मार्क्स के अनुसार एक समाज में उत्पादन के साधनों का मालिक कौन होता है? - maarks ke anusaar ek samaaj mein utpaadan ke saadhanon ka maalik kaun hota hai?

मार्क्स के चार विचार, जो आज भी ज़िंदा हैं

  • मैक्स सीत्ज़
  • बीबीसी मुंडो

7 नवंबर 2017

मार्क्स के अनुसार एक समाज में उत्पादन के साधनों का मालिक कौन होता है? - maarks ke anusaar ek samaaj mein utpaadan ke saadhanon ka maalik kaun hota hai?

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2017 रूसी क्रांति का शताब्दी वर्ष मनाया जा रहा है, लेकिन जिनके विचारों पर ये क्रांति हुई, क्या वो आज भी प्रासंगिक हैं?

हालांकि जर्मन दार्शनिक कार्ल मार्क्स ने उन्नीसवीं शताब्दी में काफ़ी कुछ लिखा, लेकिन आज भी इसमें कोई विवाद नहीं है कि उनकी दो कृतियां 'कम्युनिस्ट घोषणा पत्र' और 'दास कैपिटल' ने एक समय दुनिया के कई देशों और करोड़ों लोगों पर राजनीतिक और आर्थिक रूप से निर्णयात्मक असर डाला था.

रूसी क्रांति के बाद सोवियत संघ का उदय इस बात का उदाहरण था. कोई भी इनकार नहीं कर सकता कि बीसवीं शताब्दी के इतिहास पर समाजवादी खेमे का बहुत असर रहा है. हालांकि, जैसा मार्क्स और एंगेल्स ने लिखा था, उस तरह साम्यवाद ज़मीन पर नहीं उतर पाया.

अंततः समाजवादी खेमा ढह गया और पूंजीवाद लगभग इस पूरे ग्रह पर छा गया. आईए जानते हैं, मार्क्स के वे चार विचार कौन से हैं जो साम्यवाद की असफलता के बावजूद आज भी प्रासंगिक बने हुए हैं.

1- राजनीतिक कार्यक्रम

'कम्युनिस्ट घोषणापत्र' और अपने अन्य लेखों में मार्क्स ने पूंजीवादी समाज में 'वर्ग संघर्ष' की बात की है और बताया है कि कैसे अंततः संघर्ष में सर्वहारा वर्ग पूरी दुनिया में बुर्जुआ वर्ग को हटाकर सत्ता पर कब्ज़ा कर लेगा.

अपनी सबसे प्रसिद्ध कृति 'दास कैपिटल' में उन्होंने अपने इन विचारों को बहुत तथ्यात्मक और वैज्ञानिक तरीके से विश्लेषित किया है.

उनके प्रतिष्ठित जीवनी लेखक ब्रिटेन के फ़्रांसिस व्हीन कहते हैं, "मार्क्स ने उस सर्वग्राही पूंजीवाद के ख़िलाफ़ दार्शनिक तरीक़े तर्क रखे, जिसने पूरी मानव सभ्यता को ग़ुलाम बना लिया."

20वीं शताब्दी में मज़दूरों ने रूस, चीन, क्यूबा और अन्य देशों में शासन करने वालों को उखाड़ फेंका और निज़ी संपत्ति और उत्पादन के साधनों पर कब्जा कर लिया.

ब्रिटेन के स्कूल ऑफ़ इकोनॉमिक्स में जर्मन इतिहासकार अलब्रेख़्त रिसल कहते हैं कि 'भूमंडलीकरण के पहले आलोचक थे मार्क्स. उन्होंने दुनिया में बढ़ती ग़ैरबराबरी के प्रति चेतावनी दी थी.'

2007-08 में आई वैश्विक मंदी ने एक बार फिर उनके विचारों को प्रासंगिक बना दिया.

2-मंदी का बार बार आना

पूंजीवाद के 'पिता' एडम स्मिथ के 'वेल्थ ऑफ़ नेशन' से उलट मार्क्स का मानना था कि बाज़ार को चलाने में किसी अदृश्य शक्ति की भूमिका नहीं होती.

बल्कि वो कहते हैं कि मंदी का बार बार आना तय है और इसका कारण पूंजीवाद में ही निहित है.

अलब्रेख़्त के अनुसार, "उनका विचार था कि पूंजीवाद के पूरी तरह ख़त्म होने तक ऐसा होता रहेगा."

1929 में शेयर बाज़ार औंधे मुंह गिर गया और इसके बाद आने वाले झटके 2007-08 के चरम तक पहुंच गए, जब दुनिया का वित्त बाज़ार अभूतपूर्व रूप से संकट में आ गया था.

विशेषज्ञ कहते हैं कि हालांकि इन संकटों का असर भारी उद्योगों की जगह वित्तीय क्षेत्र पर अधिक पड़ा.

3-अकूत मुनाफ़ा और एकाधिकार

मार्क्स के सिद्धांत का एक अहम पहलू है- 'अतिरिक्त मूल्य.' ये वो मूल्य है जो एक मज़दूर अपनी मज़दूरी के अलावा पैदा करता है.

मार्क्स के मुताबिक़, समस्या ये है कि उत्पादन के साधनों के मालिक इस अतिरिक्त मूल्य को ले लेते हैं और सर्वहारा वर्ग की क़ीमत पर अपने मुनाफ़े को अधिक से अधिक बढ़ाने में जुट जाते हैं.

इस तरह पूंजी एक जगह और कुछ चंद हाथों में केंद्रित होती जाती है और इसकी वजह से बेरोज़गारी बढ़ती है और मज़दूरी में गिरावट आती जाती है.

इसे आज भी देखा जा सकता है.

ब्रिटिश मैग्जीन 'द इकोनॉमिस्ट' के एक हालिया विश्लेषण के अनुसार, पिछले दो दशकों में अमरीका जैसे देशों में मज़दूरों का वेतन स्थिर हो गया है, जबकि अधिकारियों के वेतन में 40 से 110 गुने की वृद्धि हुई है.

4-भूमंडलीकरण और ग़ैरबराबरी

हालांकि मार्क्स के जीवनी लेखक फ़्रांसिस व्हीन कहते हैं कि पूंजीवाद अपनी कब्र खुद खोदता है, मार्क्स की ये बात ग़लत है, बल्कि इससे उलट ही हुआ है, साम्यवाद ख़त्म हुआ तो दूसरी तरफ़ पूंजीवाद सर्वव्यापी हुआ है.

लेकिन पेरिस विश्वविद्यालय में दर्शन के प्रोफ़ेसर और मार्क्सवादी विचारक जैक्स रैंसियर का कहना है कि, "चीनी क्रांति की वजह से आज़ाद हुए शोषित और ग़रीब मज़दूरों को आत्महत्या की कगार पर ला खड़ा किया गया है ताकि पश्चिम सुख सुविधा में रह सके, जबकि चीन के पैसे से अमरीका ज़िंदा है, वरना वो दिवालिया हो जाएगा."

भले ही मार्क्स अपनी भविष्यवाणी में असफल हो गए हों, पूंजीवाद के वैश्विकरण की आलोचना करने में उन्होंने ज़रा भी ग़लती नहीं की.

'कम्युनिस्ट घोषणा' पत्र में उन्होंने तर्क किया है कि पूंजीवाद के वैश्विकरण ही अंतरराष्ट्रीय अस्थिरता का मुख्य कारण बनेगा. और 20वीं और 21वीं शताब्दी के वित्तीय संकटों ने ऐसा ही दिखाया है.

यही कारण है कि भूमंडलीकरण की समस्याओं पर मौजूदा बहस में मार्क्सवाद का बार बार ज़िक्र आता है.

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