समुद्र मंथन की जरूरत क्यों पड़ी? - samudr manthan kee jaroorat kyon padee?

समुद्र मंथन के पीछे छुपी एक रोचक कहानी जिसका संबंध देवी लक्ष्‍मी से भी है, आइए जानते हैं।  

हिंदू धर्म में बहुत सारी देवताओं और असुरों के युद्ध की कथाएं प्रचलित हैं। मगर, सबसे ज्यादा जिस कथा के बारे में लोग जानते हैं वह है ‘समुद्र मंथन’। समुद्र मंथन पहला ऐसा काम था जिसे देवताओं और असुरों ने मिलकर किया था। इससे पहले असुरों को देवताओं से हमेश लड़ते हुए ही देखा गया था। अधिकांश लोगों को यही पता है कि समुद्र मंथन पृथ्वी के निर्माण के लिए हुआ था। मगर, विष्णु पुराण में समुद्र मंथन की कुछ और ही कथा छुपी हुई है। समुद्र मंथन का कारण था देवी लक्ष्मी की खोज। जी हां, देवी लक्ष्मी के क्षीर सागर में विलुप होने के बाद जब उनकी तलाश की गई तब हुआ था समुद्र मंथन। आइए जानते हैं इस दिव्य घटना के बारे में। 

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समुद्र मंथन की जरूरत क्यों पड़ी? - samudr manthan kee jaroorat kyon padee?

कथा के अनुसार जब बृह्मा जी ने भगवान विष्णु से पृथ्वी के निर्माण के विषय में बात की तब एक बार फिर भगवान विषणु और देवी लक्ष्मी को एक दूसरे से बिछड़ना पड़ा। उस वक्त देवी लक्ष्मी नाराज हो कर क्षीर सागर की गहराइयों में समाहित हो गई। वहीं भगवान विषणु पृथ्वी लोक को बसाने के बारे में विचार करने लगे। तब पृथ्वी के लगभग पूरे हिस्से में पानी ही पानी था।इस श्राप के कारण राधा रानी को हाथ भी नहीं लगा पाते थे उनके पति

ऐसे में उसे बसाने के लिए बहुत सारी वस्तुओं की जरूरत थी। यह वस्तुएं क्षीर सागर में छुपे हुए थे। तब भगवान विष्णु ने तय किया कि वह समुद्र का मंथन कराएंगे। मगर, इस मंथन के लिए न तो देवता गण तैयार थे और नहीं वह इसे अकेले कर पाने में समर्थ थे। वहीं दूसरी तरफ देवी लक्ष्मी के रुष्ट होने से पूरे बृह्मांड में सभी देवता और असुर श्रीहीन हो गए थे। सभी चाहते थे कि देवी लक्ष्मी वापिस आ जाएं। 

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समुद्र मंथन की जरूरत क्यों पड़ी? - samudr manthan kee jaroorat kyon padee?

भगवान विष्णु ने तब देवताओं को श्री का लोभ और असुरों को अमृत का लोभ दे कर समुद्र मंथन के लिए तैयार किया था। इसके बावजूद समुद्र को मथना आसान नहीं था। तब भगवान विष्णु ने अपनी माया से मंदार पर्वत को समुद्र के बीचो बीच ला खड़ा किया। इसके बाद मंदार पर्वत से समुद्र को मथने के लिए एक मजबूत रस्सी की जरूरत थी। तब भगवान विष्णु ने भगवान शिव से उनके गले में वास करने वाले नाग वासुकी को समुद्र मंथन के लिए देने के लिए आग्रह किया। इसके बाद बारी आई कि वासुकी के मुंह का हिस्सा कौन पकड़गा और पूछ का हिस्सा कौन पकड़ेगा। वासुकी के मुंह से जैहरीली हवा निकलती थी मगर वह हिस्सा मजबूत था। वहीं पूंछ का हिस्सा कमजोर था। तब असुरों ने तय किया कि वह मजबूत भाग को पकड़ेंगे। हालाकि यह भगवान विषणु की एक चाल थी। इस श्राप की वजह से नहीं हो पाया था राधा-कृष्ण का विवाह

इसके बाद बारी आई कि मंदार पर्वत के भार को कौन उठाएगा। तब भगवान विष्णु ने कछुए का रूप धारण किया और अपनी पीठ पर मंदार पर्वत को रख लिया। तब कई वर्षों तक समुद्र मंथन का काम चलता रहा। तब जाकर सबसे पहले मंथन से हलाहल निकला। इसे भगवान शिव ने पी लिया। तब ही से उन्हें नीलकंठ कहा जाने लगा। इसके बाद कामधेनू गाय, उच्चैश्रवा घोड़ा, ऐरावत हाथी,  कौस्तुभमणि हीरा, कल्पवृष पेड़ और ऐसे 13 रत्न निकले। सबसे आखिर में देवी लक्ष्मी समुद्र मंथन से निकलीं। जैसे ही देवी लक्षमी समुद्र से बाहर आईं सभी देवताओं के गहने और धन वापिस आ गया। भगवान कृष्‍णा से यदि आपको भी है प्रेम तो जवाब दें इन आसान से सवालों का

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क्यों जरूरी था समुद्र मंथन का होना ?

समुद्र मंथन की जरूरत क्यों पड़ी? - samudr manthan kee jaroorat kyon padee?

हमारे हिंदू धर्म में ऐसे कई शास्त्र शामिल हैं, जिनमें सृष्टि की रचना को लेकर कई बातें बताई गई हैं।

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हमारे हिंदू धर्म में ऐसे कई शास्त्र शामिल हैं, जिनमें सृष्टि की रचना को लेकर कई बातें बताई गई हैं। ऐसा ही माना जाता है कि धरती बनाने के लिए समुद्र मंथन जरूरी था, क्योंकि उस वक्त धरती का छोटा सा हिस्सा ही जल से बाहर था और बाकी हर जगह पानी ही पानी था। इसके लिए केवल देवता ही काफी नहीं थे। देवताओं के साथ राक्षसों की शक्ति का भी प्रयोग होना था। शास्त्रों में इस मंथन को लेकर कई बातों के बारे में जानने को मिलता है। 

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समुद्र मंथन से जो अमृत मिलता, वह उन्हें अमर कर देता। मंथन से निकलने वाले अमृत को देवताओं को पिलाना था। मंदार पर्वत और वासुकि नाग की सहायता से समुद्र मंथन की तैयारी शुरू हुई। भगवान विष्णु ने कछुए का रूप लेकर मथनी बन मंदार पर्वत अपनी पीठ पर रखा और उसे समुद्र में नहीं डूबने दिया। सबसे पहले विष निकला जिसे देवताओं और राक्षसों दोनों ने लेने से मना कर दिया। इससे सृष्टि नष्ट हो सकती थी, इसलिए शिव जी ने इस विष का पान किया, लेकिन पार्वती के प्रयत्नों से विष शिव के गले में ही अटक गया और उनका गला नीला हो गया, इसलिए शिव नीलकंठ कहलाए।

समुद्र मंथन के वक्त कई और चीजें भी निकलीं जैसे कामधेनु गाय, उच्चैश्रवा नामक सफेद घोड़ा, ऐरावत हाथी, कौस्तुभ मणि, कल्पवृक्ष, धन की देवी, देवों के चिकित्सक धनवंतरि आदि। अंत में अमृत के लिए सभी इंतजार कर रहे थे। असुरों के हाथ न लगे, इसलिए विष्णु ने मोहिनी बनकर असुरों का ध्यान अमृत से हटाया और देवताओं को अमृत-पान कराया। 

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आध्यात्मिक रूप से देखा जाए तो समुद्र का अर्थ है शरीर, और मंथन से अमृत और विष दोनों निकलते हैं। इस कहानी के किरदार हमारे जीवन से मेल खाते हैं जैसे देवता सकारात्मक सोच और समझ को दर्शाते हैं वहीं असुर नकारात्मक सोच एवं बुराइयों के प्रतीक हैं।

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समुद्र मंथन की आवश्यकता क्यों पड़ी?

अधिकांश लोगों को यही पता है कि समुद्र मंथन पृथ्वी के निर्माण के लिए हुआ था। मगर, विष्णु पुराण में समुद्र मंथन की कुछ और ही कथा छुपी हुई है। समुद्र मंथन का कारण था देवी लक्ष्मी की खोज। जी हां, देवी लक्ष्मी के क्षीर सागर में विलुप होने के बाद जब उनकी तलाश की गई तब हुआ था समुद्र मंथन

समुद्र मंथन हुआ था तो क्या क्या निकला था?

"विष को शंकर भगवान के द्वारा पान कर लेने के पश्चात् फिर से समुद्र मंथन प्रारम्भ हुआ। दूसरा रत्न कामधेनु गाय निकली जिसे ऋषियों ने रख लिया। फिर उच्चैःश्रवा घोड़ा निकला जिसे असुरराज बलि ने रख लिया। उसके बाद ऐरावत हाथी निकला जिसे देवराज इन्द्र ने ग्रहण किया।

समुद्र मंथन का क्या रहस्य है?

समुद्र मंथन से उच्चैश्रवा घोड़ा, ऐरावत हाथी, लक्ष्मी, भगवान धन्वन्तरि सहित 14 रत्न निकले। समुद्र मंथन से सबसे पहले कालकूट विष निकला, जिसे भगवान शिव ने ग्रहण कर लिया। इससे तात्पर्य है कि अमृत (परमात्मा) हर इंसान के मन में स्थित है। अगर हमें अमृत की इच्छा है तो सबसे पहले हमें अपने मन को मथना पड़ेगा।

अमृत की उत्पत्ति कैसे हुई?

समुद्र मंथन में अमृत निकला। इसे प्राप्त करने के लिए देवताओं ने दानवों के साथ छल किया। देवता अमर हो गए।