लुट्टन पहलवान ने ऐसा क्यों कहा कि मेरा गुरु और कोई नहीं बल्कि यही ढोलक है? - luttan pahalavaan ne aisa kyon kaha ki mera guru aur koee nahin balki yahee dholak hai?

कुश्ती या दंगल पहले लोगों और राजाओं का प्रिय शौक हुआ करता था। पहलवानों को राजा एवं लोगों के द्वारा विशेष सम्मान दिया जाता था।

(क) ऐसी स्थिति अब क्यों नहीं है?

(ख) इसकी जगह अब किन खेलों ने ले ली है?

(ग) कुश्ती को फिर से प्रिय खेल बनाने के लिए क्या-क्या कार्य किए जा सकते हैं?


(क) अब कोई राजा या रियासत नहीं है।

(ख) हाँकी, क्रिकेट और फुटबॉल।

(ग) गाँवों में कुश्ती को बढ़ावा दिया जाना चाहिए। पहलवानों को आवश्यक सामग्री उपलब्ध कराई जानी चाहिए।

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लुट्टन पहलवान ने ऐसा क्यों कहा होगा कि मेरा गुरु कोई पहलवान नहीं, यही ढोल है?


लुट्टन का कोई गुरु नहीं था। उसने पहलवानों के दाँव-पेंच स्वयं सीखे थे। जब वह दंगल देखने गया तो ढोल की थाप ने उसमें जोश भर दिया था। इसी ढोल की थाप पर उसने चाँद सिंह पहलवान को चुनौती दे डाली थी और उसे चित कर दिखाया था। ढोल की थाप से उसे ऊर्जा मिली और वह जीत गया। इसी कारण ववहढोल को ही अपना गुरु कहता था। ढोल की थाप ने ही उसे पहलवानों के गुरु सिखाए-समझाए थे अत: वह ढोल को बहुत महत्त्व देता था। लुट्टन पहलवान ने ऐसा इसलिए कहा होगा ताकि वह अपने पहलवान बेटों को ढोल के बोलों में छिपे अर्थ को समझना सिखा सके। यह सच भी था कि लुट्टन ने किसी गुरु से पहलवानी नहीं सीखी थी। उसने तो ‘शेर के बच्चे’ अर्थात् चाँद पहलवान को पछाड़ने के लिए ढोल के बोलों (ध्वनि में छिपे अर्थ) से ही प्रेरणा ली थी। हाँ, इतना अवश्य था कि वह इन आवाजों का मतलब पढ़ना जान गया था। ढोल की आवाज ‘धाक-धिना, तिरकट…तिना चटाक् चट् धा धिना-धिना, धिक-धिना’ जैसी प्रेरणाप्रद ध्वनि ने ही उसे चाँद को पछाड़ने का तरीका समझाया था। अत: वह ढोल को बहुत महत्त्व देता था।

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ढोलक की आवाज़ का पूरे गाँव पर क्या असर होता था?


ढोलक की आवाज़ ही रात्रि की विभीषिका को चुनौती देती सी जान पड़ती थी। पहलवान संध्या से सुबह तक चाहे जिस ख्याल से ढोलक बजाता हो पर ढोलक की आवाज गाँव के अर्धमृत औषधि-उपचार-पथ्य विहीन प्राणियों में संजीवनी शक्ति भरने का काम करती थी। ढोलक की आवाज सुनते ही बूढ़े-बच्चे-जवानों की कमजोर आँखों के सामने दंगल का दृश्य नाचने लगता था। तब उन लोगों के बेजान अंगों में भी बिजली दौड़ जाती थी। यह ठीक है कि ढोलक की आवाज में बुखार को दूर करने की ताकत न थी और न महामारी को रोकने की शक्ति थी पर उसे सुनकर मरते हुए प्राणियों को अपनी आँखें मूँदते समय (प्राण छोड़ते समय) कोई तकलीफ नहीं होती थी। तब वे मृत्यु से नहीं डरते थे।ड

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महामारी फैलने के बाद गाँव में सूर्योदय और सूर्यास्त के दृश्य में क्या अंतर होता था?


महामारी फैलने के बाद गाँव में सूर्योदय होते ही लोग काँखते-कूँखते-कराहते अपने-अपने घरों से निकलकर अपने पड़ोसियों और आत्मीयों को ढाढ़स देते थे। वे बचे रह गए लोगों को रोकर दु:खी न होने को कहते थे।

सूर्यास्त होते ही लोग अपनी-अपनी झोंपड़ियों में घुस जाते थे और चूँ तक न करते थे। तब उनके बोलने की शक्ति भी जा चुकी होती थी। पास में दम तोड़ते हुए पुत्र को अंतिम बार ‘बेटा’ कहकर पुकारने की हिम्मत माताओं को नहीं होती थी।

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गाँव में महामारी फैलने और अपने बेटों के देहांत के बावजूद लुट्टन पहलवान ढोल क्यों बजाता रहा?


गाँव में महामारी फैलने और अपने बेटों के देहांत के बावजूद लुट्टन पहलवान ढोल इसलिए बजाता रहा ताकि वह अपनी हिम्मत न टूटने का पता लोगों को दे सके। वह अंतिम समय तक अपनी बहादुरी और दिलेरी का परिचय देना चाहता था। ढोल के साथ उसके हृदय का नाता जुड़ गया था।

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लोटन पहलवान ने ऐसा क्यों कहा होगा कि मेरा गुरु कोई पहलवान नहीं है?

लुट्टन पहलवान ने ऐसा क्यों कहा होगा कि मेरा गुरु कोई पहलवान नहीं, यही ढोल है? उत्तर:- लुट्टन ने कुश्ती के दाँव-पेंच किसी गुरु से नहीं बल्कि ढोल की आवाज से सीखे थे। ढोल से निकली हुई ध्वनियाँ उसे दाँव-पेच सिखाती हुई और आदेश देती हुई प्रतीत होती थी।

लुटून पहलवान ने ढोल को अपना गुरू क्यों कहा?

लुट्टन पहलवान जब पहली बार पहलवानी करने दंगल में जाता है, तो एकमात्र ढोल की आवाज़ होती है, जो उसे अपना साहस बढ़ाती नज़र आती है। ढोल की हर थाप में वह एक निर्देश सुनता है, जो उसे अगला दाँव खेलने के लिए प्रेरित करती है। यही कारण है कि लुट्टन पहलवान ढोल को अपना गुरु मानता है।

राजा ने लुट्टन ने क्या कहा?

राजा ने लुट्टन पहलवान से कहा, जीते रहो बहादुर तुमने मिट्टी की लाज रख ली। ✎... 'पहलवान' की ढोलक कहानी में ये घटना उस समय की है, जब लुट्टन पहलवान ने चाँद सिंह पहलवान को पराजित किया था। तब राजा ने खुश होकर लुट्टन पहलवान को गले से लगाकर ये बात कही और फिर अपने दरबार में लुट्टन पहलवान को रख लिया।

पहलवान की ढोलक कहानी में किस किस मोड़ पर लुट्टन के जीवन में क्या क्या परिवर्तन आए?

कहानी के आरंभ में लुट्टन के माता-पिता चल बसे। सास ने उसका पालन-पोषण किया। कहानी के मध्य में किशोर अवस्था में दंगल जीतकर वह मशहूर पहलवान बन गया। उसकी इस ख्याति ने उसके जीवन को सरल बना दिया।