पुरापाषाण युग के पश्चात मध्य पाषाण काल आया। जिसे उत्तरीय प्रस्तर का काल भी कहा जाता है। जो लगभग 10000 इसवी पूर्व से 7000 इसवी पूर्व तक का काल है। मध्य पाषाण काल में पत्थर के बहुत छोटे औजार होते थे। मध्य पाषाण काल के प्रमुख औजार फलक, पॉइंट, खुरचन, उत्कीर्णक, चंद्राकार, त्रिभुजाकार, वेधनी जैसे कई सूक्ष्म पाषाण उपकरण थे। मध्यपाषाण काल (अंग्रेजी Mesolithic) मनुष्य के विकास का वह अध्याय है जो पुरापाषाण काल और नवपाषाण काल मे मध्य मे आता है। इतिहासकार इस काल को १२,००० साल पूर्व से लेकर १०,००० साल पूर्व तक मानते है।पुरानी दुनिया पुरातात्विक अवधि के बीच ऊपरी पाषाण काल और नवपाषाण । एपिपेलियोलिथिक शब्द का प्रयोग अक्सर समानार्थक रूप से किया जाता है, विशेष रूप से उत्तरी यूरोप के बाहर, और लेवेंट और काकेशस में इसी अवधि के लिए । मेसोलिथिक का यूरेशिया के विभिन्न हिस्सों में अलग-अलग समय है । यह यूरोप और पश्चिमी एशिया में शिकारी-संग्रहकर्ता संस्कृतियों की अंतिम अवधि को संदर्भित करता है, अंतिम हिमनद अधिकतम के अंत के बीचऔर नवपाषाण क्रांति । यूरोप में यह लगभग १५,००० से ५,००० बीपी तक फैला है ; में दक्षिण पश्चिम एशिया ( Epipalaeolithic निकट पूर्व ) लगभग 20000 8,000 बीपी । यह शब्द आगे पूर्व के क्षेत्रों के लिए कम प्रयोग किया जाता है, और यूरेशिया और उत्तरी अफ्रीका से परे बिल्कुल नहीं । Show
दफन Théviec की - टूलूज़ के संग्रहालय[संपादित करें]
पाषाण युग इतिहास का वह काल है जब मानव का जीवन पत्थरों (संस्कृत - पाषाणः) पर अत्यधिक आश्रित था। उदाहरणार्थ पत्थरों से शिकार करना, पत्थरों की गुफाओं में शरण लेना, पत्थरों से आग पैदा करना इत्यादि। इसके तीन चरण माने जाते हैं, पुरापाषाण काल, मध्यपाषाण काल एवं नवपाषाण काल जो मानव इतिहास के आरम्भ (२५ लाख साल पूर्व) से लेकर काँस्य युग तक फैला हुआ है।[1] पाषाण कालीन पत्थरों के उपकरण बनाने तथा उसे इस्तेमाल करने का विश्व में सबसे प्राचीनतम साक्ष्य इथोपिया और केन्या से प्राप्त हुई है संभवतः ऑस्ट्रेलोपिथेकस द्वारा सबसे पहले पत्थर के औजार बनाए गए थे, किन्तु इसका श्रेय होमो हैबिलस नामक प्रजाति को दिया जाता है| भीमबेटका स्थित पाषाण कालीन शैल चित्र पुरापाषाण काल (Paleolithic Era)[संपादित करें]25_20 लाख साल से 12000 साल पूर्व तक। भारत में इसके अवशेष सोहन, बेलन तथा नर्मदा नदी घाटी में प्राप्त हुए हैं। भोपाल के पास स्थित भीमबेटका नामक चित्रित गुफाएं, शैलाश्रय तथा अनेक कलाकृतियां प्राप्त हुई हैं। विशिष्ट उपकरण- हैण्ड-ऐक्स (कुल्हाड़ी) ,क्लीवर और स्क्रेपर आदि। सम्भवतया 5 लाख वर्ष पूर्व द्वितीय हिमयुग के आरंभकाल मेंं भारत में मानव अस्तित्व आया। लेकिन हाल ही में महाराष्ट्र के बोरी नामक स्थान से जिन तथ्यों की रिपोर्ट मिली जानकारी के अनुसार मानव की उपस्थिति और भी पहले 14 लाख वर्ष पूर्व मानी जा सकती है । भारत में आदिमानव पत्थर के अनगढ़ और अपरिष्कृत औजारों का इस्तेमाल करता था ।[2] पुरापाषाण कालीन लोग नेग्रिटो जनजाति के थे| लोग खानाबदोश यानी घुमक्कड़ जीवन व्यतीत करते थें और जीवका का मुख्य आधार आखेट यानी की शिकार था हालाँकि आखेटक के साथ-साथ खाद्य संग्राहक होना पूरापाषाण काल[3] की विशेषता है| मध्यपाषाण काल (Mesolithic Era)[संपादित करें]12000 साल से लेकर 10000 साल पूर्व तक। इस युग को माइक्रोलिथ (Microlith) अथवा लधुपाषाण युग भी कहा जाता हैंं।[4] पाषाण युग और उसके बाद का मानव जीवन संक्षेप में[संपादित करें]
शैल चित्र[संपादित करें]ऐसे ही शैल चित्र उत्तर प्रदेश के मिर्ज़ापुर जिले के विंध्यपहाड़ी के कंदराओं में भी मिला। जिसे सीता कोहबर नामक स्थान पर 12 फरवरी 2014 को एक गुमनाम पत्रकार शिवसागर बिंद ने खोज निकाला था। जिसकी पुष्टि के लिए उ० प्र० राज्य पुरातत्व विभाग के क्षेत्रीय पुरातत्व अधिकारियों ने की। शैल चित्र, सीता कोहबर, जनपद मिर्ज़ापुर[संपादित करें]जनपद मुख्यालय मिर्ज़ापुर से लगभग 11-12 किलोमीटर दूर टांडा जलप्रपात से लगभग एक किलोमीटर पहले “सीता कोहबर” नामक पहाड़ी पर एक कन्दरा में प्राचीन शैल-चित्रों के अवशेष प्रकाश में आये हैं। शिव सागर बिंद, जन्संदेश टाइम्स म़िर्जा़पुर सूचना पर उ० प्र० राज्य पुरातत्व विभाग के क्षेत्रीय पुरातत्व अधिकारी के साथ उक्त शैलाश्रय का निरीक्षण किया और शैलचित्रों को प्राचीन तथा ऐतिहासिक महत्त्व का बताया। लगभग पांच मीटर लम्बी गुफा, जिसकी छत 1.80 मीटर ऊँची तथा तीन मीटर चौड़ी है, में अनेक चित्र बने हैं। विशालकाय मानवाकृति, मृग समूह को घेर कर शिकार करते भालाधारी घुड़सवार शिकारी, हाथी, वृषभ, बिच्छू तथा अन्य पशु-पक्षियों के चित्र गहरे तथा हल्के लाल रंग से बनाये गए हैं, इनके अंकन में पूर्णतया: खनिज रंगों (हेमेटाईट को घिस कर) का प्रयोग किया गया है। इस गुफा में बने चित्रों के गहन विश्लेषण से प्रतीत होता है कि इनका अंकन तीन चरणों में किया गया है। प्रथम चरण में बने चित्र मुख्यतया: आखेट से सम्बन्धित है और गहरे लाल रंग से बनाये गए हैं, बाद में बने चित्र हल्के लाल रंग के तथा आकार में बड़े व शरीर रचना की दृष्टि से विकसित अवस्था के प्रतीत होते हैं साथ ही उन्हें प्राचीन चित्रों के उपर अध्यारोपित किया गया है। यहाँ उल्लेखनीय है कि इस क्षेत्र (मिर्ज़ापुर व सोनभद्र) में अब तक लगभग 250 से अधिक शैलचित्र युक्त शैलाश्रय प्रकाश में आ चुके हैं, जिनकी प्राचीनता ई० पू० 6000 से पंद्रहवी सदी ईस्वी मानी जाती है। मिर्ज़ापुर के सीता कोहबर से प्रकाश में आये शैलचित्र बनावट की दृष्टि से 1500 से 800 वर्ष प्राचीन प्रतीत होते हैं। इन क्षेत्रों में शैलचित्रों की खोज सर्वप्रथम 1880-81 ई० में जे० काकबर्न व ए० कार्लाइल ने ने किया तदोपरांत लखनऊ संग्रहालय के श्री काशी नारायण दीक्षित, श्री मनोरंजन घोष, श्री असित हालदार, मि० वद्रिक, मि० गार्डन, प्रोफ़० जी० आर० शर्मा, डॉ० आर० के० वर्मा, प्रो० पी०सी० पन्त, श्री हेमराज, डॉ० जगदीश गुप्ता, डॉ० राकेश तिवारी तथा श्री अर्जुनदास केसरी के अथक प्रयासों से अनेक नवीन शैल चित्र समय-समय पर प्रकाश में आते रहे हैं। इस क्रम में यह नवीन खोज भारतीय शैलचित्रों के अध्ययन में एक महत्त्वपूर्ण कड़ी मानी जा सकती है। बाहरी कड़ियाँ[संपादित करें]
संदर्भ[संपादित करें]
मध्य पाषाण काल में क्या बदलाव हुआ है?अग्नि का उपयोग होने लगा। तीर-कमान का उपयोग भी होने लगा। तापमान में वृद्धि हुई। पशु और वनस्पति में भी बदलाव आये।
मध्यपाषाण युग की प्रमुख विशेषताएं क्या हैं?मध्यपाषाण युग में लोग मुख्य रूप से पशुपालक थे. मनुष्यों ने इन पशुओं को चारा खिलाकर पालतू बनाया. इस प्रकार मध्यपाषाण काल में मनुष्य पशुपालक बना. इस युग में मनुष्य खेती के साथ-साथ मछली पकड़ना, शहद जमा करना, शिकार करना आदि कार्य करता था.
मध्य पाषाण युग से आप क्या समझते है?मध्यपाषाण काल (अंग्रेजी Mesolithic) मनुष्य के विकास का वह अध्याय है जो पुरापाषाण काल और नवपाषाण काल मे मध्य मे आता है। इतिहासकार इस काल को १२,००० साल पूर्व से लेकर १०,००० साल पूर्व तक मानते है। पुरानी दुनिया पुरातात्विक अवधि के बीच ऊपरी पाषाण काल और नवपाषाण ।
पुरापाषाण काल में क्या हुआ था?पुरापाषाण काल (अंग्रेजी Palaeolithic) प्रौगएतिहासिक युग का वह समय है जब मानव ने पत्थर के औजार बनाना सबसे पहले आरम्भ किया। यह काल आधुनिक काल से २५-२० लाख साल पूर्व से लेकर १२,००० साल पूर्व तक माना जाता है। इस दौरान मानव इतिहास का ९९% विकास हुआ।
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