स्वर संधि के कितने भेद हैं Class 10? - svar sandhi ke kitane bhed hain chlass 10?

संधि का अर्थ (Sandhi in Hindi) : ‘संधि’ संस्कृत भाषा का शब्द है, जिसका अर्थ होता है – ‘मेल’। दो वर्णों के मेल या जोड़ को ही संधि कहते हैं।

Table of Contents

  • संधि की परिभाषा
  • संधि-विच्छेद
  • संधि के भेद
    • 1. स्वर संधि
      • (i) दीर्घ संधि
      • (ii) गुण संधि
      • (iii) वृधि संधि
      • (iv) यण संधि
      • (v) अयादि संधि
    • 2. व्यंजन संधि
    • 3. विसर्ग संधि

संधि की परिभाषा

दो वर्णों के मेल से होने वाले विकार (अर्थात परिवर्तन) को संधि कहते हैं।

जैसे —

भानु + उदय= भानूदय
महा + ऊर्मि = महोर्मि

स्वर संधि के कितने भेद हैं Class 10? - svar sandhi ke kitane bhed hain chlass 10?

संधि-विच्छेद

संधि के नियमों द्वारा मिले वर्णों को फिर उनकी पहली स्थिति में पहुँचा दिया जाना (वर्णों को अलग-अलग कर देना) संधि विच्छेद कहलाता है।

जैसे —

संधिसंधि विच्छेदविद्यार्थीविद्या + अर्थीगजाननगज + आनन

 

संधि के भेद

संधि के तीन भेद माने जाते हैं-

1. स्वर संधि
2. व्यंजन संधि
3. विसर्ग संधि

1. स्वर संधि

स्वर के साथ स्वर का मेल होने से जो विकार उत्पन्न होता है, उसे स्वर संधि कहते हैं;

जैसे —

पर + उपकार = परोपकार
पुस्तक + आलय = पुस्तकालय

स्वर संधि के पाँच भेद होते हैं।

स्वर संधि के भेद

(i) दीर्घ संधि

जब ह्रस्व या दीर्घ अ, इ, उ से परे क्रमशः ह्रस्व या दीर्घ अ, इ, उ, आएँ तो दोनों के मेल से दीर्घ आ, ई और ऊ हो जाते हैं। उसे दीर्घ संधि कहते हैं;

आ + अ = आ
अ + अ = आ
अ + आ = आ
आ + आ = आ
इ + इ = ई
इ + ई = ई
ई + ई = ई
ई + इ = ई
उ + उ = ऊ
उ + ऊ = ऊ
ऊ + उ = ऊ
ऊ + ऊ = ऊ

जैसे —

आ + अ = आ ⇒ विद्या + अर्थी = विद्यार्थी
उ + उ = ऊ  ⇒  सु + उक्ति = सूक्ति

(ii) गुण संधि

जब अ या आ के आगे इ, ई, उ, ऊ और ऋ स्वर आते हैं तो इनके परस्पर मेल से क्रमशः ए, ओ और अर बन जाता है। इस मेल को गुण संधि कहते हैं;

अ + इ =ए
अ + ई =ए
आ + इ = ए
आ + ई = ए
अ + उ =ओ
अ + ऊ =ओ
आ+ उ = ओ
आ+ ऊ = ओ
अ + ऋ = अर्
आ + ऋ = अर्

जैसे —

आ + ई= ए  ⇒  महा + ईश = महेश
अ + ऊ = ओ  ⇒  जल + ऊर्मि = जलोर्मि
आ + ऋ = अर्  ⇒  महा + ऋषि = महर्षि

(iii) वृधि संधि

जब अ या आ के बाद ए या ऐ हो तो दोनों के स्थान पर ऐ, यदि ओ या औ हो तो दोनों के स्थान पर औ हो जाता है। इसे वृधि संधि कहते हैं;

अ+ ए = ऐ
अ+ ऐ = ऐ
आ+ ए =ऐ
आ+ ऐ =ऐ
अ+ ओ =औ
अ+ औ =औ
आ+ओ =औ
आ+ औ =औ

जैसे —

अ + औ = औ  ⇒  परम + औषध = परमौषध
आ + ऐ = ऐ  ⇒  महा + ऐश्वर्य = महैश्वर्य

(iv) यण संधि

जब इ या ई के बाद इ वर्ण के अतिरिक्त कोई अन्य स्वर आता है, तो इ-ई के स्थान पर ‘य्‘ और यदि उ या ऊ के बाद उ वर्ण के अतिरिक्त कोई अन्य स्वर आता है, तो उ या ऊ का ‘व्‘ तथा ऋ के अतिरिक्त कोई भिन्न स्वर आता है, तो ऋ का ‘र्‘ हो जाता है;

जैसे —

इ + अ = य्  ⇒  यदि + अपि = यद्यपि
ई + आ = या  ⇒  देवी + आगम = देव्यागम

(v) अयादि संधि

ए या ऐ के बाद ए वर्ण के अतिरिक्त कोई अन्य स्वर आता है, तो ए का ‘अय्‘ तथा ऐ का ‘आय्‘ हो जाता है। यदि ओ या औ के बाद ओ वर्ण के अतिरिक्त कोई अन्य स्वर आता है, तो ओ का अव् तथा औ का आव् हो जाता है। इसे अयादि संधि कहते हैं;

जैसे —

ऐ + अ = आय् + अ  ⇒  गै + अक = गायक
औ + इ = आव् + इ  ⇒  नौ + इक = नाविक

2. व्यंजन संधि

व्यंजन के बाद किसी स्वर या व्यंजन के आने से उस व्यंजन में जो परिवर्तन होता है, वह ‘व्यंजन संधि’ कहलाता है;

सन्धि (सम् + धा + कि) शब्द का अर्थ है 'मेल' या जोड़। दो निकटवर्ती वर्णों के परस्पर मेल से जो विकार (परिवर्तन) होता है वह संधि कहलाता है। संस्कृत, हिन्दी एवं अन्य भाषाओं में परस्पर स्वरो या वर्णों के मेल से उत्पन्न विकार को सन्धि कहते हैं। जैसे - सम् + तोष = संतोष ; देव + इंद्र = देवेंद्र ; भानु + उदय = भानूदय।

सन्धि के नियम केवल भारतीय भाषाओं में ही नहीं हैं बल्कि कोरियायी जैसी यूराल-आल्टिक परिवार की भाषाओं में भी हैं। जिस प्रकार नीला और लाल मिलकर बैगनी रंग बन जाता है उसी प्रकार सन्धि एक "प्राकृतिक" या सहज क्रिया है।

सन्धि के भेद

सन्धि तीन प्रकार की होती हैं -

  1. स्वर सन्धि (या अच् सन्धि)
  2. व्यञ्जन सन्धि { हल संधि }
  3. विसर्ग सन्धि

स्वर संधि

दो स्वरों के मेल से होने वाले विकार (परिवर्तन) को स्वर-संधि कहते हैं। जैसे - विद्या + आलय = विद्यालय।

स्वर-संधि पाँच प्रकार की होती हैं -

  1. दीर्घ संधि
  2. गुण संधि
  3. वृद्धि संधि
  4. यण संधि
  5. अयादि संधि

दीर्घ संधि

सूत्र- अक: सवर्णे दीर्घः अर्थात् अक् प्रत्याहार के बाद उसका सवर्ण आये तो दोनो मिलकर दीर्घ बन जाते हैं। ह्रस्व या दीर्घ अ, इ, उ के बाद यदि ह्रस्व या दीर्घ अ, इ, उ आ जाएँ तो दोनों मिलकर दीर्घ आ, ई और ऊ हो जाते हैं। जैसे -

(क) अ/आ + अ/आ = आ

अ + अ = आ --> धर्म + अर्थ = धर्मार्थ / अ + आ = आ --> हिम + आलय = हिमालय / अ + आ =आ--> पुस्तक + आलय = पुस्तकालयआ + अ = आ --> विद्या + अर्थी = विद्यार्थी / आ + आ = आ --> विद्या + आलय = विद्यालय

(ख) इ और ई की संधि

इ + इ = ई --> रवि + इंद्र = रवींद्र ; मुनि + इंद्र = मुनींद्रइ + ई = ई --> गिरि + ईश = गिरीश ; मुनि + ईश = मुनीशई + इ = ई- मही + इंद्र = महींद्र ; नारी + इंदु = नारींदुई + ई = ई- नदी + ईश = नदीश ; मही + ईश = महीश .

(ग) उ और ऊ की संधि

उ + उ = ऊ- भानु + उदय = भानूदय ; विधु + उदय = विधूदयउ + ऊ = ऊ- लघु + ऊर्मि = लघूर्मि ; सिधु + ऊर्मि = सिंधूर्मिऊ + उ = ऊ- वधू + उत्सव = वधूत्सव ; वधू + उल्लेख = वधूल्लेखऊ + ऊ = ऊ- भू + ऊर्ध्व = भूर्ध्व ; वधू + ऊर्जा = वधूर्जा

गुण संधि

इसमें अ, आ के आगे इ, ई हो तो ए ; उ, ऊ हो तो ओ तथा ऋ हो तो अर् हो जाता है। इसे गुण-संधि कहते हैं। जैसे -

(क) अ + इ = ए ; नर + इंद्र = नरेंद्र

अ + ई = ए ; नर + ईश= नरेशआ + इ = ए ; महा + इंद्र = महेंद्रआ + ई = ए महा + ईश = महेश

(ख) अ + उ = ओ ; ज्ञान + उपदेश = ज्ञानोपदेश ;

आ + उ = ओ महा + उत्सव = महोत्सवअ + ऊ = ओ जल + ऊर्मि = जलोर्मि ;आ + ऊ = ओ महा + ऊर्मि = महोर्मि।

(ग) अ + ऋ = अर् देव + ऋषि = देवर्षि

(घ) आ + ऋ = अर् महा + ऋषि = महर्षि

वृद्धि संधि

अ, आ का ए, ऐ से मेल होने पर ऐ तथा अ, आ का ओ, औ से मेल होने पर औ हो जाता है। इसे वृद्धि संधि कहते हैं। जैसे -

(क) अ + ए = ऐ ; एक + एक = एकैक ;

अ + ऐ = ऐ मत + ऐक्य = मतैक्यआ + ए = ऐ ; सदा + एव = सदैवआ + ऐ = ऐ ; महा + ऐश्वर्य = महैश्वर्य

(ख) अ + ओ = औ वन + औषधि = वनौषधि ; आ + ओ = औ महा + औषधि = महौषधि ;

अ + औ = औ परम + औषध = परमौषध ; आ + औ = औ महा + औषध = महौषध

यण संधि

(क) इ, ई के आगे कोई विजातीय (असमान) स्वर होने पर इ ई को ‘य्’ हो जाता है।

(ख) उ, ऊ के आगे किसी विजातीय स्वर के आने पर उ ऊ को ‘व्’ हो जाता है।

(ग) ‘ऋ’ के आगे किसी विजातीय स्वर के आने पर ऋ को ‘र्’ हो जाता है। इन्हें यण-संधि कहते हैं।

इ + अ = य् + अ ; यदि + अपि = यद्यपिई + आ = य् + आ ; इति + आदि = इत्यादि।ई + अ = य् + अ ; नदी + अर्पण = नद्यर्पणई + आ = य् + आ ; देवी + आगमन = देव्यागमन

(घ)

उ + अ = व् + अ ; अनु + अय = अन्वयउ + आ = व् + आ ; सु + आगत = स्वागतउ + ए = व् + ए ; अनु + एषण = अन्वेषणऋ + अ = र् + आ ; पितृ + आज्ञा = पित्राज्ञा

अयादि संधि

ए, ऐ और ओ औ से परे किसी भी स्वर के होने पर क्रमशः अय्, आय्, अव् और आव् हो जाता है। इसे अयादि संधि कहते हैं।

(क) ए + अ = अय् + अ ; ने + अन = नयन

(ख) ऐ + अ = आय् + अ ; गै + अक = गायक

(ग) ओ + अ = अव् + अ ; पो + अन = पवन

(घ) औ + अ = आव् + अ ; पौ + अक = पावक

औ + इ = आव् + इ ; नौ + इक = नाविक

व्यंजन संधि

व्यंजन का व्यंजन से अथवा किसी स्वर से मेल होने पर जो परिवर्तन होता है उसे व्यंजन संधि कहते हैं। जैसे-शरत् + चंद्र = शरच्चंद्र। उज्ज्वल

(क) किसी वर्ग के पहले वर्ण क्, च्, ट्, त्, प् का मेल किसी वर्ग के तीसरे अथवा चौथे वर्ण या य्, र्, ल्, व्, ह या किसी स्वर से हो जाए तो क् को ग् च् को ज्, ट् को ड् और प् को ब् हो जाता है। जैसे -

क् + ग = ग्ग दिक् + गज = दिग्गज। क् + ई = गी वाक + ईश = वागीशच् + अ = ज् अच् + अंत = अजंत ट् + आ = डा षट् + आनन = षडाननप + ज + ब्ज अप् + ज = अब्ज

(ख) यदि किसी वर्ग के पहले वर्ण (क्, च्, ट्, त्, प्) का मेल न् या म् वर्ण से हो तो उसके स्थान पर उसी वर्ग का पाँचवाँ वर्ण हो जाता है। जैसे -

क् + म = ं वाक + मय = वाङ्मय च् + न = ं अच् + नाश = अंनाशट् + म = ण् षट् + मास = षण्मास त् + न = न् उत् + नयन = उन्नयनप् + म् = म् अप् + मय = अम्मय

(ग) त् का मेल ग, घ, द, ध, ब, भ, य, र, व या किसी स्वर से हो जाए तो द् हो जाता है। जैसे -

त् + भ = द्भ सत् + भावना = सद्भावना त् + ई = दी जगत् + ईश = जगदीशत् + भ = द्भ भगवत् + भक्ति = भगवद्भक्ति त् + र = द्र तत् + रूप = तद्रूपत् + ध = द्ध सत् + धर्म = सद्धर्म

(घ) त् से परे च् या छ् होने पर च, ज् या झ् होने पर ज्, ट् या ठ् होने पर ट्, ड् या ढ् होने पर ड् और ल होने पर ल् हो जाता है। जैसे -

त् + च = च्च उत् + चारण = उच्चारण त् + ज = ज्ज सत् + जन = सज्जनत् + झ = ज्झ उत् + झटिका = उज्झटिका त् + ट = ट्ट तत् + टीका = तट्टीकात् + ड = ड्ड उत् + डयन = उड्डयन त् + ल = ल्ल उत् + लास = उल्लास

(ङ) त् का मेल यदि श् से हो तो त् को च् और श् का छ् बन जाता है। जैसे -

त् + श् = च्छ उत् + श्वास = उच्छ्वास त् + श = च्छ उत् + शिष्ट = उच्छिष्टत् + श = च्छ सत् + शास्त्र = सच्छास्त्र

(च) त् का मेल यदि ह् से हो तो त् का द् और ह् का ध् हो जाता है। जैसे -

त् + ह = द्ध उत् + हार = उद्धार त् + ह = द्ध उत् + हरण = उद्धरणत् + ह = द्ध तत् + हित = तद्धित

(छ) स्वर के बाद यदि छ् वर्ण आ जाए तो छ् से पहले च् वर्ण बढ़ा दिया जाता है। जैसे -

अ + छ = अच्छ स्व + छंद = स्वच्छंद आ + छ = आच्छ आ + छादन = आच्छादनइ + छ = इच्छ संधि + छेद = संधिच्छेद उ + छ = उच्छ अनु + छेद = अनुच्छेद

(ज) यदि म् के बाद क् से म् तक कोई व्यंजन हो तो म् अनुस्वार में बदल जाता है। जैसे -

म् + च् = ं किम् + चित = किंचित म् + क = ं किम् + कर = किंकरम् + क = ं सम् + कल्प = संकल्प म् + च = ं सम् + चय = संचयम् + त = ं सम् + तोष = संतोष म् + ब = ं सम् + बंध = संबंधम् + प = ं सम् + पूर्ण = संपूर्ण

(झ) म् के बाद म का द्वित्व हो जाता है। जैसे -

म् + म = म्म सम् + मति = सम्मति म् + म = म्म सम् + मान = सम्मान

(ञ) म् के बाद य्, र्, ल्, व्, श्, ष्, स्, ह् में से कोई व्यंजन होने पर म् का अनुस्वार हो जाता है। जैसे -

म् + य = ं सम् + योग = संयोग म् + र = ं सम् + रक्षण = संरक्षणम् + व = ं सम् + विधान = संविधान म् + व = ं सम् + वाद = संवादम् + श = ं सम् + शय = संशय म् + ल = ं सम् + लग्न = संलग्नम् + स = ं सम् + सार = संसार

(ट) ऋ, र्, ष् से परे न् का ण् हो जाता है। परन्तु चवर्ग, टवर्ग, तवर्ग, श और स का व्यवधान हो जाने पर न् का ण् नहीं होता। जैसे -

र् + न = ण परि + नाम = परिणाम र् + म = ण प्र + मान = प्रमाण

(ठ) स् से पहले अ, आ से भिन्न कोई स्वर आ जाए तो स् को ष हो जाता है। जैसे -

भ् + स् = ष अभि + सेक = अभिषेक नि + सिद्ध = निषिद्ध वि + सम + विषम

विसर्ग-संधि

विसर्ग (:) के बाद स्वर या व्यंजन आने पर विसर्ग में जो विकार होता है उसे विसर्ग-संधि कहते हैं। जैसे- मनः + अनुकूल = मनोनुकूल

(क) विसर्ग के पहले यदि ‘अ’ और बाद में भी ‘अ’ अथवा वर्गों के तीसरे, चौथे पाँचवें वर्ण, अथवा य, र, ल, व हो तो विसर्ग का ओ हो जाता है। जैसे -

मनः + अनुकूल = मनोनुकूल ; अधः + गति = अधोगति ; मनः + बल = मनोबल

(ख) विसर्ग से पहले अ, आ को छोड़कर कोई स्वर हो और बाद में कोई स्वर हो, वर्ग के तीसरे, चौथे, पाँचवें वर्ण अथवा य्, र, ल, व, ह में से कोई हो तो विसर्ग का र या र् हो जाता है। जैसे -

निः + आहार = निराहार ; निः + आशा = निराशा निः + धन = निर्धन

(ग) विसर्ग से पहले कोई स्वर हो और बाद में च, छ या श हो तो विसर्ग का श हो जाता है। जैसे -

निः + चल = निश्चल ; निः + छल = निश्छल ; दुः + शासन = दुश्शासन

(घ) विसर्ग के बाद यदि त या स हो तो विसर्ग स् बन जाता है। जैसे -

नमः + ते = नमस्ते ; निः + संतान = निस्संतान ; दुः + साहस = दुस्साहस

(ङ) विसर्ग से पहले इ, उ और बाद में क, ख, ट, ठ, प, फ में से कोई वर्ण हो तो विसर्ग का ष हो जाता है। जैसे -

स्वर संधि के कितने भेद होते हैं?

स्वर संधि के पाँच भेद होते हैं

स्वर संधि के पांच भेद होते हैं कौन कौन से?

स्वर संधि के मुख्यतः पांच भेद होते हैं:.
दीर्घ संधि.
गुण संधि.
वृद्धि संधि.
यण संधि.
अयादी संधि.

संधि के कितने भेद होते हैं Class 10?

संधि के तीन भेद होते हैं- स्वर संधि, व्यंजन संधि और विसर्ग संधि। जब दो शब्द मिलते हैं तो पहले शब्द की अंतिम ध्वनि और दूसरे शब्द की पहली ध्वनि आपस में मिलकर जो परिवर्तन लाती हैं उसे संधि कहते हैं

स्वर संधि के कितने भेद हैं class 8?

स्वर संधि के भेद हिंदी में स्वर दो प्रकार के होते हैं- ह्रस्व, जैसे- अ, इ, उ, ऋ और दीर्घ जैसे आ, ई, ऊ, ए, ऐ, ओ, औ। ह्रस्व या दीर्घ अ, इ, उ परस्पर निकट आ जाएँ तो दोनों के मेल से दीर्घ “आ”, “ई”, “ऊ” हो जाते हैं। इसे दीर्घ संधि कहते हैं