“उपयोगिता व सम्बन्धित नियम”केनेथ ई. बोल्डिंग– उपभोक्ता का अन्तिम उत्पाद, भौतिक उत्पाद नहीं होता है। इसे न तो देखा जा सकता है, न छुआ जा सकता है और न ही इसका आस्वादन किया जा सकता है। यह उत्पाद वस्तुतः मनोवैज्ञानिक उत्पाद होता है, जिसे अर्थशास्त्र की भाषा में उपयोगिता कहा जाता है …… Show
उपयोगिता का अर्थ (Uyogita ka arth) –दैनिक जीवन में हम भिन्न-भिन्न वस्तुओं को उपयोग में लेते हैं। ऐसा क्यों किया जाता है ? उत्तर स्पष्ट है। हम उन्हीं वस्तुओं का उपयोग करना चाहते हैं, जिनसे हमारी आवश्यकताओं की पूर्ति होती है या जिनसे हमें सन्तुष्टि मिलती है। अर्थशास्त्र की भाषा में किसी वस्तु के जिस गुण से मानवीय आवश्यकताओं को संतुष्ट किया जाता है, उसे उपयोगिता कहते हैं। उदाहरण के लिए रोटी से मनुष्य की भूख शांव हो जाती है, अतः हम कह सकते हैं कि उसमें उपयोगिता है। इस प्रकार, उपयोगिता से आशय किसी वस्तु तथा सेवा की किसी मानवीय आवश्यकता को संतुष्ट करने की शक्ति से होता है। उपयोगिता” की परिभाषा (Uyogita ki paribhasha) –विभिन्न अर्थशास्त्रियों ने उपयोगिता की भिन्न-भिन्न परिभाषाएँ दी हैं। कुछ प्रमुख अर्थशास्त्रियों की परिभाषाएँ निम्न प्रकार हैं
उपयोगिता के लक्षण या विशेषताएँ (Uyogita k lakshan ya visheshtaye) –उपयोगिता के लक्षण निम्न प्रकार हैं-
उपयोगिता की माप (Uyogita ki map) –वस्तु तथा की उपयोगिता को मापने के लिये किसी यंत्र या उपकरण का आविश्कर नहीं हुआ है। जिस प्रकार ताप को थर्मामीटर द्वारा और दबाव को दाब-यंत्र द्वारा मापा जा सेवा सकता है, उस प्रकार उपयोगित् कम प्रत्यक्ष रूप से नहीं मापा जा सकता है ।. अप्रत्यक्ष रूप से अर्थात् किसी क्स््तु या सेवा की उपयोगिता को हम केवल अनुमान द्वारा माप सकते हैं। यह अनुमान दो प्रकार से संभव है-
उपयोगिता के भेद या प्रकार (Uyogita k bhed ya prakar) –अर्थशास्त्र में उपयोगिता वा तुष्गुण को तीन बर्गों में विभक्त किया गया है-
थ्रो. एली के अनुसार-“किसी व्यक्ति के प्रास किसी वस्तु के स्टॉक की अन्तिम अथवा सीमांत॑ इकाई की उपयोगिता या तुष्टियुण को उस व्यक्ति के लिए वस्तु विशेष की सीमांत उपयोगिता या सीमांत हुष्टियूण कहा जाता है।” सीमांत उपयोगिता के रूप( Seemant uyogita k roop) –
सीमांत तुष्टिगुण के विभिन्न रूपों का सारणी द्वारा स्पष्टीकरण उक्त सारणी में अभिषेक जब पहला केला खाता है, तो उसको 50 तुष्टिगुण प्राप्त होता है। यदि इसके बाद वह और केले का उपयोग जारी रखता है तो क्रमशः उसे दूसरे से 40, तीसरे से 30, चौथे से 20 पाँचवें से 10 तथा छठे से 0 उपयोगिता प्राप्त होती है। इससे यह स्पष्ट हो जाता है कि अभिषेक केले की इकाइयों की संख्या में जैसे-जैसे वृद्धि करता जाता है, उसे प्रत्येक अगली इकाई से घटती दर पर सीमांत तुष्टिगुण या उपयोगिता प्राप्त होती है। यह क्रम केवल पाँचवें केले तक ही जारी रहेगा। यहाँ पर होने वाला सीमांत तुष्टिगुण केवल 10 ही रह जाता है। इस तुष्टिगुण को धनात्मक कहते हैं।छठे केले के उपभोग से उसको शून्य तुष्टिगुण प्राप्त होता है। यही संतुष्टि की उच्चतम सीमा है। यदि इस सीमा के बाद भी बह केले खाना जारी रखता है, तो सातवाँ एबं आठवाँ केला उसके स्वास्थ्य के लिए हानिकारक रहेगा। सातवें तथा आठवें केले से ऋणात्मक तुष्टिगुण प्राप्त होगा। उसको संतोष प्राप्ति के स्थान पर कष्ट का अनुभव प्राप्त होगा। सीमांत तुष्टिगुण के विभिन्न रूपों का रेखाचित्र द्वारा स्पष्टीकरण –प्रस्तुत चित्र में ‘अ’ ‘द’ रेखा पर केले से प्राप्त ञ तुष्टिगुण को दर्शाया गया है। अ “ब’ रेखा धनात्मक घनात्मक लुष्टिगुण तुष्टिगुण तथा अ द रेखा ऋणात्मक तुष्टिगुण को बताती हैं। अ ‘स’ रेखा उपभोग की इकाइयाँ दर्शाती है। केले की पाँचवीं इकाई तक प्राप्त होने वाला तुष्टिगुण या उपयोगिता धनात्मक है, छठे केले से शून्य है ३० रे सूत्यात्मक दुष्टिपुण तुष्टिगुण प्राप्त होता है। प्राप्त सीमान्त उपयोगिता यह कर ३ हर इस बात को प्रकट करता है कि अब केले का उपयोग बन्द कर देना चाहिए। इस अवस्था को ही अधिकतम संतुष्टि का बिन्दु कहते हैं। इस स्थिति के बाद भी यदि. 710. केला की इकाइयाँ…ऋणात्मक उपभोग जारी रखा जाता है, तो ऋणात्मक तुष्टिगुण दः तुष्टिगुण प्राप्त होगा। सीमांत उपयोगिता को प्रभावित करने वाले तत्व-
कुल उपयोगिता ( kul Uyogita ) –
इस सारणी से यह स्पष्ट होता है कि केले की एक इकाई का उपभोग करने से 50, दो इकाई उपभोग करने से 90 और इसी प्रकार पाँच इकाइयाँ उप्रभोग करने से कुल 150 उपयोगिता प्राप्त होती है। प्रोफेसर गोसेन ने इस नियम की सर्वप्रथम व्याख्या की थी। इसे गोसेन का प्रथम नियम या तृप्ति का नियम कहा जाता है। कुछ प्रसिद्ध अर्थशास्त्रियों ने सीमांत उपयोगिता हास नियम की परिभाषाएँ निम्न प्रकार दी हैं
इन परिभाषाओं से यह बात स्पष्ट हो जाती है कि किसी वस्तु के निरन्तर उपभोग के कारण उस बस्तु से मिलने वाली सीमांत उपयोगिता घटती चली जाती है, किन्तु कुल उपयोगिता एक निश्चित बिन्दु तक बढ़ती जाती है जिसे पूर्ण संतुष्टि का बिन्दु कहते हैं और इसके बाद कुल उपयोगिता भी घटने लगती है। Post Views: 2,452 सीमांत उपयोगिता को प्रभावित करने वाले तत्व कौन से हैं?सीमान्त उपयोगिता को प्रभावित करने वाले तत्व कौन – से हैं? वस्तु की मात्रा – व्यक्ति के पास वस्तु अधिक मात्रा में है, तो उनकी सीमान्त उपयोगिता कम तथा। वस्तु कम मात्रा में है, तो वस्तु की सीमान्त उपयोगिता अधिक होती है। (किसी वस्तु की स्थानापन्न वस्तु होने की दशा में वस्तु की सीमान्त उपयोगिता कम होती है।
सीमांत उपयोगिता क्या है उदाहरण सहित समझाइए?सीमांत उपयोगिता (MU) कुल उपयोगिता में वह परिवर्तन है जो वस्तु की एक अतिरिक्त इकाई के उपभोग से होता है। उदाहरण के लिए, मान लीजिये 4 केलों से हमें 28 इकाई कुल उपयोगिता प्राप्त होती है और 5 केलों से कुल उपयोगिता 30 इकाई मिलती है।
सीमांत उपयोगिता क्या है ह्रासमान सीमांत उपयोगिता का नियम बताइए?सीमान्त उपयोगिता ह्रास नियम एक सार्वभौमिक (universal) नियम है। यह नियम उपभोक्ता के उस व्यवहार पर आधारित है जिसमें उपभोक्ता द्वारा किसी वस्तु की ज्यादा से ज्यादा इकाई उपभोग करने पर अतिरिक्त उपभोग की जाने वाली वस्तुओं की इकाइयों की सीमान्त उपयोगिता उत्तरोतर घटती (गिरती) जाती है।
सीमांत उपयोगिता को ज्ञात करने का सूत्र क्या है?सीमांत उपयोगिता का सूत्र
कुल उपयोगिता में परिवर्तन / उपभोग की गई इकाइयों की संख्या में परिवर्तन।
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