तुम अपना पाठ याद क्यों नहीं करते हो - tum apana paath yaad kyon nahin karate ho

चेतावनी: इस टेक्स्ट में गलतियाँ हो सकती हैं। सॉफ्टवेर के द्वारा ऑडियो को टेक्स्ट में बदला गया है। ऑडियो सुन्ना चाहिये।

गुड मॉर्निंग आपका सवाल है तुम अपना पाठ याद करते हो इंग्लिश में ट्रांसलेशन क्या होगा इसको बोलेंगे यू मेमोराइज यार लेशन यू मेमोराइज यार लेशन एम ई एम ओ आर आई डी या फिर ऐसी दोनों होता है जो मेमोराइज यार लेशन दूसरा भी कुछ इस्तेमाल कर सकते हैं ह्यूमन आपकी और लेशन या फिर यू अकरम योर रिलेशन रखना होता है कर्म का मतलब या फिर आप बोल सकते हैं यो यो हनी और लेशन यह भी बोल सकते क्योंकि सीखने के हिसाब से अगर बोलेंगे तो

good morning aapka sawaal hai tum apna path yaad karte ho english me translation kya hoga isko bolenge you memorize yaar leshan you memorize yaar leshan M E M O R I d ya phir aisi dono hota hai jo memorize yaar leshan doosra bhi kuch istemal kar sakte hain human aapki aur leshan ya phir you akram your relation rakhna hota hai karm ka matlab ya phir aap bol sakte hain yo yo honey aur leshan yah bhi bol sakte kyonki sikhne ke hisab se agar bolenge toh

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आपका सवाल है तुम अपना पाठ याद नहीं करते हो का अंग्रेजी अनुवाद करें इसका अंग्रेजी अनुवाद होगा यू टो मेमोराइज यू टो मेमोराइज यार लेशन यह सिंपल प्रजेंट का नेगेटिव है और यू सब्जेक्ट है मतलब याद नहीं करने वाला कौन है यानी कि तुम तो इसके साथ जो हेल्पिंग वर्ब आ रहे नेगेटिव में बनाते हैं इसको तब हैप्पी होता जो इस्तेमाल करते हैं उसमें डूब लगाएंगे यू डू नॉट मेमोराइज यू आर लिसनिंग मेमोराइजेशन इस तरह से बनेगा मेमोराइज के बदले हम आप इस्तेमाल कर सकते हैं क्रीम का इस्तेमाल कर सकते हैं तो इस तरह से हम आप अलग-अलग इस्तेमाल कर सकते हैं लेकिन मेमोराइज जो है वह ज्यादा कॉमन नाउन मेमोराइज

aapka sawaal hai tum apna path yaad nahi karte ho ka angrezi anuvad kare iska angrezi anuvad hoga you toe memorize you toe memorize yaar leshan yah simple present ka Negative hai aur you subject hai matlab yaad nahi karne vala kaun hai yani ki tum toh iske saath jo helping verb aa rahe Negative me banate hain isko tab happy hota jo istemal karte hain usme doob lagayenge you do not memorize you R listening memoraijeshan is tarah se banega memorize ke badle hum aap istemal kar sakte hain cream ka istemal kar sakte hain toh is tarah se hum aap alag alag istemal kar sakte hain lekin memorize jo hai vaah zyada common noun memorize

आपका सवाल है तुम अपना पाठ याद नहीं करते हो का अंग्रेजी अनुवाद करें इसका अंग्रेजी अनुवाद हो

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तुम अपना पाठ याद क्यों नहीं करते हो - tum apana paath yaad kyon nahin karate ho
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तुम अपना पाठ याद क्यों नहीं करते हो - tum apana paath yaad kyon nahin karate ho

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तुम अपना पाठ याद क्यों नहीं करते हो - tum apana paath yaad kyon nahin karate ho
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Kya Nirash Hua Jai Notes Class 8 Chapter 7

क्या निराश हुआ जाए पाठ सार, व्याख्या, प्रश्न उत्तर

क्या निराश हुआ जाए  CBSE class 8 Hindi Lesson summary with detailed explanation of the lesson ‘Kya Nirash Hua Jaye’ along with meanings of difficult words. Given here is the complete explanation of the lesson, along with summary. All the exercises and Question and Answers given at the back of the lesson

कक्षा 8 -पाठ -7

क्या निराश हुआ जाए

 

  • क्या निराश हुआ जाए पाठ प्रवेश
  • क्या निराश हुआ जाए पाठ-की- व्याख्या
  • क्या निराश हुआ जाए पाठ सार
  • क्या निराश हुआ जाए प्रश्न-अभ्यास

Author Introduction

लेखक हजारी प्रसाद द्विवेदी
जन्म  19 अगस्त 1907
मृत्यु  19 मई 1979
 
 

क्या निराश हुआ जाए पाठ प्रवेश

हजारी प्रसाद द्विवेदी द्वारा लिखित ‘क्या निराश हुआ जाए’ एक श्रेष्ठ निबंध है। इस पाठ के द्वारा लेखक देश में उपजी सामाजिक बुराइयों के साथ-साथ अच्छाइयों को भी उजागर करने के लिए कहते है। वे कहते है समाचार पत्रों को पढ़कर लगता है सच्चाई और ईमानदारी ख़त्म हो गई है। आज आदमी गुणी कम और दोषी अधिक दिख रहा है। आज लोगो की सच्चाई से आस्था डिगने लगी है। लेखक कहते है कि लोभ, मोह, काम-क्रोध आदि को शक्तिमान कर हार नहीं माननी चाहिए बल्कि उनका डट कर सामना करना चाहिए। आगे वे कहते है कि हमें किसी के हाथ की कठ पुतली नहीं बनना चाहिए। कानून और धर्म अलग-अलग हैं। परन्तु कुछ लोग कानून को धर्म से बड़ा मानते हैं।
समाज में कुछ लोग ऐसे हैं जो बुराई को रस लेकर बताते हैं। बुराई में रस लेना बुरी बात है। लेखक के अनुसार सच्चाई आज भी दुनिया में है इसके  कई उदहारण उन्होंने पाठ में दिया है।

 
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क्या निराश हुआ जाए पाठ सार

लेखक आज के समय में फैले हुए डकैती ,चोरी, तस्करी और भ्रष्टाचार से बहुत दुखी है। आजकल का समाचार पत्र आदमी को आदमी पर विश्वास करने से रोकता है। लेखक के अनुसार जिस स्वतंत्र भारत का स्वप्न गांधी, तिलक, टैगोर ने देखा था यह भारत अब उनके स्वप्नों का भारत नहीं रहा। आज के समय में ईमानदारी से कमाने वाले भूखे रह रहे हैं और धोखा धड़ी करने वाले राज कर रहे हैं।
लेखक के अनुसार भारतीय हमेशा ही संतोषी प्रवृति के रहें हैं। वे कहते हैं आम आदमी की मौलिक आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए कानून बनाए गए हैं किन्तु आज लोग ईमानदार नहीं रहे। भारत में कानून को धर्म माना गया है, किन्तु आज भी कानून से ऊँचा धर्म माना गया है शायद इसी लिय आज भी लोगों में ईमानदारी, सच्चाई है। लेखक को यह सोचकर अच्छा लगता है कि अभी भी लोगों में इंसानियत बाकी है उदहारण के लिए वेबस और रेलवे स्टेशन पर हुई घटना की बात बताते हैं।
इन उदाहरणो से लेखक के मन में आशा की किरण जागती है और वे कहते हैं कि अभी निराश नहीं हुआ जा सकता। लेखक ने टैगोर के एक प्रार्थना गीत का उदाहरण देकर कहा है कि जिस प्रकार उन्होंने भगवान से प्रार्थना की थी कि चाहे जीतनी विप्पति आये वे भगवान में ध्यान लगाएं रखें। लेखक को विश्वास है की एक दिन भारत इन्ही गुणों केबल पर वैसा ही भारत बन जायेगा जैसा वह चाहता है। अतः अभी निराश न हुआ जाय।

 
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क्या निराश हुआ जाए पाठ की व्याख्या

मेरा मन कभी-कभी बैठ जाता है। समाचार-पत्रों में ठगी, डकैती, चोरी, तस्करी और भ्रष्टाचार के समाचार भरे रहते हैं। आरोप-प्रत्यारोप का कुछ ऐसा वातावरण बन गया है कि लगता है, देश में कोई ईमानदार आदमी हीन हीं रह गया है।

ठगी: चालबाजी
तस्करी: चोरी से सीमा पार माल ले जाने की क्रिया
भ्रष्टाचार: अनैतिक आचरण
आरोप-प्रत्यारोप: एक-दूसरे को गलत ठहराना

जब भी लेखक समाचार-पत्रों को पढ़ते है, उनका मन उदास हो जाता है क्यूंकि समाचार-पत्रों में चालबाजी, डकैती, चोरी, चोरी से सीमा-पार माल ले जाने की क्रिया की खबरें छपती हैं। इस तरह के कर्म बहुत ही अधिक बढ़ गए है । अनैतिक आचरण, बुरा आचरण समाज में चारों तरफ फैला हुआ है। समाचार पत्र खोलकर देखिए तो आप इन सभी का जिक्र पाएँगे। ऐसा लगता है कि चारो-ओर बुराई ही बुराई है अच्छाई का कोई नाम ही नहीं है। एक-दूसरे को गलत ठहराना नजर आता है  । ऐसा वातावरण बन गया है कि लगता है देश में कोई ईमानदार आदमी ही नहीं रह गया है, सिर्फ बुराई ही बची है। हर व्यक्ति कानून को अपने हाथ में लेकर बेईमानी और भ्रष्टाचार कर रहा है।

हर व्यक्ति सदेंह की दृष्टि से देखा जा रहा है। जो जितने ही ऊँचे पद पर हैं उनमें उतने ही अधिक दोष दिखाए जाते हैं। एक बहुत बडे़ आदमी ने मुझसे एक बार कहा था कि इस समय सुखी वही है जो कुछ नहीं करता।

सदेंह: शक
दृष्टि: नज़र
दोष: बुराई

हर व्यक्ति दूसरे व्यक्ति को शक की नज़रसे देखता है क्योंकि उसे उस पर विश्वास ही नहीं रह गया है। जो जितने ऊँचे पद पर है उस पर हम विश्वास नहीं कर सकते है क्योंकि उसने कर्म ही ऐसे किये है कि लोग उस पर विश्वास ही नहीं करते है, हमेशा उनके दोष ही दिखाई देते है । जब उनकी किसी के साथ मुलाकात हुई थी, उन्होंने अपने विचार प्रस्तुत किये थे कि इस समय सुखी वही है जो कुछ नहीं करता, अर्थात् किसी भी बात पर अपना पक्ष नहीं रखता या किसी से कोई व्यवहार नहीं रखता वही व्यक्ति इस दुनिया में सुखी है।

जो कुछ भी करेगा उसमें लोग दोष खोजने लगेंगे। उसके सारे गुण भुला दिए जाएँगे और दोषों को बढ़ा-चढ़ाकर दिखाया जाने लगेगा। दोष किसमें नहीं होते? यही कारण है कि हर आदमी दोषी अधिक दिख रहा है, गुणी कम या बिलकुल ही नहीं।

दोष: बुराई
गुणी: अच्छाई

लोगों को आदत हो गई है व्यक्ति में बुराई खोजने की, उसमें से अच्छाई देखने का नज़रिया जैसे समाप्त ही हो गया है । उसके द्वारा किये गए अच्छे काम को ध्यान में न रखकर उसमें अवगुणों को ही बढ़ा-चढ़ाकर दिखाया जाने लगा है । हर व्यक्ति में कोई न कोई दोष है लेकिन उसमें अच्छाईयाँ भी है । हम उन अच्छाईयों को उजागर नहीं कर रहे है सिर्फ बुराईयों को ही बढ़ा-चढ़ाकर कह रहे हैं । ऐसा लगता है जैसे जो दुनिया में लोग हैं उनमें अच्छाई बची ही नहीं है, या तो थोड़ी है या बिलकुल ही नहीं है।

स्थिति अगर ऐसी है तो निश्चय ही चिंता का विषय है। क्या यही भारतवर्ष है जिसका सपना तिलक और गांधी ने देखा था? रवींद्रनाथ ठाकुर और मदनमोहन मालवीय का महान संस्कृति – सभ्य भारतवर्ष किस अतीत के में डूब गया?

संस्कृति: परम्परा
अतीत: बीता हुआ समय
गह्वर: गड्ढ़ा

अगर वास्तव में ही दुनिया में, समाज में यही स्थिति देखने को मिल रही है तो चिंता का विषय है। इस पर सोच विचार किया जाना चाहिए । अपने व्यवहार में किसी तरह का बदलाव लाना चाहिए । क्या इसी भारतवर्ष की कल्पना हमारे महान नेताओं ने की थी, जिसका सपना गंगाधर तिलक और महात्मा गाँधी ने देखा था? लेखक ने आजकल भारत की स्थिति  के बारे में सवाल उठाया है कि यह गांधी का भारत है, क्या यह गंगाधर तिलक का भारत है । ऐसा लगता है कि पुराने समय में जो इंसानियत मानवता बची थी, जो संस्कृति हमारी बची थी, वो अब कहीं दिखाई नहीं देती है । मदनमोहन मालवीय और ऐसे महान नेताओं का भारतवर्ष आज कहीं अतीत में गहरे गड्ढ़े में डूब गया मालूम होता है।

आर्य और द्रविड़, हिंदू और मुसलमान, यूरोपीय और भारतीय आदर्शों की मिलन-भूमि ‘मानव महा-समुद्र’ क्या सूख ही गया? मेरा मन कहता है ऐसा हो नहीं सकता। हमारे महान मनीषियों के सपनों का भारत है और रहेगा।

महा-समुद्र: महासागर
मनीषियों: ऋषि

लेखक ने एक अन्य प्रश्न उठाया है कि जो हमारा पुरातन भारत था -आर्य समाज, द्रविड़ समाज, हिन्दु और मुसलमान सब भाई भाई की तरह रहते थे, यूरोपीय और भारतीय पराम्पराओं की उनके आदर्शों की मिलन-भूमि भारत थी। लेखक को अभी भी बात का विश्वास नहीं है वह कहते है कि क्या यह वही भारत है गांधी का भारत, तिलक का भारत, जिसकी लोग मिसाल देते थे। उन्हें अभी भी विश्वास नहीं है कि मेरे महान भारत की जो संस्कृति है, सभ्यता है वो बची रहेगी उसका सम्मान बना रहेगा जो हमारे ऋषी मुनियों ने सपना देखा था भारत का वो वैसा है और आगे भी रहेगा।

यह सही है कि इन दिनों कुछ ऐसा माहौल बना है कि ईमानदारी से मेहनत करके जीविका चलाने वाले निरीह और भेले-भाले श्रम जीवी पिस रहे हैं और झूठ तथा फरेब का रोजगार करने वाले फल-फूल रहे हैं।

जीविका: रोज़गार
निरीह: कमजोर
श्रमजीवी: मेहनत करने वाला
फरेब: धोखा

समाज में आस-पास की ईमानदार व्यक्ति पिस रहे हैं अर्थात् ऐसा लगता है कि वह इस समाज में पिसे जा रहे है, शोषण  का शिकार हो जा रहे है और धोखे  का रोजगार करनेवाले फल-फूल रहे हैं।

ईमानदारी को मूर्खता का पर्याय समझा जाने लगा है, सच्चाई केवल भीरु और बेबस लोगों के हिस्से पड़ी है। ऐसी स्थिति में जीवन के महान मूल्यों के बारे में लोगों की आस्था ही हिलने लगी है।

पर्याय: समानार्थी
भीरु: डरपोक
बेबस: लाचार
आस्था: विश्वास

ईमानदार व्यक्ति को मूर्ख कहा जाता है क्योंकि वह डरकोप है, लाचार है और बेबस है । ऐसी स्थिति में जीवन के बारे में लोगों की जो आस्था जो विश्वास है वो कहीं हिलने लगा है। मनुष्य के जीवन के महान मूल्य- सच्चाई, ईमानदारी पर भरोसा अब डगमगने लगा है।

भारतवर्ष ने कभी भी भौतिक वस्तुओं के संग्रह को बहुत अधिक महत्त्व नहीं दिया है, उसकी दृष्टि से मनुष्य के भीतर जो महान आंतरिक गुण स्थिर भाव से बैठा हुआ है, वही चरम और परम है।

भौतिक: सांसारिक
संग्रह: इकट्ठा करना
चरम: अंत
परम: प्यारा

प्राचनी भारत में लोग भौतिक सुख सुविधाओं की वस्तुओं को एकात्रित करने में ज्यादा महत्व नहीं देते थे, वे व्यक्ति के गुणों को महत्व देते थे, उसकी अच्छाई को महत्व देते थे, उसकी दृष्टि से मनुष्य के भीतर जो महान आंतरिक गुण स्थित भाव से बैठा है, अर्थात् सच्चाई, अच्छाई और ईमानदारियों की भावना उसके अन्त तक जानी है और यही बात प्रिय लगती है। हम यही देखते है कि व्यक्ति के जाने के बाद उसकी अच्छाईयों को याद किया जाता है उसके कर्म ही उसकी पहचान होते है। उस समय के लोग किसी भी तरह के सांसारिक सुख सुविधाओं की वस्तुओं की संग्रह करने में विश्वास नहीं करते थे बल्कि लोगों के गुणों में विश्वास करते थे उसकी अच्छाई को महत्व देते थे।

लोभ-मोह, काम-क्रोध आदि विचार मनुश्य में स्वाभाविक रूप से विद्यमान रहते हैं, पर उन्हें प्रधान शक्ति मान लेना और अपने मन तथा बुद्धि को उन्हीं के इशारे पर छोड़ देना बहुत बुरा आचरण है।

लोभ-मोह: लालच
काम-क्रोध: गुस्सा
स्वाभाविक: स्वतः
विद्यमान: उपस्थित
प्रधान: मुख्य
आचरण: व्यवहार

व्यक्ति के संस्कार- लालच की भावना, काम-क्रोध की भावना उसके व्यवहार में जो झलकती है वह स्वाभाविक रूप से ही मनुष्य के अंदर आते है, पर उन्हें मुख्य शक्ति मान लेना और अपने मन तथा बुद्धि को उन्हीं के इशारे पर छोड़ देना बहुत बुरा व्यवहार है।

भारतवर्ष ने कभी भी उन्हें उचित नहीं माना, उन्हें सदा संयम के बंधन से बाँधकर रखने का प्रयत्न किया है। परंतु भूख की उपेक्षा नहीं की जा सकती, बीमार के लिए दवा की उपेक्षा नहीं की जा सकती, गुमराह को ठीक रास्ते पर ले जाने के उपायों की उपेक्षा नहीं की जा सकती।

उपेक्षा: ध्यान न देना
गुमराह: रास्ता भटकना

भारतवर्ष में हमेशा सच्चाई, ईमानदारी जैसे अच्छाईयों को ही महत्व दिया जाता रहा है । उस समय में मनुष्य एक दूसरे के गुणों और उनकी शक्ति में विश्वास रखते थे, उसी के गुणों का गुणगान करते थे, सच्चाई और ईमानदारी के रास्ते पर चलते थे। जिस तरह से भूखे इंसान को नजर अदांज नहीं किया जा सकता जो भूख उसके अंदर विद्यामन है उसको हम एक तरफा नहीं कर सकते है। बीमार के लिए जितनी दवा जरूरी है उस चीज को हम नजर-अंदाज नहीं कर सकते है। जो अपना रास्ता भटक चुके है गलत राह पर चल निकले हैं, उन्हें ठीक रास्ते पर ले जाने के उपायों को महत्व देना चाहिए। उनकी उपेक्षा नहीं की जानी चाहिए। लेखक यही सब समझाना चाह रहे हैं की हमें अच्छाई और सच्चाई के रास्ते पर चलना चाहिए। किसी की बुराईयों को उजागर नहीं करना चाहिए।

हुआ यह है कि इस देश के कोटि-कोटि दरिद्रजनों की हीन अवस्था को दूर करने के लिए ऐसे अनेक कायदे-कानून बनाए गए हैं जो कृषि, उद्योग, वाणिज्य, शिक्षा और स्वास्थ्य की स्थिति को अधिक उन्नत और सुचारु बनाने के लक्ष्य से प्रेरित हैं, परंतु जिन लोगों को इन कार्यों में लगना है, उनका मन सब समय पवित्र नहीं होता।

 

कोटि-कोटि: अनगिनत
दरिद्रजनों: गरीब लोग
हीन: बुरी
उन्नत: ऊँचा

हमारे देश में जो हजारों गरीब लोग है उनकी बुरी अवस्था  को  दूर करने के लिए अनेक प्रयास किये गए और कानून बनाए गए हैं चाहे वो कोई भी  स्थिति है। कृषि, उद्योग, वाणिज्य, शिक्षा, स्वास्थ्य – हर स्थिति को उन्न्त बनाने का, बेहतर बनाने की और सुचारू रूप से लक्ष्य तक पहुँचने के लिए प्रेरित किया है। इन कार्यों में जो भी लोग लगे हुए है यह जरूरी नहीं कि उन सब का मन पवित्र हो, अच्छाई और सचाई के रास्ते पर चले, उनमें भी कहीं न कहीं बेईमानी धोखेबाजी विद्यामान है। वे अपने लोभ-लालच और काम-क्रोध की भावना से ग्रस्त है।

प्रायः वे ही लक्ष्य को भूल जाते हैं और अपनी ही सुख-सुविधा की ओर ज्यादा ध्यान देने लगते हैं। भारतवर्ष सदा कानून को धर्म के रूप में देखता आ रहा है। आज एकाएक कानून और धर्म में अंतर कर दिया गया है।

ऐसे लोग अपने जीवन के उद्देष्य को भूल जाते हैं और अपने स्वार्थ-पूर्ती के लिए, दूसरे व्यक्ति के सुख-दुख को भी नहीं देखते हैं बल्कि फायदा उठाना चाहते हैं। भारतवर्ष में कानून को धर्म की ही तरह माना है। आज एकाएक कानून और धर्म में अंतर कर दिया गया है। आज  की पीढ़ी के लोग धर्म की अपेक्षा कानून को अधिक अपेक्षा देते है जबकि एक जमाना था जब लोग धर्म के रास्ते पर चलते थे। धर्म अर्थात् सच्चाई, ईमानदारी, परोपकार की भावना से भरे थे और एक दूसरे के लिए कार्य किया करते थे।

धर्म को धोखा नहीं दिया जा सकता, कानून को दिया जा सकता है। यही कारण है कि जो लोग धर्मभीरु हैं, वे कानून की त्रुटियों से लाभ उठाने में संकोच नहीं करते।

धर्मभीरु: अधर्म करने से डरने वाला
त्रुटियों: गलतियाँ
संकोच: हिचकिचाहट

धर्म को धोखा नहीं दिया जा सकता, कानून को दिया जा सकता है। कानून में कुछ ऐसे दाव पेच रहते है की लोग दूसरों के साथ धोखा, और कानून को अपने हाथ में लेकर अपना स्वार्थपूर्व कर सकते है लेकिन धर्म के क्षेत्र में धोखा नहीं दिया जा सकता। धर्म को लेखक ने माना है – सच्चाई, ईमानदारी के रास्ते पर चलने वाले लोग। जो अर्धम करने वाले लोग है वो कानून में जो छोटी-मोटी गलतियाँ रह गई है उनका लाभ उठाने में जरा सा भी संकोच नहीं करते। वे अपने स्वार्थ को सर्वप्रथम महत्व देते है की उनका ही फायदा होना चाहिए चाहे दूसरे के साथ अन्याय ही क्यों न हो जाए।

इस बात के पर्याप्त प्रमाण खोजे जा सकते हैं कि समाज के ऊपरी वर्ग में चाहे जो भी होता रहा हो, भीतर-भीतर भारतवर्ष अब भी यह अनुभव कर रहा है कि धर्म कानून से बड़ी चीज है। अब भी सेवा, ईमानदारी, सच्चाई और आध्यात्मिकता के मूल्य बने हुए हैं। वे दब अवश्य गए हैं लेकिन नष्ट नहीं हुए हैं।

पर्याप्त: उचित
प्रमाण: सबूत)
आध्यात्मिकता: भगवान से सम्बन्ध रखने वाला

 

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समाज के ऊपरी वर्ग में चाहे जो भी होता हो, भीतर ही भीतर भारतवर्ष अब भी यह अनुभव कर रहा है कि धर्म कानून से बड़ी चीज है। अभी भी भारत में लोग धर्म पर विश्वास रखते है।  धर्म कानून से बहुत बड़ी चीज है इस बात को वो महत्व देते है। जो धार्मिक लोग है, जिनमें सेवा भाव है, ईमानदार व्यक्ति है, सच्चाई के रास्ते पर चलते है। वे किसी न किसी दबाव में जरूर आ गए है लेकिन नश्ट नहीं हुए है। पूरी तरह से उनके अंदर से अच्छाई नष्ट नहीं हुई है वे कम जरूर हुई है।

आज भी वह मनुष्य से प्रेम करता है, महिलाओं का सम्मान करता है, झूठ और चोरी को गलत समझता है, दूसरे को पीड़ा पहुँचाने को पाप समझता है। हर आदमी अपने व्यक्तिगत जीवन में इस बात का अनुभव करता है।

पीड़ा: दुःख

आज भी प्रेम की भावना उसके अन्दर विद्यामन है, स्त्रियों की इज्जत करता है। आज भी दुनिया में ऐसे लोग मौजूद है। हर व्यक्ति इस बात को इस सच्चाई को महसूस करता है कि दुनिया में से सच्चाई अभी खत्म नहीं हुई है, कम अश्वय हुई है। आज भी सच्चाई, ईमानदारी पर चलने वाले लोग मौजूद है।

समाचार पत्रों में जो भ्रष्टाचार के प्रति इतना आक्रोश है, वह यही साबित करता है कि हम ऐसी चीजों को गलत समझते हैं और समाज में उन तत्वों की प्रतिष्ठा कम करना चाहते हैं जो गलत तरीके से धन या मान संग्रह करते हैं।

भ्रष्टाचार: बुरा आचरण
आक्रोश: गुस्सा
प्रतिष्ठा: इज्ज़त
संग्रह: इकट्ठा

समाचार पत्रों में भ्रष्टाचार, बुराई के प्रति लोगों में गुस्सा है। हम ऐसी चीजों को गलत समझते हैं, हम समझते है जो हो रहा है सब गलत है और समाज में उन तत्वों की प्रतिष्ठा कम करना चाहते हैं जो गलत तरीके से धन या मान संग्रह करते हैं। यह सब जानते है कि व्यक्ति के अन्दर ईमानदारी, सच्चाई अन्य गुणों का  होना बहुत ही जरूरी है यही व्यक्ति के अंत तक जाती है और इन्हीं को याद करते है।

दोषों का पर्दाफ़ाश करना बुरी बात नहीं है। बुराई यह मालूम होती है कि किसी के आचरण के गलत पक्ष को उद्घाटित करके उसमें रस लिया जाता है और दोषोद्घाटन को एक मात्र कर्तव्य मान लिया जाता है।

पर्दाफ़ाश: भेद खोलना
आचरण: व्यवहार
उद्घाटित: उजागर
दोषो द्घाटन: कमियों को दिखाना
एकमात्र: इकलौता
कर्तव्य: फ़र्ज

लोगों के द्वारा किये गए गलत कर्म और कार्मों का भेद खुलना उनके दोषों को उजागर करना कोई बुरी बात नहीं है।  लोगों को सच्चाई से अवगत होना चाहिए । उन्हें भी यह जानकारी होनी चाहिए की किस तरह का दोष उसने किया है।बुराई तब मालूम होती है जब किसी के आचरण के गलत पक्ष को उजागर करके किसी के द्वारा किये गए व्यवहार के गलत पक्ष को आनंद लेकर उजागर करना ।

बुराई में रस लेना बुरी बात है, अच्छाई में उतना ही रस लेकर उजागर न करना और भी बुरी बात है। सैकड़ों घटनाएँ ऐसी घटती हैं जिन्हें उजागर करने से लोक-चित्त में अच्छाई के प्रति अच्छी भावना जगती है।

उजागर: प्रकट
लोक-चित्त: आम जनता को प्रसन्न करने वाला

जिस तरह से लोग दूसरों की बुराई को बढ़ा चढ़ा के बताते हैं , उसी तरह उनकी अच्छाई की तारीफ़ भी करनी चाहिए। लेकिन लोग ऐसा नहीं करते है। वे बुराई को रस लेकर बताते है लेकिन अच्छाईयों को नजर-अदांज करते है, भूल जाते है ऐसा करना बुरी बात है। ऐसी बहुत सी घटनाएँ होती हैं जिन्हें लोग सहते नहीं।  अगर उनकी सराहना हो तो दूसरों का स्वभाव अच्छा हो जाए।

एक बार रेलवे स्टेशन पर टिकट लेते हुए गलती से मैंने दस के बजाय सौ रुपये का नोट दिया और मैं जल्दी-जल्दी गाड़ी में आकर बैठ गया। थोड़ी देर में टिकट बाबू उन दिनों के सेकेंड क्लास के डिब्बे में हर आदमी का चेहरा पहचानता हुआ उपस्थित हुआ।

उपस्थित: हाजिर

एक बार लेखक रेल के द्वारा कहीं जा रहे थे। जब लेखक रेलवे स्टेशन पर पहुँचे उन्होंने टिकट ली तो गलती से दस रूपये के बजाय सौ का नोट दे दिया और जाकर डिब्बे में बैठ गए। लेकिन टिकट बाबू को  बैचेनी होनी लगी थी और वह हर डिब्बे में लेखक को ढूंढते हुए देख रहे थे कि वह कहाँ है तकि वह उनके पैसे लौटा सके। उनका चहेरा पहचानते हुए वे उपस्थित हुए।

उसने मुझे पहचान लिया और बड़ी विनम्रता के साथ मेरे हाथ में नब्बे रुपये रख दिए और बोला, ’’यह बहुत गलती हो गई थी। आपने भी नहीं देखा, मैंने भी नहीं देखा।’’ उसके चेहरे पर विचित्र संतोष की गरिमा थी। मैं चकित रह गया।

विनम्रता: शालीनता
विचित्र: अनोखा
संतोष: तस्सल्ली
चकित: हैरान

टिकट बाबू ने पहचान लिया, टिकट बाबू एक ईमानदार व्यक्ति था । रखने को वो नब्बे रूपये रख सकता था क्योंकि लेखक को तो यह याद ही नहीं था कि उन्होंने कितने पैसे दिए है । लेकिन वह एक सच्चा और ईमानदार व्यक्ति था इसलिए उसने उसके पैसे लौटाने चाहे और नब्बे रूपये वापस कर दिए। अब जाकर उसे संतोष हुआ कि उसने किसी के पैसे ऐसे ही नहीं रखे हैं। लेखक समाचार पत्रों में देखते थे तो ऐसा लगता था कि समाज में सच्चाई और ईमानदारी कहीं बची ही नहीं है और यहाँ पर टिकट बाबू का व्यवहार देखकर उन्हें विश्वास हुआ कि सच्चाई और ईमानदारी अभी भी बची हुई है इसलिए वो हैरान हुए।

कैसे कहूँ कि दुनिया से सच्चाई और ईमानदारी लुप्त हो गई है, वैसे अनेक अवांछित घटनाएँ भी हुई है, परन्तु यह एक घटना ठगी और वंचना की अनेक घटनाओं से अधिक शक्तिशाली है।

लुप्त: गायब
अवांछित: जिसकी इच्छा न की गई हो
घटना: हादसा
वंचना: धोखा

लेखक को विश्वास है कि अभी भी दुनिया में सच्चाई और ईमानदारी बची हुई है । हमारे आस-पास ऐसी भी कुछ घटानाएँ हो जाती है जिनकी कल्पना भी नहीं की जाती है, परन्तु यह एक घटना ठगी और वंचना की अनेक घटनाओं से अधिक शक्तिशाली है। जब लेखक ट्रेन में यात्रा कर रहे थे और उन्हें टिकट बाबू ने पैसे लौटाए, अपनी सच्चाई और ईमानदारी का सबूत पेष किया। यह सब देखकर लेखक को विश्वास है कि दुनिया में सिर्फ धोखा-धड़ी या भ्रष्टाचार, चोरी-चाकेरी की घटानाएँ नहीं होती अभी भी लोगों में कहीं न कहीं सच्चाई मौजूद है।

एक बार मैं बस में यात्रा कर रहा था। मेरे साथ मेरी पत्नी और तीन बच्चे भी थे। बस में कुछ खराबी थी, रुक-रुककर चलती थी। गतंव्य से कोई आठ किलो मीटर पहले ही एक निर्जन सुनसान स्थान में बस ने जवाब दे दिया।

गतंव्य: वह स्थान जहाँ किसी को पहुंचना हो
निर्जन: सुनसान

लेखक एक और घटना का ज़िक्र करते है, उनके साथ पत्नी और तीन बच्चे थे। जिस बस में  लेखक अपने परिवर साहित यात्रा कर रहे थे वह कुछ खराब थी और उसमें कुछ खराबी के कारण वह वह रूक रूककर चल रही थी। रास्ते में जंगल पड़ता था सुनसान रास्ता था ज्यादा आवाजाही नहीं थी ।बस चलना रूक गई क्योंकि वह खराब थी।

रात के कोई दस बजे होगें। बस में यात्री घबरा गए। कंडक्टर उतर गया और एक साइकिल लेकर चलता बना। लोगों को संदेह हो गया कि हमें धोखा दिया जा रहा है।
बस में बैठे लोगों ने तरह-तरह की बातें शुरू कर दीं।

संदेह: शक

यह रात का समय था अंधेरा हो चुका था। जब बस रूक गई तो यात्रियों में घबराहाट स्वभाविक थी।  कंडक्टर उतर गया और एक साइकिल लेकर चलता बना। जब यात्रियों ने देखा कि कंडक्टर उतर कर अपनी साइकिल लेकर कहीं चला गया है तो उनमें और बैचेनी हो गई।उन्हे शक हो गया कि हमें धोखा दिया जा रहा है। वह तरह-तरह के बाते अपने दिलों दिमाग में सोचने लगे उन्हें लगने लगा कहीं कंडक्टर अभी चोर डकैत अपने साथ ले आएगा और लूठ कर या मार कर चले जाएँगें। वह अब तरह तरह के बाते शुरू करने लगे ।

किसी ने कहा, ’’यहाँ डकैती होती है, दो दिन पहले इसी तरह एक बस को लूटा गया था।’’ परिवार सहित अकेला मैं ही था। बच्चे पानी-पानी चिल्ला रहे थे। पानी का कहीं ठिकाना न था। ऊपर से आदमियों का डर समा गया था।

ठिकाना: जगह

किसी ने पुरानी घटना का ज़िक्र किया कि दो दिन पहले इसी तरह एक बस को लूटा गया था। लेखक अपने बारे में कह रहे है किवे ही एक व्यक्ति था जो अकेला था अपने परिवार के साथ।उनके बच्चे भूख-प्यास से चिल्ला रहे थे। आस-पास कहीं पानी की व्यवस्था नहीं थी। ऊपर से डकैतियों का डर दिल में समा गया था ।

कुछ नौजवानों ने ड्राइवर को पकड़कर मारने-पीटने का हिसाब बनाया। ड्राइवर के चेहरे पर हवाइयाँ उड़ने लगीं। लोगों ने उसे पकड़ लिया। वह बड़े कातर ढंग से मेरी ओर देखनें लगा और बोला, ’’हम लोग बस का कोई उपाय कर रहे हैं, बचाइए, ये लोग मारेंगे।’’

उड़ने: डरजाना
कातर: परेशान
हवाइयाँ उड़ने एक मुहावरा है इसका अर्थ है डर जाना

कुछ नौजवानों ने सोचा कि ड्राइवर तो यहीं है चलो उसे ही जबरदस्ती मार पीटकर पूछा जाए कि आखिर वो क्या चाहता है।  ड्राइवर ऐसा करते देख खबरा गया कि यह लोग मेरे साथ क्या कर रहे हैं। लोगों ने उसे पकड़ लिया। दो चार उसे लात-घुसे लगाए। ड्राइवर ने लेखक को अपनी मदद करने के लिए पुकारा और उन्हें कहाँ कि कंटक्टर कोई उपाय जरूर लेकर आएगा । बस थोड़ी देर में ठीक हो जाएगी या फिर कोई और अन्य साधान के लिए उपास्थित हो जाऐगी, कृप्या कर हमें माफ करें । उन्होंने गुज़ारिस की लेखक के साथ से कि कृप्या इन लोगों से बचाइए, कहीं यह मुझे मार न डाले।

डर तो मेरे मन में था पर उसकी कातर मुद्रा देखकर मैंने यात्रियों को समझाया कि मारना ठीक नहीं है। परंतु यात्री इतने घबरा गए कि मेरी बात सुनने को तैयार नहीं हुए। कहने लगे, ’’इसकी बातों में मत आइए, धोखा दे रहा है। कंडक्टर को पहले ही डाकुओं के यहाँ भेज दिया है।’’

कातर मुद्रा: डरी हुई दशा

डर तो लेखक को भी लग रहा था लेकिन जैसा कि एक व्यक्ति जोकि चारो तरफ से लोगों से घिरा हुआ है लोग उसे मार रहे थे, पीट रहे थे। ड्राइवर की यह बुरी दशा देकर उन्हें भी उस पर दया आ गई और उन्होंने यात्रियों को समझना शुरू कर दिया की यह मार पिटाई का काम करना ठीक बात नहीं है। यात्री पूरी तरह से डरे हुए थे । कहने लगे इसकी बातों में मत आईए, धोखा दे रहा है क्योंकि कुछ ऐसी घटनाऐ पहले भी हो चुकी थी। कहने लगे कंडक्टर जो साइकिल लेकर निकला है वो अपने डाकुओं मित्रों के साथ मिला हुआ है उनके पास गया है और उन्हें अभी ही लेकर आता होगा।

मैं भी बहुत भयभीत था पर ड्राइवर को किसी तरह मार-पीट से बचाया। डेढ़-दो घंटे बीत गए। मेरे बच्चे भोजन और पानी के लिए व्याकुल थे। मेरी और पत्नी की हालत बुरी थी।

व्याकुल: परेशान

लेखक ने ड्राइवर की मदद की उन्हें मार पीट से बचाया इस सब में डेढ़-दो घंटे बीत गए। लेखक और उनकी परिवार की बुरी हालत हो गयी थी।

लोगों ने ड्राइवर को मारा तो नहीं पर उसे बस से उतारकर एक जगह घेरकर रखा। कोई भी दुर्घटना होती है तो पहले ड्रावइर को समाप्त कर देना उन्हें उचित जान पड़ा। मेरे गिड़गिड़ानेका कोई विशेष असर नहीं पड़ा।

दुर्घटना: हादसा
गिड़गिड़ाने: विनती

लोगों ने ड्राइवर को बस से उतारकर एक जगह घेरकर रखा कि यह कहीं भी भाग न जाए । और कुछ मिले न मिले पर ड्राइवर को पकड़ो और मारो पीटो और उसे जान से मार दो।जो लोग ड्राइवर को घेरकर रखे थे, लेखक ने उन्हें रोकने का बहुत प्रयास किया। लेकिन उनकी इस विनती का कोई असर नहीं हुआ ।

इसी समय क्या देखता हूँ कि एक खाली बस चली आ रही है और उस पर हमारा बस कंडक्टर भी बैठा हुआ है। उसने आते ही कहा, ’’अड्डे से नई बस लाया हूँ, इस बस पर बैठिए। वह बस चलाने लायक नहीं है।’’

तभी एक नै बस आती दिखी।  उसमें कंडक्टर बैठा था।  उसने यात्रियों से नै बीएस में बैठने को कहा क्यूंकि वह बीएस खराब  चुकी थी।

फिर मेरे पास एक लोटे में पानी और थोड़ा दूध लेकर आया और बोला, पंडित जी! बच्चों का रोना मुझसे देखा नहीं गया। वहीं दूध मिल गया, थोड़ा लेता आया।’’

कंडक्टर सिर्फ बस ही नहीं लेकर आया था, बच्चों के लिए कुछ पानी और थोड़ा सा दूध लेकर भी आया था। जब कंडक्टर जा रहा था, उसने नजारा देख लिया था कि अंधेरे रात में बच्चे घबराए हुए थे और भूख प्यास से तड़प रहे थे इसलिए उनके लिए दूध लेकर आया था।

यात्रियों में फिर जान आई। सबने उसे धन्यवाद दिया। ड्राइवर से माफी माँगी और बारह बजे से पहले ही सब लोग बस अड्डे पहुँच गए। कैसे कहूँ कि मनुष्यता एकदम समाप्त हो गई! कैसे कहूँ कि लोगों में दया-माया रह ही नहीं गई! जीवन में जाने कितनी ऐसी घटनाएँ हुई हैं जिन्हें मैं भूल नहीं सकता।

यात्रियों ने उसका धन्यवाद किया, ड्राइवर से माफी माँगी और बारह बजे से पहले ही सब लोग बस अड्डे पहुँच गए। यह सब घटानाएँ देखकर लेखक को विश्वास हो गया कि दुनिया में अभी भी लोगों में ईमानदारी बची हुई है जैसे कंटक्टर है, टिकट बाबू है, ऐसे ही लोग और भी है। अभी भी ऐसे लोग हैं जो दूसरे का दुख देख नहीं सकते उनकी मदद करने के लिए दौड़े चले जाते हैं।

ठगा भी गया हूँ, धोखा भी खाया है, परंतु बहुत कम स्थलों पर विश्वास घात नाम की चीज मिलती है। केवल उन्हीं बातों का हिसाब रखो, जिनमें धोखा खाया है तो जीवन कष्ट कर हो जाएगा, परंतु ऐसी घटनाएँ भी बहुत कम नहीं हैं जब लोगों ने अकारण सहायता की है, निराश मन को ढाँढ़ सदिया है और हिम्मत बँधाई है।

ठगा: छला गया
विश्वासघात: धोखा
कष्टकर: कष्ट देने वाला
अकारण: बिना कारण
ढाँढ़स: तस्सली

लोगों ने लेखक के साथ धोखा भी किया है। बुरी घटानाएँ हुई है अगर उन्हीं को याद करते रहेगें तो यह जीवन कठिन हो जाएगा जिनमें धोखा खाया है तो जीवन  कष्ट देने वाला हो जाएगा, जीवन को काटना बहुत मुश्किल हो जाएगा।  परन्तु ऐसी घटानाएँ बहुत ही कम ही मिलती है जब लोगों के बिना कारण सहायता की है । अपना स्वार्थ भूल कर भी आगे बढ़े हो और हमारी मदद की हो ऐसे भी दुनिया में लोग है। जब हमारे मन को निराशा ने घेर लिया तो ऐसे व्यक्ति सामाने आए उन्होंने तस्सली भी दिलाई हिम्मत बढ़ाई हमारी कि आगे बढ़ो कोई बात नहीं जो हो गया सो हो गया ऐसे भी दुनिया में लोग है। जो बिना सोचे समझे, बिना लाभ नाफा नुक्सान के लोगों की मदद करते हैं।

कविवर रवींद्रनाथ ठाकुर ने अपने प्रार्थना गीत में भगवान से प्रार्थना की थी कि संसार में केवल नुकसान ही उठाना पड़े, धोखा ही खाना पड़े तो ऐसे अवसरों पर भी हे प्रभो! मुझे ऐसी शक्ति दो कि मैं तुम्हारे ऊपर संदेह न करूँ।

संदेह: शक

रवींद्रनाथ ठाकुर जी ने अपनी कविता में प्रार्थना करते हुए ईश्वर से प्रार्थना की है कि मेरे जीवन में चाहे लाखों कठानियाँ और परेशानियाँ आई दुख तकलीफ आई लेकिन उनको कम न करकर मुझे सिर्फ इतनी शक्ति देना जिन्हें मैं अपने साहस से अपने परिश्रम से सफलता पाऊँ, और तुम पर जरा सा संदेह न करूं। यहाँ पर ईश्वर पर संदेह न करने की बात की है तुम पर मेरा विश्वास बना रहे ऐसा ईश्वर में उनका विश्वास बना रहे ऐसी शाक्ति दो।

मनुष्य की बनाई विधियाँ गलत नतीजे तक पहुँच रही हैं तो इन्हें बदलना होगा। वस्तुतः आए दिन इन्हें बदला ही जा रहा है, लेकिन अब भी आशा की ज्योति बुझी नहीं है। महान भारतवर्ष को पाने की संभावना बनी हुई है, बनी रहेगी। मेरे मन! निराश होने की जरूरत नहीं है।

विधियाँ: तरीका
ज्योति: दीया

मनुष्य की बनाई हुई तरह-तरह की जो तरीके है वो गलत प्रणाम ला रहे है तो इन्हें बदलना ही होगा। कुछ परिस्थियों में हम देखते है कि मनुष्य ने जो तोड़ तरीके बनाए है उनका गलत प्रणाम निकल रहा है तो इन्हें बदलना आवश्यक  है। अगर उम्मीद आशा नहीं होगी तो किसी का भी जीवन कष्टदायक  हो जाएगा। अभी हमारे भारतवर्ष को और तरक्की पानी है और भी साधान और तरीके है जिन पर हमें काम करना है। लेखक कहते है कि हे मेरे मन! निराश होने का अब समय नहीं है प्रयास करने होगें हमें हिम्मत नहीं हराने की जरूरत है, उम्मीद नहीं छोड़नी है, अभी भी बहुत ही संभावनाएँ बची है।

 
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क्या निराश हुआ जाए प्रश्न अभ्यास (महत्वपूर्ण प्रश्न उत्तर )

प्र॰1 – लेखक ने स्वीकार किया है कि लोगों ने उन्हें भी धोखा दिया है फिर भी वह निराश नहीं है। आपके विचार से इस बात का क्या कारण हो सकता है?

उत्तर – लेखक आशावादी दृष्टि कोण के हैं। उन्हें लगता है कि जब तक देश में कहीं न कहीं थोड़ी बहुत भी सच्चाई और ईमानदारी है तब तक यह गुंजाइश भी है कि वह अपने सपनों का भारत अभी भी पा सकते हैं। इसलिए लेखक धोखा खाने पर भी निराश नहीं होते हैं।

प्र॰2 दोषों का पर्दाफ़ाश करना कब बुरा रूप ले सकता है?

उत्तर – दोषों का पर्दाफ़ाश करना उचित है किन्तु जब मीडिया कर्मी किसी स्वार्थ वश याचैनल और अखबार को प्रचारित करने के लिए खबर को उलटा-सीधा रूप देकर प्रस्तुत करते हैं तब यह पर्दाफ़ाश आम लोगों के लिए बुराई का रूप धारण कर लेता है। समाचार तभी सच्चे और अच्छे हो सकते हैं जब उन मे सार्थकता होत था पक्ष को सही रूप में प्रस्तुत किया जाए।

क्या तुम अपना पाठ याद नहीं कर रहे हो in English?

English translation : Are you learning your lesson?

वह अपना पाठ कब याद करता है इन इंग्लिश?

Solution : He is learning his lesson.

क्या मैं अपना पाठ याद करता हूँ ट्रांसलेट?

1. मैं अपना पाठ याद करता हूँ । I learn my lesson. 2.