रेवती नक्षत्र के मूल कितने दिन के होते हैं - revatee nakshatr ke mool kitane din ke hote hain

Daily Horoscope : जानें सभी राशियों का आज का दैनिक राशिफल? आज के राशिफल में आपके लिए नौकरी, व्यापार, लेन-देन, परिवार और मित्रों के साथ संबंध, सेहत और दिन भर में होने वाली शुभ-अशुभ घटनाओं का भविष्यफल होता है।

ज्योतिष की सटीक व्याख्या और फल के लिए हमेशा नक्षत्रों पर विचार किया जाता है. नक्षत्रों के अलग अलग स्वभाव होते हैं और उनके अलग अलग फल भी होते हैं. कुछ नक्षत्र कोमल होते हैं कुछ कठोर और कुछ उग्र होते हैं . उग्र और तीक्ष्ण स्वभाव वाले नक्षत्रों को ही मूल नक्षत्र , सतैसा या गण्डात कहा जाता है. जब बालक इन नक्षत्रों में जन्म लेता है तो विशेष तरह के प्रभाव देखने में आते हैं. इन नक्षत्रों में जन्म लेने का असर सीधा बच्चे के स्वभाव और स्वास्थ्य पर पड़ता है.  

कौन-कौन से होते हैं मूल नक्षत्र और और उनका प्रभाव क्या है ?

- मूल ,ज्येष्ठा और आश्लेषा नक्षत्र मुख्य मूल नक्षत्र हैं और अश्विनी,रेवती और मघा सहायक मूल नक्षत्र हैं.

- इस प्रकार कुल मिलाकर 6 मूल नक्षत्र हैं- अश्विनी, आश्लेषा, मघा, ज्येष्ठा, मघा और रेवती.

- जब बालक का जन्म इनमे होता है तो बालक के स्वास्थ्य की स्थिति संवेदनशील हो जाती है,

- माना जाता है कि पिता को नवजात का मुख नहीं देखना चाहिए जब तक इसकी शांति न करा ली जाए.

- वास्तविकता में केवल नक्षत्रों के आधार पर ही सारा निर्णय नहीं लेना चाहिए

- पूरी तरह से कुंडली देखकर ही इसका निर्णय करें.

अगर बच्चे का जन्म मूल नक्षत्र में हुआ है तो किन बातों का ख्याल रखें ?

- सबसे पहले ये देखें की बच्चे के स्वास्थ्य की स्थिति क्या है और किस कारण से उसको समस्या हो सकती है.

- पिता और माता की कुंडली जरूर देखें कि उनका और उनपर इस नवजात के जन्म का क्या प्रभाव है.

- अगर बच्चे का बृहस्पति और चन्द्रमा मजबूत है तो बच्चे के स्वास्थ्य का संकट समाप्त हो जाता है.

- इसी प्रकार से अगर पिता या परिजनों के ग्रह ठीक हैं तो भी चिंता नहीं करनी चाहिए.

- कोई भी समस्या संस्करों का खेल है , किसी बच्चे का इसमें कोई दोष नहीं होता.

- वैसे भी 8 वर्ष के बाद मूल नक्षत्र का प्रभाव विशेष नहीं रहता

क्या करें उपाय अगर मूल नक्षत्र का दुष्प्रभाव तुरंत पड़ने की सम्भावना हो ?

- जन्म के सत्ताईस दिन बाद वही नक्षत्र आने पर नक्षत्र (मूल) शांति करा लें.

- बच्चे के आठ वर्ष तक हो जाने तक नित्य प्रातः माता-पिता "ॐ नमः शिवाय" का जाप करें.

- अगर उम्र 8 वर्ष से ज्यादा हो तो मूल नक्षत्र की शांति की आवश्यकता नहीं होती

- क्योंकि ज्यादा संकट आम तौर पर 8 वर्ष तक रहता है

- अगर मूल नक्षत्र के कारण बच्चे का स्वास्थ्य कमजोर रहता हो तो बच्चे की माता को पूर्णिमा का उपवास रखना चाहिए

वृश्चिक राशि और ज्येष्ठा नक्षत्र की समाप्ति एक साथ होती हैं तथा धनु राशि और मूल नक्षत्र का आरम्भ यही से होता है। इसलिए इस स्थिति को ज्येष्ठा गण्ड और मूल नक्षत्र कहा जाता हैं। मीन राशि और रेवती नक्षत्र एक साथ समाप्त होते हैं तथा मेष राशि व अश्विनि नक्षत्र की शुरुआत एक साथ होती है। इसलिए इस स्थिति को रेवती गण्ड और अश्विनि मूल नक्षत्र कहा जाता हैं।

1. जब बालक इन नक्षत्रों में जन्म लेता है तो विशेष तरह के प्रभाव देखने में आते हैं। इन नक्षत्रों में जन्म लेने का असर सीधा बच्चे के स्वभाव और स्वास्थ्य पर पड़ता है। जब बालक के स्वास्थ्य की स्थिति संवेदनशील हो जाती है। वास्तविकता में केवल नक्षत्रों के आधार पर ही सारा निर्णय नहीं लेना चाहिए। पूरी तरह से कुंडली देखकर ही इसका निर्णय करें।

2. अगर बच्चे का जन्म मूल नक्षत्र में हुआ है तो सबसे पहले ये देखें की बच्चे के स्वास्थ्य की स्थिति क्या है और किस कारण से उसको समस्या हो सकती है। पिता और माता की कुंडली जरूर देखें कि उनका और उन पर इस नवजात के जन्म का क्या प्रभाव है।

3. कहते हैं कि मुला, मघा और अश्विनी के प्रथम चरण का जातक पिता के लिए, रेवती के चौथे चरण और रात्रि का जातक माता के लिए, ज्येष्ठ के चतुर्थ चरण और दिन का जातक पिता तथा आश्लेषा के चौथे चरण संधिकाल में जन्म हो तो स्वयं के लिए जातक हानिकारक होता है।

4. मूल नक्षत्र में जन्म लेने वाला बालक शुभ प्रभाव में है तो वह सामान्य बालक से कुछ अलग विचारों वाला होता है यदि उसे सामाजिक तथा पारिवारिक बंधन से मुक्त कर दिया जाए तो ऐसा बालक जिस भी क्षेत्र में जाएगा एक अलग मुकाम हासिल करेगा।

5. ऐसे बालक तेजस्वी, यशस्वी, नित्य नव चेतन कला अन्वेषी होते हैं। यह इसके अच्छे प्रभाव हैं। अगर वह अशुभ प्रभाव में है तो इसी नक्षत्रों में जन्मा बच्चा क्रोधी, रोगी, र्इष्यावान होगा इसमें कोई आश्चर्य नहीं है।

6. मूल नक्षत्र के जातक आमतौर पर लक्ष्य केंद्रित होते हैं तथा ये जातक कठिन से कठिन लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए भी तब तक प्रयास करते रहते हैं, जब तक या तो ये जातक अपने लक्ष्य को प्राप्त न कर लें या फिर इन जातकों की सारी ऊर्जा समाप्त न हो जाए।

7. मूल नक्षत्र का स्वामी केतु है, वहीं राशि स्वामी गुरु है इसलिए इस नक्षत्र में जन्मे व्यक्ति पर केतु और गुरु का प्रभाव जीवनभर रहता है। केतु जहां नकारात्मक घटनाओं को जन्म देता हैं, वहीं गुरु जीवन में सकारात्मक ऊर्जा का विकास करता है। मूल नक्षत्र के चारों चरण धनु राशि में आते हैं। धनु राशि का स्वामी गुरु है तो जातक को चाहिए कि वह धर्मपरायण और विष्णु, हनुमान भक्त बना रहे इसी में उसकी भलाई है।

8. मूल नक्षत्र के जातक अपने विचारों पर दृढ़ होते हैं और इनमें निर्णय लेने की क्षमता भी गजब की होती है। पढ़ाई-लिखाई में अव्वल होते हैं। ये खोजी बुद्धि के होते हैं। शोधकार्य में सफलता मिल सकती है। ये कुशल और निपुण व्यक्ति होने के साथ- साथ उत्कृष्ट वक्ता भी होते हैं। ये डॉक्टर या उपचारक भी हो सकते हैं। ये भावुक प्रवृत्ति के होने के कारण दयालु और सभी का भला करने वाले भी होते हैं।

9. यदि केतु और गुरु की स्थिति कुंडली में सही नहीं है तो ये बेहद जिद्दी किस्म के हो जाते हैं और अपनी मनमानी करते हैं। इनकी विनाशकारी कार्यों में रुचि बढ़ जाती है। ऐसे में इनके गलत मार्ग पर चलने के खतरे भी बढ़ जाते हैं। इनमें ईर्ष्या की भावना प्रबल हो जाती है। ये अपनी शक्ति का दुरुपयोग करते हैं। ये तंत्र-मंत्र या पारलौकिक विद्या के चक्कर में पड़कर अपना करियर बर्बाद कर लेते हैं। इनके पैरों में हमेशा तकलीफ बनी रह सकती है। यदि ऐसा जातक माता-पिता का कहना मानते हुए विष्णु या हनुमानजी की शरण में रहे, तो सभी तरह की मुसीबतों से बच सकता है।

10. गंडांत योग में जन्मे जातक : पूर्णातिथि (5, 10, 15) के अंत की घड़ी, नंदा तिथि (1, 6, 11) के आदि में 2 घड़ी कुल मिलाकर 4 तिथि को गंडांत कहा गया है। इसी प्रकार रेवती और अश्विनी की संधि पर, आश्लेषा और मघा की संधि पर और ज्येष्ठा और मूल की संधि पर 4 घड़ी मिलाकर नक्षत्र गंडांत कहलाता है। इसी तरह से लग्न गंडांत होता है। इस संबंध संपूर्ण जानकारी हेतु आगे क्लिक करें... गंडांत योग में जन्मे जातक का भविष्य और उपाय

रेवती के मूल कितने दिन के होते हैं?

यह क्रिया 27 दिनों तक नियमित करना चाहिए। इसके बाद 28वें दिन विधिवत पूजा करके बच्चे को देखना चाहिए। जिस बच्चे का जन्म इस नक्षत्र में जन्म हुआ है उससे सम्बन्धित देवता तथा ग्रह की पूजा करनी चाहिए। इससे नक्षत्रों के नकारात्मक प्रभाव में कमी आती है।

रेवती के मूल कैसे होते हैं?

यदि आपका जन्म रेवती नक्षत्र में हुआ है तो आप एक मध्यम कद और गौर वर्ण के व्यक्ति हैंरेवती जातकों के व्यक्तित्व में संरक्षण, पोषण और प्रदर्शन प्रमुख हैं। वह निश्चल प्रकृति के होते हैं, जो किसी के साथ छल कपट करने में स्वयं डरता है। किसी की जरा सी विपरीत बात इनसे सहन नहीं होती है।

मूल नक्षत्र कितने दिन के होते हैं?

इस तरह बनते हैं मूल नक्षत्र बच्चे के जन्म लेने के 27 दिन बाद ही मूल नक्षत्र शांत करवाने चाहिए। नक्षत्रों और कुंडलियों के आधार पर इसका निर्णय लेना चाहिए।

रेवती नक्षत्र मूल है क्या?

आकाश मंडल में स्थित 27 नक्षत्रों में रेवती नक्षत्र अंतिम नक्षत्र है। वैदिक ज्योतिष के अनुसार, रेवती नक्षत्र 32 तारों का समूह से मिलकर बना है, जो दिखने में एक मृदंग की आकृति जैसा है। इस नक्षत्र में जन्मे लोगों की राशि मीन है और इस नक्षत्र का स्वामी बुध व राशि स्वामी देवताओं के गुरु बृहस्पति हैं।