नशा मुक्ति केंद्र में कैसे इलाज किया जाता है? - nasha mukti kendr mein kaise ilaaj kiya jaata hai?

नशा मुक्ति केंद्र में कैसे इलाज किया जाता है? - nasha mukti kendr mein kaise ilaaj kiya jaata hai?

नशे की लत - फोटो : डेमो फोटो

नशा उन्मूलन केंद्र को नशे की लत छुड़वाने का केंद्र माना जाता है। परेशान लोग अपने परिवार, रिश्तेदार या परिचितों को इस उम्मीद से वहां दाखिल करते हैं कि इस लत से छुटकारा मिलेगा और पीड़ित समाज की मुख्यधारा में लौट आएगा।

इसके लिए वह मुंह मांगी रकम चुकाने को भी तैयार रहते हैं। इन केंद्रों में मरीजों के साथ क्या होता है, यह दो केस ही पूरी पोल खोल रहे हैं। इन दोनों मामलों को देखकर लगता है कि ये केंद्र व्यवसाय का जरिया बन गए हैं। यहां मरीजों के शारीरिक और मानसिक उत्पीड़न के मामले भी सामने आ रहे हैं।

एक केंद्र में रह चुके जय ने बताया कि न तो खानपान का ख्याल रखा जाता है न ही साफ सफाई का। खाने में पतली दाल, अधपकी रोटी और पीने को गंदा पानी दिया जाता है। नहाने को सिर्फ  आधा बाल्टी पानी मिलता है। एक ही साबुन से सभी मरीज नहाते हैं। शौचालय गंदे रहते हैं।

सोने के लिए गंदी और बदबूदार चादर मिलती है। छोटे और बंद कमरों में सिर्फ एक छोटा रोशनदान होता है। पिस्सू और खटमल से लैस गद्दे किसी जेल से कम नहीं था। ऐसा आभास हो रहा था जैसे मानो कोई खतरनाक जुर्म कर के सजा काट रहा हो। जय के अनुसार जब इसकी शिकायत की गई तो उसे डंडों से पीटा गया और एक वक्त का खाना बंद कर दिया गया।

जय का कहना है कि इन नशा मुक्ति केंद्रों के संचालकों की पुलिस और प्रशासन के अफसरों से अच्छी पकड़ है। तभी वह धमकी भरे लहजे में कहते हैं कि जहां मर्जी शिकायत करो... सब को पता है कि नशा मुक्ति केंद्र ऐसे ही होते हैं.... आज तक कुछ नहीं हुआ तो अब क्या होगा! जय का कहना है कि उसके जैसे अन्य युवक भी नशा मुक्ति केंद्र के चक्कर मे फंस गए हैं।

इन केंद्रों की जांच होनी चाहिए ताकि सही होने के चक्कर में वे और बीमार न हो सकें।

हाल ही में ऊधमसिंह नगर निवासी जय उम्र (33) (बदला हुआ नाम) को उसकी मां ने स्मैक की लत छुड़वाने के लिए हल्द्वानी स्थित एक नशा मुक्ति केंद्र में दाखिल कराया। उनसे दाखिले के वक्त बेहतर खाना देने, फल, दूध और योग चिकित्सा संबंधी तमाम सुविधाएं देने के नाम पर अच्छी खासी रकम वसूल कर ली।

मां ने भी बेटे के सही हो जाने की उम्मीद के साथ उसे भर्ती करवा दिया। उसके एक हफ्ते बाद जब मां अपने बेटे से मिलने पहुंची तो मिलने नहीं दिया गया। किसी तरह ज्यादा पैसे चुका कर उसे बाहर लाया गया तो बेटे को देखते ही माँ की आंखें भर आईं और शरीर पर चोट देख पूरा मामला समझ गई।

हल्द्वानी निवासी प्रमोद (बदला हुआ नाम) नशे का आदी होने लगा तो माता-पिता ने एक नशा उन्मूलन केंद्र में भर्ती कराया था। सात महीने बाद भी प्रमोद की हालत में सुधार नहीं हुआ। घर वाले परेशान रहने लगे।

मिलने पहुंचे तो उसे खोया-खोया और डरा सहमा पाया। उसके पिता ने उसे डिस्चार्ज करवा लिया। घर पर ही रखकर उसकी देखभाल की गई। उसने भी काफी समय बाद नशा केंद्र के बारे में दोस्तों और घर वालों को बताया कि वहां की जिंदगी नरक से कम नहीं थी। अब प्रमोद सरकारी नौकरी पर है और एक खुशहाल जिंदगी जी रहा है।

पुलिस से बचने के लिए हो रहे हैं भर्ती

जय के अनुसार पुलिस ने स्मैक और गांजा तस्करों के खिलाफ अभियान चलाया तो कई नशेड़ी पकड़े जाने के डर से नशा मुक्ति केंद्रों में भर्ती हो रहे हैं। उनका मकसद सुधरना नहीं बल्कि पुलिस से बचना है और अपने धंधे को बेरोकटोक चलाना है।

मानसिक रोगियों को दी है सुरक्षा की जिम्मेदारी
जय ने बताया की सुरक्षा में तैनात कर्मी मानसिक रोगी हैं। उनसे कुछ पूछो तो गाली देते हैं और मारपीट करते हैं। कहते हैं उनका खुद ही इलाज चल रहा है। वे हमेशा नशे की हालत में रहते हैं। लोहे की रॉड, बेस बाल का डंडा, सहित अन्य चीजें भी उनके पास रहती हैं।

पिटाई के डर से कोई मरीज अपने मां-बाप या अन्य किसी से शिकायत भी नहीं कर पाता। जय के अनुसार सख्त हिदायत दी जाती है कि यदि यहां से कोई भी बात बाहर गई तो उन्हें मार दिया जाएगा।

दक्ष स्टाफ  की कमी

नशा मुक्ति के लिए लोगों की काउंसिलिंग के लिए दक्ष स्टाफ  नहीं है। अधिकतर मानसिक रोगी ही स्टाफ का हिस्सा हैं जिनका सालों से इलाज चल रहा है अब वही लोग वहां के कर्मचारी बन गए हैं।

खाने के चार्ट का नहीं होता पालन
खाने का चार्ट बना तो है पर उस तरीके खाना नहीं दिया जाता
नर्स, रसोइया, स्वीपर का कार्य मरीजोें से ही करवाया जा रहा है
बाहरी चिकित्सकों को कभी काउंसिलिंग के लिए नहीं लाया जाता 
केंद्र में मरीजों के लिए खेलने घूमने-फिरने के लिए ही कोई व्यवस्था नहीं है
प्रशिक्षित योग शिक्षक मौजूद नहीं हैं, मरीजों की काउंसिलिंग सही से नहीं हो पाती

एक केंद्र से भाग गए थे 13 मरीज

23 जून को हल्द्वानी के एक नशा उन्मूलन केंद्र से 13 मरीज भाग गए थे। बरेली निवासी तारिक इब्राहिम का कत्ल भी हो गया था। पुलिस जांच में उसी नशा उन्मूलन केंद्र का एक कर्मचारी दोषी पाया गया जो अब सलाखों के पीछे है।

इसके लिए प्रशासन के साथ मिलकर काम किया जाएगा। मेरे पास किसी ने कोई शिकायत दर्ज नहीं करवाई है। आरोप कितना सत्य है, यह जांच का विषय है। अमित श्रीवास्तव एसपी सिटी

 फिलहाल ऐसा मामला संज्ञान में नहीं है। निश्चित तौर पर चिकित्सकों की टीम के साथ औचक निरीक्षण कर जांच की जाएगी। सूत्रों के माध्यम से भी जानकारी जुटाई जाएगी।-  पंकज उपाध्याय, सिटी मजिस्ट्रेट

नशा बंद दवा कितने का आता है?

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नशा मुक्ति केंद्र में कैसे इलाज करते हैं?

सेंटर पर 40 मरीज हैं, जिनका इलाज प्राइवेट डॉक्टरों से परामर्श लेने के बाद ही करते हैं। हर मरीज से 5 से 7 हजार रु. मासिक खर्च लेते हैंं। इलाज के लिए डॉक्टरों द्वारा बताई हुईं दवाएं, योगा, इंडोर एक्टिविटी, भजन-प्रार्थना कराते हैं

नशा मुक्ति दवा कौन सी है?

दरअसल, नशा मुक्ति केंद्र में बुप्रेनॉरफिन नामक दवा नशेड़ियों के उपचार में प्रयुक्त की जाती है। इस दवा में ऐसा रासायनिक तत्व है जो नशेड़ियों की नशे की तलब को मिटाता है और नशा छुड़ाने में भी बेहद उपयोगी है।

नशा करने के बाद क्या होता है?

जब नशा हाई वाल्यूम में होता है तो नींद, थकान, बेचेनी और घबराहट जैसी चीजें दूर हो जाती है और ड्रगी का कॉन्फिडेंट लेवल काफी बढ़ जाता है। हालांकि ये कॉन्फिडेंट लेवल अच्छे काम के लिए नहीं बल्कि खराब काम के लिए आता है। व्यक्ति सही-गलत में जल्दी फर्क नहीं कर पाता है और उसकी कॉन्शियसनेस कम हो जाती है।