2007 को संस्कृत में क्या कहते हैं? - 2007 ko sanskrt mein kya kahate hain?

SANSKRIT MEANING IN HINDI - EXACT MATCHES

sanskrit     संस्कृत / संस्कृति / संसकृत

SANSKRIT = देववाणी [pr.{devavaNi} ](noun) Usage : Ancient Sanskrit literature is extremely old, vast and diverse
उदाहरण : यह मेरी अपनी वाणी नहीं, यह तो देववाणी है ।

हिन्दी का यायावर बड़ा खूबसूरत शब्द है। घुमक्कड़ के लिए सबसे सबसे प्रिय पर्यायवाची शब्द यही लगता रहा है मुझे। एक अन्य वैकल्पिक शब्द खानाबदोश भी है। मगर भाव के स्तर पर अक्सर मैने महसूस किया है कि खानाबदोश में जहां दर दर की भटकन का बोध होता है वहीं यायावर अथवा घुमक्कड़ में भटकन के साथ मनमौजी वाला भाव भी शामिल है।



यायावर की व्युत्पत्ति पर अगर गौर करें तो भी यही बात सही साबित होती है। इस शब्द का संस्कृत में जो अर्थ है वह है परिव्राजक, साधु-संत , सन्यासी आदि। साधु-संतों के व्यक्तित्व में नदियों के से गुणों की बात इसी लिए कही जाती है
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क्योंकि उनमें जो सदैव बहने की , गमन करने की वृत्ति होती है वही साधु में भी होनी चाहिए। इसी भ्रमणवृत्ति से वे अनुवभवजनित ज्ञान से समृद्ध होते हैं और तीर्थस्वरूप कहलाते है अब मनमौजी हुए बिना भला भ्रमणवृत्ति भी आती है कहीं ? गौर करें कि नदी तट के पवित्र स्थानों को ही तीर्थ कहा जाता है।

यायावर बना है संस्कृत की या धातु से । इसमें जाना, प्रयाण करना, कूच करना, ओझल हो जाना, गुज़र जाना ( यानी चले जाना-मृत्यु के अर्थ वाला गुज़र जाना मुहावरा नहीं ) आदि भाव शामिल है। अब इन तमाम भावार्थो पर जब गौर करेंगे तो आज ट्रांसपोर्ट के अर्थ में खूब प्रचलित यातायात शब्द की व्युत्पत्ति सहज में ही समझ में आ जाती है। या धातु से ही बना है यात्रा शब्द जिसका मतलब है गति, सेना का प्रयाण, आक्रमण, सफर , जुलूस, तीर्थाटन-देशाटन आदि। इससे ही बना संस्कृत में यात्रिकः जिससे ही यात्री शब्द बना। घुमक्कड़ वृत्ति के चलते ही साधु से उसकी जात और ठिकाना न पूछे जाने की सलाह कहावतों में मिलती है। खास बात यह भी है कि यातायात और यायावर चाहे एक ही मूल से जन्मे हो मगर इनमें वैर भाव भी है। साधु-सन्यासियों (यायावर ) के जुलूस, अखाड़े और संगत जब भी रास्तों पर होते है तो यातायात का ठप होना तय समझिये।

अगले पड़ाव में जानेंगे यायावर से जुड़े कुछ और संदर्भ-
यह आलेख कैसा लगा, टिप्पणी लिखेंगे तो सफर में और आनंद आएगा।

हिन्दी की रिश्तेदारी वाली शब्दावली में एक शब्द है समधी। यह शब्द जन्मा है संबंध से। कुटुंब में पति और पत्नी के पिता को समधी कहा जाता है। और आसानी के लिए कहें तो बहू या दामाद के पिता समधी कहलाते हैं। दरअसल अपनी संतानों में विवाह होने से वे संबंधी हो जाते हैं। इसी वजह पहले वे संबंधी कहलाए बाद में इसने समधी की शक्ल ले ली। ये संबंध शब्द बना है सम+बंध् से । यानी बराबरी से जुड़ना, मेल, रिश्ता, गठजोड़,नाता वगैरह वगैरह।

किस्सा बंधन का

हिन्दी का बन्धन शब्द दरअसल तत्सम शब्द है अर्थात संस्कृत से चला आया है। इसका मूल है बन्ध जिसका मूल अर्थ है बान्धना, जोड़ना। इसके अलावा

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रोकना, ठहराना, थामना, दमन करना जैसे अर्थ भी बन्ध में निहित हैं।  हिन्दी -फारसी सहित यूरोपीय भाषाओं में भी इस बंधन का अर्थ विस्तार जबर्दस्त रहा। जिससे आप रिश्ते के बंधन में बंधे हों वह कहलाया बंधु अर्थात भाई या मित्र। इसी तरह जहां पानी को बंधन में जकड़ दिया तो कहलाया बांध। बंधन में रहने वाले व्यक्ति के संदर्भ में अर्थ होगा बंदी यानी कैदी। इससे ही बंदीगृह जैसा शब्द भी बना। बहुत सारी चीजों को जब एक साथ किसी रूप में कस या जकड़ दिया जाए तो बन जाता है बंडल। गौर करें तो हिन्दी -अग्रेजी में इस तरह के और भी कई शब्द मिल जाएंगे मसलन- बन्धन, बन्धुत्व, बान्धना, बन्धेज, बान्धनी, बांध, बैंडेज,बाऊंड, रबर बैंड, बाइंड, बाइंडर वगैरह-वगैरह। अंग्रेजी के बंडल और फारसी के बाज प्रत्यय के मेल से हिन्दी में एक मुहावरा भी बना है -बंडलबाज जिसका मतलब हुआ गपोड़ी, ऊंची हॉंकने वाला, हवाई बातें करने वाला या ठग।

बात करें फारसी में संस्कृत बंध् के प्रभाव की। दरअसल फ़ारसी की पुरखिन थी अवेस्ता जिसका संस्कृत से बहन का रिश्ता था। यानी हिन्दी-फ़ारसी दरअसल आपस में खालाज़ाद बहने हैं। जिस अर्थ प्रक्रिया ने हिन्दी में कई शब्द बनाए उसी के आधार पर फारसी में भी कई लफ्ज बनें हैं जैसे बंद: जिसे हिन्दी में बंदा कहा जाता है। इस लफ्ज के मायने होते हैं गुलाम, अधीन, सेवक, भक्त वगैरह। जाहिर सी बात है कि ये तमाम अर्थ भी एक व्यक्ति का दूसरे के प्रति बंधन ही प्रकट कर रहे हैं। इसी से बना बंदापरवर यानी प्रभु , ईश्वर । वही तो भक्तों की देखभाल करते हैं। प्रभु के साथ लीन हो जाना, बंध जाना ही भक्ति है इसीलिए फारसी में भक्ति को कहते है बंदगी। इसी तरह एक और शब्द है बंद जिसके कारावास, अंगों का जोड़, गांठ, खेत की मेंड़, नज्म या नग्मे की एक कड़ी जैसे अर्थों से भी जाहिर है कि इसका रिश्ता बंध् से है।
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पिछली पोस्ट- गाँठ बांधने का दौर पर सर्वश्री संजय, बोधिसत्व, रवि तनेजा और बालकिशन की टिप्पणियां मिलीं।
बोधिभाई , आपका कहना एकदम सही है। गूँथना भी इसी कड़ी का शब्द है। मैने इसीलिए लिखा कि ग्रन्थ् से बने कई शब्द हमारे आसपास मिल जाएंगे। गुत्थमगुत्था जैसा आमफहम शब्द भी इसके भाई बंदों में आता है। बालकिशन जी, हीनग्रन्थि को हीनभावना कहना ठीक नहीं है। दरअसल एक मनोविकार को हीनग्रन्थि कहा जा सकता है। भावना बार बार पैदा हो सकती है, जबकि ग्रन्थि मन में पैठ कर जाती है। हीनता का स्थायी भाव ही हीनग्रन्थि पैदा करता है।

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डाकिया

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यानी संदेशवाहक या दूत। संदेशों को शीघ्रता से इधर से उधर पहुंचाए। आज की हिन्दी में दूत शब्द का सीधा सीधा प्रयोग कम ही होता है मगर राजदूत शब्द भरपूर चलन में है और राजनयिक-वैदेशिक खबरों में इसका उल्लेख रहता है। गौरतलब है कि महाराष्ट्र और उड़ीसा में एक जातीय उपनाम है राऊत । यह राजदूत का ही अपभ्रंश है। राऊत मूलतः एक शासन द्वारा नियुक्त प्रतिनिधि होता था जो गांव में शासन के निर्देश पहुंचाने के अलावा लगान की वसूली भी करता था। दूत के अन्य पर्याय हैं हरकारा , डाकिया, संदेशहर, प्रतिनिधि आदि। दूत शब्द के मूल में हैं संस्कृत की दू ,
दु अथवा द्रु धातुए हैं जिनमें तीव्र गति का भाव शामिल है। द्रु का मतलब है भागना, बहना , हिलना-डुलना, गतिमान रहना आदि। द्रु से बना द्रावः जिससे हिन्दी में बना दौड़ या दौड़ना। अब दु से बने दूत
और द्रु से बने द्रुत शब्द पर गौर करें तो भाव दोनों का एक ही है। द्रुत का मतलब है तीव्रगामी, फुर्तीला, आशु गामी आदि। यही सारे गुण दूत में भी होने चाहिए। द्रा और द्राक् का मतलब भी तुरंत , तत्काल , फुर्ती से और दौड़ना ही होता है। जान प्लैट्स ने द्राक् से ही हिन्दी के डाक शब्द की व्युत्पत्ति मानी है । दूत के अर्थ में एक अन्य शब्द पायक या पायिकः भी है। यह भी पैदलसिपाही के अर्थ में है । पैदल तेज तेज भागना।
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द्रु से ही बना है द्रव जिसका मतलब हुआ घोड़े की भांति भागनाया पिघलना, तरल, चाल, वेग आदि । द्रव का ही एक रूप धाव् जिसका मतलब है किसी की और बढ़ना, किसी के मुकाबले दौड़ना। मराठी में धाव का मतलब दौड़ना ही है। धाव् से बने धावक हुआ दौड़ाक यानी जिसका काम ही दौड़ना हो। जाहिर है यही तो प्राचीनकाल में दूत की प्रमुख योग्यता थी। द्रु के तरल धारा वाले रूप में जब शत् शब्द जुड़ता है तो बनता है शतद्रु अर्थात् सौ धाराएं। पंजाब की प्रमुख नदी का सतलज नाम इसी शतद्रु का अपभ्रंश है।

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बीते कुछ बरसों से भारतीय राजनीति मे गठबंधन का दौर चल रहा है। अब इस गठबंधन की गाँठ कितनी पक्की होती है इसका नमूना खुद राजनीतिक ही पेश करते रहते हैं। हाल की ताजी मिसाल कर्नाटक की है। बहरहाल गठबंधन बड़ा मजे़दार शब्द है यह दो

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अलग अलग शब्दों से मिलकर बना है गठ+बंधन। इस कड़ी में बात करते हैं पहले हिस्से यानी गठ की, अगली कड़ी में बंधन पर चर्चा होगी।
गठ शब्द बना है संस्कृत की धातु ग्रथ् से इससे ही बना है ग्रन्थः जिसका मतलब हुआ एक जगह जमा, झुण्ड, लच्छा, गुच्छा आदि। पुस्तक, किताब, साहित्यिक रचना, प्रबंध जैसे अर्थों वाला ग्रन्थ इसी से जन्मा है। गौर करें कि पुस्तक विभिन्न पृष्ठों का समुच्चय या झुण्ड है। ग्रन्थ से बनी ग्रन्थिः । इससे ही हिन्दी में बने गाँठ या गठान जिसका मतलब है रस्सी का बंधन, जोड़, उभार, जमाव आदि। गांठ जिस्म में भी पड़ती है और मन में भी। मन की गाँठ भी किन्हीं विचारों का जमाव ही है जो ग्रन्थि के रूप में हमारे व्यवहार में नज़र आता है।
कबिरा धागा प्रेम का मत तोड़ो चटकाय ।
जोड़े से भी ना जुड़े , जुड़े गाँठ पड़ जाय ।।
शरीर की पेशियों, नसों में भी अक्सर ग्रन्थि विकसित हो जाती है जो त्वचा पर उभार ला देती है। इसे भी गाँठ ही कहते हैं। सिखों में जो पुरोहित होता है, ग्रन्थी कहलाता है। यह बना है संस्कृत के ग्रन्थिकः से । पुरोहितों का काम पोथी पुराणों के बिना चलता नहीं सो ग्रन्थ से जुड़ा ग्रंथी।
कपडों, किताबों या अन्य वस्तुओं की पैकिंग को गट्ठर कहा जाता है। पोटली को गठरी कहते हैं। ये भी ग्रंथ से बने हैं। अच्छी तंदुरूस्ती वाले को गठीला सजीला भी कहा जाता है।
फलों के बीज आमतौर पर गुठली कहलाते है जो इससे ही संबंधित है।

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एक कहावत ने तो आम की गुठली को ही मशहूर कर दिया है।
जब ग्रन्थ के पन्नों को जोड़ा जा रहा होता है तो इस क्रिया को ग्रन्थनम् कहते हैं। इससे ही बना है गाँठना। यानी चीज़ों को मिलाना, जमाना, एक साथ रखना। आज गाँठना शब्द से बने रौब गाँठना, रिश्ते गाँठना जैसे मुहावरे प्रचलित हैं। गाँठना शब्द आज नकारात्मक अर्थ में ही प्रयोग होता है। यानी जोड़-जुगाड़ में लगे रहना।
जब गाँठने की क्रिया सम्पन्न हो जाती है तो उसका गठन हो जाता है। यानी उसका समु्च्चय बन जाता है। एकता के अर्थ में संगठन शब्द इससे ही बना है। ग्रन्थ से बने और भी कई शब्द हिन्दी की विभिन्न बोलियों में तलाशने पर मिल जाएंगे जैसे - गठीला, गठौत , गठड़िया और गठजोड़ आदि।

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पिछली पोस्ट सयानेपन की चाह में हो गए बुजुर्ग को अनूप जी, संजय जी, प्रमोद भाई और बालकिशन जी की सराहना मिली। आप सबका आभारी हूं।
संजयजी आपने स्यानपती का उल्लेख किया है वो इलाकाई प्रभाव है। मैने स्यानपत शब्द तक प्रयोग होते सुना है। ये बने सयानपंथ से ही हैं। बालकिशन जी जिस ढेर सयाना का उल्लेख कर रहे हैं दर हकीकत वह है डेढ़अक्ल वाला डेढ़ सयाना ही जो मराठी में दीड़ शहाणा के तौर पर प्रचलित है।


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स्टार न्यूज़ के सलोने एंकर गौरव सावंत के पत्रकारीय जीवन का यह एक महत्वपूर्ण क्षण है । भारतीय नौसेना के नौसैनिक अड्डे ‘आईएनएस डेगा, विशाखापत्तनम’ ने “विंग्स” प्रदान किए हैं । आकाश से छह छलांगे लगाने गौरव पहले भारतीय पत्रकार हैं । चार दिन में यह उपलब्धि हासिल करने के लिए गौरव का नाम ‘लिम्का बुक ऑफ रिकॉर्ड्स’ में प्रवेश के लिए भेजा गया है।

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गौरव बेहद उत्साही पत्रकार हैं और बेहतरीन शख्स भी हैं। स्टार न्यूज़ के दिल्ली दफ्तर में बिताए लम्हों में गौरव का साथ मुझे हमेशा अच्छा लगता था। स्टार न्यूज की तरफ से वे 2003 में युद्ध की कवरेज के लिए इराक गए। परवेज़ बुखारी भी उनके साथ थे। दोनो ने शानदार रिपोर्टिंग की। वहां से लौटकर गौरव ने मुझे एक गोली दी थी । बोला था , आपके बेटे के लिए गोली लाया हूं। जब देखा तो बंदूक की गोली थी।
‘स्टार न्यूज’ में विशेष संवाददाता गौरव सावंत को स्काई डाइविंग का प्रशिक्षण इंडियन नेवी स्काई डाइविंग टीम के प्रमुख इन्सट्रक्टर लेफ्टीनेंट कमांडर एन. राजेश ने दिया, जो आकाश से 1700 छलांग लगा चुके हैं।
गौरव ने छह में से दो डाइविंग फ्री फॉल के खतरनाक खेल से पूरी की, जिसमें स्काई डाइवर कुछ सेकंड तक 250 किलोमीटर प्रति घंटा की रफ्तार से गिरता है।

शुभकामनाएं गौरव... अभी और बाकी है। दिलचस्प विवरण पढ़ें आगे...

सयाना एक ऐसा लफ्ज है जिसे बचपन से जवानी तक हम अपने लिए सुनना ज़रूर चाहते हैं मगर सयानेपन की सिफत पैदा करते करते करते बुढ़ापा आ जाता है। दुनिया सिर्फ इस बुढ़ापे पर तरस खाकर हमें सयाना मान लेती है और हम दुनिया के इस सयानेपन को कभी नहीं समझ पाते और हमेशा उसे कोसते रहते हैं। बहरहाल, सयाना शब्द कहां से आया?
सयाना हिन्दी में भी है और उर्दू में भी। यह शब्द उपजा है संस्कृत के ज्ञान में सं उपसर्ग के मेल से।

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संज्ञान का अर्थ हुआ अच्छी तरह जाना हुआ, समझा हुआ। जिसे दुनिया का सम्यक बोध हो, जिसकी अनुभूतियां सचेत हों वह । इससे बना हिन्दी का सयान शब्द जिसका मतलब भी समझदारी, बुद्धिमानी और चतुराई है और फिर बुद्धिमान और चतुर के अर्थ में बना सयाना । आमतौर पर वयस्क अवस्था होने पर भी मनुश्य को सयाना कहा जाता है । जाहिर है समाज ने अनुभव से यह जाना है कि वयस्क होने पर बुद्धि आ ही जाती है। शादी के संदर्भ में आमतौर पर कहा जाता है- बेटी सयानी हो गई है , हाथ पीले करने चाहिए। इसी तरह गांवों में आमतौर पर प्रौढ़ अथवा बुजुर्गों को सयाना कहा जाता है । वजह वही है -एक खास उम्र के बाद यह मान लिया जाता है कि इसकी बुद्धि विकसित हो चुकी है और व्यावहारिक अनुभवों से भी उसने काफी ज्ञान जुटा लिया होगा। गांव - देहात में झाड़-फूक करने वाले के लिए भी सयाना शब्द खूब प्रचलित है। गोंडी समेत कई जनजातीय भाषाए आर्यभाषा परिवार की नहीं हैं इसके बावजूद यह शब्द इन भाषाओं में है। साफ है कि सदियों पूर्व आर्यों और जनजातियों के बीच भाषायी संपर्क ज़रूर होगा।
शब्दों की अवनति के संदर्भ में इस सयाना शब्द पर गौर करे। हिन्दी में आजकल ज्यादा अक्लमंदी या चालाकी दिखाने के संदर्भ में स्यानपंथी शब्द चलता है यानी ज्यादा चालाकी दिखाने की राह पर चलना। नेपाली उच्चारण की तर्ज पर मुंबईया ज़बान में श्याना, श्याणा शब्द है। इसका मतलब भी चालाक व्यक्ति से ही है। मराठी में सयाना शब्द का रूप है शहाणा। एक उपनाम भी है शहाणें। ज़रूरत से ज्यादा समझदारी दिखानेवाले के लिए हिन्दी उर्दू मे डेढ़अक्ल शब्द चलता है, उसी तर्ज पर मराठी में भी दीड़शहाणा शब्द प्रचलित है।

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पिछली पोस्ट - इसकी तो हिन्दी कर दी पर दस टिप्पणियां मिली हैं। सर्वश्री संजय, अभय तिवारी , भूपेन , ज्ञानदत्त पांडे , शिवकुमार मिश्र , आशा जोगलेकर , अनूप शुक्ल, संजीत त्रिपाठी, बालकिशन और आलोक पुराणिक का बहुत बहुत आभार । संजय, आपने जो सुझाव दिया है इंटरएक्टिव होने का वह पसंद आया। कोशिश यही रहेगी कि इस पर अमल कर सकूं ।

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भोन्दू , भद्दा , भदेस वाले आलेख पर टिप्पणी में बालकिशन ने आग्रह अनुरोध किया है कि भद्र शब्द की इतनी अवनति कैसे हो गई कि एकदम ही अर्थ का अनर्थ हो गया। इसे स्पष्ट करने के लिए मैने अपनी दो पुरानी पोस्ट का हवाला दिया है ।
बुद्ध से बुत और बुद्ध से ही बुद्धू के संदर्भ में इसे समझा जा सकता है। मूढ़ या मूर्ख शब्द की व्युत्पत्ति मुह् धातु से हुई है जिसमे मुग्ध होने का भाव निहित है। मोहन, मोहिनी , सम्मोहिनी, मुग्ध, मुग्धा जैसे अनेक शब्द इससे बने मगर इससे ही बने मूर्ख में सारे भाव उलट जाते हैं। दरअसल मुह् के मूल में जड़ हो जाना (सम्मोहन में यही तो होता है) , भूल जाना अथवा भ्रान्ति जैसे भाव शामिल हैं। ये सभी किसी न किसी रूप में अज्ञान या चेतना के विपरीत क्रिया से जुड़ते हैं।

मूर्ख है आत्ममुग्ध

बुद्ध मुद्रा में बैठे रहनेवाले व्यक्ति को कालांतर में यही उपाधि मिल गई। वक्त के साथ इसमें जड़ता का भाव प्रमुख हो गया और बुद्ध से बना बुद्धू, मूर्ख का पर्याय बन गया। यही हाल सम्मोहित व्यक्ति का होता है। वह भी जड़ हो जाता है।

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अथवा किसी के प्रभाव में काम करता है जाहिर है उसकी अपनी प्रज्ञा काम नहीं कर रही होती है। दुनियादारी में किसी भी ऐसी अवस्था को भी सम्मान नहीं मिलता है सो मुह् से बने मूर्ख या मूढ़ में भी यही बात पैदा हुई। आत्ममुग्ध व्यक्ति को भी हम मूर्ख ही तो समझते हैं।
भद्र से भद्दा बनने की अगर पड़ताल करें तो वहां भी कुछ यही बात सही होती लगती है। भद्र में निहित साधुता , सादगी वाले लक्षणों की वजह से जो वर्ग सामने आया वह था सिर घुटे साधुओं, श्रमणों का । ढीली-ढाली वेशभूषा आदि को ही भद्दा यानी कुरूपता का प्रतीक माना जाने लगा होगा। शब्दों की अवनति होने में जनमानस में पैठ रही धारणाएं खूब प्रभावी होती है।

शिष्ट माणूस

शब्दों की अधोगति कैसे होती ह इसे महाराष्ट्रीय समाज में शिष्ट शब्द के बर्ताव से समझ सकते हैं। हिन्दी - संस्कृत में शिष्ट शब्द का मतलब सामान्य तौर पर सर्वगुणसंपन्न, माननीय , विद्वान या सच्चरित्र होता है। मगर मराठी में आमतौर पर शिष्टमाणूस यानी शिष्ट मनुष्य उसे कहते हैं जो अतिशय समझदारी का प्रदर्शन करता हो। प्रकारांतर से अकड़ू, प्रदर्शनप्रिय जैसे अर्थों में ही इसका ज्यादा प्रयोग होता है।

हिन्दी हो गई

पाखंडी शब्द के बारे में भी सफर की पिछली कड़ी में लिखा जा चुका है। कहां तो मौर्यकाल का यह धार्मिक सम्प्रदाय समाज में आदर का पात्र था और कहां पाखंडी के अर्थ में ज़मानेभर में बदनाम हो गया। किसी चीज़ का रूप बिगाड़ देने के अर्थ में हिन्दी करना शब्द भी अब मुहावरे का रूप ले चुका है। जाहिर है आजादी के बाद राजभाषा समर्थकों ने जब कठिन से कठिन पारिभाषिक शब्दावलियां बना दीं तो यह मुहावरा चल पड़ा कि इसकी तो हिन्दी हो गई। यानी अच्छी भली चीज़ की शक्ल बिगाड़ दी गई।

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हिन्दी में भद्दा शब्द के मायने होते हैं बुरा , अशालीन, कुरुप या खराब। बेढंगापन या भौंडापन भी इसमें शामिल है। इसी तरह भौंदू

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शब्द के मायने हैं मूर्ख या बुद्धू। जानकर ताज्जुब हो सकता है कि इन दोनों शब्दों का जन्म भद्र से हुआ जिसका अर्थ हुआ भला , श्रेष्ठ, मंगलकारी या साधु। भद्र शब्द जन्मा है संस्कृत की भन्द् धातु से जिसमें सुखद, शुभ, कल्याण जैसे मंगलकारी भाव छुपे हैं। भन्द् से ही जन्मा है भदन्तः या भदन्त जो प्रायः बौद्ध श्रमणों या भिक्षुओं के लिए प्रयोग किया जाता है। हिन्दी का भोंदू शब्द इसी भन्द् या भदन्त का बिगड़ा हुआ रूप है। यह अजीब बात है कि प्रायः शुभ, मांगलिक भावों वाले शब्दों ने प्राकृत, अपभ्रंश और हिन्दी तक आते आते जनमानस में विपरीतार्थक भावग्रहण कर लिए। सफर की पिछली कड़ियों में हम वज्रबटुक से बजरबट्टू अथवा बुद्ध से बुद्धू वाली कड़ियों में इसे जान चुके हैं। भद्र के मायने हुए भला , समृद्धिशाली, भाग्यवान, प्रमुखआदि। इसके अलावा प्रिय, सुहाना, सुंदर ,रमणीय ,चटकदारदर आदि अर्थ भी इसमें समाहित है। इसी से बना है भद्राकरणम् जिसका मतलब होता है बाल मूंडना। पाखंडी के लिए भी भद्र शब्द है।
गौर करे कि भद्र ने जब हिन्दी का चोला पहना तो अपने मूल अर्थ के विपरीत रूप में ढल गया । कहां तो शेष्ठ और कहां एकदम खराब। हिन्दी की पूर्वी शैलियों में भदेस शब्द भी इससे ही चला।
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भदेसल यानी भद्दी वेषभूषा वाला। यह बना है भद्र+वेष+लः से । एक तरफ तो भद्र का विलोम बनाने के लिए भद्र में अउपसर्ग लगाकर अभद्र जैसा शब्द बनाना पड़ा दूसरी ओर सीधे ही भद्दा बन गया। कहीं ऐसा तो नहीं कि भद्र से जुड़े तमाम अच्छे भावों ने हिन्दी तक आते आते अति सर्वत्र वर्जयेत् वाली उक्ति से प्रेरणा ग्रहण करली।
इसी तरह भद्र से एक एक और शब्द जन्मा है भद्रा। ज्योतिष शब्दावली के इस शब्द का अर्थ हुआ कुयोग अर्थत शुभ कार्य के लिए निषिद्ध समय। एक तारामंडल को भी यही नाम मिला हुआ है। संस्कृत में इसी भद्र से बने भद्रा में सु उपसर्ग लग जाने से एक नया शब्द बनता है-सुभद्रा जिसका अर्थ हुआ पृथ्वी। इसके दो अर्थ और भी हैं-दुर्गा या गाय। इस तरह देखें तो भद्र शबद की जन्म कुंडली मे अर्थ विस्तार तो लिखा था मगर नकारात्मक रूप होना भी बदा था। अभी और बाकी है। दिलचस्प विवरण पढ़ें आगे...

पंसारी और परचून की कड़ी में अगर किरानी शब्द छूट जाए तो अधूरापन सा लगता है। हिन्दी उर्दू में एक शब्द है किरानी। दोनो ज़बानों में इनके दो अलग अलग मायने हैं। जाहिर सी बात है कि किरानी का एक अर्थ तो परचूनिया अथवा पंसारी ही हुआ। हिन्दी उर्दू में इससे ही बना किराना शब्द भी है जिसके मायने हुए परचून की
दुकान । दिलचस्प बात ये कि पंसारी और परचून दोनों ही लफ्ज आज कारोबारी शब्दावली में अपना रुतबा खो चुके हैं मगर किरानी का रुतबा बना हुआ है। हर शहर में जनरल स्टोर्स के साथ किराना स्टोर्स ठाठ से लिखा मिल जाता है।
जनरल स्टोर पर बैठा किरानी
किराना या किरानी शब्द बना है संस्कृत कि धातु क्री से । इसका मतलब होता है खरीदना

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, मोल लेना। किराए पर लेना या बेचना। विनिमय या अदला बदली भी इसमें शामिल है। क्री से ही एक अन्य क्रियारूप बनता है क्रयः जिसका अर्थ भी खरीदना, मूल्य चुकाना है। इसमें वि उपसर्ग लगने से बना विक्रय जिसका मतलब हुआ बेचना। जाहिर है क्रय से ही हिन्दी के खरीद, खरीदना जैसे शब्द बने और विक्रय से बिक्री बना। इससे ही बने क्रयणम् या क्रयाणकः जिसने हिन्दी उर्दू में किरानी और किराना का रूप लिया।
अंग्रेजों का नौकर
किरानी का एक दूसरा मतलब है क्लर्क, बाबू। खाताबही लिखने वाला। अब इन अर्थो में इस शब्द का प्रयोग हिन्दी में लगभग बंद हो गया है मगर अंग्रेजीराज से संबंधित संदर्भों में यह शब्द अनजाना नहीं है। यह बना है करणम् से जिसका मतलब है कार्यान्वित करना, धार्मिक कार्य, व्यापार-व्यवसाय, बही, दस्तावेज, लिखित प्रमाण आदि । गौरतलब है कि यह लफ्ज भी बना है संस्कृत धातु कृ से जिसका मतलब है करना, बनाना, लिखना, रचना करना आदि। हाथ को संस्कृत में कर कहते हैं । यह इसीलिए बना क्योंकि हम जो भी करते हैं , हाथों से ही करते हैं सो कृ से ही बना कर यानी हाथ। इसी से बना करबद्ध यानी हाथ जो़ड़ना। सिखपंथ का एक शब्द है कारसेवा। कई लोग इसे कार्य-सेवा के रूप में देखते हैं। दरअसल यहां भी कर यानी हाथ ही है। कारसेवा यानी जो हाथों से की जाए।
मोरक्को का प्रसिद्ध यात्री अबु अब्दुल्ला मुहम्मद जिसे हम इब्न बतूता के नाम से जानते हैं चौदहवीं सदी में भारत आया था और उसके यात्रा वर्णन में भी किरानी शब्द का उल्लेख है जो एकाउंटेंट के अर्थ में ही है।
सुरीला किराना
संगीत में भी किराना शब्द चलता है। यह एक प्रसिद्ध घराना है। मगर उपरोक्त किराना से इसका कोई लेना देना नहीं है। किराना दरअसल उत्तरप्रदेश के सहारनपुर जिले के एक कस्बे कैराना से चला है। यह दरअसल गायकी का घराना है और उस्ताद अब्दुल करीम खां, उस्ताद अब्दुल वहीद खां जैसे नामवर गायक इसी घराने से ताल्लुक रखते हैं। अभी और बाकी है। दिलचस्प विवरण पढ़ें आगे...

भारत में आम धारणा रही है कि काफिर हर वो इन्सान है जो इस्लाम को नहीं मानता । या यूं कहें कि मुसलमानों की निगाह में गैर इस्लामी व्यक्ति काफिर है। जो भी हो, काफिर लफ्ज को खराब माना जाता है। हकीकत ये है कि काफिर शब्द के मायने हैं इन्कार करने वाला, सत्य को छुपाने वाला।

2007 को संस्कृत में क्या कहते हैं? - 2007 ko sanskrt mein kya kahate hain?
यह बना है अरबी लफ्ज़ कुफ्र से जिसके मायने होते हैं इनकार , अस्वीकृति वगैरह। कृतघ्नता दिखाना या नाशुक्रापन दिखाना भी इसमें शामिल है। बाद में इसे पाप से जोड़कर देखा जाने लगा। दरअसल ये शब्द किसी न किसी रूप में धर्म , ईश्वर या सर्वोच्च सत्ता के लिए स्वीकार या नकार के संदर्भ में ही सामनें आए हैं। इसे हम हिन्दू दर्शन में समाहित अस्ति और नास्ति जैसे भावों से समझ सकते हैं। आस्तिक और नास्तिक शब्द इससे ही बने हैं। भारत में जब इस्लाम का प्रवेश हुआ तब जबर्दस्ती इस्लाम कुबूल करवाने की चेष्टाएं भी शासक वर्ग की ओर से की गईं। जिन्होने इन्कार किया वे काफिर कहलाए। जाहिर है इस अर्थ में गैर मुस्लिमों को काफिर कहना कुछ गलत नहीं था। और इसी नजरिये से समझना चाहें तो हिन्दुओं की निगाह में सभी गैर हिन्दू काफिर हो सकते है और ईसाइयों की निगाह में सभी गैर ईसाई भी काफिर हो सकते है। कश्मीर के उत्तर पश्चिमी क्षेत्र के एक इलाके का नाम काफिरिस्तान है(इसे कुफ्रिस्तान भी कहा जाता है)। यह इलाका अब पाकिस्तान और अफगानिस्तान के बीच का विवादित क्षेत्र है। इसके नाम से जाहिर है कि इस्लाम के प्रभाव में न आने की वजह से किसी समय इस पूरे इलाके को ही हमलावरों ने यह नाम दे दिया होगा। आने की वजह से किसी समय इस पूरे इलाके को ही हमलावरों ने यह नाम दे दिया होगा। अभी और बाकी है। दिलचस्प विवरण पढ़ें आगे...

पंसारी का निकटतम चलताऊ विकल्प है परचूनी या परचूनिया। अर्थात् वह आदमी जो नून, तेल , मिर्ची, आटा, चावल बेचे। यह शब्द बना है संस्कृत के परचूर्णम् से जिसका मतलब है विभिन्न प्रकार के द्रव्यों (पदार्थों)

2007 को संस्कृत में क्या कहते हैं? - 2007 ko sanskrt mein kya kahate hain?

का साधारण अथवा भुना हुआ चूरा। जाहिर है इन पदार्थों में भांति भांति के अनाजों की पीठी, विभिन्न ज़डी-बूटियों का चूर्ण, सुगंधित पदार्थों का चूरा अथवा आटा
वगैरह इसमें आते हैं। आयुर्वैदिक दवाओं का चूरा जो प्रायः हाजमा ठीक करने के काम आता है चूरन या चूरण कहलाता है , इसी चूर्ण का रूप है। चूर्ण में पर उपसर्ग लगने से बना परचूर्णम् जो हिन्दी में हो गया परचून। अब इस परचून में दैनंदिन खानपान की सारी सामग्री आ गई मसलन आटा, दाल, चावल, सत्तू, नमक, मसाले, सुगंधित शृंगार सामग्री, उबटन, दवाएं यानि जिसका भी चूरा हो सके वह सब ।
परचून से ही बन गया परचूनी अर्थात् यह सब सामग्री बेचनेवाला। चूर्ण से ही बना चूर्णः जिसमें भी यही सारे अर्थ समाहित है मगर एक नया अर्थ और जुड़ गया वह है चूना या खड़िया पत्थर। प्राचीन कर्म आधारित समाज में वर्गों के नामकरण
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की परंपरा थी। चूने को उपयोग में लाने के लिए पकाना पड़ता है। इस काम को करने वाले को चूर्णकारः कहा जाता था। प्राचीन साहित्यशास्त्र में सरल गद्य रचना की एक शैली का उल्लेख है जिसे चूर्णिका कहा गया है। जिस तरह से कठोर , ठोस पदार्थ पिस कर चूर्ण बन जाते हैं। प्रयोग में सरल , आसान हो जाते हैं उसी तरह के असर की वजह से साहित्य में भी सरल प्रयोग को चूर्णिका कहा गया होगा।

अश्क जी का किस्सा
हिन्दी साहित्य के यादगार बातों में उपेन्द्रनाथ अश्क से जुड़ा हुआ परचूनवाला उल्लेख भी मशहूर है जहां तक मुझे याद है, करीब दो ढाई दशक पहले इलाहाबाद में अश्कजी ने परचून की दुकान खोली। मीडिया ने इसे उनके किसी किस्म के असंतोष या मोहभंग से जोड़ते हुए खबर प्रचारित की । गौरतलब है कि तब का मीडिया राजनीतिक दांव पेंच के साथ साथ साहित्य की अखाड़ेबाजी को भी खबरों में खूब तरजीह देता था। खैर, परचून तक तो बात ठीक थी मगर धन्य है अनुवाद आधारित पत्रकारिता जिसने इसमें सिर्फ चूना देखा और बात चूने की दुकान तक गई। कुछ लोगों को यह चूना सचमुच लाइम नज़र आया और कुछ को नींबू। उर्वराबुद्धि वालों ने इसमें पानी और जोड़ दिया और प्रचारित हो गया कि अश्क जी इलाहाबाद में नींबू पानी बेच रहे हैं। मामला साहित्यकार की दुर्दशा से जुड़ गया । अश्क जी को खुद सारी बातें साफ करनी पड़ी।
तो यही थी परचून की कहानी। कैसी लगी , ज़रूर बताएं।

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प्राचीनकाल से ही भारत की दुनियाभर में शोहरत मसालों की वजह से रही। मिस्र,अरब, ग्रीस और रोमन साम्राज्यों में भारतीय मसालों की धूम थी। मूलतः वृहत्तर भारत में जो जड़ीबूटियां और वनौषधियां है

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उन सबको विदेशी लोग मसालों में ही गिनते थे। इन्ही की वजह से पश्चिमी दुनिया के साथ भारत का व्यापार व्यवसाय खूब फलाफूला था। आज के पंसारी और मुंबई महानगरी के पनवेल उपनगर के नामकरण के पीछे ये तमाम कारण है। जानते हैं कैसे।
प्राचीनकाल में व्यापार व्यवसाय के लिए पण् शब्द का चलन था। पण् का मतलब था। लेन-देन, क्रय-विक्रय, मोल लेना, सौदा करना, आदि । शर्त लगाना जैसे भाव भी इसमें शामिल थे। इसी से बना एक अन्य शब्द पणः जिसका मतलब हुआ पांसों दांव लगाकर या शर्त लगाकर जुआ खेलना। चूंकि व्यापार व्यवसाय में शर्त, संविदा अथवा वादा बहुत आम बात है इसलिए इस शब्द में ये तमाम अर्थ भी शामिल हो गए। पण् से ही पणः नाम की एक मुद्रा भी चली जो अस्सी कौड़ियों के मूल्य का सिक्का था। इसी वजह से धनदौलत या संपत्ति के अर्थ में भी यह शब्द चल पड़ा। मकान, मंडी, दुकान या पेठ जैसे अर्थ भी इसमें शामिल हो गए। पण्य शब्द का एक अर्थ वस्तु, सौदा या शर्त के बदले दी जाने वाली वस्तु भी हुआ। इससे बना पण्य जिसका मतलब हुआ बिकाऊ या बेचने योग्य।
व्यापार व्यवसाय के स्थान के लिए इससे ही बना एक अन्य शब्द पण्यशाला अर्थात् जहां व्यापार किया जाए। जाहिर है यह स्थान दुकान का पर्याय ही हुआ। कालांतर में पण्यशाला बनी पण्यसार। इसका स्वामी कहलाया पण्यसारिन्। हिन्दी में इसका रूप बना पंसारी या पंसार। मूलतः चूंकि प्राचीनकाल से ही इन स्थानों पर , जड़ी-बूटियां आदिबेचे जाते रहे इसलिए पंसारी की दुकान को उस अर्थ में भी लिया जाता था जिस अर्थ में आज कैमिस्ट और ड्रगिस्ट को लिया जाता है।
2007 को संस्कृत में क्या कहते हैं? - 2007 ko sanskrt mein kya kahate hain?

पंसारी से ही बना पंसारहट्टा अर्थात् जहां ओषधियों मसालों का व्यापार होता है। गौरतलब है कि किसी जमाने में भारत के मुख्य कारोबार से संबंध रखने वाला यह शब्द पंसारी आज गली मुहल्ले के एक छोटे से दुकानदार या परचूनवाले से ज्यादा महत्व नहीं रखता है।
पनवेल - मुंबई के उपनगर पनवेल के पीछे भी यही पण्य छुपा है । पण्य अर्थात् बिक्री योग्य और वेल् का अर्थ हुआ किनारा यानी बेचने योग्य किनारा। जाहिर सी बात है यहां बंदरगाह से मतलब है । पश्चिमीतट के एक कस्बे का किनारा अगर व्यापार के काबिल है तो उसे पण्यवेला नाम दिया जा सकता है । यही घिसते घिसते अब पनवेल हो गया है।

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वेनिस का मार्कोपोलो करीब सात सदी पहले कुबलाई खान का दरबारी था और उसके नोट्स के आधार पर मॉरिस कॉलिस ने मौले और पैलियट नामक पुस्तक लिखी। इस पुस्तक का हिन्दी अनुवाद श्री उदयकांत पाठक ने किया है। पेश है पोलो का दिलचस्प वृतांत- सन १२७१ के दौर में चीन के शासक कुबलाई खान की डाक व्यवस्था की अंतिम कड़ी।

2077 को संस्कृत में क्या कहते हैं?

2077 को संस्कृत में क्या कहते हैं? आपने पूछा है कि 2077 (दो हजार सतत्तर) को संस्कृत में क्या कहते हैंसंस्कृत में 2077 को "सप्तसप्तत्युत्तर- द्विसहस्त्रम्" कहते हैं

जुलाई को संस्कृत में क्या कहते हैं?

जुलाई महीने को संस्कृत में आश्विन: कहते हैं

वर्ष को संस्कृत में कैसे लिखते हैं?

translations वर्ष.
वर्ष adjective noun. Dbnary: Wiktionary as Linguistic Linked Open Data..
वर्षः wikidata..
वर्षम् noun. en.wiktionary.org..

1025 को संस्कृत में क्या कहते हैं?

एक हज़ार दो सौ पच्चीस