पंडित और ब्राह्मण में क्या अंतर होता है? - pandit aur braahman mein kya antar hota hai?

कौन हैं ब्राह्मण ? और पंडित किसे कहते हैं ? क्या ब्राह्मण और पंडित एक ही होते हैं ? 👉 ब्राह्मण और पंडित में क्या अंतर...

Posted by Sanjeev Awasthi Shiv Bhakt Ravan on Tuesday, February 9, 2021

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ब्राह्मण और पंडितों में ज्यादा डिफरेंस नहीं होता है ज्यादा अंतर नहीं होता है लेकिन ब्राह्मण जो है वह पूरा वर्ग कहलाता है और जो पंडित पंडित एक पार्टी कूलर कास्ट को कहा जाता है

brahman aur pandito mein zyada difference nahi hota hai zyada antar nahi hota hai lekin brahman jo hai vaah pura varg kehlata hai aur jo pandit pandit ek party cooler caste ko kaha jata hai

ब्राह्मण और पंडितों में ज्यादा डिफरेंस नहीं होता है ज्यादा अंतर नहीं होता है लेकिन ब्राह्म

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पंडित और ब्राह्मण में क्या अंतर होता है? - pandit aur braahman mein kya antar hota hai?
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पंडित और ब्राह्मण में क्या अंतर होता है? - pandit aur braahman mein kya antar hota hai?

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भारतवर्ष जिसे अब भारत देश कहा जाता है, ब्राह्मण और पंडित हमेशा से ही चर्चा का केंद्र रहे हैं। कुछ लोग इनकी प्रशंसा करते हैं और कुछ लोग निंदा करते हैं। सबके अपने-अपने कारण हो सकते हैं परंतु एक बात ज्यादातर लोगों में समान होती है और वह यह कि लोक ब्राह्मण और पंडित के बीच अंतर नहीं जानते। ज्यादातर लोग पंडित और ब्राह्मण को एक ही समझते हैं। इसे एक जाति के रूप में माना जाता है। आइए जानते हैं क्या ब्राह्मण और पंडित किसी जाति का नाम है। क्या दोनों ही एक है या फिर अलग-अलग जातियां हैं। या फिर दोनों में से कोई भी जाति नहीं है। 


ब्राह्मण कौन होते हैं, किसे कहते हैं 

भारतवर्ष में जब कर्म के आधार पर वर्ण विभाजन किया गया तब पहली बार ब्राह्मण शब्द का उपयोग किया गया। "ब्रह्मं जानाति सः ब्राह्मणः ,यह ऋषित्व-परणीति।।" अर्थात वह व्यक्ति जो ब्रह्म को जानता है एवं जिसके अंदर ऋषित्व उपस्थित है, वही ब्राह्मण है। यानी ऐसा व्यक्ति जो अपने आसपास मौजूद सभी प्राणियों के जन्म की प्रक्रिया और उसके कारण को जानता है, जिसके अंदर लोक कल्याण की भावना हो ऐसा व्यक्ति ब्राह्मण कहलाता है। यह एक वर्ण है, जाति नहीं है। कर्म के आधार पर ब्राह्मण का निर्धारण होता था। समय के साथ वर्ण व्यवस्था में विकृति आती गई और वर्ण व्यवस्था को जाति का नाम दे दिया गया।


पंडित का क्या अर्थ होता है, क्या कोई भी व्यक्ति पंडित बन सकता है 

भारतवर्ष में जब विश्वविद्यालय नहीं थे। योग्यता का निर्धारण शास्त्रार्थ के दौरान प्रदर्शन पर निर्भर करता था तब विशेषज्ञों का एक समूह सर्वश्रेष्ठ एवं योग्य व्यक्ति का चयन करता था। ऐसे व्यक्ति को पंडित कहा जाता था। सरल शब्दों में ऐसा व्यक्ति जो किसी विषय विशेष का ज्ञाता हो। जिसने उस विषय पर अध्ययन किया हो एवं कुछ नया खोज निकाला हो उसे पंडित कहा जाता था। पंडित एक उपाधि है। आप इसे पीएचडी के समकक्ष मान सकते हैं। यह उपाधि केवल हिंदुओं की पूजा पद्धति में पारंगत या विशेषज्ञों को नहीं दी जाती थी बल्कि उनके अलावा किसी भी प्रकार की कला में दक्षता हासिल करने के बाद, रिसर्च करें और कुछ नया खोज निकाले तो उसे पंडित कहा जाता था। संगीत आदि कलाओं में पंडित की उपाधि आज भी पीएचडी से अधिक महत्वपूर्ण मानी जाती है। शास्त्रों के अलावा शस्त्र विद्या की शिक्षा देने वाला योद्धा भी पंडित (आचार्य) कहलाता था।

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Class 8 Hindi Bharat Ki Khoj Chapter 3 Question Answers Summary सिंधुघाटी सभ्यता

Bharat Ki Khoj Class 8 Chapter 3 Question and Answers

पाठाधारित प्रश्न

बहुविकल्पी प्रश्न

प्रश्न 1.
भारतीय अतीत का आधार क्या है?
(i) मोहनजोदड़ो
(ii) गंगा-नदी
(iii) सिंधुघाटी की सभ्यता
(iv) तक्षशिला
उत्तर:
(iii) सिंधुघाटी की सभ्यता

प्रश्न 2.
सिंधु घाटी सभ्यता कितनी प्राचीन है?
(i) दो हज़ार वर्ष पूर्व
(ii) तीन हजार वर्ष पूर्व
(iii) पाँच हजार वर्ष पूर्व
(iv) छह-सात हज़ार वर्ष पूर्व
उत्तर:
(iv) छह-सात हज़ार वर्ष पूर्व

प्रश्न 3.
आर्यों की मुख्य जीविका क्या थी?
(i) पशुपालन
(ii) कृषि
(iii) व्यापार
(iv) उनमें कोई नहीं
उत्तर:
(ii) कृषि

प्रश्न 4.
सिंधु घाटी से पहले का इतिहास किसे माना जाता था?
(i) प्राचीन ग्रंथ
(ii) अभिलेख
(iii) वेद
(iv) पुराण
उत्तर:
(iii) वेद

प्रश्न 5.
ऋगवेद की रचना कितने साल पुरानी है?
(i) 1500 ईसा पूर्व
(ii) 2000 वर्ष पूर्व
(iii) 2500 वर्ष पूर्व
(iv) 3500 ईसा पूर्व
उत्तर:
(i) 1500 ईसा पूर्व

प्रश्न 6.
किस वेद की उत्पत्ति सबसे पहले हुई थी?
(i) सामवेद
(ii) अथर्ववेद
(iii) रामायण
(iv) ऋगवेद
उत्तर:
(iv) ऋगवेद

प्रश्न 7.
उपनिषदों की उत्पत्ति कब हुई थी?
(i) ई. पू. 500
(ii) ई. पू. 800
(iii) ई. पू. 1000
(iv) ई. पू. 1200
उत्तर:
(ii) ई. पू. 800

प्रश्न 8.
भारतीय आर्य किस व्यवस्था में विश्वास करते थे।
(i) जातिवाद
(ii) परिवारवाद
(iii) व्यक्तिवाद
(iv) अलगावाद
उत्तर:
(iii) व्यक्तिवाद

प्रश्न 9.
भौतिक साहित्य की जानकारी के स्रोत क्या हैं?
(i) शिलालेख
(ii) बड़े-बड़े प्राचीन ग्रंथ
(iii) भोजपत्र व ताड़पत्र
(iv) पेड़ों के वृंत ने
उत्तर:
(iii) भोजपत्र व ताड़पत्र

प्रश्न 10.
‘अर्थशास्त्र’ की रचना कब हुई थी?
(i) ई.पू. पाँचवी शताब्दी
(ii) ई.पू. आठवीं शताब्दी
(iii) ई.पू. चौथी शताब्दी
(iv) ई.पू. सातवीं शताब्दी
उत्तर:
(iii) ई.पू. चौथी शताब्दी

प्रश्न 11.
भारत के दो प्रमुख महाकाव्यों का नाम बताइए।
(i) रामायण व गीता
(ii) गीता व महाभारत
(iii) रामायण व महाभारत
(iv) रामायण व पुराण
उत्तर:
(iii) रामायण व महाभारत

प्रश्न 12.
इनमें से प्राचीन काल का ग्रंथ कौन-सा है?
(i) वेद व्यास द्वारा रचित महाभारत
(ii) वाल्मीकि द्वारा रचित रामायण
(iii) तुलसीदास द्वारा रचित रामायण
(iv) कल्हण द्वारा रचित राजतरंगिनी
उत्तर:
(iv) कल्हण द्वारा रचित राजतरंगिनी

प्रश्न 13.
प्राचीन समय में भारत की राजधानी थी।
(i) लखनऊ
(ii) कानपुर
(iii) जम्मू
(iv) इंद्रप्रस्थ
उत्तर:
(iv) इंद्रप्रस्थ

प्रश्न 14.
इनमें महाभारत का मुख्य भाग कौन-सा है?
(i) पुराण
(ii) गीता
(iii) रामायण
(iv) भगवद्गीता
उत्तर:
(iv) भगवद्गीता

प्रश्न 15.
भगवद्गीता ने किसके व्यक्तित्व को उभारा है?
(i) शिव
(ii) राम
(iii) श्रीकृष्ण
(iv) विष्णु
उत्तर:
(iii) श्रीकृष्ण

प्रश्न 16.
प्राचीन काल में किसान अपने कृषि उत्पादन का कितना हिस्सा कर के रूप में राजा को देते थे?
(i) एक चौथाई
(ii) आधा
(iii) दशांश
(iv) छठा
उत्तर:
(iv) छठा

प्रश्न 17.
सबसे पहले प्राचीन काल में किस लिपि का निर्माण हुआ?
(i) देवनागरी
(ii) ब्राह्मी लिपि
(iii) रोमन लिपि
(iv) गुरुमुखी
उत्तर:
(ii) ब्राह्मी लिपि

प्रश्न 18.
संस्कृत भाषा के व्याकरण की रचना किसने की थी?
(i) तुलसीदास
(ii) देवनागरी
(iii) पाणिनी
(iv) वाल्मीकि
उत्तर:
(iii) पाणिनी

प्रश्न 19.
‘औषधि’ विज्ञान पर किसकी पुस्तकें लोकप्रिय थीं?
(i) सुश्रुत
(ii) पाणिनी
(iii) चरक
(iv) धन्वंतरि
उत्तर:
(iv) धन्वंतरि

प्रश्न 20.
प्राचीन काल के प्रमुख शल्य चिकित्सक थे?
(i) सुश्रुत
(ii) पाणिनी
(iii) चरक
(iv) धनवंतरि
उत्तर:
(i) सुश्रुत

प्रश्न 21.
भारत के शिक्षा केंद्र कौन से थे?
(i) तक्षशिला व काशी
(ii) बनारस व तक्षशिला
(iii) इलाहाबाद व बनारस
(iv) इंद्रप्रस्थ व तक्षशिला
उत्तर:
(ii) बनारस व तक्षशिला

प्रश्न 22.
बौद्ध और जैन धर्म किस धर्म से अलग होकर बने?
(i) हिंदू धर्म
(ii) वैश्य धर्म
(iii) वैदिक धर्म
(iv) इसाई धर्म
उत्तर:
(iii) वैदिक धर्म

प्रश्न 23.
बुद्ध ने घृणा का अंत किस प्रकार करने को कहा?
(i) घृणा से
(ii) प्रेम से
(iii) लड़ाई से
(iv) विरोध से
उत्तर:
(ii) प्रेम से

प्रश्न 24.
चंद्रगुप्त मौर्य कहाँ के रहने वाले थे?
(i) पाटलीपुत्र
(ii) इंद्रप्रस्थ
(iii) तक्षशिला
(iv) मगध
उत्तर:
(iv) मगध

प्रश्न 25.
चाणक्य था?
(i) चंद्रगुप्त का मंत्री
(ii) चंद्रगुप्त का सलाहकार
(iii) चंद्रगुप्त का मित्र
(iv) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(iv) उपर्युक्त सभी

प्रश्न 26.
चाणक्य का दूसरा नाम था?
(i) चरक
(ii) सुश्रुत
(iii) कौटिल्य
(iv) अशोक
उत्तर:
(iii) कौटिल्य

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
सिंधु घाटी सभ्यता के अवशेष कहाँ मिले हैं?
उत्तर:
सिंधु घाटी के अवशेष सिंध में मोहनजोदड़ो और पश्चिमी पंजाब में हड़प्पा में मिले हैं।

प्रश्न 2.
सिंधु घाटी के अवशेष कहाँ-कहाँ से प्राप्त हुए? इससे क्या लाभ हुआ?
उत्तर:
सिंधु घाटी के अवशेष मोहनजोदड़ो और पश्चिमी पंजाब जिले के हड़प्पा से मिले हैं। मोहनजोदड़ो में की गई खुदाई से प्राप्त वस्तुओं से प्राचीन इतिहास को जानने में काफी मदद मिली।

प्रश्न 3.
सिंधु घाटी सभ्यता कहाँ तक फैली है?
उत्तर:
सिंधु घाटी सभ्यता, पश्चिम में कठियावाड़ और पंजाब के अंबाला जिले के अलावा गंगा की घाटी तक फैली थी।

प्रश्न 4.
ऋगवेद का रचनाकाल कब तक माना जाता है?
उत्तर:
अधिकांश इतिहासकार ऋगवेद की उत्पत्ति का काल ई.पूर्व. 1500 मानते हैं।

प्रश्न 5.
आर्यों का मुख्य व्यवसाय क्या था?
उत्तर:
आर्यों का मुख्य व्यवसाय खेती था।

प्रश्न 6.
‘वेद’ शब्द की उत्पत्ति किस धातु से हुई ?
उत्तर:
‘वेद’ शब्द की उत्पत्ति ‘विद्’ धातु से हुई है। इसका अर्थ है जानना। अतः वेद का सीधा-साधा अपने काल के ज्ञान का संग्रह।

प्रश्न 7.
आर्य कौन थे? वे भारत कब आए?
उत्तर:
अधिकतर विद्वान व्यावहारिक रूप से आर्यों को भारत का ही संतान मानते हैं। अधिकांश विद्वानों का मत है कि आर्यों का प्रवेश एक हजार वर्ष बाद में हुआ था। भारत की पश्चिमोत्तर दिशा से भारत में कबीले और जातियाँ समय-समय पर आती रही और इनका संपर्क द्रविड़ जातियों से होता है। इन्हें ही आर्य माना गया।

प्रश्न 8.
लेखक ने ‘राजतरंगिनी’ के बारे में क्या कहा है?
उत्तर:
विद्वान ने कल्हण द्वारा लिखे ग्रंथ राजतरंगिनी को एकमात्र सबसे प्राचीन ग्रंथ माना है। जिसे इतिहास माना जा सकता है।

प्रश्न 9.
भारतीय संस्कृति का सबसे प्राचीन इतिहास क्या है?
उत्तर:
भारतीय संस्कृति का सबसे प्राचीन इतिहास ‘वेद’ है।

प्रश्न 10.
वेदों पर सबसे अधिक किसका प्रभाव दिखाई पड़ता है?
उत्तर:
वेदों पर सबसे अधिक ईरान के विचारों का प्रभाव दिखाई पड़ता है, क्योंकि ईरान के ग्रंथ ‘अवेस्ता’ व भारत के वेदों के विचार व भाषा मिलती जुलती है। विद्वानों का ऐसा मानना है कि आर्य उसी ओर से आए और यह ग्रंथ आर्य मानव के द्वारा कहा गया पहला ‘शब्द’ था।

प्रश्न 11.
भारतीय जातियों और बुनियादी भारतीय संस्कृति का विकास किस प्रकार हुआ?
उत्तर:
इस सभ्यता के कारण बाहर से आने वाले आर्यों और द्रविड़ जाति के लोगों के बीच सांस्कृतिक समन्वय और मेल-जोल हुआ। ये द्रविड़ संभवतः सिंधु घाटी के प्रतिनिधि थे। इसी मेलजोल और समन्वय से भारतीय जातियों और बुनियादी भारतीय संस्कृति का विकास हुआ।

प्रश्न 12.
वैदिक युग काल के समय के बारे में विद्वानों का क्या मत है?
उत्तर:
वैदिक युग के काल के विषय में विद्वानों का अलग-अलग मत है। भारतीय विद्वान वैदिक युग का काल बहुत पहले का मानते हैं जबकि यूरोपीय विद्वान इसका काल बहुत बाद का मानते हैं।

प्रश्न 13.
सिकंदर के आक्रमण से कौन-कौन से विभूति उत्पन्न हुए?
उत्तर:
सिकंदर के आक्रमण से दो महान विभूति उत्पन्न हुए। पहला – चंद्रगुप्त मौर्य, दूसरा – चाणक्य।

प्रश्न 14.
सिंधु घाटी ने किन-किन सभ्यताओं के साथ संबंध स्थापित किए और व्यापार किए।
उत्तर:
सिंधु घाटी ने फारस, मेसोपोटामिया और मिश्र की सभ्यताओं से संबंध स्थापित किया और व्यापार किया।

प्रश्न 15.
ऋगवेद की क्या विशेषता थी?
उत्तर:
ऋगवेद काव्य शैली में लिखा गया ग्रंथ है। प्रकृति के सौंदर्य व रहस्य का इनमें संपूर्ण वर्णन है। इसके अतिरिक्त इसमें लोगों के द्वारा किए गए साहसिक कार्यों का भी वर्णन है।

प्रश्न 16.
भारतीय सभ्यता ने किन-किन क्षेत्रों में विकास किया?
उत्तर:
भारतीय सभ्यता ने कला, संगीत, साहित्य, नाचने-गाने की कला, चित्रकला व नाटक रंगमंच के क्षेत्र में काफ़ी प्रगति की।

प्रश्न 17.
नेहरू के अनुसार किस प्रकार के लोग लोक परलोक में विश्वास करते हैं?
उत्तर:
प्रत्येक देश के निर्धन और अभागे लोग एक हद तक परलोक में विश्वास करते थे।

प्रश्न 18.
कौटिल्य ने ‘अर्थशास्त्र’ की रचना कब की थी?
उत्तर:
ई.पू. चौथी शताब्दी में कौटिल्य ने ‘अर्थशास्त्र’ की रचना की थी।

प्रश्न 19.
सभ्यता और संस्कृति के प्रगति का दौर किस प्रकार अद्भुत है?
उत्तर:
सभ्यता और संस्कृति के प्रगति का दौर लंबे समय तक भारत में अलग-अलग नहीं पड़ा। उसका संबंध ईरानियों, यूनानियों, चीनी तथा मध्य एशियाई लोगों से बना रहा। इस तरह सभ्यता और संस्कृति का इतिहास अद्भुत है।

प्रश्न 20.
महाभारत में क्या है?
उत्तर:
महाभारत में कृष्ण के बारे में आख्यान भी है और लोकप्रिय काव्य भगवद्गीता भी।

प्रश्न 21.
गीता का संदेश कैसा है?
उत्तर:
गीता में निहित संदेश किसी वर्ग या संप्रदाय के लिए नहीं है। ये संदेश किसी भी तरह सांप्रदायिकता नहीं फैलाते हैं। इसकी दृष्टि सार्वभौमिक है। इसमें सार्वभौमिकता के कारण समाज के सभी वर्गों के लोगों एवं संप्रदाय के लिए मान्य है।

प्रश्न 22.
गीता में किसकी निंदा की गई है?
उत्तर:
गीता में अकर्मण्यता की निंदा की गई है।

प्रश्न 23.
जाति व्यवस्था का समाज पर क्या प्रभाव पड़ा?
उत्तर:
जाति व्यवस्था से लोगों की बौद्धिक जड़ता बढ़ गई, उनकी रचनात्मक गतिविधियाँ कम होती चली गई।

प्रश्न 24.
भारतीय आर्य किस पद्धति में विश्वास करते थे?
उत्तर:
भारतीय आर्य लोगों के व्यक्तिवाद के फलस्वरूप आत्मकेंद्रित हो गया। उन्हें सामाजिक पक्ष की कोई चिंता न रही। वे समाज के प्रति अपना कोई कर्तव्य नहीं समझते थे। इसी कारण व्यक्तिवाद, अलगाववाद और ऊँच-नीच पर आधारित जातिवाद बढ़ता चला गया।

प्रश्न 25.
भौतिकवाद का अर्थ क्या है?
उत्तर:
भौतिकवाद का अर्थ है जीवन की वास्तविकता में विश्वास करना।

प्रश्न 26.
प्राचीन भौतिक साहित्य की रचना किस पर की गई थी?
उत्तर:
प्राचीन भौतिक साहित्य की रचना ताड़-पत्रों व भोज-पत्रों पर किया गया था, क्योंकि कागज़ पर लिखने का रिवाज बाद में चला।

प्रश्न 27.
गीता में किसकी निंदा की गई है?
उत्तर:
गीता में जीवन के कर्तव्यों के निर्वाह के लिए कर्म का आह्वान किया गया है।

प्रश्न 28.
युद्ध के समय से पहले का वृतांत हमें किसमें मिलते हैं ?
उत्तर:
युद्ध के समय से पहले का वृतांत हमें जातक कथाओं से मिलता है।

प्रश्न 29.
महाभारत ग्रंथ की क्या विशेषता है?
उत्तर:
महाभारत विश्व में प्रसिद्ध रचना है। इसमें प्राचीन भारत की राजनीति और सामाजिक संस्थाओं का पूर्ण ब्यौरा मिलता है।

प्रश्न 30.
भारत का प्राचीन नाम क्या था?
उत्तर:
भारत का प्राचीन नाम आर्यावर्त यानी आर्यों का देश था।

प्रश्न 31.
गीता में कर्म के महत्त्व को किस प्रकार प्रतिपादित किया गया है?
उत्तर:
गीता में मनुष्यों को अपने कर्तव्यों का पालन करने के लिए कर्म करने का संदेश दिया गया है। इसमें अकर्मण्यता की निंदा की गई है। कर्म को समय के उच्चतम आदर्शों को ध्यान में रखकर करने का संदेश दिया है।

प्रश्न 32.
प्राचीन भारत में ग्राम सभाओं का क्या स्वरूप था?
उत्तर:
प्राचीन भारत में ग्राम सभाएँ एक सीमा तक स्वतंत्र थीं। उनकी आमदनी का मुख्य साधन लगान था। इसका भुगतान प्रायः गल्ले या पैदावार की शक्ल में किया जाता था।

प्रश्न 33.
पाणिनी ने कब किसकी रचना की?
उत्तर:
पाणिनी ने ई.पू. छठी या सातवीं शताब्दी में संस्कृत भाषा में व्याकरण की रचना की।

प्रश्न 34.
भारत में औषधि विज्ञान के जनक कौन थे?
उत्तर:
धन्वंतरि थे।

प्रश्न 35.
शल्य चिकित्सा पर हमें किसकी पुस्तकें मिलती हैं?
उत्तर:
शल्य चिकित्सा पर हमें सुश्रुत की पुस्तक मिलती है।

प्रश्न 36.
बौद्ध धर्म और जैन धर्म में क्या समानता थी? वर्णन कीजिए।
उत्तरः
बौद्ध धर्म और जैन धर्म दोनों ही वैदिक धर्म से अलग हुए थे। वे वेदों को प्रामाणिक विचार देने से बचते नज़र आते थे। उनका दृष्टिकोण यथार्थवादी या बुद्धिवादी है। ये दोनों धर्म ब्रह्मचारी भिक्षुओं और पुरोहितों के संघ बनाते हैं।

प्रश्न 37.
बुद्ध का ज्ञान ब्रह्मज्ञानियों को नया और मौलिक क्यों लगा?
उत्तर:
बुद्ध का ज्ञान किसी जाति या संप्रदाय विशेष के लोगों के लिए नहीं बल्कि समूची मानव जाति के कल्याण के लिए था। इसमें वर्ण व्यवस्था पर प्रहार किया गया था। यह यथार्थवादी और बुद्धिवादी है। जैनधर्म के अनुयायी समाज के अनुरूप ढलते चले गए। यह धर्म हिंदू धर्म की शाखा के रूप में विकसित होता गया।

प्रश्न 38.
अशोक कब मौर्य साम्राज्य का उत्तराधिकारी बना?
उत्तर:
273 ई.पू. अशोक इस महान साम्राज्य का उत्तराधिकारी बना।

प्रश्न 39.
अशोक ने कितने वर्ष तक शासन किया?
उत्तर:
अशोक ने 41 वर्ष तक अनवरत शासन किया। 232 ई.पू. में उनकी मृत्यु हुई।

प्रश्न 40.
अशोक बहुत बड़ा निर्माता था – यह तुम कैसे कह सकते हो?
उत्तर:
अशोक द्वारा किए गए निर्माण ऐतिहासिक धरोहर से पता चलता है कि वह बहुत बड़ा निर्माता था। उसने बड़ी इमारतें बनाने के लिए विदेशी कारीगरों को बुला रखा था। अशोक की मूर्तिकला और अन्य अवशेषों में भारतीय कला-परंपरा दृष्टिगोचर होती है।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
सिंधु घाटी सभ्यता की क्या विशेषताएँ थीं?
उत्तर:
उत्तर भारत में इसका विस्तार काफ़ी दूर-दूर तक था। यह सभ्यता अपने आप में पूर्ण रूप से विकसित थी जो आज के आधुनिक सभ्यता का आधार कही जा सकती है।

यह धर्मनिरपेक्ष सभ्यता थी, क्योंकि धार्मिक होने के बावजूद भी इसमें किसी विशेष धर्म को ज़्यादा महत्त्व नहीं दिया गया था। यह विकसित सभ्यता वर्तमान का आधार प्रतीत होती है। यह सभ्यता आगे चलकर आधुनिक युगों का सांस्कृतिक आधार बनी।

प्रश्न 2.
सिंधु घाटी की सभ्यता कितनी प्राचीन है? इससे हमें किन-किन चीज़ों की जानकारी मिलती है?
उत्तर:
सिंधु घाटी की सभ्यता छह-सात हज़ार वर्ष पुरानी है। यह हमें मोहनजोदड़ो व हड़प्पा के माध्यम से उस समय के लोगों के रहन-सहन, लोकप्रियता रीतिरिवाजों, दस्तकारी व पोशाकों आदि के फैशन के बारे में भी जानकारी उपलब्ध कराती है।

प्रश्न 3.
जिस रेत से सिंधु घाटी सभ्यता का पतन हुआ वही रेत उसे बचाने में कैसे सहायक सिद्ध हुई ?
उत्तर:
जब वह अपने वेग में बहती तो अपने साथ गाँवों के गाँव बहा कर ले जाती थी। इस सभ्यता के पतन में रेत भी एक कारण था – रेत की मोटी परत-दर परत जमती गई और मकान उसमें डूबकर रह गए। रेत ने प्राचीन नगरों को ढंक लिया था, उसी रेत के कारण वे सुरक्षित रह सके। दूसरे शहर और प्राचीन सभ्यता के सबूत धीरे-धीरे समाप्त होते गए।

प्रश्न 4.
वेद अवेस्ता के अधिक निकट हैं, कैसे? पाठ के आधार लिखिए।
उत्तर:
‘वेद’ भारतीय संस्कृति का सबसे पुराना आधार है। जब आर्यों का आगमन भारत में हुआ तो वे इन्हीं विचारों से प्रेरित थे। इन्हीं विचारों के आधार पर उन्होंने ‘अवेस्ता’ की रचना की। वेदों और अवेस्ता की भाषा में काफ़ी समानता थी। ये दोनों आपस में काफ़ी मिलते-जुलते थे। इनकी निकटता भारत के महाकाव्यों की संस्कृत से कम है। इस आधार पर हम कह सकते हैं कि वेद अवेस्ता से अधिक निकट हैं।

प्रश्न 5.
जाति व्यवस्था से भारतीय समाज पर क्या प्रभाव पड़ा?
उत्तर:
जाति व्यवस्था पर भारतीय समाज बँट गया। समाज में छुआ-छूत की भावना बढ़ी। लोगों की बौद्धिक जड़ता बढ़ गई उसकी रचनात्मक गतिविधियाँ कम होती चली गई। आगे चलकर यह व्यवस्था समाज में जड़ता का कारण बन गई।

प्रश्न 6.
प्राचीन साहित्य खोने को दुर्भाग्य क्यों कहा गया है? इन साहित्यों के खोने के कारण क्या हो सकते हैं?
उत्तर:
प्राचीन साहित्य खोने को दुर्भाग्य इसलिए कहा जाता है क्योंकि इन साहित्यों के अभाव में अभी वर्तमान समय में हमें प्राचीन इतिहास की प्रामाणिक जानकारी उपलब्ध नहीं हो पाती है। यह साहित्य इसलिए खोया होगा क्योंकि इन साहित्य की रचना भोज-पत्रों या ताड़-पत्रों पर की जाती थी जिसे सँभालकर रख पाना आसान नहीं। अतः रख-रखाव के अभाव में ये साहित्य नष्ट हो गए होंगे।

प्रश्न 7.
भौतिकवाद की क्या विशेषता थी?
उत्तर:
भौतिकवादी प्रायः वास्तविक अस्तित्व में विश्वास करने वाले थे। वे काल्पनिक देवी-देवताओं, स्वर्ग-नरक, शरीर से अलग आत्मा के विचार, जादू टोनों, अंधविश्वास विचार, धर्म और पुरोहितपंथी के विरोधी थे। इनके अनुसार विचार और विश्वास, बंधनमुक्त होना चाहिए। अतीत की बेड़ियों, बोझ और बंधनमुक्त होकर जीना चाहिए।

प्रश्न 8.
भारतीय इतिहास की कई तिथियाँ अनिश्चित हैं? इनकी सही जानकारी के लिए हमें किन-किन का सहारा लेना पड़ता है?
उत्तर:
भारतीय इतिहासकारों ने यूनानियों, चीनियों और अरबवासियों की तरह तिथियाँ निश्चित कर कालक्रम के अनुसार इतिहास की रचना नहीं थी। इसलिए इतिहास को समझने के लिए तिथियों की समस्या आती है। इसकी निश्चितता के लिए इतिहास के समकालीन अभिलेखों, शिलालेखों, कलाकृतियाँ, इमारतों के अवशेषों, सिक्कों, संस्कृत साहित्य एवं विदेशी यात्रियों के सफ़रनामों का सहारा लेना पड़ता है।

प्रश्न 9.
महाभारत अनमोल चीज़ों के अतिरिक्त ज्ञान का समृद्ध भंडार होने के साथ नैतिक शिक्षा का कोष भी है। आशय स्पष्ट करें।
उत्तर:
महाभारत से हमें बहुमूल्य चीज़ों के अतिरिक्त नैतिक शिक्षा भी मिलती है, जो निम्नलिखित है-
दूसरों के साथ वह आचरण मत करो जो तुम्हें खुद पसंद न हो। धन-दौलत के लिए परेशान होना बेकार है। जनकल्याण के विरोध में जो बातें हों उसे करना नहीं चाहिए। असंतोष प्रगति का प्रेरक है।

प्रश्न 10.
गीता का उपदेश सर्वप्रथम कब और किसे दिया?
उत्तर:
गीता का उपदेश महाभारत के युद्ध के समय श्रीकृष्ण द्वारा अर्जुन को दिया गया। जब युद्ध के मैदान में अपने विपक्षियों के रूप में परिवारजनों, मित्रों और गुरुजनों को देखकर वे दुविधा एवं माया में पड़ गए। तब श्रीकृष्ण ने उन्हें गीता का उपदेश देकर कर्तव्यों का पालन करने के लिए कर्म करने का उपदेश दिया।

प्रश्न 11.
चरक की पुस्तकों में क्या वर्णन किया गया है?
उत्तर:
चरक की पुस्तकों में शल्य चिकित्सा, प्रसूति विज्ञान स्नान, पथ्य, सफ़ाई, बच्चों को खिलाने और चिकित्सा के बारे में वर्णन किया गया है।

प्रश्न 12.
सुश्रुत कौन थे? उनका शल्य-चिकित्सा में क्या योगदान था?
उत्तर:
सुश्रुत शल्य-चिकित्सा विज्ञान की पुस्तकों के रचनाकार थे। इन्होंने अपनी पुस्तकों में शल्य क्रिया के औजारों के वर्णन के साथ-साथ ऑपरेशन, अंगों को काटना, ऑपरेशन से बच्चे को जन्म देना, मोतियाबिंद आदि विधियों का समावेश किया है। इसमें घावों के जीवाणुओं को धुआँ देकर मारने का भी वर्णन मिलता है।

प्रश्न 13.
बुद्ध की शिक्षाओं को अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर:
बुद्ध ने करुणा, त्याग और प्रेम का संदेश दिया-

  • उनका कहना था कि- मनुष्य को क्रोध पर दया से और बुराई पर भलाई से काबू करना चाहिए।
  • मनुष्य की जाति जन्म से नहीं बल्कि कर्म से तय होती है।
  • मनुष्य को सदाचारी बनना चाहिए और अनुशासित होकर जीवन-यापन करना चाहिए।
  • मनुष्य को सत्य की खोज मन के भीतर करनी चाहिए।
  • मनुष्य को मध्यम मार्ग का पालन करना चाहिए।

उनका बल नैतिकता पर था तथा उनकी पद्धति मनोवैज्ञानिक विश्लेषण की थी।

प्रश्न 14.
कलिंग युद्ध ने अशोक के मन पर क्या प्रभाव डाला?
उत्तर:
कलिंग के युदध में भयंकर कत्ले आम हआ। जब इस बात की खबर उन्हें मिली तो अशोक को काफ़ी पछतावा हआ। उसे युद्ध से विरक्ति हो गई। बुद्ध की शिक्षा का प्रभाव उनके मन के ऊपर काफ़ी पड़ा। जिससे उनका मन युद्ध से विरक्त हो गया। इसके बाद उसने युद्ध न करने का संकल्प लिया।

प्रश्न 15.
इतिहास में अशोक का नाम सबसे ऊपर क्यों हैं?
उत्तर:
अशोक 273 ई. पू. में मौर्य साम्राज्य का उत्तराधिकारी बना। उसने पूर्वी तट के कलिंग प्रदेश पर आक्रमण करके उसे जीत लिया। लेकिन भयंकर नरसंहार ने अशोक का हृदय परिवर्तित कर दिया। उस पर बौद्ध धर्म का प्रभाव पड़ गया। उसने दूर देशों में बौद्ध धर्म का प्रचार एवं प्रसार किया। वह एक महान निर्माता भी था। उसने अनेक बड़ी-बड़ी इमारतों का निर्माण करवाया। 41 वर्ष तक शासन करने के बाद 232 ई. पू. में अशोक की मृत्यु हो गई। उसका नाम आज भी आदर के साथ लिया जाता है। उसने बुद्ध के उपदेशों के प्रचार के लिए स्वयं को समर्पित कर दिया। उसने युद्ध नीति छोड़कर अहिंसा का पालन किया। बोल्गा से जापान तक आज भी लोग उनका नाम आदर से लेते हैं।

पाठ विवरण

इस पाठ के माध्यम से हमें सिंधुघाटी सभ्यता में भारत के अतीत जानकारी मिलती है। जिसके चिह्न सिंधु में मोहनजोदड़ो और पश्चिम पंजाब में हड़प्पा में मिले। इनकी खुदाइयों के माध्यम से हमें इतिहास के बारे में पर्याप्त जानकारी मिलती है।

Bharat Ki Khoj Class 8 Chapter 3 Summary

सिंधुघाटी सभ्यता के माध्यम से पता चलता है कि यह अत्यंत विकसित सभ्यता थी और इस सभ्यता को विकसित होने में हज़ारों साल लगे होंगे तथा यह सभ्यता धर्मनिरपेक्ष सभ्यता थी। सिंधु घाटी सभ्यता ने फारस, मेसोपोटामिया और मिश्र की मान्यताओं से संबंध स्थापित किया और व्यापार किया। यह एक विकसित सभ्यता थी और यहाँ के लोगों का प्रमुख धंधा एवं व्यवसाय था। व्यापारी वर्ग यहाँ सबसे धनी था। सड़कों पर दुकानों की कतारें थीं और दुकानें संभवतः छोटी थी। सिंधु घाटी सभ्यता मुख्य दो भागों में बँटा हुआ था। एक मोहनजोदड़ो तथा दूसरा हड़प्पा। ये दोनों सभ्यता का केंद्र एक-दूसरे से काफ़ी दूर पर स्थित है। संभवतः इस सभ्यता के मध्य में कई स्थान व नगर रहे होंगे जिनकी खोज खुदाई के दौरान नहीं की जा सकी।

खुदाई एवं खोजों से भी इस बात का पता चलता है कि यह सभ्यता पश्चिम में कठियावाड़ और पंजाब के अंबाला जिले तक फैली हुई थी। इस सभ्यता का विस्तार गंगा नदी तक था, इसलिए यह सभ्यता सिर्फ सिंधु घाटी की सभ्यता नहीं कहा जा सकता है। अंबाला जिला अब पंजाब में नहीं बल्कि हरियाणा में विलय कर दिया गया है।

सिंधु घाटी के खुदाई के दौरान हमें जो अवशेष प्राप्त हुए हैं उसके आधार पर कहा जा सकता है कि यह सभ्यता पूर्णतः विकसित थी। उसे इस तरह विकसित होने में हजारों वर्ष लगे होंगे। धार्मिक अवशेषों के मिलने के आधार पर यह कहा जा सकता है कि यह सभ्यता पूर्णतः धर्मनिरपेक्ष थी। भविष्य में यह सभ्यता भारतीय संस्कृति एवं स्वरूप की अग्रदूत बनी। इस सभ्यता ने फारस, मेसोपोटामिया और मिस्र की सभ्यताओं के साथ संपर्क स्थापित कर व्यापारिक संबंध स्थापित किए। यहाँ व्यापारी वर्ग काफ़ी धनी थे। खुदाई के अवशेषों से पता चलता है कि सड़कों पर छोटी-छोटी दुकानों की कतारें थीं।

सिंधुघाटी सभ्यता के उद्गम के बारे में सही-सही जानकारी हमें उपलब्ध नहीं है लेकिन खुदाई के आधार पर यह कहा जा सकता है कि इस सभ्यता का उदय लगभग छह सात हज़ार वर्ष पूर्व हुआ है। यदि आज के वर्तमान युग की सभ्यता से तुलना की जाए तो प्राचीन सिंधुघाटी सभ्यता और वर्तमान सभ्यता के बीच काफ़ी परिवर्तन आए। भले इसमें अंदर ही अंदर निरंतता की ऐसी शृंखला चली आ रही है जो भारत को सात हजार वर्ष पुरानी सभ्यता से जोड़े रखती है। मोहनजोदड़ो और हड़प्पा संस्कृति हमें तत्कालीन रहन-सहन रीति-रिवाज, दस्तकारी तथा पोशाकों के फैशन की जानकारी प्रदान करती है।

सिंधु घाटी की सभ्यता से आज के आधुनिक सभ्यता को देखते हैं तो पाते हैं कि भारत आज बाल्यावस्था के रूप में नहीं बल्कि प्रौढ़ रूप में विकसित हो चुका है। आज के आधुनिक भारतीय सभ्यता ने कला और जीवन की सुख सुविधाओं में प्रगति कर ली है। आज के सभ्यता में आधुनिक सभ्यता के उपयोग चिह्नों स्नानागार और नालियों के क्षेत्र में विकास कर लिया है जिसकी बुनियाद सिंधुघाटी की सभ्यता से जुड़ी दिखाई पड़ती है।

आर्यों का आना
आर्य कौन थे? वे कहाँ से आए? इसका कोई पक्का सबूत हमें नहीं मिलता है लेकिन इसके बारे में इस सभ्यता की खुदाई से पता चलता है कि इनकी उत्पत्ति दक्षिण भारत की द्रविड़ जातियों से हुई होंगी। क्योंकि आर्य एवं दक्षिण भारतीय द्रविड़ों में कुछ समानताएँ मिलती हैं। ये मोहनजोदड़ो में कई हज़ार वर्ष पूर्व आए होंगे। अतः इन आधारों पर इन्हें हम भारतीय ही कह सकते हैं।

यह भी इतिहासकारों का मानना है कि आर्य उत्तर-पश्चिमी दिशा से एक के बाद एक आए। कुछ इतिहासकारों का मानना है कि आर्य का प्रवेश सिंधु घाटी में एक हजार वर्ष पहले से हुआ था। ये संभवतः पश्चिम-उत्तर दिशा से भी भारत में वे कबीले और जातियाँ आती रही और भारत में बसती चली गई। पहला सांस्कृतिक समन्वय आर्य एवं द्रविड़ जातियों के बीच हुआ जो सिंधु घाटी सभ्यता के प्रतिनिधि थे। इन सब आधारों पर हम कह सकते हैं कि आर्य भारत के ही मूल निवासी थे।

अत्यधिक बाद और मौसम परिवर्तनों के प्रभाव के चलते सिंधु घाटी सभ्यता का अंत हुआ होगा। ऐसा अनुमान लगाया गया कि मौसम परिवर्तन से ज़मीन सूखती गई हो और खेतों पर रेगिस्तान छा गया हो और खेत रेगिस्तान में बदल गया। मोहनजोदड़ो के खंडहर इस बात के प्रमाण हैं कि उन पर एक के बाद एक बालू की परतें छाई हैं। जिससे अनुमान लगाया गया कि शहर की ज़मीन ऊँची उठती गई और नगरवासियों ने पुरानी नीवों पर ऊँचाई पर मकान, बनाए इसलिए खुदाई के दौरान हमें तीन-तीन मंजिले मकान मिले हैं।

सिंधु घाटी की सभ्यता के बाद आने वाली सभ्यता में शुरुआत में कृषि पर अधिक बल दिया गया। किसान खेती पर अधिक बल देते थे। लोगों का प्रमुख व्यवसाय कृषि पर ही आधारित था।

सबसे बड़ा सांस्कृतिक समन्वय और मोल-जोल बाहर से आने वाले आर्यों एवं द्रविड़ जातियों के लोगों के बीच हुआ। बाद के युगों में बहुत-सी जातियाँ आईं। सबने अपनी-अपनी सभ्यता की छाप छोड़ी और सभी घुल-मिल गए।

प्राचीनतम अभिलेख, धर्म-ग्रंथ और पुराण
सिंधु घाटी की खोज से पहले ‘वेद’ को सबसे प्राचीनतम ऐतिहासिक ग्रंथ माने जाते हैं। लेकिन वैदिक काल के निर्धारण में भी विद्वानों का अलग-अलग मत है। भारतीय इतिहासकार इसका काल सबसे पहले मानते हैं। तो यूरोपीय विद्वान इसकी उत्पत्ति काफ़ी बाद का बताते हैं। अब ऋगवेद की रचनाओं का समय ईसा पूर्व 1500 मानते हैं। मोहनजोदड़ो की खुदाई के बाद भारतीय ग्रंथों को और भी पुराना साबित किया गया। इन्हें मनुष्य की प्राचीनतम उपलब्धि का नाम दिया गया। इन्हें आर्यों के द्वारा कहा गया पहला शब्द भी बताया गया।

भारतीय वेदों पर ईरान की पूरी छाप है। माना जाता है कि आर्य अपने साथ उसी कुल के विचारों को लाए जिससे ईरान में अवेस्ता धार्मिक ग्रंथ की रचना हुई थी। वेदों और अवेस्ता की भाषा में भी समानता है। अवेस्ता की रचना ईरान में हुई थी।

वेद
वेद की उत्पत्ति ‘विद’ धातु से हुई है जिसका अर्थ है, जानना। वेद का सीधा संबंध है- अपने समय के ज्ञान का संग्रह करना। इनमें मूर्ति पूजा और देव-मंदिरों के लिए कोई स्थान नहीं है। आर्यों ने अपने उमंगपूर्ण जीवन में ‘आत्मा’ पर बहुत कम ध्यान दिया, मृत्यु के बाद किसी अस्तित्व में वे कम विश्वास करते थे। वेद यानी ऋगवेद मानव-जाति की पहली पुस्तक है। इसमें मानव-मन के आरंभिक उद्गार मिलते हैं। काव्य-प्रवाह मिलता है। इसमें प्रकृति के सौंदर्य एवं रहस्य के प्रति खुशी तथा मनुष्य के साहसिक कारनामों का उल्लेख मिलता है। यहीं से भारत की लगातार खोज शुरू हुई। इन खोजों से भारत में सभ्यता की बहार आई। तब ऐसे हर दौर में जीवन और प्रकृति में लोगों ने दिलचस्पी ली। इसके साथ कला, संगीत और साहित्य साथ नाचने-गाने की कला, चित्रकला, रंगमंच आदि सबका विकास हुआ। इन सब बातों के आधार पर यह कहा जा सकता है कि भारत की संस्कृति जीवंत संस्कृति थी न कि पारलौकिकता में विश्वास करने वाले।

भारतीय संस्कृति के संदर्भ में भारतीय और पश्चिमी विद्वानों के बीच के अलग-अलग मत थे। पश्चिमी देशों के इतिहासकारों का मत था कि भारतीय लोगों का परलोकवादी सिद्धांत बहुत हद तक सही है। इसके विपरीत नेहरू जी का विचार था कि हर देश के निर्धन और अभागे लोग कुछ हद तक परलोक में विश्वास करते हैं। जब तक वे क्रांतिकारी नहीं हो जाते वही बात गुलाम देश पर लागू होती है। यानी नेहरू जी का मत था कि भारत का प्राचीन इतिहास तो उन्नत व विकसित है लेकिन गुलामी की जंजीरों में जकड़ने पर भारतीयों के विचारों में भी परिवर्तन आ गया।

भारतीय संस्कृति की निरंतरता
भारतीय संस्कृति की यह विशेषता रही है कि तीन-चार हज़ार वर्षों से यह लगातार अपने संस्कृति को अपनाए हुए है। वह समयसमय पर हुए परिवर्तनों के बावजूद बनी हुई है। यहाँ का साहित्य, दर्शन, कला, नाटक, जीवन के तमाम क्रियाकलाप विश्व की दृष्टि के अनुरूप चलते रहे हैं।

यद्यपि इसी समय में सामाजिक कुरीतियों के रूप में छूआछूत देखने को मिलती है जो बाद में असहाय हो जाती है, बाद में जाति व्यवस्था का विकास हुआ। इस प्रथा से कई जातियों में समाज बँट गया और समाज में ऊँच-नीच वर्गों में भेद-भाव होने लगा।

इस प्रथा द्वारा समाज को प्रभावित करने के बावजूद भी भारत हर क्षेत्र में विकास के पथ पर बढ़ता रहा व बाहरी जातियों ईरानियों, यूनानियों, चीनी, मध्य एशियाई व अन्य लोगों से उसके संपर्क लगातार बने रहे।

उपनिषद
उपनिषदों का समय ईसा पूर्व 800 के लगभग माना जाता है। उपनिषदों से आर्यों के विषय में काफ़ी जानकारी मिलती है। इन उपनिषदों से हमें उनके खोज में मदद मिलती है। साथ ही साथ सत्य की खोज और इनमें वैज्ञानिक तत्व मौजूद हैं। तथा आत्मबल पर जोर दिया गया है और आत्मा और परमात्मा के बारे में जानकारी भी मिलती है। उपनिषदों का झुकाव अद्वैतवाद यानी किसी धर्म विशेष को न मानना था। इनका मुख्य उद्देश्य लोगों को आपसी मतभेदों को कम करना था। लोगों में जादू टोना के विश्वास को कम करके कर्म पर विशेष बल देना था। उपनिषद के माध्यम से पूजा-पाठ को बेकार बताया गया। इनकी मुख्य विशेषता थी ‘सच्चाई पर बल देना’ इनका मुख्य उद्देश्य था कि – असत्य से सत्य की ओर चलें, अंधकार से प्रकाश की ओर बढ़े, मृत्यु से अमरत्व की ओर चलें, इनमें मनुष्य की इच्छा को पूरा करने के लिए ईश्वरीय सत्ता को संबोधित किया गया है व मनुष्य को प्रेरित किया गया है। मनुष्य को प्रेरित करते हुए ऐतरेय ब्राह्मण में कहा गया है चरैवेति, चरैवेति – यानी चलते रहो, चलते रहो।।

व्यक्तिवादी दर्शन के लाभ और हानियाँ
उपनिषदों में इस बात पर जोर दिया गया है कि विकास करने के लिए मनुष्य का शरीर स्वस्थ और मन का स्वच्छ होना ज़रूरी है। इसके साथ-साथ इन दोनों का अनुशासित होना भी ज़रूरी है। ज्ञानार्जन करने के लिए संयम, आत्मपीड़न और आत्मत्याग ज़रूरी है। इस प्रकार की तपस्या का विचार भारतीय चिंतन में सहज रूप में निहित है। व्यक्तिवाद के फलस्वरूप उन्होंने मनुष्य के सामाजिक पक्ष पर बहुत कम ध्यान दिया। भारतीय आर्यों का विश्वास व्यक्तिवाद में था। आर्यों का यही व्यक्तिवाद भविष्य में समाज के लिए बहुत दुखदायी रहा। लोगों की रुचि सामाजिक कार्यों में बहुत कम हो गई। हर व्यक्ति के लिए जीवन बँटा और बँधा हुआ था। व्यक्तिवाद, अलगाववाद और ऊँच-नीच पर आधारित जातिवाद पर बल दिया जाता रहा। जाति व्यवस्था को बढ़ावा देने के कारण लोगों की बौद्धिक क्षमता कम होने लगी जिसके कारण उनमें रचनात्मक शक्ति कम हो गई।

जब गांधी देश की आजादी के लिए संग्राम की शुरुआत की, तो उनके विचारों में भी यही विशेषता थी कि समाज जाति बंधनों से मुक्त हो और वे स्वस्थ शरीर, स्वच्छ मन द्वारा संयम, आत्मपीड़न और आत्मत्याग की भावना से कार्य करें।

भौतिकवाद
भौतिकवाद के साहित्य की रचना आरंभिक उपनिषदों के बाद हई। हमारा प्राचीन साहित्य ताड-पत्रों या भोज-पत्रों पर लिखा गया था। कागज पर लिखने का प्रचलन बाद में हुआ। लेकिन यूनान, भारत और दूसरे भागों में विश्व के प्राचीन साहित्य का बड़ा हिस्सा खो गया है। बहुत-सी ऐसी पुस्तकें हैं जिसका चीनी और तिब्बती भाषा में अनुवाद मिल गया, पर वे भारत में नहीं मिली। कई पुस्तकों की आलोचनात्मक पुस्तकें उपलब्ध हैं लेकिन मूल पुस्तकें प्राप्त नहीं होती।

भारत में वर्षों तक भौतिकवादी प्रचलन रहा और जनता पर उसका गहरा असर था। इसका साक्ष्य कौटिल्य द्वारा लिखी गई ‘अर्थशास्त्र’ है। इसमें दार्शनिक सिद्धांतों का वर्णन है। इसकी रचना ई.पू. चौथी शताब्दी में हुई थी।

भारत में भौतिकवाद के बहुत से साहित्य को पुरोहितों और धर्म के पुराणपंथी विचारों में विश्वास रखने वाले लोगों ने समाप्त कर दिया। भौतिकवादियों ने विचार, धर्म, ब्राह्मणवादिता, जादू-टोने और अंधविश्वासों का घोर विरोध किया। वे पुरानी व्यवस्था से निकलकर स्वयं को मुक्त करना चाहते थे। जो प्रमाण हमें प्रत्यक्ष रूप में दिखाई नहीं देता। वे काल्पनिक देवी-देवताओं की पूजा में विश्वास नहीं रखते थे। न स्वर्ग है और न नरक है और न ही शरीर से अलग कोई आत्मा। जीवन की वास्तविक सत्ता ही उनके समक्ष सत्य थी।

महाकाव्य, इतिहास, परंपरा और मिथक
महाकाव्य के रूप में रामायण और महाभारत की रचना संसार के श्रेष्ठतम रचनाओं में हैं। यह प्राचीन भारत की राजनीतिक और सामाजिक संस्थाओं का विश्वकोष हैं। इतने प्राचीन काल में इसकी रचना होने के बावजूद इनका प्रभाव भारतीय जीवन पर आज भी जीवंत दिखाई पड़ता है। ये दोनों ग्रंथ भारतीय जीवन के अंग बन गए हैं।

भारतीय सभी कथाएँ महाकाव्यों तक सीमित नहीं हैं। उनका इतिहास वैदिक काल तक जाता है। इनमें वीरगाथाओं की कहानियाँ अधिक मिलती हैं। कवियों व नाटककारों ने तथ्य और कल्पनाओं का सुंदर योग करके अपनी रचनाओं की रचना की। इनमें सत्य वचन का पालन करने, जीवनपर्यंत व मरणोपरांत वफादारी, साहस और लोकहित के लिए सदाचार और बलिदान की शिक्षा दी गई है।

भारतीय इतिहासकारों ने यूनानियों, चीनियों और अरबवासियों की तरह तिथियों व कालक्रम सहित व्याख्या नहीं की। इससे घटनाएँ इतिहास की भूल भूलैया में, खोकर रह गई हैं। कल्हण की रचना राजतरंगिनी नामक प्राचीन ग्रंथ में कश्मीर का इतिहास है। इसकी रचना ईसा की बारहवीं शताब्दी में की गई। अन्य ऐतिहासिक रचनाओं को विस्तार से जानने के लिए समकालीन अभिलेखों, शिलालेखों, कलाकृतियों, इमारतों के अवशेषों, सिक्कों व संस्कृत साहित्य के विशाल संग्रह से सहायता लेनी पड़ती है। इसके अलावा विदेशी यात्रियों के विवरणों से भी हमें इसकी जानकारी मिलती है।

ऐतिहासिक ज्ञान की कमी के कारण जनता ने अतीत के विषय में अपनी सोच का निर्माण पीढ़ी-दर पीढ़ी मिली विरासत से कर लिया। इससे लोगों को एक मज़बूत और टिकाऊ सांस्कृतिक पृष्ठभूमि मिल गई।

महाभारत
महाभारत का स्थान विश्व की महानतम रचनाओं में है। यह रचना परंपरा और दंत कथाओं का तथा प्राचीन भारत की राजनैतिक और सामाजिक संस्थाओं का विश्वकोश है।

भारत में इस समय विदेशियों का आगमन होने के बाद विदेशियों की परंपराएँ तथा अनेक रिवाज यहाँ के बसे आर्यों की परंपराओं के साथ मेल नहीं खाते थे। इस स्थिति से निपटने के लिए बुनियादी एकता पर बल देने की कोशिश की गई। महाभारत का युद्ध 11वीं शताब्दी के आसपास हुआ होगा। महाभारत में एक विराट गृह युद्ध का वर्णन है जिसमें अखंड भारत की अवधारणा की शुरुआत हुई। महाभारत ग्रंथ से यह भी स्पष्ट होता है कि आधुनिक अफगानिस्तान का एक बहुत बड़ा हिस्सा भारत में शामिल था जिसका नाम गंधार था। इसी आधार पर भारत के प्रधान शासक की पत्नी का नाम गंधारी पड़ा। दिल्ली व इसके आसपास के इलाके का नाम भी पहले हस्तिनापुर और इंद्रप्रस्थ था। उस समय इंद्रप्रस्थ भारत की राजधानी मानी जाती थी। महाभारत में कृष्ण संबंधित आख्यान भी है और प्रसिद्ध काव्य-भगवद गीता भी। इस ग्रंथ में मुख्य रूप से उस समय के शासनकाल और सामान्य रूप से जीवन के नैतिक और व्यवहार संबंधी सिद्धांतों पर जोर दिया गया है। धर्म को इसमें महत्त्वपूर्ण स्थान दिया गया है और कहा गया है कि धर्म के बिना मनुष्य को सच्चे सुख की प्राप्ति नहीं हो सकती है। वे समाज में एकता से नहीं रह सकते। इसका लक्ष्य है पूरे विश्व का लोकमंगल। यह ग्रंथ हमें यह संदेश देता है कि हिंसा करना अमानवीय है लेकिन किसी मकसद या लोक कल्याण के लिए युद्ध लड़ा जाए तो वह गलत नहीं माना जाएगा।

इस ग्रंथ में हमें पारिवारिक और सामाजिक समस्याओं के निदान की जानकारी दी गई है। इस प्रकार महाभारत से हमें निम्नलिखित शिक्षाएँ मिलती हैं।

दूसरों के साथ ऐसा व्यवहार न करें जो आपको बुरा लगे। सच्चाई, आत्मसंयम, तपस्या, उदारता, अहिंसा, धर्म का निरंतर पालन ही जीवन की सफलता की कुंजी है। जीवन में मनुष्य को सच्चे सुख की प्राप्ति चाहिए तो इसके लिए पहले दुख भोगना आवश्यक है। धन के पीछे दौड़ना व्यर्थ है। इसके अलावे इस ग्रंथ में शासन, कला और सामान्य रूप से जीवन के नैतिक और आचार संबंधी सिद्धांतों पर जोर दिया गया है। महाभारत एक ऐसा विशाल भंडार है जिसमें अनेक अनमोल चीज़े ढूँढ़ी जा सकती हैं।

भगवद् गीता
भगवद् गीता महाभारत का अंश है लेकिन हर दृष्टि से यह अपना अलग महत्त्व रखता है। यह 700 श्लोकों का काव्य रूप में लिखा गया ग्रंथ अपने आप में परिपूर्ण है। इसकी रचना बौद्धकाल से पहले हुई थी।

इस काव्य की रचना लगभग ढाई हजार वर्ष पहले की गई। इस रचना को आज भी संपूर्ण श्रद्धा की दृष्टि से देखा जाता है। इसकी रचना बौद्धकाल से पहले हुई थी। इसकी लोकप्रियता आज भी लोगों के बीच काफ़ी है।

आधुनिक युग के विचारक तिलक, अरविंद घोष व गांधी जी ने अपने विचारों का आधार गीता को ही बनाया। अन्य लोगों ने भी हिंसा और युद्ध का क्षेत्र इसी के औचित्य के आधार पर निश्चित करते हैं।

महाभारत की कथा का आरंभ अर्जुन और कृष्ण के संवाद से है। गीता में जीवन के कर्तव्यों के पालन के लिए कर्म का अह्वान किया गया है और अकर्मण्यता की निंदा की गई है। गीता सभी वर्गों और धर्मों के लोगों को मान्य हुई। गीता का संदेश किसी संप्रदाय या व्यक्ति विशेष को बढ़ावा नहीं देता। यह मनुष्य को कर्म करने की प्रेरणा देता है। यह मनुष्य के विकास के तीन मार्गों ज्ञान, कर्म और भक्ति को अपनाने के लिए प्रेरित करता है। गीता में हमें ऐसी जीवंत चीज़ मिली है जो आध्यात्मिक और अन्य समस्याओं को सुलझाने में मददगार सिद्ध हुई है।

प्राचीन भारत में जीवन और कर्म
बुद्ध के काल से पहले की कहानी हमें जातक कथाओं में मिलती है। जातक कथाओं में उस समय का वर्णन है जब भारत की दो प्रधान जातियों द्रविड़ों का आर्यों में मिलन हो रहा था। उस समय ग्राम सभाएँ एक निश्चित सीमा तक स्वतंत्र थीं। आमदनी का मुख्य स्रोत लगान था। लगान पैदावार का छठा भाग किसानों से वसूल किया जाता था। यह सभ्यता मुख्यत: कृषि पर आधारित थी। गाँव दस-दस और सौ-सौ समूहों में बँटे हुए थे। दस्तकारों का गाँव अलग हुआ करता था। पेशेवर लोगों के गाँव शहरों के समीप ही बसे हुए थे। जातकों में सौदागरों की सामुद्री यात्राओं का भी वर्णन है। इनके गाँवों के पास होने का कारण यह था कि वहाँ इनके सामान की खपत हो जाती थी तथा उनकी अपनी आवश्यकताएँ भी पूरी हो जाती थीं। व्यापारी लोग नदियों के रास्ते भी यातायात करते थे। व्यापारियों के जहाज़ी बेड़े बनारस, पटना, चंपा तथा दूसरे स्थानों से समुद्र की ओर जाते थे और वहाँ से आगे उनका सामान श्रीलंका और मलय टापू तक।

भारत में लिखने का प्रचलन बहुत पुराना है। पाषाण युग की मिट्टी के पुराने बर्तनों पर ‘ब्राह्मी लिपि’ के अक्षर मिले हैं। ब्राह्मी लिपि से ही देवनागरी तथा अन्य लिपियों की उत्पत्ति हुई। छठी या सातवीं शताब्दी में पाणिनि ने संस्कृत भाषा में प्रसिद्ध व्याकरण की रचना की। इसे आज भी संस्कृत व्याकरण का आधिकारिक ग्रंथ माना जाता है। इस समय तक संस्कृत का रूप स्थिर हो चुका था। औषधि विज्ञान की पाठ्यपुस्तकें भी थीं और अस्पताल भी। औषधि पर चरक की तथा शल्य चिकित्सा पर सुश्रुत की पुस्तकें मिलती हैं। महाकाव्यों के इस युग में वनों में स्थिति विश्वविद्यालयों तथा महाविद्यालयों का भी वर्णन मिलता है। चरक सम्राट कनिष्क के दरबार में राज वैदय थे। उनकी पुस्तक में अनेक रोगों के इलाज का वर्णन है। शल्य प्रशिक्षण के दौरान मुर्दो की चीर-फाड़ कराई जाती थी। सुश्रुत द्वारा अंगों को काटना, पेट काटना, ऑपरेशन से बच्चे को जन्म दिलाना आदि का वर्णन है।

कुछ वर्ष तक छात्र महाविद्यालय एवं विश्व विद्यालय में प्रशिक्षण लेकर घर वापस आकर गृहस्थ जीवन व्यतीत करते थे। बनारस हमेशा शिक्षा का केंद्र रहा। तक्षशिला विश्वविद्यालय भी प्रसिद्ध था। यह बौद्ध काल में बौद्ध ज्ञान का केंद्र बन गया था।

इस प्रकार हम कह सकते हैं कि औषधि विज्ञान व शल्य चिकित्सा के क्षेत्र में भारत विश्व में अपना विशेष स्थान रखता था। वर्तमान चिकित्सा का आधार प्राचीन भारत ही है। अंत में इन जानकारियों के आधार हम कह सकते हैं कि वे खुले दिल के, आत्मविश्वासी और अपनी परम्पराओं पर गर्व करने वाले, रहस्य के प्रति जिज्ञासु तथा जीवन में सहज भाव से आनंद लेने वाले लोग थे।

महावीर और बुद्ध-वर्ण व्यवस्था
जैन धर्म और बौद्ध धर्म दोनों की उत्पत्ति वैदिक धर्म से ही हुआ है। ये दोनों धर्म वैदिक धर्म से अलग होकर उत्पन्न हुए थे। ये दोनों उसी की शाखाएँ हैं, लेकिन इन धर्मों ने वेदों को प्रमाण नहीं माना और आदि काल के बारे में कुछ नहीं कहा है। दोनों धर्म अहिंसावादी हैं। ये यथार्थवादी और बुद्धिवादी प्रवृत्ति के माने जाते हैं। वे जीवन और विचार में तपस्या के पहलू पर बल देते हैं। महावीर और बुद्ध समकालीन थे। बुद्ध में लोक प्रचलित धर्म, अंधविश्वास, कर्मकांड और पुरोहित प्रपंच पर हमला करने का साहस था। उनका आग्रह तर्क, विवेक, अनुभव और नैतिकता पर था। बुद्ध ने वर्ण व्यवस्था पर वार नहीं किया लेकिन संघ व्यवस्था में इसे जगह नहीं दी गई। वर्ण व्यवस्था के विरोध में समय-समय पर इन्होंने अपनी आवाज़ बुलंद की। लेकिन भारत में इनकी जड़ें और भी मज़बूत हो चली गईं।

जैन धर्म जाति व्यवस्था के प्रति सहिष्णु था और स्वयं को उसी के अनुरूप ढाल लिया था, इसलिए आज भी हिंदू धर्म की शाखा के रूप में जीवित है। दूसरी ओर बौद्ध धर्म ने जाति व्यवस्था को स्वीकार नहीं किया। यह अपने विचारों तथा दृष्टिकोण में स्वतंत्र रहा। बुद्ध की पद्धति मनोवैज्ञानिक विश्लेषण की पद्धति थी। जीवन में वेदना और दुख पर बौद्ध धर्म में बहुत बल दिया गया है। इसलिए इस धर्म ने भारत के बाहर देशों में अधिक स्थान बनाया परंतु इसने हिंदूवाद पर अपनी गहरी छाप छोड़ी।

चंद्रगुप्त और चाणक्य-मौर्य साम्राज्य की स्थापना
भारत में बौद्ध धर्म का प्रचार-प्रसार धीरे-धीरे हुआ। इसके बाद पश्चिमोत्तर प्रदेश पर सिकंदर के आक्रमण करने के बाद भारत में दो महान विभूतियों ने अवतार लिए। उनमें एक था चंद्रगुप्त मौर्य और उनके मित्र मंत्री और सलाहकार ‘चाणक्य’। दोनों मगध के शक्तिशाली राजा नंद द्वारा निकाल दिए गए थे। चंद्रगुप्त की मुलाकात सिकंदर से हुई। सिकंदर की मृत्यु के पश्चात दो वर्ष के अंतराल में ही पाटलिपुत्र पर अधिकार करके चंद्रगुप्त ने मौर्य साम्राज्य की स्थापना की। चाणक्य यानी कौटिल्य ने अर्थशास्त्र की रचना की जो राजनीति की महत्त्वपूर्ण पुस्तक है। इस पुस्तक में व्यापार, वाणिज्य, कानून न्यायालय, नगर व्यवस्था, सामाजिक रीति-रिवाज, विवाह, तलाक, कृषि, विधवा विवाह, लगान, दस्तकारियों, जनगणना आदि का वर्णन है। इसमे विधवा विवाह और विशेष परिस्थितियों में तलाक को भी मान्यता दी गई। यानी उन्नत राज्य की नीव चंद्रगुप्त मौर्य ने रखी।

राज्याभिषेक के समय राजा को इस बात की शपथ दिलायी जाती थी कि वह प्रजा की सेवा करेगा तथा प्रजा के हित एवं इच्छा को ध्यान में रखेगा। यदि कोई राजा अनीति करता है तो उसकी प्रजा को अधिकार है कि उसे हटाकर किसी दूसरे को उसकी जगह बैठा दे।

अशोक
चंद्रगुप्त मौर्य द्वारा स्थापित मौर्य साम्राज्य का उत्तराधिकारी 273 ई.पू. में अशोक बना। इससे पहले अशोक पश्चिमोत्तर प्रदेश का शासक था जिसकी राजधानी तक्षशिला थी। इस समय तक इस साम्राज्य का विस्तार मध्य एशिया तक हो चुका था। अशोक संपूर्ण भारत को एक शासन व्यवस्था में लाना चाहता था। भारत को एक शासन व्यवस्था प्रदान करने के लिए अशोक ने पूर्वी तट के कलिंग प्रदेश को जीतने की ठान ली। कलिंग के लोगों ने बहादुरी से युद्ध किया लेकिन अशोक की सेना विजयी हुई। इस युद्ध में लाखों लोग मारे गए तथा घायल हुए। जब इस बात की खबर अशोक को मिली तो उसे बहुत ग्लानि हुई और उसे युद्ध से विरक्ति हो गई तथा वह बौद्ध धर्म का अनुयायी बन गया। अशोक के कार्यों और विचारों की जानकारी हमें शिलालेखों से मिलती है, जो पूरे भारतवर्ष में उपलब्ध है।

बुद्ध की शिक्षा के प्रभाव से उसका मन हिंसा को छोड़कर जन कल्याणकारी कार्य करने की ओर आगे बढ़ा। इसके बाद उसने बुद्ध धर्म के नियमों का उत्साहपूर्वक पालन करना शुरू कर दिया। उसने अपने एक संदेश में कहा कि- वह हत्या या बंदी बनाए जाने को सहन नहीं करेगा। उसका कहना था कि सच्ची विजय कर्तव्य और धर्म पालन करके लोगों के दिल को जीतने में है। यदि उसके साथ कोई बुराई करेगा तो वह जहाँ तक संभव होगा उसे झेलने का प्रयास करेगा। उनकी इच्छा थी कि जीव मात्र की रक्षा हो, लोगों में आत्मसंयम हो, उन्हें मन की शांति और आनंद प्राप्त हो। स्वयं उसने बुद्ध की शिक्षा के प्रचार तथा प्रजा की भलाई वाले कार्य के लिए अपने आपको अर्पित कर दिया, स्वयं वह बौद्ध धर्मावलंबी थे लेकिन सभी धर्मों का आदर करते थे।

अशोक बहुत बड़ा निर्माता भी था। उसने अनेक बड़ी इमारतों का निर्माण कराया। बड़ी-बड़ी इमारतों को बनाने में मदद के लिए विदेशी कारीगरों को भी रखा। मूर्तिकला व दूसरे अवशेषों पर भारतीय कला परंपरा की छाप स्पष्ट रूप से दिखाई पड़ती है लेकिन स्तंभों पर विदेशी छाप भी मिलती है। 41 साल तक शासन करने के बाद ई. पू. 232 में अशोक की मृत्यु हुई। उसका नाम आदर के साथ लिया जाता है। उसने अनेक महान कार्य किए जिनके कारण उनका नाम वोल्गा से जापान तक आज भी आदर के साथ लिया जाता है।

Pandit और ब्राह्मण में क्या फर्क है?

किसी विशेष विद्या का ज्ञान रखने वाला ही पंडित होता है। प्राचीन भारत में, वेद शास्त्रों आदि के बहुत बड़े ज्ञाता को पंडित कहा जाता था। ब्राह्मण : ब्राह्मण शब्द ब्रह्म से बना है, जो ब्रह्म (ईश्वर) को छोड़कर अन्य किसी को नहीं पूजता, वह ब्राह्मण कहा गया है। जो पुरोहिताई करके अपनी जीविका चलाता है, वह ब्राह्मण नहीं, याचक है।

ब्राह्मण का असली नाम क्या है?

ब्राह्मण : ईश्वरवादी, वेदपाठी, ब्रह्मगामी, सरल, एकांतप्रिय, सत्यवादी और बुद्धि से जो दृढ़ हैं, वे ब्राह्मण कहे गए हैं। तरह-तरह की पूजा-पाठ आदि पुराणिकों के कर्म को छोड़कर जो वेदसम्मत आचरण करता है वह ब्राह्मण कहा गया है।

पंडित कौन सी कैटेगरी में आते हैं?

पण्डित उपनाम जो अधिकतर ब्राह्मणों में पाया जाता है।

पंडित कितने प्रकार के होते हैं?

स्मृति-पुराणों में ब्राह्मण के 8 भेदों का वर्णन मिलता है:- मात्र, ब्राह्मण, श्रोत्रिय, अनुचान, भ्रूण, ऋषिकल्प, ऋषि और मुनि। 8 प्रकार के ब्राह्मण श्रुति में पहले बताए गए हैं। इसके अलावा वंश, विद्या और सदाचार से ऊंचे उठे हुए ब्राह्मण 'त्रिशुक्ल' कहलाते हैं। ब्राह्मण को धर्मज्ञ विप्र और द्विज भी कहा जाता है।