कौन हैं ब्राह्मण ? और पंडित किसे कहते हैं ? क्या ब्राह्मण और पंडित एक ही होते हैं ? 👉 ब्राह्मण और पंडित में क्या अंतर... Show
चेतावनी: इस टेक्स्ट में गलतियाँ हो सकती हैं। सॉफ्टवेर के द्वारा ऑडियो को टेक्स्ट में बदला गया है। ऑडियो सुन्ना चाहिये। ब्राह्मण और पंडितों में ज्यादा डिफरेंस नहीं होता है ज्यादा अंतर नहीं होता है लेकिन ब्राह्मण जो है वह पूरा वर्ग कहलाता है और जो पंडित पंडित एक पार्टी कूलर कास्ट को कहा जाता है brahman aur pandito mein zyada difference nahi hota hai zyada antar nahi hota hai lekin brahman jo hai vaah pura varg kehlata hai aur jo pandit pandit ek party cooler caste ko kaha jata hai ब्राह्मण और पंडितों में ज्यादा डिफरेंस नहीं होता है ज्यादा अंतर नहीं होता है लेकिन ब्राह्म 10 Vokal App bridges the knowledge gap in India in Indian languages by getting the best minds to answer questions of the common man. The Vokal App is available in 11 Indian languages. Users ask questions on 100s of topics related to love, life, career, politics, religion, sports, personal care etc. We have 1000s of experts from different walks of life answering questions on the Vokal App. People can also ask questions directly to experts apart from posting a question to the entire answering community. If you are an expert or are great at something, we invite you to join this knowledge sharing revolution and help India grow. Download the Vokal App! भारतवर्ष जिसे अब भारत देश कहा जाता है, ब्राह्मण और पंडित हमेशा से ही चर्चा का केंद्र रहे हैं। कुछ लोग इनकी प्रशंसा करते हैं और कुछ लोग निंदा करते हैं। सबके अपने-अपने कारण हो सकते हैं परंतु एक बात ज्यादातर लोगों में समान होती है और वह यह कि लोक ब्राह्मण और पंडित के बीच अंतर नहीं जानते। ज्यादातर लोग पंडित और ब्राह्मण को एक ही समझते हैं। इसे एक जाति के रूप में माना जाता है। आइए जानते हैं क्या ब्राह्मण और पंडित किसी जाति का नाम है। क्या दोनों ही एक है या फिर अलग-अलग जातियां हैं। या फिर दोनों में से कोई भी जाति नहीं है। ब्राह्मण कौन होते हैं, किसे कहते हैंभारतवर्ष में जब कर्म के आधार पर वर्ण विभाजन किया गया तब पहली बार ब्राह्मण शब्द का उपयोग किया गया। "ब्रह्मं जानाति सः ब्राह्मणः ,यह ऋषित्व-परणीति।।" अर्थात वह व्यक्ति जो ब्रह्म को जानता है एवं जिसके अंदर ऋषित्व उपस्थित है, वही ब्राह्मण है। यानी ऐसा व्यक्ति जो अपने आसपास मौजूद सभी प्राणियों के जन्म की प्रक्रिया और उसके कारण को जानता है, जिसके अंदर लोक कल्याण की भावना हो ऐसा व्यक्ति ब्राह्मण कहलाता है। यह एक वर्ण है, जाति नहीं है। कर्म के आधार पर ब्राह्मण का निर्धारण होता था। समय के साथ वर्ण व्यवस्था में विकृति आती गई और वर्ण व्यवस्था को जाति का नाम दे दिया गया। पंडित का क्या अर्थ होता है, क्या कोई भी व्यक्ति पंडित बन सकता हैभारतवर्ष में जब विश्वविद्यालय नहीं थे। योग्यता का निर्धारण शास्त्रार्थ के दौरान प्रदर्शन पर निर्भर करता था तब विशेषज्ञों का एक समूह सर्वश्रेष्ठ एवं योग्य व्यक्ति का चयन करता था। ऐसे व्यक्ति को पंडित कहा जाता था। सरल शब्दों में ऐसा व्यक्ति जो किसी विषय विशेष का ज्ञाता हो। जिसने उस विषय पर अध्ययन किया हो एवं कुछ नया खोज निकाला हो उसे पंडित कहा जाता था। पंडित एक उपाधि है। आप इसे पीएचडी के समकक्ष मान सकते हैं। यह उपाधि केवल हिंदुओं की पूजा पद्धति में पारंगत या विशेषज्ञों को नहीं दी जाती थी बल्कि उनके अलावा किसी भी प्रकार की कला में दक्षता हासिल करने के बाद, रिसर्च करें और कुछ नया खोज निकाले तो उसे पंडित कहा जाता था। संगीत आदि कलाओं में पंडित की उपाधि आज भी पीएचडी से अधिक महत्वपूर्ण मानी जाती है। शास्त्रों के अलावा शस्त्र विद्या की शिक्षा देने वाला योद्धा भी पंडित (आचार्य) कहलाता था। Notice: this is the copyright protected post. do not try to copy of this article (current affairs in hindi, gk question in hindi, current affairs 2019 in hindi, current affairs 2018 in hindi, today current affairs in hindi, general knowledge in hindi, gk ke question, gktoday in hindi, gk question answer in hindi,) These NCERT Solutions for Class 8 Hindi Vasant & Bharat Ki Khoj Class 8 Chapter 3 सिंधुघाटी सभ्यता Questions and Answers Summary are prepared by our highly skilled subject experts. Class 8 Hindi Bharat Ki Khoj Chapter 3 Question Answers Summary सिंधुघाटी सभ्यताBharat Ki Khoj Class 8 Chapter 3 Question and Answers पाठाधारित प्रश्न बहुविकल्पी प्रश्न प्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न 3. प्रश्न 4. प्रश्न 5. प्रश्न 6. प्रश्न 7. प्रश्न 8. प्रश्न 9. प्रश्न 10. प्रश्न 11. प्रश्न 12. प्रश्न 13. प्रश्न 14. प्रश्न 15. प्रश्न 16. प्रश्न 17. प्रश्न 18. प्रश्न 19. प्रश्न 20. प्रश्न 21. प्रश्न 22. प्रश्न 23. प्रश्न 24. प्रश्न 25. प्रश्न 26. लघु उत्तरीय प्रश्न प्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न 3. प्रश्न 4. प्रश्न 5. प्रश्न 6. प्रश्न 7. प्रश्न 8. प्रश्न 9. प्रश्न 10. प्रश्न 11. प्रश्न 12. प्रश्न 13. प्रश्न 14. प्रश्न 15. प्रश्न 16. प्रश्न 17. प्रश्न 18. प्रश्न 19. प्रश्न 20. प्रश्न 21. प्रश्न 22. प्रश्न 23. प्रश्न 24. प्रश्न 25. प्रश्न 26. प्रश्न 27. प्रश्न 28. प्रश्न 29. प्रश्न 30. प्रश्न 31. प्रश्न 32. प्रश्न 33. प्रश्न 34. प्रश्न 35. प्रश्न 36. प्रश्न 37. प्रश्न 38. प्रश्न 39. प्रश्न 40. दीर्घ उत्तरीय प्रश्न प्रश्न 1. यह धर्मनिरपेक्ष सभ्यता थी, क्योंकि धार्मिक होने के बावजूद भी इसमें किसी विशेष धर्म को ज़्यादा महत्त्व नहीं दिया गया था। यह विकसित सभ्यता वर्तमान का आधार प्रतीत होती है। यह सभ्यता आगे चलकर आधुनिक युगों का सांस्कृतिक आधार बनी। प्रश्न 2. प्रश्न 3. प्रश्न 4. प्रश्न 5. प्रश्न 6. प्रश्न 7. प्रश्न 8. प्रश्न 9. प्रश्न 10. प्रश्न 11. प्रश्न 12. प्रश्न 13.
उनका बल नैतिकता पर था तथा उनकी पद्धति मनोवैज्ञानिक विश्लेषण की थी। प्रश्न 14. प्रश्न 15. पाठ विवरण इस पाठ के माध्यम से हमें सिंधुघाटी सभ्यता में भारत के अतीत जानकारी मिलती है। जिसके चिह्न सिंधु में मोहनजोदड़ो और पश्चिम पंजाब में हड़प्पा में मिले। इनकी खुदाइयों के माध्यम से हमें इतिहास के बारे में पर्याप्त जानकारी मिलती है। Bharat Ki Khoj Class 8 Chapter 3 Summary सिंधुघाटी सभ्यता के माध्यम से पता चलता है कि यह अत्यंत विकसित सभ्यता थी और इस सभ्यता को विकसित होने में हज़ारों साल लगे होंगे तथा यह सभ्यता धर्मनिरपेक्ष सभ्यता थी। सिंधु घाटी सभ्यता ने फारस, मेसोपोटामिया और मिश्र की मान्यताओं से संबंध स्थापित किया और व्यापार किया। यह एक विकसित सभ्यता थी और यहाँ के लोगों का प्रमुख धंधा एवं व्यवसाय था। व्यापारी वर्ग यहाँ सबसे धनी था। सड़कों पर दुकानों की कतारें थीं और दुकानें संभवतः छोटी थी। सिंधु घाटी सभ्यता मुख्य दो भागों में बँटा हुआ था। एक मोहनजोदड़ो तथा दूसरा हड़प्पा। ये दोनों सभ्यता का केंद्र एक-दूसरे से काफ़ी दूर पर स्थित है। संभवतः इस सभ्यता के मध्य में कई स्थान व नगर रहे होंगे जिनकी खोज खुदाई के दौरान नहीं की जा सकी। खुदाई एवं खोजों से भी इस बात का पता चलता है कि यह सभ्यता पश्चिम में कठियावाड़ और पंजाब के अंबाला जिले तक फैली हुई थी। इस सभ्यता का विस्तार गंगा नदी तक था, इसलिए यह सभ्यता सिर्फ सिंधु घाटी की सभ्यता नहीं कहा जा सकता है। अंबाला जिला अब पंजाब में नहीं बल्कि हरियाणा में विलय कर दिया गया है। सिंधु घाटी के खुदाई के दौरान हमें जो अवशेष प्राप्त हुए हैं उसके आधार पर कहा जा सकता है कि यह सभ्यता पूर्णतः विकसित थी। उसे इस तरह विकसित होने में हजारों वर्ष लगे होंगे। धार्मिक अवशेषों के मिलने के आधार पर यह कहा जा सकता है कि यह सभ्यता पूर्णतः धर्मनिरपेक्ष थी। भविष्य में यह सभ्यता भारतीय संस्कृति एवं स्वरूप की अग्रदूत बनी। इस सभ्यता ने फारस, मेसोपोटामिया और मिस्र की सभ्यताओं के साथ संपर्क स्थापित कर व्यापारिक संबंध स्थापित किए। यहाँ व्यापारी वर्ग काफ़ी धनी थे। खुदाई के अवशेषों से पता चलता है कि सड़कों पर छोटी-छोटी दुकानों की कतारें थीं। सिंधुघाटी सभ्यता के उद्गम के बारे में सही-सही जानकारी हमें उपलब्ध नहीं है लेकिन खुदाई के आधार पर यह कहा जा सकता है कि इस सभ्यता का उदय लगभग छह सात हज़ार वर्ष पूर्व हुआ है। यदि आज के वर्तमान युग की सभ्यता से तुलना की जाए तो प्राचीन सिंधुघाटी सभ्यता और वर्तमान सभ्यता के बीच काफ़ी परिवर्तन आए। भले इसमें अंदर ही अंदर निरंतता की ऐसी शृंखला चली आ रही है जो भारत को सात हजार वर्ष पुरानी सभ्यता से जोड़े रखती है। मोहनजोदड़ो और हड़प्पा संस्कृति हमें तत्कालीन रहन-सहन रीति-रिवाज, दस्तकारी तथा पोशाकों के फैशन की जानकारी प्रदान करती है। सिंधु घाटी की सभ्यता से आज के आधुनिक सभ्यता को देखते हैं तो पाते हैं कि भारत आज बाल्यावस्था के रूप में नहीं बल्कि प्रौढ़ रूप में विकसित हो चुका है। आज के आधुनिक भारतीय सभ्यता ने कला और जीवन की सुख सुविधाओं में प्रगति कर ली है। आज के सभ्यता में आधुनिक सभ्यता के उपयोग चिह्नों स्नानागार और नालियों के क्षेत्र में विकास कर लिया है जिसकी बुनियाद सिंधुघाटी की सभ्यता से जुड़ी दिखाई पड़ती है। आर्यों का आना यह भी इतिहासकारों का मानना है कि आर्य उत्तर-पश्चिमी दिशा से एक के बाद एक आए। कुछ इतिहासकारों का मानना है कि आर्य का प्रवेश सिंधु घाटी में एक हजार वर्ष पहले से हुआ था। ये संभवतः पश्चिम-उत्तर दिशा से भी भारत में वे कबीले और जातियाँ आती रही और भारत में बसती चली गई। पहला सांस्कृतिक समन्वय आर्य एवं द्रविड़ जातियों के बीच हुआ जो सिंधु घाटी सभ्यता के प्रतिनिधि थे। इन सब आधारों पर हम कह सकते हैं कि आर्य भारत के ही मूल निवासी थे। अत्यधिक बाद और मौसम परिवर्तनों के प्रभाव के चलते सिंधु घाटी सभ्यता का अंत हुआ होगा। ऐसा अनुमान लगाया गया कि मौसम परिवर्तन से ज़मीन सूखती गई हो और खेतों पर रेगिस्तान छा गया हो और खेत रेगिस्तान में बदल गया। मोहनजोदड़ो के खंडहर इस बात के प्रमाण हैं कि उन पर एक के बाद एक बालू की परतें छाई हैं। जिससे अनुमान लगाया गया कि शहर की ज़मीन ऊँची उठती गई और नगरवासियों ने पुरानी नीवों पर ऊँचाई पर मकान, बनाए इसलिए खुदाई के दौरान हमें तीन-तीन मंजिले मकान मिले हैं। सिंधु घाटी की सभ्यता के बाद आने वाली सभ्यता में शुरुआत में कृषि पर अधिक बल दिया गया। किसान खेती पर अधिक बल देते थे। लोगों का प्रमुख व्यवसाय कृषि पर ही आधारित था। सबसे बड़ा सांस्कृतिक समन्वय और मोल-जोल बाहर से आने वाले आर्यों एवं द्रविड़ जातियों के लोगों के बीच हुआ। बाद के युगों में बहुत-सी जातियाँ आईं। सबने अपनी-अपनी सभ्यता की छाप छोड़ी और सभी घुल-मिल गए। प्राचीनतम अभिलेख, धर्म-ग्रंथ और पुराण भारतीय वेदों पर ईरान की पूरी छाप है। माना जाता है कि आर्य अपने साथ उसी कुल के विचारों को लाए जिससे ईरान में अवेस्ता धार्मिक ग्रंथ की रचना हुई थी। वेदों और अवेस्ता की भाषा में भी समानता है। अवेस्ता की रचना ईरान में हुई थी। वेद भारतीय संस्कृति के संदर्भ में भारतीय और पश्चिमी विद्वानों के बीच के अलग-अलग मत थे। पश्चिमी देशों के इतिहासकारों का मत था कि भारतीय लोगों का परलोकवादी सिद्धांत बहुत हद तक सही है। इसके विपरीत नेहरू जी का विचार था कि हर देश के निर्धन और अभागे लोग कुछ हद तक परलोक में विश्वास करते हैं। जब तक वे क्रांतिकारी नहीं हो जाते वही बात गुलाम देश पर लागू होती है। यानी नेहरू जी का मत था कि भारत का प्राचीन इतिहास तो उन्नत व विकसित है लेकिन गुलामी की जंजीरों में जकड़ने पर भारतीयों के विचारों में भी परिवर्तन आ गया। भारतीय संस्कृति की निरंतरता यद्यपि इसी समय में सामाजिक कुरीतियों के रूप में छूआछूत देखने को मिलती है जो बाद में असहाय हो जाती है, बाद में जाति व्यवस्था का विकास हुआ। इस प्रथा से कई जातियों में समाज बँट गया और समाज में ऊँच-नीच वर्गों में भेद-भाव होने लगा। इस प्रथा द्वारा समाज को प्रभावित करने के बावजूद भी भारत हर क्षेत्र में विकास के पथ पर बढ़ता रहा व बाहरी जातियों ईरानियों, यूनानियों, चीनी, मध्य एशियाई व अन्य लोगों से उसके संपर्क लगातार बने रहे। उपनिषद व्यक्तिवादी दर्शन के लाभ और हानियाँ जब गांधी देश की आजादी के लिए संग्राम की शुरुआत की, तो उनके विचारों में भी यही विशेषता थी कि समाज जाति बंधनों से मुक्त हो और वे स्वस्थ शरीर, स्वच्छ मन द्वारा संयम, आत्मपीड़न और आत्मत्याग की भावना से कार्य करें। भौतिकवाद भारत में वर्षों तक भौतिकवादी प्रचलन रहा और जनता पर उसका गहरा असर था। इसका साक्ष्य कौटिल्य द्वारा लिखी गई ‘अर्थशास्त्र’ है। इसमें दार्शनिक सिद्धांतों का वर्णन है। इसकी रचना ई.पू. चौथी शताब्दी में हुई थी। भारत में भौतिकवाद के बहुत से साहित्य को पुरोहितों और धर्म के पुराणपंथी विचारों में विश्वास रखने वाले लोगों ने समाप्त कर दिया। भौतिकवादियों ने विचार, धर्म, ब्राह्मणवादिता, जादू-टोने और अंधविश्वासों का घोर विरोध किया। वे पुरानी व्यवस्था से निकलकर स्वयं को मुक्त करना चाहते थे। जो प्रमाण हमें प्रत्यक्ष रूप में दिखाई नहीं देता। वे काल्पनिक देवी-देवताओं की पूजा में विश्वास नहीं रखते थे। न स्वर्ग है और न नरक है और न ही शरीर से अलग कोई आत्मा। जीवन की वास्तविक सत्ता ही उनके समक्ष सत्य थी। महाकाव्य, इतिहास, परंपरा और मिथक भारतीय सभी कथाएँ महाकाव्यों तक सीमित नहीं हैं। उनका इतिहास वैदिक काल तक जाता है। इनमें वीरगाथाओं की कहानियाँ अधिक मिलती हैं। कवियों व नाटककारों ने तथ्य और कल्पनाओं का सुंदर योग करके अपनी रचनाओं की रचना की। इनमें सत्य वचन का पालन करने, जीवनपर्यंत व मरणोपरांत वफादारी, साहस और लोकहित के लिए सदाचार और बलिदान की शिक्षा दी गई है। भारतीय इतिहासकारों ने यूनानियों, चीनियों और अरबवासियों की तरह तिथियों व कालक्रम सहित व्याख्या नहीं की। इससे घटनाएँ इतिहास की भूल भूलैया में, खोकर रह गई हैं। कल्हण की रचना राजतरंगिनी नामक प्राचीन ग्रंथ में कश्मीर का इतिहास है। इसकी रचना ईसा की बारहवीं शताब्दी में की गई। अन्य ऐतिहासिक रचनाओं को विस्तार से जानने के लिए समकालीन अभिलेखों, शिलालेखों, कलाकृतियों, इमारतों के अवशेषों, सिक्कों व संस्कृत साहित्य के विशाल संग्रह से सहायता लेनी पड़ती है। इसके अलावा विदेशी यात्रियों के विवरणों से भी हमें इसकी जानकारी मिलती है। ऐतिहासिक ज्ञान की कमी के कारण जनता ने अतीत के विषय में अपनी सोच का निर्माण पीढ़ी-दर पीढ़ी मिली विरासत से कर लिया। इससे लोगों को एक मज़बूत और टिकाऊ सांस्कृतिक पृष्ठभूमि मिल गई। महाभारत भारत में इस समय विदेशियों का आगमन होने के बाद विदेशियों की परंपराएँ तथा अनेक रिवाज यहाँ के बसे आर्यों की परंपराओं के साथ मेल नहीं खाते थे। इस स्थिति से निपटने के लिए बुनियादी एकता पर बल देने की कोशिश की गई। महाभारत का युद्ध 11वीं शताब्दी के आसपास हुआ होगा। महाभारत में एक विराट गृह युद्ध का वर्णन है जिसमें अखंड भारत की अवधारणा की शुरुआत हुई। महाभारत ग्रंथ से यह भी स्पष्ट होता है कि आधुनिक अफगानिस्तान का एक बहुत बड़ा हिस्सा भारत में शामिल था जिसका नाम गंधार था। इसी आधार पर भारत के प्रधान शासक की पत्नी का नाम गंधारी पड़ा। दिल्ली व इसके आसपास के इलाके का नाम भी पहले हस्तिनापुर और इंद्रप्रस्थ था। उस समय इंद्रप्रस्थ भारत की राजधानी मानी जाती थी। महाभारत में कृष्ण संबंधित आख्यान भी है और प्रसिद्ध काव्य-भगवद गीता भी। इस ग्रंथ में मुख्य रूप से उस समय के शासनकाल और सामान्य रूप से जीवन के नैतिक और व्यवहार संबंधी सिद्धांतों पर जोर दिया गया है। धर्म को इसमें महत्त्वपूर्ण स्थान दिया गया है और कहा गया है कि धर्म के बिना मनुष्य को सच्चे सुख की प्राप्ति नहीं हो सकती है। वे समाज में एकता से नहीं रह सकते। इसका लक्ष्य है पूरे विश्व का लोकमंगल। यह ग्रंथ हमें यह संदेश देता है कि हिंसा करना अमानवीय है लेकिन किसी मकसद या लोक कल्याण के लिए युद्ध लड़ा जाए तो वह गलत नहीं माना जाएगा। इस ग्रंथ में हमें पारिवारिक और सामाजिक समस्याओं के निदान की जानकारी दी गई है। इस प्रकार महाभारत से हमें निम्नलिखित शिक्षाएँ मिलती हैं। दूसरों के साथ ऐसा व्यवहार न करें जो आपको बुरा लगे। सच्चाई, आत्मसंयम, तपस्या, उदारता, अहिंसा, धर्म का निरंतर पालन ही जीवन की सफलता की कुंजी है। जीवन में मनुष्य को सच्चे सुख की प्राप्ति चाहिए तो इसके लिए पहले दुख भोगना आवश्यक है। धन के पीछे दौड़ना व्यर्थ है। इसके अलावे इस ग्रंथ में शासन, कला और सामान्य रूप से जीवन के नैतिक और आचार संबंधी सिद्धांतों पर जोर दिया गया है। महाभारत एक ऐसा विशाल भंडार है जिसमें अनेक अनमोल चीज़े ढूँढ़ी जा सकती हैं। भगवद् गीता इस काव्य की रचना लगभग ढाई हजार वर्ष पहले की गई। इस रचना को आज भी संपूर्ण श्रद्धा की दृष्टि से देखा जाता है। इसकी रचना बौद्धकाल से पहले हुई थी। इसकी लोकप्रियता आज भी लोगों के बीच काफ़ी है। आधुनिक युग के विचारक तिलक, अरविंद घोष व गांधी जी ने अपने विचारों का आधार गीता को ही बनाया। अन्य लोगों ने भी हिंसा और युद्ध का क्षेत्र इसी के औचित्य के आधार पर निश्चित करते हैं। महाभारत की कथा का आरंभ अर्जुन और कृष्ण के संवाद से है। गीता में जीवन के कर्तव्यों के पालन के लिए कर्म का अह्वान किया गया है और अकर्मण्यता की निंदा की गई है। गीता सभी वर्गों और धर्मों के लोगों को मान्य हुई। गीता का संदेश किसी संप्रदाय या व्यक्ति विशेष को बढ़ावा नहीं देता। यह मनुष्य को कर्म करने की प्रेरणा देता है। यह मनुष्य के विकास के तीन मार्गों ज्ञान, कर्म और भक्ति को अपनाने के लिए प्रेरित करता है। गीता में हमें ऐसी जीवंत चीज़ मिली है जो आध्यात्मिक और अन्य समस्याओं को सुलझाने में मददगार सिद्ध हुई है। प्राचीन भारत में जीवन और कर्म भारत में लिखने का प्रचलन बहुत पुराना है। पाषाण युग की मिट्टी के पुराने बर्तनों पर ‘ब्राह्मी लिपि’ के अक्षर मिले हैं। ब्राह्मी लिपि से ही देवनागरी तथा अन्य लिपियों की उत्पत्ति हुई। छठी या सातवीं शताब्दी में पाणिनि ने संस्कृत भाषा में प्रसिद्ध व्याकरण की रचना की। इसे आज भी संस्कृत व्याकरण का आधिकारिक ग्रंथ माना जाता है। इस समय तक संस्कृत का रूप स्थिर हो चुका था। औषधि विज्ञान की पाठ्यपुस्तकें भी थीं और अस्पताल भी। औषधि पर चरक की तथा शल्य चिकित्सा पर सुश्रुत की पुस्तकें मिलती हैं। महाकाव्यों के इस युग में वनों में स्थिति विश्वविद्यालयों तथा महाविद्यालयों का भी वर्णन मिलता है। चरक सम्राट कनिष्क के दरबार में राज वैदय थे। उनकी पुस्तक में अनेक रोगों के इलाज का वर्णन है। शल्य प्रशिक्षण के दौरान मुर्दो की चीर-फाड़ कराई जाती थी। सुश्रुत द्वारा अंगों को काटना, पेट काटना, ऑपरेशन से बच्चे को जन्म दिलाना आदि का वर्णन है। कुछ वर्ष तक छात्र महाविद्यालय एवं विश्व विद्यालय में प्रशिक्षण लेकर घर वापस आकर गृहस्थ जीवन व्यतीत करते थे। बनारस हमेशा शिक्षा का केंद्र रहा। तक्षशिला विश्वविद्यालय भी प्रसिद्ध था। यह बौद्ध काल में बौद्ध ज्ञान का केंद्र बन गया था। इस प्रकार हम कह सकते हैं कि औषधि विज्ञान व शल्य चिकित्सा के क्षेत्र में भारत विश्व में अपना विशेष स्थान रखता था। वर्तमान चिकित्सा का आधार प्राचीन भारत ही है। अंत में इन जानकारियों के आधार हम कह सकते हैं कि वे खुले दिल के, आत्मविश्वासी और अपनी परम्पराओं पर गर्व करने वाले, रहस्य के प्रति जिज्ञासु तथा जीवन में सहज भाव से आनंद लेने वाले लोग थे। महावीर और बुद्ध-वर्ण व्यवस्था जैन धर्म जाति व्यवस्था के प्रति सहिष्णु था और स्वयं को उसी के अनुरूप ढाल लिया था, इसलिए आज भी हिंदू धर्म की शाखा के रूप में जीवित है। दूसरी ओर बौद्ध धर्म ने जाति व्यवस्था को स्वीकार नहीं किया। यह अपने विचारों तथा दृष्टिकोण में स्वतंत्र रहा। बुद्ध की पद्धति मनोवैज्ञानिक विश्लेषण की पद्धति थी। जीवन में वेदना और दुख पर बौद्ध धर्म में बहुत बल दिया गया है। इसलिए इस धर्म ने भारत के बाहर देशों में अधिक स्थान बनाया परंतु इसने हिंदूवाद पर अपनी गहरी छाप छोड़ी। चंद्रगुप्त और चाणक्य-मौर्य साम्राज्य की स्थापना राज्याभिषेक के समय राजा को इस बात की शपथ दिलायी जाती थी कि वह प्रजा की सेवा करेगा तथा प्रजा के हित एवं इच्छा को ध्यान में रखेगा। यदि कोई राजा अनीति करता है तो उसकी प्रजा को अधिकार है कि उसे हटाकर किसी दूसरे को उसकी जगह बैठा दे। अशोक बुद्ध की शिक्षा के प्रभाव से उसका मन हिंसा को छोड़कर जन कल्याणकारी कार्य करने की ओर आगे बढ़ा। इसके बाद उसने बुद्ध धर्म के नियमों का उत्साहपूर्वक पालन करना शुरू कर दिया। उसने अपने एक संदेश में कहा कि- वह हत्या या बंदी बनाए जाने को सहन नहीं करेगा। उसका कहना था कि सच्ची विजय कर्तव्य और धर्म पालन करके लोगों के दिल को जीतने में है। यदि उसके साथ कोई बुराई करेगा तो वह जहाँ तक संभव होगा उसे झेलने का प्रयास करेगा। उनकी इच्छा थी कि जीव मात्र की रक्षा हो, लोगों में आत्मसंयम हो, उन्हें मन की शांति और आनंद प्राप्त हो। स्वयं उसने बुद्ध की शिक्षा के प्रचार तथा प्रजा की भलाई वाले कार्य के लिए अपने आपको अर्पित कर दिया, स्वयं वह बौद्ध धर्मावलंबी थे लेकिन सभी धर्मों का आदर करते थे। अशोक बहुत बड़ा निर्माता भी था। उसने अनेक बड़ी इमारतों का निर्माण कराया। बड़ी-बड़ी इमारतों को बनाने में मदद के लिए विदेशी कारीगरों को भी रखा। मूर्तिकला व दूसरे अवशेषों पर भारतीय कला परंपरा की छाप स्पष्ट रूप से दिखाई पड़ती है लेकिन स्तंभों पर विदेशी छाप भी मिलती है। 41 साल तक शासन करने के बाद ई. पू. 232 में अशोक की मृत्यु हुई। उसका नाम आदर के साथ लिया जाता है। उसने अनेक महान कार्य किए जिनके कारण उनका नाम वोल्गा से जापान तक आज भी आदर के साथ लिया जाता है। Pandit और ब्राह्मण में क्या फर्क है?किसी विशेष विद्या का ज्ञान रखने वाला ही पंडित होता है। प्राचीन भारत में, वेद शास्त्रों आदि के बहुत बड़े ज्ञाता को पंडित कहा जाता था। ब्राह्मण : ब्राह्मण शब्द ब्रह्म से बना है, जो ब्रह्म (ईश्वर) को छोड़कर अन्य किसी को नहीं पूजता, वह ब्राह्मण कहा गया है। जो पुरोहिताई करके अपनी जीविका चलाता है, वह ब्राह्मण नहीं, याचक है।
ब्राह्मण का असली नाम क्या है?ब्राह्मण : ईश्वरवादी, वेदपाठी, ब्रह्मगामी, सरल, एकांतप्रिय, सत्यवादी और बुद्धि से जो दृढ़ हैं, वे ब्राह्मण कहे गए हैं। तरह-तरह की पूजा-पाठ आदि पुराणिकों के कर्म को छोड़कर जो वेदसम्मत आचरण करता है वह ब्राह्मण कहा गया है।
पंडित कौन सी कैटेगरी में आते हैं?पण्डित उपनाम जो अधिकतर ब्राह्मणों में पाया जाता है।
पंडित कितने प्रकार के होते हैं?स्मृति-पुराणों में ब्राह्मण के 8 भेदों का वर्णन मिलता है:- मात्र, ब्राह्मण, श्रोत्रिय, अनुचान, भ्रूण, ऋषिकल्प, ऋषि और मुनि। 8 प्रकार के ब्राह्मण श्रुति में पहले बताए गए हैं। इसके अलावा वंश, विद्या और सदाचार से ऊंचे उठे हुए ब्राह्मण 'त्रिशुक्ल' कहलाते हैं। ब्राह्मण को धर्मज्ञ विप्र और द्विज भी कहा जाता है।
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