राजस्थान काश्तकारी अधिनियम 1955 की धारा 177 क्या है? - raajasthaan kaashtakaaree adhiniyam 1955 kee dhaara 177 kya hai?

 राजस्व विभाग द्धारा भू माफियाओ के खिलाफ शुरू की गई कार्रवाई कहां तक सफल हो पाएगी ये आने वाले समय के गर्भ में छिपा है। जहां तक आम लोगो की माने तो प्रॉपर्टी का कारोबार करने वाले सभी व्यक्ति धन बल में सक्षम है इसके साथ साथ इनको पूरा राजनैतिक और प्रशासनिक भी सरंक्षण प्राप्त है। इस वजह से विभाग की यह कार्रवाई कही फाइलों में दब कर ही ना रह जाए इसका भी अंदेशा बना हुआ है। 

झालावाड़। कोरोना महामारी के बाद प्रोपर्टी बाजार में आई आर्थिक मंदी के बावजूद झालावाड़ जिले भर में कॉलोनाइजरों द्वारा कृषि भूमि में आवासीय प्लाट काटे जा रहे। भूमाफियाओं का यह अवैध कारोबार खुलेआम चल रहा है, लेकिन राजस्व अधिकारी  राजस्थान काश्तकारी अधिनियम, 1955 की धारा 177 के तहत कार्रवाई नहीं करने पर इनकी भूमिका

संदिग्धता के कटघरे में खड़ी हो रही। जनमानस इनकी कार्यशैली पर सवाल खड़े कर रहे हैं।

ऐसे ही एक मामला तहसील सुनेल का सामने आया हैं। लगभग 1 वर्ष पूर्व मीडिया ने खबर प्रमुखता से प्रकाशित करने के बाद भी प्रशासन द्वारा कोई कार्यवाही नहीं की गई. जिससे प्रमाणित होता है कि राजस्व विभाग एवं कॉलोनाइजर की सांठगांठ के चलते हुए नियमों को ताक में रखकर प्रोपर्टी डीलरों ने सलोतिया गांव के पास सुनेल मार्ग पर सुनेल झालरापाटन मार्ग  पर कृषि भूमि पर कॉलोनी काट दी। यहां धड़ल्ले से प्लाट बिक गए हैं। कृषि भूमि में प्लाट खरीदने वाले लोगों ने बताया कि कृषि भूमि 3 बीघा को प्रमोद कुमार नागर एवं मुन्ना भाई द्वारा खरीदा गया . उन्होंने हमसे कहा था यह भूमि आबादी में कन्वर्ट कराने के बाद ही आपको रजिस्ट्री करवाई जाएगी। हमने ₹5 लाख  में 25 गुणा 60 कुल क्षेत्रफल 15 स्क्वायर फीट मुख्य मार्ग के सामने खरीद ली गई। कॉलोनाइजर द्वारा तहसील से सांठगाठ कर तोड़ निकालकर विक्रय पंजीयन आवासीय प्लाट वर्ग फुट में नहीं करवाकर कृषि भूमि की करवा दी गई। जिसके चलते हुए सरकार को राजस्व की हानि हुई। साथ ही हमें परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है। कॉलोनाइजर द्वारा बकायादा प्लाटों का सीमांकन कर चिन्ह खड़े कर दिए गए हैं लाइट के खाली पोल गाड़ दिए गए हैं कच्ची सड़के बना दी गई है।। लेकिन सवाल यह उठता है की कृषि भूमि में बिना कन्वर्जन के आवासीय गतिविधियां कैसे चालू हो गई। जिसको लेकर राजस्व कर्मियों की भी इसमें संदिग्ध भूमिका नजर आ रही है।

कोई ले आऊट प्लान नहीं:–नियमानुसार कॉलोनी काटने से पूर्व ले आऊट प्लान बनाया जाता है। जिसमें कॉलोनी में आबादी होने वाले लोगों को मूलभूत सुविधाओं के लिए, गार्डन, निर्धारित चौड़ाई के रास्ते, बिजली, पानी की व्यवस्था आदि प्रस्तावित होते हैं, लेकिन यहां के प्रोपर्टी डीलरों ने इन कॉलोनियों को काटने से पूर्व ले आऊट प्लान तो दूर प्रशासन को कानो कान खबर तक नहीं होने दी।

– यह सिर्फ कृषि भूमियो पर लागु होता है तथा इसमे कृषको के अधिकारो के बारे मे बताया गया है, यह काश्तकारो के हितो को संरक्षित करता है, यह 15 अक्टूबर 1955 से सम्पूर्ण राजस्थान मे लागु किया गया है।


 

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अध्याय 1 प्रारम्भिक

Ø धारा 5 परिभाषाएं – इस धारा मे दी गई परिभाषाएं सिर्फ इस अधिनियम के संदर्भ मे ही दी गई है, (कुछ खास परिभाषाएं निम्नानुसार है)

1-    कृषिवर्ष – धारा 5(1) के अनुसार प्रति वर्ष 1 जुलाई से प्रारंभ होकर आगामी 30 जून तक समाप्त होने वाली वार्षिक अवधि को कृषिवर्ष माना गया है। इसे फसली वर्ष भी कहा जाता है।

2-    कृषि – (इस मे कृषि को परिभाषित नही किया गया है, साधारणतया कृषि का अर्थ भूमि को जोतना, बुवाई करना, खेती की सम्भाल करना, फसल काटकर तैयार करना समझा जाता है, किन्तु इस धारा मे सिर्फ उन क्रिया-कलापो का वर्णन किया गया है, जिन्हे भी इस एक्ट मे संदर्भ मे कृषि माना गया है,)


      धारा 5(2) के अनुसार कृषि मे उद्यान-कृषि, पशुपालन व प्रजनन, दुग्ध-उद्योग, कुक्कुटपालन तथा वन विकास सम्मिलित है।

3-    कृषक – धारा 5(3) के अनुसार वह व्यक्ति जो अपनी जीविका पूर्णतः या मुख्यतः कृषि कार्य से अर्जित करता है, कृषक है। चाहे वो स्वयं कृषि कार्य करे या अपने सेवको या अभिधारियो से कृषि करावे।

4-    फसल – (इसमे भी फसल को परिभाषित नही किया गया है, वास्तव मे कृषि से उगाये पौधों को फसल कहते है, किन्तु इस धारा मे सिर्फ कुछ उदाहरण देकर बताया गया है कि फसल मे क्या-क्या सम्मिलित माना  है, )

     धारा 5(9) अनुसार फसल मे क्षुप ( छोटे वृक्ष) , झाडियाँ, पौधे और बेले जैसे – गुलाब की झाडियाँ, पान की बेले, मेहंदी की झाडियाँ, कदली और पपीता सम्मिलित है।

5-    बाग-भूमि या उपवन भूमि – धारा 5(15) के अनुसार भूमि का ऐसा टुकडा या खण्ड जिस पर वृक्ष इतनी संख्या मे लगे हुए हो कि वे उस भूमि को अन्य किसी कृषि प्रयोजन हेतु उपयोग मे लेने से रोकते है,या बडे होने पर रोकेंगे, ऐसे वृक्षो के समुह को बाग माना जायेगा, और ऐसे वृक्षो के समुह से आच्छादित भूमि  बाग भूमि कही जायेगी।



6-    जोत – धारा 5(17) के अनुसार किसी एक व्यक्ति द्वारा एक पट्टे(प्राधिकार पत्र), वचनबद्ध(बॉण्ड) या अनुदान के अधीन धारित समस्त भूमि खण्ड, चाहे कही भी अलग-अलग जगह पर स्थित हो वो सभी उस व्यक्ति की एक जोत माने जायेंगे।
     जहाँ अधिकतम सीमा की गणना करनी हो वहाँ किसी एक व्यक्ति द्वारा एक या एक से अधिक पट्टे, वचनबद्ध या अनुदान के अधीन धारित समस्त भूमि खण्ड, चाहे वे राजस्थान मे कही भी अलग-अलग जगह पर स्थित हो वो सभी उस व्यक्ति की एक जोत माने जायेंगे। और जहाँ ऐसी जोत एक से अधिक व्यक्तियो द्वारा संयुक्त रूप से धारित की जाती है तो प्रत्येक का जो हिस्सा है वो उसकी जोत माना जायेगा, चाहे वास्तविक विभाजन हुआ या नही हुआ हो।





7-    सुधार – (इसमे भी सुधार की कोई परिभाषा नही दी गई है, सिर्फ ये बताया गया है कि किसी कृषि भूमि पर कौन-कौनसे कार्य सुधार के रूप मे किये जा सकते है।)


    धारा 5(19) के अनुसार किसी भी विधिवत भूमि धारण करने वाले व्यक्ति (अभिधारी) द्वारा अपनी जोत अर्थात कृषि भूमि पर –
(क) अपने स्वयं के उपयोग के लिये बनाया गया निवास गृह या पशुशाला या भंडार गृह या कृषि प्रयोजनार्थ कोई अन्य संनिर्माण सुधार माना जायेगा।
(ख) कोई ऐसा कार्य जो उसकी जोत के मूल्य मे तत्वतः परिवर्धन करता है अर्थात उस भूमि की उपजाऊ क्षमता मे या गुणवत्ता मे वृद्धि करता है, और जिस प्रयोजन के लिये वो पट्टे पर दी गई हो उससे सुसंगत हो। सुधार माना जायेगा। जैसे –


1- कृषि प्रयोजन के लिए पानी के संचयन, प्रदाय व वितरण के लिए बंध, तालाब, कुएं, जलसारणी या अन्य संकर्मो का निर्माण।
2- भूमि से जल निकास हेतु या बाढ से या कटाव से या पानी से होने वाले नुकसान से भूमि के संरक्षण के लिए संकर्मो का निर्माण।
3- भूमि के ठीक करना, उसे साफ करना, मेडबन्दी करना, समतल करना या सिढीदार बनाना।
4- अपनी जोत के निकट सुविधाजनक या लाभदायक उपयोग हेतु अपेक्षित भवनो का परिनिर्माण।
5- पहले से बने हुए संकर्मो का नविनिकरण या पुनः निर्माण करना या ऐसे परिवर्तन करना जो केवल मरम्मत के स्वरूप के न हो।
     किन्तु अस्थाई कुएं, जलसारणी, बंध, मेडे या अन्य संकर्म जो काश्तकार द्वारा खेती के साधारण अनुक्रम मे बनाये जाये सुधार मे सम्मिलित नही है।






8-    खुदकाश्त – ( शाब्दिक अर्थ है स्वयं के द्वारा काश्त करना )
    धारा 5(23) के अनुसार राज्य के किसी भी भाग मे किसी संपदाधारी द्वारा वैयक्तिक रूप से (स्वयं द्वारा) जोती जाने वाली भूमि खुदकाश्त भूमि कहलाती है। इसमे –


1- राजस्थान काश्तकारी अधिनियम 1955 के प्रारम्भ के समय जो बन्दोबस्त रेकार्ड (अभिलेख) उपलब्ध थे उनमे खुदकाश्त, सीर, हवाला, निजी जोत, घरखेड, के रूप मे दर्ज भूमि और
2- इस अधिनियम के प्रारम्भ के बाद राज्य के किसी भी भाग मे खुदकाश्त के रूप मे आवन्टित भूमि सम्मिलित है।








9-    भूमि -  ( इस अधिनियम के संदर्भ मे भूमि की परिभाषा मे सिर्फ यह बताया गया है कि किस प्रकार की भूमि को भूमि माना जायेगा। )
     धारा 5(24) के अनुसार ऐसी भूमि जो कृषि प्रयोजनो या उसके अधिनस्थ प्रयोजनो के लिए या बाग भूमि या चरागाह के लिए पट्टे पर दी जाती है या किसी व्यक्ति द्वारा धारित की जाती है, इस अधिनियम के संदर्भ मे भूमि है, इसमे ऐसी भूमि भी सम्मिलित है जो किसी जोत पर स्थित मकानो या बाडो के तल की भूमि या जल से ढकी हुई भूमि जो सिंचाई करने या सिंघाडा या ऐसी अन्य कोई पैदावार के उपयोग मे लाई जा सके । इसमे भूमि से उत्पन्न होने वाले फायदे, (जैसे – फसलो से लाभ, फलो आदि से लाभ) भू-बद्ध वस्तुएं अर्थात जिसकी नींव या जडे धरातल मे स्थापित हो ( जैसे – वृक्ष, झाडिया या कोई भवन या कुआं)  व किसी भूबद्ध वस्तु से स्थायी रूप से आबद्ध वस्तुएं अर्थात जो किसी स्थाई निर्माण से जुडी हुई हो ( जैसे- किसी कुएं पर कोई मशीन स्थाई फाउन्डेशन भर कर स्थापित की गई हो जो हटाई न जा सके) भी शामिल है।
        किन्तु इसमे आबादी भूमि सम्मिलित नही है।


10-                       वैयक्तिक रूप से जोती गई भूमि – धारा 5(25) के अनुसार वैयक्तिक रूप से जोती गई अर्थात स्वयं के द्वारा जोती गई भूमि से अभिप्राय उस भूमि से है जो किसी व्यक्ति द्वारा स्वयं के श्रम से जोती गई हो या अपने स्वयं के कुटुम्ब के किसी सदस्य की खुद की निगरानी मे नगद या वस्तु के रूप मे मजदुरी देकर भाडे के श्रमिको या नौकरो द्वारा जुतवाई गई हो।  किन्तु दी जाने वाली मजदुरी फसल के सदस्य के श्रम द्वारा जोती गई हो, या उसकी स्वयं की अथवा कुटुम्ब के किसी हिस्से के रूप मे नही होगी।


      परन्तु कोई विधवा या अव्यस्क या शारीरिक अथवा मानसिक रूप से निर्योग्य व्यक्ति या भारत की थलसेना, नौसेना या वायुसेना का सदस्य या राज्य सरकार की मान्यता प्राप्त किसी शिक्षा संस्था मे अध्ययनरत कोई पच्चीस वर्ष की उम्र से कम आयु का विद्यार्थी हो तो, उनके द्वारा खुद की निगरानी के अभाव मे भी उनकी भूमि वैयक्तिक रूप से जोती गई मानी जायेगी।




11-                       भूमिहीन व्यक्ति – धारा 5(26क) के अनुसार कृषक वृति का कोई व्यक्ति जो वैयक्तिक रूप से भूमि जोतता है या जिससे वैयक्तिक रूप से भूमि जोतने की युक्तियुक्त प्रत्याशा की जा सकती हो, किन्तु उसके स्वयं के नाम से या उसके अविभक्त कुटुम्ब के किसी सदस्य के नाम कोई भूमि धारण नही करता हो या कोई खण्ड धारण करता हो, भूमिहीन व्यक्ति है।

   ( अर्थात् वह व्यक्ति जो पेशे से कृषक हो तथा खुद खेती करता हो,या खेती करने के लिये सही तरिके से वाकिब हो, किन्तु खुद के नाम से या उसके सयुंक्त परिवार के किसी सदस्य के नाम कोई भूमि नही हो या न्यूनतम क्षैत्र से कम भूमि हो। भूमिहीन व्यक्ति है।)




12-                       अधिमुक्त भूमि या अधिवासी भूमि – धारा 5(27) के अनुसार वह भूमि जो किसी व्यक्ति (अभिधारी) को पट्टे पर दी गई हो और वो उसके कब्जे मे हो। (अर्थात किसी व्यक्ति द्वारा विधिवत धारित कृषि भूमि) अधिमुक्त भूमि या अधिवासी भूमि है, इसमे खुदकाश्त की भूमि भी सम्मिलित है। तथा जो किसी भी अभिधारी (काश्तकार) द्वारा धारित न हो तथा किसी के अभिभोग मे न हो वह अनधिमुक्त या अनधिवासी भूमि है। (अर्थात् जो किसी व्यक्ति के विधिवत धारित न हो और किसी के कब्जे मे न हो )

13-                       चरागाह या गोचर भूमि – (शाब्दिक अर्थ है चरागाह मतलब चराई का स्थान व गोचर मतलब गौधन के चरने के लिये) धारा 5(28) के अनुसार वह भूमि जो गाँव के पशुओ को चराने के उपयोग मे लाई जाती है चरागाह भूमि है, जो इस अधिनियम के लागु होने से पहले के बन्दोबस्त रेकार्ड मे चरागाह के रूप मे दर्ज है या बाद मे राज्य सरकार के नियमो के अनुसार इस रूप मे दर्ज की जाये या आरक्षित की जाए।

14-                       लगान – धारा 5(32) के अनुसार वह भुगतान जो किसी  (काश्तकार) द्वारा भूमि के उपयोग या उसमे किसी अधिकार के लिये नकद या वस्तु के रूप मे या आंशिक नकद व आंशिक वस्तु के रूप मे अपने भू धारक को किया जाये, लगान है। इसमे सायर सम्मिलित है। ( यह फसली मांग है)

15-                       राजस्व – धारा 5(34) के अनुसार राजस्व या भू-राजस्व वह राशि है जो भूमि मे किसी हित या भूमि के उपयोग के लिये राज्य सरकार को सीधे भुगतान की जाये, यह वार्षिक मांग है। इसमे समनुष्टि भू-राजस्व सम्मिलित है।

16-                       सायर – धारा 5(37)  के अनुसार सायर वह भुगतान है जो किसी पट्टेदार या लाईसेंसधारी द्वारा अनधिमुक्त भूमि (सरकारी भूमि) से प्राकृतिक उपज (जैसे – घास-फूस, लकडी, ईंधन, फल, लाख, गोंद, लूंग, पाला, पन्नी, सिंघाडा या ऐसी ही अन्य कोई वस्तुए) संग्रहीत करने के अधिकार के लिये या भूमि तल पर बिखरा कचरा (जैसे- हड्डी, गोबर आदि) एकत्र करने के अधिकार के लिये या मछली पालन या वन अधिकार के लिये अथवा मानव निर्मित स्त्रोतो से सिंचाई के लिये पानी के उपयोग के लिये किया जाता है।



17-                       राजस्व न्यायालय – धारा 5(35) के अनुसार कृषि अभिधृतियो (कृषि भूमि मे अधिकार) या कृषि भूमि से संबंधित लाभो या उसमे किसी हित या अधिकार के संबंध मे कोई वाद या कार्यवाहीयां ग्रहण करने वाला कोई भी न्यायालय या अधिकारी जिससे उक्त मामले मे न्यायिक रूप से कार्य करना होता है, राजस्व न्यायालय है। इसमे राजस्व बोर्ड और उसका प्रत्येक सदस्य, राजस्व अपील प्राधिकारी, कलक्टर, उपखण्ड अधिकारी, सहायक कलक्टर, तहसीलदार या कोई भी अन्य राजस्व अधिकारी जो इस प्रकार कार्य करे, सम्मिलित है।

18-                       राजस्व अधिकारी – धारा 5(36) के अनुसार राजस्व या लगान संबंधी कार्य मे या राजस्व अभिलेखो के रखरखाव के लिये नियुक्त अधिकारी राजस्व अधिकारी है।

19-                       अभिधारी या आसामी – धारा 5(43) के अनुसार अभिधारी वह व्यक्ति है जो लगान का भुगतान करता है, या किसी विशेष संविदा के न होने पर भुगतान करना होता। ( विशेष- वैध प्राधिकार द्वारा कृषि भूमि को धारण करने वाला काश्तकार या कृषक अभिधारी है।)

20-                       अतिचारी या अतिक्रमी – धारा 5(44) के अनुसार वह व्यक्ति जो बिना किसी वैध प्राधिकार के भूमि पर कब्जा करता है, या कब्जा बनाये रखता है, अथवा किसी अन्य व्यक्ति को उसके पट्टे की भूमि को अधिभोग ( कब्जे मे ) लेने से रोकता है,अतिचारी या अतिक्रमी है।

21-                       नालबट – धारा 5(47) के अनुसार किसी कुए के मालिक को सिंचाई के लिये उसके कुए से पानी के उपयोग हेतु नकद या वस्तु के रूप मे किया जाने वाला भुगतान नालबट कहलाता है।

 




अध्याय 3 अभिधारियो के वर्ग ( श्रेणियां)

Ø धारा 14 के अनुसार अभिधारियो अर्थात काश्तकारो को चार वर्गो मे विभाजित किया गया है-


(क) खातेदार – (कक) मालिक (ख) खुदकाश्त अभिधारी (ग) गैर खातेदार


Ø खातेदार – (शाब्दिक अर्थ है खाता धारक अर्थात वह व्यक्ति जो अपने नाम से भूमि का कोई खाता रखता है खातेदार है।)
     धारा 15 के अनुसार इस अधिनियम के लागु होने के समय जो व्यक्ति अभिधारी के रूप मे दर्ज था, या इसके लागु होने के बाद किन्ही नियमो के अन्तर्गत अभिधारी के रूप मे दर्ज किया गया हो, या राजस्थान भू सुधार एवं जागीरदारी उन्मूलन अधिनियम 1952 के लागु होने से खातेदारी अधिकार अर्जित कर लिये हो। खातेदार काश्तकार (अभिधारी) है।

Ø खातेदार अभिधारी ( काश्तकार) को इस अधिनियम मे कृषि भूमि के संबंध मे व्यापक अधिकार प्राप्त है। जो निम्नानुसार हैः-
1- काश्तकारो के प्राथमिक अधिकार
2- अभिधृति (कृषि भूमि मे अधिकार) के न्यागमन अर्थात उत्तराधिकार योग्य अधिकार
3- कुछ शर्तो के अधीन विक्रय, दान, वसीयत, बंधक, पट्टा, उप पट्टा द्वारा अन्तरण करने का अधिकार
4- विनिमय (अदला-बदली) का अधिकार
5- बंटवारा कराने का अधिकार
6- समर्पण व परित्याग करने का अधिकार
7- भूमि पर सुधार करने का अधिकार
8- वृक्ष लगाने का अधिकार
9- अपने अधिकारो की घोषणा के लिये वाद दायर करने का अधिकार


     

Ø मालिक – धारा 17क के अनुसार राजस्थान जमीदारी और बिस्वेदारी उत्सादन अधिनियम 1959 के तहत प्रत्येक जमीदार या बिस्वेदार की भू संपदा राज्य सरकार मे निहित हो गई अर्थात राज्य सरकार द्वारा अधिग्रहित कर ली गई तब वे उस अधिनियम की धारा 29 के अनुसार उनके स्वयं के उपभोग के लिये धारित खुद काश्त की भूमि के मालिक बन गये। ( मालिक को वे सभी अधिकार प्राप्त है जो खातेदार को है, आजकल मालिक नाम से कोई भी अभिधारी (काश्तकार) नही है सभी खातेदार बन गये है)

Ø खुदकाश्त अभिधारी – धारा 16क के अनुसार इस अधिनियम के प्रारम्भ के समय या इसके बाद किसी संपदाधारी द्वारा किसी व्यक्ति को विधिवत खुदकाश्त के लिये भूमि दी गई हो, वह खुदकाश्त अभिधारी (काश्तकार)है। ( वर्तमान मे राजस्थान मे कोई खुदकाश्त अभिधारी (काश्तकार)नही है, सभी खातेदार बन गये है)

Ø गैर खातेदार – ( गैर खातेदार की परिभाषा नकारात्मक रूप मे बताई गयी है) धारा 17 के अनुसार कोई अभिधारी (काश्तकार) खातेदार नही है, खुदकाश्त अभिधारी नही है, उप अभिधारी नही है, मालिक नही है, तो वो गैर खातेदार है। ( विशेष – राजस्थान भूराजस्व अधिनियम 1956 की धारा 101 के तहत आवंटित भूमि का आसामी भी प्रथम 3 वर्ष तक गैर खातेदार होता है, बाद मे आवंटन शर्तो की पालना कर वह खातेदारी अधिकार प्राप्त कर सकता है।)





Ø प्रतिबंधित भूमियां जिन पर खातेदारी अधिकार नही दिये जा सकते है – धारा 16 के अनुसार निम्नांकित श्रेणी की भूमि पर कभी भी किसी व्यक्ति को खातेदारी अधिकार नही दिये जा सकते है-
1- चरागाह भूमि
2- किसी नदी या तालाब के तल की भूमि जिस पर कभी-कभी पानी कम होने पर खेती की जाती हो।
3- पानी मे डूबी हुई (जल मग्न) भूमि जिसका सिंघाडा या ऐसी ही अन्य उपज के उपयोग किया जाता है।
4- परिवर्ति या अस्थिर खेती वाली भूमि।
5- राज्य सरकार के स्वामित्व के या उसके द्वारा पोषित बाग की भूमि।
6- किसी सार्वजनिक या लोक उपयोगिता की भूमि।
7- किसी सैनिक शिविर स्थल के लिये आरक्षित भूमि।
8- किसी सैनिक छावनी की सीमाओ के अन्दर की भूमि।
9- रेल्वे लाईन या नहर की सीमाओ के अन्दर की भूमि।
10- सरकारी वन सीमाओ के भीतर की भूमि।
11- नगरपालिका का कचरा स्थल ( डंपिंगयार्ड)
12- शैक्षणिक संस्थाओ द्वारा कृषि शिक्षण या खेल मैदान के लिये धारित भूमि।
13- किसी सरकारी कृषि-फार्म या घास-फार्म की सीमाओ के भीतर की भूमि।
14- वह भूमि जिसमे से होकर किसी गाँव के पीने का पानी किसी जलाशय या टांके मे बह कर जाता है। अर्थात जल बहाव क्षैत्र मे आने वाली भूमि।


 

अध्याय 3ख अधिकतम सीमा-क्षैत्र

Ø अधिकतम सीमा-क्षैत्र का परिमाणधारा 30ग के अनुसार पाँच या पाँच से कम सदस्यो का कुटुम्ब (परिवार) अधिकतम 30 मानक ( स्टेण्डर्ड) एकड कृषि भूमि धारण कर सकता है, इससे ज्यादा नही। यदि कुटुम्ब (परिवार) के सदस्यो की संख्या पाँच से अधिक है तो प्रत्येक अतिरिक्त सदस्य के लिये 5 मानक (स्टेण्डर्ड) एक़ड की वृद्धि की जायेगी। किन्तु यह वृद्धि सहित कुल भूमि 60 मानक ( स्टेण्डर्ड) से ज्यादा नही होगी।

Ø कुटुम्ब – अधिकतम सीमा-क्षैत्र की गणना हेतु कुटुम्ब ( परिवार ) मे निम्नांकित व्यक्ति सम्मिलित माने जायेंगे –

1-    पति और पत्नि

2-    उन पर आश्रित उनकी संताने

3-    पौत्र-पौत्रियां

4-    पति की आश्रित विधवा माता




अध्याय 3ग अभिधारियो (काश्तकारो ) के प्राथमिक अधिकार

(RAS Exam 2016 )

Ø इस अधिनियम मे एक अभिधारी (काश्तकार) के प्राथमिक अधिकारो को विधिक रूप से सम्मिलित किया गया है। जो निम्नानुसार है-

1-    आवास गृह का अधिकार – धारा 31 के अनुसार प्रत्येक आसामी को उस गांव मे एक मकान के लिये बिना मूल्य के एक भूखण्ड रखने का अधिकार है, जिसमे वह कृषि भूमि धारण करता है।
( यह अधिकार काश्तकार के अलावा उस गांव मे 10 वर्ष या इससे अधिक समय से स्थाई तौर से निवास करने वाले कृषि-कर्मकार और शिल्पी को भी प्राप्त है। )

2-    लिखित पट्टा और उसका प्रतिलेख प्राप्त करने का अधिकार – धारा 32 के अनुसार प्रत्येक काश्तकार को अपने भू-धारक से अपनी भूमि का लिखित पट्टा  प्राप्त करने की अधिकार है।

3-    पट्टो का अनुप्रमाण कराने का अधिकार – धारा 33 के अनुसार प्रत्येक काश्तकार को अपने पट्टे को रजिस्टर्ड कराने के बजाय राज्य सरकार द्वारा अधिकृत अधिकारी से अनुप्रमाणित कराने का अधिकार है, इस प्रकार किया गया अनुप्रमाणन भारतीय रजिस्ट्रेशन एक्ट 1908 के अर्थान्तर्गत रजिस्टर्ड माना जायेगा।

4-    प्रिमियम ( अतिरिक्त राशि) लेने व बलपूर्वक श्रम कराने पर रोक – धारा 34 के अनुसार कोई भी भू-धारक किसी भी काश्तकार को पट्टा देने के बदले नियमो मे निर्धारित राशि के अतिरिक्त कोई अन्य राशि प्रिमियम के रूप मे नही ले सकता है और न ही किसी से बलपूर्वक श्रम (सेवा) करा सकता है।

5-    लगान के अलावा कोई रकम लेने पर रोक – धारा 35 के अनुसार किसी भी भूमि पर निर्धारित लगान के अतिरिक्त किसी अन्य लाग-बाग के नाम से कोई अन्य राशि वसूल नही की जायेगी।

6-    सामग्री के उपयोग का अधिकार – प्रत्येक काश्तकार को अपनी भूमि पर पडी हुई या नीचे दबी हुई किसी वस्तु को या सुधार करते वक्त खुदाई मे प्राप्त किसी भी वस्तु का उपयोग करने का अधिकार है।

7-    नालबट के अधिकार को प्राप्त करना – धारा 36क के अनुसार काश्तकार को अपने कुएं पर नालबट प्राप्त करने का अधिकार है।

8-    न्यायालय के आदेश से अपनी जोत की जब्ती, कुर्की और निलामी से बचाव – धारा 37 के अनुसार किसी भी काश्तकार की भूमि किसी सिविल न्यायालय के आदेश द्वारा जब्त, कुर्क व निलाम नही किया जा सकता है।






अध्याय 4 न्यागमन, अन्तरण, विनिमय और विभाजन
(न्यागम)
Devolution

Ø वसीयत – धारा 39 के अनुसार कोई भी खातेदार काश्तकार अपनी जोत या उसके भाग को अपनी स्वीय विधि ( परसनल लॉ ) के अनुरूप वसीयत कर सकता है।

Ø उत्तराधिकार – धारा 40 के अनुसार कोई काश्तकार बिना वसीयत किये मर जाये तो उसकी जोत उसके वारिसान को उसकी स्वीय विधि (परसनल लॉ) के अनुरूप न्यागत होगी । अर्थात उत्तराधिकार मे प्राप्त होगी।

(अन्तरण) Transfer

                                                                

Ø अन्तरण – धारा 41 के अनुसार कोई भी खातेदार काश्तकार धारा 42 व 43 मे दिये गये प्रतिबंधो के अलावा अपनी कृषि भूमि का अन्तरण कर सकता है।

Ø विक्रय, दान, वसीयत पर प्रतिबन्ध – धारा 42(ख) के अनुसार कोई भी खातेदार काश्तकार यदि

1-     अनुसूचित जनजाति का सदस्य है तो वह अनुसूचित जनजाति को ही विक्रय, दान या वसीयत कर सकता है।

2-    अनुसूचित जाति का सदस्य है तो वह अनुसूचित जाति को ही विक्रय, दान या वसीयत कर सकता है।

3-     सहारिया जनजाति का सदस्य है तो वह सहारिया को ही विक्रय, दान वसीयत कर सकता है।
  (अर्थात उपरोक्त तीनो शर्तो के उलंघन मे किया गया विक्रय, दान वसीयत शुन्य माना जायेगा है।)





Ø बंधक (रहन) – धारा 43(1) के अनुसार कोई भी खातेदार काश्तकार राज्य सरकार द्वारा अधिसूचित सहकारी सोसायटी या भूमि विकास बैंक या राष्ट्रीयकृत बैंक से ऋण प्राप्त करने हेतु अपनी भूमि को बंधक (रहन) रख सकेगा। कोई गैर खातेदार काश्तकार है तो वह  प्राधिकृत अधिकारी की स्वीकृति से उपरोक्तानुसार रहन रख  सकता है। तथा धारा 43(2) के अनुसार कोई खातेदार काश्तकार अपनी जोत को किसी अन्य व्यक्ति के अधिकतम 5 वर्ष की अवधि के लिये बंधक या भोग बंधक ( कब्जे सहित)  रख सकता है। किन्तु इसमे ST का व्यक्ति ST को व SC का व्यक्ति SC को ही बंधक रख सकता है।

Ø पट्टे या उप पट्टे पर देने का अधिकार – धारा 44 को अनुसार कोई भी खुदकाश्त का धारक या भू स्वामी अपनी जोत को पट्टे पर तथा कोई अभिधारी (काश्तकार) उप पट्टे पर दे सकता है। किन्तु वे भू-धारक के प्रति अपने दायित्वो से मुक्त नही हो सकते है। ( वर्तमान मे खुदकाश्त धारक व भूस्वामी नही है)

Ø पट्टे या उप पट्टे पर देने पर निर्बन्ध – धारा 45 के अनुसार

1-    कोई भी खुदकाश्त का धारक या भू स्वामी अपनी जोत को पट्टे पर तथा कोई खातेदार अभिधारी (काश्तकार) उप पट्टे पर एक बार मे अधिकतम 5 वर्ष के लिये दे सकता है।

2-     राज्य सरकार द्वारा अनुमोदित किसी कृषि प्रसंस्करण या कारोबार के लिये अधिकतम 15 वर्ष तक पट्टे पर या उप पट्टे पर दी जा सकती है तथा, अवधि पूर्ण होने पर 15 वर्ष के लिये बढाई भी जा सकती है

3-    किसी भूमि पर एक बार पट्टे या उप पट्टे की समयावधि पूर्ण हो जाती है तो उस पर आगामी 2 वर्षो तक दुबारा पट्टा या उप पट्टा जारी नही किया जा सकता है।

4-    कोई गैर खातेदार  अपनी जोत को एक वर्ष से अधिक अवधि के लिये उप पट्टे पर नही दे सकता है।



Ø अपवादित व्यक्ति जिन पर पट्टे या उप पट्टे पर देने के निर्बन्ध लागू नही होंगेः- धारा 46 के अनुसार निम्नांकित व्यक्तियो की जोत पर धारा 45 मे वर्णित निर्बन्ध लागू नही होंगे-
1- अवयस्क
2- पागल
3- जड
4- कोई औरत जो अविवाहित हो या परित्यकता हो या विधवा हो
5- कोई व्यक्ति जो शारीरिक या मानसिक निर्योग्यता के कारण अपनी भूमि नही जोत पाता है।
6- भारत की सशस्त्र सेनाओ का सदस्य
7- किसी जेल मे निरूद्ध व्यक्ति
8- पच्चीस वर्ष की आयु से छोटा कोई व्यक्ति जो किसी मान्यता प्राप्त शैक्षणिक संस्था मे अध्ययनरत हो

Ø धारा 46क के अनुसार ST का व्यक्ति ST को व SC का व्यक्ति SC को ही पट्टे या उप पट्टे पर सकता है।




(विनिमय) Exchange

Ø भूमि का विनिमय (अदला बदली) – इस अधिनियम मे भूमि के विनिमय के संबंध मे निम्नांकित प्रावधान किये गये है-

1-     धारा 48 के अनुसार एक ही वर्ग के अभिधारी (काश्तकार) जो एक ही भू धारक से भूमि ग्रहण करते है अपने भूधारक की सहमति से अपनी भूमि का विनिमय (अदला-बदली) कर सकते है।

2-     यदि  अभिधारी (काश्तकार) अलग-अलग भू धारक से भूमि धारण करते है तो उन सभी की सहमति से विनिमय कर सकते है। ( वर्तमान मे सिर्फ राजस्थान सरकार ही भू-धारक है।)

3-    कोई भू-धारक अभिधारी (काश्तकार) को उसकी सहमति से उसे पट्टे पर दी गई भूमि से अलग कोई भूमि विनिमय मे दे सकता है। जो उसकी जोत मे सम्मिलित हो।

4-     धारा 49 के अनुसार कोई खातेदार काश्तकार अपनी भूमि के नजदीक स्थित किसी अन्य काश्तकार की भूमि को चकबन्दी (समेकन) के लिये विनिमय ( अदला-बदली) करने के लिये अपने सहायक कलक्टर को आवेदन कर सकता है। किन्तु प्रार्थी की जोती जाने वाली भूमि व प्राप्त होने वाली भूमि लगभग समान और वैसी ही गुणवत्ता वाली होनी चाहिये। जांच के बाद सही पाये जाने पर सहायक कलक्टर विनिमय मे ऐसी भूमि को आवंटित करेगा।

5-     धारा 49क के अनुसार ST का व्यक्ति ST को व SC का व्यक्ति SC को ही विनिमय कर सकता है।

6-    धारा 50 के अनुसार विनिमय मे प्राप्त भूमि पर वो सभी अधिकार प्राप्त होंगे जो विनिमय मे दी गई भूमि पर प्राप्त थे।

7-     धारा 51 के अनुसार यदि विनिमय मे सहायक कलक्टर द्वारा आवंटित भूमि पर कोई पट्टा, बंधक, या अन्य कोई भार है तो वह उसके बदले दी जाने वाली भूमि पर अंतरित हो जायेगा।


(विभाजन) Division

Ø धारा 53 के अनुसार कोई भी काश्तकार किसी भूमि मे अपने हिस्से का निम्नानुसार विभाजन (बंटवारा) करा सकता है-

1-    सह अभिधारियो के आपसी सहमति से जिन हिस्सो मे भूमि विभाजित की जा सके उसके लगान वितरण के बारे मे लिखित करार द्वारा।

2-    आपसी सहमति नही होने पर एक से अधिक सह अभिधारियो द्वारा विभाजन व लगान के वितरण के लिये किसी सक्षम न्यायालय (सहायक कलक्टर) मे वाद दर्ज कर किसी डिक्री या आदेश द्वारा।

3-    किसी एक या अधिक जोतो के विभाजन के प्रत्येक वाद मे सभी सह अभिधारी (काश्तकार) और भू-धारक पक्षकार बनाया जाना आवश्यक है।

4-    एक से अधिक जोतो के विभाजन के लिये यदि वे ही पक्षकार है तो सभी जोतो के लिये एक ही वाद दायर किया जा सकेगा।






अध्याय 5 अभ्यर्पण, परित्याग और निर्वापन

Ø अभ्यर्पण (समर्पण) Surrender – ( अपनी स्वेच्छा से अपनी भूमि को भू-धारक को दे देना या समर्पित कर देना ) समर्पण के संबंध मे इस अधिनियम मे निम्नांकित प्रावधान है-

1-    धारा 55 के अनुसार कोई अभिधारी (काश्तकार) जो अपनी जोत को ठीक आगामी वर्ष मे अधिभोग मे रखने के किसी पट्टे या करार द्वारा आबद्ध नही है, (अर्थात वह किसी पट्टे या किसी बॉण्ड की शर्तो के अधीन कब्जा नही छोडने हेतु बाध्य नही है) तो वह प्रथम मई या उससे पहले अपनी जोत को अभ्यर्पण कर सकता है।

2-    अभिधारी (काश्तकार) अपने क्षैत्र के तहसीलदार या नगरपालिका के अध्यक्ष द्वारा सत्यापित लिखित दस्तावेज से अपनी जोत का कब्जा छोडकर अभ्यर्पण कर सकता है।

3-    अभ्यर्पण सिर्फ भू-धारक को ही किया जा सकता है, अन्य किसी को नही।

4-    धारा 56 के अनुसार अभ्यर्पण के लिये अपने भू-धारक को 1 मई से 30 दिन पूर्व अपनी जोत को स्वैच्छिक समर्पण करने व आगामी वर्ष मे लगान के दायित्व से मुक्त होने के लिये रजिस्टर्ड नोटिस दिया जाना आवश्यक है।

5-    यदि किसी जोत पर दो या अधिक सह काश्तकार है तो वे सभी समर्पण करेंगे, किसी एक के हिस्से का समर्पण नही किया जा सकता है।

6-    धारा 57 के अनुसार यदि किसी न्यायालय के डिक्री या आदेश के तहत लगान की वृद्धि कर दी जाये तब अभिधारी (काश्तकार)किसी भी समय अपने भू-धारक को नोटिस देकर समर्पण कर सकता है, इसके लिये एक मई से 30 दिन पूर्व नोटिस दिया जाना आवश्यक नही है।

7-    धारा 58 के अनुसार कोई भू-धारक किसी अभ्यर्पण को अवैध मानता है तो वह उसे अपास्त कराने हेतु सहायक कलक्टर को वाद दर्ज करायेगा, यदि ऐसा नही करता है तो अभ्यर्पण के प्रति उसकी स्वीकृति समझी जायेगी।

8-    जब किसी काश्तकार का अभ्यर्पण स्वीकार कर लिया जाता है तो समर्पित भूमि मे उसके सारे अधिकार समाप्त हो जायेंगे  और वो कब्जे-राज ले ली जायेगी।




Ø परित्याग (Abandonment) -  साधारणयता परित्याग का अर्थ है कि किसी काश्तकार द्वारा अपनी भूमि पर कृषि करने की व्यवस्था किये बिना ही उसे छोड देना।

Ø धारा 60 मे परित्याग के लिये कुछ आवश्यक शर्ते है, जो निम्नानुसार है-

1-    अभिधारी (काश्तकार) ने भूमि का पडौस छोड दिया हो,

2-    अपनी जोत पर खेती करना बन्द कर दिया हो।

3-    उसने ऐसा कोई प्रभारी नियुक्त नही किया जो उस भूमि पर खेती करे और लगान भुगतान करे।

4-    जब उसने ऐसा करने का धारा 60(1) अनुसार भू-धारक को नोटिस नही दिया हो।

5-    यदि  काश्तकार ने कोई ऐसा व्यक्ति प्रभारी रखा है जो उसके मरने के बाद उक्त जोत विरासत मे प्राप्त करता हो, या कोई ऐसा व्यक्ति हो जो उसके उत्तराधिकारियो के संरक्षक के रूप मे भूमि जोतता हो और सात वर्ष की अवधि तक वह काश्तकार वापस अपनी भूमि जोतना प्रारम्भ नही करे तो उसकी जोत को परित्याग माना जायेगा और उसके सारे हित उसके उत्तराधिकारीयो को न्यागत होंगे।

6-    यदि काश्तकार द्वारा रखा गया व्यवस्थापक कोई अन्य व्यक्ति है जिसे उसके अधिकार उत्तराधिकार मे न्यागत नही होते है, तो ऐसा माना जायेगा कि उसने उक्त भूमि उप पट्टे पर दी है, और यदि वह उप पट्टे की निर्धारित अवधि (5 वर्ष) पूर्ण होने से पूर्व पुनः खेती प्रारम्भ न करे तो उसकी जोत परित्याग मानी जायेगी।

Ø परित्याग मानी गई भूमि पर कब्जा लेना – धारा 61 के अनुसार किसी काश्तकार की भूमि को परित्याग मान लिया जाता है तो उसका कब्जा लेने की प्रक्रिया निम्नानुसार है-

1-    यदि किसी काश्तकार की भूमि परित्याग समझी जाये तो तहसीलदार स्वप्रेरणा या भू-धारक के आवेदन पर उक्त भूमि के संबंध मे युक्तियुक्त कारण दर्शित करने हेतु एक उद्घोषणा जारी करेगा जिसमे जिसमे ऐसी भूमि का विवरण अंकित होगा ।

2-    उपरोक्त उद्घोषणा को विधिवत रूप से तामील या प्रकाशित कराया जायेगा।

3-    यदि काश्तकार स्वयं या उसकी और से कोई व्यक्ति उद्घोषणा के जारी होने के 60 दिन मे उपस्थित होकर कोई युक्तियुक्त कारण दे देवे और तहसीलदार उससे संतुष्ट हो जाये तो परित्याग नही माना जायेगा किन्तु उसका कारण सही न हो और उसका आक्षेप खारीज कर दिया जाये तब तहसीलदार या भू-धारक उसकी जोत मे प्रवेश कर उसका कब्जा ले सकेंगे।

4-    यदि किसी जोत का कब्जा ले लिया जाये तो वह किसी अन्य काश्तकार को पट्टे पर दी जा सकेगी।

5-    यदि उपरोक्त प्रक्रिया के पालन किये बिना कब्जा ले लिया जाये तो उसे दोषपूर्ण ( विधि के उल्लंघन ) बेदखल माना जायेगा।

Ø परित्याग समझी गयी भूमि पर विशेष उपाबन्ध- धारा 62 के अनुसार किसी अकाल, सुखा महामारी या आपदा के कारण कोई काश्तकार अपनी जोत को छोडकर कही अन्यत्र चला जाता है, और उसकी जोत परित्याग समझ धारा 61 की प्रक्रिया से कब्जे-राज ले ली जाये, परन्तु वह काश्तकार धारा 61 मे जारी 60 दिन की उद्घोषणा के जारी होने की दिनांक से एक वर्ष के भीतर उपस्थित होकर तहसीलदार को आवेदन करे कि उसने उक्त कारणो से भूमि छोडी है, और उसका कारण सही पाया जाये तथा वह परित्याग की अवधि के उस भूमि के निमित्त सभी बकाया का भुगतान कर दे तो उसे उसकी भूमि पुनः लौटा दी जायेगी।

Ø निर्वापन ( अहवसान या पर्यवसान) Extinction – ( निर्वापन का सरल अर्थ है पूर्ण रूप से समाप्त हो जाना। तथा निर्वापित का अर्थ है बुझाना या पूर्ण रूप से अंत कर देना। ) इस अधिनियम के संदर्भ मे निर्वापन का अर्थ है किसी अभिधारी (काश्तकार) के अपनी जोत मे सारे अधिकार समाप्त हो जाना।

·        निर्वापन की परिस्थितियां – धारा 63 के अनुसार निम्नांकित कारणो से किसी अभ्यर्थी (काश्तकार) के अपनी जोत मे सारे अधिकार समाप्त हो जायेंगे अर्थात निर्वापित हो जायेंगे-

1-    यदि वह बिना वारिस छोडे मर जाये।

2-    यदि वह इस अधिनियम के प्रावधानो के अनुरूप समर्पण या परित्याग कर दे।

3-    यदि उसकी भूमि राज्य सरकार द्वारा अर्जित (अवाप्त) कर ली जाये। (किन्तु अवाप्ति के लिये वह मुआवजे की मांग कर सकता है।)

4-    यदि उसे नियमानुसार कब्जे से वंचित कर दिया जाये और कब्जा वापस प्राप्त करने की उसकी समय सीमा वर्जित कर दी जाये।

5-    यदि उसे नियमानुसार बेदखल कर दिया जाये।

6-    यदि वह भू-धारक के सारे अधिकार प्राप्त कर ले या भू-धारक उसकी भूमि विरासत मे प्राप्त कर ले। ( वर्तमान मे राज्य सरकार ही भू धारक है अतः यह कारण निष्प्रभावी है।)

7-    यदि वह अपनी भूमि को विक्रय या दान कर दे।

8-    यदि वह विधिपूर्वक पासपोर्ट प्राप्त किये बिना विदेश चला जाये और वहां रहने लग जाये।

9-    यदि किन्ही शर्तो के भंग करने पर नियमानुसार उसका आवन्टन रद्द कर दिया जाये।

    उपरोक्त परिस्थितियो मे काश्तकार के भूमि मे अधिकार समाप्त होने पर धारा 64 के अनुसार राजस्व अधिकारी उक्त भूमि को खाली कराकर कब्जे-राज लेगा।





अध्याय 6 सुधार ( Improvement)

Ø सुधार – धारा 5(19) मे परिभाषित सुधार कार्य करने के संबंध मे इस अध्याय मे निम्नांकित प्रावधान किये गये है-

1-    धारा 65 के अनुसार राज्य सरकार राज्य के किसी भी भाग मे कहीं पर भी सुधार कर सकती है।

2-    धारा 66 के अनुसार कोई भी खातेदार काश्तकार अपनी जोत मे कुछ शर्तो के अधीन सुधार कर सकता है।

3-    धारा 70 के अनुसार गैर खातेदार या खुदकाश्त या उप- अभिधारी (काश्तकार) द्वारा भी सुधार किया जा सकेगा, किन्तु यदि उसने तहसीलदार या जिससे भूमि धारण करता है, उस व्यक्ति से अनुमति प्राप्त नही की है तो वह बेदखल किये जाने पर अपने सुधार के लिये मुआवजे की मांग नही कर सकता है।

4-    धारा 71 के अनुसार कोई अभिधारी (काश्तकार)अपनी जोत के अलावा अन्य किसी भूमि पर राज्य सरकार की अनुमति के बिना सुधार नही कर सकता है तथा ऐसा कोई सुधार नही कर सकेगा जो उस भूमि के लिये अहितकर (नुकसानदायक) हो।

5-    धारा 72 के अनुसार किसी भी  (काश्तकार)को सुधार करने पर लगान संदाय मे किसी प्रकार की छुट प्राप्त नही होगी, अर्थात लगान भुगतान करना ही होगा।

6-    धारा 74 के अनुसार कोई अभिधारी (काश्तकार) जिसने इस अधिनियम के प्रावधानो के अधीन सुधार कार्य किया है और उसे किसी आदेश या डिक्री की पालना मे बेदखल किया जाये या जब उसे दोषपूर्ण तरिके से बेदखल कर दिया गया हो और वह वापस कब्जा न ले सके या उसके पट्टे की अवधि समाप्त होने पर से भूमि खाली करनी पडे, तो वह उस सुधार के लिये (कुछ शर्तो के अधीन) मुआवजे का हकदार होगा।

7-    धारा 77 के अनुसार कोई अभिधारी (काश्तकार) अपने जोत पर किये गये सुधार कार्य की लागत तहसीलदार को आवेदन कर रजिस्ट्रर्ड करवा सकता है।

8-    धारा 78 के अनुसार यदि किसी सुधार के बारे मे कोई विवाद  उत्पन्न हो तो सहायक कलक्टर को आवेदन करने पर उसके द्वारा उसका निपटारा किया जायेगा।



अध्याय 7 वृक्ष (Trees)

Ø वृक्ष – इस अध्याय मे वृक्षो संबंधित निम्नलिखित प्रावधान किये गये है-

1-    धारा 79 के अनुसार कोई भी काश्तकार अपनी जोत पर निम्न दो शर्तो के अधीन वृक्ष लगा सकता है-
1- ऐसे वृक्ष भूमि की उत्पादकता और उपजाऊ क्षमता को कम नही करते हो।
2- काश्तकार उस जोत का लगान भुगतान करता रहेगा।

2-    किसी काश्तकार द्वारा लगाये गये वृक्षो से किसी पडौसी काश्तकार को हानि होती है तो उनके आवेदन पर तहसीलदार द्वारा उक्त विवाद निपटाया जायेगा।

3-    धारा 79क के अनुसार कोई काश्तकार राज्य सरकार द्वारा निर्धारित शर्तो के अधीन अपनी जोत से लगे हुए किसी सार्वजनिक मार्ग के किनारे सरकारी भूमि पर वृक्ष लगा सकेगा, जो उस काश्तकार की संपत्ति माने जायेंगे।

4-    धारा 80 के अनुसार इस अधिनियम के लागु होने के समय किसी काश्तकार की भूमि पर स्थित वृक्ष उसकी संपत्ति हो गये।

5-    धारा 81 के अनुसार इस अधिनियम के लागु होते वक्त किसी सरकारी भूमि पर उगे हुए वृक्षो पर किसी व्यक्ति का विधिवत कब्जा था, तो वह जारी रहेगा, जब तक उस भूमि का आवन्टन किसी अन्य काश्तकार को न कर दिया जाये।

6-    धारा 82 के अनुसार वृक्ष भूमि से अलग अन्तरणीय नही है, अर्थात उन्है भूमि से संलग्न माना गया है अतः जब भी भूमि का अन्तरण होगा उस पर स्थित वृक्ष भी उसी के साथ अन्तरित हो जायेंगे।

7-    धारा 83 के अनुसार किसी अधिमुक्त या अनधिमुक्त भूमि पर उगे हुए या लगाये गये वृक्ष धारा 84 मे दिये गये तरिके के अलावा किसी भी परिस्थिति मे नही हटाये जा सकते है।

8-    धारा 85 के अनुसार किसी वृक्ष को लगाने के अधिकार या लगाने की रिति या उसके स्वामित्व या हटाने के अधिकार के बारे मे कोई विवाद होता है तो तहसीलदार द्वारा निपटाया जायेगा।

9-    कोई वृक्ष धारा 84 के प्रावधानो का उल्लंघन कर हटा दिया गया हो तो सहायक कलक्टर द्वारा दण्डनीय होगा, ऐसे हटाये गये प्रत्येक वृक्ष के लिये 100 रू. जुर्माना लिया जायेगा तथा पुनः उसी व्यक्ति द्वारा उल्लंघन किये जाने पर उपरोक्त जुर्माने के अलावा ऐसा जुर्माना जो उससे दुगुना होगा वसूल किया जायेगा और लकडी जब्त सरकार की जायेगी।

Ø वृक्ष हटाने संबंधि प्रावधान – धारा 84 के अनुसार निम्नांकित तरिके से किसी भूमि पर स्थित वृक्षो को हटाया जा सकता है-

1-    अधिकतम सीमा क्षैत्र से कम भूमि धारण करने वाला कोई खातेदार काश्तकार अपने घरेलु या कृषि कार्य के लिये अपनी जोत पर उगे हुए वृक्षो को हटा सकता है।

2-    अधिकतम सीमा क्षैत्र से कम भूमि धारण करने वाला कोई खातेदार काश्तकार घरेलु या कृषि कार्य के अलावा किसी अन्य कार्य के लिये निर्धारित शर्तो के अधीन विहित प्राधिकारी की अनुमति से वृक्षो को हटाया जा सकेगा।

3-    कोई गैर खातेदार काश्तकार तहसीलदार की अनुमति से अपनी जोत पर उगे वृक्षो को घरेलु या कृषि कार्य हेतु हटा सकेगा।

4-    कोई उप अभिधारी (काश्तकार)उस व्यक्ति की अनुमति से ,जिससे वह भूमि धारण करता है, अपनी जोत पर उगे वृक्षो को घरेलु या कृषि कार्य हेतु हटा सकेगा।

5-    अधिकतम सीमा क्षैत्र से अधिक भूमि धारण करने वाला कोई खातेदार काश्तकार अपनी जोत पर उगे वृक्षो को हटाना चाहता है तो उसे उपखण्ड अधिकारी से अनुज्ञप्ति (लाईसेंस) प्राप्त कर ही हटा सकता है।




अध्याय 8 घोषणात्मक वाद

Ø धारा 88 के अनुसार अपने अभिधृति (कृषि भूमि मे अधिकार) संबंधि अधिकारो की घोषणा के लिये निम्न व्यक्तियो द्वारा वाद फाईल किया जा सकता है-

1-    एक अभिधारी

2-    एक सह अभिधारी

3-    एक खुद काश्त अभिधारी

4-    एक उप अभिधारी

5-    राज्य सरकार के अलावा कोई अन्य भू-धारक

Ø धारा 89 के अनुसार अपनी अभिधृति (कृषि भूमि मे अधिकार) चालू रहने के दौरान किसी भी समय कोई अभिधारी ( यथा खातेदार, गैर खातेदार, खुदकाश्त का अभिधारी या उप अभिधारी) निम्नांकित विषयो से संबंधित (सहायक कलक्टर को) घोषणात्मक वाद दर्ज करा सकता है-

1-    वर्ग, जिसका वह काश्तकार है।

2-    जोत का क्षैत्रफल, उसके संख्यांकित भूखण्ड या उसकी सीमाएं के लिये।

3-    जोत के बारे मे संदेय लगान और उसकी नीति जिससे वह संदेय है। के बारे मे।

4-    लगान के नकद भुगतान होने की दशा मे उसके भुगतान की तारीख और किस्तो के बारे मे।

5-    लगान वस्तु के रूप मे भुगतान होने की दशा मे, फसलो की मात्रा आंकने, उनका बंटवारा करने और उनको परिदान करने के समय व स्थान के बारे मे।

6-    गैरखातेदार या खुदकाश्त या उप अभिधारी (काश्तकार)द्वारा अपनी अभिधृति (कृषि भूमि मे अधिकार) जारी रखने की अवधि के बारे मे।

7-    कोई विशेष शर्ते जो इस अधिनियम के उपबंधो से असंगत न हो।





अध्याय 11 बेदखली ( Ejectment )

Ø बेदखली – एक ऐसी कार्यवाही जिसमे एक व्यक्ति को उसकी जोत की भूमि से हटाकर उसका कब्जा वापस ले लिया जाता है।

·        निम्नांकित परिस्थितियो मे बेदखली की जा सकती है-

1-    लगान की बकाया के लिये जारी डिक्री की पालना मे – धारा 174 के अनुसार कोई अभिधारी (काश्तकार) लगान या किसी ऋण की बकाया चुकाने के अवसर दिये जाने के बावजूद नही चुकाता है तो उसको जोत से बेदखल किया जा सकता है।

2-    अवैध अन्तरण या उप पट्टे पर देने पर- धारा 175 के अनुसार कोई अभिधारी (काश्तकार) इस अधिनियम मे दिये गये प्रतिबंधो का उल्लंघन कर अपनी जोत को अवैध रूप से किसी अन्य को अन्तरण कर देता है तो वह बेदखल किया जा सकता है।

3-    अहितकर कार्य या शर्त भंग करने पर- धारा 177 के अनुसार कोई अभिधारी (काश्तकार) अपनी जोत की भूमि के लिये नुकसान पहुंचाने वाला कार्य या जिस प्रयोजन के लिये उसे दी गई है उससे असंगत कार्य करता है या कोई शर्त भंग करता है तो वह बेदखल किया जा सकता है।

4-    कुछ अतिचारीयो की बेदखली- धारा 183 के अनुसार कोई व्यक्ति बिना विधिपूर्ण अधिकार के किसी अन्य व्यक्ति की भूमि पर कब्जा कर लेता है या कब्जा बनाये रखता है तो ऐसे अतिचारी को बेदखल किया जा सकता है।

5-    बंधक अवधि समाप्त होने पर कब्जा न देने पर बंधकदार की बेदखली – धारा 183क के अनुसार कोई व्यक्ति अपनी बंधक अवधि समाप्त होने पर कब्जा पुनः सुपुर्द नही करता है, और कब्जा बनाये रखता है, तो ऐसे बंधकदार को अतिचारी मानते हुए बेदखल किया जा सकता है।

6-    SC/ST के सदस्यो  द्वारा धारित भूमि  पर अतिक्रमियो की बेदखली – धारा 183ख के अनुसार कोई ऐसा अतिचारी जिसने बिना विधिक प्राधिकार के SC/ST के सदस्यो  द्वारा धारित भूमि  पर कब्जा कर लिया है या बनाये रखता है, तो वह बेदखल किया जा सकता है।

7-    धारा 183ग कुछ मामलो मे अतिचार के लिये दण्ड – धारा 183ग के अनुसार यदि किसी व्यक्ति को धारा 183ख के तहत ST/SC  के सदस्यो की धारित भूमि पर अतिचार करने का दोषी पाया जाता है तो उसे कम से कम से एक माह व अधिकतम तीन वर्ष तक के कारावास की सजा एवं अधिकतम बीस हजार रूपये के जुर्माने से दण्डित किया जायेगा।

Ø बेदखली के विरूद्ध उपचार – धारा 187 के अनुसार जब एक अभिधारी (काश्तकार) को विधि द्वारा निर्धारित प्रक्रिया का पालन किये बिना दोष पूर्ण तरिके से बेदखल किया जाता है, तो वह इसके लिये उपचार (remedy)  प्राप्त कर सकता है।

Ø दोषपूर्ण बेदखली के लिये व्यादेश – धारा 188 के अनुसार यदि किसी व्यक्ति को दोषपूर्ण तरिके से बेदखल करने की कार्यवाही की जा रही हो तो वह इसके विरूद्ध वाद दायर कर व्यादेश ( निषेधाज्ञा) (injunction)  प्राप्त कर सकता है।



अध्याय 16 प्रकीर्ण (Miscellaneous)

Ø मार्ग व अन्य निजी सुखाचारो के अधिकार – धारा 251 के अनुसार एक भूधारक (कृषक) द्वारा अन्य कृषको की भूमि से होकर अपनी जोत पर आने-जाने के रास्ते या अन्य कोई अधिकार (जैसे – खेत मे सिंचाई के लिये पानी ले जाना या कृषि औजारो और बैलो को ले जाना) जिसका वह उपभोग करता आ रहा है, उनके उपभोग करने मे अन्य कृषक द्वारा कोई रूकावट या बाधा डाली जाये तो वह तहसीलदार को आवेदन कर इस प्रकार की बाधा को हटवा सकता है।

Ø भूमिगत पाइपलाइन बिछाना या नया मार्ग खोलना या विधमान मार्ग का विस्तार करना – धारा 251क के अनुसार कोई काश्तकार किसी अन्य काश्तकार की जोत मे से होकर सिंचाई के पानी हेतु भूमिगत पाइपलाइन बिछाना चाहता है, या कोई नया रास्ता खोलना चाहता है या वर्तमान रास्ते को चौडा करना चाहता है, और जिस काश्तकार की जोत है वह सहमत नही है तो, वह उपखण्ड अधिकारी को आवेदन कर राहत प्राप्त कर सकता है। जिसकी प्रक्रिया निम्नानुसार है-

1-    आवेदन प्राप्त होने पर उपखण्ड अधिकारी इस पहलू पर जाँच करेंगे कि यह आवश्यकता केवल सुविधाजनक उपयोग के लिये नही है बल्कि इसकी वास्तविक आवश्यकता है और उसके लिये कोई वैकल्पिक व्यवस्था भी नही है। तब उस अन्य अभिधारी (जिसकी जोत है,) को नोटिस जारी कर इस प्रकार की सुनवाई हेतु उपस्थित रहने हेतु अवसर देगा।

2-    यदि ऐसा अन्य अभिधारी (काश्तकार) सहमत हो और अपनी जोत की सीमारेखा के साथ-साथ या उसके द्वारा जैसा दर्शाया जावे वैसे उपखण्ड अधिकारी द्वारा आवेदक को भूमि की सतह से कम से कम तीन फुट नीचे तक पाइपलाइन बिछाने की अनुमति दे दी जायेगी, और वह सहमत न हो तो उपखण्ड अधिकारी जैसा उचित समझे वैसे दे सकता है।

3-    नये रास्ते के मामले मे यदि ऐसा अन्य अभिधारी (काश्तकार) सहमत हो और अपनी जोत की सीमारेखा के साथ-साथ या उसके द्वारा जैसा ट्रेक दर्शाया जावे तो वैसे या कोई ट्रेक नही दर्शाए तो उपखण्ड अधिकारी द्वारा आवेदक को  लघुतम निकटम मार्ग से एक नया मार्ग जो तीस फीट से अधिक चौडा न हो, विस्तारित करने या चौडा करने की अनुमति दे दी जायेगी।

4-    उपरोक्त रास्ते या पाइपलाइन के लिये (उस अभिधारी को जिसकी भूमि है) उपखण्ड अधिकारी द्वारा तय किये गये मुआवजे का भुगतान आवेदक द्वारा किया जायेगा।

5-    इस प्रकार के नये रास्ते या वर्तमान रास्ते को चौडा करने मे आने वाली भूमि मे अभिधारी (काश्तकार)के सारे अधिकार निर्वापित हो जायेंगे और वह राजस्व अभिलेखो मे रास्ते के रूप मे दर्ज की जायेगी।

जिस अभिधारी (काश्तकार) को उक्त सुखाधिकार दिये जाये तो वह उस जोत मे (जिसमे से ऐसे अधिकार दिये गये है ) कोई अन्य अधिकार अर्जित नही कर सकता है।

टीनेंसी एक्ट 1955 क्या है?

राजस्थान टेनेंसी एक्ट 1955 की धारा 42 में व्यवस्था है कि अनुसूचित जाति के व्यक्ति की भूमि केवल अनुसूचित जाति का व्यक्ति ही खरीद सकता है । आज भी अनुसूचित जाति के व्यक्तियों की क्रय शक्ति अन्य समाज के मुकाबले शून्य है । इस व्यवस्था में अनुसूचित जाति के व्यक्ति (खातेदार) को भूमि का बाजार भाव नहीं मिल पाता ।

90a क्या होता है?

अब 90 ए के तहत नई व्यवस्था में नगर निगम, नगर परिषद और नगरपालिका के अफसरों को लैंड कंवर्जन के अधिकार दिए गए हैं। इस प्रक्रिया से पूरी प्रक्रिया में तेजी आएगी। राजस्व विभाग का दखल खत्म >90 ए में पालिका स्तर के फैसलों के खिलाफ 30 दिन के भीतर कलेक्टर रैंक के अफसर के पास अपील कर सकेंगे। निपटारा दो माह में होगा। >

धारा 251 ए क्या है?

राजस्थान काश्तकारी अधिनियम 1955 में नई धारा 251- जाेड़ी गई है। इसके तहत एसडीएम के पास खेत में रास्ते का मामला विचाराधीन आने के 3 माह में इसका निस्तारण करना हाेता है। इस संशोधन काे राष्ट्रपति ने भी मंजूरी दी है। रास्तों का मौके पर ही निस्तारण करने के लिए भू-अभिलेख निरीक्षकों काे जीपीएस उपकरण भी उपलब्ध करवाए हैं।

राजस्व संहिता धारा 212 क्या है?

राजस्थान काश्तकारी अधिनियम की धारा 212 तभी प्रभावी होती है जब कि कोई राजस्व वाद लंबित हो। यह आवेदन किसी प्रकार का अस्थाई व्यादेश / निषेधाज्ञा प्राप्त करने के लिए प्रस्तुत किया जा सकता है। धारा 151 इस कारण है कि यदि कानून में कोई उपबंध न हो तो भी न्याय हित में न्यायालय आदेश प्रदान करे।