दुनिया में जितना पानी उपलब्ध है उसका सिर्फ चार फीसद ही भारत के पास है। इतने में ही भारत पर अपनी आबादी जो दुनिया की आबादी का 18 फीसद है, की पानी संबंधी जरूरतों को पूरा करने का भार है, लेकिन यह भी ध्यान रहे कि करोड़ों क्यूबिक क्यूसेक पानी हर साल बहकर समुद्र में चला जाता है। Show नदियों को आपस में जोड़ने का भारत में इतिहास नदियों को आपस में जोड़ने पर लंबे समय से बहस चल रही है। भारत में उत्तर और पूर्व में स्थित जिन नदियों में पानी भरपूर मात्र में उपलब्ध रहता है उसे दूसरे क्षेत्रों में (जहां पानी की कम उपलब्धता है) स्थित नदियों से जोड़ा जाने की वकालत होती रही है Ø नदियों को जोड़ने का विचार सर्वप्रथम 150 वर्ष पूर्व 1919 में मद्रास प्रेसिडेंसी के मुख्य इंजीनियर सर आर्थर कॉटोन ने रखा था। कैप्टन दस्तूर ने इसकी रूपरेखा प्रस्तुत थी। Ø केएल राव Scheme: बाद में तत्कालीन केंद्रीय ऊर्जा और सिंचाई राज्यमंत्री केएल राव ने 1960 में गंगा और कावेरी नदियों को जोड़ने का प्रस्ताव पेश कर इस विचार को फिर से जीवित किया। Ø 1982 में पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने नेशनल वाटर डेवेलपमेंट एजेंसी का गठन किया। Ø 31 अक्टूबर, 2002 को सुप्रीम कोर्ट ने एक जनहित याचिका की सुनवाई करते हुए केंद्र सरकार को इस योजना को शीघ्रता से पूरा करने को कहा। सुप्रीम कोर्ट ने इच्छा जताई थी कि सरकार इस योजना की रूपरेखा 2003 तक तैयार कर ले और 2016 तक इसको पूरा कर दे। Ø तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी द्वारा 2003 में सुरेश प्रभु की अध्यक्षता में एक टॉस्क फोर्स का गठन किया गया। इस पर 560000 करोड़ रुपये की लागत का अनुमान लगाया गया था। Ø इसके बाद यह परियोजना 2012 में बड़ी सुर्खियों का विषय बनी. इस साल सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को निर्देश दिया कि वह इस महत्वाकांक्षी परियोजना पर समयबद्ध तरीके से अमल करे ताकि देरी की वजह से इसकी लागत और न बढ़े. अदालत ने इसकी योजना तैयार करने और इस पर अमल करने के लिए एक उच्च स्तरीय समिति भी बनाई थी. अब केन-बेतवा लिंक के साथ आखिरकार यह नदी जोड़ परियोजना जमीन पर उतरने वाली है. नदी जोड़ो योजना लाभ Ø नदियों को जोड़ने से देश में सूखे की समस्या का स्थायी समाधान निकल जाएगा Ø इससे गंगा और ब्रह्मपुत्र क्षेत्र में हर साल आने वाली बाढ़ की समस्या कम हो जाएगी। Ø सिंचित रकबा वर्तमान के मुकाबले 15 फीसद बढ़ जाएगा। Ø 35-40 गीगावाट जल ऊर्जा के रूप में सस्ती स्वच्छ ऊर्जा प्राप्त होगी। Ø 15000 किलोमीटर नहरों का विकास होगा। Ø 10000 किलोमीटर नौवहन का विकास होगा, जिससे परिवहन लागत कम होगी। Ø 3000 टूरिस्ट स्पॉट बनेंगे। Ø बड़े पैमाने पर वनीकरण होगा। Ø इससे पीने के पानी की समस्या दूर होगी, आर्थिक समृद्धि आएगी और लाखों परिवारों की आर्थिक बदहाली दूर होगी। Ø यही नहीं जैसे ही यह योजना आरंभ होगी, आर्थिक विकास को एक नई दिशा मिल जाएगी, क्योंकि ग्रामीण जगत के भूमिहीन कृषि मजदूरों के लिए रोजगार के तमाम अवसर पैदा होंगे। नदी जोड़ो योजना के दुष्प्रभाव Ø गंगा के पानी को विंध्य के ऊपर उठाकर कावेरी की ओर ले जाने का काम बहुत खर्चीला होगा, क्योंकि यह काम विशालकाय डीजल पम्पों से करना होगा। Ø इससे 4.5 लाख से ज्यादा लोग विस्थापित होंगे। 79,292 हेक्टेयर जंगल पानी में डूब जाएँगे। Ø राजनीतिक कारण राज्य सरकारें अपने-अपने हितों के लिए अड़ने लगेंगी. हाल-फिलहाल तक यह सब देखने को मिलता रहा है. कितने राज्यों के बीच पानी का झगड़ा अभी तक अनसुलझा ही है. वे दूसरे राज्यों को पानी देने को तैयार नहीं होते. सतलुज-यमुना का विवाद लगातार चला आ रहा है और इसके समाधान की कोई गुंजाइश भी नहीं दिखाई दे रही है. पंजाब अपने हिस्से का पानी कहीं और जाने देने के लिए कभी तैयार नहीं होता. कोई ऐसी व्यवस्था भी नहीं बनाई जा सकी है जिसके आधार पर उसे इसके लिए तैयार किया जा सके. ऐसे में यह विवाद बना ही रहता है. इसी तरह का विवाद कावेरी के पानी को लेकर भी है. कर्नाटक और तमिलनाडु के बीच का यह विवाद सुलझने का नाम ही नहीं ले रहा है. यह तो मात्र कुछ उदाहरण हैं. नदियों में जिस तरह पानी की कमी होती जा रही है उससे यह खतरा भी बढ़ा है कि शायद ही कोई राज्य अपने हिस्से का पानी किसी अन्य राज्य को देने को तैयार हो. अगर यही स्थिति रही तो नदी जोड़ो योजना की राह में यह सबसे बड़ी बाधा होगी. Ø जमीन को लेकर भी विवाद खड़े हो सकते हैं. भूमि अधिग्रहण का मुद्दा लंबे समय से विवाद का विषय रहा है Ø महंगी परियोजना : साल 2001 के कीमत स्तर पर इस पूरी परियोजना की प्रस्तावित लागत ‘पांच लाख साठ हजार करोड़’ आंकी गई थी। हालांकि वास्तविक लागत इससे कई गुना ज्यादा होने की संभावना है। Ø नदियों का एक स्वाभाविक ढाल होता है जिसे वे अपने आप पकड़ती हैं और इसके इर्दगिर्द के इलाके को खुशहाल बनाते हुए आगे बढ़ती हैं. देश में ही ऐसे कई उदाहरण हैं जो बताते हैं कि जब नदियों के पानी की दिशा नहरों के जरिये मोड़ी गई तो उन्होंने आसपास की जमीन को खारा और दलदली बनाते हुए इसका बदला ले लिया. उत्तर प्रदेश के 16 जिलों से होकर गुजरने वाली शारदा सहायक नहर को ही लीजिए जो देश की प्रमुख नहरों में से एक है. 2000 में पूरी हुई 260 किमी लंबी इस नहर का लक्ष्य 16.77 लाख हेक्टेयर जमीन की सिंचाई करना था. लेकिन यह सिर्फ 48 फीसदी लक्ष्य हासिल कर पाई है यानी आधे से भी कम. ऊपर से इससे रिसता पानी अक्सर हजारों हेक्टेयर जमीन में जलजमाव और सीलन की वजह बन रहा है जिससे कम पानी वाली गेहूं और दलहन जैसी फसलें बर्बाद हो रही हैं. Ø अन्तराष्ट्रीय अनुभव : नदी जोड़ के नतीजों को देखते हुए दुनिया के कई देश इससे तौबा कर चुके हैं. अमेरिका में कोलराडो से लेकर मिसीसिपी नदी घाटी तक बड़ी संख्या में बनी ऐसी परियोजनाएं गाद भर जाने के कारण बाढ़ का प्रकोप बढ़ाने लगीं और उनसे बिजली का उत्पादन भी धीरे-धीरे गिरता गया. आखिर में इन परियोजनाओं के लिए बने बांध तोड़ने पड़े. निष्कर्ष भारत भू-सांस्कृतिक विविधता वाला देश है जहां
हर इलाके में सिंचाई और पीने के लिए पानी का प्रबंधन अलग-अलग तरीकों से होता रहा है. ऐसे में सब पर एक समाधान थोपना ठीक नहीं. क्या जरूरत है, जिसमें बहुत पैसा खर्च होगा और जिससे बड़े स्तर पर भौगोलिक बिगाड़ भी
होगा. नदी क्या है इसके लाभ एवं हानि बताएं?नदियाँ खेती के लिए लाभदायक उपजाऊ जलोढ़ मिट्टी का उत्तम स्त्रोत होती हैं। नदियां न केवल जल प्रदान करती है बल्कि घरेलू एवं उद्योगिक गंदे व अवशिष्ट पानी को अपने साथ बहकर ले भी जाती है। बड़ी नदियों का उपयोग जल परिवहन के रूप मे भी किया जा रहा है। नदियों में मत्स्य पालन से मछली के रूप मे खाद्य पदार्थ भी प्राप्त होते हैं।
नदियों के क्या क्या लाभ हैं?नदियाँ हमारे लिए बहुत महत्वपूर्ण है।. नदियाँ कृषि में सिंचाई कार्यों के लिए अत्यंत उपयोगी होती हैं।. नदियाँ अनेक जल जीवों को आश्रय देती है।. नदियाँ अपने अंदर रह रहे जीवो को भोजन प्रदान करती है।. नदियाँ यातायात के लिए एक अच्छा साधन है।. नदी पर निबंध कैसे लिखें?नदियाँ सामाजिक, आर्थिक, वैज्ञानिक तथा अन्य कई रूप से सहायक मानी जाती हैं। नदियाँ हमें जल प्रदान करने के साथ-साथ शुद्ध वातावरण भी देती हैं। इसके अलावा नदियों से खेतों के लिए सिंचाई का पानी,पीने के लिए साफ़ पानी, जीवन निर्वाहके लिए मछली पालन रोज़गार, तथा अन्य कई सारे रोज़गार प्राप्त होते हैं।
नदियाँ क्यों उपयोगी हैं?इस प्रकार की उच्च भूमि को जल विभाजक कहते हैं (चित्र 3.1)। विश्व की सबसे बड़ी अपवाह द्रोणी अमेज़न नदी की है। अधिकतर प्रायद्वीपीय नदियाँ मौसमी होती हैं, क्योंकि इनका प्रवाह वर्षा पर निर्भर करता है। शुष्क मौसम में बड़ी नदियों का जल भी घटकर छोटी-छोटी धाराओं में बहने लगता है।
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