सार्क से आप क्या समझते हैं इसके प्रमुख उद्देश्यों का वर्णन कीजिए? - saark se aap kya samajhate hain isake pramukh uddeshyon ka varnan keejie?

प्रश्न 16. सार्क के संगठन व उद्देश्यों को स्पष्ट करते हुए इसे उपयोगी बनाने के लिए सुझाव दीजिए।

उत्तर - दक्षेस (SAARC) का पूरा नाम 'दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संघ' (South Asian Association for Regional Co-operation) है। 78 दिसम्बर, 1985 को ढाका में दक्षिण एशिया के 7 देशों के राष्ट्राध्यक्षों का सम्मेलन हुआ तथा सार्क की स्थापना हुई। ये देश हैं-भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश, नेपाल, भूटान, श्रीलंका तथा मालदीव । यह दक्षिण एशिया के 7 पड़ोसी देशों की विश्व राजनीति में क्षेत्रीय सहयोग की पहली शुरुआत थी। वर्तमान में अफगानिस्तान को । भी इस संघ में सम्मिलित कर लिया गया है,अतः इस संघ के सदस्यों की संख्या अब बढ़कर 8 हो गई है। अब तक इसके 18 शिखर सम्मेलन हो चुके हैं।

सार्क से आप क्या समझते हैं इसके प्रमुख उद्देश्यों का वर्णन कीजिए? - saark se aap kya samajhate hain isake pramukh uddeshyon ka varnan keejie?


सार्क का चार्टर एवं ढाका घोषणा

सार्क के चार्टर में 10 धाराएँ हैं। इनमें सार्क के उद्देश्यों, सिद्धान्तों,संस्थाओं एवं वित्तीय व्यवस्था को निम्न प्रकार परिभाषित किया गया है

(I) उद्देश्य - अनुच्छेद 1 के अनुसार सार्क के प्रमुख उद्देश्य निम्नलिखित हैं

(1) दक्षिण एशिया क्षेत्र की जनता के कल्याण और उसके जीवन-स्तर में सुधार करना।

(2) क्षेत्र के आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक विकास में तेजी लाना तथा सभी व्यक्तियों को सम्मान के साथ जीने और अपनी पूर्ण निहित क्षमता को प्राप्त करने के अवसर देना।

(3) दक्षिण एशिया के देशों की सामाजिक आत्मनिर्भरता में वृद्धि करना।

(4) आपसी विश्वास और सूझ-बूझ तथा एक-दूसरे की समस्याओं के प्रति सहानुभूति की भावना उत्पन्न करना।

(5) आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक, तकनीकी और वैज्ञानिक क्षेत्रों में सक्रिय सहयोग तथा पारस्परिक सहायता में वृद्धि करना।

(6) अन्य विकासशील देशों के साथ सहयोग को बढावा देना।

(7) सामान्य हित के मामलों में अन्तर्राष्ट्रीय मंचों पर आपसी अभिव्यक्त करना।

(8) इसी प्रकार के उद्देश्यों वाले अन्तर्राष्ट्रीय एवं क्षेत्रीय संगठनों के साथ करना।

(II) सिद्धान्त-अनुच्छेद 2 के अनुसार सार्क के प्रमुख सिद्धान्त निम्नलिखित है

(1) संगठन के ढाँचे के अन्तर्गत सहयोग,समानता, क्षेत्रीय अखण्डता,राजनीतिक स्वतन्त्रता.दूसरे देशों के आन्तरिक मामलो में हस्तक्षेप न करना तथा पारस्परिक लाभ के सिद्धान्तों का आदर करना ।

(2) इस प्रकार का सहयोग द्विपक्षीय और बहुपक्षीय सहयोग का स्थान नहीं लेगा बल्कि उनका पूरक होगा।

(3) इस प्रकार का सहयोग द्विपक्षीय और बहुपक्षीय उत्तरदायित्वों का विरोधी नहीं होगा।

(III) संस्थाएँचार्टर के अन्तर्गत सार्क की निम्न संस्थाओं का उल्लेख किया गया है

(1) शिखर सम्मेलन-अनुच्छेद 3

 के अनुसार प्रतिवर्ष एक शिखर सम्मेलन आयोजित किया जाता है। शिखर सम्मेलन में सदस्य देशों के शासनाध्यक्ष भाग लेते है

(2) मन्त्रिपरिषद्-अनुच्छेद 4

के अनुसार यह सदस्य देशों के विदेश मन्त्रियों की परिषद् है । इसकी विशेष बैठक आवश्यकतानुसार कभी भी हो सकती है, परन्तु 6 माह में एक बैठक होना आवश्यक है। इसके कार्य हैंसंघ की नीति निर्धारित करना, सामान्य हित के मुद्दों के सम्बन्ध में निर्णय लेना.सहयोग के नये क्षेत्र खोलना आदि।

(3) स्थायी समिति-अनुच्छेद 5

के अनुसार यह सदस्य देशों के सचिवों की समिति है। इसकी बैठक आवश्यकतानुसार कभी भी हो सकती है,परन्तु वर्ष में एक बैठक होना अनिवार्य है। इसके प्रमुख कार्य हैंसहयोग के कार्यक्रम की निगरानी करना, अन्तक्षेत्रीय प्राथमिकताएँ निर्धारित करना, अध्ययन के आधार पर सहयोग के नये क्षेत्रों की पहचान करना।

(4) तकनीकी समितियाँ-

इनकी व्यवस्था अनुच्छेद 6 में की गई है । इनमें सभा सदस्य देशों के प्रतिनिधि होते हैं। ये अपने-अपने क्षेत्र में कार्यक्रम को लागू करने, उनमें समन्वय स्थापित करने और उनकी निगरानी करने के लिए उत्तरदायी है। य

समितियाँ स्वीकृत क्षेत्र में क्षेत्रीय सहयोग के क्षेत्र और सम्भावनाओं का भी पता: लगाती हैं।

(5) कार्यक्रम समिति-अनुच्छेद 7

में कार्यकारी समिति की व्यवस्था की गई है। इसकी स्थापना स्थायी समिति द्वारा की जा सकती है।

(6) सचिवालय-अनुच्छेद 8

में सचिवालय का प्रावधान है। इसकी स्थापना दूसरे सार्क सम्मेलन के बाद 16 जनवरी, 1987 को की गई। महासचिव का कार्यकाल 2 वर्ष रखा गया है तथा महासचिव का पद सदस्यों में बारी-बारी से घूमता रहता है। प्रत्येक सदस्य अपनी बारी आने पर किसी व्यक्ति को मनोनीत करता है, जिसे सार्क मन्त्रिपरिषद् महासचिव नियुक्त कर देती है। सार्क सचिवालय को सात भागों में विभक्त किया गया है और प्रत्येक भाग के अध्यक्ष को निर्देशक कहते हैं।

(7) वित्तीय प्रावधान-

सार्क के कार्यों के लिए प्रत्येक सदस्य के अंशदान को ऐच्छिक रखा गया है। कार्यक्रमों के व्यय को सदस्य देशों में बाँटने के लिए तकनीकी समिति की सिफारिश का सहारा लिया जाता है।

सार्क को उपयोगी बनाने हेतु सुझाव '

सार्क को और अधिक उपयोगी बनाने हेतु मुख्यतः निम्न सुझाव दिए जा सकते है

(1) सार्क को आर्थिक मंच के साथ राजनीतिक बातचीत का मंच भी बनाया जाए।

(2) टकराव उत्पन्न करने वाले मुद्दों का बातचीत द्वारा समुचित समाधान किया जाए।

(3) पारस्परिक विश्वास उत्पन्न करने के लिए क्षेत्र का विसैनिकीकरण कर दिया जाए । प्रतिरक्षा व्यय में कमी की जाए।

(4) सहयोग के नये क्षेत्र ढूँढे जाएँ, विशेषकर व्यापार, उद्योग, वित्त, मुद्रा और ऊर्जा के क्षेत्र में सहयोग को बढ़ावा दिया जाए।

(5) अन्तर्राष्ट्रीय मंचों पर क्षेत्र की सामान्य समस्याओं पर सर्वसम्मत दृष्टिकोण अपनाया जाए।

(6) महाशक्तियों को क्षेत्र से दूर रखा जाए। उन्हें किसी भी कीमत पर क्षेत्र की आन्तरिक समस्याओं में हस्तक्षेप करने का अवसर न दिया जाए।

(7) आतंकवाद और मादक द्रव्यों की तस्करी जैसी बुराइयों से जूझने के लिए समझौते किए जाएँ या सामान्य नीति अपनाई जाए।

(8) सार्क अपनी विशिष्टताओं एवं जरूरतों से अर्थात् अपने यथार्थ से प्रेरित हो। दसरे क्षेत्रीय संगठनों की नकल से कोई लाभ नहीं।

मूल्यांकन - सार्क के सम्बन्ध में दो प्रकार के विचार व्यक्त किए गए हैं। विचार निराशावादियों का है, जो इसमें आन्तरिक और बाह्य कठिनाइयाँ देखते हैं। इनका कहना है कि सार्क के सदस्य देशों के पास अपनी अर्थात् दक्षिण एशियाई पहचान नहीं है। इसके सदस्य देशों में विश्वास का संकट है। इसमें भारत की स्थिति 'बिग ब्रदर' जैसी है। इस क्षेत्र के देशों में आपसी विवाद के अनेक मुद्दे हैं । इस क्षेत्र में बड़ी शक्तियों के अपने हित हैं, अतः वे इस संघर्ष को और कड़ा बनाए रखेंगी या इसके देशों को एक-दूसरे से दूर रखने का प्रयास करेंगी।

सार्क का विगत वर्षों का इतिहास कोई आशावादी नहीं रहा है । यह कछुए की चाल ही चला है। यह न तो यूरोपीय संघ अथवा आसियान की भाँति एक आर्थिक शक्ति ही बन पाया है और न ही अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर अपनी कोई राजनीतिक पहचान बना पाया है। अन्तर्राष्ट्रीय बिरादरी इसकी उपेक्षा करती है। आलोचक इसे एक वार्षिक मिलन मंच कहते हैं,जहाँ मुद्दों पर चर्चा होती है,घोषणा-पत्र जारी किया जाता है,जिसके परिणाम अन्ततः शून्य साबित होते हैं। इसके सदस्य देशों में पारस्परिक साहचर्य का भी अभाव है। इसका सबसे बड़ा उदाहरण विकास का चतुर्भुज है, जिसे भारत, नेपाल, भूटान तथा बाँग्लादेश ने भौगोलिक समीपता और साझा प्राकृतिक संसाधनों का पूरा लाभ लेने हेतु स्थापित किया है।

दूसरा विचार आशावादियों का है। इनका मानना है कि इस क्षेत्र में पहली बार एक नई सुबह की शुरुआत हुई है। यद्यपि अब तक की प्रगति कछुआ चाल से हुई है, परन्तु सार्क की स्थापना स्वयं में, जैसा कि भूटान नरेश ने कहा था कि सामूहिक बुद्धिमत्ता और राजनीतिक इच्छा-शक्ति का परिणाम है।" इस क्षेत्र के देशों में जितना पारस्परिक विश्वास बढ़ेगा और जितनी राजनीतिक इच्छा-शक्ति बढ़ेगी, उतना ही अधिक लोग एक-दूसरे के सम्पर्क में आएँगे और शान्ति एवं सहयोग में वृद्धि होगी। भारत के भूतपूर्व प्रधानमन्त्री स्व. श्री राजीव गांधी ने कहा था कि हमें सार्क की जोड़ने वाली बातों से प्रेरणा लेनी चाहिए न कि ऐसी बातों से जो तोड़ती हैं।"

सार्क क्या है इसके मुख्य उद्देश्य क्या है?

सार्क के मुख्य उद्देश्य इसका सबसे मुख्य उद्देश्य दक्षिण एशिया के लोगों के कल्याण को बढ़ावा देना है। उनके जीवन की गुणवत्ता में सुधार लाना है।

सार्क से आप क्या?

आदिवासी लोगों में गोदने गुदवाने का अधिक चाव रहा है। पर्याप्त धन व आभूषणों के अभाव में शरीर के विविध अंगों पर गोदने गुदवाकर वे अपनी सौन्दर्य-भावना को संतुष्ट करते हैं। स्त्रियां ललाट पर चांद, तिलक, आड़ गुदवाती हैं। आँखों को तीर के समान पैनी दर्शाने हेतु नीचे की पलक के साथ 'सार्या गुदवाती हैं।

सर क्या दक्षेस के कोई दो उद्देश्य लिखिए?

दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संगठन (दक्षेस) दक्षिण एशिया के आठ देशों का आर्थिक और राजनीतिक संगठन है। संगठन के सदस्य देशों की जनसंख्या (लगभग 1.5 अरब) को देखा जाए तो यह किसी भी क्षेत्रीय संगठन की तुलना में ज्यादा प्रभावशाली है।

सार्क के सिद्धांत क्या है?

सार्क के सिद्धांत 1) सॉवरेन इक्वेलिटी , टेरिटोरियल इंटीग्रिटी और पॉलिटिकल इंडिपेंडेंस का सम्मान करना । 2) सार्क के जितने भी सदस्य हैं सबको बराबर का दर्जा देना । 3) किसी भी दूसरे देश के मामलों में हस्तक्षेप नहीं करना। 4) आपसी फायदाें के लिए काम करना , जिसे सभी का फायदा हो।