मुख्य रूप से अलंकार के कितने भेद है? - mukhy roop se alankaar ke kitane bhed hai?

परिभाषा:- अलंकार का शाब्दिक अर्थ है “आभूषण “, मनुष्य सौंदर्य प्रेमी है, वह अपनी प्रत्येक वस्तु को सुसज्जित और अलंकृत देखना चाहता है। वह अपने कथन को भी शब्दों के सुंदर प्रयोग और विश्व उसकी विशिष्ट अर्थवत्ता से प्रभावी व सुंदर बनाना चाहता है। मनुष्य की यही प्रकृति काव्य में अलंकार कहलाती है।

Show

अलंकार का महत्व

1.  अलंकार शोभा बढ़ाने के साधन है। काव्य रचना में रस पहले होना चाहिए उस रसमई रचना की शोभा बढ़ाई जा सकती है अलंकारों के द्वारा। जिस रचना में रस नहीं होगा , उसमें अलंकारों का प्रयोग उसी प्रकार व्यर्थ है. जैसे –   निष्प्राण शरीर पर आभूषण। ।

2.  काव्य में अलंकारों का प्रयोग प्रयासपूर्वक नहीं होना चाहिए। ऐसा होने पर वह काया पर भारस्वरुप प्रतीत होने लगते हैं , और उनसे काव्य की शोभा बढ़ने की अपेक्षा घटती है। काव्य का निर्माण शब्द और अर्थ द्वारा होता है। अतः दोनों शब्द और अर्थ के सौंदर्य की वृद्धि होनी चाहिए।

इस दृष्टि से अलंकार दो प्रकार के होते हैं ( शब्दालंकार और अर्थालंकार )

१. शब्दालंकार

परिभाषा:- जहां काव्य में शब्दों के प्रयोग वैशिष्ट्य से कविता में सौंदर्य और चमत्कार उत्पन्न होता है । वहां शब्दालंकार होता है । जैसे ( ‘ भुजबल भूमि भूप बिन किन्ही ‘ ) इस उदाहरण में विशिष्ट व्यंजनों के प्रयोग से काव्य में सौंदर्य उत्पन्न हुआ है। यदि ‘ भूमि ‘ के बजाय उसका पर्यायवाची ‘ पृथ्वी ‘ , ‘ भूप ‘ के बजाय उसका पर्यायवाची ‘ राजा ‘ रख दे तो काव्य का सारा चमत्कार खत्म हो जाएगा। इस काव्य पंक्ति में उदाहरण के कारण सौंदर्य है।  अतः इसमें शब्दालंकार है।

शब्दालंकार के भेद

  • अनुप्रास अलंकार
  • यमक
  • श्लेश

२. अर्थालंकार

परिभाषा:- जहां कविता में सौंदर्य और विशिष्टता अर्थ के कारण हो वहां अर्थालंकार होता है। उदाहरण के लिए (‘ चट्टान जैसे भारी स्वर ‘ ) इस उदाहरण में चट्टान जैसे के अर्थ के कारण चमत्कार उत्पन्न हुआ है। यदि इसके स्थान पर ‘ शीला ‘ जैसे शब्द रख दिए जाएं तो भी अर्थ में अधिक अंतर नहीं आएगा। इसलिए इस काव्य पंक्ति में अर्थालंकार का प्रयोग हुआ है। कभी-कभी शब्दालंकार और अर्थालंकार दोनों के योग से काव्य में चमत्कार आता है उसे  ‘ उभयालंकार  ‘ कहते हैं।

अर्थालंकार के भेद

  • 1. उपमा
  • 2. रूपक
  • 3. उत्प्रेक्षा
  • 4. भ्रांतिमान
  • 5. सन्देह
  • 6. अतिशयोक्ति अलंकार
  • 7. विभावना अलंकार
  • 8. मानवीकरण

यह भी जरूर पढ़ें 

हिंदी व्याकरण की संपूर्ण जानकारी

हिंदी बारहखड़ी

सम्पूर्ण संज्ञा 

रस के प्रकार ,भेद ,उदहारण

सर्वनाम और उसके भेद

विशेषण ( परिभाषा, भेद और उदाहरण )

अव्यय के भेद परिभाषा उदहारण 

क्रिया विशेषण

विस्मयादिबोधक अव्यय

संधि विच्छेद 

समास की पूरी जानकारी 

अलंकार के भेद ( परिभाषा एवं उदाहरण सहित पूरी जानकारी )

अब आप अलंकार के सभी भेद विस्तार में पढ़ने जा रहे हैं। आपको प्रति एक अलंकार के साथ उनके उदाहरण भी पढ़ने को मिलेंगे।

1. अनुप्रास अलंकार

जब समान व्यंजनों की आवृत्ति अर्थात उनके बार-बार प्रयोग से कविता में सौंदर्य की उत्पत्ति होती है तो व्यंजनों की इस आवृत्ति को अनुप्रास कहते हैं। अनुप्रास शब्द अनु + प्रास शब्दों से मिलकर बना है। अनु का अर्थ है बार – बार , प्रास  शब्द का अर्थ है वर्ण। अर्थात जो शब्द बाद में आए अथवा बार-बार आए वहां अनुप्रास अलंकार की संभावना होती है। जिस जगह स्वर की समानता के बिना भी वर्णों की आवृत्ति बार-बार होती है वहां भी अनुप्रास अलंकार होता है। जिस रचना में व्यंजन की आवृत्ति एक से अधिक बार हो वहाँ अनुप्रास अलंकार होता है।

अनुप्रास के पांच भेद हैं

  • छेकानुप्रास
  • वृत्यानुप्रास
  • अंतानुप्रास
  • लाटानुप्रास
  • श्रुत्यानुप्रास

इनमें प्रथम दो का विशेष महत्व है। उनका परिचय निम्नलिखित है –

१ छेकानुप्रास  – जहां एक या अनेक वर्णों की केवल एक बार आवृत्ति हो जैसे – ” कानन कठिन भयंकर भारी।  घोर हिमवारी बयारी। ” इस पद्यांश के पहले चरण में ‘ क ‘ तथा ‘ भ ‘ वर्णो  की एवं  दूसरे चरण में ‘ घ ‘ वर्ण की एक – एक बार आवृत्ति हुई है। अतः छेकानुप्रास है।

२ वृत्यानुप्रास  – जहां एक या अनेक वर्णों की अनेक बार आवृत्ति हो जैसे – “चारु चंद्र की चंचल किरणें खेल रही थी जल – थल में ” यहां कोमल – वृत्ति के अनुसार ‘ च ‘ वर्ण की अनेक बार आवृत्ति हुई है। अतः वृत्यनुप्रास अलंकार है।

अनुप्रास अलंकार के उदाहरण

  •  तट तमाल तरूवर बहू छाए  ( ‘त ‘ वर्ण की आवृत्ति बार – बार हो रही है )
  •  भुज भुजगेस की है संगिनी भुजंगिनी सी  ( ‘ भ ‘ की आवृत्ति  )
  •  चारू चंद की चंचल किरणे  ( ‘ च ‘ की आवृत्ति बार बार हो रही है  )
  •  तुम मांस – हीन , तुम रक्तहीन हे अस्थि – शेष तुम अस्थिहीन ( सुमित्रानंदन पंत की कविता का अंश )  ( ‘त’ वर्ण की आवृत्ति होने के कारण अनुप्रास अलंकार है )
  • ” कानन कठिन भयंकर भारी।  घोर हिमवारी बयारी। ” ( ‘ क ‘ और ‘ भ ‘ वर्ण की आवृत्ति  )
  • “चारु चंद्र की चंचल किरणें खेल रही थी जल – थल में ”  – (‘ च ‘ वर्ण की आवृत्ति बार बार हो रही है। )
  • “मधुप गुन – गुना कर कह जाता कौन कहानी यह अपनी।”  ( ‘ग’ और  ‘ क ‘ वर्ण की आवृत्ति बार बार हो रही है। )
  • “घेर घेर घोर गगन ,शोभा श्री।”  ( ‘ घ ‘ की आवृत्ति हुई है  )
  • “धूलि – धूसर , परस पाकर , सूरज की किरणों का।”   ( ‘ ध ‘ और ‘ प ‘ वर्ण की आवृत्ति हुई है  )
  • “दुःख दूना ,सुरंग सुधियाँ सुहावनी ,कमजोर कांपती।” ( ‘ द ‘ और ‘ स ‘ वर्ण की आवृत्ति बार बार हो रही है।  )

2.  यमक अलंकार

किसी कविता या काव्य में एक ही शब्द दो या दो से अधिक बार आये और हर बार उसका अर्थ भिन्न हो वहाँ यमक अलंकार होता है।

उदाहरण के लिए

१. ” वहै शब्द पुनि – पुनि परै अर्थ भिन्न ही भिन्न ” अर्थात यमक अलंकार में एक शब्द का दो या दो से अधिक बार प्रयोग होता है और प्रत्येक प्रयोग में अर्थ की भिन्नता होती है। उदाहरण के लिए –

२. कनक कनक ते सौ गुनी , मादकता अधिकाय। या खाए बौराय जग , या  पाए बौराय। ।

इस छंद में ‘ कनक ‘ शब्द का दो बार प्रयोग हुआ है। एक ‘ कनक ‘ का अर्थ है ‘ स्वर्ण ‘ और दूसरे का अर्थ है ‘ धतूरा ‘ इस प्रकार एक ही शब्द का भिन्न – भिन्न अर्थों में दो बार प्रयोग होने के कारण ‘ यमक अलंकार ‘ है।

३ नेह सरसावन में, मेह बरसावन में ,

सावन में झूलिबो सुहावनो लगत है। ।

उपर्युक्त पंक्ति में सावन शब्द की आवृत्ति तीन बार हुई है, प्रथम दो आवृत्ति निरर्थक है जबकि तीसरा सावन शब्द का अर्थ सार्थक है।  अतः यहां यमक अलंकार माना जाएगा।

  • काली घटा का घमंड घटा   => घटा – बादल ,  घटा – कम होना
  • तीन बेर खाती थी वह तीन बेर खाती थी  => बेर – फल  , बेर – समय 

यमक अलंकार के दो भेद हैं

१ अभंग पद यमक

२ सभंग पद यमक

1. अभंग पद यमक

जब किसी शब्द को बिना तोड़े मरोड़े एक ही रूप में अनेक बार भिन्न-भिन्न अर्थों में प्रयोग किया जाता है , तब अभंग पद यमक कहलाता है। जैसे –

” जगती जगती की मुक प्यास। “

इस उदाहरण में जगती शब्द की आवृत्ति बिना तोड़े मरोड़े भिन्न-भिन्न अर्थों में १ ‘ जगती ‘ २ ‘ जगत ‘  ( संसार ) हुई है।  अतः यह  अभंग पद यमक का उदाहरण है।

2. सभंग  पद यमक

जब जोड़ – तोड़ कर एक जैसे वर्ण समूह( शब्द ) की आवृत्ति होती है , और उसे भिन्न-भिन्न अर्थों की प्रकृति होती है अथवा वह निरर्थक होता है , तब सभंग पद यमक होता है।

जैसे –

” पास ही रे हीरे की खान ,

खोजता कहां और नादान?”

यहां ‘ ही रे ‘ वर्ण – समूह की आवृत्ति हुई है।

पहली बार वही ही + रे को जोड़कर बनाया है। इस प्रकार यहां सभंग पद यमक है।

अन्य उदाहरण 

१.’ या मुरली मुरलीधर की अधरान धरी अधरा न धरौंगी। ।” ( अधरान –  होठों पर , अधरा ना होठों पर नहीं )

२. काली घटा का घमंड घटा ।  (  घटा – बादलों का जमघट , घटा – कम हुआ )

३. माला फेरत जुग भया , फिरा न मन का फेर। कर का मनका डारि दे , मन का मनका फेर।  ( मनका – माला का दाना , मनका – हृदय का )

४. तू मोहन के उरबसी हो , उरबसी समान।  (  उरबसी – हृदय में बसी हुई , उरबसी – उर्वशी नामक अप्सरा )

मुख्य रूप से अलंकार के कितने भेद है? - mukhy roop se alankaar ke kitane bhed hai?
alankar in hindi with examples

3. श्लेष अलंकार ( Shlesh alankar )

श्लेष का अर्थ है चिपकाना , जहां शब्द तो एक बार प्रयुक्त किया जाए पर उसके एक से अधिक अर्थ निकले वहाँ श्लेष अलंकार होता है।

जैसे –

पहला उदाहरण

” जो रहिम गति दीप की , कुल कपूत की सोय।

बारे उजियारे करे , बढ़े अंधेरो होय। । “

यहां ‘ दीपक ‘ और ‘ कुपुत्र ‘ का वर्णन है। ‘ बारे ‘ और ‘ बढे ‘ शब्द दो – दो अर्थ दे रहे हैं। दीपक बारे (जलाने) पर और कुपुत्र बारे (बाल्यकाल) में उजाला करता है। ऐसे ही दीपक बढे ( बुझ जाने पर ) और कुपुत्र बढे ( बड़े होने पर ) अंधेरा करता है। इस दोहे में ‘ बारे ‘ और ‘ बढे ‘ शब्द बिना तोड़-मरोड़ ही दो – दो अर्थों की प्रतीति करा रहा है। अतः अभंगपद श्लेष अलंकार है।

दूसरा उदाहरण

” रो-रोकर सिसक – सिसक कर कहता मैं करुण कहानी।

तुम सुमन नोचते , सुनते , करते , जानी अनजानी। । “

यहां ‘सुमन’ शब्द का एक अर्थ है ‘फूल’ और दूसरा अर्थ है ‘सुंदर मन’,  ‘सुमन’ का खंडन सु + मन  करने पर ‘सुंदर + मन’ अर्थ होने के कारण सभंग पद श्लेष अलंकार है।

तीसरा उदहारण

” जलने को ही स्नेह बना, उठने को ही वाष्प बना”

यह पंक्ति यशोधरा से ली गई है, जिसमें जलने, स्नेह, और वाष्प तीनों शब्दों में श्लेष है।

  • ‘जलने’ का अर्थ है जलना और दुख उठाना।
  • ‘स्नेह’ का अर्थ है तेल तथा प्रेम
  • ‘वाष्प’ का अर्थ है भाप तथा आद्रता या आंसू

यहां प्रत्येक शब्द में एक से अधिक अर्थ निकल रहे हैं इसलिए यहां श्लेषअलंकार है

श्लेष अलंकार के अन्य उदाहरण

३. सुवर्ण को ढूँढत फिरत कवी , व्यभिचारी ,चोर।  ( सुवर्ण – सुंदरी , सुवर्ण – सोना )

४. रहिमन पानी राखिये  , बिन पानी सब सून। पानी गए न ऊबरे , मोती मानुष , चून। ।  ( पानी के अर्थ है – चमक , इज्जत , जल )

५. विपुल घन अनेकों रत्न हो साथ लाए। प्रियतम बतला दो लाल मेरा कहां है। ।  ( ‘ लाल ‘ शब्द के दो अर्थ हैं – पुत्र , मणि )

६. मधुबन की छाती को देखो , सूखी कितनी इसकी कलियां। ।   ( कलियां १ खिलने से पूर्व फूल की दशा। २ योवन पूर्व की अवस्था )

७. मेरी भव बाधा हरो ,राधा नागरी सोय , जा तन की झाई परे , श्याम हरित दुति  होय।  ( हरित – हर लेना , हर्षित होना ,हरा रंग का होना। )

4. उपमा अलंकार

जहां एक वस्तु या प्राणी की तुलना अत्यंत समानता के कारण किसी अन्य प्रसिद्ध वस्तु या प्राणी से की जाती है।’

उपमा का अर्थ है – तुलना।

जहां उपमान से उपमेय  की साधारण धर्म (क्रिया को लेकर वाचक शब्द के द्वारा तुलना की जाती है )

इस को समझने के लिए उपमा के चार अंगो पर विचार कर लेना आवश्यक है।

१ उपमेय , २  उपमान , ३ धर्म  , ४ वाचक।

  • १ उपमेय अलंकार, ( प्रत्यक्ष /प्रस्तुत )

वस्तु या प्राणी जिसकी उपमा दी जा सके अथवा काव्य में जिसका वर्णन अपेक्षित हो उपमेय कहलाती है। मुख ,मन ,कमल ,आदि

  • २ उपमान ,( अप्रत्यक्ष / अप्रस्तुत )

वह प्रसिद्ध बिन्दु या प्राणी जिसके साथ उपमेय की तुलना की जाये उपमान कहलाता है – छान ,पीपर ,पात आदि

  • ३ साधारण कर्म

उपमान तथा उपमेय में पाया जाने वाला परस्पर ” समान गुण ” साधारण धर्म कहलाता है जैसे – चाँद सा सुन्दर मुख

  • ४ सादृश्य वाचक शब्द

जिस शब्द विशेष से समानता या उपमा का बोध होता है  उसे वाचक शब्द कहलाते है।  जैसे – सम , सी , सा , सरिस , आदि शब्द वाचक शब्द कहलाते है।

उपमा के भेद – १ पूर्णोपमा  , २ लुप्तोपमा  , ३ मालोपमा

१ पूर्णोपमा   – जहां उपमा के चारों  अंग ( उपमेय ,  उपमान , समान धर्म , तथा वाचक शब्द ) विद्यमान हो , वहां  पूर्णोपमा  होती है।

२ लुप्तोपमा  –  जहां उपमा के चारों अंगों में से कोई एक , दो या तीन अंग लुप्त  हो वहां लुप्तोपमा होती है।

लुप्तोपमा के कई प्रकार हो सकते हैं। जो अंग लुप्त होता है उसी के अनुसार नाम रखा जाता है। जैसे –

३ मालोपमा – जब किसी उपमेय की उपमा कई उपमानों से की जाती है , और इस प्रकार उपमा की माला – सी बन जाती है , तब मालोपमा मानी जाती है।

उपमा अलंकार के उदाहरण

‘ उसका मुख चंद्रमा के समान है ‘ – 

इस कथन में ‘ मुख ‘ रूप में है ‘ चंद्रमा ‘ उपमान है।’ सुंदर ‘ समान धर्म है और ‘ समान ‘ वाचक शब्द है।

‘ नील गगन – सा शांत हृदय था हो रहा। – 

इस काव्य पंक्ति में उपमा के चार अंग ( उपमेय – हृदय , उपमान – नील गगन , समान धर्म – शांत और वाचक शब्द सा ) विद्यमान है। अतः यह पूर्णोपमा है।

‘ कोटी कुलिस सम वचन तुम्हारा ‘   –

इस काव्य पंक्ति में उपमा के तीन अंग ( उपमेय – वचन  , उपमान -कुलिश  और वाचक – सम विद्यमान है , किंतु समान धर्म का लोप है।) अतः यह लुप्तोपमा का उदाहरण है। इसे  ‘ धर्मलुप्ता ‘ लुप्तोपमा कहेंगे।

‘ हिरनी से मीन से , सुखंजन समान चारु , अमल कमल से , विलोचन तिहारे हैं। ‘

‘ नेत्र ‘ उपमेय के लिए कई उपमान प्रस्तुत किए गए हैं , अतः यहां मालोपमा अलंकार है।

अन्य उदाहरण

  • स्वान स्वरूप रूप संसार है।
  • वेदना बुझ वाली – सी।
  • मृदुल वैभव की रखवाली – सी।
  • चांदी की सी उजली जाली।
  • रोमांचित सी लगती वसुधा।
  • मरकत डिब्बे सा खुला ग्राम।
  • सुख से अलसाए – से – सोए।
  • एक चांदी का बड़ा – सा गोल खंभा।
  • चंवर सदृश डोल रहे सरसों के सर अनंत।
  • कोटि कुलिस सम वचनु  तुम्हारा।
  • सहसबाहु सम सो रिपु मोरा
  • लखन उत्तर आहुति सरिस।
  •  भृगुवर  कोप कृशानु , जल – सम बचन।
  •  भूली – सी एक छुअन बनता हर जीवित क्षण।
  • वस्त्र और आभूषण शाब्दिक भ्रमों की तरह बंधन है स्त्री जीवन।
  • चट्टान जैसे भारी स्वर
  • दूध को सो  फैन फैल्यो आंगन फरसबंद।
  • तारा सी तरुणी तामें ठाडी झिलमिल होती।
  • आरसी से अंबर में।
  • आभा सी उजारी लगै।
  • बाल कल्पना के – से पाले।
  • आवाज से राख जैसा कुछ गिरता हुआ।
  • हाय फूल सी कोमल बच्ची , हुई राख की ढेरी  थी।
  • यह देखिये , अरविन्द – शिशु वृन्द कैसे सो रहे।
  • मुख बाल रवि सम  लाल होकर ज्वाला – सा हुआ  बोधित।

5. रूपक अलंकार

जहां गुण की अत्यंत समानता के कारण उपमेय में उपमान का भेद आरोप कर दिया जाए वहाँ रूपक अलंकार होता है। इसमें वाचक शब्द का प्रयोग नहीं होता।

उदाहरण

=> मैया मै  तो चंद्र खिलोना  लेहों।

यहाँ चन्द्रमा उपमेय / प्रस्तुत अलंकार है ,खिलौना उपमान / अप्रस्तुत अलंकार है।

=> चरण – कमल बन्दों हरि राई।

चरण  – उपमेय / प्रस्तुत अलंकार  और  कमल – उपमान / अप्रस्तुत अलंकार।

” बीती विभावरी जाग री 

  अम्बर पनघट में डुबो रही 

  तारा घट उषा नागरी ” 

तारा – उपमेय / प्रस्तुत अलंकार

घट – उपमान / अप्रस्तुत अलंकार।

” उदित उदय गिरि मंच पर , रघुवर बाल पतंग। 

विकसे संत सरोज सब , हरषे लोचन भृंग। “

सांगोपांग रूपक अलंकार का सर्वश्रेष्ठ उदहारण है।

6  उत्प्रेक्षा अलंकार ( Utpreksha alankar )

जहां रूप , गुण आदि समानता के कारण उपमेय में उपमान की संभावना या कल्पना की जाए वहां उत्प्रेक्षा अलंकार होता है।

इसके वाचक शब्द -> मनु , मानो ,ज्यों ,जानो ,जानहु, आदि

उदाहरण 

कहती हुई यो उतरा के नेत्र जल से भर गए।

हिम के कणो से पूर्ण मानो हो गए पंकज नए। ।

उतरा के नेत्र  – उपमेय / प्रस्तुत अलंकार है। ओस युक्त जल – कण पंकज – उपमान / अप्रस्तुत अलंकार है।

उदाहरण 

सोहत ओढ़े पीत पैट पट ,स्याम सलौने गात।

मानहु नीलमणि सैल  पर , आपत परयो प्रभात। ।

स्याम सलौने गात – उपमेय / प्रस्तुत अलंकार

आपत परयो प्रभात  -उपमान / अप्रस्तुत अलंकार।

उत्प्रेक्षा अलंकार के चार भेद हैं १ वस्तुप्रेक्षा २ हेतुप्रेक्षा ३ फलोत्प्रेक्षा ४ लूपोत्प्रेक्ष

१ वस्तुप्रेक्षा

के अंतर्गत किसी रूप में वस्तु में उपमान की संभावना का ज्ञान होता है जैसे मुख मानो चंद्रमा है अतः यहां पर संभावना की जा रही है।

२ हेतुप्रेक्षा

इसके अंतर्गत वाक्य में संभावना, कारण, हेतु का ज्ञान होता है।

३ फलोत्प्रेक्षा

जहां कर्म किसी फल के उद्देश्य या उसकी प्राप्ति के लिए किया जाता है वहां फलोत्प्रेक्षा माना जाता है।

४ लूपोत्प्रेक्ष

जहां संभावना प्रकट की जाती हो जिसके लिए मानो, जानो, मनु. जनु, जानहु जैसे शब्दों का प्रयोग किया जाता है वहां लूपोत्प्रेक्ष होता है।

7.  मानवीकरण अलंकार ( Maanvikaran alankar )

जहां जड़ प्रकृति निर्जीव पर मानवीय भावनाओं तथा क्रियाओं का आरोप हो वहां मानवीकरण अलंकार होता है।

उदाहरण

=> दिवसावसान का समय

मेघमय आसमान से उतर रही है

वह संध्या सुन्दरी , परी सी। ।

=> बीती विभावरी जाग री

अम्बर पनघट में डुबो रही

तारा घट उषा नागरी।

8  पुनरुक्ति अलंकार ( Punrukti alankar )

काव्य में जहां एक शब्द की क्रमशः आवृत्ति है पर अर्थ भिन्नता न हो वहाँ  पुनरूक्ति प्रकाश  अलंकार  होता है / माना जाता है।

उदाहरण ->

१  सूरज है जग का बूझा – बूझा

२  खड़ – खड़ करताल बजा

३  डाल – डाल अलि – पिक के गायन का बंधा समां।

9  अतिश्योक्ति अलंकार ( Atishyokti alankar )

जहां बहुत बढ़ा – चढ़ा कर लोक सीमा से बाहर की बात कही जाती है वहाँ अतिश्योक्ति अलंकार माना जाता है।

अतिशय + उक्ति बढ़ा चढ़ा कर कहना

उदाहरण

=> हनुमान के पूँछ में लग न सकी आग

लंका सिगरी जल गई , गए निशाचर भाग।

=> पद पाताल  शीश अज धामा ,

अपर लोक अंग अंग विश्राम।

भृकुटि विलास भयंकर काला नयन दिवाकर

कच धन माला। ।

10  अन्योक्ति अलंकार ( Anyokti alankar )

अप्रस्तुत के माध्यम से प्रस्तुत का वर्णन करने वाले काव्य अन्योक्ति अलंकार कहलाते है।

उदाहरण 

  • माली आवत देख के ,कलियाँ करे पूकार। फूल – फूल चुन  लिए काल्हे हमारी बार
  •  जिन दिन देखे वे कुसुम, गई सुबीति बहार। अब अलि रही गुलाब में, अपत कँटीली डार
  • इहिं आस अटक्यो रहत, अली गुलाब के मूल अइहैं फेरि बसंत रितु, इन डारन के मूल।
  • भयो सरित पति सलिल पति, अरु रतनन की खानि। कहा बड़ाई समुद्र की, जु पै न पीवत पानि।

यह भी जरूर पढ़ें 

नीचे आपको व्याकरण के सभी लेख मिलेंगे जिन्हें आप क्लिक करके पढ़ सकते हैं। हर एक व्याकरण के अंग पर संपूर्ण जानकारी देने का प्रयास किया गया है इसलिए आपको एक बार अवश्य सभी लेखों को पढ़ लेना चाहिए।

क्रिया की परिभाषा, भेद, उदाहरण

पद परिचय

स्वर और व्यंजन की परिभाषा

संपूर्ण पर्यायवाची शब्द

हिंदी मुहावरे अर्थ एवं उदाहरण सहित

लोकोक्तियाँ अर्थ एवं उदाहरण सहित

वचन

विलोम शब्द

वर्ण किसे कहते है

हिंदी वर्णमाला

हिंदी काव्य ,रस ,गद्य और पद्य साहित्य का परिचय।

शब्द शक्ति हिंदी व्याकरण

छन्द विवेचन

Hindi alphabets

हिंदी व्याकरण , छंद ,बिम्ब ,प्रतीक।

अभिव्यक्ति और माध्यम

शब्द और पद में अंतर

अक्षर की विशेषता

भाषा स्वरूप तथा प्रकार

बलाघात के प्रकार उदहारण परिभाषा आदि

लिपि हिंदी व्याकरण

भाषा लिपि और व्याकरण

शब्द किसे कहते हैं

इन लेखों के द्वारा हमने लगभग सभी विषयों को विस्तृत रूप से समझा दिया है। परंतु अगर तब भी कोई विषय हमारे द्वारा समझाना रह गया हो तो आप हमें कमेंट बॉक्स में सूचित कर सकते हैं और बता सकते हैं कि आपको किस विषय के ऊपर जानकारी चाहिए।

आपके प्रयास के लिए अलंकार निहित वाक्य

इस लेख के माध्यम से आपने अलंकार का बारीकी से अध्ययन किया।

अब वक्त है आत्मनिरक्षण/स्वमूल्यांकन का। यहां पर आपके लिए नीचे अलंकार निहित वाक्य हैं। आपको यह पहचानना है कि इसमें कौन सा अलंकार है और उसके बाद आपको नीचे कमेंट बॉक्स में कमेंट करना है। अगर आपको समझ में आ जाता है तो आप कमेंट करें और अगर आपको उसमें कोई परेशानी नजर आती है और आप उसे पहचान पाने में असमर्थ रहते हैं तब भी आप नीचे हम से पूछ सकते हैं हम उसका उत्तर आपको वहां लिखकर दे देंगे।

यहां से प्रारंभ

  • –    हंसा केलि कराहिं।
  • – मुक्ताफल मुक्ता चुगैं।
  • – कहे कबीर सो  जीवता।
  • –  मैं मस्जिद , काबे कैलाश , कोने क्रिया – कर्म , तो तुरतै , कहे कबीर , सब सांसो की सांस में।
  • – जागे जुगति ,  कूड कपट काया का निकस्या , जो जल , कहे कबीर।
  • -निर्भय होई के हरि बजे सोई संत सुजान
  • – खा – खाकर कुछ पाएगा नहीं।
  • – बसों ब्रज गोकुल गांव के ग्वारन।
  • – चरों नित नंद की धेनु मँझारन।
  • –  कालिंदी कूल कदंब की डारन।
  • – नवौ निधि के सुख , ब्रज के बन  भाग तगाड़ निहारौं।
  • – कोटिक ए कलधैत के घाम करील के कुंजन ऊपर वारौ।
  • – लै  लकुटी , गोधन गवारिन , सब स्वाँग , सब स्वाँग  , मुरली मुरलीधर।
  • – करुणा क्यों , कल्पना काली , काल कोठरी , काली , कमली का।
  • – हिल हरित रुधिर है रहा झलक।
  • – नभ पर चिर निर्मल नील फलक।
  • – छीमियाँ  छिपाए , फूल फिरत  हों  फूल स्वयं , झरबेरी झुली।
  • – हंसमुख हरियाली हिम  – आतप।
  • – सुख से अलसाए से सोए।
  • – जिस पर नीलम नभ  आच्छादन।
  • – फूल – फूल , चतुर चिड़िया , दूर दिशाओं , कांटेदार कुरूप।
  • पुरइन  पात रहत , ज्यौं  जल , मन की मन ही मांझ ,
    संदेसनि  सुनी – सुनी , बिरहिनी बिरह दही , घीर घरहिं ,
    हमारे हरि हारिल , नंद – नंदन , करुई  ककड़ी ,
    हरी है,  समाचार सब , गुरु ग्रंथ , बढ़ी  बुद्धि जानी जो।
  • आयसु  काह  कहिअ  किन मोही।
  • सेवक सो , अरिकरनी करि करिअ , सहसबाहु सम सो,
    बिलगाउ , बिहाइ , सकल संसार।

कुछ शब्द 

मनुष्य सौंदर्य प्रिय प्राणी है। बच्चे सुंदर खिलौनों की ओर आकृष्ट होते हैं। युवक – युवतियों के सौंदर्य पर मुग्ध  होते हैं। प्रकृति के सुंदर दृश्य सभी को अपनी ओर आकृष्ट करते हैं। मनुष्य अपनी प्रत्येक वस्तु को सुंदर रुप में देखना चाहता है , उसकी इच्छा होती है कि उसका सुंदर रूप हो उसके वस्त्र सुंदर हो आदि आदि।

सौंदर्य ही नहीं, मनुष्य सौंदर्य वृद्धि भी चाहता है और उसके लिए प्रयत्नशील रहता है , इस स्वाभाविक प्रवृत्ति के कारण मनुष्य जहां अपने रुप – वेश , घर आदि के सौंदर्य को बढ़ाने का प्रयास करता है , वहां वह अपनी भाषा और भावों के सौंदर्य में वृद्धि करना चाहता है। उस सौंदर्य की वृद्धि के लिए जो साधन अपनाए गए , उन्हें ही अलंकार कहते हैं। उनके रचना में सौंदर्य को बढ़ाया जा सकता है , पैदा नहीं किया जा सकता।

” काव्यशोभा करान धर्मानअलंकारान प्रचक्षते ।”  

अर्थात वह कारक जो काव्य की शोभा बढ़ाते हैं अलंकार कहलाते हैं। अलंकारों के भेद और उपभेद की संख्या काव्य  शास्त्रियों के अनुसार सैकड़ों है। लेकिन पाठ्यक्रम में छात्र स्तर के अनुरूप यह कुछ मुख्य अलंकारों का परिचय व प्रयोग ही अपेक्षित है।

facebook page hindi vibhag

YouTUBE

इस लेख को अंत तक पढ़ने के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद।

मुख्यतः अलंकार के कितने भेद होते है?

भारतीय साहित्य में अनुप्रास, उपमा, रूपक, अनन्वय, यमक, श्लेष, उत्प्रेक्षा, संदेह, अतिशयोक्ति, वक्रोक्ति आदि प्रमुख अलंकार हैं।

रूपक अलंकार कितने प्रकार के होते हैं?

रूपक के दस भेद ये हैं—नाटक प्रकरण, भाण, व्यायोग, समवकार, डिम, ईहामृग, अंक, वीथी और प्रहसन। ९.

अलंकार के कितने भेद होते हैं class 8?

(i) अनुप्रास अलंकार.
(ii) यमक अलंकार.
(iii) श्लेष अलंकार.
(i) उपमा अलंकार.
(ii) रूपक अलंकार.
(iii) उत्प्रेक्षा अलंकार.
(iv) अतिशयोक्ति अलंकार.
(v) मानवीकरण.

अलंकार के कितने भेद होते हैं Class 10?

अलंकार के मुख्यतः दो भेद होते हैं :.
शब्दालंकार.
अर्थालंकार.