अत्यन्त समीपवर्ती दो वर्गों के मेल को सन्धि (Combination of Letters) कहते हैं। जैसे-‘विद्यालय:’ में विद्या व आलयः पदों के दो अत्यन्त समीपवर्ती आ वर्गों का मेल होकर एक आ हो गया है। सन्धि को पहिता भी कहते हैं। सन्धि और संयोग में अन्तर-दो व्यञ्जनों के अत्यन्त समीपवर्ती होने पर उनका मेल संयोग कहलाता है किन्तु संयोग की अवस्था में उन वर्गों के स्वरूप में परिवर्तन नहीं होता। सन्धि में परिवर्तन हो जाता है। वाक्चातुर्यं में क्, च् का
संयोग है किन्तु वाङ्मयः में म् में सन्धि है (वाक् + मयः)। सन्धि के नियम : निकट होने के कारण दो वर्गों में कभी सुविधा से तो कभी शीघ्रता के परिणामस्वरूप परिवर्तन हा जाता है। यह परिवर्तन कई प्रकार का होता है; जैसे – सन्धि के भेद (Types of Sandhi) सन्धि के निम्न तीन प्रकार हैं: 1. स्वर-सन्धि या अच् सन्धि (Combination of Vowels) 2. व्यञ्जन-सन्धि या हल सन्धि (Combination of Consonants) 3. विसर्ग-सन्धि (Visarga Sandhi) 1. स्वर सन्धि के भेद स्वर सन्धि के अनेक भेद होते हैं, यथा–दीर्घ, गुण, वृद्धि, यण, अयादि, पूर्वरूप, पररूप, प्रकृतिभाव। (क) दीर्घ सन्धि (Dirgha Sandhi) 2. अ (ह्रस्व) से परे आ (दीर्घ) हो तो दोनों के स्थान पर आ हो जाता है-अ + आ = आ। जैसे – 3. आ (दीर्घ) से परे अ (ह्रस्व) हो तो दोनों के स्थान पर आ हो जाता है- आ + अ = आ। जैसे – 4. आ (दीर्घ) से परे आ (दीर्घ) हो तो दोनों के स्थान पर आ (दीर्घ) हो जाता है-आ + आ = आ। जैसे – 5. इ (ह्रस्व) के बाद इ (ह्रस्व) होने पर दोनों को मिलाकर दीर्घ ई हो जाता है- इ + इ = ई। जैसे
– 6. इ (ह्रस्व) के परे ई (दीर्घ) होने पर दोनों के स्थान पर दीर्घ ई हो जाता है-इ + ई = ई। जैसे – 7. ई (दीर्घ) के परे इ (ह्रस्व) होने पर दोनों के स्थान में दीर्घ ई होता है-ई + इ = ई। जैसे – 8. ई (दीर्घ) के परे ई (दीर्घ) हो, तो भी दोनों के स्थान पर ई (दीर्घ) आदेश हो जाता है – ई + ई = ई। जैसे – 9. उ (ह्रस्व) के परे उ (ह्रस्व) होने पर, दोनों के स्थान पर ऊ (दीर्घ) आदेश हो जाता है – उ + ऊ
= ऊ। जैसे – 10. उ (ह्रस्व) के परे ऊ (दीर्घ) होने पर, दोनों के स्थान पर ऊ (दीर्घ) आदेश हो जाता है – 3 + ऊ = ऊ। जैसे – 11. ऊ (दीर्घ) के परे उ (ह्रस्व) होने पर, दोनों के स्थान पर ऊ (दीर्घ) आदेश हो जाता है – ऊ + उ = ऊ। जैसे – 12. ऊ (दीर्घ) के परे ऊ (दीर्घ) होने पर दोनों के स्थान पर ऊ (दीर्घ) हो जाता है – ऊ + ऊ = ऊ। जैसे – 13. ऋ, ऋ (ह्रस्व या दीर्घ) से परे ऋ, ऋ (ह्रस्व या
दीर्घ) होने पर दोनों के स्थान पर दीर्घ ऋ हो जाता है – ऋ या ऋ + ऋ या ऋ = ऋ। जैसे – विशेष – ऋ से परे यदि ल हो तो वहाँ भी दोनों के स्थान में दीर्घ ऋ हो जाती है। जैसे-होतृ + लकारः = होतृकारः (होत्लुकारः, होतृलकारः भी रूप बनता है।) दीर्घ-सन्धि अपवाद – (ख) गुण सन्धि (Guna Sandhi) अ या आ के अनन्तर ह्रस्व या दीर्घ इ, ई, उ, ऊ, ऋ, ऋ तथा लु आएँ तो दोनों के स्थान पर क्रमशः ए, ओ, अर्, अल्, आदेश हो जाते हैं (अ, ए, ओ, गुण स्वर कहलाते हैं इसलिए इस सन्धि को गुण सन्धि कहते हैं)। 1. ह्रस्व अ के बाद ह्रस्व इ होने पर, दोनों के स्थान पर ए (गुण) आदेश होता
है-अ + इ = ए। जैसे – 2. ह्रस्व अ के बाद दीर्घ ई होने पर, दोनों के स्थान पर ए (गुण) आदेश होता है-अ + ई = ए। जैसे – 3. दीर्घ आ के पश्चात् ह्रस्व इ होने पर, दोनों के स्थान पर ए (गुण) आदेश होता है- आ + इ = ए। जैसे – 4. दीर्घ आ के परे दीर्घ ई होने पर भी, दोनों के स्थान पर ए (गुण) आदेश होता है-आ + ई = ए। जैसे – 5. ह्रस्व अ के परे ह्रस्व उ होने पर दोनों के स्थान पर ओ (गुण) आदेश हो जाता है-अ + उ = ओ।
जैसे – 6. ह्रस्व अ के पश्चात् दीर्घ ऊ होने पर, दोनों के स्थान पर ओ (गुण) आदेश हो जाता है-अ + ऊ = ओ। जैसे – 7. दीर्घ आ के पश्चात् ह्रस्व उ होने पर, दोनों के स्थान पर ओ (गुण) आदेश हो जाता है-आ + उ = ओ। जैसे – 8. दीर्घ आ के पश्चात् दीर्घ ऊ होने पर भी दोनों के स्थान पर ओ (गुण) आदेश हो जाता है-आ + ऊ = ओ। जैसे – 9. ह्रस्व अ से परे ऋ होने पर दोनों के स्थान पर अर् आदेश हो जाता है-अ + ऋ = अर। जैसे – 10. दीर्घ आ के परे ऋ होने पर भी दोनों के स्थान पर अर् आदेश होता है-आ + ऋ = अर्। जैसे – 11. अ (ह्रस्व) के बाद ल होने पर दोनों के स्थान पर अल् आदेश होता है-अ + ल = अल। जैसे – 12. दीर्घ आ के बाद ल होने पर दोनों के स्थान पर अल् आदेश होता है-आ + ल = अंल। जैसे – (ग) वृद्धि सन्धि (Vriddhi Sandhi) अ अथवा आ के अनन्तर यदि ए या ऐ हो तो दोनों के स्थान पर ऐ हो जाता है और यदि ओ या औ हो तो दोनों के स्थान पर औ हो जाता है। इस सन्धि को वृद्धि सन्धि कहते हैं। (ऐ तथा औ वृद्धि स्वर कहलाते हैं)। (घ) यण् सन्धि (Change into Semi-Vowels) ह्रस्व या दीर्घ इ, ई, उ, ऊ, ऋ, ऋ, ल (इक्)
के अनन्तर कोई असवर्ण स्वर (अच्) आए तो इ, उ, ऋ, ल के स्थान पर क्रमशः य, व, र, ल् (यण्) आदेश हो जाते हैं। 2. ई + असमान वर्ण (इ, ई से भिन्न स्वर) = य् + असमान वर्ण 3. उ + असमान वर्ण (उ, ऊ से भिन्न स्वर) = व् + असमान वर्ण 4. ऊ + असमान वर्ण (उ, ऊ से भिन्न स्वर) = व् + असमान वर्ण 5. ऋ + असमान वर्ण (ऋ, ऋ से भिन्न स्वर) = र् + असमान वर्ण 6. ल + असमान वर्ण (ल से भिन्न स्वर) = ल् + असमान वर्ण (ङ) अयादि सन्धि (Change into अय् etc.) ए, ओ, ऐ, औ (एच्) के अनन्तर कोई भी स्वर (अच्) हो तो ए, ओ, ऐ, औ (एच) के स्थान पर क्रमशः अय्, अव्, आय्, आव् (अयादि) हो जाते हैं। 1. ए + कोई स्वर = अय् + कोई स्वर 2. ओ +
कोई स्वर = अव् + कोई स्वर 3. ऐ + कोई स्वर = आय् + कोई स्वर 4. औ + कोई स्वर = आव् + कोई स्वर (च) पूर्वरूप सन्धि यह अयादि सन्धि का अपवाद है। इसके अनुसार पदान्त (पद के अन्त) में ए या ओ होने पर और उसके बाद ह्रस्व अ होने पर अयादि सन्धि का नियम लागू नहीं होता अपितु अ को पूर्वरूप हो जाता है। पूर्वरूप होने पर वह अ पहले शब्द के अंतिम स्वर में मिल जाता है तथा उसकी सूचना मात्र के लिए 5 (अवग्रह) चिह्न लगा दिया जाता है। जैसे – विद्यते + अयनाय = विद्यतेऽयनाय। (छ) पररूप सन्धि यदि अकारान्त उपसर्ग के
बाद ऐसी धातु आए जिसके आदि में ए, ओ हो तो दोनों के स्थान पर क्रम से ए, ओ (पररूप) हो जाता है। जैसे – (ज) प्रकृतिभाव सन्धि (Prakriti Bhava Sandhi) नियम – यदि कोई ऐसा पद हो जो द्विवचनान्त हो तथा उसके अन्त में ई, ऊ, ए में से कोई एक हो तथा आगे कोई स्वर हो तो ई, ऊ, ए ज्यों-के-त्यों रहते हैं। जैसे – 2. व्यञ्जन (हल) सन्धि व्यञ्जन (हल) का किसी व्यञ्जन (हल) के साथ अथवा स्वर (अच्) के साथ मेल होने पर व्यञ्जन में जो परिवर्तन होता है उसे व्यञ्जन (हल) सन्धि कहते हैं। जैसे-तत् + चित्रम् = तच्चित्रम्, तत् + टीकते = तट्टीकते। इन उदाहरणों में त् + च् मिलने से प्रथम अक्षर के स्थान पर च तथा त् + ट् मिलने से प्रथम अक्षर त् के स्थान पर ट् हो गया है। व्यञ्जन सन्धि के अनेक भेद है। जैसे-अनुस्वार श्चुत्व, ष्टुत्व, जश्त्व आदि। 1. अनुस्वार सन्धि 1. पदान्त न् परे यदि च् या छ् हो तो न् के स्थान पर अनुस्वार तथा श् दोनों हो जाते
हैं। जैसे – 2. पदान्त न् से परे ट् या ठ हो तो अनुस्वार और ष् हो जाते हैं। जैसे – 3. पदान्त न् से परे यदि त् थ् हो तो न् के स्थान पर अनुस्वार के साथ ‘स्’ हो जाता है। जैसे – 4. पद के अन्दर रहने वाले न् और म् से परे वर्णों से पहले वर्णों तथा श्, ए, स्, ह में से कोई वर्ण आ जाने पर न और म् को अनुस्वार हो जाता है।
जैसे – 2. परसवर्ण अपदान्त अनुस्वार के अनन्तर यय् (वर्गों के 1, 2, 3, 4 वर्ण और य, र, ल, व) वर्गों में से कोई एक हो तो अनुस्वार को आगे आने वाले वर्ग के वर्ण का पाँचवाँ अक्षर (परसवर्ण) हो जाता है। जैसे – (क) अपदान्त अनुस्वार के बाद कवर्ग होने पर अनुस्वार के स्थान पर छु हो जाता है। जैसे – (ख) अपदान्त अनुस्वार के बाद चवर्ग होने पर अनुस्वार के स्थान पर बू हो जाता है। जैसे – (ग) अपदान्त अनुस्वार के बाद टवर्ग होने पर अनुस्वार के स्थान पर ण हो जाता है। जैसे – (घ) अपदान्त अनुस्वार के बाद तवर्ग होने पर अनुस्वार के स्थान पर न हो जाता है। जैसे – (ड़) अपदान्त अनुस्वार के बाद पवर्ग होने पर अनुस्वार के स्थान में म् हो जाता है। जैसे – (च) पदान्त ‘म्’ से
परे कोई भी व्यञ्जन हो तो म् को अनुस्वार हो जाता है। जैसे – 3. श्चुत्व स् और तवर्ग (त्, थ्, द्, ध्, न्) के साथ श् और चवर्ग (च्, छ्, ज्, झ्, ज्) में से कोई वर्ण आ रहा हो तो स् और तवर्ग (त्, थ्, द्, ध्, न्) के स्थान पर क्रमशः श् और चवर्ग (च्, छ्, ज्, झ्, ज्) हो जाते हैं। जैसे – अपवाद – श् के परे तवर्ग को चवर्ग नहीं होता। जैसे-विश् + नः = विश्नः, प्रश् + नः = प्रश्नः आदि। 4. ष्टुत्व स् और तवर्ग (त्, थ्, द्, ध्, न्) के साथ यदि ष् और टवर्ग (ट्, त्, ड्, द, ण) में से कोई हो तो स् और तवर्ग को क्रमशः ष् और टवर्ग आदेश हो जाते हैं। जैसे – परन्तु कुछ अवस्थाओं में यह नियम लागू नहीं होता। जैसे, यदि पद के अन्त में टवर्ग हो और उसके पश्चात् न् के अतिरिक्त तवर्ग का वर्ण अथवा स् हो तो उसके स्थान पर टवर्ग नहीं होता। जैसे – किन्तु न् को ण होने के उदाहरण मिलते हैं यथा इसी
प्रकार तवर्ग के किसी वर्ण के पश्चात् मूर्धन्य ष् हो तो तवर्ग के वर्ण के स्थान पर टवर्ग का वर्ण नही होता। जैसे – 5. जश्त्व किसी शब्द में यदि झल् अर्थात् वर्णों के पहला, दूसरा, तीसरा और चौथा वर्ण तथा श्, ए, स्, ह हों तथा उसके अनन्तर कोई भी अन्य वर्ण हो तो झलों को जश् (उसी वर्ग का तीसरा वर्ण अर्थात् ग, ज्, ड्, द्, ब्) हो जाता है। नियम व्यापक रहने पर भी भाषा में उदाहरण ऐसे ही मिले हैं जिनके अनुसार क्, च्, ट्, त्, प् पद के अन्त में होते हैं और
अनन्तर कोई वर्ण होता है तो इनका क्रमशः ग्, ज, ड्, द्, ब् हो जाता है। जैसे – 2 (क) सत्व-विधानम् स् से पूर्व अ, आ से भिन्न स्वर होने पर स् के स्थान पर ष् हो जाता है, जैसे- मुनिषु, (मुनि + सु), साधुषु (साधु + सु), रामेषु (रामे + सु) आदि। लतासु में स् को ष् नहीं होगा, क्योंकि यहाँ स् से पूर्व ‘आ’ है। 2 (ख) णत्व-विधानम् अन्य शब्द – ऋणम्, परिणामः, रामचन्द्रेण, वर्णनम्, भीषणम्, पुरुषेण। ऊपर के सब उदाहरणों में ‘ण’ दिखाई देता है।
ध्यान से देखिए कि इन सब में ण् से पूर्व ऋ, ऋ, र्, ष् में से कोई एक वर्ण अवश्य आया है, इसीलिए न् के स्थान पर ण् हुआ है एक ही पद में न् से पहले ऋ/ऋ// में से कोई वर्ण न हो तो न् को ण नहीं होता। नियम (2) पदान्त में न् को ण् नहीं होता। रामान् में र पदान्त न से पूर्व है इसलिए न् को ण् नहीं हुआ। अब ऐसे उदाहरण दिए जा रहे हैं जिन पदों में ऋ/ऋ//ष् के बाद न् को ण् नहीं हुआ और न् इनके अन्त में भी नहीं है। जैसे – सह्यव्यवधान-तालिका इनके बीच में होने पर न् का ण होता है। न् → ण् (सह्य वर्गों के उदाहरण) प्राणाः – सह्य वर्ण (आ) उपर्युक्त सब उदाहरणों में सह्य वर्ण सह्यव्यवधान तालिका में से हैं। इनके बीच में होने पर न् का ण होता है। रचना – असह्यवर्ण [८] रत्नम् – असह्यवर्ण [त्] (i) प्रपञ्चेन – असह्यवर्ण [………………….]. (ii) रत्नेन – असह्यवर्ण [………………..] (iii) आराधना – असह्यवर्ण [………………] (iv) रक्तेन – असह्यवर्ण [………………] (v) दर्शनानि – असह्यवर्ण […………… (vi) मूर्तीनाम् – असह्यवर्ण [………………. (vii) प्रधानम् – असह्यवर्ण [……………….. (viii) प्रतिमानम् – असह्यवर्ण [………………] (ix) रटनम् – असह्यवर्ण […………….] (x) प्रवासेन — असह्यवर्ण [………………] (xi) रटन्तम् – असह्यवर्ण [……………….] (xii) मारीचेन – असह्यवर्ण [………………..] (xiii) प्रलापेन – असह्यवर्ण [……………] (xiv) परिवर्तनम् – असह्यवर्ण [………….] (xv) गृहस्थेन – असह्यवर्ण [……………] (xvi) ईदृशेन – असह्यवर्ण […………..] 3. विसर्ग सन्धि (Visarga Sandhi) 1.
यदि पदान्त ‘र’ के परे वर्णों का पहला, दूसरा तथा श, ष, में से कोई वर्ण हो या अन्य का ‘स्’ हो तो उनके स्थान पर विसर्ग हो जाता है। जैसे – 2. सत्व-विसर्ग से परे च्, छ् होने पर विसर्ग का श् हो जाता है, ट्, ठ् परे होन पर ष् हो जाता है तथा त्, थ् परे होने पर ‘स्’ हो जाता है। जैसे – 3. विसर्ग के बाद श्, ष, स् हों तो विसर्ग को श्, ष, स् विकल्प से होंगे। जैसे – 4. रुत्व-विसर्ग से पहले अ तथा आ को छोड़कर यदि कोई और स्वर हो और विसर्ग से परे कोई स्वर, वर्ग का तीसरा, चौथा और पाँचवाँ वर्ण या य, र, ल, व्, ह में से कोई वर्ण हो तो उस विसर्ग को र् हो जाता है। जैसे – 5. उत्व विधि-यदि विसर्ग से पूर्व ‘अ’ हो और परे भी ह्रस्व ‘अ’ ही हो तो विसर्ग को उ हो जाता है तथा विसर्ग पूर्व अ के साथ मिलकर ‘ओ’ हो जाता है। परवर्ती अ का पूर्वरूप हो जाता है और उसके स्थान में 5 चिह्न लिख दिया जाता है। जैसे – 6. उत्व-यदि विसर्ग के पूर्व अ हो, किन्तु विसर्ग के अनन्तर किसी वर्ग का तीसरा, चौथा या
पाँचवाँ वर्ण हो अथवा य, र, ल, व् तथा ह् में से कोई वर्ण हो तो विसर्ग सहित अ को ओ हो जाता है। जैसे – 7. विसर्ग लोप – (ii) यदि विसर्ग से पूर्व ‘आ’ हो और परे कोई स्वर या वर्ग का तीसरा, चौथा, पाँचवाँ वर्ण अथवा य, र, ल, व, ह इन वर्गों में से कोई हो तो वहाँ पर विसर्ग का लोप हो जाता है और विसर्ग का लोप होने पर यदि कोई सन्धि प्राप्त हो तो वह नहीं होती। प्राक्तनाः + इव = प्राक्तना इव पुरुषः + एव = पुरुष एव भवादृशाः + एव = भवादृशा एव (iii) अ, इ, उ के अनन्तर (विसर्गों के स् के रु का) र विद्यमान हो तथा उसके पश्चात् भी र् हो तो पहले (विसर्ग के) र का लोप हो जाता है। लोप होने पर अ, इ, उ को दीर्घ भी हो जाता है। जैसे – (iv) सः और एषः के पश्चात् कोई व्यञ्जन हो तो इनके विसर्गों का लोप हो जाता है। जैसे – (v) भोः, भगोः के विसर्गों का भी लोप हो जाता है यदि विसर्ग से परे कोई स्वर अथवा वर्ग का तीसरा, चौथा, पाँचवाँ तथा य, र, ल, व, ह में से कोई वर्ण हो। जैसे – 8. नमः, पुरः, तिरः शब्दों के विसर्ग को क्या प् के परे होने पर स् हो जाता है। जैसे अभ्यासः 1. अधोदत्तानां पदानां सहायतया प्रतिवाक्यम् स्थूलपदयोः सन्धिं चित्वा लिखत। (i) देव! तव स्वागताय तत्परः + अस्मि। (ii) कुत्रस्ति जगत् + ईशः। (iii) यज्ञदत्तः वृक्षं वि + अलोकयत्।। (iv) वनेषु गजैः + गम्यते। (v) तत्र + एव मम मित्रम् आगमिष्यति। (vi) सः निर + रसं जलं किमर्थं पिबति? 2. अधोलिखितवाक्येषु स्थूलपदेषु निम्नलिखितानां
पदानां सहायतया उचितं सन्धिच्छेवं सन्धि वा चित्वा लिखत। (i) मुनिः बद्धाञ्जलिः तामवदत्। (ii) एका बलाका तस्य + उपरि विष्ठाम् उदसृजत्। (iii) हितोपदेशे कथानां सङ्कलनम् अस्ति। (iv) साम्प्रतं वदतु, कोऽहम्। (v) एतत् + चिन्तयित्वा राजा पण्डितसभा कारितवान्। (vi) दन्तैः + हीनः शिलाभक्षी परपादेन गच्छति।। 3. अधोदत्तेषु पदेषु शुद्धं पदं चित्वा रिक्तस्थानानि पूरयत। (i) च + इति = ………… (ii) अनयोर्विधेयः (iii) किञ्चित् = …………………. + ………………… 4. अधोलिखितवाक्येषु रेखाङ्कितपदेषु सन्धिच्छेदं सन्धिं वा अधो दत्तैः शुद्धपदैः चित्वा लिखत। (i) आयुर्वेदः तृतीया विद्या आसीत्। (ii) मम +
एतत् सौभाग्यं वर्तते। (iii) तस्मै स्नेहं ददाम्यहम्। (iv) काष्ठात् + अग्निः मथ्यामानात् जायते। (v) भूमिः + तोयं खन्यमाना ददाति। (vi)
तच्चन्दनपादपस्य शाखायां सर्पाः वसन्ति। 5. अधोलिखित रेखाङ्कितपदेषु यथास्थानं सन्धिः/विच्छेदो निम्नस्थानेषु दत्तैः उचितैः पदैः चित्वा लिखत। (i) मुनयः ईशभक्तौ तत् + लीनाः
अभवन्। (ii) राक्षसाः नीरसम् भोजनं खादन्ति। . (iii) आपणेषु + अपि विद्युत् गता। (iv) एते छात्राः सच्छीलाः सन्ति। (v) यदि + अपि त्वं
धर्मेन्द्रः तथापि सत्यं न जानाति। (vi) पुनरपि त्वं अत्र आगमिष्यसि। 6. अधोलिखितम् रेखाङ्कितपदेषु सन्धिच्छेदं/सन्धि अधोलिखितैः शुद्धपदैः चित्वा लिखत। (i) अद्यावकाशः अस्ति। (ii) मुनिः बद्ध + अंजलिः अवदत्। (iii) एका बलाका तस्योपरि विष्ठाम् उदसृजत्। (iv) साम्प्रतं वदतु कोऽहम्। (v) दन्तैहीनः शिलाभक्षी परपादेन गच्छति। (vi) रमा + ईशः विद्यालयं गच्छति। पाठ्यपुस्तके प्रदत्तपदानां सन्धिच्छेदः सन्धिः वा करणम् निम्न रेखांकित पदानां सन्धि विच्छेदं का कृत्वा लिखत पाठः 1 पाठः 2 पाठः 3 पाठः 4 पाठः 5 पाठः 6 NCERT Solutions for Class 11 Sanskritसहसैव संधि कौन सी है?Sandhi Vichchhed of Sadaiv. सदैव शब्द में कौन सी संधि का प्रयोग है?'सदैव' शब्द का उचित संधि विच्छेद 'सदा + एव (आ + ए = ऐ)' होगा। यह वृद्धि संधि का उदाहरण है।
प्रौढ़ में कौन सी संधि है?प्रौढ़ शब्द का सन्धि विच्छेद एवं सन्धि का नाम है
' प्रौढ़ ' गुण संधि है। गुण संधि में दो भिन्न स्वरों की संधि होती है और इसके परिणामस्वरूप एक नवीन स्वर का निर्माण होता है। जैसे- आ + उ = ओ, अ + ऊ = ओ। प्रौढ़ का संधि विच्छेद ' प्र + ऊढ़ ' होगा।
पवन में कौन सी संधि है?पवन शब्द में अयादि संधि है। पवन का शुद्ध संधि विच्छेद है= पो + अन।
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