मकबूल को बड़ौदा के बोर्डिंग स्कूल में क्यों भेजा गया - makabool ko badauda ke bording skool mein kyon bheja gaya

NCERT Solutions for Class 11 Hindi (Antral) term-II Summary : Chapter-2 Hussain ki kahani apni zubani

लेखक

– मकबूल फ़िदा हुसैन

हुसैन जैसे कि आप जानते हैं मकबूल फ़िदा हुसैन भारत के बहुत बड़े चित्रकार रहे हैं और यह कहानी मकबूल फ़िदा हुसैन के बारे में ही लिखी गई है। अब कहानी इस प्रकार है। मकबूल के दादा चल बसे तो मकबूल के पिता ने सोचा क्यों ना उसे बड़ौदा के बोर्डिंग स्कूल में दाखिल करा दिया जाए। मकबूल हमेशा अपने दादा के ही कमरे में बंद रहता था , तथा उनके बिस्तर में ही सोता था। मकबूल के पिता ने मकबूल को बड़ौदा के बोर्डिंग स्कूल में भेजने का निर्णय लिया। मकबूल को बोर्डिंग स्कूल में भेजने के पीछे मकबूल के पिता का धार्मिक संस्कार डालने का उद्देश्य भी था। मकबूल के पिता ने मकबूल को उनके चाचा के हवाले करके बड़ौदा छोड़ आने के लिए हिदायत दी। मकबूल के पिता ने सोचा कि वहां से मकबूल को तहजीब भी आ जाएगी। बड़ौदा महाराजा सियाजीराव गायकवाड का साफ-सुथरा शहर है। ‘हिज हाईनेस’ की पांच धातु से बनी मूर्ति , शानदार घोड़े पर सवार ‘दौलते बरतानिया’ के मेडेल लटकाए , सीना ताने हुए दूर से ही दिखाई देती है।

मकबूल को बड़ौदा के बोर्डिंग स्कूल में क्यों भेजा गया - makabool ko badauda ke bording skool mein kyon bheja gaya
मकबूल फ़िदा हुसैन की कुछ चित्रकारी

वहां मदरसा हुसामिया , सिंह बाई माता रोड , गैडी गेट। तालाब किनारे सुलेमानी जमात का बोर्डिंग स्कूल। यह हकीम अब्बास की देख-रेख में चलता है।

वे नेशनल कांग्रेस और गांधी जी के अनुयाई थे ‚ इसीलिए छात्रों के मूढ़े सिरों पर गांधी टोपी और बदन पर खादी का कुर्ता-पयजामा रहता था। वहां के मौलवी अकबर धार्मिक विद्वान , कुरान और उर्दू साहित्य के उस्ताद। केशवलाल गुजराती जवान के क्लास टीचर। स्काउट मास्टर , मेजर अब्दुल्ला पठान। गुलजमा खान बैंड मास्टर। बावर्ची गुलाम की रोटियों और बीवी नरगिस का सालन गोश्त। खाने को मिलता था

बोर्डिंग स्कूल में मकबूल के छः दोस्त बने। दो साल तक उनकी दोस्ती रही। फिर सभी अलग-अलग दिशाओं में चले गए। एक दोस्त डभोई अत्तर का व्यापारी बना , दूसरा दोस्त रेडियो सियाजी की आवाज बन गया , तीसरा दोस्त कराची का नागरिक , तो चौथा दोस्त मोती की तलाश में कुवैत पहुंचा। पांचवा दोस्त पहुंचा मुंबई और फिर उसने अपना कोट पतलून और पीली धारी की टाई उतार फेंकी , और अबा-कबा पहन मस्जिद का मेंबर बन गया , छठा दोस्त उड़ने वाले घोड़े पर सवार होकर कलाकार बनकर दुनिया में घूम रहा है।

अब जो मकबूल फ़िदा हुसैन के पाँच दोस्त थे उनका परिचय इस प्रकार है

पहला दोस्त मोहम्मद इब्राहिम गौहर अली-डभोई के अत्तर , छोटे कद , ठहरी हुई नजरें अंबर और मूश्क के अत्तर में डूबे , गुणों के भंडार।

दूसरा दोस्त डॉक्टर मनव्वरी का लड़का अरशद- हमेशा हंसता चेहरा,खाने और गाने का शौकीन, भरा लेकिन कसा पहलवानी जिस्म।

तीसरा दोस्त हामिद कंबर हुसैन-शौक, कुश्ती और दंड बैठक, खुश-मिजाज, गप्पी , बात में बात मिलाने में उस्ताद।

चौथा दोस्त अब्बासजी अहमद ताकतवर जिस्म, खुला रंग, कुछ-कुछ जापानी खींची सी आंखें, स्वभाव से बिजनेसमैन, हंसने का अंदाज दिलकश।

पांचवा अब्बास अली फिदा-बहुत नरम लहजा , चेहरे पर ऊंचा माथा , समय का पाबंद , खामोश तबीयत , हाथों से किताब शायद ही कभी छुटी हो।

स्कूल का वार्षिकोत्सव था। इस अवसर पर सब मुगलवाडे के मशहूर फोटोग्राफर लोकमानी आय। केवल खास मेहमानों को बुलावा दिया गया। उस्तादों का ग्रुप फोटोग्राफ खिंचवा रहा था। मकबूल ने चालाकी से बिना उस्तादों की इजाजत लिए कई फोटो खिंचवाई। मकबूल ने खेलकूद में हिस्सा लिया और वहां पर हाई जंप में पहला इनाम जीत लिया।

दो अक्टूबर को गांधीजी की सालगिरह पर मकबूल ने क्लास में ब्लैक बोर्ड पर गांधी जी का चित्र बना दिया। अब्बास तैयबजी बहुत खुश हुए और मौलवी अकबर ने मकबूल को दश मिनट का भाषण तैयार करवाया।

रानीपुर बाजार में चाचा मुरादअली के लिए उसके बड़े भाई फ़िदा ने एक जनरल स्टोर की दुकान खोलवा दी। फिदा ‘मालवा टेक्सटाइल’ में टाइपकीपर थे ही मगर व्यापार में दिलचस्पी रखते थे। मकबूल को छुट्टी के दिन भी दुकान पर बैठने के लिए भेजा जाता था , ताकि वह शुरू से ही बिजनेस की गुण सीख ले। छोटे भाई मुरादअली से पहलवानी छुड़वाकर दुकान लगवाई। मकबूल उन दुकानों पर बैठा मगर सारा ध्यान चित्रकारी और स्केच बनाने में रहता था

वह जनरल स्टोर के सामने से गुजरने वाली घूंघट ताने , गेहूं की बोरी उठाएं , मजदूर की पेचवाली पगड़ी का स्केच , पठान की दाढ़ी और माथे पर सीजदे के निशान , बुर्खा पहने हुए औरतों और बकरी का बच्चा। अक्सर एक मेहतरानी कपड़े धोने का साबुन लेने आया करती। चाचा को देखते ही उसका घूंघट उठ जाता और मकबूल की नाक पकड़कर खिलखिला उठती। मकबूल ने उसके कई स्केच बनाए।

अब्बा तो बेटे को बिजनेसमैन बनाने के सपने देख रहे थे , पर मकबूल का मन तो ऑयल कलर पेंटिंग बनाने में ही लगा रहता था। उसने अपनी किताबें बेचकर ऑयल कलर की ट्यूब खरीदी। अब्बा ने पेंटिंग देखी और बेटे को गले से लगा लिया। मकबूल इंदौर सर्राफा बाजार के करीब तांबे , पीतल की दुकानों की गली में लैंडस्केप के चित्र बना रहा था , वहां बेंद्रे साहब भी ऑनस्पॉट पेंटिंग करते मिले। मकबूल अक्सर बेंद्रे के साथ लैंडस्केप पेंट करने जाया करता था।

दूसरे दिन अब्बा ने मुंबई से ‘विनसर न्यूटन’ ऑयल ट्यूब और कैनवस मंगवाया और मकबूल को दे दिया। यह सोचकर ताज्जुब भी होता है , कि काजी और मौलवीयो के पड़ोस में एक बाप कैसे अपने बेटे को आर्ट की लाइन में जाने के लिए तैयार करने पर राजी हो गया। बाप ने बेटे के लिए तमाम पुरानी परंपराओं को तोड़ दिया और कहा बेटा जाओ और जिंदगी में रंग भर दो।

शब्दार्थ-

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1. मजहबी- धर्म विशेष से संबंध रखने वाला
2. पाकीज़गी- पवित्रता
3. दौलते बरतानिया- अंग्रेजी साम्राज्य का कीमती हिस्सा
4. जमात- समूह
5. बदन- शरीर
6. उस्ताद- गुरु ,विद्वान
7. जबान- भाषा
8. हीले- बहाने, कारण
9. अत्तर- इत्र ,सुगंध
10. अबा-कबा- इस्लाम में धार्मिक पहनावा
11. रकाब- घोड़े की सवारी से जुड़ी वस्तु
12. जिस्म- शरीर
13. दिलकश- मन को लुभाने वाला
14. खामोश तबीयत= गंभीर स्वभाव का , चुप रहने वाला
15. सालाना- वार्षिक
16. जलसा- समारोह
17. जश्न- उत्सव
18. मशहूर- प्रसिद्ध
19. खास- विशेष
20. इजाजत- अनुमति
21. सालगिरह- वर्षगांठ ,जन्मदिन
22. पोट्रेट- हाथ से बनी व्यक्ति विशेष की तस्वीर ,चित्र
23. हुनर कौशल
24. मशरूफ- व्यस्त
25. बामशक्कत- शारीरिक श्रम के साथ कैद
26. आलीशान- भव्य
27. स्केच- चित्र
28. मेहतरानी- सफाई का काम करने वाली
29. सिजदा- माथा टेकना, खुदा के आगे सिर झुकाना
30. इश्तिहार- विज्ञापन
31. सर्राफा बाजार सोने- चांदी के आभूषण से संबंधित बाजार
32. टिटेन्ड पेपर- चित्रकला में प्रयुक्त होने वाला कागज
33. इत्तेफाकी- संयोगवश
34. फ्रेंच इंप्रेशन- फ्रांसीसी प्रभाव
35. रियलिज्म- यथार्थवाद
36. एक्सप्रेशनिस्ट- प्रभाववादी
37. अजीज- प्रिय
38. ताज्जुब – आश्चर्य
39. इक्तियार- स्वीकार करना
40. राजी- तैयार
41. रोशनख्याली- खुले विचार
42. नजरअंदाज- ध्यान ना देना
43. रियायती- पारंपरिक
44. बंदिश- रुकावट ‚ बंधन
45. तालीम- शिक्षा
46. सालन- सोबर , रमदार

मकबूल को बोर्डिंग स्कूल क्यों भेजा गया?

उत्तर: मकबूल के पिता उनसे बहुत अधिक प्रेम करते थे। मकबूल के दादा जी की मृत्यु के बाद मकबूल के पिता को उनकी चिंता सताने लगी उन्होंने सोचा कि उनका पुत्र किसी शोक में ना चला जाए इसीलिए उन्होंने उसे बोर्डिंग स्कूल भेज दिया ताकि वह दूसरे बच्चों के साथ रहे और उसका मन भी लग जाए। उनके पिता उनकी प्रतिभा की कद्र करते थे।

2 मकबूल को बड़ौदा के बोर्डिंग स्कूल में क्यों भेजा गया आपकी दृष्टि में क्या उसे वहाँ भेजना सही था ?`?

मकबूल हमेशा अपने दादा के ही कमरे में बंद रहता था , तथा उनके बिस्तर में ही सोता थामकबूल के पिता ने मकबूल को बड़ौदा के बोर्डिंग स्कूल में भेजने का निर्णय लिया। मकबूल को बोर्डिंग स्कूल में भेजने के पीछे मकबूल के पिता का धार्मिक संस्कार डालने का उद्देश्य भी था

बोर्डिंग स्कूल में मकबूल की मित्रता किन किन के साथ हुई विस्तार से लिखिए?

मकबूल के पिता ने देखा कि दादा की मृत्यु के दुख से उनका बेटा निकल नहीं पा रहा है। उन्होंने उसके साथ सख्ती से काम नहीं लिया। उन्होंने उसका दाखिला बोर्डिंग में करवा दिया। इस परिवर्तन ने लेखक को दादा के दुख को भुलाने में सहायता की।

किसकी चित्रकारी करने के लिए मकबूल ने बचपन में स्कूल की अपनी किताबें बेच दी थी?

एक बार 'सिंघगढ़' फिल्म का पोस्टर देखकर मकबूल को ऑयल पेंटिंग बनाने का विचार आया। उसने अपनी किताबें बेंचकर ऑयल पेंटिंग कलर खरीदा तथा अपनी पहली पेंटिंग बनाई।