प्रशिक्षण का उद्देश्य क्या होना चाहिए? - prashikshan ka uddeshy kya hona chaahie?

प्रशिक्षण का अर्थ (prashikshan kya hai)

prashikshan arth uddeshya prakar;प्रशिक्षण का अर्थ है कि काम के विषय मे व्यवसायिक, व्यवहारिक ज्ञान प्राप्त करना। वैसे यह शब्द शिक्षण से ही बना है परन्तु शिक्षण मे सामान्य ज्ञान मिलता है। प्रशिक्षण विशिष्ट ज्ञान देकर विशेषज्ञ बनाता है।

डाॅ. एम. पी. शर्मा के अनुसार," प्रशिक्षण वह प्रयत्न होता है जिसके द्वारा कर्ता अपनी क्षमता तथा अपनी प्रतिभा को बढ़ता है। इसके साथ ही वह एक विशेष दिशा मे अपनी प्रवृत्ति तथा उच्च भावना को भी उत्पन्न करता है।" 

लोक प्रशासन एक कला है और एक प्रशासक को इस कला का कुशल कलाकर होना जरूरी है। व्यक्ति एक सुयोग्य प्रशासक प्रारंभ से ही नही होता। प्रशासन की ऐसी बहुत सी विधाएं है जो उसे सीखना पड़ती है। इसी उद्देश्य की पूर्ति के लिये प्रशासन मे अधिकारियों व कर्मचारियों को निपुण बनाया जाता है। क्योंकि इसके पूर्व उसे सामान्य शिक्षा प्राप्त होती है। परन्तु उसे कार्य विशेष को करने का ज्ञान नही होता। उदाहरण के लिए एक क्लर्क हो या शिक्षक वह निश्चित सामान्य शिक्षा प्राप्त किये हुए होता है परन्तु उसे आफिस मे काम कैसे किया जाए, फाइलों मे कैसे कागजों को रखा जाए, उन पर नोटशीट कैसे लिखी जाए यह ज्ञान तो प्रशिक्षण के बाद ही प्राप्त होता है। इसी प्रकार अध्यापन कला का भी प्रशिक्षण होता है। &lt;/p&gt;&lt;h2 style="text-align:center"&gt;&lt;script async src="https://pagead2.googlesyndication.com/pagead/js/adsbygoogle.js"&gt; <ins class="adsbygoogle" style="display:block" data-ad-client="ca-pub-4853160624542199" data-ad-slot="7124518223" data-ad-format="auto" data-full-width-responsive="true"></ins> <script> (adsbygoogle = window.adsbygoogle || []).push({}); प्रशिक्षण के उद्देश्य (prashikshan ke uddeshya)

प्रशिक्षण का मुख्य उद्देश्य प्रशासन मे कार्यकुशलता लाना है। इसके माध्यम से कर्मचारियों मे उच्च स्तर के कार्यों का उत्तरदायित्व वहन करने की क्षमता विकसित की जा सकती है। प्रशिक्षण के माध्यम से अधिकारियों/कर्मचारियों मे सामूहिक रूप से कार्य करने की भावना भी विकसित की जाती है। प्रशिक्षण के द्वारा कार्यकर्ता मे स्वयं को अपनी संस्था का अंग बनने की क्षमता आती है। कर्मचारी को यथार्थता का पाठ पढ़ाने, आत्मनिर्भर तथा स्वतंत्र बनाने और उनमे निर्णय करने की क्षमता उत्पन्न करने की दृष्टि से प्रशिक्षण बड़ा महत्वपूर्ण होता है। प्रशिक्षण के माध्यम से ही कर्मचारी स्वयं को नई परिस्थिति के अनुकूल बनाता है।

सिविल सेवकों के प्रशिक्षण पर इंग्लैंड मे नियुक्त (1944) असेटन कमेटी ने प्रशिक्षण के निम्न उद्देश्य बताए है--

1. कर्मचारियों मे विश्वसनीयता व चतुरता उत्पन्न करना।

2. कर्मचारियों को इस योग्य बनाना कि वे परिवर्तनशील संसार से समायोजन कर सकें। 

3. कर्मचारियों को यंत्रीकरण से बचाने के लिए उनमें सामुदायिक चेतना उत्पन्न करना।

4. अन्य अधिकाधिक कर्तव्यों को पूरा करने की क्षमता उत्पन्न करना।

5. कर्मचारियों के दृष्टिकोण को व्यापक बनाना। 

जब कोई अधिकारी या कर्मचारी पहली बार अपने कार्यालय जाता है, तब वह वहाँ यह अनुभव करता है कि उसने अभी तक जो शिक्षा विद्यालयों एवं महाविद्यालयों मे प्राप्त की है, वह यहां प्रत्यक्षतः उपयोगी नही है और उसका कार्य एक विशिष्ट प्रकृति का है। इस सबको वह प्रशिक्षण के माध्यम से ही समझता है।

निग्रो का कथन है," प्रशिक्षण का कार्य कर्मचारियों को न केवल यांत्रिक दृष्टि से कुशल बनाना है वरन् उसके दृष्टिकोण को इतना व्यापक बनाना है जितना कि एक लोक-सेवक के लिए आवश्यक होता है। 

प्रशिक्षण जहां प्रशासकीय कार्यों मे एकरूपता लाता है, वहीं अधिकारियों मे सामूहिक रूप से कार्य करने व समस्याओं का समाधान संयुक्त रूप से करने का मार्ग प्रशस्त करता है।

प्रशिक्षण के प्रकार या स्वरूप (prashikshan ke prakar)

प्रशिक्षण के निम्न प्रकार है--

1. अल्पकालीन प्रशिक्षण 

कुछ सप्ताह से लेकर एकाधिक महीने का प्रशिक्षण है।

2. दीर्घकालीन प्रशिक्षण 

यह लम्बी अवधि का प्रशिक्षण है।

3. औपचारिक प्रशिक्षण 

यह ट्रेनिंग (प्रशिक्षण) स्कूलों मे दिया जाता है।

4. अनौपचारिक प्रशिक्षण 

यह कर्मचारी काम करते हुए अपने श

वरिष्ठ सहयोगियों से धीरे-धीरे अपने आप सीखकर प्राप्त करता है।

5. सेवा पूर्व प्रशिक्षण 

यह सेवा मे प्रविष्ट होने के पूर्व दिया जाता है।

6. मध्यकालीन प्रशिक्षण  

यह सेवा के मध्य किसी भी समय दिया जा सकता है। इसमें रिफ्रेशर कोर्स इत्यादि भी आते है।

7. विभागीय प्रशिक्षण  

इसकी व्यवस्था सम्बंधित विभाग द्वारा की जाती है।

8.  केन्द्रीय प्रशिक्षण 

इसको व्यावसायिक पाठ्यक्रमों के रूप मे विश्वविद्यालय अथवा अन्य संस्थाओं द्वारा चलाया जाता है।

प्रशिक्षण प्रणालियाँ

प्रशिक्षण प्रणालियां निम्न प्रकार से है--

1. अनुभव पद्धति 

इसमे कर्मचारी को सीनियर कर्मचारी चुनाव के आधार पर प्रशिक्षण देते है।

2. ट्रेनिंग स्कूलों की स्थापना 

इसके लिए सरकार ट्रेनिंग स्थापित करती है।

3. साहित्य द्वारा 

विभिन्न विभाग साहित्य प्रकाशित कर ट्रेनिंग देते है।

4.  सम्मेलन, वर्कशाप, री-ओरिएन्टेशन कोर्स 

कभी-कभी विचारों द्वारा ऐसे क्लासेज भी चलाए जाते है।

5. जेकसिल 

इस पद्धति का जन्म द्वितीय विश्वयुद्ध मे हुआ। इसमे निम्न पद्धतियां पाई जाते है--

(अ) जाॅब इन्स्ट्रक्टर ट्रेनिंग 

(ब) जाॅब मैथड ट्रेनिंग 

(स) जाॅब रिलेशन्स ट्रेनिंग।

शायद यह जानकारी आपके के लिए बहुत ही उपयोगी सिद्ध होगी

प्रशिक्षण का मुख्य उद्देश्य क्या है?

प्रशिक्षण के उद्देश्य कार्य-दशाओं एवं संगठनात्मक संस्कृति के अनुकूल बनाना। न्यूनतम लागत, अपव्यय एवं बर्बादी तथा न्यूनतम पर्यवेक्षण पर कर्मचारियों से श्रेष्ठ ढंग से कार्य सम्पादन को प्राप्त करना। दुर्घटनाओं से बचाव की विधियों से परिचित कराना। कार्य सम्पादन सम्बन्धी आदतों में सुधार करना।

प्रशिक्षण की आवश्यकता क्यों होती है?

प्रशिक्षण की जरूरत प्रशिक्षण का उद्देश्य किसी व्यक्ति या समूह के ज्ञान, कौशल व अभिवृत्ति (नॉलेज, स्किल और एटीट्यूड) के ऊपर फोकस किया जाता है। ज्ञान में किसी क्षेत्र विशेष की अवधारणाओं पर व्यापक समझ बनाने के ऊपर फोकस किया जाता है।

प्रशिक्षण से आप क्या समझते हैं?

प्रशिक्षण (Training) का अर्थ है, अपने आप को या किसी दूसरे को ऐसी शिक्षा देना और या कौशल विकसित करना जिससे किसी विशेष कार्य में प्रवीणता आजाय।

प्रशिक्षण कार्यक्रम क्या है?

प्रशिक्षण, संगठन की सहायता के लिए एक उपकरण है, जिसमें निरंतर सुधार और परिवर्तन की मांग की जुड़वां चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। हमारे संकाय की बदलती भूमिका को पहचानना आवश्यक है - केवल प्रदाताओं को सुविधा देने वालों तक, जहां शिक्षार्थी या छात्र की प्रशिक्षण की जरूरत है ध्यान का ध्यान।