प्रदोष के व्रत का उद्यापन कैसे करें? - pradosh ke vrat ka udyaapan kaise karen?

हिन्दू कैलेंडर के अनुसार प्रदोष व्रत त्रयोदशी के दिन रखा जाता है। इस दिन भगवान शिव एवं माता पार्वती की पूजा की जाती है। इस बार यह 22 अक्टूबर को है। प्रत्येक महीने में दो प्रदोष व्रत होते हैं। सोमवार...

प्रदोष के व्रत का उद्यापन कैसे करें? - pradosh ke vrat ka udyaapan kaise karen?

Meenakshiलाइव हिन्दुस्तान ,नई दिल्लीSat, 20 Oct 2018 10:20 AM

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हिन्दू कैलेंडर के अनुसार प्रदोष व्रत त्रयोदशी के दिन रखा जाता है। इस दिन भगवान शिव एवं माता पार्वती की पूजा की जाती है। इस बार यह 22 अक्टूबर को है। प्रत्येक महीने में दो प्रदोष व्रत होते हैं। सोमवार को आने वाले प्रदोष व्रत को सोम प्रदोषम या चन्द्र प्रदोषम भी कहा जाता है। 

प्रदोष व्रत का महत्व

प्रदोष व्रत अन्य दूसरे व्रतों से अधिक शुभ एवं महत्वपूर्ण माना जाता है। मान्यता यह भी है इस दिन भगवान शिव की पूजा करने से सभी पापों का नाश होता है एवं मृत्यु के बाद मोक्ष की प्राप्ति होती है। उसी तरह प्रदोष व्रत रखने एवं दो गाय दान करने से भी यही सिद्धी प्राप्त होती है एवं भगवान शिव का आर्शीवाद प्राप्त होता है।

प्रदोष व्रत शुभ मुहूर्त

शाम 5 बजकर 40 मिनट से 8 बजकर 14 मिनट

प्रदोष व्रत की विधि

प्रदोष व्रत करने के लिए व्रती को त्रयोदशी के दिन सुबद सूर्य उदय से पहसे उठना चाहिए। नित्यकर्मों से निवृ्त होकर भोले नाथ का स्मरण करें। इस व्रत में आहार नहीं लिया जाता है। पूरे दिन उपावस रखने के बाद सूर्यास्त से पहले स्नान आदि कर श्वेत वस्त्र धारण करें। पूजन स्थल को शुद्ध करने के बाद, गाय के गोबर से लीपकर, मंडप तैयार करें। अब इस मंडप में पांच रंगों का उपयोग करते हुए रंगोली बनाएं इसके बाद उतर-पूर्व दिशा की ओर मुख करके बैठे और भगवान शंकर का पूजन करें। पूजन में भगवान शिव के मंत्र 'ऊँ नम: शिवाय' का जाप करते हुए जल चढ़ाएं।

प्रदोष व्रत का उद्यापन

इस व्रत को ग्यारह या फिर 26 त्रयोदशियों तक रखने के बाद उद्यापन करना चाहिए। व्रत का उद्यापन त्रयोदशी तिथि पर ही करना चाहिए। उद्यापन से एक दिन पहले गणेश का पूजन किया जाता है। इससे पहली रात में कीर्तन करते हुए जागरण किया जाता है। सुबह जल्दी उठकर मंडप बनाकर, मंडप को वस्त्रों और रंगोली से सजाकर तैयार किया जाता है। 'ऊँ उमा सहित शिवाय नम:' मंत्र का 108 बार जाप करते हुए हवन किया जाता है। हवन में आहूति के लिए खीर का प्रयोग किया जाता है। हवन समाप्त होने के बाद भगवान भोलेनाथ की आरती की जाती है और शान्ति पाठ किया जाता है। इसके बाद दो ब्रह्माणों को भोजन कराया जाता है और दान दक्षिणा दी जाती है।

कर्ज से मुक्ति दिलाने और स्वास्थ्य संबन्धी परेशानियों को दूर करने के लिए भौम प्रदोष का व्रत रखा जाता है. शास्त्रों में प्रदोष व्रत को रखने के तमाम लाभ बताए गए हैं.

एकादशी की तरह ही प्रदोष का व्रत भी हर महीने में दो बार त्रयोदशी तिथि पर रखा जाता है. ये व्रत भगवान शिव को समर्पित होता है. सप्ताह के अलग अलग दिन के हिसाब से व्रत का महत्व और उद्देश्य है. इस बार 26 जनवरी को मंगलवार के दिन त्रयोदशी तिथि पड़ रही है. मंगल को भौम भी कहा जाता है, इसलिए इस प्रदोष को भौम प्रदोष कहा जाएगा.

कर्ज से मुक्ति दिलाने और स्वास्थ्य संबन्धी परेशानियों को दूर करने के लिए भौम प्रदोष का व्रत रखा जाता है. शास्त्रों में प्रदोष व्रत को रखने के तमाम लाभ बताए गए हैं. मान्यता है कि इसे रखने से दो गायों को दान करने का पुण्य प्राप्त होता है. लेकिन प्रदोष का व्रत एक बार में 11 या 26 प्रदोष तक ही रखा जाता है. इसके बाद उद्यापन कर देना चाहिए तभी इसका लाभ मिल पाता है. अगर आप भी इस व्रत का उद्यापन करने का सोच रहे हैं तो यहां जानिए उद्यापन की विधि.

उद्यापन विधि

प्रदोष व्रत का उद्यापन त्रयोदशी तिथि पर करें. उद्यापन से एक दिन पहले श्री गणेश का पूजन किया जाता है. रात में जागरण कर कीर्तन करें. सुबह जल्दी उठकर मंडप बनाएं. मंडप को वस्त्रों और पांच रंगों की रंगोली से सजाकर तैयार करें. प्रसाद में खीर बनाएं. इसके बाद वहां एक चौकी पर भगवान की प्रतिमा रखें. भगवान को याद करते हुए चंदन, पुष्प, अक्षत, दक्षिणा वगैरह अर्पित करें. भौम प्रदोष व्रत की कथा पढ़ें इसके बाद ओम नमः शिवाय मंत्र का कम से कम 108 बार रुद्राक्ष की माला से जाप करते हुए प्रसाद की खीर से आहुति दें. फिर भगवान शिव की आरती करें. पूजा के अंत में गरीबों और ब्राह्मणों को भोजन कराकर प्रसाद बांटें और दक्षिणा दें.

ये है व्रत कथा

प्राचीन काल में एक विधवा ब्राह्मणी अपने पुत्र को लेकर भिक्षा लेने जाती और संध्या को लौटती थी. एक दिन जब वह भिक्षा लेकर लौट रही थी तो उसे नदी किनारे एक सुन्दर बालक दिखाई दिया जो विदर्भ देश का राजकुमार धर्मगुप्त था. शत्रुओं ने उसके पिता को मारकर उसका राज्य हड़प लिया था. उसकी माता की मृत्यु भी अकाल हो गई थी. ब्राह्मणी ने उस बालक को अपना लिया और उसका पालन पोषण किया.

कुछ समय पश्चात ब्राह्मणी दोनों बालकों के साथ देवयोग से देव मंदिर गई. वहां उनकी भेंट ऋषि शाण्डिल्य से हुई. ऋषि शाण्डिल्य ने ब्राह्मणी को बताया कि जो बालक उन्हें मिला है वह विदर्भ देश के राजा का पुत्र है जो युद्ध में मारे गए थे और उनकी माता को ग्राह ने अपना भोजन बना लिया था. ऋषि शाण्डिल्य ने ब्राह्मणी को प्रदोष व्रत करने की सलाह दी. ऋषि की आज्ञा से दोनों बालकों ने भी प्रदोष व्रत करना शुरू किया.

एक दिन दोनों बालक वन में घूम रहे थे तभी उन्हें कुछ गंधर्व कन्याएं नजर आई. ब्राह्मण बालक तो घर लौट आया किंतु राजकुमार धर्मगुप्त अंशुमती नाम की गंधर्व कन्या से बात करने लगे. गंधर्व कन्या और राजकुमार एक दूसरे पर मोहित हो गए. कन्या ने विवाह करने के लिए राजकुमार को अपने पिता से मिलवाने के लिए बुलाया. दूसरे दिन जब वह दुबारा गंधर्व कन्या से मिलने आया तो गंधर्व कन्या के पिता को बताया कि वह विदर्भ देश का राजकुमार है. भगवान शिव की आज्ञा से गंधर्वराज ने अपनी पुत्री का विवाह राजकुमार धर्मगुप्त से कराया.

इसके बाद राजकुमार धर्मगुप्त ने गंधर्व सेना की सहायता से विदर्भ देश पर पुनः आधिपत्य प्राप्त किया. यह सब ब्राह्मणी और राजकुमार धर्मगुप्त के प्रदोष व्रत करने का फल था.स्कंदपुराण के अनुसार जो भक्त प्रदोष व्रत के दिन शिवपूजा के बाद एक्राग होकर प्रदोष व्रत कथा सुनता या पढ़ता है उसे सौ जन्मों तक कभी दरिद्रता नहीं होती.

प्रदोष व्रत का उद्यापन कब करना चाहिए 2022?

जो स्त्री पुरुष जिस कामना के साथ इस व्रत को करते हैं उनकी सभी कामनाएं भगवान शिव पूरी करते हैं। मान्यता है कि जो व्यक्ति प्रदोष व्रत रखता है उसे सौ गौ दान करने का फल प्राप्त होता है। जो लोग भी इस व्रत को करते हैं उन्हें या तो 11 त्रयोदशी या पूरा साल की त्रयोदशी को पूरा कर उद्यापन करना चाहिए

प्रदोष का उद्यापन कौन से महीने में करना चाहिए?

इस व्रत को ग्यारह या फिर 26 त्रयोदशियों तक रखने के बाद व्रत का उद्यापन करना चाहिए. – व्रत का उद्यापन त्रयोदशी तिथि पर ही करना चाहिए. – उद्यापन से एक दिन पूर्व श्री गणेश का पूजन किया जाता है. पूर्व रात्रि में कीर्तन करते हुए जागरण किया जाता है.

व्रत का उद्यापन कैसे किया जाता है?

जिस दिन सोमवार के व्रत का उद्यापन करना हो उस दिन प्रात काल उठकर स्नान आदि से निवृत्त होकर सफेद वस्त्र धारण करने चाहिए. इसके बाद पूजा स्थल को गंगाजल से अच्छी तरह शुद्ध कर लें, इसके बाद पूजा स्थल पर केले के 4 पत्ते खंबे के रूप में लगाकर चौकोर मंडप स्थापित करें. चारों तरफ फूल और आम के पत्तों से मंडप को सजाएं.

उद्यापन कब करना चाहिए?

देवताओं के प्रबोध समय में ही एकादशी का उद्यापन करे। विशेष कर मार्गशीर्ष के महीने, माघ माह में या भीम तिथि (माघ शुक्ल एकादशी) के दिन उद्यापन करना चाहिये |" भगवान के उपरोक्त कथन से तात्पर्य है कि चातुर्मास (आषाढ़ शुक्ला एकादशी से लेकर कार्तिक कृष्ण एकादशी) में एकादशी उद्यापन नहीं करे।