गोरोचन, कुंकुम, केसर, लाल चंदन, अनार या तुलसी की कलम इत्यादि)। सर्वप्रथम गुरु का ध्यान करें।

मंत्र- गुरु सठ गुरु हठ गुरु हैं वीर, गुरु साहब सुमिरों बड़ी भांत सिंगी ढोरों बन कहो, मन नाउं करतार। सकल गुरु की हर भजे, छटटा पकर उठ जाग चैत संभार श्री परमहंस।

गणेश ध्यान : ॐ वक्रतुंड महाकाय कोटिसूर्यसमप्रभः। निर्विघ्नं कुरु मे देव सर्वकार्येषु सर्वदा।

गणेश मंत्र : ॐ वक्रतुंडाय हूं॥

दिशाबंध : ॐ वज्रक्रोधाय महादंताय। दशा दिशों बंध बंध हूं फट् स्वाहा।

तत्पश्चात गोरोचन, केसर, कुंकुम और लाल चंदन को गंगा जल में घिसकर स्याही बना लें और भोज पत्र पर निम्न मंत्र लिखकर, माँ सरस्वती के चित्र के साथ रखकर एक माला रोज मंत्र का जाप करें।

तंत्र-मंत्र से ज्ञान विद्या की प्राप्ति - tantr-mantr se gyaan vidya kee praapti


सरस्वती गायत्री मंत्र : ॐ वागदैव्यै च विद्महे कामराजाय धीमहि। तन्नो देवी प्रचोदयात्‌।

प्रथम दिन 5 माला का जाप करने से साक्षात माँ सरस्वती प्रसन्न हो जाती हैं तथा साधक को ज्ञान-विद्या का लाभ प्राप्त होना शुरू हो जाता है। नित्य कर्म करने पर साधक ज्ञान-विद्या प्राप्त करने के क्षेत्र में निरंतर बढ़ता जाता है। इसके अलावा विद्यार्थियों को ध्यान करने के लिए त्राटक अवश्य करना चाहिए। 10 मिनट रोज त्राटक करने से स्मरण शक्ति बढ़ती है तथा साधक को एक बार पढ़ने पर कंठस्थ हो जाता है। (देखें चित्र)

विद्यार्थियों को त्राटक अभ्यास करना चाहिए। लाभ स्वयं साधक देखेगा। पाठक त्राटक वृत्त को पत्रिका से निकालकर सफेद कागज पर अथवा सफेद दीवार पर अपनी दृष्टि के समांतर चिपकाएँ तथा पद्मासन में बैठकर समस्त ध्यान केंद्रित करते हुए 'ॐ' पर दृष्टि को स्थिर कर नित्य अधिकतम 10 मिनट अभ्यास करें।

विद्या प्राप्ति का यंत्

घंटाशूलहलानि शंखमुसले चक्रं धनुः सायकं हस्ताब्जैर्दघतीं धनान्तविलसच्छीतांशु तुल्यप्रभाम्‌।
गौरीदेहसमुद्भवा त्रिनयनामांधारभूतां महापूर्वामत्र सरस्वती मनुमजे शुम्भादि दैत्यार्दिनीम्‌॥

स्वहस्त कमल में घंटा, त्रिशूल, हल, शंख, मूसल, चक्र, धनुष और बाण को धारण करने वाली, गोरी देह से उत्पन्ना, त्रिनेत्रा, मेघास्थित चंद्रमा के समान कांति वाली, संसार की आधारभूता, शुंभादि दैत्यमर्दिनी महासरस्वती को हम नमस्कार करते हैं। माँ सरस्वती प्रधानतः जगत की उत्पत्ति और ज्ञान का संचार करती है।

विद्या प्राप्ति का यंत्र :

विधि : इस यंत्र को शुभ मुहूर्त में, चाँदी या कांस्य की थाली में, केसर की स्याही से, अनार की कलम से लिखकर, सविधि पूजन करके माता सरस्वतीजी की आरती करें। यात्रांकित कांस्य थाली में भोजन परोसकर श्री सरस्वत्यै स्वाहा, भूपतये स्वाहा, भुवनपतये स्वाहा, भूतात्मपतये स्वाहा चार ग्रास अर्पण करके स्वयं भोजन करें। याद रहे, यंत्र भोजन परोसने से पहले धोना नहीं चाहिए।

इसी प्रकार 14 दिनों तक नित्य करने से यंत्र प्रयोग मस्तिष्क में स्नायु तंत्र को सक्रिय (चैतन्य) करता है और मनन करने की शक्ति बढ़ जाती है। धैर्य, मनोबल, आस्थाकी वृद्धि होती है और मस्तिष्क काम करने के लिए सक्षम हो जाता है। स्मरण शक्ति बढ़ती है। विद्या वृद्धि में प्रगति स्वयं होने लगती है।

एकादशाक्षर सरस्वती मंत्र : ह्रीं ऐं ह्रीं सरस्वत्यै नमः।




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मंत्र-तंत्र-यंत्र में असीम अलौकिक शक्तियां निहित हैं। इसके द्वारा नर से नारायण बना जा सकता है। आवश्यकता है सविधि साधना के साथ-साथ श्रद्धा एवं विश्वास की। मंत्र शब्दों या वाक्यों का वह

मंत्र-तंत्र-यंत्र में असीम अलौकिक शक्तियां निहित हैं। इसके द्वारा नर से नारायण बना जा सकता है। आवश्यकता है सविधि साधना के साथ-साथ श्रद्धा एवं विश्वास की। मंत्र शब्दों या वाक्यों का वह वर्ण समूह है, जिसके निरंतर मनन से विशेष शक्ति प्राप्त की जाती है। मंत्र शास्त्र हमारे दिव्य दृष्टि युक्त ऋषि-महर्षियों की देन हैं। मंत्र का सीधा संबंध मानव के मन से है, मन की एकाग्रता एवं तन्मयता मंत्र सिद्धि की मंजिल तक पहुंचाती है और मन को एकाग्र करके किसी भी देवी-देवता की सिद्धि प्राप्त की जा सकती है।


मन की चंचलता हमें सामान्य रूप से किसी भी क्षेत्र में या कार्य में सफलता नहीं दिलवा सकती है। जब हम अपने को भौतिक जगत में असफल पाते हैं तो मंत्रों के रहस्यपूर्ण अलौकिक जगत में कैसे सफल हो सकते हैं?


हम दैनिक जीवन में आने वाली बहुत-सी समस्याओं का समाधान एवं इच्छित पदार्थों की प्राप्ति मंत्र की साधना से प्राप्त कर सकते हैं। कार्य कोई भी हो, व्यक्ति विशेष के भाग्य के अनुसार ही पूरा होता है। उसी प्रकार मंत्र-यंत्र-तंत्र की साधना का फल भी भाग्य के अनुसार ही मिलता है। किसी को कम किसी को ज्यादा। सोये हुए भाग्य को जगाने में भगवत आराधना, तंत्र-मंत्र-यंत्र साधना, अति सहायक सिद्ध होती है। मंत्र शास्त्र के अंतर्गत विविध कार्यों के लिए विविध मंत्र मिलते हैं जो मानव के विभिन्न कार्यों के अनुसार निश्चित हैं।


मूल रूप से वैदिक, साबर एवं तांत्रिक मंत्र हैं। वैदिक एवं साबर ये दोनों मंत्र एक साथ नहीं जपे जाते। साबर मंत्र अपने आप में स्वयं सिद्ध है। गुरु गोरखनाथ एवं भगवान दत्तात्रेय कृत ये मंत्र अत्यंत चमत्कारिक एवं प्रभावशाली हैं।

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किसी मंत्र विशेष का निरंतर मनन या जाप मंत्र सिद्धि का सुलभ मार्ग है। ग्रह जनित पीड़ा, दोष, अनिष्ठ निवारण शत्रुओं पर विजय प्राप्ति के लिए भगवत आराधना एवं मंत्र साधना अत्यंत कारगर सिद्ध होती है। इससे आत्मिक शक्ति जगा कर घातक रोगों से भी मुक्ति पाई जा सकती है। मंत्र साधना से हम जीवन को सुखमय, शांतिमय साथ ही साथ आनंदमय बनने में सफल हो सकते हैं।


रोजी के लिए
आज के युग में नौकरी प्राप्त करना या अपने व्यवसाय में लगना एक मुश्किल कार्य है। निरंतर बढ़ रही बेरोजगारी इसका प्रत्यक्ष प्रमाण है। इस समस्या के निवारण में श्रीमद् भगवदगीता के नौवें अध्याय के बाईसवें श्लोक का जाप अत्यंत सहायक है।
अनन्याशिंचतयंतो मां ये जनां पर्युपासते।
तेषां निथ्याभियुक्तानां योगक्षेमं वहाम्यहम।।


भगवान श्री कृष्ण की आकर्षक छवि के सम्मुख या मंदिर में नित्य प्रतिदिन शुद्धतापूर्वक सात माला जप करने पर 41 दिन के अंदर चमत्कारिक प्रभाव देखने को मिलेगा। अद्भुत प्रयोग है।


स्तोत्र मंत्र
अनिष्ट निवारण एवं आर्थिक स्थिति में सुधार के लिए 
ऊं आपदाम अपहतारम दातारम सर्व संपदाम।
लोकभिरामम् श्री रामम् भूयो-भूयो नमाम्हम्।।


इस मंत्र का नियमित जाप लाभदायक है। भगवान राम की आकर्षक छवि के सम्मुख या श्री राम पंचायतन की छवि के सम्मुख या भगवान श्री राम के मंदिर में नित्य प्रतिदिन तीन पांच, सात या नौ माला का जप करना चाहिए।


लक्ष्मी प्राप्ति:
श्री सूक्त का सोलह पाठ नित्य प्रतिदिन करें या करवाएं। 
गीता के बारहवें अध्याय का पाठ करें।
श्री कनक धारा स्तोत्र का 11 पाठ नित्य प्रतिदिन करें।
श्री विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ नियमित करें। 


जहां विष्णु रहते हैं वहीं लक्ष्मी जी रहती हैं। लक्ष्मी जी विष्णु जी को छोड़कर अन्यत्र कहीं नहीं रहतीं। अत: विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ अत्यंत उपयोगी है।


शत्रु से मुक्ति :
बजरंग बली हनुमान जी की उपासना करें। श्री बजरंग बाण का 108 पाठ नियमित रूप से हनुमान जी की आकर्षक छवि के सम्मुख करें। मंगलवार का व्रत भी करें।
बच्चों की नजर उतारने के लिए
बच्चों की कुदृष्टि से बचाव के लिए प्रभु का स्मरण करें और 21 बार निम्र मंत्र का जाप करके भस्म फूंककर बच्चों को लगाएं।
ॐ नमो हनुमांता ब्रज का कोठा, जिसमें पिंड हमारा बैठा।
ईश्वर कुंजी ब्रह्मा ताला, इस घर पिंड का यही हनुमत रखवाला।


ऋण मुक्ति 
ऋण मोचन भंग स्तोत्र के 11 पाठ नियमित करें। मंगल ग्रह की वस्तुओं का दान करें। मंगल का व्रत करें। हर शनिवार को किसी गरीब व्यक्ति को भोजन कराएं।


बाधा निवारण
बाधा समाधान के लिए दुर्गा सप्तशती के निम्र श्लोक का पाठ लाभप्रद रहेगा। विशेष रूप से धन एवं पुत्र प्राप्ति में सहायक हैं-
सर्वाबाधाविॄनमुक्तो धन धान्य सुतान्वित।
मनुष्यों मत्प्रसादेन भविष्यति न संशय।।


रूठे पति को मनाने के लिए
तांत्रिक क्रिया : अपने बाएं पैर की चरण पादुका (जूती: के वजन के बराबर आटे की रोटी रविवार के दिन अपने पतिदेव को खिलवाएं। कहीं प्रचार न करें। 

विद्या प्राप्ति के लिए कौन सा मंत्र?

मां सरस्वती, जो प्रधानत: जगत की उत्पत्ति और ज्ञान का संचार करती हैं। * विद्या प्राप्ति का प्रभावी मंत्र : प्रतिदिन हरे हकीक या स्फटिक माला से सुबह के समय में 108 बार जपें। विद्या: समस्तास्तव देवि भेदा: स्त्रिय: समस्ता: सकला जगत्सु।

विद्या की प्राप्ति कैसे होती है?

विद्या है वो जानकारी और गुण, जो हम देखने-दिखाने, सुनने-सुनाने, या पढ़ने-पढ़ाने (शिक्षा) के माध्यम से प्राप्त करते हैं । हमारे जीवन के शुरुआत में हम सब जीना सीखते है । शिक्षा लोगों को ज्ञान और विद्या दान करने को कहते हैं अथवा व्यवहार में सकारात्मक एंव विकासोन्मुख परिवर्तन को शिक्षा माना जाता है ।

तंत्र मंत्र कैसे काम करता है?

तंत्र एक प्रक्रिया है जिससे हम अपनी आत्मा और मन को बंधन मुक्त करते हैं. इस प्रक्रिया से शरीर और मन शुद्ध होता है, और ईश्वर का अनुभव करने में सहायता होती है. तंत्र की प्रक्रिया से हम भौतिक और आध्यात्मिक जीवन की हर समस्या का हल निकाल सकते हैं.

तांत्रिक विद्या से क्या होता है?

तंत्र विद्या के माध्‍यम से व्यक्ति अपनी आत्मशक्ति का विकास करके कई तरह की शक्तियों से संपन्न हो सकता है। यही तंत्र का उद्देश्य है। इसी तरह तंत्र से ही सम्मोहन, त्राटक, त्रिकाल, इंद्रजाल, परा, अपरा और प्राण विद्या का जन्म हुआ है। तंत्र से वशीकरण, मोहन, विद्वेषण, उच्चाटन और स्तम्भन क्रियाएं भी की जाती है।