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मंत्र जाप करते समय करना चाहिए नियमों का पालन, बिना गिने मंत्र जाप करने से नहीं मिल पाता पूरा फायदा
रिलिजन डेस्क. हिंदू धर्म में मंत्रों का विशेष महत्व है। मंत्रों के जाप का फल तभी मिलता है, जब उससे संबंधित नियमों का पूरी तरह के पालन किया जाए। मंत्र जप के इन नियमों में अहम है- मंत्र संख्या। बिना गिने मंत्र जाप आसुरी जाप कहे जाते हैं, जो शुभ फल नहीं देते। यही वजह है कि निश्चित संख्या में मंत्र जाप के लिए माला का उपयोग किया जाता है। उज्जैन के ज्योतिषाचार्य पं. मनीष शर्मा के अनुसार, यदि मंत्र जाप के लिए माला उपलब्ध न हो तो भी एक आसान विधि से निश्चित संख्या में जाप किया जा सकता है। यह तरीका है - करमाला यानी उंगलियों पर मंत्रों की गिनती से मंत्र जाप। जानिए इसकी पूरी विधि…
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किसी भी मंत्र का जप करते समय किस प्रकार से मंत्र का उच्चारण किया जाये, मन्त्रों का उच्चारण किस स्वर में किया जाये जिससे मंत्र जप का लाभ अधिक से अधिक मिल सके यह बहुत ही महतवपूर्ण है। मंत्र जप के समय होठों के हिलने, श्वास तथा स्वर के निस्सरण के आधार पर शास्त्रों ने मंत्र जप को तीन वर्गों में विभाजित किया है, और इसी के आधार पर जप किया जाएं तो मंत्र के देवता मनोकामना पूर्ति करने में देरी नहीं करते। 1- वाचिक जप- जिस प्रकार से ईश्वर का भजन-कीर्तन और आरती ऊंचे स्वर में की जाती है, उस तरह उच्च स्वरों में मंत्रों का जप निषेध माना गया है। शास्त्र कहते है कि मंत्र जप करते समय स्वर बाहर नहीं निकला चाहिए। जप करते समय मंत्रों का उच्चारण ऐसा होता रहे की ध्वनि जप करने वाले साधक के कानों में पड़ती रहे, उसे वाचिक जप कहते हैं।
2- उपांशु जप- मंत्र जप की इस विधि में मंत्र की ध्वनि मुख से बाहर नहीं निकलती, परन्तु जप करते समय साधक की जीभ और होंठ हिलते रहना चाहिए| उपांशु जप में किसी दुसरे व्यक्ति के देखने पर साधक होंठ हिलते हुए तो प्रतीत होते है, पर कोई भी शब्द उसे सुनाई नहीं देता। 3- मानस जप- मन्त्र जप की इस विधि में जपकर्ता के होंठ और जीभ नहीं हिलते, केवल साधक मन ही मन मंत्र का मनन करता है, इस अवस्था में जपकर्ता को देखकर यह नहीं बताया जा सकता कि वह किसी मंत्र का जप भी कर रहा है। उपरोक्त मंत्र जप विधि में से मानस जप को ही सर्वश्रेष्ठ जप बताया गया है और उपांशु जप को मध्यम जप और वाचिक जप को मानस जप की प्रथम सीढ़ी बताया गया है। मंत्र जप और मानसिक उपासना, आडम्बर और प्रदर्शन से रहित एकांत में की जाने वाली वे मानसिक प्रक्रियाएं है जिनमें मुख्यतः भावना और आराध्यदेव के प्रति समर्पण भाव का होना बहुत जरुरी होता है। इस विधि से अगर जप किया जाएं तो जिस देवता का मंत्र जप किया जाता है वह शीघ्र प्रसन्न होकर जपकर्ता की इच्छाएं पूरी करने लगते हैं। ****************** मंत्र का जाप कैसे करना चाहिए?इस तरह करें मंत्रों का जाप:. सबसे पहले आपको जमीन पर शुद्ध ऊनी आसन बिछाना होगा।. फिर पद्मासन या सुखासन कर बैठें। ... . माला को इस्तेमाल करने से पहले उसे शुद्ध जल से धोएं और तिलक जरूर लगाएं।. जाप करने के लिए एक निश्चित संख्या होनी आवश्यक है।. माला का जाप करते समय आपको अपना मुख पूर्व दिशा की तरफ रखना चाहिए।. क्या बिना माला के मंत्र जाप कर सकते हैं?मनीष शर्मा के अनुसार, यदि मंत्र जाप के लिए माला उपलब्ध न हो तो भी एक आसान विधि से निश्चित संख्या में जाप किया जा सकता है। यह तरीका है - करमाला यानी उंगलियों पर मंत्रों की गिनती से मंत्र जाप।
पूजा करते समय कौन से मंत्र का जाप करना चाहिए?आवाहनं न जानामि न जानामि विसर्जनम्। पूजां चैव न जानामि क्षमस्व परमेश्वर॥ मंत्रहीनं क्रियाहीनं भक्तिहीनं जनार्दन। यत्पूजितं मया देव!
माला फेरने का सही तरीका क्या है?* माला नाभि से नीचे नहीं, नाक के ऊपर नहीं जानी चाहिए एवं सीने से 4 अंगुल दूर सामने रखें। * जाप करते समय आंखें परमात्मा के सामने या दो भौंहों के बीच, या नाक पर रखें या फिर आंखें मूंद लें। * जाप करते समय माला नीचे न गिराएं। जमीन पर न रखें, आसन पर या डिब्बी में रखें।
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