रहिमन पानी राखिए बिन पानी सब सून इसका अर्थ क्या है? - rahiman paanee raakhie bin paanee sab soon isaka arth kya hai?

रहिमन पानी राखिये बिन पानी सब सून..

कैमूर। 'रहिमन पानी राखिये बिन पानी सब सून, पानी गये न उबरे मोती मानुष चून' । रहिम कवि की इस

कैमूर। 'रहिमन पानी राखिये बिन पानी सब सून, पानी गये न उबरे मोती मानुष चून' । रहिम कवि की इस उक्ति में पानी की महत्ता का गूढ़ अर्थ छिपा है। जिसे ठीक से समझ लिया जाए तो लोगों को जल संकट से नहीं जूझना पड़ेगा। प्रकृति, पानी और परंपरा हमेशा साथ रहे हैं। मनुष्य की इसे नियंत्रित करने की स्वार्थ लोलुपता से इन पर ग्रहण लग गया है। पानी के परंपरागत स्रोतों को निजी स्वार्थ में ध्वस्त करना मुसीबत का कारण बनता जा रहा है। पानी की परंपरागत स्रोतों में तालाब का महत्वपूर्ण स्थान है। जिसके विज्ञान व व्यवस्था को समझने में भारी चूक हुई है। पहले घर, गांवों में पानी की व्यवस्था तालाबों से ही पनपती थी। मैदानी इलाकों में ये तालाब ही थे जो सबके लिए पानी को जुटा कर रखते थे। लेकिन ग्रामीणों को पानी के संकट से मुक्त रखने वाले तालाबों का अस्तित्व तेजी से मिटता जा रहा है। तालाबों के खात्मे के पीछे समाज और सरकार समान रूप से जिम्मेदार है। तालाब कही कब्जे से तो कहीं गंदगी से सूख रहे हैं। तकनीकी ज्ञान का अभाव भी तालाबों के दुर्दशा का बड़ा कारण है। सरकारी व्यवस्था का यह आलम है कि तालाबों के रख रखाव का दायित्व किसी एक महकमे के पास नहीं है। जिससे इन पर कब्जा करना आसान हो गया है।

तालाबों के विज्ञान को समझने की जरूरत :

तालाबों का अपना एक विज्ञान है। जिसे समझना जरूरी है। तालाब पानी की दो तरह की व्यवस्था करते हैं। तात्कालिक पानी की उपलब्धता के साथ भूमिगत पानी को भी तालाब रिचार्ज करते हैं। तालाब गांवों के आर्थिक, सामाजिक व सांस्कृतिक केन्द्र होते थे। बरसात के चार महीनों में पानी तालाब में जमा होता था। यही पानी साल भर लोगों की दिनचर्या का अंग बना रहता था। सिंचाई के साथ-साथ मवेशियों के काम में भी यही पानी आता था। तमाम सामाजिक व सांस्कृतिक गतिविधियां तथा तालाबों के किनारे ही संपन्न होती थी।

गुम हो रहा मोहनियां के जिगिना गांव का तालाब :

मोहनियां प्रखंड के जिगिना गांव के तालाब का पांच दशक पूर्व जिला में एक स्थान था। तब तालाब का रकबा करीब 20 एकड़ से अधिक था। तालाब के पश्चिम दिशा में स्थित शिव मंदिर इसकी सुंदरता में चार चांद लगाता था। अगल- बगल के एक दर्जन से अधिक गांवों के मवेशियों की यही प्यास बुझती थी। तब गांव में एक भी चापाकल नहीं थे। तीन दशक पूर्व तक गांव के पूरब व पश्चिम दिशा में स्थित दो कुएं पेयजल का मुख्य साधन हुआ करते थे। तब जिगिना के पोखरे का पानी हर घरों में दाल बनाने के काम आता था। तालाब के दक्षिणी व उत्तरी पिंड पर श्राद्ध कर्म का लोकाचार्य होता था। समय के साथ-साथ परिस्थियां बदली तो ग्रामीणों की मानसिकता भी विकृत हुई। तालाब के दक्षिणी व पूर्वी पिंड पर अतिक्रमण का सिलसिला शुरू हुआ तो पिंड का पूरी तरह अस्तित्व समाप्त करके ही रूका। आज भी इस तालाब के किनारे प्रतिवर्ष दुर्गा पूजा के मौके पर महा नवमी के दिन मेला लगता है। जिसमें अगल - बगल के गांवों के काफी लोग जुटते हैं। सटे विद्यालय परिसर में विराट दंगल का आयोजन होता है। जिसका यह तालाब गवाह बनता है।

अब तक किए गए प्रयास :

दो वर्ष पूर्व तालाब को अतिक्रमण मुक्त करने के लिए मोहनियां के तत्कालीन अंचलाधिकारी अरशद अली ने अतिक्रमणकारियों को दो-दो बार नोटिस भेजा था। उनके स्थानातंरण के बाद यह कार्रवाई ठंडे बस्ते में पड़ गई। तालाब के विकास में मोहनियां के तत्कालीन विधायक व सासाराम के वर्तमान सांसद छेदी पासवान ने दो वर्ष पूर्व तालाब के पश्चिमी तरफ 50 फीट लंबा घाट का निर्माण कराया। दो वर्ष पूर्व मनरेगा के तहत तालाब की खुदाई भी हुई। लेकिन कार्य पूरा नहीं हो सका।

क्या कहते हैं ग्रामीण -

1.फोटो फाइल 16 बीएचयू 11

शशि भूषण पांडेय - ग्रामीण शशि भूषण पांडेय ने कहा कि जिगिना का तालाब जिला में एक स्थान रखता था। आज इसकी बदहाली ग्रामीणों को मुंह चिढ़ा रही है।

2.फोटो फाइल 16 बीएचयू 12

रामायण साह - ग्रामीण रामायण साह ने बताया कि बुजुर्गो से जिगिना गांव के तालाब के बारे में काफी सुनने को मिलता था। लेकिन अतिक्रमण के कारण तालाब का अस्तित्व खतरे में हैं।

3.फोटो फाइल 16 बीएचयू 12

राजेश कुमार पांडेय - जिगिना गांव निवासी राजेश कुमार पांडेय ने कहा कि तालाब के अस्तित्व पर ग्रहण लगना सामाजिक व सरकारी व्यवस्था के लिए चुनौती है। इस तालाब को अतिक्रमण मुक्त करा कर इसका सौंदर्यीकरण कराना जरूरी है।

क्या कहते हैं पदाधिकारी -

तालाब के अतिक्रमण के बारे में पूछे जाने पर मोहनियां के सीओ डॉ. विजय कुमार सिंह ने कहा कि जिगिना के तालाब से अतिक्रमण के बारे में उन्हें जानकारी मिली है। तालाब को अतिक्रमण मुक्त करा कर उसका जीर्णोद्धार कराया जायेगा।

रहिमन पानी राखिए बिन पानी सब सून इसका अर्थ क्या है? - rahiman paanee raakhie bin paanee sab soon isaka arth kya hai?

रहिमन पानी राखिये, बिन पानी सब सून।
पानी गये न ऊबरे, मोती, मानुष, चून॥

रहीम

अर्थ
इस दोहे में रहीम ने पानी को तीन अर्थों में प्रयोग किया है। पानी का पहलाअर्थ मनुष्य के संदर्भ में है जब इसका मतलब विनम्रता से है। रहीम कह रहेहैं कि मनुष्य में हमेशा विनम्रता (पानी) होना चाहिए।

पानी का दूसरा अर्थआभा, तेज या चमक से है जिसके बिना मोती का कोई मूल्य नहीं।

पानी का तीसराअर्थ जल से है जिसे आटे (चून) से जोड़कर दर्शाया गया है। 

रहीम का कहना हैकि जिस तरह आटे का अस्तित्व पानी के बिना नम्र नहीं हो सकता और मोती कामूल्य उसकी आभा के बिना नहीं हो सकता है, उसी तरह मनुष्य को भी अपनेव्यवहार में हमेशा पानी (विनम्रता) रखना चाहिए जिसके बिना उसका मूल्यह्रासहोता है।

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रहिमन पानी राखिए बिन पानी सब सून का अर्थ क्या है?

इस दोहे में रहीमदास जी कहते है कि पानी को बचा के रखिए क्युकी बिना पानी के बिना सब सुना है, पानी के जाने से मोती अपनी चमक खो देता है,चुना सुख कर बेकार हो जाता है ठीक उसी प्रकार सम्मान के खो जाने से मनुष्य के जीवन का कोई अर्थ नहीं रह जाता है।

रहीम ने मोती मानुष चून का अपने दोहे में क्या अर्थ बताया है?

पानी गए न ऊबरै, मोती मानुष चून ।। Solution : उक्त दोहे में रहीम पानी को उपयोगी और कीमती बताया है तथा इसका संरक्षण करने कहा है । रहीम कहते हैं पानी के अभाव में मोती, मनुष्य और चूना का अस्तित्वहीन हो जाता है । यहाँ कवि ने मोती के लिए पानी का अर्थ आभा .

रहिमन पानी राखिए बिन पानी सब सून में कौन सा छंद है?

दोहा छंद का प्रयोग हुआ है।

पानी गए न ऊबरे मोती मानुष चून किसकी पंक्ति है?

पानी गये न ऊबरे, मोती, मानुष, चून॥ # अर्थ - रहीम का कहना है कि जिस तरह आटे का अस्तित्व पानी के बिना नम्र नहीं हो सकता और मोती का मूल्य उसकी आभा के बिना नहीं हो सकता है, उसी तरह मनुष्य को भी अपने व्यवहार में हमेशा पानी (विनम्रता) रखना चाहिए जिसके बिना उसका मूल्यह्रास होता है।