लुट्टन सिंह का गुरु कौन था? - luttan sinh ka guru kaun tha?

गाँव में महामारी फैलने और अपने बेटों के देहांत के बावजूद लुट्टन पहलवान ढोल क्यों बजाता रहा?


गाँव में महामारी फैलने और अपने बेटों के देहांत के बावजूद लुट्टन पहलवान ढोल इसलिए बजाता रहा ताकि वह अपनी हिम्मत न टूटने का पता लोगों को दे सके। वह अंतिम समय तक अपनी बहादुरी और दिलेरी का परिचय देना चाहता था। ढोल के साथ उसके हृदय का नाता जुड़ गया था।

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लुट्टन पहलवान ने ऐसा क्यों कहा होगा कि मेरा गुरु कोई पहलवान नहीं, यही ढोल है?


लुट्टन का कोई गुरु नहीं था। उसने पहलवानों के दाँव-पेंच स्वयं सीखे थे। जब वह दंगल देखने गया तो ढोल की थाप ने उसमें जोश भर दिया था। इसी ढोल की थाप पर उसने चाँद सिंह पहलवान को चुनौती दे डाली थी और उसे चित कर दिखाया था। ढोल की थाप से उसे ऊर्जा मिली और वह जीत गया। इसी कारण ववहढोल को ही अपना गुरु कहता था। ढोल की थाप ने ही उसे पहलवानों के गुरु सिखाए-समझाए थे अत: वह ढोल को बहुत महत्त्व देता था। लुट्टन पहलवान ने ऐसा इसलिए कहा होगा ताकि वह अपने पहलवान बेटों को ढोल के बोलों में छिपे अर्थ को समझना सिखा सके। यह सच भी था कि लुट्टन ने किसी गुरु से पहलवानी नहीं सीखी थी। उसने तो ‘शेर के बच्चे’ अर्थात् चाँद पहलवान को पछाड़ने के लिए ढोल के बोलों (ध्वनि में छिपे अर्थ) से ही प्रेरणा ली थी। हाँ, इतना अवश्य था कि वह इन आवाजों का मतलब पढ़ना जान गया था। ढोल की आवाज ‘धाक-धिना, तिरकट…तिना चटाक् चट् धा धिना-धिना, धिक-धिना’ जैसी प्रेरणाप्रद ध्वनि ने ही उसे चाँद को पछाड़ने का तरीका समझाया था। अत: वह ढोल को बहुत महत्त्व देता था।

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कुश्ती या दंगल पहले लोगों और राजाओं का प्रिय शौक हुआ करता था। पहलवानों को राजा एवं लोगों के द्वारा विशेष सम्मान दिया जाता था।

(क) ऐसी स्थिति अब क्यों नहीं है?

(ख) इसकी जगह अब किन खेलों ने ले ली है?

(ग) कुश्ती को फिर से प्रिय खेल बनाने के लिए क्या-क्या कार्य किए जा सकते हैं?


(क) अब कोई राजा या रियासत नहीं है।

(ख) हाँकी, क्रिकेट और फुटबॉल।

(ग) गाँवों में कुश्ती को बढ़ावा दिया जाना चाहिए। पहलवानों को आवश्यक सामग्री उपलब्ध कराई जानी चाहिए।

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ढोलक की आवाज़ का पूरे गाँव पर क्या असर होता था?


ढोलक की आवाज़ ही रात्रि की विभीषिका को चुनौती देती सी जान पड़ती थी। पहलवान संध्या से सुबह तक चाहे जिस ख्याल से ढोलक बजाता हो पर ढोलक की आवाज गाँव के अर्धमृत औषधि-उपचार-पथ्य विहीन प्राणियों में संजीवनी शक्ति भरने का काम करती थी। ढोलक की आवाज सुनते ही बूढ़े-बच्चे-जवानों की कमजोर आँखों के सामने दंगल का दृश्य नाचने लगता था। तब उन लोगों के बेजान अंगों में भी बिजली दौड़ जाती थी। यह ठीक है कि ढोलक की आवाज में बुखार को दूर करने की ताकत न थी और न महामारी को रोकने की शक्ति थी पर उसे सुनकर मरते हुए प्राणियों को अपनी आँखें मूँदते समय (प्राण छोड़ते समय) कोई तकलीफ नहीं होती थी। तब वे मृत्यु से नहीं डरते थे।ड

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महामारी फैलने के बाद गाँव में सूर्योदय और सूर्यास्त के दृश्य में क्या अंतर होता था?


महामारी फैलने के बाद गाँव में सूर्योदय होते ही लोग काँखते-कूँखते-कराहते अपने-अपने घरों से निकलकर अपने पड़ोसियों और आत्मीयों को ढाढ़स देते थे। वे बचे रह गए लोगों को रोकर दु:खी न होने को कहते थे।

सूर्यास्त होते ही लोग अपनी-अपनी झोंपड़ियों में घुस जाते थे और चूँ तक न करते थे। तब उनके बोलने की शक्ति भी जा चुकी होती थी। पास में दम तोड़ते हुए पुत्र को अंतिम बार ‘बेटा’ कहकर पुकारने की हिम्मत माताओं को नहीं होती थी।

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विषयसूची

  • 1 पहलवान का गुरु कौन था?
  • 2 लुट्टन पहलवान ने ऐसा क्यों कहा होगा फक मेरा गुरु कोई पहलिान नहीं यही ढोल है?
  • 3 Lakhan पहलवान ने ढोल को अपना गुरु क्यों कहा?
  • 4 पहलवान का गुरु कौन था और क्यों?

पहलवान का गुरु कौन था?

इसे सुनेंरोकेंउसका गुरु पहलवान बादल सिंह था। तीन ही दिन में उसने पंजाबी व पठान पहलवानों को हरा दिया था। श्यामनगर के दंगल व शिकार-प्रिय वृद्ध राजा साहब उसे दरबार में रखने की सोच रहे थे कि लुट्टन ने शेर के बच्चे को चुनौती दे दी।

लुट्टन पहलवान ने ऐसा क्यों कहा होगा फक मेरा गुरु कोई पहलिान नहीं यही ढोल है?

इसे सुनेंरोकेंउत्तर:- लुट्टन ने कुश्ती के दाँव-पेंच किसी गुरु से नहीं बल्कि ढोल की आवाज से सीखे थे। ढोल से निकली हुई ध्वनियाँ उसे दाँव-पेच सिखाती हुई और आदेश देती हुई प्रतीत होती थी। इसलिए लुट्टन पहलवान ने ऐसा कहा होगा कि मेरा गुरु कोई पहलवान नहीं, यही ढोल है।

इसे सुनेंरोकेंइसी ढोल की थाप पर उसने चाँद सिंह पहलवान को चुनौती दे डाली थी और उसे चित कर दिखाया था। ढोल की थाप से उसे ऊर्जा मिली और वह जीत गया। इसी कारण ववहढोल को ही अपना गुरु कहता था। ढोल की थाप ने ही उसे पहलवानों के गुरु सिखाए-समझाए थे अत: वह ढोल को बहुत महत्त्व देता था।

विश्व का सबसे बड़ा पहलवान कौन है?

इसे सुनेंरोकेंगामा पहलवान (उर्दू: گاما پھلوان) का असली नाम ग़ुलाम मुहम्मद बख्श (अंग्रेजी: Ghulam Muhammad Baksh; उर्दू: غلام محمد بٹ) था। दुनिया में अजेय गामा पहलवान का जन्म 22 मई 1878 ई० को अमृतसर, पंजाब में हुआ था, हालांकि इनके जन्म को लेकर विवाद है।

लुट्टन पहलवान ने ऐसा क्यों कहा होगा कि मेरा कोई गुरु नहीां है?

इसे सुनेंरोकेंलुट्टन पहलवान ने ऐसा क्यों कहा होगा कि मेरा गुरु कोई पहलवान नहीं, यही ढोल है? उत्तर:- लुट्टन ने कुश्ती के दाँव-पेंच किसी गुरु से नहीं बल्कि ढोल की आवाज से सीखे थे। ढोल से निकली हुई ध्वनियाँ उसे दाँव-पेच सिखाती हुई और आदेश देती हुई प्रतीत होती थी।

Lakhan पहलवान ने ढोल को अपना गुरु क्यों कहा?

इसे सुनेंरोकेंलुट्टन पहलवान का कोई गुरु नहीं था। जब भी वह ढोल की ध्वनि सुनता तो उसके अंदर स्वतः ही एक जोश भर जाता था और उसके अंग-अंग फड़कने लगते थे। उसे ऐसे लगता कि ऐसे ढोल से निकलने वाली आवाजें उसे कुश्ती के दांव-पेच सिखा रही हैं और उसे कुश्ती लड़ने के लिए आदेश दे रही हैं।

पहलवान का गुरु कौन था और क्यों?

इसे सुनेंरोकेंपहलवान ढोलक को अपना गुरु इसलिए मानता था क्योंकि जब भी उसकी ढोलक की थाप बजती थी, तो उसे असीम ऊर्जा मिलती और वह ढोलक की थाप पर ही पहलवानी का दंगल जीत जाता था। ढोलक की थाप ने ही उसे पहलवानों के गुर सिखाए थे। इसी कारण वह ढोलक को अपना गुरु मानता था।

िुट्टन पहिवान ने ऐसा क्यों िहा कि मेरा गुरु िोई पहिवान नहीं यही ढोि है?

इसे सुनेंरोकेंलुट्टन पहलवान का कोई गुरु नहीं था। ढोल की थाप से उसकी नसें उत्तेजित हो जाती और वह लड़ने के लिए तत्पर हो जाता। इस तरह लुट्टन पहलवान स्वतः ही ढोल की ध्वनि से कुश्ती के दांव-पेच सीखता चला गया, इसलिए पहलवान ने ऐसा कहा होगा कि मेरा गुरु कोई पहलवान नहीं, यही ढोल है।

पहलवान चाँद के गुरु का नाम क्या था?

पहलवानों की कुश्ती व दाँव-पेंच देखकर उसने 'शेर के बच्चे' को चुनौती दे डाली। 'शेर के बच्चे' का असली नाम था-चाँद सिंह। उसका गुरु पहलवान बादल सिंह था

पहलवान का गुरु कौन था और क्यों?

पहलवान ढोलक को अपना गुरु इसलिए मानता था क्योंकि जब भी उसकी ढोलक की थाप बजती थी, तो उसे असीम ऊर्जा मिलती और वह ढोलक की थाप पर ही पहलवानी का दंगल जीत जाता था। ढोलक की थाप ने ही उसे पहलवानों के गुर सिखाए थे। इसी कारण वह ढोलक को अपना गुरु मानता था

लुट्टन लुट्टन सिंह कैसे बना?

एक बार लुट्टन श्यामनगर मेला देखने गया जहाँ ढोल की आवाज और कुश्ती के दाँवपेंच देखकर उसने जोश में आकर नामी पहलवान चाँदसिंह को चुनौती दे दी | ढोल की आवाज से प्रेरणा पाकर लुट्टन ने दाँव लगाकर चाँद सिंह को पटककर हरा दिया और राज पहलवान बन गया | उसकी ख्याति दूर-दूर तक फ़ैल गयी| १५ वर्षों तक पहलवान अजेय बना रहा| उसके दो पुत्र ...

लुट्टन सिंह को किसकी उपाधि प्राप्त हुई?

वह पहले ही 'शेर के बच्चे' की उपाधि प्राप्त कर चुका था। लुट्टन पहली बार दंगल लड़ा था, इसलिए राजा साहब ने कुश्ती बीच में रुकवा दी। (घ) राजा साहब ने लुट्टन को दस रुपये का नोट दिया, उसकी हिम्मत की प्रशंसा की तथा मेला देखकर घर जाने के की नसीहत दी।