निष्क्रमण संस्कार का अर्थ क्या है? - nishkraman sanskaar ka arth kya hai?

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हिंदू धर्म में जातक के जन्म से लेकर मृत्यु तक कई संस्कार किये जाते हैं। मुख्यत: सोलह संस्कार जीवन पर्यंत किये जाते हैं। पहला संस्कार गर्भधारण के दौरान किया जाता है तो अंतिम संस्कार अंत्येष्टि होता है। संस्कार आधारित लेखों में पांच संस्कारों के बारे में हमने बताया है जो गर्भधारण से लेकर जातक का नामकरण होने तक किये जाते हैं। नामकरण पांचवां संस्कार है इसके पश्चात आता है निष्क्रमण संस्कार। यह संस्कार तब आयोजित किया जाता है जब जातक को पहली बार घर से बाहर निकाला जाता है। निष्क्रमण का अर्थ ही बाहर निकालना होता है। आइये जानते हैं इस संस्कार के बारे में।

निष्क्रमण संस्कार का महत्व

हिंदू धर्म में किये जाने वाले सभी संस्कारों का अपना खास महत्व होता है। इन संस्कारों का उद्देश्य जातक में सद्गुणों का संचार करना तो होता ही है साथ ही जातक के बेहतर स्वास्थ्य की कामना भी होती है। कुछ संस्कार आध्यात्मिक रूप से जुड़े होते हैं। निष्क्रमण संस्कार जातक के स्वास्थ्य व उसकी दीर्घायु की कामना के लिये किया जाता है। धार्मिक ग्रंथों में वर्णन भी मिलता है कि

“निष्क्रमणादायुषो वृद्धिरप्युदृष्टा मनीषिभि:”

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कब किया जाता है निष्क्रमण संस्कार

निष्क्रमण संस्कार जातक के जन्म के चौथे मास में किया जाता है। मान्यता है कि जातक के जन्म लेते ही घर में सूतक लग जाता है। जन्म के ग्याहरवें दिन नामकरण संस्कार किया जाता है हालांकि यह कुछ लोग 100वें दिन या जातक के जन्म के एक वर्ष के उपरांत भी करते हैं। लेकिन जन्म के कुछ दिनों तक बालक को घर के बाहर नहीं निकाला जाता। माना जाता है कि इस समय जातक को सूर्य के प्रकाश में नहीं लाना चाहिये क्योंकि इससे जातक के स्वास्थ्य पर कुप्रभाव पड़ सकता है, विशेषकर आंखों को नुक्सान पंहुचने की संभावनाएं अधिक होती हैं। इसलिये जब जातक शारीरिक रूप से स्वस्थ हो जाये तो ही उसे घर से बाहर निकालना चाहिये यानि निष्क्रमण संस्कार करना चाहिये।

निष्क्रमण संस्कार की विधि

जैसा कि इस संस्कार का तात्पर्य भी है बाहर निकालना तो सबसे मुख्य काम तो इस संस्कार के दौरान यही किया जाता है कि इसमें जातक को घर से बाहर निकाला जाता है व सूर्य देवता के दर्शन करवाये जाते हैं। जब बच्चे का स्वास्थ्य इस काबिल हो जाता है कि उसकी समस्त दसों इंद्रियां (पांच ज्ञानेंद्रियां व पांच कर्मेन्द्रियां) अच्छे से काम करने लगे व धूप हवा आदि को सहन कर सकें तो ऐसे में सूर्य, चंद्रमा एवं अन्य देवी-देवताओं का पूजन कर शिशु को सूर्य व चंद्रमा के दर्शन करवाये जाते हैं। इस संस्कार से संबंधित निम्न मंत्र भी अथर्ववेद में मिलता है –

शिवे ते स्तां द्यावापृथिवी असंतापे अभिश्रियौ।

शं ते सूर्य आ तपतुशं वातो वातु ते हृदे।

शिवा अभि क्षरन्तु त्वापो दिव्या: पयस्वती:।।

इसका अभिप्राय है कि बालक के निष्क्रमण के समय देवलोक से लेकर भू लोक तक कल्याणकारी, सुखद व शोभा देने वाला रहे। सूर्य का प्रकाश शिशु के लिये कल्याणकारी हो व शिशु के हृद्य में स्वच्छ वायु का संचार हो। पवित्र गंगा यमुना आदि नदियों का जल भी तुम्हारा कल्याण करें।

निष्क्रण संस्कार के दिन प्रात:काल उठकर तांबे के एक पात्र में जल लेकर उसमें रोली, गुड़, लालपुष्प की पंखुड़ियां आदि का मिश्रण करें व इस जल से सूर्यदेवता को अर्घ्य देते हुए बालक को आशीर्वाद देने के लिये उनका आह्वान करें। संस्कार के प्रसाद में सबसे पहले गणेश जी, गाय, सूर्यदेव, व अपने पितरों, कुलदेवताओं आदि के लिये भोजन की थाली अलग से निकाल लें। संस्कार क्रिया के पश्चात लाल बैल को सवा किलो गेंहू व सवा किलो गुड़ भी खिलाना चाहिये। सूर्यास्त के समय ढ़लते सूरज को भी प्रणाम कर शिशु को आशीर्वाद देने के लिये सूर्य देवता का धन्यवाद करना चाहिये। इस पश्चात चंद्रमा के दर्शन भी विधिपूर्वक करवाने चाहिये।

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सनातन धर्म में मनुष्य जीवन के कुल सोलह संस्कारों में से निष्क्रमण संस्कार (What Is Nishkramana Sanskar In Hindi) छठा संस्कार माना जाता है। यह संस्कार एक शिशु के जीवन में बहुत महत्वपूर्ण स्थान रखता है क्योंकि पहली बार वह बाहरी दुनिया के संपर्क में आता है। दरअसल पहले तीन संस्कार तभी कर दिए जाते है जब शिशु अपना माँ के गर्भ में होता है तथा उसके बाद के दो संस्कार उसके जन्म के समय तथा नामकरण के समय किये जाते है। उसके बाद निष्क्रमण संस्कार (Nishkramana Meaning In Hindi) किया जाता है। आइये इसके बारे में जानते है।

निष्क्रमण संस्कार के बारे में जानकारी (Nishkraman Sanskar In Hindi)

निष्क्रमण संस्कार कब किया जाता है?

मनुस्मृति में इस संस्कार को करने के लिए शिशु के जन्म का चौथा माह उचित बताया गया हैं क्योंकि तब तक एक शिशु परिपक्व हो जाता है तथा बाहरी दुनिया के प्रभाव को सह सकता है। इसलिये इसे शिशु के जन्म के चौथे माह में करना चाहिए।

निष्क्रमण संस्कार क्या है? (Nishkraman Meaning In Hindi)

निष्क्रमण संस्कार का अर्थ होता है बाहर निकलना अर्थात इस दिन शिशु को पहली बार अपने घर से बाहर निकाला जाता है। जन्म से लेकर चौथे माह तक शिशु को अपने घर से निकालना वर्जित होता है। इसलिये इतने समय तक वह अपने घर की चारदीवारी में रहता है जहाँ उसका पालन-पोषण होता है।

जब वह चार माह का हो जाता है तब उसे घर से पहली बार बाहर निकाला जाता है तथा सूर्य देव का प्रकाश उस पर सीधे डाला जाता है। इस उम्र तक शिशु का मस्तिष्क तथा शरीर बाहर की शक्तियों को सहने लायक हो जाता है। इसलिये शिशु के घर से बाहर निकालने की क्रिया को निष्क्रमण संस्कार कहते है।

निष्क्रमण संस्कार का महत्व (Nishkramana Sanskar Ka Mahatva)

हमारा शरीर मुख्यतया पांच चीज़ों से मिलकर बना होता है जिनमें अग्नि, वायु, मिट्टी, जल व आकाश होता है। जन्म के कुछ माह तक शिशु इनसे सीधे संपर्क नही कर सकता अन्यथा उसके शरीर में इनका संतुलन बिगड़ सकता है जो उसके लिए हानिकारक होता है। इसलिये तब तक उसे घर में रखा जाता है।

निष्क्रमण संस्कार के द्वारा उसे सूर्य देव व चंद्र देव के प्रकाश में सीधे लाया जाता है, बाहरी वायु का संपर्क करवाया जाता है जिससे वह बाहर के वातावरण के लिए अनुकूल बनता है। चूँकि अब वह बाहरी ऊर्जा को ग्रहण करने में सक्षम होता है इसलिये इसे निष्क्रमण संस्कार नाम दिया गया है।

इस समय माता-पिता सूर्य तथा चंद्रमा से प्रार्थना करते हैं कि वे इसी तरह उनके शिशु पर अपना तेज बनाये रखे तथा उसे सद्भुद्धि दे जिससे वह और ऊर्जावान व शक्तिशाली बने। वायुदेव से प्रार्थना की जाती हैं कि वे उनके शिशु के अंदर हमेशा स्वच्छ वायु बनाये रखे तथा उसकी प्राणवायु शुद्ध रहे। जल देव से प्रार्थना की जाती हैं कि वे इसी तरह अपने जल से उनके शिशु की काया को धोये तथा उसका मन पवित्र करे। कुल मिलाकर शिशु के माता-पिता पंचभूतों से अपने शिशु की दीर्घायु की कामना करते है।

निष्क्रमण संस्कार कब होता है?

कब किया जाता है निष्क्रमण संस्कार: यह संस्कार बच्चे के जन्म के चौथे या छठे महीने में किया जाता है। बच्चे के जन्म लेने के बाद कुछ दिन बच्चे को घर से नहीं निकाला जाता है। माना जाता है कि जब तक बच्चा शारीरिक रूप से पूरी तरह स्वस्थ न हो जाए तब तक उसे घर से बाहर नहीं निकालना चाहिए।

निष्क्रमण साक्षात्कार क्या है?

निष्क्रमण का अभिप्राय है बाहर निकलना। इस संस्कार में शिशु को सूर्य तथा चन्द्रमा की ज्योति दिखाने का विधान है। भगवान भास्कर के तेज तथा चन्द्रमा की शीतलता से शिशु को अवगत कराना ही इसका उद्देश्य है। इसके पीछे मनीषियों की शिशु को तेजस्वी तथा विनम्र बनाने की परिकल्पना होगी।

संस्कार कितने प्रकार के होते हैं?

(1)गर्भाधान संस्कार, (2)पुंसवन संस्कार, (3)सीमन्तोन्नयन संस्कार, (4)जातकर्म संस्कार, (5)नामकरण संस्कार, (6)निष्क्रमण संस्कार, (7)अन्नप्राशन संस्कार, (8)मुंडन संस्कार, (9)कर्णवेधन संस्कार, (10)विद्यारंभ संस्कार, (11)उपनयन संस्कार, (12)वेदारंभ संस्कार, (13)केशांत संस्कार, (14)सम्वर्तन संस्कार, (15)विवाह संस्कार और (16) ...

संस्कार का पूरा अर्थ क्या है?

संस्कार शब्द का मूल अर्थ है, 'शुद्धीकरण'। मूलतः संस्कार का अभिप्राय उन धार्मिक कृत्यों से था जो किसी व्यक्ति को अपने समुदाय का पूर्ण रुप से योग्य सदस्य बनाने के उद्देश्य से उसके शरीर, मन और मस्तिष्क को पवित्र करने के लिए किए जाते थे, किन्तु हिंदू संस्कारों का उद्देश्य व्यक्ति में अभीष्ट गुणों को जन्म देना भी था।