अहंकार दूर करने के लिए क्या जरूरी है? - ahankaar door karane ke lie kya jarooree hai?

डॉ. अनुराग अग्रवाल

अहंकार शब्द की उत्पत्ति संस्कृत के ‘अहम’ अर्थात ‘मैं’ से हुई है। ‘मैं’ में केंद्रित होने वाला व्यक्ति अहंकार रूपी रोग से ग्रस्त होता है। जब बच्चा जन्म लेता है तो उसके भीतर इस रोग के कोई अणु नहीं होते लेकिन जैसे-जैसे समय बीतता है, वैसे-वैसे बच्चे में प्रतिस्पर्धा का भाव प्रबल होता जाता है। कुछ अलग करने की, दूसरों से बड़ा होने-दिखने की सोच मस्तिष्क पर हावी होती जाती है। इसी से हमारे भीतर अहंकार का बीज पनपने लगता है।

शुरू में तो यह भाव-आवेग हमारे वश में होता है, पर समय बीतने पर यह इतना बलशाली हो जाता है कि हम उसके सेवक बन जाते हैं। हमारे समूचे कार्यकलाप ही अहंकार-पूर्ति से प्रेरित होने लगते हैं। अहंकार वह पात्र बन जाता है जो कभी भरने का नाम नहीं लेता। धन, पद-प्रतिष्ठा और यश पाकर भी हम असंतुष्ट-अतृप्त रह जाते हैं। जीवन उस मरुस्थल के समान बन जाता है, जिसमें अहंकार-तृप्ति की प्यास मृगतृष्णा जैसी बन जाती है।

अहंकार के बलवती होने से जीवन जटिल और संघर्षपूर्ण बन जाता है। अहंकार के मद में हम और अधिक गहरे डूबते चले जाते हैं। असंतोष, ईर्ष्या, लोभ, क्रोध अहंकार रूपी रोग के ही लक्षण हैं। अहंकार के चक्रव्यूह को तोड़ पाना आसान नहीं है। उसके लिए सर्वप्रथम मन-प्राण से नम्रता, समर्पण और त्याग की सीढ़ी पर पांव रखना आवश्यक है। चूंकि अहंकार का घर कपाल में छुपे मन-मस्तिष्क में है, शायद इसीलिए हमारे पूर्वजों ने अनेक ऐसे धार्मिक अनुष्ठानों की रचना की जिनमें हमें अपना सिर झुकाना पड़ता है। प्रतीकात्मक दृष्टि से देखें तो नारियल फोड़ना, केश मुंडवाना आदि सभी अहंकार को चूर करने की निशानी हैं।

अहंकार से छुटकारा पाने की अगली सीढ़ी है- मृत्यु-बोध। हम जिस सुंदर शरीर, सांसारिक उपलब्धि और पद-प्रतिष्ठा पर गुमान करते हैं, वे सभी क्षणभंगुर हैं। फिर भी हम उन्हें पाने के लिए गलत काम करने से नहीं चूकते। पर जब हमारे भीतर यह अंतर्ज्ञान जाग जाता है कि मृत्यु ही जीवन यात्रा का अंतिम स्टेशन है तो अहंकार का भाव समर्पण में होम हो जाता है। इसके अलावा हृदय में प्रेम का दीया जलता रहे तो अहंकार के रोग से मुक्ति पाना आसान होता है। प्रेम की लौ से अहंकार का अंधेरा अपने आप ही छंट जाता है। यदि इस दीपमाला में प्रेम के साथ-साथ समर्पण का दीया भी जल उठे तो अहंकार रोग पास नहीं फटक पाता। मानवता का दिव्य प्रकाश चारों दिशा में अपनी रोशनी फैलाने लगता है।

हम अपने भीतर छुपे अहंकार के अंधेरे को जीत लें तो यह संसार अपने आप स्वर्ग सरीखा हो उठेगा। उसमें न कोई छोटा होगा, न कोई बड़ा। न कोई निर्धन होगा, न कोई धनी। न कोई राजा होगा, न कोई रंक! सभी अपनी-अपनी कर्मयात्रा में लीन रहकर ही जीवन का सच्चा सुख भोग सकेंगे।

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अहंकार को नियंत्रण करने के लिए लोगों की जिंदगी में सद्गुण होना जरूरी है

हर एक इंसान समझता है कि जो वह कर रहा है, वह सबसे अच्छा है। वह जैसी जिंदगी जी रहा है, उससे अच्छा कुछ नहीं हो सकता।

हर एक इंसान समझता है कि जो वह कर रहा है, वह सबसे अच्छा है। वह जैसी जिंदगी जी रहा है, उससे

अच्छा कुछ नहीं हो सकता। कई बार हम यह भूल जाते हैं कि सद्गुणों का जिंदगी में होना बहुत जरूरी है। इंसान यह भूल जाता है कि जब उसके अंदर घमंड पैदा हो जाता है तो फिर उसके कदम उसे प्रभु से दूर ले जाते हैं। अनेक बार प्रभु की खोज में लगे हुए लोगों के मन में भी घमंड आ जाता है। हम ऐसी जिंदगी जिएं, जो नम्रता से भरपूर हो। कुछ लोगों को अपने आप पर बड़ा घमंड होता है, उन्हें लगता है कि उनके कारण ही सब कुछ हो रहा है। वे सोचते हैं कि मैं बहुत अच्छा हूं, मैं बहुत पढ़-लिख गया हूं, मैंने बहुत पैसे कमा लिए हैं, मेरा बहुत बोलबाला है। अपने अहंकार को काबू में न रखा जाए तो फिर इंसान सच्चाई की जिंदगी नहीं जी पाता, क्योंकि जहां पर घमंड आ जाता है, वहां पर आदमी बढ़-चढ़कर बातें करना शुरू कर देता है, वह सच्चाई को भी बदल देता है। झूठी चीज को भी ऐसे दिखाएगा जैसे वह सच्ची हो। उसकी जिंदगी सच्चाई से दूर होनी शुरू हो जाती है। इंसान अहंकार में सच्चाई से बहुत दूर चला जाता है। अहंकार के कारण ही इंसान को गुस्सा भी आता है।

हम यह न सोचें कि सारे गुण जरूरी नहीं हैं। अधूरे और अनियमित विकास से हम अपनी मंजिल तक नहीं पहुंच सकते। हमें काम, क्रोध, लोभ, मोह, और अहंकार को काबू में करना है और एक संतुलित व स्थिर जिंदगी जीनी है। वह स्थिरता हमें तब मिलती है जब हम अंदर (अंतस) की दुनिया की ओर कदम उठाते हैं। स्थिरता हमें तब मिलती है, जब हम प्रभु की नजदीकी पाते हैं। इंसान को शांति तब मिलती है, उसकी जिंदगी में हलचल तब कम होती है, जब वह अंतर्मन में प्रभु की ज्योति का अनुभव करता है। सब कुछ हमारे अंदर है, लेकिन इंसान का ध्यान बाहर की ओर है। अगर हम अपना ध्यान अंदर की ओर करेंगे तो हम असलियत को जान जाएंगे। हमारे अंदर आध्यात्मिक जागृति आ जाएगी और हमारे कदम तेजी से प्रभु की ओर उठने शुरू हो जाएंगे। हम सब प्रभु को पा सकते हैं। हमें सिर्फ उन्हें दिल से, आत्मा की गहराई से पुकारना है।

हमें अपनी रूह को उड़ान देनी है और अंदर की दुनिया में जाना है।

अहंकार दूर करने के लिए क्या जरूरी है? - ahankaar door karane ke lie kya jarooree hai?

[ संत राजिंदर सिंह जी महाराज ]

Edited By: Bhupendra Singh

अपने होने का एहसास होना अच्छी बात है। पर उस एहसास का इस हद तक बढ़ जाना कि कुछ और भान ही न रहे, समस्या पैदा करता है। हम यह स्वीकार ही नहीं कर पाते कि हम भी गलत हो सकते हैं। फिर बात-बेबात हम हर चीज का केंद्र खुद को बनाने लगते हैं। अपने अहं की जड़ों को फैलने से रोकना आसान नहीं होता। 

क्या आपने कभी सोचा है कि कुछ लोग इतने कटु क्यों होते हैं, या बिना किसी कारण आपकी जिंदगी से बाहर क्यों चले जाते हैं? क्या कभी यह सोचा है कि पिछले हजार वर्षों में जितने युद्ध लड़े गए, वे क्यों शुरू हुए? यहां तक कि कुछ युद्ध तो काफी भयानक थे। इनमें न जाने कितनी जिंदगियां खत्म हो गईं। और क्या आपने कभी उन तमाम अपराधों के बारे में सोचा, जो लाखों लोगों की जान ले रहा है? चाहे दांव पर दोस्ती लगे, या युद्ध हो या फिर अपराध, ये सभी एक ही कुख्यात स्रोत से शुरू होते हैं, जो है इगो, यानी हमारा अहंकार। इसे छोड़ना हमारे लिए वाकई बहुत मुश्किल होता है। हमें असलियत में अपने इसी अहंकार से मुक्ति पानी है। मगर इसके लिए सबसे जरूरी यह समझना है कि अहंकार आखिर क्या है? हमें क्यों यह मान लेना चाहिए कि कभी-कभी हम भी गलत हो सकते हैं? अगर आप इन सवालों के जवाब तलाश लेते हैं, तो यकीन मानिए आपका जीवन कहीं ज्यादा सुखद बन जाएगा।

अहंकार क्या है.
चार वर्णों का यह शब्द हमारे कंधे पर बैठे उस शैतान की तरह है, जिसके बारे में हम हमेशा से पढ़ते आए हैं। यह ‘आपका' वैकल्पिक संस्करण है, जो आपकी तमाम असुरक्षा, भय, घृणा और धारणा को पालता-पोसता है। जो आपके लिए सही है, यह उसका विरोधी है। यह आपके नायकत्व का दुश्मन है। यह आपके प्रकाश के लिए अंधेरा है। 

अहंकार, दरअसल एक अपरिपक्व, हाथ-पैर मारने वाला, रोने वाला और तेज चिल्लाने वाला बच्चा है। यह हम सभी के पास है। यह हमसे दूर कहीं नहीं जाता। इससे निपटने का सबसे अच्छा तरीका यही है कि हम इसे शांत करने की कोशिश करें। ऐसा करना कई धर्मों का मूल तत्व भी रहा है, खासतौर से पूर्वी देशों के दर्शन में। हालांकि कुछ भाग्यशाली लोग ही अहंकार को परे धकेलने जैसी उपलब्धि अर्जित कर पाते हैं। ईमानदारी से कहूं, तो उनकी राह पर चलकर आज के दौर में सफलता अर्जित करना हमारी बुद्धिमता शायद ही कही जाएगी। तब हमें ऐसा जीवन जीना होगा, जिसे जीने के लिए ज्यादातर लोग तैयार नहीं होंगे। इसलिए बेहतर विकल्प यही है कि हम खुद को इस लायक बनाएं कि जब अहंकार बड़ा हो जाए, तो उसे हम खुद महसूस कर सकें और उसे शांत करने की दिशा में संजीदगी से काम करें। हम इस काम में कदम-दर-कदम आगे बढ़ सकते हैं, हालांकि इसके लिए हमें खुद को संजीदा बनाना होगा जिससे हम जान सकें कि अहंकार की वजह क्या है?.

कहां-कहां है अहंकार.
अहंकार हर जगह है। इसका लगातार विस्तार होता जाता है। जैसे, अहंकार ही वह वजह है कि हर बातों को आप व्यक्तिगत रूप में ले लेते हैं। अहंकार के कारण ही संबंध-टूटने पर आप सामने वाले को नुकसान पहुंचाते हैं। अहंकार की वजह से ही आप सड़क पर किसी दूसरी गाड़ी द्वारा थोड़ी मुश्किल आने पर भी आप अपनी गाड़ी उसके आगे खड़ी करके उसे परेशान करने लगते हैं। अहंकार के कारण ही हम अपनी गलती नहीं मानते। अहंकार के कारण ही हम दूसरों के साथ रूखा व्यवहार करते हैं। इसी कारण अपनी विफलता या अवहेलना हम कतई पसंद नहीं करते। जाहिर है, अहंकार की यह सूची काफी लंबी है। हर दिन हमारा ऐसी तमाम परिस्थितियों से वास्ता पड़ता है, जब हम कई तरीकों से अपनी प्रतिक्रिया जाहिर करते हैं। दुर्भाग्य से, इनमें से ज्यादातर मामलों में हमारा अहंकार हमारे आड़े आता है। फिर, जब परिस्थितियां हमारे वश में नहीं रह जातीं या वे हमारे खिलाफ चली जाती हैं, तब हम तुरंत खुद को बदकिस्मत मान बैठते हैं और इसका ठीकरा दूसरे लोगों पर फोड़ने लगते हैं। यह एक बीमार मानसिकता है, जिसका लगातार विस्तार होता जाता है। इसका लाभ कई दूसरे लोग भी उठा सकते हैं। फिर भी, हम हैं कि इस मानसिकता को बदलना नहीं चाहते। 

खुद पर दें ध्यान
मुझे यह स्वीकार करने में ऐतराज नहीं है कि जब मैं गलत होता हूं, तो मुझे खुद से नफरत होती है। शायद यह मानने वाला मैं पहला इंसान हूं। इतना ही नहीं, जब मुझे नकारा जाता है, तब भी मुझे नफरत होती है। मैं एक बिंदु पर असफलता से भी नफरत करता हूं और मैं इसे तब तक टालना पसंद करता हूं, जब तक मैं ऐसा कर सकता हूं। मैं इसलिए इन चीजों से डरता हूं, क्योंकि यह मुझे अच्छा महसूस नहीं कराएगा। मेरा मानना है कि इस तरह की इंसानी भावनाएं कभी खत्म नहीं होतीं। थोड़ी-बहुत हमेशा बनी रहती हैं। मगर मैं इस मामले में भी पहला इंसान हूं, जो अपने अहंकार पर नियंत्रण रखता है। खुद पर पर्याप्त काम और अनवरत ध्यान करने की वजह से मैं वह सटीक क्षण बता सकता हूं, जब मेरा अहंकार दिखता है।.

गलती मानने में हर्ज नहीं
मुझे यह भी बखूबी पता है कि कब भय की अधिकता के कारण मैं कुछ खास कदम नहीं उठा पाता। क्या इसे करना आसान है? क्या बस सिर्फ कुछ महसूस कर लेने से अपने अहंकार पर काबू पाया जा सकता है? माफ कीजिए, यह यूं ही नहीं होगा। तब मैं जहन्नुम का वासी हो जाऊंगा, और मेरे कंधे पर सवार प्यारे शैतान को शांत करना असंभव हो जाएगा। मुझे यकीन है कि आप भी कुछ ऐसा ही महसूस कर रहे होंगे। मगर प्रायश्चित या इस समस्या के हल की दिशा में पहला कदम है, अपनी गलतियों को स्वीकार लेना। मैंने अपनी कमियों को स्वीकार करने का प्रयास किया है। आप भी ऐसा करने की कोशिश करें। 

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अहंकार कम करने के लिए क्या करना चाहिए?

-अपने पास-पडोस या ऑफिस की ऐसी एक्टिविटीज में शामिल हों, जहां आपको टीम भावना के साथ काम करने मौका मिले। -अपने से छोटों (उम्र, पद, सामाजिक या आर्थिक दृष्टि से ) के साथ कभी विनम्र व्यवहार करके देखें। इससे उनके दिल में आपकी इज्जत बढ जाएगी। -आत्मविश्वास बढाने की कोशिश करें।

अहंकार क्या नष्ट करता है?

अहंकार से मनुष्य की बुद्धि नष्ट हो जाती है। अहंकार से ज्ञान का नाश हो जाता है। अहंकार होने से मनुष्य के सब काम बिगड़ जाते हैं। जब हम कामयाबी की ओर बढ़ते हैं, तो हमारे साथ अहंकार भी बढ़ता है और जब हम असफल होते हैं, तो अहंकार भी उतरता जाता है।

अहंकार को कैसे तोड़ा जाता है?

अहंकार के चक्रव्यूह को तोड़ पाना आसान नहीं है। उसके लिए सर्वप्रथम मन-प्राण से नम्रता, समर्पण और त्याग की सीढ़ी पर पांव रखना आवश्यक है। चूंकि अहंकार का घर कपाल में छुपे मन-मस्तिष्क में है, शायद इसीलिए हमारे पूर्वजों ने अनेक ऐसे धार्मिक अनुष्ठानों की रचना की जिनमें हमें अपना सिर झुकाना पड़ता है।

अहंकार को कैसे नियंत्रित करें?

अहंकार को कैसे नियंत्रित किया जाए, इसका रहस्य यह है कि आप अपनी बात सुनने के लिए तैयार रहें। जब आप अपनी बात सुनते हैं, तो आप सीखेंगे कि अहंकार को कैसे नियंत्रित किया जाए। जब आपका आत्म-सम्मान कम होगा तो आपका अहंकार नियंत्रण में होगा। यह एक प्राकृतिक प्रतिक्रिया है और इसे काफी आसानी से नियंत्रित किया जा सकता है।