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________________________________________ राष्ट्रीय आय की परिभाषा तथा इसके संबंध मैं विभिन्न दृष्टिकोण (Definition Of National Income and It's Interpretation)साधारण शब्दों में किसी देश में एक वर्ष में जितना उत्पादन होता है चाहे तो भौतिक पदार्थों का हो और चाहे सेवाओं का , वहीं उस देश की आय है ।इसी आय में जो परिवर्तन आते हैं , उन्हीं से हम अनुमान लगा सकते हैं कि देश की समस्त अर्थव्यवस्था की क्या दशा है — यदि आय बढ़ रही है तो हम कहेंगे कि आर्थिक स्थिति अच्छी है और यदि कम हो जाए तो हमें मालूम हो जाएगा कि अर्थव्यवस्थाकी स्थिति असन्तोषजनक है , शायद बहुत बेरोजगारी हो गई है ।स्थिति सुधारने के लिए उचित कदम
उठाने की आवश्यकता है ।जो आर्थिक उतार - चढ़ाव ( economic fluctuations ) अर्थव्यवस्था में आते रहते हैं , उनका पता भी हमें राष्ट्रीय आय में हुए परिवर्तनों से लगता है ।शायद आप राष्ट्रीय आय की डॉ .मार्शल द्वारा प्रस्तुत परिभाषा से पहले ही परिचित हों ।फिर भी अच्छा होगा कि इसका उल्लेख कर दिया जाए ।डॉ .मार्शल के अनुसार , “ किसी एक देश का श्रम तथा पूँजी इसके प्राकृतिक साधनों का प्रयोग करके पदार्थों का कोई एक कुल जोड़ प्रति वर्ष उत्पादन करते हैं ;इस कुल जोड़ में भौतिक तथा अभौतिक पदार्थ , अर्थात् सब
प्रकार की सेवाएँ , सम्मिलित होती हैं ।यही जोड़ उस देश की सही वार्षिक आय Page No. 1 यह सारी बात उदाहरण की सहायता से शीघ्रता से समझ में आ जाएगी । एक ऐसी अर्थव्यवस्था का करून जसमें केवल दो वर्ग हैं , परिवार और फ । मान लीजिए इस अर्थव्यवस्था में में पदार्थों का उत्पादन कर परिवार फम को उत्पादन के साधन प्रस्तुत करते हैं । अब उत्पादन करने के लिए फर्ने उत्पादन के साधना का काम लगाती हैं और उन्हें उनकी सेवाओं की
कीमत देती हैं , जो कि उत्पादन के साधनों की ( अर्थात परिवारों की आय बन जाती है । परिवार उत्पादित पदार्थों को फर्मों से खरीदते हैं । उत्पादित वस्तुओं की बिक्री से जो मुद्रा फर्मों को प्राप्त होती हैं . वहीं परिवारों को , जो उत्पादन साधन प्रस्तत करते हैं , उनके पारिश्रमिक के रूप में अथति मजदरी , किराया ब्याज और लाभ के रूप में मिलती है । परिवारों की यह आय , व्यय बन जाती है , क्योंकि इस राशि से ही वे फर्मों से पदार्थ खरीदते हैं । इस प्रकार फर्मों से परिवारों की ओर आय का प्रवाह बहता है , क्योंकि
परिवार उत्पादन - साधन फर्मों को प्रस्तुत करते हैं और जब परिवार व्यय करते हैं तो उसके बदले पदार्थों का प्रवाह उनकी ओर चलता है । इसे भी देखे कृपया...... राष्ट्रीय आय तथा राष्ट्रीय उत्पाद (National Income and Nation Product)उपर्युक्त विश्लेषण से स्पष्ट है कि किसी समाज के सभी लोगों की आयों के जोड को राष्ट्रीय आय कहा जाता है । इस राष्ट्रीय आय का राष्ट्रीय उत्पाद से घनिष्ट सम्बन्ध है । वास्तव में दोनों एक ही चीज के दो भिन्न नाम है । समाज के विभिन्न लोग जो आय प्राप्त करते हैं वह उनको उत्पादन के लिए श्रम , भमि , पंजी , उद्यमी सेवाएँ अर्पित करने से मिलती है । अतः श्रमिकों को आय उनके द्वारा उत्पादक फर्मों को सेवाएँ अर्पित करने के लिए मजदुरी के रूप में मिलती । हैं । इस प्रकार भूमि के मालिकों को आय भूमि की सेवाएँ उत्पादक फर्मों को बेचने पर किराए अथवा लगान के रूप में मिलती हैं , पूँजीपति को आय अपनी मुद्रा पूँजी उधार देने पर ब्याज के रूप में प्राप्त होती हैं और उद्यमी के आय अपने उद्यम के बदले ( फर्मों को शुरू करने और उनको चलाने के लिए ) लाभ के रूप में मिलती हैं । स्पष्ट है कि देश के विभिन्न व्यक्ति या तो मजदूरी से आय प्राप्त करेंगे या मुद्रा पूँजी के व्याज से , भूमि के किराए से या उद्यम के लाभ से । एक वर्ष में कमाई गई कुल मजदूरी , कुल भूमि किराया , कुल व्याज और कुल लाभ का जोड़ उस देश की राष्ट्रीय आय है । विभिन्न परिवारों को आय उत्पादक फर्मों से प्राप्त होती है जो उनके श्रम , भूमि , पूंजी आदि की सेवाएँ वस्त उत्पादन करने के लिए प्रयोग करती हैं । विभिन्न परिवारों द्वारा कमाई गई आय वस्तुओं के उत्पादन करने । उत्पादक फर्मों द्वारा एक वर्ष में किए गए वस्तुओं के कुल उत्पादन के मूल्य को राष्ट्रीय उत्पाद कहते हैं |अतः राष्ट्रीय उत्पाद को कोई उत्पादित वस्तुओं की उनकी बाजार कीमत से गुनाह करके ज्ञात किया जाता है .
अतः कुल राष्ट्रीय उत्पाद ( मुद्रा के रूप में ) जो उत्पादक फर्मों द्वारा एक वर्ष में उत्पादित किया जाता है , वह उन । सभी साधनों में वितरित होता है , जिन्होंने उसके उत्पादन में योग दिया है । अतः इसी राष्ट्रीय उत्पाद ( मूल्य रूप में ) से । ही उन परिवारों को मजदूरी दी जाएगी जो उत्पादक फर्मों को अपना श्रम बेचते हैं । इसी राष्ट्रीय उत्पाद के कुल मूल्य से ही भू - स्वामियों को किराया , पूँजीपतियों को ब्याज प्राप्त होगा । मजदूरी , किराया ; ब्याज अदा करने के बाद जो शेष । बच जाएगा , वह लाभ होगा , जो उद्यमियों को प्राप्त होगा । परिवारों में से ही कई व्यक्ति उद्यमी होते हैं जो उत्पादक फर्मों । को स्थापित करते हैं और उनको चलाने का कार्य करते हैं और अपनी इन सेवाओं के बदले में लाभ प्राप्त करते हैं । स्पष्ट है कि राष्ट्रीय उत्पाद ( देश में कुल उत्पादन का मूल्य ) मजदूरी , भूमि , किराया , ब्याज , लाभ में पूरी तरह वितरित हो जाना । है । जैसा कि ऊपर बताया गया है , कुल मजदूरी , कुल ब्याज , कुल किराया और कुल लाभ का जोड़ राष्ट्रीय आय है । । अत : राष्ट्रीय उत्पादन ( देश में कुल उत्पादन का मूल्य ) राष्ट्रीय आय के बराबर होगा । | ऊपर के निष्कर्ष को हम निम्नलिखित समीकरण में व्यक्त कर सकते हैं : उपर्युक्त व्याख्या से स्पष्ट है कि राष्ट्रीय आय और राष्ट्रीय उत्पाद एक ही चीज हैं । वे एक चीज के दो भिन्न दृष्टिकोणों से देखने को व्यक्त करते हैं । इसलिए प्रोफेसर जे . आर . हिक्स लिखते हैं , “ The value of the net social product of the community and the sum of the incomes of its members are exactly equal . The net social product and the social income are one and the same thing."! Page No.2 स्टॉक तथा प्रवाह (Stocks and Flows)अर्थशास्त्र में विशेषकर समष्टिअर्थशास्त्र में अर्थशास्त्री स्टॉक प्रकार की चर राशियों तथा प्रवाह ( flow ) की चर राशियों में अन्तर करना महत्वपूर्ण समझते हैं । स्टॉक वह चर राशि है जो किसी दिए हुए समय बिन्दु पर ( at a given point of time ) उसके कुल परिमाण अथवा माजा ( quantity ) को व्यक्त करता है जबकि प्रवाह ( flow ) प्रकार का तर एक समय - अवधि में ( over a period of time ) वृद्धि अथवा कमी की मात्रा को व्यक्त करता है । दूसरे शब्दों में , स्टॉक किसी समय पर चर की पाई जाने वाली कुल मात्रा का द्योतक है जबकि प्रवाह किसी समय अवधि में चर की मात्रा में परिवर्तन को दर्शाता है ( A stock variable is mcasured as a quantity existing at a point of time whereas 11low variable is nneasured as a change in utuantity pcr unit of tinne or over a perit | स्टॉक और प्रवाह प्रकार के चरों में अन्तर जल के टब तथा उसमें नल से निकल कर पड़ने वाले जल के उदाहरण से सुगम रूप से समझा जा सकता है । किसी समय टब में जो कुल जल की मात्रा मौजूद होती है वह उसके स्टॉक ( stock ) को दर्शाती है जबकि प्रति घण्टा उसमें जो जल की मात्रा नल से निकल कर उसमें पड़ रही हो तो वह प्रवाह ( flow ) को मापती है । एक उदाहरण से यह आसानी से समझ आ जाएगा । कल्पना कीजिए प्रातः 7 बजे एक टब में । 60 गैलन ( gallons ) जल मौजूद है , यह 60 गैलन जल उसको प्रातः 7 बजे स्टॉक अथवा भण्डार है । अब यदि प्रतिमिनट उसमा मल द्वारा 5 गैलन जल उल रहा है , यह जल का प्रति मिनट 5 गैलन प्रवाह है ।
अर्थशास्त्र से स्टॉक ( भण्डार ) तथा प्रवाह ( flow ) के अनेक उदाहरण दिए जा सकते हैं । पूँजी ( capital ) और निवेश ( investment ) का उदाहरण लें । 1 अप्रैल , 1997 में भारत में मशीनों , फैक्ट्रीयों , पूँजीगत साज सामान , आवासीय मकानों , रेलों , बसों आदि स्थिर उत्पादक साधनों तथा वस्तुओं के भण्डारों ( inventories of gools ) की कुल विद्यमान मात्रा को पूँजी ( capital ) कहते हैं जो कि एक स्टॉक की धारणा है । अब यदि 1 अप्रैल , 1997 से 31 मार्च , 1998 तक की एक वर्ष की अवधि में जो पूँजी की मात्रा में वृद्धि ( increase in the quantity of capital ) होती है तो वह निवेश ( investment ) कहलाएगी जो कि एक प्रवाह की धारणा है क्योंकि इसे एक समय अवधि में पूँजी की मात्रा से परिवर्तन द्वारा मापा जाता है ( capital is a stock and investment is a flow ) । अर्थशास्त्र के विषय - क्षेत्र से पूँजी और निवेश के अतिरिक्त स्टॉक और प्रवाह के कई अन्य उदाहरण निम्नलिखित हैं : 1 . किसी समय विशेष पर बेरोजगार व्यक्तियों की कुल संख्या स्टॉक चर ( Stock variable )
जबकि प्रति वर्ष रोजगार के अवसरों को उपलब्ध कराना प्रवाह को दर्शाता है ।
Page No.3 आय का चक्रवात प्रवाह (Circular Flow of Income)वस्तु - विनिमय अर्थव्यवस्था ( Barter Economy ) मुद्रा के बिना कार्य करती है । इसलिए वस्तु - विनिमय अर्थव्यवस्था के प्रचलन में कोई मुद्रा प्रवाह नहीं होगा । वस्तु - विनिमय अर्थव्यवस्था के प्रचलन में केवल वास्तविक प्रवाह ( real flows ) अर्थात् आर्थिक साधनों का प्रवाह और वस्तुओं और सेवाओं का प्रवाह ही होंगे । प्रत्येक अर्थव्यवस्था में एक ओर परिवार ( households ) होते हैं और दूसरी ओर उत्पादक फर्मे ( productive firms ) । परिवार अपनी आवश्यकताओं की तुष्टि के लिए वस्तुओं और सेवाओं का उपभोग करते हैं और उत्पादक फर्मे परिवारों की आवश्यकताओं की तुष्टि के लिए वस्तुओं और सेवाओं का उत्पादन करती हैं । वस्तुओं और सेवाओं के उत्पादन के लिए भूमि , श्रम , पूँजी और उद्यम जैसे आर्थिक साधनों की आवश्यकता होती है । उत्पादक फर्मों को ये आर्थिक साधन कौन देता है ? वस्तुत : परिवार , जो वस्तुओं और सेवाओं का उपभोग करते हैं , वस्तुओं और सेवाओं के उत्पादन के लिए उत्पादक फर्मों को आर्थिक साधन स्वयं देते हैं । इस प्रकार परिवार उत्पादकों को आर्थिक साधनों की पूर्ति करते हैं और बदले में उनकी कीमत उत्पादक उद्यमों द्वारा उत्पादित वस्तुओं और सेवाओं के रूप में प्राप्त करते हैं । अतः अर्थव्यवस्था के प्रचलन में आर्थिक साधनों का परिवारों ( households ) से उत्पादक फर्मों ( productive firms ) की ओर प्रवाह होता है जिसके बदले में उत्पादक फर्मों से परिवारों की ओर उत्पादित पदार्थों और सेवाओं का प्रवाह होता है । आधुनिक अर्थव्यवस्था में विनिमय के कार्य में मुद्रा का प्रयोग होता है । मुद्रा ने विनिमय प्रक्रिया को सुगम बना । दिया है और वस्तु - विनिमय पद्धति की कठिनाइयों को दूर कर दिया है । इस प्रकार मुद्रा विनिमय के माध्यम के रूप में कार्य करती है । परिवार उत्पादक फर्मों को आर्थिक साधनों की पूर्ति करते हैं और बदले में मुद्रा के रूप में भुगतान प्राप्त करते हैं । इस प्रकार अर्जित आय से परिवार अपनी आवश्यकता के अनुसार वस्तुओं और सेवाओं को खरीदते हैं । उत्पादक वस्तुओं और सेवाओं को मुद्रा में बेचते हैं और इस प्रकार प्राप्त मुद्रा का परिवारों को उनके आर्थिक साधनों की पूर्ति की । कीमत देने के लिए प्रयोग करते हैं । इस प्रकार श्रमिकों को वेतन मिल जाता है , पूँजीपति को ब्याज , भूमि के मालिक को किराया और उद्यमी को लाभ मिल जाता है और यह सब मुद्रा के रूप में मिलता है । अतः स्पष्ट है कि आधुनिक मुद्रा अर्थव्यवस्था में मुद्रा का प्रवाह आर्थिक साधनों तथा वस्तुओं और सेवाओं के प्रवाह के अनुरूप होगा । किन्तु प्रत्येक मुद्रा प्रवाह वास्तविक प्रवाह की विपरीत दिशा में होता है । साधनों या वस्तुओं और सेवाओं के वास्तविक प्रवाह ( real flows ) के अनुरूप मुद्रा प्रवाह ( money flows ) रेखाकृति 2 . 1 में दिखाए गए हैं । Page No.4 इस चित्र के ऊपरी भाग में भूमि , श्रम , पूँजी और उद्यम योग्यता जैसे साधन परिवारों से उत्पादक फर्मों की ओर
प्रवाहित होते हैं जिसे तीर चिह्न द्वारा दर्शाया गया है । इसके विपरीत दिशा में मजदूरी , किराया , ब्याज और लाभ जैसी साधनों की कीमतों के रूप में मुद्रा उत्पादक फर्मों से परिवारों की ओर प्रवाहित होती है । चित्र के निचले अर्ध - भाग में मुद्रा परिवारों द्वारा वस्तुओं और सेवाओं - जो फर्मों द्वारा उत्पादित की जाती हैं – पर उपभोग व्यय ( consumption expenditure ) के रूप में परिवारों से उत्पादक उद्यमों की ओर प्रवाहित होती है जबकि वस्तुओं का प्रवाह इसकी विपरीत दिशा - उत्पादक उद्यमों से परिवारों की ओर होता
है । इस प्रकार हम देखते हैं कि साधनों की कीमतों के भुगतान के रूप में मुद्रा उत्पादक फर्मों से परिवारों की ओर प्रवाहित होती है और फिर उपभोग व्यय के रूप में परिवारों से फर्मों की ओर । इस प्रकार मुद्रा का वस्तुत : एक चक्रवात प्रवाह ( a circular flow ) होता है जिसे प्रायः आय का चक्रवात प्रवाह ( circular flow of income ) कहते हैं । मुद्रा का यह प्रवाह अनिश्चित रूप से सप्ताह प्रति सप्ताह और वर्ष प्रति वर्ष जारी रहता है । यहाँ यह बता दिया जाए कि मुद्रा का यह प्रवाह परिमाण में
हमेशा समान नहीं रहता । दूसरे शब्दों में , मुद्रा का प्रवाह हमेशा अपरिवर्तित स्तर पर बना नहीं रहेगा । मन्दी के काल में जब राष्ट्रीय आय घट जाती है तो मुद्रा का चक्रवात प्रवाह संकुचित हो जाएगा अर्थात् परिमाण में कम हो जाएगा और समृद्धि के काल में यह प्रवाह विस्तृत हो जाएगा अर्थात् परिमाण में बढ़ जाएगा । यह इसलिए है कि मुद्रा का प्रवाह राष्ट्रीय आय अथवा राष्ट्रीय उत्पादन का माप है और इसलिए राष्ट्रीय आय में परिवर्तन से इसमें भी परिवर्तन आ जाएगा । मन्दी के काल में जब राष्ट्रीय आय कम होती है , मुद्रा
प्रवाह का परिमाण भी कम हो जाएगा और समदि काल में ज्ञन्न राष्ट्रीय आय काफी अधिक होती है , मुद्रा - प्रवाह भी बड़ा होगा । इसे भी देखे कृपया...... बचत , निवेस तथा मुद्रा प्रवाह (Saving, Investment and Circular Flow of Income)अब हम पहले बचत को लेंगे और देखेंगे कि अर्थव्यवस्था के कार्यचालन में अन्य दूसरे कौन से मुद्रा - प्रवाह होते हैं । यह सामान्य ज्ञान की बात है कि परिवार और उद्यमदोनों धन की बचत करते हैं । परिवार तब बचत करते हैं जब | वे अपनी सारी आय को उपभोक्ता वस्तुओं और सेवाओं पर खर्च नहीं करते । फर्मे तब बचत करती हैं जब अपने सारे | लाभ को हिस्सेदारों में नहीं बाँट देते और अविभाजित लाभ को बाद में निवेश कार्यों में लगाने के लिए सुरक्षित रखते हैं । कल्पना करें कि सारी बचत , चाहे वह परिवारों की हो या फमों की सीधे वित्तीय बाजारों ( financial markets ) में चली जाती है । यहाँ वित्तीय बाजार शब्द का प्रयोग सामान्य प्रयोग की अपेक्षा अधिक विस्तृत अर्थ में किया गया है । संस्थाएँ और संस्थान जैसे बैंक , बीमा कम्पनियाँ , वित्त संस्थान , स्टॉक मार्किट के शेयर , घरों के ट्रंक आदि शामिल हैं जहाँ | लोग रुपया जमा करते हैं या निवेश करते हैं । ' फर्मे अपनी बचत का प्रयोग मशीनें तथा अन्य चिरस्थाई उत्पादक वस्तुएँ । खरीदने में स्वयं करती हैं । किन्तु हमने अपनी अर्थव्यवस्था को एक ऐसी विनिमय अर्थव्यवस्था के रूप में लिया है जिसमें फर्मों की बचत भी पहले वित्तीय बाजार में जाती है और फिर वहाँ से फर्मों द्वारा उधार ली जाती है । बचत करने से मुद्रा - चलन ( circulation of money ) कम हो जाता है । यदि अर्थव्यवस्था को सुचारू रूप से चलना है तो बचत द्वारा मुद्रा - चलन में की गई यह कमी निवेश - व्यय द्वारा पूरी की जानी चाहिए । Page No.5 मुद्रा प्रवाह के स्थिर अथवा अपरिवर्तित स्तर पर रहने की आवश्यक शर्त ( Condition for the Steady or Constant Level of Money Flow )अब प्रश्न उठता है मुद्रा प्रवाह को अपरिवर्तित स्तर पर जारी रखने के लिए क्या शर्त है ताकि वस्तुओं और सेवाओं की निर्दिष्ट मात्रा के उत्पादन और उनकी खरीद का प्रवाह स्थिर कीमतों पर सम्भव हो सके ? इसके लिए केवल एक शर्त है जिसे पूरा करना चाहिए , ताकि स्थिर मूल्यों पर वस्तुओं और सेवाओं का अपरिवर्तित प्रवाह बना रहे और वह यह है कि वित्तीय बाजार ( Financial Markets ) में निवल रूप से मुद्रा
संचित न हो । दूसरे शब्दों में यदि अर्थव्यवस्था को अस्थिरता ( instability ) से बचाना है तो वित्तीय बाजार में मुद्रा आगमन ( अर्थात् आयोजित बचत ( planned saying ) वित्तीय बाजार से मुद्रा - गमन ( अर्थात आयोजित निवेश ( planned investment ) के बराबर अवश्य होना चाहिए । अब , यदि आयोजित निवेश व्यय आयोजित बचत से कम पड़ जाए तो क्या होगा ? आयोजित निवेश में कमी के कारण आय , उत्पादन और रोजगार गिर जाएँगे और इसलिए मुद्रा का प्रवाह संकुचित हो जाएगा । यदि बचत में वृद्धि से आयोजित बचत और आयोजित निवेश में समता नहीं
रहती तो इसका तत्काल असर यह होगा कि दुकानों की कोठरियों में वस्तुओं का स्टॉक बढ़ जाएगा ( क्योंकि उपभोग में कमी अर्थात बचत में वृद्धि से कुछ वस्तुएँ नहीं बिकेंगी ) । वस्तुओं की माँग में कमी और दुकानों में जमा स्टॉक बढ़ जाने से मूल्य गिर जाएँगे । इसके अलावा स्टॉक बढ़ने के कारण फुटकर व्यापारी थोक व्यापारियों से कम वस्तुएँ खरीदेंगे । परिणामस्वरूप वस्तुओं को पहले से थोड़ी मात्रा में उत्पादन होगा । मशीनों जैसी पूँजीगत वस्तुओं की कम आवश्यकता होगी , जिसका परिणाम यह होगा कि आयोजित निवेश गिर जाएगा जो बदले
में आय , उत्पादन और रोजगार के स्तर को गिरा देगा । वस्तुओं के मूल्य भी घट जाएँगे । अतः आयोजित निवेश में कमी अथवा आयोजित बचत में वृद्धि का अन्तिम प्रभाव समान होगा , अर्थात् आय , उत्पादन , रोजगार और मूल्यों में गिरावट । परिणामतः मुद्रा प्रवाह संकुचित हो जाएगा । दूसरी ओर यदि आयोजित निवेश आयोजित बचत से अधिक | होता है तो इसका परिणाम आय , उत्पादन और रोजगार में वृद्धि हो जाना होगा जिससे मुद्रा - प्रवाह बढ़ जाएगा । इसे भी देखे कृपया...... उपयुक्त विश्लेषण से स्पष्ट है कि एक मुक्त - उद्यम पूंजीवादी अर्थव्यवस्था की राष्ट्रीय आय आयोजित बचत ( planned savings ) और आयोजित निवेश ( planned investment ) द्वारा निर्धारित होती है । राष्ट्रीय आय का यह सन्तुलन - स्तर वहाँ निश्चित होगा जिस पर कि आयोजित बचत , आयोजित निवेश के बराबर होती है । राष्ट्रीय आय का यह सन्तुलन स्तर प्राप्त हो जाने पर मुद्रा प्रवाह का परिणाम स्थिर रहेगा । उपयुक्त व्याख्या से यह स्पष्ट है कि मुद्रा - प्रवाह तभी अपरिवर्तित स्तर पर बना रहेगा , जब आयोजित बचत और आयोजित निवेश के बीच समता रहने की शर्त पूरी होती है । मुक्त मार्किट पूँजीवादी अर्थव्यवस्था में निवेश फर्मों ( उद्यमों ) द्वारा किया जाता है और बचत अधिकांशतः परिवारों द्वारा की जाती है और कई कारणों से , इस बात की कोई गारण्टी नहीं है कि आयोजित निवेश आयोजित बचत के बराबर होगा । इसलिए वहाँ आय , उत्पादन और रोजगार में घट - बढ़ होना निश्चित है । परिणामतः मक्त उद्यम पूँजीवादी अर्थव्यवस्था में मुद्रा प्रवाह अपरिवर्तित स्तर पर तब तक बना नहीं रह सकता जब तक सरकार अर्थव्यवस्था की स्थिरता बनाए रखने के लिए कुछ सुधारक कदम नहीं उठाती । मुद्रा - प्रवाह :जब सरकार को सम्मिलित किया जाता है (Money Flows when Goverment is also included)यदि हम अपने विश्लेषण में अर्थव्यवस्था में सरकार की भूमिका को भी शामिल करें तो अतिरिक्त मुद्रा प्रवाह उत्पन्न होते हैं तथा अर्थव्यवस्था की स्थिरता ( Stability ) की अन्य शर्ते की पूर्ति होना आवश्यक होता है । सरकार की भूमिका को सम्मिलित करते हुए विभिन्न मुद्रा प्रवाहों को रेखाकृति 2 . 3 में प्रदर्शित किया गया है । सरकार को नीचे के खण्ड में दिखाया गया है । सरकार लोगों तथा फर्मों पर कर लगाती है जिससे उसे आय प्राप्त होती हैं । परिणामस्वरूप करारोपण से मुद्रा का प्रवाह परिवारों ( Households ) तथा फर्मों से सरकार को होता है । इसके विपरीत सरकार अपने कार्यों के लिए फर्मों तथा परिवारों से वस्तुएँ तथा सेवाएँ खरीदती है जिसके लिए उसे मुद्रा में भुगतान करना होता है और मुद्रा सरकार से फर्मों और परिवारों की ओर प्रवाहित होती है । इसके अतिरिक्त आजकल सरकार परिवारों और फर्मों को विभिन्न प्रकार के उपदान ( subsidies ) प्रदान करती है जिससे मुद्रा सरकार से परिवारों व फर्मों की ओर प्रवाह होती है । Page No.6 _________________________________________________________________________________ जब सरकार को करों आदि से प्राप्त आय उसके वस्तुओं , सेवाओं तथा उपदान पर व्यय के समान होती है तो । सरकार का बजट सन्तुलित ( balanced budget ) होता है और इससे कोई अस्थिरता उत्पन्न नहीं होती । किन्तु जब सरकार का व्यय उसकी आय से अधिक होता है तो सरकार के बजट में घाटा ( deficit ) होता है । इस घाटे के बजट । से अस्थिरता उत्पन्न हो सकती है क्योंकि सरकार इस घाटे को पूरा करने के लिए नई मुद्रा का सृजन कर सकती है अथवा बैंकों फर्मों व परिवारों से ऋण प्राप्त कर सकती है । अतः घाटे के बजट के अनेक परिणाम हो सकते हैं जो इस बात पर निर्भर करेंगे कि घाटे के बजट की वित्तव्यवस्था किस प्रकार होती है । इन सब परिणामों की विवेचना हम अगले अध्यायों में करेंगे । खुली अर्थव्यवस्था में मुद्रा प्रवाह (Money flow in an Opean Economy)आजकल सभी अर्थव्यवस्थाएँ लगभग खुली अर्थव्यवस्था ( open economies ) हैं अर्थात् सभी अर्थव्यवस्थाएँ दूसरी अर्थव्यवस्थाओं से आयात करती हैं और साथ ही निर्यात भी करती हैं । आयात तथा निर्यात द्वारा जो अतिरिक्त मुद्रा प्रवाह उत्पन्न होते हैं उन्हें रेखाकृति 2 . 3 के ऊपर के खण्ड में प्रदर्शित किया गया है । कल्पना करें कि न तो सरकार और न परिवारों का दूसरे देशों से सीधा सम्पर्क है । केवल निजी फर्मे वस्तुओं के आयात और निर्यात का कार्य करती हैं । इसलिए मुद्रा , आयात वस्तुओं की भुगतन के रूप में फर्मों से विदेशों को प्रवाहित होती हैं । इसके विपरीत , निर्यात के भुगतान के रूप में मुद्रा , विदेशों से फर्मों की ओर प्रवाहित होती है । अर्थव्यवस्था में मुद्रा का स्थिर प्रवाह बनाए रखने के लिए आयात और निर्यात बराबर होने चाहिए । किसी अर्थव्यवस्था की विदेशी अर्थव्यवस्थाओं से इन व्यापारिक सम्बन्धों के विषय में एक बात विशेष उल्लेखनीय है । वह यह है कि जब किसी अर्थव्यवस्था द्वारा निर्यात से अर्जित - मुद्रा , आयात की गई वस्तुओं के मूल्य से कम होगी तो देश का व्यापार शेष ( balance of trade ) तथा भुगतान शेष ( balance of payments ) असन्तुलन में होगा जिससे विदेशी मुद्रा का संकट ( foreign exchange crisis ) उत्पन्न हो जाएगा । यदि किसी देश को विदेशी मुद्रा संकट से बचना है तो इसे व्यापार शेष अथवा भुगतान शेष में सन्तुलन लाना होगा अर्थात आयात और निर्यात को बराबर करना होगा । इसके लिए या तो निर्यात को बढ़ाना होगा और या आयात को घटाना होगा । Page No.7 _________________________________________________________________________________ राष्ट्रीय आय छ : धारणाएँ(Six Concepts of National Income)राष्ट्रीय आय के विशेषज्ञों ने अर्थव्यवस्था की समस्त आय के विषय में छ : मुख्य धारणाएँ ( concepts ) प्रस्तुत । की हैं । हमें वे भली - भाँति समझनी हैं । ये हैं सकल घरेलू उत्पाद ( Gross Domestic Product)
अब हम कुल घरेलू उत्पाद की दूसरी मुख्य बात की ओर ध्यान देते हैं । परिभाषा में हमने कहा कि केवल अन्तिम वस्तुओं और अन्तिम सेवाओं को राष्ट्रीय उत्पाद के कुल जोड़ में सम्मिलित करना है , न कि वे सभी वस्तुओं और सेवाओं को जो उत्पन्न हो रही होती हैं । यह क्यों ? देश के समस्त उत्पाद को ठीक मापने के लिए यह अत्यावश्यक है । कि जो भी वस्तुएं और सेवाएँ उत्पन्न की जा रही हैं , वे केवल एक बार ही गिनी जानी चाहिएँ न कि एक से अधिक बार । अधिकतर वस्तुएँ उपभोक्ता के पास उपभोग के लिए पहुँचने से पहले उत्पादन की अनेक अवस्थाओं में से गुजरती हैं और इसलिए उनमें प्रयोग होने वाले पदार्थ अनेक बार बेचे और खरीदे जाते हैं । अत : कहीं यह न हो कि अन्तिम पदार्थों के उत्पादन में प्रयोग हो रही वस्तुएँ और सेवाएँ भी कुल घरेलू उत्पाद में शामिल कर ली जाएँ । केवल अन्तिम पदार्थों के बाजार मूल्य को सम्मिलित किया जाता है और जो भी सौदे मध्यवर्ती पदार्थों ( intermediate goods ) के क्रय - विक्रय के लिए होते हैं , उनको छोड़ दिया जाता है , अर्थात् उन्हें सम्मिलित नहीं किया जाता । । । अन्तिम पदार्थों का क्या अर्थ है ? ये वे पदार्थ हैं जो अन्तिम उपभोग में प्रयोग होते हैं , न कि फिर से बेचने के लिए और न ही किसी और रूप में बदले जाने के लिए और न ही किसी और पदार्थ के निर्माण के लिए । दूसरी ओर , मध्यवर्ती पदार्थ वे होते हैं जो या तो उसी दशा में फिर से बेचने के लिए या रूप बदल कर बेचने या किसी और वस्तु के बनाने के लिए खरीदे जाते हैं । मध्यवर्ती पदार्थों ( intermediate goods ) को सकल घरेलू उत्पाद ( GDP ) में शामिल कर लेने में दोष यह है कि एक पदार्थ कई बार शामिल कर लिया जाता है , अर्थात दोहरी गिनती ( double counting ) हो जाती है और इसका यह परिणाम होता है कि सकल राष्ट्रीय उत्पाद अपने वास्तविक परिमाण से कहीं अधिक प्रतीत होता है । यह बात उदाहरण से स्पष्ट हो जाएगी । मान लीजिए कि अर्थव्यवस्था में दो ही वस्तुओं का उतपादन होता है । वे वस्तुएँ हैं 100 रुपये के Page No.8 मूल्य की कपास और 200 रुपये के मूल्य का सूती कपड़ा । अब , सकल राष्ट्रीय उत्पाद का
क्या नाप होगा ? यदि हम कपड़े और कपास दोनों के विक्रय मूल्य को जोड़ देते हैं , तो फिर दोहरी गिनती हो जाती है । इसका कारण यह है कि हमने कपाल के मूल्य को दो बार जोड़ दिया है । एक बार तो हमने उसे अलग कपास के मूल्य के रूप में जोड़ा है और दूसरी बार उसी कपास के मूल्य को कपड़े के मूल्य में गिन लिया है । वास्तव में , कपड़े के मूल्य में कपास का मूल्य भी सम्मिलित होता हैं । इसलिए कुल राष्ट्रीय उत्पाद का माप करते समय कपड़े के मूल्य को ही गिना जाना चाहिए कपास जिससे वह कपड़ा तैयार हुआ है , का मूल्य अलग से
नहीं जोड़ा जाना चाहिए । मार्किट में विक्रय न की गई वस्तुएँ तथा सेवाएँ ( Non - marketed goods and services ) -वस्तुएँ तथा सेवाएँ जिनको मार्किट में बेचा नहीं जाता उनका उत्पादन प्रायः सकल राष्ट्रीय उत्पाद में शामिल नहीं किया जाता । उदाहरणतः गृहिणियों के अपने परिवार के सदस्यों के लिए की गई सेवाएँ ( Housewives Services ) , व्यक्तियों द्वारा अपने स्वयं के लिए की गई सेवाएँ जैसा कि अपने घरों की स्वयं रंग - रोगन करना , अपने बागीचे में स्वयं बागबानी ( Gardening ) करना आदि के मूल्य को राष्ट्रीय उत्पादन में शामिल नहीं किया जाता है । परन्तु इस विषय में एक अपवाद है । भारत जैसे विकासशील देशों में एक बड़ी संख्या में किसानों द्वारा अपने उत्पादन को मार्किट में न ले जाकर उसको स्वयं उपभोग कर लिया ( production for self - consumption ) किया । जाता है को राष्ट्रीय उत्पाद में गिना जाता है । भारत एक कृषि प्रधान देश है और कृषि में कार्यरत जनसंख्या का एक बड़ा भाग अपने उत्पादन को मार्किट में नहीं लाता । यदि इस उत्पादन को राष्ट्रीय उत्पाद में शामिल नहीं किया जाता तो देश की राष्ट्रीय आय का अल्पमूल्यन् ( underestimation ) होगा । इसलिए भारत में किसानों द्वारा स्वयं उपभोग के लिए किए गए उत्पादन को मार्किट में प्रचलित कीमतों पर मूल्यांकन करके उसे राष्ट्रीय आय में शामिल किया जाता है । इसे भी देखे कृपया...... वस्तुओं के भण्डारों में वृद्धि ( Increase in Inventorics of Goods ) - उत्पादित वस्तुओं की कुछ मात्रा जिन्हें किसी वर्ष बेचा नहीं जाता और इस प्रकार उनके भण्डारों ( inventorics ) में वृद्धि होती है की कुल घरेलू उत्पाद ( GDP ) अथवा राष्ट्रीय आय में गिनती की जाती है । इसका कारण यह है कि अर्थशास्त्री भण्डारों में वृद्धि को निवेश मानते हैं और यह कल्पना कर लेते हैं कि उत्पादित वस्तुओं के भण्डारों को फर्मे स्वयं खरीट लेती हैं । वित्तीय प्रकार के क्रय - विक्रय ( Financial Transactions ) -किसी वर्ष के सकल घरेलू उत्पाद की गणना में वित्तीय प्रकार के क्रय - विक्रय को नहीं जोड़ा जाना चाहिए । इस प्रकार के वित्तीय क्रय - विक्रय में शेयरों ( Shares ) ऋण पत्रों ( bonds ) तथा अन्य प्रतिभूतियों ( Securities ) को शामिल नहीं किया जाता है । इनके क्रय - विक्रयों को राष्ट्रीय उत्पाद की गणना में शामिल न करने का कारण यह है इनके क्रय - विक्रय में केवल शेयर , अन्य प्रतिभूतियों का स्वामित्व ( Ownership ) बदलता है , वे किसी वर्ष विशेष में प्रत्यक्ष रूप से उत्पादन में वृद्धि नहीं करते | सरकारी हस्तान्तरण भुगतान ( Transfer Payments by Government ) -सरकार द्वारा प्रदान की गई सामाजिक सुरक्षा भुगतान जैसे बेरोजगारी भत्ता , बीमारी भत्ता , वृद्ध - आयु पैन्शन ( old age pension ) आदि जैसी भुगतान को राष्ट्रीय उत्पाद में सम्मिलित नहीं किया जाता । इन हस्तान्तरण भुगतानों ( transfer payments ) को GDP में शामिल न करने का कारण यह है कि इनको प्राप्त करने वाले व्यक्ति उस वर्ष के उत्पादन में कोई योगदान नहीं करते अर्थात् सरकार को इन भुगतानों के बदले में उस वर्ष विशेष में कोई वस्तु अथवा सेवा प्राप्त नहीं होती । निजी हस्तान्तरण भुगतान ( Private Transfer Payments ) – निजी हस्तान्तरण भुगतान के उदाहरण हैं । विद्यार्थियों द्वारा अपने माता - पिता से प्राप्त मुद्रा - राशि , किसी धनी सम्बन्धी से प्राप्त मुद्रा - राशि । इन निजी हस्तान्तरण भुगतानों को भी घरेलू राष्ट्रीय उत्पाद में शामिल नहीं किया जाता क्योंकि ये केवल एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति को हस्तान्तरण हैं जिसके उस वर्ष विशेष में उत्पादन से कोई सम्बन्ध नहीं है । Page No.9 _________________________________________________________________________________ GNP - GDP + विदेशों से प्राप्त निवल साधन आय सकल घरेलू उत्पाद किसी देश के भीतर ( dorriestic ferritory ) एक वर्ष में अन्तिम पदार्थ तथा सेवाओं के कुल उत्पादन के मूल्य को कहते हैं चाहे यह उत्पादन देशवासियों द्वारा किया जाए अथवा विदेशियों द्वारा । सकल राष्ट्रीय उत्पाद ( GNP ) तथा सकल घरेलू उत्पाद ( GDP ) में अन्तर विदेशों से प्राप्त निवल साधन आय ' ( Vet Factor Income froin Abroad ) के कारण है । यदि कुल घरेलू उत्पाद ( GDP ) में विदेशों से प्राप्त निवल साधन आय को जोड़ दें तो हमें सकल राष्ट्रीय उत्पाद (GNP) प्राप्त होगा| विदेशों से प्राप्त निवल साधन
आय (Net Factor Income from Abroad) अब प्रश्न यह है कि विदेशों से प्राप्त साधन आय किसे कहते हैं । कई भारतीय फर्मों तथा व्यक्तियों ने संयुक्त राज्य अमेरिका ( USA ) , ब्रिटेन , फ्रान । आदि देशों में फैक्ट्रियों , इमारतों ( Building ) , दुकानों , तुफतरों आदि में निवेश किया हुआ है जिससे उन्हें लाभ , व्याज तथा किराया { rent ) आदि जैसी साधून आय प्राप्त होती है । इसके अतिरिक्त कई भारतीय फम तथा व्यक्तियों ने नदी ऋण - पत्र तथा शेयर खरीद रखें हैं जिनसे उनुको विदेशों से ब्याज तथा लाभ की आय प्राप्त
होती है । भारतीयों द्वारा उन । सभी साधन - आयों को जो वे विदेशों से आजित करते हैं को विदेशों से प्राप्त साधन आय ' ( Factor Incorne from Abroad ) कहते हैं । | इस प्रकार कुछ यू . एस . ए . , ब्रिटेन आदि की विदेशी फर्मों तथा व्यक्तियों ने भारत में फैक्ट्रियों , दफ्तरों , इमारत ( buildings ) , भारतीय कम्पनियों के शेयर तथा ऋण - पत्रों ( bonds ) में निवेश किए हुए होते हैं जिनसे उन्हें लाभ , किराया ( rerit ) , ब्याज आदि साधन आय प्राप्त होती है । इन सभी प्रकार की विदेशियों द्वारा अर्जित साधन आयों को
भारतीय फम तथा व्यक्तियों द्वारा विदेशों से अर्जित आयों में से घटा दिया जाए तो हमें भारत की 'विदेशों से प्राप्त निवल साधन आय '( Net Factor Income from abroad ) प्राप्त होगी । इसे भी देखे कृपया...... उपर्युक्त समीकरण ( 1 ) से स्पष्ट है कि यदि “ विदेशों से प्राप्त निवल साधन आय " धनात्मक ( positive ) होगी । तो देश का सकल राष्ट्रीय उत्पाद ( GNP ) उसके सकल घरेलू उत्पाद ( GDP ) से अधिक होगा । इसके अतिरिक्त यदि किसी देश की “ विदेशों से प्राप्त निवल साधन आय ” ऋणात्मक ( negative ) है तो उस देश का सकल राष्ट्रीय उत्पाद ( GNP ) उसके सकल घरेलू उत्पाद ( GDP ) से कम होगा । विदेशों से प्राप्त निवल साधन आय के निम्न चार प्रमुख संगठक हैं : GDPMP तथा GDPFC उपर्युक्त विश्लेषण में हम ने जो सकल घरेलू उत्पाद ( GDP ) की व्याख्या की है उसे मार्किट कीमतों पर सकल घरेलू उत्पाद ( GDP at market prices ) कहा जाता है । सकल घरेलू उत्पाद की एक अन्य धारणा भी है जिसे साधन लागत पर सकल घरेलू उत्पाद
( GDP at factor cost or GDP ) कहा जाता है उसे GDP से अप्रत्यक्ष करों ( indirect taxes ) को घटाया जाता है और सरकार द्वारा वस्तु उत्पादन पर दी जाने वाले अनुदानों ( subsiclies ) को जोड़ा जाता है । अतः Page No.10 _____________________________________________ राष्ट्रीय आय से आप क्या समझते हैं राष्ट्रीय आय संबंधी विभिन्न धारणाओं को समझाइए?यह विधि व्यय विधि कहलायेगी। यदि हम (B पर) सभी फर्मों के द्वारा उत्पादित वस्तुओं तथा सेवाओं के समस्त मूल्यों की माप करते हैं, यह विधि उत्पाद विधि कहलायेगी | C पर सभी कारक अदायगियों के कुल योग का मापन आय विधि कहलायेगी।
राष्ट्रीय आय क्या है राष्ट्रीय आय को मापने की विभिन्न विधियों का वर्णन कीजिए?वितरण के स्तर पर राष्ट्रीय आय को मापने के लिए आय विधि का प्रयोग किया जाता है। इस विधि के अनुसार, वर्ष भर में सभी उत्पादक साधनों द्वारा अपनी सेवाओं के माध्यम से अर्जित आय का योग कर राष्ट्रीय आय की गणना की जाती है।
राष्ट्रीय आय का अर्थ क्या है?राष्ट्रीय आय से तात्पर्य किसी देश की अर्थव्यवस्था द्वारा पूरे वर्ष के दौरान उत्पादित अन्तिम वस्तुओं व सेवाओं के शुद्ध मूल्य के योग से होता है, इसमें विदेशों से अर्जित शुद्ध आय भी शामिल होती है।
राष्ट्रीय आय लिखे कितने प्रकार के होते हैं?पहले यह आधार वर्ष 1999 - 2000 था। निजी आय: निजी क्षेत्र के सभी स्त्रोतों से प्राप्त होने वाली सभी साधन आय ही निजी आय कहलाती है। प्रयोज्य आय: प्रयोज्य आय किसी व्यक्ति के सभी स्त्रोतों से प्राप्त वह आय है, जो सरकार द्वारा लगाए गए करो के भुगतान के बाद बचती है।
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