Shyam.Vir @timesgroup.com ग्रेटर नोएडा : 'गुर्जर तो चोर होते हैं, डाकू-लुटेरे होते हैं, भैंस चोर होते हैं।' ये लाइनें अक्सर गुर्जर समाज के लोगों को सुनने को मिल जाती हैं। थानों तक में दरोगा और इंस्पेक्टर तक ये बातें बोल जाते हैं। इसी बात को लेकर दो साल पहले दादरी के एक कोतवाल के खिलाफ लोग धरने तक पर बैठ गए थे। कई दिन तक आंदोलन चला था। आजादी के 71 साल बाद भी गुर्जर समाज अपराधी
जाति का दाग छुड़ाने के लिए छटपटा रहा है। इस दाग को छुड़ाने के लिए सोशल मीडिया में अभियान से लेकर सेमिनार और गोष्ठियां तक आयोजित कर समाज के इतिहास को बताया जा रहा है। आजादी के आंदोलन में सक्रिय भूमिका निभाने के कारण अंग्रेजों ने गुर्जर को अपराधी जाति में शामिल कर दिया था। आजादी के बाद सरकार ने क्रिमिनल ट्राइब एक्ट को समाप्त तो कर दिया, लेकिन अभी भी ऐसे लोग और यहां तक कि अफसर मिल जाएंगे जो गुर्जर समाज को अपराधी के रूप में देखते हैं। गुर्जर परिवार संगठन के सदस्य सुरेंद्र नागर कहते हैं कि
अंग्रेजों ने क्रिमिनल ट्राइब एक्ट 1871 के जरिए गुर्जरों को अपराधी जाति घोषित किया था। 1857 में आजादी की पहली क्रांति के दौरान मेरठ में कोतवाल धन सिंह गुर्जर ने क्रांतिकारियों तक संदेश पहुंचाने के लिए अंग्रेजों के घोड़े कैदियों को दे दिए थे। फरीदाबाद, गुड़गांव, ग्रेटर नोएडा के दादरी, सहारनपुर और गाजियाबाद एरिया में गुर्जरों ने युद्ध में अंग्रेजों को बड़ी हानि पहुंचाई थी। दादरी में राव उमराव सिंह को राजा घोषित कर दिया गया था। बाद में अंग्रेजों ने दमन चक्र चलाया। अंग्रेजों ने क्रिमिनल ट्राइब एक्ट
1871 पारित कर गुर्जरों को आपराधिक जाति घोषित कर दिया। क्रांति के लिए अंग्रेजों के घोड़े चोरी करने के कारण पशु चोर का तमगा भी दे दिया। गुर्जर जागीरदारों की जमीनें अपने चाटुकारों को तोहफे में दीं। मार्शल कौम होने के बावजूद अंग्रेजों ने गुर्जरों की सेना में रेजिमेंट नहीं बनाई। आजादी के बाद गुर्जर जाति को अपराधी जाति से बाहर कर दिया, लेकिन कुछ लोगों की मानसिकता नहीं बदली है। लिहाजा वह समाज को जागरूक कर रहे हैं। समाज के इतिहास के बारे में http://gurjartoday.com के नाम से वेबसाइट बनाकर लोगों को
जागरूक कर रहे हैं। गुर्जर टुडे, वीर गुर्जर क्षत्रिय और गुर्जर परिवार के नाम से फेसबुक पेज भी बनाए गए हैं। हर साल गुर्जर दिवस मनाकर भी जागरूक कर रहे हैं। - सुरेंद्र कुमार नागर, सदस्य गुर्जर परिवार गुर्जर समाज के गौरवपूर्ण इतिहास के बारे में लोगों को सही जानकारी नहीं है। अंग्रेजों से लोहा लेने के कारण अपराधी जाति में शामिल कर दिया गया था। आज भी कुछ लोगों की मानसिकता नहीं बदली है। -डॉ. आनंद आर्य, समाजसेवी। मुझे कई ऐसे लोग मिलते हैं जो गुर्जरों को लेकर गलत कमेंट करते हैं। चोर तक
कहते हैं। जानकारी न होने के कारण समाज के लोगों के पास जवाब नहीं होता। लिहाजा उन्हें समाज का इतिहास बताया जा रहा है। -अमित डेढा, सदस्य गुर्जर परिवार। Navbharat Times News App: देश-दुनिया की खबरें, आपके शहर का हाल, एजुकेशन और बिज़नेस अपडेट्स, फिल्म और खेल की दुनिया की हलचल, वायरल न्यूज़ और धर्म-कर्म... पाएँ हिंदी की ताज़ा खबरें डाउनलोड करें NBT ऐप लेटेस्ट न्यूज़ से अपडेट रहने के लिए NBT फेसबुकपेज लाइक करें गूजरों का अतीत29 दिसंबर 2010 इमेज कैप्शन, गूजर पिछले कुछ वर्षों से आरक्षण के लिए आंदोलन चला रहे हैं. राजस्थान में अनुसूचित जनजाति का दर्जा दिए जाने की माँग कर रहे गूजरों का इतिहास काफ़ी पुराना है भारत के साथ-साथ पाकिस्तान में भी गूजर समुदाय के लोगों की काफ़ी संख्या है लेकिन वहाँ पर वे हिंदू नहीं, मुसलमान हैं. भारत में गूजर जम्मू कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, दिल्ली और हरियाणा में भी है. हिमाचल और जम्मू कश्मीर में जहां गूजरों को अनुसूचित जनजाति का दर्ज़ा दिया गया है वहीं राजस्थान में ये लोग अन्य पिछड़ा वर्ग में आते हैं. कुछ वर्ष पहले राजस्थान में जाटों को ओबीसी में शामिल किए जाने के बाद से गूजरों में असंतोष है. नौकरियों में बेहतर अवसर की तलाश में गूजर अब ये माँग कर रहे हैं कि उन्हें राजस्थान में अनुसूचित जनजाति का दर्जा मिले. हालांकि कुछ पर्यवेक्षकों का मानना है कि राजस्थान के समाज में इनकी स्थिति जनजातियों से कहीं बेहतर है. प्राचनी काल में युद्ध कला में निपुण रहे गूजर मुख्य रूप से खेती और पशुपालन के व्यवसाय से जुड़े हुए हैं. राजपूतों की रियासतों में गूजर अच्छे योद्धा माने जाते थे और इसीलिए भारतीय सेना में अभी भी इनकी अच्छी ख़ासी संख्या है. इतिहास प्राचीन इतिहास के जानकारों के अनुसार गूजर मध्य एशिया के कॉकेशस क्षेत्र ( अभी के आर्मेनिया और जॉर्जिया) से आए थे लेकिन इसी इलाक़े से आए आर्यों से अलग थे. कुछ इतिहासकार इन्हें हूणों का वंशज भी मानते हैं. भारत में आने के बाद कई वर्षों तक ये योद्धा रहे और छठी सदी के बाद ये सत्ता पर भी क़ाबिज़ होने लगे. सातवीं से 12 वीं सदी में गूजर कई जगह सत्ता में थे. गुर्जर-प्रतिहार वंश की सत्ता कन्नौज से लेकर बिहार, उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र और गुजरात तक फैली थी. मिहिरभोज को गुर्जर-प्रतिहार वंश का बड़ा शासक माना जाता है और इनकी लड़ाई बिहार के पाल वंश और महाराष्ट्र के राष्ट्रकूट शासकों से होती रहती थी. 12वीं सदी के बाद प्रतिहार वंश का पतन होना शुरू हुआ और ये कई हिस्सों में बँट गए. गूजर समुदाय से अलग हुए सोलंकी, प्रतिहार और तोमर जातियाँ प्रभावशाली हो गईं और राजपूतों के साथ मिलने लगीं. अन्य गूजर कबीलों में बदलने लगे और उन्होंने खेती और पशुपालन का काम अपनाया. ये गूजर राजस्थान, हिमाचल प्रदेश, जम्मू कश्मीर जैसे राज्यों में फैले हुए हैं. इतिहासकार कहते हैं कि विभिन्न राज्यों के गूजरों की शक्ल सूरत में भी फ़र्क दिखता है. राजस्थान में इनका काफ़ी सम्मान है और इनकी तुलना जाटों या मीणा समुदाय से एक हद तक की जा सकती है. उत्तर प्रदेश, हिमाचल और जम्मू-कश्मीर में रहने वाले गूजरों की स्थिति थोड़ी अलग है जहां हिंदू और मुसलमान दोनों ही गूजर देखे जा सकते हैं जबकि राजस्थान में सारे गूजर हिंदू हैं. मध्य प्रदेश में चंबल के जंगलों में गूजर डाकूओं के गिरोह सामने आए हैं. समाजशास्त्रियों के अनुसार हिंदू वर्ण व्यवस्था में इन्हें क्षत्रिय वर्ग में रखा जा सकता है लेकिन जाति के आधार पर ये राजपूतों से पिछड़े माने जाते हैं. पाकिस्तान में गुजरावालां, फैसलाबाद और लाहौर के आसपास इनकी अच्छी ख़ासी संख्या है. भारत और पाकिस्तान में गूजर समुदाय के लोग ऊँचे ओहदे पर भी पहुँच हैं. इनमें पाकिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति फ़ज़ल इलाही चौधरी और कांग्रेस के दिवंगत नेता राजेश पायलट शामिल हैं. पशु चोर कौन बिरादरी है?'गुर्जर तो चोर होते हैं, डाकू-लुटेरे होते हैं, भैंस चोर होते हैं। ' ये लाइनें अक्सर गुर्जर समाज के लोगों को सुनने को मिल जाती हैं। थानों तक में दरोगा ... ग्रेटर नोएडा : 'गुर्जर तो चोर होते हैं, डाकू-लुटेरे होते हैं, भैंस चोर होते हैं।
इतिहास चोर कौन है?अगर बात इतिहास की है तो मैं एक हकीम के बारे में बता सकता हूँ जो भारतीय इतिहास के सबसे प्रसिद्ध हकीमो में से है , उनका नाम हकीम अजमल खान है जो एक स्वतंत्रता सेनानी भी रहे है । उनका जन्म 11 फरवरी 1868, को दिल्ली में हुआ था और उनकी मृत्यु 29 दिसम्बर, 1927, को दिल्ली में ही हुई थी ।
महाभारत में गुर्जर कौन थे?महाभारत काल से पहले तथा महाभारत के समय गुर्जरो के चेची तथा कुषाण वंश के राजनैतिक स्तर पर शक्तिशाली होने के प्रमाण मिलते है। कुषाणों को ऋषिक,देवपुत्र तथा तुषार भी कहा जाता था। कुषाणों ने महाभारत के युध्द में भाग लिया था क्योंकि वे कुरूवंशियों के निकट संबंधी थे।
गुर्जर कौन से वंश के हैं?गुर्जर अभिलेखो के हिसाब से ये सूर्यवंशी या रघुवंशी हैं। प्राचीन महाकवि राजशेखर ने गुर्जरों को 'रघुकुल-तिलक' तथा 'रघुग्रामिणी' कहा है। ७ वी से १० वी शतब्दी के गुर्जर शिलालेखो पर सुर्यदेव की कलाकृतियाँ भी इनके सुर्यवंशी होने की पुष्टि करती हैं।
|