नवजात शिशु को सांस लेने में दिक्कत क्यों होती है? - navajaat shishu ko saans lene mein dikkat kyon hotee hai?

In this article

  • रात में कितनी बार शिशु की श्वसन क्रिया की जांच करनी चाहिए?
  • रात में शिशु के सांस लेने की सामान्य क्रिया क्या रहती है? 
  • क्या शिशु के सांस लेते समय आवाज आना चिंता का कारण है?

रात में कितनी बार शिशु की श्वसन क्रिया की जांच करनी चाहिए?

आप आश्वस्त होने के लिए जितनी बार चाहें उतनी बार शिशु की जांच कर सकती है। यदि आप पहली बार माँ-बाप बने हैं, तो शायद आप खुद को रात में ज्यादा बार शिशु की श्वसन क्रिया की जांच करता हुआ पाएं।

खुद चैन की नींद न सो पाना और शिशु की भी बार-बार जांच करने से आप सभी को परेशानी व थकान महसूस होगी, मगर यह एक सामान्य बात है।

आप आश्वस्त रहें सडन इन्फेंट डेथ सिंड्रोम (सिड्स) यानि कॉट डेथ बहुत दुर्लभ है।

नवीनतम शोध दर्शाती है कि शिशु को अपने साथ सुलाने से सिड्स का खतरा बढ़ता है। मगर, केवल यही एक कारण नहीं है और भारत में अधिकांश परिवार बच्चों को अपने साथ ही सुलाते हैं, फिर भी भारत में सिड्स के मामले विश्व के अन्य देशों की तुलना में काफी कम होते हैं।

सामान्यत: एक महीने से कम उम्र के शिशुओं में कॉट डेट होना काफी असामान्य है। ऐसा सबसे ज्यादा दूसरे महीने में होता है और 90 प्रतिशत कॉट डेथ छह माह के कम उम्र के शिशुओं में होती है। शिशु के बड़ा होने के साथ-साथ यह खतरा कम होता जाता है-एक साल की उम्र के बाद बहुत कम कॉट डेथ होती हैं।

सुनिश्चित करें कि जिस कमरे में आप सोती हैं, वहीं शिशु को कॉट में पीठ के बल सुलाएं। शुरुआती छह महीनों में शिशु के सोने के लिए यह सबसे सुरक्षित जगह है।

बहरहाल, यदि अन्य माँओं की तरह आपको भी लगता है कि शिशु को साथ में सुलाने से रात को स्तनपान करवाना आसान रहता है, तो आपको कुछ बातों को ध्यान रखना होगा। शिशु को साथ में सुलाने से जुड़े सुरक्षात्मक कदमों के बारे में यहां पढ़ें।

एक ही रात में आपके शिशु की नींद गहरी व शांत, क्रियाशील व शोर-गुल वाली और यहां तक कि घुरघुराहट या नाक से आवाज आने वाली हो सकती है। अनुभव के साथ-साथ आपकी चिंता भी कम होने लगेगी और धीरे-धीरे शिशु के बड़ा होने के साथ-साथ आपको रात में उसकी सांस जांचने की जरुरत भी कम लगेगी।

हालांकि, कुछ माता-पिता ब्रीदिंग मॉनिटर का इस्तेमाल करते हैं, मगर इस बात के कोई प्रमाण नहीं है कि ये सिड्स का खतरा कम करते हैं। और ये मॉनीटर कई बार गलत चेतावनी भी देते हैं, जो आपको चिंतामुक्त होने की बजाय आपकी चिंता और बढ़ा देते हैं।

रात में शिशु के सांस लेने की सामान्य क्रिया क्या रहती है? 

आपका नवजात शिशु क्रमवार तरीके से सांस लेता है, उसकी सांसे बढ़ते-बढ़ते तेज और गहरी होने लगती हैं और फिर धीमी और हल्की होने लगती हैं। इसे सामयिक श्वसन क्रिया (पीरियोडिक ब्रीदिंग) कहा जाता है। शिशु अपनी सांस पांच सैकंड या इससे ज्यादा भी रोक सकता है और फिर दोबारा गहरी सांसे लेने लगता है।

यह सामान्य है और जीवन के शुरुआती कुछ महीनों में उसकी श्वसन क्रिया और अधिक विकसित हो जाएगी और कभी-कभार वह गहरी सांस या आह भर सकता है। यदि आप सुनिश्चित करना चाहती हैं कि शिशु सामान्य तरीके से सांस ले रहा है, तो इसके तीन तरीके हैं:

  • सुनें: अपना कान शिशु के मुंह और नाक के पास लगाएं और उसके सांस की आवाज सुनें।
  • देखें: झुक कर अपनी आंखों को शिशु की छाती के स्तर पर ले आएं और सांसों की ऊपर-नीचे होने की हलचल को देखें।
  • महसूस करें: अपने गाल को शिशु के मुंह और नाक के साथ लगाए और उसकी छोटी सांसों को अपनी त्वचा पर महसूस करें।

क्या शिशु के सांस लेते समय आवाज आना चिंता का कारण है?

कभी कभार नाक से आवाज या खर्राटे लेना या घरघराहट की आवाज आना पूरी तरह सामान्य है और आमतौर पर कोई चिंता की बात नहीं होती।

जब छह से आठ सप्ताह के बीच शिशु की पहली डॉक्टरी जांच होती है, तो शिशु के डॉक्टर उसके दिल और छाती की आवाजों की जांच करेंगे। यदि आप इस समय तक भी शिशु की श्वसन क्रिया को लेकर चिंतित हों तो डॉक्टर से बात कर सकते हैं। वे शिशु की श्वसन क्रिया को देखकर आपको आवश्वस्त कर सकेंगे। यदि किसी चिकित्सकीय उपचार की आवश्यकता हुई तो वे इस बारे में भी आपको बता देंगे।

बहरहाल, निम्न स्थितियों में आपको डॉक्टर से संपर्क करना चाहिए:

  • एक मिनट में 60 से भी अधिक सांसें।
  • हर सांस के अंत में लगातार घरघराहट की आवाज आना।
  • फूले हुए नथुने, जो इस बात का संकेत है कि उसे सांस लेने के लिए अधिक प्रयास करने पड़ रहे हैं।
  • बहुत तीक्ष्ण कर्कश सी आवाज और खांसी जिसमें भौंकने जैसी आवाज आए।
  • रिट्रेक्शन, जब छाती की मांसपेशियां (पसलियों के नीचे) और गर्दन सामान्य से ज्यादा गहराई में अंदर और बाहर जाती दिखाई दें।
  • 10 सैकंड से ज्यादा लंबे समय तक सांस रुकना।
  • शिशु की रंगत में बदलाव और उसके होंठ और हाथों व पैरों की उंगलियां नीली दिखाई देना। माथे, नाक और होठों पर या आसपास नीले रंग का तिकोना आकार बनना, जिसे सायनोसिस कहा जाता है। इसका मतलब है कि शिशु के रक्त में फेफड़ों से पर्याप्त आॅक्सीजन नहीं पहुंच रही है।

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References

Ball HL, Moya E, Fairley L et al (2011) Infant care practices related to sudden infant death syndrome in South Asian and White British families in the UK. Paediatric and Perinatal Epidemiology. DOI: 10.1111/j.1365-3016.2011.01217.x

Carpenter R, McGarvey C, Mitchell EA, et al. 2013 Bed sharing when parents do not smoke: is there a risk of SIDS? An individual level analysis of five major case-control studies. BMJ Open Online first: 20 May

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WHO. 2007. Profile on Smoke-free environments in the South-East Asia region

नवजात शिशु को सांस लेने में दिक्कत क्यों होती है? - navajaat shishu ko saans lene mein dikkat kyon hotee hai?

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सुनें: अपना कान शिशु के मुंह और नाक के पास लगाएं और उसके सांस की आवाज सुनें। देखें: झुक कर अपनी आंखों को शिशु की छाती के स्तर पर ले आएं और सांसों की ऊपर-नीचे होने की हलचल को देखें। महसूस करें: अपने गाल को शिशु के मुंह और नाक के साथ लगाए और उसकी छोटी सांसों को अपनी त्वचा पर महसूस करें।

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