मुद्रा परिमाण सिद्धांत के नकद व्यवहार अवधारणा की व्याख्या कीजिए - mudra parimaan siddhaant ke nakad vyavahaar avadhaarana kee vyaakhya keejie

मुद्रा परिमाण सिद्धांत के नकद व्यवहार अवधारणा की व्याख्या कीजिए - mudra parimaan siddhaant ke nakad vyavahaar avadhaarana kee vyaakhya keejie
फिशर का मुद्रा परिमाण सिद्धान्त (Quantity Theory of Money by Fisher)

  • फिशर का मुद्रा परिमाण सिद्धान्त
    • प्रश्न- फिशर के मुद्रा परिमाण सिद्धान्त प्रत्यागम की आलोचनात्मक व्याख्या कीजिए। अथवा मुद्रा के परिमाण सिद्धान्त के फिशर के दृष्टिकोण की आलोचनात्मक व्याख्या कीजिये।
    • फिशर का विनिमय समीकरण (Fisher’s Equation of Exchange)-
    • विनिमय समीकरण की मान्यतायें-
  • फिशर के मुद्रा परिमाण सिद्धान्त की आलोचनायें-
      • इसे भी पढ़े…
    • You May Also Like This

फिशर का मुद्रा परिमाण सिद्धान्त

प्रश्न- फिशर के मुद्रा परिमाण सिद्धान्त प्रत्यागम की आलोचनात्मक व्याख्या कीजिए।अथवामुद्रा के परिमाण सिद्धान्त के फिशर के दृष्टिकोण की आलोचनात्मक व्याख्या कीजिये।

मुद्रा का परिमाण सिद्धान्त जो मूल्य निर्धारण के मांग पूर्ति सिद्धान्त का ही विशिष्ट रूप है, मुद्रा मूल्य के निर्धारण का अत्यन्त प्राचीन सिद्धान्त है। इसे प्रस्तुत करने का श्रेय इरविंग फिशर (इरविंग फिशर) को है । फिशर का विनिमय समीकरण इस सिद्धान्त का पात्रात्मक स्वरूप प्रकट करता है। समीकरण उन कारणों पर प्रकाश डालता है, जो मुद्रा मूल्य में परिवर्तनों के लिए उत्तरदायी होते हैं।

सिद्धान्त का कथन- सिद्धान्त के अनुसार मुद्रा के परिमाण तथा इसके मूल्य के बीच विपरीत आनुपातिक सम्बन्ध पाया जाता है । मिल के शब्दों में “अन्य बातें यथावत रहते हुए, मुद्रा का मल्य अपने परिमाण के निर्शत दिशा में बदलता है।” मुद्रा मात्रा को प्रत्येक वृद्धि इसके मूल्य में आनुपातिक गिरावट लाती है, जबकि मुद्रा मात्रा की प्रत्येक कमी इसके मूल्य में आनुपातिक वृद्धि करती है। टॉजिग के अनुसार “यदि मुद्रा का परिमाण दुगुना कर दिया जाये, तब अन्य बातें यथावत् रहते हुए, कीमतें दुगुनी ऊंची हो जायेंगी तथा मुद्रा का मूल्य आधा रह जायेगा। यदि मुद्रा का परिमाण आधा कर दिया जाये, तब अन्य बातें समान रहते हुए कीमतें पहले से आधी रह जायेंगी तथा मुद्रा का मूल्य दुगुना हो जायेगा।”

फिशर का विनिमय समीकरण (Fisher’s Equation of Exchange)-

इरविंग फिशर ने मुद्रा के परिमाण सिद्धान्त का नकद व्यवसाय विवरण सर्वप्रथम निम्न “विनिमय समीकरण” के रूप में प्रस्तुत किया था-

MV = PT

इस समीकरण में M प्रचलित मुद्रा की मात्रा, V मुद्रा का चलन वेग, P सामान्य कीमत स्तर तथा T सौदों की कुल मात्रा (वस्तुओं एवं सेवाओं की कुल पूर्ति) को व्यक्त करता है। समीकरण मुद्रा के विनिमय माध्यम कार्य पर आधारित है। समीकरण का बायां पक्ष (MV) दी हुई समयावधि में मुद्रा की कुल प्रभावी पूर्ति व्यक्त करता है। समीकरण का दायाँ पक्ष (PT) उन सभी वस्तुओं और सेवाओं का मौद्रिक मूल्य व्यक्त करता है, जिन्हें निश्चित समयावधि में खरीदा जा सकता है। P.T. मुद्रा की कुल माँग तथा MV मुद्रा की कुल पूर्ति व्यक्त करता है । दी हुई समयावधि में मुद्रा की माँग खरीदी गई सभी वस्तुओं और सेवाओं के कुल मूल्यों के बराबर होती है। अतः मुद्रा की कुल पूर्ति (MV) खरीदी और बेची गई वस्तुओं और सेवाओं के कुल मूल्य (P.T.) के बराबर होती है। समीकरण के अनुसार, मुद्रा की पूर्ति कीमत स्तर को निर्धारित करती है। V और T स्थिर बने रहने पर कीमत स्तर (P) और मुद्रा की पूर्ति के बीच प्रत्यक्ष सम्बन्ध होता है।

बाद में फिशर ने मुद्रा की पूर्ति में साख, (बैंकों के मांग निपेक्ष तथा उसका चलन वेग सम्मिलित करते हुए) साख मुद्रा को M द्वारा और उसका चलन वेग V द्वारा प्रकट करते हुए अपने विनिमय समीकरण का विस्तार किया, जो निम्नवत् है-

MV+M’V’ = PT
अथवा P = MV + M’V/T

इस समीकरण के अनुसार, कीमत स्तर (P) और मुद्रा की पूर्ति (M) के बीच प्रत्यक्ष सम्बन्ध होता है, जबकि कीमत स्तर (P) और सौदों की मात्रा (T) के बीच M, V और T के यथास्थिर रहने पर, मुद्रा की पूर्ति (M) में परिवर्तनों के कारण ही कीमत-स्तर (P) में परिवर्तन होते हैं।

विनिमय समीकरण की मान्यतायें-

फिशर का विनिमय समीकरण निम्न मान्यताओं पर आधारित है-

(1) व्यापार की मात्रा (T) स्थिर तत्व है-फिशर ने अल्पकाल में T को स्थिर मान लिया है। अल्पकाल में T का स्थिर रहना इस मान्यता पर आधारित है कि उत्पत्ति के साधन पूर्ण रोजगार प्राप्त हैं

(2) सामान्य मूल्य स्तर (P) निष्क्रिय शक्ति है-फिशर के अनुसार, विनिमय समीकरण में मूल्य स्तर सामान्य रूप से निष्क्रिय तत्व है। यह स्वयं दूसरे तत्वों द्वारा नियन्त्रित होता है, किन्तु उन पर किसी तरह का नियन्त्रण नहीं रखता। समीकरण में P ज्ञात करने के लिए व्यावसायिक सौदों से मुद्रा की पूर्ति को भाग देना होता है।

(3) मुद्रा का चलन-वेग (V) तथा साख-मुद्रा का चाल वेग (V) स्वतन्त्र तत्व है तथा अल्पकाल में स्थिर रहते हैं-फिशर ने अपने विनिमय समीकरण में V तथा V’ को स्वतन्त्र तत्व माना है, जो क्रमशः M और M’ या P में उपस्थित परिवर्तनों से प्रभावित नहीं होते। मुद्रा तथा मुद्रा के चलन वेग अनेक बाह्य तत्वों, जैसे- व्यापारिक रीति रिवाज जनता की बैंकिंग आदतें, व्यापारिक क्रियायें, ब्याज की दर, विनियोग, सुविधायें आदि पर निर्भर होते हैं, जो अल्पकाल में स्थिर रहते हैं। अत: अल्पकाल में v और V’ भी स्थिर रहते हैं।

(4) मुद्रा (M) और साख-मुंद्रा (M) के बीच स्थिर अनुपात-फिशर ने प्रचलन में M और M’ के बीच स्थिर (निश्चित) अनुपात माना है। अत: M को सम्मिलित करने पर मुद्रा (M) और कीमतों (P) के बीच मात्रात्मक सम्बन्ध पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता।

फिशर के मुद्रा परिमाण सिद्धान्त की आलोचनायें-

फिशर द्वारा प्रतिपादित मुद्रा के परिमाण सिद्धान्त की निम्न आधार पर आलोचना की जाती है-

(1) मुद्रा के चलनवेग को स्थिर मानना त्रुटिपूर्ण-फिशर ने मुद्रा का चलनवेग स्थिर माना है तथा सामान्य मूल्य स्तर में वृद्धि होने से पूर्व मुद्रा के परिमाण में वृद्धि होना आवश्यक समझा है। वास्तविक अनुभव बताता है कि मुद्रा मात्रा में परिवर्तन हुए बिना भी सामान्य मूल्य स्तर में परिवर्तन सम्भव है, क्योंकि मुद्रा का चलनवेग बदल जाता है 1923 में जर्मनी में उपस्थित अतिस्फीति तथा तीप्त की विश्व व्यापी मन्दी इसी प्रकार की घटनायें हैं, जिनके पीछे चलनगति में उपस्थित परिवर्तनों का विशेष हाथ था।

(2) कीमत-परिवर्तन की व्यापक व्याख्या नहीं-कीमतों में परिवर्तन मुद्रापूर्ति में परिवर्तन के कारण नहीं होते, अपितु राष्ट्रीय व्यय, राष्ट्रीय बचत और राष्ट्रीय निवेश सरीखे मूलभूत तत्वों की कार्यशीलता के कारण होते हैं। क्राउथर के शब्दों में, “मुद्रा का मूल्य मुद्रा की पूर्ति का परिणाम न होकर जनसाधारण की कुल आय का परिणाम होता है।”

(3) समय-पश्चात के महत्व की उपेक्षा-मुद्रा-मात्रा (M) के परिवर्तन कीमत स्तर (P) को धीरे-धीरे प्रभावित करते हैं। इस बीच सम्भव है कि अन्य परिस्थितियाँ समान न रहें तथा मुद्रा मात्रा में हुए परिवर्तनों के ठीक अनुपात में कीमत स्तर में परिवर्तन न हो पाये। फिशर का विनिमय समीकरण मुद्रा मात्रा में परिवर्तन का कीमत स्तर पर तुरन्त प्रभाव पड़ना मानकर समय पश्चात् के महत्व की उपेक्षा करता है।

(4) मुद्रा का स्थैतिक सिद्धान्त-फिशर ने मुद्रा की मात्रा (M) के सिवाय अन्य सभी तत्वों को स्थिर मानकर भारी भूल की है। उनका सिद्धान्त स्थैतिक अर्थव्यवस्था में ही लागू हो सकता है। गतिशील अर्थव्यवस्था में तो मुद्रा की मात्रा के साथ-साथ विनमय समीकरण के अन्य तत्वों में भी परिवर्तन सम्भव होता है।

(5) पूर्ण रोजगार की अवास्तविक मान्यता पर आधारित-विनिमय समीकरण में उत्पादन की मात्रा (T) स्थिर मान लेने का अभिप्राय यह है कि अर्थव्यवस्था में पूर्ण रोजगार की दशा विद्यमान है, जबकि पूर्ण रोजगार की दशा का वास्तविक जीवन से किसी तरह का सम्बन्ध नहीं होता।

(6) कीमत स्तर की निर्धारक “ब्याज-दर” की उपेक्षा-मुद्रा की पूर्ति और कीमत-स्तर के बीच परोक्ष सम्बन्ध होता है । मुद्रा-पूर्ति में उपस्थित परिवर्तन पहले ब्याज दर को प्रभावित करता है । ब्याज की दर निवेश और उपभोग को प्रभावित करती है, जो अन्तत: कीमत स्तर को प्रभावित करते हैं। मुद्रा का परिमाण सिद्धान्त कीमत स्तर की निर्धारक व्याज दर की उपेक्षा करता है।

(7) अपूर्ण सिद्धान्त-विनिमय समीकरण मुद्रा की पूर्ति को महत्वपूर्ण तत्व मानता है तथा मुद्रा की मांग स्थिर मान लेता है। व्यवहार में मुद्रा की मांग बदलती रहती है तथा इसके मूल्य को प्रभावित करती है।

(8) सिद्धान्त कहना ही अनुचित-निकल्सन के अनुसार मुद्रा का परिमाण सिद्धान्त इस साधारण सत्य का उल्लेख करता है कि मुद्रा की पूर्ति बढ़ जाने पर कीमत स्तर बढ़ जाती है। अतः इसे सिद्धान्त कहना या मानना उचित नहीं है।

(9) बन्द अर्थव्यवस्था की मान्यता पर आधारित-सिद्धान्त मानकर चलता है कि एक देश का अन्य देशों के साथ कोई व्यापारिक सम्बन्ध नहीं है। अत: यह घरेलू कीमत स्तर पर विदेशी कीमत स्तरों के प्रभावों की उपेक्षा करता है।

इसे भी पढ़े…

मुद्रा का परिमाण सिद्धान्त (Quantity Theory of Money)

Note: इसके साथ ही अगर आपको हमारी Website पर किसी भी पत्रिका को Download करने या Read करने या किसी अन्य प्रकार की समस्या आती है तो आप हमें Comment Box में जरूर बताएं हम जल्द से जल्द उस समस्या का समाधान करके आपको बेहतर Result Provide करने का प्रयत्न करेंगे धन्यवाद।

मुद्रा परिमाण सिद्धांत के नकद व्यवहार अवधारणा की व्याख्या कीजिए - mudra parimaan siddhaant ke nakad vyavahaar avadhaarana kee vyaakhya keejie

मुद्रा का परिमाण सिद्धांत क्या है?

मुद्रा के आधुनिक परिमाण सिद्धान्त की व्याख्या मिल्टन फ्रिडमैन द्वारा की गई। मुद्रा के परिमाण के अनुसार मुद्रा की पूर्ति तथा मुद्रा के मूल्य में विपरीत संबंध है तथा मुद्रा की पूर्ति तथा कीमत स्तर में सीधा या प्रत्यक्ष संबंध है।

मुद्रा सिद्धांत क्या है?

मुद्रा का परिमाण सिद्धांत हमें अर्थव्यवस्था पर मुद्रा के असर का विश्लेषण करने में मदद करता है। राशि एम/पी को मुद्रा की क्रय शक्ति के बारे में बताता है। एम/पी को रियल मनी बैलेंस भी कहते हैं।

मुद्रा की अवधारणा से आप क्या समझते हैं इसके महत्व का वर्णन कीजिए?

मुद्रा एक ऐसी वस्तु या माध्यम है जो मनुष्य को अपनी इच्छानुसार आर्थिक निर्णय लेने में सहायता प्रदान करती है, मुद्रा की सहायता से व्यक्ति अपनी इच्छाओं एवं आवश्यकताओं को पूरा कर सकता है. उपभोक्ता जिस वस्तु के लिए सबसे अधिक कीमत देने को तत्पर होता है। उन्ही वस्तुओं का उत्पादन बाजार में अधिक किया जाता है।

मुद्रा के मूल्य की अवधारणा क्या है?

मुद्रा की इकाई के बदले में कितनी वस्तुओं और सेवाओं का क्रय किया जा सकता है, यही मुद्रा की क्रयशक्ति है और यही मुद्रा का मूल्य है।