पास्को केस में क्या होता है? - paasko kes mein kya hota hai?

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उत्तर प्रदेश में विशेष पॉक्सो कोर्ट ने एक रेप केस में 140 दिन में निपटारा कर दिया है और दोषी को सजा ए मौत दी है. दोषी व्यक्ति पर रेप और उसके बाद हत्या का मामला दर्ज था.

पास्को केस में क्या होता है? - paasko kes mein kya hota hai?

18 साल से कम उम्र के बच्चों पर होने वाले यौन शोषण अपराधों के लिए तैयार किए गए पॉक्सो एक्ट के तहत दर्ज केस की सुनवाई की जाती है.

भारत में अक्सर लोगों की शिकायत रहती है कि न्यायालय में न्याय मिलने पर काफी वक्त लगता है और लोगों को मिलती है सिर्फ तारीख पर तारीख. कई बार खबरें आती हैं कि किसी व्यक्ति को 30-40 साल बाद न्याय मिलता है. लेकिन, उत्तर प्रदेश में एक मामला सामने आया है, जहां एक रेप एंड मर्डर केस में सिर्फ 140 दिन में पीड़ित पक्ष को न्याय मिला है. उत्तर प्रदेश के बुलंदशहर में एक बच्ची के साथ रेप और फिर हत्या के दोषी शख्स को सजा-ए-मौत सुनाई गई है और केस का निपटारा सिर्फ 140 दिन में ही हो गया है.

यह संभव हुआ है विशेष पॉक्सो कोर्ट की वजह से, जहां त्वरित कार्यवाही कर दोषी को सजा सुनाई गई है. वैसे आम तौर पर रेप पीड़ित या उनके परिजनों को लंबा इंतजार करना पड़ता है. ऐसे में जानते हैं कि आखिर ये पॉक्सो कोर्ट क्या है और किस तरह इसमें इतनी जल्दी केस का निपटारा कर दिया गया है. जानते हैं पॉक्सो कोर्ट से जुड़ी हर एक बात..

क्या होता है पॉक्सो कोर्ट?

अधिवक्ता चेतन पारीक ने बताया कि पॉक्सो कोर्ट खास तरीके के कोर्ट होते हैं, जहां पॉक्सो एक्ट के तरह दर्ज किए गए केस ही शामिल किए जाते हैं. चेतन ने बताया, ‘इस कोर्ट में एडीजे लेवल के अधिकारियों को ही नियुक्त किया जाता है. 18 साल से कम उम्र के बच्चों पर होने वाले यौन शोषण अपराधों के लिए तैयार किए गए पॉक्सो एक्ट के तहत दर्ज केस की सुनवाई की जाती है. साथ ही इस कोर्ट में आईपीसी की तुलना में सजा के प्रावधान ज्यादा कड़े हैं.’

साल 2019 में सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया था कि केंद्र सरकार देश के हर जिले में विशेष पॉस्को कोर्ट बनाएगी, जहां 100 से ज्यादा पॉस्को मामले लंबित हैं. इन अदालतों के लिए फंड केंद्र सरकार देगी. सरकार 60 दिन में ये कोर्ट बनाएगी. बता दें कि इन कोर्ट के जरिए बच्चों के यौन उत्पीड़न के मामलों को जल्द से जल्द निपटाने की कोशिश की जाती है.

क्या होता है पॉक्सो एक्ट?

POCSO एक्ट का पूरा नाम “The Protection Of Children From Sexual Offences Act” या प्रोटेक्शन आफ चिल्ड्रेन फ्राम सेक्सुअल अफेंसेस एक्ट है. हिंदी में इसे “लैंगिक उत्पीड़न से बच्चों के संरक्षण का अधिनियम 2012” कहते हैं. पोक्सो एक्ट-2012; को बच्चों के प्रति यौन उत्पीड़न और यौन शोषण और पोर्नोग्राफी जैसे जघन्य अपराधों को रोकने के लिए, महिला और बाल विकास मंत्रालय ने बनाया था. साल 2012 में बनाए गए इस कानून के तहत अलग-अलग अपराध के लिए अलग-अलग सजा तय की गई है.

देश में बच्चियों के साथ बढती दरिंदगी को रोकने के लिए ‘पाक्सो ऐक्ट-2012’ में बदलाव किया गया है, जिसके तहत अब 12 साल तक की बच्ची से रेप के दोषियों को मौत की सजा मिलेगी. इस एक्ट के तहत नाबालिग बच्चों के साथ होने वाले यौन अपराध और छेड़छाड़ के मामलों में सख्त कार्रवाई की जाती है. वहीं, एक्ट के सेक्शन 35 के अनुसार, अगर कोई विशेष परिस्थिति ना हो तो इसके केस का निपटारा एक साल में किया जाना होता है.

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पास्को केस में क्या होता है? - paasko kes mein kya hota hai?

बॉम्बे हाईकोर्ट की नागपुर बेंच की जज ने फैसले में कहा था कि प्रत्यक्ष शारीरिक संपर्क यानी यौन प्रवेश के बिना त्वचा-से-त्वचा संपर्क (स्किन टू स्किन टच) यौन उत्पीड़न नहीं है. (सांकेतिक फोटो)

POCSO Act Skin to Skin touch case: बॉम्बे हाईकोर्ट की नागपुर बेंच की जस्टिस पुष्पा गनेदीवाला की सिंगल बेंच ने सत्र न्यायालय के उस आदेश को संशोधित करते हुए यह अवलोकन किया था, जिसमें एक 39 वर्षीय व्यक्ति को 12 साल की लड़की से छेड़छाड़ करने और उसकी सलवार निकालने के लिए यौन उत्पीड़न का दोषी ठहराया गया था. इसके अलावा फैसले में सिंगल जज ने कहा था कि प्रत्यक्ष शारीरिक संपर्क यानी यौन प्रवेश के बिना त्वचा-से-त्वचा संपर्क (स्किन टू स्किन टच) यौन उत्पीड़न नहीं है.

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  • News18Hindi
  • Last Updated : November 18, 2021, 14:12 IST

    नई दिल्ली. सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने गुरुवार को स्किन टू स्किन टच और पॉक्सो एक्ट को लेकर बड़ा फैसला दिया है. बॉम्बे हाईकोर्ट (Bombay High Court) के फैसले को पलटते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि यौन उत्पीड़न के मामले में स्किन टू स्किन टच के बिना भी पॉक्सो एक्ट लागू होता है. सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा है कि सेक्सुअल मंशा (Sexual (Intent) से शरीर के सेक्सुअल हिस्से का स्पर्श पॉक्सो एक्ट (POCSO Act) का मसला है. यह नहीं कहा जा सकता कि कपड़े के ऊपर से बच्चे का स्पर्श यौन शोषण नहीं है. ऐसी परिभाषा बच्चों को शोषण से बचाने के लिए पॉक्सो एक्ट को ही खत्म कर देगी.

    इससे पहले 27 जनवरी को सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने बॉम्बे हाईकोर्ट (Bombay High Court) के उस फैसले के तहत आरोपी को बरी करने पर रोक लगा दी थी, जिसमें कहा गया था कि बिना कपड़े उतारे बच्चे के स्तन टटोलने से पॉक्सो एक्ट की धारा 8 के अर्थ में यौन उत्पीड़न नहीं होता.

    इस दौरान अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने कहा था कि निर्णय अभूतपूर्व है और ‘एक खतरनाक मिसाल कायम करने की संभावना है.’ अटार्नी जनरल ने कोर्ट में कहा था कि अगर कल कोई व्यक्ति सर्जिकल दस्ताने की एक जोड़ी पहनता है और एक महिला के शरीर से छेड़छोड़ करता है तो उसे इस फैसले के अनुसार यौन उत्पीड़न के लिए दंडित नहीं किया जाएगा. बॉम्बे हाईकोर्ट का फैसला एक अपमानजनक मिसाल है. इस पर सुप्रीम कोर्ट ने अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल को निर्णय को चुनौती देने के लिए उचित याचिका दायर करने का निर्देश दिया था. अदालत ने आरोपी को बरी करने पर रोक लगा दी थी. दरअसल बॉम्बे हाईकोर्ट की नागपुर बेंच ने अपने एक फैसले में कहा था कि इस तरह के कृत्य से आईपीसी की धारा 354 के तहत ‘छेड़छाड़’ होगी और ये पॉक्सो अधिनियम की धारा 8 के तहत यौन शोषण नहीं होगा.

    स्किन टू स्किन टचः क्या था पूरा मामला
    जस्टिस पुष्पा गनेदीवाला की सिंगल बेंच ने सत्र न्यायालय के उस आदेश को संशोधित करते हुए यह अवलोकन किया था, जिसमें एक 39 वर्षीय व्यक्ति को 12 साल की लड़की से छेड़छाड़ करने और उसकी सलवार निकालने के लिए यौन उत्पीड़न का दोषी ठहराया गया था. इसके अलावा फैसले में सिंगल जज ने कहा था कि प्रत्यक्ष शारीरिक संपर्क यानी यौन प्रवेश के बिना त्वचा-से-त्वचा संपर्क (स्किन टू स्किन टच) यौन उत्पीड़न नहीं है.

    क्या है पॉक्सो एक्ट
    18 साल से कम उम्र के बच्चों से किसी भी तरह का सेक्सुअल बर्ताव इस कानून के दायरे में आता है. ये कानून लड़के और लड़की को समान रूप से सुरक्षा प्रदान करता है. इस एक्ट के तहत बच्चों को सेक्सुअल असॉल्ट, सेक्सुअल हैरेसमेंट और पोर्नोग्राफी जैसे अपराधों से प्रोटेक्ट किया गया है. 2012 में बने इस कानून के तहत अलग-अलग अपराध के लिए अलग-अलग सजा तय की गई है. पॉक्सो कानून के तहत सभी अपराधों की सुनवाई, एक विशेष न्यायालय द्वारा कैमरे के सामने बच्चे के माता पिता या जिन लोगों पर बच्चा भरोसा करता है, उनकी मौजूदगी में करने का प्रावधान है.

    अगर कोई शख्स किसी बच्चे के शरीर के किसी भी हिस्से में प्राइवेट पार्ट डालता है तो ये सेक्शन-3 के तहत अपराध है. इसके लिए धारा-4 में सजा तय की गई है. अगर अपराधी ने कुछ ऐसा अपराध किया है, जोकि बाल अपराध कानून के अलावा किसी दूसरे कानून में भी अपराध है तो अपराधी को सजा उस कानून में तहत होगी जो कि सबसे सख्त हो. अगर कोई शख्स किसी बच्चे के प्राइवेट पार्ट को टच करता है या अपने प्राइवेट पार्ट को बच्चे से टच कराता है तो धारा-8 के तहत सज़ा होगी.

    अगर कोई शख्स गलत नीयत से बच्चों के सामने सेक्सुअल हरकतें करता है, या उसे ऐसा करने को कहता है, पोर्नोग्राफी दिखाता है तो 3 साल से लेकर उम्रकैद तक की सजा हो सकती है. इस अधिनियम में ये भी प्रावधान है कि अगर कोई व्यक्ति ये जानता है कि किसी बच्चे का यौन शोषण हुआ है तो उसको इसकी रिपोर्ट नजदीकी थाने में देनी चाहिए, यदि वो ऐसा नहीं करता है तो उसे छह महीने की कारावास की सज़ा होगी. अधिनियम में ये भी कहा गया है कि बच्चे के यौन शोषण का मामला घटना घटने की तारीख से एक साल के भीतर निपटाया जाना चाहिए.

    पढ़ेंः SC ने पलटा HC का फैसला, कहा- स्किन टू स्‍किन टच के बिना भी लागू होगा पॉक्‍सो एक्‍ट

    POCSO एक्ट में क्या बदलाव हुए हैं?
    कानून बनने के बाद POCSO एक्ट में बदलाव भी हुए हैं. बदलाव के बाद 12 साल से कम उम्र की बच्चियों से रेप के मामलों में मौत की सजा तय की गई है. 16 साल से कम उम्र की लड़की से रेप करने पर न्यूनतम सजा को 10 साल से बढ़ाकर 20 साल किया गया है.

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    Tags: Bombay high court, Posco act, Supreme Court

    FIRST PUBLISHED : November 18, 2021, 13:04 IST

    पास्को एक्ट में कितनी धाराएं हैं?

    ये POCSO Act भारत के सभी नागरिकों पर लागू है। पोक्सो एक्ट-2012 में कुल 46 धाराएं हैं

    पोक्सो एक्ट के तहत पीड़ित की अधिकतम उम्र क्या है?

    मेघालय हाईकोर्ट (Meghalaya High Court) ने हाल ही में कहा कि यह न्यायालय पर निर्भर है कि पॉक्सो मामले (POCSO Act) की सुनवाई करते हुए उसे मामले को आगे बढ़ाने से पहले पीड़ित की उम्र के बारे में निश्चित होना चाहिए। "बच्चे के खिलाफ अपराध की सुनवाई विशेष अदालत द्वारा की जानी चाहिए।

    धारा 3 4 क्या होता है?

    - रिष्टिः- जो कोई इस आशय से या जानते हुए कि वह लोक सम्पत्ति ( जनता / सार्वजनिक) को सदोष हानि या नुकसान पहुँचाता है, जिससे उस सम्पत्ति के मूल्य / उपयोगिता नष्ट / कम हो जाती हैं।

    धारा 7 और 8 क्या है?

    इसी प्रकार पॉक्सो अधिनियम की धारा 7 और 8 के तहत वो मामले पंजीकृत किए जाते हैं जिनमें बच्चों के गुप्तांग से छेडछाड़ की जाती है. इसके धारा के आरोपियों पर दोष सिद्ध हो जाने पर पांच से सात साल तक की सजा और जुर्माना हो सकता है.