HomeSolved Assignmentसृजनात्मक साहित्य के अनुवाद की संभावनाओं पर विचार कीजिए। सृजनात्मक साहित्य के अनुवाद की संभावनाओं पर विचार कीजिए।अनुवाद, कोई सरल कार्य नहीं है। यह स्रोत भाषा के संदेश की लक्ष्य भाषा में अर्थऔर शैली की दृष्टि से निकटतम सहज समतुल्य पुनःसृष्टि करना है। लेकिन, स्रोत भाषा में व्यक्त कथ्य को लक्ष्य भाषा में निकटतम समतुल्य अंतरित करना सरल कार्यनहीं है। कारण, इस अंतरण कार्य को भली प्रकार से संपन्न करने में अनुवादक के समक्ष अनेक चुनौतियाँ और सीमाएँ उपस्थित होती हैं। सर्जनात्मक साहित्य के अनुवाद में तो ये चुनौतियाँ और भी विकट रूप धारण कर लेती हैं क्योंकि सर्जनात्मक साहित्य मूलतः आनंद का साहित्य होता है, जिसमें सूक्ष्म भाव और कल्पना का समावेश होता है। बिंबों-प्रतीकों आदि के माध्यम से लक्षणा-व्यंजनापरक भाषा में व्यक्त ये भाव-कल्पना तत्व, साहित्यिक रचना के कथ्य को विशिष्ट अर्थगर्भित बना देते हैं और अनुवादक को इस अनुभूति को समांतर रूप में उद्बुद्ध करके संप्रेषित करना होता है। डॉ.नगेंद्र ने 'अनुवाद विज्ञान : सिद्धांत और अनुप्रयोग' शीर्षक संपादित पुस्तक में लिखा है कि 'सर्जनात्मक साहित्य के विधायक तत्व - भाव और कल्पना सर्वथा सूक्ष्म-तरल होते हैं। तथ्य और विचार का तो संप्रेषण हो सकता है और होता है, किंतु भाव और कल्पना का उद्बोध ही किया जा सकता है, संप्रेषण नहीं। वास्तव में, उदबोध ही उनका संप्रेषण है क्योंकि कवि सह्दय के चित्त में अपनी अनुभूति का स्थानांतरण नहीं वरन उसकी समानांतर अनुभूति को ही उद्बुद्ध करता है।' इस समांतर अनुभूति को उद्बुद्ध करने के लिए मूल कथ्य को संप्रेषित करना तथा उसके साहित्यिक सौंदर्य को अक्षुण्ण बनाए रखना होता है। इसलिए, कई विद्वानों का तो यहाँ तक कहना है कि सर्जनात्मक साहित्य का अनुवाद हो ही नहीं सकता। वहीं यह भी स्वीकार किया जाता है कि साहित्य का अनुवाद तो किया जा सकता है, लेकिन अपेक्षाकृत जटिल एवं चुनौतीपूर्ण कार्य है। Show
वास्तव में देखा जाए तो सर्जनात्मक साहित्य का अनुवाद नहीं, पुनर्सुजन (ट्रांसक्रिएशन) होता है। डॉ. नगेंद्र द्वारा संपादित पुस्तक में शामिल “कथा साहित्य का अनुवाद : कुछ मुद्दे” शीर्षक अपने आलेख में डॉ. रणवीर रांग्रा लिखते हैं कि 'साहित्यिक कृति के माध्यम से पाठक-रूपी अनुवादक उस तक जो अर्थ पहुँचाना चाहता है और उसके भीतर जो पहले से विद्यमान होता है, उन दोनों का संगम सहज नहीं हो पाता। कृति में से जो अनुवादक की ओर आता है उसे पाने और पचाने में उसकी अपनी भीतरी पूँजी का, उसकी संस्कारिता का भी, योग रहता है। इसके परिणामस्वरूप वह कृति को ग्रहण करते-करते अंजाने में उसे अपने रंग में भी रंगता जाता है| इसलिए यह मानना पड़ता है कि किसी सर्जनात्मक कृति का अनुवाद मात्र अनुवाद नहीं होता, उससे कुछ अधिक होता है। वह लक्ष्य भाषा में एक प्रकार से मूल कृति की पुनःसर्जना (ट्रांसक्रिएशन) जैसा होता है।' काव्यानुवाद के संदर्भ में अनुवाद को मूल कृति का पुनःसर्जन मानने की बात तो और भी अधिक सटीक सिद्ध होती है क्योंकि “कविता, सर्जनात्मक साहित्य का नवनीत है। उसकी संवेद्य अनुभूति 'सांद्र" और बिंब-योजना अत्यंत संश्लिष्ट होती है, इसीलिए उसे अनन्य उक्ति के रूप में परिभाषित किया गया है। जाहिर है कि अनन्य उक्ति को किसी अन्य उक्ति के माध्यम से अनूदित नहीं किया जा सकता |' लेकिन, इसका यह अभिप्राय भी नहीं है कि काव्येतर साहित्य का अनुवाद कोई सरल कार्य है। वास्तव में साहित्यिक अनुवाद के संदर्भ में यह सामान्य कथन स्वीकार नहीं किया जा सकता कि साहित्य की किसी एक विधा की रचना का अनुवाद सरल और दूसरी विधा की रचना का अनुवाद कठिन है। सृजनात्मकता सर्जनात्मकता अथवा रचनात्मकता किसी वस्तु, विचार, कला, साहित्य से संबद्ध किसी समस्या का समाधान निकालने आदि के क्षेत्र में कुछ नया रचने, आविष्कृत करने या पुनर्सृजित करने की प्रक्रिया है। यह एक मानसिक संक्रिया है जो भौतिक परिवर्तनों को जन्म देती है। सृजनात्मकता के संदर्भ में वैयक्तिक क्षमता और प्रशिक्षण का आनुपातिक संबन्ध है। काव्यशास्त्र में सृजनात्मकता प्रतिभा, व्युत्पत्ति और अभ्यास के सहसंबंधों की परिणति के रूप में व्यवहृत किया जाता है। मार्क्सवाद में सृजनात्मकता[संपादित करें]सृजनात्मकता मानवीय क्रियाकलाप की वह प्रक्रिया है जिसमे गुणगत रूप से नूतन भौतिक तथा आत्मिक मूल्यों का निर्माण किया जाता है। प्रकृति प्रदत्त भौतिक सामग्री में से तथा वस्तुगत जगत की नियमसंगतियों के संज्ञान के आधार पर समाज की विभिन्न आवश्यकताओं की पूर्ति करने वाले नये यथार्थ का निर्माण करने की मानव क्षमता ही सृजनात्मकता है, जिसकी उत्पत्ति श्रम की प्रक्रिया में हुई हो। सृजनात्मकता निर्माणशील क्रियाकलाप के स्वरूप से निर्धारित होते हैं। मार्क्सवादी-लेनिनवादी सिद्धांत के अनुसार सृजन की प्रक्रिया में कल्पना समेत मनुष्य की समस्त आत्मिक शक्तियां और साथ ही वह दक्षता भाग लेती है जो प्रशिक्षण तथा अभ्यास से हासिल होती है तथा सृजनशील चिंतन को मूर्त रूप देने के लिए आवश्यक होती है। सृजनात्मकता की संभावनाएं सामाजिक संबंधों पर निर्भर करती हैं। साम्यवाद निजी सम्पत्ति पर आधारित समाज के लिए अभिलाक्षणिक श्रम तथा मानव-क्षमताओं के परकीयकरण को दूर करता है। वह सभी किस्मों और प्रत्येक व्यक्ति की सृजनात्मक क्षमताओं के विकास के लिए आवश्यक पूर्वापेक्षाओं का निर्माण करता है।[1] प्रत्ययवाद में सृजनात्मकता[संपादित करें]प्रत्ययवादी सृजनात्मकता को दैवीय धुन (प्लेटो), चेतन तथा अचेतन का संश्लेषण (शेलिंग), रहस्यवादी अंतःप्रज्ञा (बर्गसाँ) तथा सहजवृत्तियों की अभिव्यक्ति (फ्रायड) मानते हैं।[2] बाहरी कड़ियाँ[संपादित करें]
सन्दर्भ[संपादित करें]
बाहरी कड़ियाँ[संपादित करें]
सृजनात्मक और तकनीकी साहित्य क्या है?निष्कर्षत: कह सकते हैं कि सर्जनात्मक साहित्य के अनुवाद में मुहावरों के अनुवाद पर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता होती है । लक्ष्य भाषा की प्रकृति, देशकाल, संस्कृति और सामाजिकता को ध्यान में रखते हुए कृति की मांग के अनुरूप यदि प्रयत्न किया जाता है तो अनुवाद को सर्जनात्मक बनाने में मदद मिलती है ।
सृजनात्मक साहित्य क्या है?सृजनात्मक साहित्य लेखन—सृजनात्मक लेखन का उद्देश्य सूचित करना मात्र नहीं होता अपितु रहस्यों और रसों को उद्घाटित करना होता है। रचनात्मक लेखन कभी तटस्थ रूप से दुनिया की ठोस चीजों के बारे में बात करता है। तो कभी प्रेम ,पवित्रता, पलायन ,ईश्वर आदि विषय पर अपने विचार व्यक्त करता है।
तकनीक साहित्य क्या है?पत्रिका में प्रकाशित लेखों में व्यक्त विचार एवं दृष्टिकोण संबंधित लेखक के हैं । सरकार अथवा राजभाषा विभाग का उससे सहमत होना आवश्यक नहीं है ।
सृजनात्मकता का क्या अर्थ है?सृजनात्मक भाषा किसे कहते हैं ? उत्तर - दैनिक जीवन में व्यवहार में सामान्य भाषा का प्रयोग होता है। साहित्य-सृजन में परिनिष्ठित और साहित्यिक भाषा का प्रयोग होता है। जब बोलचाल की भाषा में कल्पना नवीनता और मुहावरे आदि का प्रयोग होता है तो सृजनात्मक भाषा का रूप विकसित ही जाता है।
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