शिक्षा सामाजिक परिवर्तन लाने का एक कारक है कैसे? - shiksha saamaajik parivartan laane ka ek kaarak hai kaise?

Que : 9. सामाजिक परिवर्तन क्या है? सामाजिक परिवर्तन की विशेषताओं का उल्लेख करते हुए इसमें शिक्षा की भूमिका का विवेचन कीजिए।

Answer: सामाजिक परिवतेन का अर्थ :

सामाजिक परिवर्तन में दो शब्द हैं- प्रथम सामाजिक और दूसरा परिवर्तन।

सामाजिक शब्द से आशय है- समाज से सम्बन्धित। मैकाइवर ने समाज को सामाजिक सम्बन्धों का जाल बताया है। परिवर्तन से अभिप्राय भिन्नता का होना समझा जाता है। प्रत्येक वस्तु का एक पूर्व रूप होता है। कुछ समय पश्चात् उसमें भिन्नता आ जाती है। फिशर ने परिवर्तन की परिभाषा इस प्रकार से की है- “परिवर्तन को संक्षेप में, पहले की अवस्था अथवा अस्तित्व के प्रसार के अन्तर के रूप में परिभाषित किया गया है।” सामाजिक परिवर्तन समाज से सम्बन्धित होता है। कुछ विद्वानों के विचार में, सामाजिक ढांचे में होने वाला परिवर्तन, सामाजिक परिवर्तन कहलाता है। इसके विपरीत, अन्य विद्वान सामाजिक सम्बन्धों में अन्तर को सामाजिक परिवर्तन कहते हैं।

सामाजिक परिवर्तन की परिभाषा :

विद्वानों ने सामाजिक परिवर्तन की व्याख्या अपने-अपने ढंग से की है। उनमें से कुछ के विचार इस प्रकार हैं -

1. जॉनसन- “अपने मौलिक अर्थ में, सामाजिक परिवर्तन का तात्पर्य होता है सामाजिक संरचना में परिवर्तन।”

2. गिलिन और गिलिन- “सामाजिक परिवर्तन जीवन की स्वीकृत विधियों में परिवर्तन को कहते हैं। चाहे यह परिवर्तन भौगोलिक दशाओं में परिवर्तन से हुआ हो अथवा सांस्कृतिक साधनों पर जनसंख्या की रचना अथवा सिद्धान्तों में परिवर्तन से हुआ हो अथवा ये प्रसार में अथवा समूह के अन्दर आविष्कार से हुआ हो।"

सामाजिक परिवर्तन की विशेषताएं :

सामाजिक परिवर्तन की कुछ विशेषताएं इस प्रकार हैं -

1. परिवर्तन- समाज का एक मौलिक तत्व- परिवर्तन समाज का मौलिक तत्व है। सभी समाजों में परिवर्तन निश्चय ही होता है। यह तो सम्भव है कि प्रत्येक समाज में परिवर्तन की मात्रा भिन्न हो, परन्तु सामाजिक परिवर्तन के न होने की कोई सम्भावना नहीं होती है। समाज निरन्तर परिवर्तनशील रहा है। इतिहास इस बात का साक्षी है। परिवर्तन के परिणामस्वरूप ही मानव पाषाण युग से वर्तमान औद्योगिक युग में आ सका है। मनुष्य के विचारों तथा मनोवृत्तियों में परिवर्तन आने के फलस्वरूप समाज में परिवर्तन होना आवश्यक हो जाता है।

2. परिवर्तन की गति में भिन्नता होती है- परिवर्तन की गति में भिन्नता होती है। कळ समाजों में तीव्र गति से परिवर्तन होता है। इसके विपरीत कुछ समाजों में यह गति मन्द रहती है। परिवर्तन की गति की भिन्नता तो एक समाज के विभिन्न पक्षों में होने वाले परिवर्तन में पायी जाती है। समाज में होने वाले परिवर्तन की गति, उस समाज के मूल्यों तथा मान्यताओं पर निर्भर करती है।

3. सामाजिक परिवर्तन को मापना सम्भव नहीं है- सामाजिक परिवर्तन को मापना असम्भव औतिक वस्तुओं में होने वाले परिवर्तन का एक बार मापन हो सकता है। परन्तु अभौतिक वस्तुओं में होने वाले परिवर्तन का मापन सम्भव नहीं है। अभौतिक वस्तुओं की प्रकृति गणात्मक होती है। ये परिवर्तन अमूर्त होते हैं। अमूर्त तथ्यों का मापन सम्भव नहीं है। मनुष्य के विचार, मनोवृत्तियों तथा रीतियों का मापन सम्भव नहीं है।

4. सामाजिक परिवर्तन का चक्रवात तथा रेखीय रूप है- सामाजिक परिवर्तन चक्रवात तथा रेखीय दो रूपों में होता है। चक्रवात परिवर्तन में पुनः वही स्थिति आ जाती है जो परिवर्तन से पूर्व आरम्भ में थी। उदाहरण के लिए, पैण्ट की मोहरी पहले चौड़ी बनायी जाती थी। कुछ समय पश्चात संकरी मोहरी की पैण्ट पहली जाने लगी। अब पुनः चौड़ी मोहरी की पैण्ट पहनने का फैशन आया है। रेखीय परिवर्तन एक ही दिशा में होता है। इसकी पुनरावृत्ति नहीं होती है।

5. सामाजिक परिवर्तन सार्वभौमिक है- सामाजिक परिवर्तन की प्रक्रिया सार्वभौमिक है। संसार के सभी देशों में सामाजिक परिवर्तन होता है। यह परिवर्तन सभी कालों में होता आया है। परिवर्तन की यह प्रक्रिया विश्व के सभी समाजों में क्रियाशील रहती है।

6. परिवर्तन अनिश्चित होता है- सामाजिक परिवर्तन अनिश्चित होता है। इस सम्बन्ध में किसी प्रकार की भविष्यवाणी नहीं की जा सकती। परिवर्तन का समय, परिवर्तन की दिशा और परिवर्तन के परिक्रम सभी कुछ अनिश्चित होते हैं।

शैक्षिक व सामाजिक परिवर्तन में संबंध :

शिक्षा व समाज का परस्पर घनिष्ट संबंध है। शिक्षा की क्रिया समाज की क्रिया के अंतर्गत होती है। इसीलिए विभिन्न समाजों में शिक्षा का विभिन्न स्वरूप होता है, समाज ही यह निश्चित करता है कि उसके अंतर्गत प्रदान की जाने वाली शिक्षा का स्वरूप कैसा होगा। यदि समाज का स्वरूप बदलता है तो शिक्षा का स्वरूप भी बदल जाएगा। दूसरे शब्दों में हम कह सकते हैं कि सामाजिक परिवर्तन के कारण शैक्षिक परिवर्तन होता है। इसका विपरीत कथन भी सत्य है, अर्थात् शिक्षा के कारण सामाजिक परिवर्तन होता है। इन दोनों परिवर्तनों के संबंध में अपना मत व्यक्त करते हुए ओटवे ने लिखा है- “कभी-कभी यह कहा जाता है कि शिक्षा सामाजिक परिवर्तन का एक कारण है। इसका विपरीत अधिक सत्य है। शैक्षिक परिवर्तन अन्य सामाजिक परिवर्तनों को आरंभ करने के बजाय उनका अनुगमन करता है।" इस कथन के आधार पर हम शिक्षा और सामाजिक परिवर्तन के एक-दूसरे पर पड़ने वाले प्रभाव का अध्ययन करेंगे।

शिक्षा द्वारा सामाजिक परिवर्तन :

शिक्षा के द्वारा भारत के समाज में विभिन्न प्रकार के परिवर्तन किए गए हैं। इस कथन की पुष्टि में निम्नलिखित तथ्य प्रस्तुत कर सकते हैं –

1. भारत में अंग्रेजी शिक्षा के कारण सामाजिक परिवर्तन- अंग्रेजी शिक्षा प्राप्त करके भारत ने कई शताब्दियों की कुंभकर्णी निद्रा का परित्याग किया और अपने समाज में असाधारण धार्मिक, राजनीतिक, सामाजिक आदि परिवर्तन किए। धार्मिक परिवर्तन का श्रेय राजा राममोहन राय, रवीन्द्रनाथ टैगोर, केशवचंद्र सेन,स्वामी दयानंद आदि महापुरुषों को प्राप्त हुआ। राजनीतिक परिवर्तन के फलस्वरूप भारत को स्वतंत्रता दिलाने का कार्य दादाभाई नौरोजी, गोपालकृष्ण गोखले, महात्मा गांधी और जवाहरलाल नेहरू ने किया। सती-प्रथा, कन्या वध, बाल-विवाह आदि कुप्रथाओं का अंत करके हमारे समाज ने अपनी कायापलट कर ली। इस प्रकार भारतीय समाज में परिवर्तन और जागरण अंग्रेजी शिक्षा के कारण हुआ। इस संबंध में मजूमदार, राय चौधरी व दत्त ने लिखा है, “देश के शैक्षिक विचारों में महत्वपूर्ण परिवर्तनों के बिना आधुनिक भारत की सामान्य जाग्रति संभव नहीं होती।"

2. भारत में विज्ञान शिक्षा के कारण सामाजिक परिवर्तन- भारतीयों ने धर्म और नैतिकता में आस्था रखने के कारण न्याय, सहयोग, सहिष्णुता और निःस्वार्थता के मूल्यों पर सदैव बल दिया था। इसके अतिरिक्त उन्होंने आध्यात्मिक मूल्यों की तुलना में भौतिक मूल्यों को न केवल निम्नतर स्थान दिया था वरन् उनका परित्याग भी किया था। पर विज्ञान की शिक्षा प्राप्त करके उनके मूल्यों और परंपरागत धारणाओं में पूर्ण परिवर्तन हो गया है।

आज वे इनका तिरस्कार करके आर्थिक, सामाजिक, राजनीतिक क्षेत्रों में स्वार्थ और शोषण की भावनाओं से ओत-प्रोत अपने जीवनपथ पर बढ़ रहे हैं। वे सहयोग और सहिष्णता को तिलांजलि देकर एवं अलगाव, द्वेष और घृणा का अवलंबन करके भारतीय समाज का विघटन और वियोजन कर रहे हैं। सैयदेन ने उचित लिखा है-“सामाजिक परिवर्तन और विघटन की इस प्रक्रिया में सबसे शक्तिशाली तत्व विज्ञान का विकास रहा है।"

सामाजिक परिवर्तन में शिक्षा का वास्तविक कार्य :

समाज द्वारा शिक्षा में, और शिक्षा द्वारा समाज में परिवर्तन किया जाता है। जहां तक प्रथम बात का सम्बन्ध है, उसके बारे में किसी प्रकार की मत विभिन्नता नहीं है, पर दूसरे के बारे में है। वस्तुतः समाजशास्त्रियों ने सामाजिक परिवर्तन के जितने कारण बताये हैं, उनमें शिक्षा को स्थान नहीं दिया गया है। इसका कारण यह है कि शिक्षा को समाज पर निर्भर रहने वाली और उसी के अनुसार स्वरूप धारण करने वाली क्रिया माना जाता है। फिर भी, जैसा कि उपर्युक्त वर्णन से स्पष्ट है, शिक्षा सामाजिक परिवर्तन में महत्वपूर्ण योग देती है। पर इस योग के बावजूद भी शिक्षा का समाज पर पड़ने वाला प्रभाव मुख्य न मानकर गौण माना जाता है।

हमें स्वतन्त्रता मिली। हमने धर्म-निरपेक्ष राज्य और समाजवादी समाज की स्थापना का संकल्प किया। इस उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए हमने नये आर्थिक, सामाजिक और राजनैतिक मूल्यों का निर्माण किया है, उनको प्राप्त करने के लिए शिक्षा के स्वरूप को परिवर्तित किया है, पर हमने अपने आपको परिवर्तित करने की ओर रंचमात्र भी ध्यान नहीं दिया है। हम आज भी धार्मिक द्वेष, आर्थिक विषमता, वैमनस्य की भावना और स्वार्थ के सिद्धान्त से अपना गहरा नाता जोड़े हुए हैं। यही कारण है कि हमारी परिवर्तित शिक्षा हमारे समाज के स्वरूप को निश्चित करने में असफल हुई है और उसकी सेविका के रूप में कार्य कर रही है।

सामाजिक परिवर्तन में विद्यालय की भूमिका :

सामाजिक परिवर्तनों को उचित शिक्षा एवं गति प्रदान करने में विद्यालय की महती भमिका है। विद्यालय में अच्छी साधन सुविधाएं होना जरूरी है, ताकि इनका उपयोग सामाजिक परिवर्तनों में हो सके। विद्यालयों को सामाजिक परिवर्तन के लिए कुछ कार्यक्रम निर्धारित करने पड़ते हैं। तद्नुरूप नियोजित कार्यक्रम का संचालन करना पड़ता है। विद्यालय के कार्यक्रमों के नियोजन में निम्न तथ्य ध्यान में रखने चाहिए-

(1) विद्यालय में सहगामी प्रवृत्तियों की पर्याप्त व्यवस्था होनी चाहिए।

(2) विद्यालय सामदायिक विद्यालय के रूप में कार्य करें।

(3) विद्यालय को एक लघु समाज के रूप में मानकर समाज को उचित दिशा में मार्गदर्शन मिलना चाहिए।

(4) विद्यालय में विभिन्न सामाजिक समस्याओं पर समय-समय पर गोष्ठियाँ अथवा वाद-विवाद प्रतियोगिताएं आयोजित की जानी चाहिए।

(5) विद्यालय का प्रशासन जनतांत्रिक पद्धति पर आधारित होना चाहिए।

(6) विद्यालय में सामाजिक एवं सांस्कृतिक उत्सवों के आयोजन की व्यवस्था होनी चाहिए जिससे अतीत की मान्यताओं एवं संस्कृति को सुरक्षित रखा जा सके।

(7) विद्यालय को चाहिए कि वह समाज के साथ ज्यादा से ज्यादा घनिष्ठ संबंध स्थापित करे। अभिभावक-शिक्षक संघ द्वारा यह कार्य किया जाना चाहिए।

(8) विद्यालय में ऐसे विषयों की शिक्षा की व्यवस्था हो, जो समाज की संस्कृति के हस्तांतरण, समीक्षा एवं विश्लेषण में मददगार हो।

(9) विद्यालय द्वारा बालकों के सामाजिक विकास के लिए प्रयत्न किया जाना चाहिए, ताकि वे सामाजिक जीवन की अनुभूति कर सकें |

(10) विद्यालय द्वारा समाज में व्याप्त बुराइयों, कुरीतियों, कुप्रथाओं एवं आडंबरों के अंधविश्वास की भावना दूर कर नवीनता की प्रवृत्ति का विकास करना चाहिए।

(11) विद्यालय द्वारा ऐसे छात्र तैयार किये जाने चाहिए,जो विवेकशील तथा साहसी हों, परिवर्तन करने में सक्षम हों एवं परिवर्तन के कारण नवीनता को स्वीकार करने एवं उन्हें समाज तक पहुँचाने की शक्ति रखते हों।

सामाजिक परिवर्तन में शिक्षकों की भूमिका :

क्योंकि शिक्षा द्वारा सामाजिक परिवर्तन होता है अतः यह शिक्षा शिक्षक से जोड़ दी जाये, तो सामाजिक परिवर्तन की गति और तीव्र हो जाती है। शिक्षक न सिर्फ लघु समाज (विद्यालय) का नेता होता है, वरन् उसका समाज में भी नेतृत्व स्वीकार किया गया है, क्योंकि अब विद्यालय को सामुदायिक विद्यालय के रूप में प्रयोग किया जाने लगा है।

अगर हम प्राचीन शैक्षिक इतिहास का अवकलन करें, तो ज्ञात होगा कि देश तथा विदेश के शैक्षिक चिंतकों (तक्षशिला विश्वविद्यालय के आचार्य एवं प्लेटो तथा अरस्तू); जैसे विचारकों द्वारा समाज का परिवर्तन करने में नयी दिशा मिली।

ग्रामीण अंचल में आज भी शिक्षक का महत्व अधिक है, क्योंकि वह अशिक्षित समाज को उपयोगी विचारों से अवगत कराता है। वह सुषुप्त ग्रामीणों में नव-चेतना एवं जन-जागरण का कार्य करता है। औपचारिक तथा अनौपचारिक माध्यमों द्वारा वह छोटे बालक से प्रौढ़ तक साक्षरता का अभियान शुरू करता रहा है तथा इसके कारण समाज के परिवर्तन की अपेक्षा करता रहा है। महाविद्यालय स्तर पर भी किशोरों की शक्ति को रचनात्मक कार्यों की तरफ मोड़ कर उन्हें सामाजिक प्रगति के लिए प्रेरित किया जा सकता है।

शिक्षक अपने संतुलित व्यक्तित्व द्वारा समाज को प्रभावित करता है, शिक्षक के धार्मिक विचारों एवं सिद्धांतों तथा राजनैतिक विचारधाराओं पर अन्य समाज के प्रबुद्धजन चलते हैं। शिक्षक समाज को कुशल नेतृत्व प्रदान करता है। सामाजिक परिवर्तन की इस प्रक्रिया में शिक्षक के महत्व को भूला नहीं जा सकता। वह इस प्रक्रिया को गति प्रदान करने हेतु कुछ विशिष्ट गुणों का प्रयोग करते हुए विशिष्ट (असाधारण) कार्य करने को उद्यत होता है। इन कार्यों में कुछ मुख्य कार्य निम्न हैं-

(1) शिक्षक एक सृजनशील नेता के रूप में सामाजिक परिवर्तन की भूमिका निभाता है।

(2) शिक्षक अपनी जीवन की शैली जनतांत्रिक सिद्धांतों पर लेकर चलता है, अन्य जन-साधारण भी उसी का अनुसरण करते हैं।

(3) शिक्षक बालकों एवं समाज के जन-साधारण तक नवीनतम वैज्ञानिक आविष्कारों और उनके उपयोग का ज्ञान देता है जिससे उन वैज्ञानिक तथ्यों को वह अपने जीवन में प्रयोग कर सके।

(4) उसके द्वारा ऐसा शिक्षण प्रदान किया जाना चाहिए, जो बालकों में तर्क, चिंतन, मनन विश्लेषण एवं संश्लेषण शक्ति का विकास कर सके।

(5) शिक्षक को छात्रों के संरक्षकों से संपर्क कर उनके भी संकुचित दृष्टिकोणों में पर्याप्त परिवर्तन करना चाहिए।

(6) शिक्षक द्वारा प्रतिभावान छात्रों को सामाजिक कार्यकर्ता के रूप में प्रशिक्षण दिया जाना चाहिए।

(7) शिक्षक को समाज की संस्कृति के शाश्वत मूल्यों एवं नैतिक मान्यताओं का ज्ञान होना चाहिए जिससे कि वह उनका हस्तांतरण आगे आने वाली पीढ़ी को कर सके तथा उनका शुद्धीकरण और समीक्षा कर उनमें से अच्छी बातों को ग्रहण कर सकें।

(8) शिक्षक द्वारा ऐसी शिक्षण-व्यवस्था की जानी चाहिए जिससे कि वह संस्कृति का संरक्षण करते हुए अन्य संस्कृतियों का भी बोध करा सके।

(9) शिक्षक द्वारा समय-समय पर सामाजिक तथा सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन करना चाहिए।

(10) छात्रों को शैक्षिक, सह-शैक्षिक एवं साहित्यिक क्रियाओं (प्रवृत्तियों) का आयोजन कर विभिन्न क्षेत्रों में सफल नेतृत्व प्रदान किया जाना चाहिए।

(11) अध्यापक को विद्यालय की सीमा में ही रहकर कार्य नहीं करना चाहिए वरन् समाज से संबंध स्थापित कर उसकी समस्याओं को सुनकर उनके समाधान के लिए विचार करना चाहिए।

शिक्षा के द्वारा सामाजिक परिवर्तन कैसे लाया जा सकता है?

शिक्षा का समाज में स्थान ्बंध स्थापित करती है। शिक्षा समाज को गतिशील बनाती है, और विकास का आधार प्रदान करती है। समाज के व्यक्तियों का व्यक्तित्व विकास - शिक्षा द्वारा व्यक्तित्व का विकास होता है। व्यक्तित्व के विकास से तात्पर्य शारीरिक, चारित्रिक, नैतिक और बौद्धिक गुणों के विकास के साथ सामाजिक गुणों का विकास होना।

शिक्षा सामाजिक परिवर्तन क्या है?

शिक्षा के माध्यम से अनुभवों को पुनः संरचित किया जाता है तथा इस प्रकार से ही लोगों के व्यवहार में, रुचियों में परिवर्तन आता है। इन परिवर्तनों से सामाजिक सम्बन्धों में परिवर्तन आता है जो सामाजिक परिवर्तन कहलाता है। इस प्रकार शिक्षा, सामाजिक परिवर्तन का प्रमुख कारक है।

सामाजिक परिवर्तन के कारक कौन कौन से हैं?

सामाजिक परिवर्तन के प्रमुख कारक (कारण).
सामाजिक परिवर्तन के प्रमुख कारण/कारक (1) प्राकृतिक या भौगोलिक कारक – (2) जैविकीय कारक – (3) जनसंख्यात्मक कारक – (4) आर्थिक कारक – (5) प्रौद्योगिक कारक – (6) सांस्कृतिक कारक – (7) मनोवैज्ञानिक कारक – (8) औद्योगीकरण एवं नगरीकरण – (9) आधुनिकीकरण (Modernization) –.

सामाजिक परिवर्तन के साधन के रूप में शिक्षा की क्या भूमिका है?

सामाजिक परिवर्तन के एक साधन के रूप में शिक्षा: यह शिक्षा के माध्यम से है कि समाज वांछनीय परिवर्तन ला सकता है और खुद को आधुनिक बना सकता है। शिक्षा उन अवसरों और अनुभवों को प्रदान करके समाज को बदल सकती है जिनके माध्यम से व्यक्ति बदलती हुई समाज की उभरती जरूरतों और दर्शन के साथ समायोजन के लिए खुद को तैयार कर सकता है।