Bihar Board Class 9 Hindi Book Solutions Godhuli Bhag 1 गद्य खण्ड Chapter 9 रेल-यात्रा Text Book Questions and Answers, Summary, Notes. Show Bihar Board Class 9 Hindi रेल-यात्रा Text Book Questions and Answersप्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न 3. प्रश्न 4. प्रश्न 5. व्याख्याएँ प्रश्न 6. (ख) “भारतीय रेलें हमें सहिष्णु बनाती हैं। उत्तेजना के क्षणों में शांत रहना सिखाती हैं। मनुष्य की यही प्रगति है।” लेखक ने हमें रेल यात्रा के माध्यम से हमारे भीतर के भाव उत्पन्न होते हैं, उसे सहिष्णुता जो बड़े ही सुन्दर उदाहरण के साथ समझाने की कोशिश किया है। लेखक का कहना है कि जब कहीं गाड़ी रूक जाती है तो मन बेचैन हो जाता है, गाड़ी कहाँ रूकी, हमारी मातृभूमि का कौन-सा स्थान है, ऊपर वाले वर्थ पर बैठे हुए व्यक्तियों के सवालों का खामोशी से सहन करता हूँ, शांत-चित्त रहता हूँ। यह इस मनोवैज्ञानिक तथ्य से रेलयात्रा हमें सहिष्णु बनाती है। (ग) ‘भारतीय रेलें हमें मृत्यु का दर्शन-समझाती हैं और अक्सर पटरी से उत्तरकर उसकी महत्ता का भी अनुभव करा देती हैं। (घ) ‘कई बार मुझे लगता है भारतीय मनुष्य भारतीय रेलों से भी आगे है। आगे-आगे मनुष्य बढ़ रहा है, पीछे-पीछे रेल आ रही है।’ प्रश्न 7. प्रश्न 8. प्रश्न 9. प्रश्न 10. (2) ईश्वर आपकी यात्रा सफल करें। लेखक ने इसमें इतना सुन्दर व्यंग्य किया है कि हम अपनी रेल यात्रा में ईश्वर को भी घसीट लेते हैं क्योंकि उसी के आप भीड़ में जगह बना लेते हैं। अगर ईश्वर आपके साथ है तो सारी सुविधाएँ आपको रेल में मिलेगी। संपूर्ण पाठ में वाक्य को व्यंग्य-पूर्ण अभिव्यक्ति मिली है। प्रश्न 11. प्रश्न 12. प्रश्न 13. प्रश्न 14. प्रश्न 15. नीचे लिखे गद्यांशों को ध्यानपूर्वक पढ़कर नीचे पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दें। 1. रेल विभाग के मंत्री कहते हैं कि भारतीय रेलें तेजी से प्रगति कर रही (ख) भारतीय रेल के संबंध में रेलमंत्री का कथन है कि यह रेल तेजी से प्रगति कर रही है। रेलमंत्री के इस कथन पर स्वीकृति की मोहर लगाते हुए लेखक का यह व्यंग्यपूर्ण कथन है कि रेलमंत्री ठीक ही कहते हैं कि भारतीय रेलें तेजी से प्रगति कर रही हैं। इस प्रगति का प्रमाण यह है कि भारतीय रेल प्रगति करती हुई दिल्ली तक चली जाती है और फिर वहाँ से प्रगति करती हुई वह मुम्बई आ जाती (ग) प्रगति की राह के संबंध में लेखक का यह कथन है कि प्रगति पथ पर रोड़े कहाँ नहीं आते हैं? लेखक व्यंग्य के टोन (स्वर) में कहता है कि प्रगति पथ के इसी स्वरूप के कारण भारतीय रेल बीच में कहीं भी रूक जाती है और गंतव्य स्थान पर बिलंब से पहुँचती है। प्रगति पथ की यह बाधा देश हो चाहे राजनीतिक पार्टियाँ, हर के प्रगति पथ पर मुँह बाए खड़ी रहती है। (घ) लेखक के अनुसार यदि हमें रेल की प्रगति की वास्तविकता से परिचय प्राप्त करना है, या उन्हें सही रूप में देखना है, तो इसके लिए हमें न तो रेलवे का बजट देखना है, न तो रेलमंत्री का भाषण सुनना है और न कोई रिपोर्ट देखनी है। उसके लिए लेखक की यह व्यंग्यपूर्ण सलाह है कि हमें रेल की प्रगति को देखने के लिए रेल के सवारी डिब्बे में बेधड़क घुस जाना चाहिए। वहाँ हमें रेल की सही प्रगति का सही नजारा देखने को मिल जाएगा। (ङ) इस गद्यांश में लेखक ने भारतीय रेल की तथाकथित प्रगति पर रेलमंत्री के कथन की आलोचना अपने व्यंग्यपूर्ण कथन के माध्यम से की है। लेखक का यह व्यंग्यूपर्ण कथन बड़ा सही और सटीक है कि भारतीय रेल किस रूप में सही प्रगति कर रही है। इसकी प्रगति का तो नजरिया यही है कि यह रेल रोज दिल्ली से प्रगति करती मुंबई पहुँचती है और मुंबई से प्रगति करती फिर दिल्ली पहुँच जाती है। उनकी प्रगति का सच्चा नमूना तो रेलयात्रियों से भरे रेल डिब्बे में घुसकर देखने से ही मिलता है। 2. हमारे यहाँ कहा जाता है-ईश्वर आपकी यात्रा सफल करें। आप पूछ सकते हैं कि इस छोटी-सी रोजमर्रा की बात में ईश्वर को क्यों घसीटा जाता है? पर जरा सोचिए, रेल की यात्रा में
ईश्वर के सिवा आपका है कौन? एक वही तो है, जिसका नाम लेकर आप भीड़ में जगह बनाते हैं। भारतीय रेलों में तो यह आत्मा सो परमात्मा और परमात्मा सो आत्मा। अगर ईश्वर आपके साथ है, टिकट आपके हाथ है, पास में सामान कम और जेब में ज्यादा पैसा है, तो आप मंजिल तक पहुँच जाएँगे, फिर चाहे बर्थ मिले या न मिले। अरे, भारतीय रेलों को काम तो कर्म करना है। फल की चिंता वह नहीं करती। रेलों का काम एक जगह से दूसरी जगह जाना है। यात्री की जो दशा हो। जिंदा रहे या मुर्दा, भारतीय रेलों का काम उसे पहुँचा भर देना है। (ख) रेल-यात्रा प्रारंभ करते समय लोग सुख-शांतिमय रेल-यात्रा की संपन्नता के लिए यही शुभ वाक्य कहते हैं-“ईश्वर आपकी यात्रा सफल करें।” लेखक का यह कथन शत-प्रतिशत सार्थक है। आज की रेल-यात्रा कितनी संकटमयी है और इसमें खतरे की कितनी आशंकाएँ बनी होती हैं, यह बात दीगर है। दूसरी ओर इन खतरों तथा मुसीबतों से बचाव के लिए रेल विभाग का प्रबंध कितना पुख्ता है यह भी सब कोई जानते हैं। ऐसी विषम स्थिति में यह सही रूप से कहा जा सकता है कि रेल की यात्रा में ईश्वर के सिवा और कोई रक्षक नहीं है। (ग) रेल-यात्रा में मंजिल तक पहुँचने के लिए लेखक ने अपने इस व्यंग्यपूर्ण कथन के माध्यम से ये निम्नांकित शर्ते रखी हैं कि यदि ईश्वर आपके साथ हैं, टिकट आपके हाथ है, पास में सामान कम है और जेब में ज्यादा पैसा है तो आप बेधड़क मंजिल तक पहुँचे ही जाएँगे चाहे आपको बर्थ मिले या न मिले। भारतीय रेल तो बेचारी बहुत कर्मशील है। उसका काम ही यात्रियों को ढोकर मंजिल तक पहुँचाना। (घ) भारतीय रेलें कर्मशील होती हैं उनका एकमात्र यही काम है यात्रियों को उनके गंतव्य तक पहुँचाना। यह काम वे फल-प्राप्ति की किसी इच्छा या आसक्ति से प्रेरित होकर नहीं करतीं। इसलिए यात्री चाहे जिंदा हों या मुर्दा वे हर स्थिति में उन्हें मंजिल तक पहुँचा ही देती हैं। (ङ) इस गद्यांश में लेखक ने भारतीय रेलों की तथाकथित कर्मशीलता पर और उनकी कर्ममय जीवन-शैली पर व्यंग्य किया है। इसी व्यंग्यपूर्ण कथन के आलोक में लेखक का यह कहना है कि विविध यातनाओं से भरी रेल-यात्रा के क्रम में ईश्वर के सिवा यात्रियों का और कोई रक्षक नहीं है। रेल बेचारी तो हर स्थिति में यात्रियों को उनके गंतव्य तक पहुँचाने के कर्म के निष्पादन के लिए कृतसंकल्प और तत्पर रहती है। 3. भारतीय रेलें चिंतन के विकास में बड़ा योगदान देती हैं। प्राचीन मनीषियों ने कहा है कि जीवन की अंतिम यात्रा में मनुष्य खाली हाथ रहता है। क्यों भैया? पृथ्वी से स्वर्ग तक या नरक तक भी रेलें चलती हैं। जानेवालों की भीड़ बहुत ज्यादा है। भारतीय रेलें भी हमें यही सिखाती हैं। सामान रख दोगे तो बैठोगे कहाँ? बैठ जाओगे तो सम्मान कहाँ रखोगे? दोनों कर दोगे तो दूसरा वहाँ बैठेगा? वो बैठ गया तो तुम कहाँ खड़े रहोगे? खड़े हो गए तो सामान कहाँ रहेगा? इसलिए असली यात्री वो, जो खाली हाथ? टिकट का वजन उठाना भी जिसे कबूल नहीं। प्राचीन ऋषि-मुनियों ने ये स्थिति मरने के बाद बताई है। भारतीय रेलें चाहती हैं, वह जीते-जी आ जाए। चरम स्थिति, परम हलकी अवस्था, खाली हाथ, बिना बिस्तर मिल जा बेटा अनंत में, सारी रेलों को अंततः ऊपर जाना है। (क) पाठ और लेखक के नाम लिखें। (ख) भारतीय रेलें प्राचीन मनुष्यों के इस चिंतन के विकास में बड़ा योगदान कर रही हैं कि मनुष्य जीवन की अंतिम यात्रा में खाली हाथ जाता है। यह इस रूप में कि आज की भीड़ भरी रेल-यात्रा में जो मनुष्य जितना खाली हाथ रहता है, उसकी रेल-यात्रा उतनी ही सुखद होती है। ढेर सारे सामान के साथ रेल-यात्रा करनेवाला यात्री स्वयं तो कष्ट में पड़ता ही है साथ-ही-साथ वह दूसरे रेलयात्रियों की रेल-यात्रा को भी विपदा, झंझट और परेशानी की स्थिति में डाल देता है। (ग) भारतीय रेलें हमें यही सिखाती हैं कि रेल में बहुत भीड़ होती है, इसलिए खाली हाथ यात्रा करो। सामान साथ रहेगा तो उस भीड़ में उसे रखोगे कहाँ और किसी प्रकार सामान रख दोगे तो फिर बैठोगे कहाँ और कैसे? इसलिए असली ___ या सही वही रेलयात्री है जो खाली हाथ यात्रा करता है टिकट का वजन उठाना भी उचित नहीं समझता और तब वह इस शिक्षा का अनुपालन कर दुर्लभ रेल-यात्रा में सुख का आनंद उठा सकता है। (घ) प्राचीन ऋषि-मुनियों ने मरने के बाद की यह स्थिति बताई है कि आदमी मरने के बाद खाली हाथ ही परलोक की यात्रा करता है। भारतीय रेलें भी चाहती हैं कि रेलयात्री भी यात्रा के क्रम में बिलकुल खाली हाथ, बिना किसी सामान के साथ, परम हलकी अवस्था में रेल-यात्रा करें और चरम स्थिति के चरम सुख को प्राप्त करें। इस स्थिति में रेल-यात्रा करने के क्रम में वे अनंत की भी यात्रा कर सकते हैं जहाँ अंततोगत्वा रेलों को भी जाना है। (ङ) इस गद्यांश में लेखक ने भारतीय रेलों के कार्य को दार्शनिक चिंतन का व्यंग्यपूर्ण स्थान दिया है और इसकी गरिमा को अपने व्यंग्यपूर्ण कथन के परिवेश में प्रस्तुत किया है। भारतीय चिंतन इस दार्शनिक तथ्य पर आधारित है कि मानव खाली हाथ आता है और खाली हाथ जाता है। लेखक के अनुसार भारतीय रेल भी इस दार्शनिक चिंतन का अनुगमन करती है। इसीलिए तो भारतीय रेल से सफर करने के क्रम में ये बातें याद रखनी चाहिए कि हम खाली हाथ ही रेल-यात्रा करें तभी भीड़ भरी और संकटमयी यात्रा सुखद हो सकती है और रेल-यात्रा की यही शर्ते तो जीवन-यात्रा के क्रम में भी सही प्रमाणित होती हैं। 4. टिकट क्या है? देह धरे का दंड है। मुंबई की लोकल ट्रेन में भीड़ से दबे, कोने में सिमटे यात्री को जब
अपनी देह भारी लगती है तब वह सोचता है कि यह शरीर न होता, केवल आत्मा होती, तो कितने सुख से यात्रा करती। भारतीय रेलें हमें मृत्यु का दर्शन समझाती हैं और अक्सर पटरी से उतरकर उसकी महत्ता का भी अनुभव करा देती हैं। कोई नहीं कह सकता कि रेल में चढ़ने के बाद वह कहाँ उतरेगा? अस्पताल में या श्मशान में। लोग रेलों की आलोचना करते हैं। अरे रेल चल रही है और आप उसमें जीवित बैठे हैं, यह अपने में कम उपलब्धि नहीं है। (ख) लेखक की दृष्टि में भारतीय रेल टिकट देह धरे का दंड है। इसका कारण यह है कि भारतीय रेल में खासकर मुंबई की लोकल ट्रेन में रेलयात्री भीड़ से इतने दबे होते हैं कि उस समय भीड़े के दबाव में उनकी अपनी देह भी बहुत भारी लगती है। उस घोर पीड़क स्थिति में यात्रा के क्रम में यह शरीर न होता और केवल आत्मा ही होती तो यात्रा बड़ी सुखद होती। रेलयात्रियों को उस समय रेल की टिकट भी भारी लगती है। (ग) लेखक के अनुसार भारतीय रेल यात्रियों को मृत्यु का दर्शन समझाती है। जब तक रेलें पटरी पर चल रही हैं तब तक तो जीवन सुरक्षित है और रेलयात्री किसी तरह जीवित रहकर रेल की यात्रा करते रहते हैं लेकिन भारतीय रेल की यह भी तो खास विशेषता है कि वह प्रायः चलने के क्रम में पटरी से उतर भी जाती है। उस स्थिति में रेलयात्री मृत्यु का वरण कर मृत्यु का दर्शन भी समझ जाता है। (घ) रेलों के संबंध में कुछ लोग बड़ी सकारात्मक आलोचना करते हैं। वे कहते हैं कि रेल चल रही है और रेलयात्री उसमें जीवित बैठे हैं। यह तो अपने-आप में बड़ी उपलब्धि है। यहाँ लेखक का व्यंग्य है कि रेल-यात्रा के क्रम में दुर्घटना में पड़कर मौत की घटना एक आम बात है। यह बात बिलकुल असामान्य-सी है कि रेल चले और रेलयात्री जीवित रहकर रेल-यात्रा करता रहे और अगर वह इस रूप में यात्रा करता है तो यह अपने-आप में बड़ी उपलब्धि है। (ङ) इस गद्यांश में लेखक ने दुर्घटना-भरी भारतीय रेल की यात्रा-क्रिया पर बड़ा मीठा व्यंग्याघात किया है। भारतीय रेलों में यात्रा का भीड़ से भरी होना और उससे यात्रियों का हाल बेहाल होना, यह आम बात है। यात्रा की उस दु:खद स्थिति में भीड़ से दबे हुए यात्रियों के लिए अपना शरीर भी दंड रूप-सा लगता हैं उस स्थिति में रेल-टिकट को लेखक देह धरे का दंड कहता और मानता है। इसी क्रम में लेखक यह कहता है कि भारतीय रेल की यात्रा मृत्यु के संदेश की वाहिका होती है। रेलें चलती रहें और यात्री जीवितावस्था में उसमें बैठकर यात्रा करता रहे, यह बात सामान्य रूप से संभव नहीं है। यदि ऐसा होता है तो अपने-आप में बहुत बड़ी उपलब्धि है। 5. भारतीय रेलें आगे बढ़ रही हैं। भारतीय मनुष्य आगे बढ़ रहा है। अपने भारतीय मनुष्य को भारतीय रेल के पीछे भागते देखा होगा। उसे पायदान से लटके, डिब्बे की छत पर बैठे, भारतीय रेलों के साथ प्रगति
करते देखा होगा। कई बार मुझे लगता है कि भारतीय मनुष्य भारतीय रेलों से भी आगे हैं। आगे-आगे मनुष्य बढ़ रहा है, पीछे-पीछे रेल आ रही है। अगर इसी तरह रेल पीछे आती रही, तो भारतीय मनुष्य के पास सिवाये बढ़ते रहने के कोई रास्ता नहीं रहेगा। बढ़ते रहो-रेल में सफर करते, दिन-झगड़ते, रातभर जागते, बढ़ते रहो। रेल निशात सर्व भूतानां! जो संयमी होते हैं, वे रात-भर जागते हैं। भारतीय रेलों की यही प्रगति है, जब तक एक्सीडेंट न हो, हमें जागते रहना है। (ख) लेखक का यह व्यंग्यपूर्ण कथन है। प्रगति का अर्थ है आगे बढ़ना। इस रूप में भारतीय रेल गतिशील है और एक स्थान से दूसरे स्थान की ओर आगे बढ़ती रहती हैं। चूँकि मनुष्य भी यात्री के रूप में रेल-यात्रा में शामिल है, अतः वह भी भारतीय रेलों के साथ-साथ आगे बढ़ रहा है। इसी रूप में रेलें भी बढ़ रही है साथ-साथ मनुष्य भी आगे बढ़ रहा है। (ग) लेखक को कई बार ऐसा लगता है कि भारतीय मनुष्य भारतीय रेलों से भी आगे है। अर्थात् जीवन-यात्रा में मानव रेल से आगे बढ़कर चल रहा है। इसका अभिप्राय यह है कि रेल-यात्रा के क्रम में जब दुर्घटनाएँ होती हैं तो मानव मृत्यु का वरण कर रेल से पहले ही गंतव्य स्थान मृत्युलोक पहुँच जाता है। दुर्घटनाओं में रेल तो मरती नहीं है। वह कुछ घायल होकर फिर ठीक-ठाक होकर गति पकड़ लेती है। तब तक उसका रेलयात्री अपनी जीवन-यात्रा में बहुत आगे निकल जाता है। (घ) यह कथन गीता के इस कथन से जुड़ा हुआ है कि प्राणियों के लिए जो रात्रि है उसमें योगी पुरुष जागता है (या निशा सर्वभूतानां तस्यां जागर्ति संयमी)। लेखक का यहाँ यह व्यंग्य है कि रेल-यात्रा के क्रम में नींद पर विजय प्राप्त करनेवाले । जो संयमी यात्री होते हैं, वे रातभर यात्रा के क्रम में रेल की दुर्घटना के भय से जगे , रहते हैं, अर्थात जब तक दुर्घटना न हो जाए तब तक जागे रहो। यही रेलों की सही प्रगति है। लेखक ने प्रेमचंद को मेरी जनता के लेखक क्यों कहा है?Why is Premchand known as 'Janta ke lekhak'?
इनकी रचनाओं में सामान्य जीवन से जुड़ी समस्याओं को ही प्रमुख स्थान दिया गया है। ग्रामीण संस्कृति तथा जनजीवन को तो इन्होंने अपनी कहानियों तथा उपन्यासों में जीवंत कर दिया है। इन्होंने तत्कालीन समाज की कुरीतियों पर करारा व्यंग्य किया है। इसलिए इन्हें 'जनता का लेखक' कहा गया है।
लेखक ने मेरी जनता के लेखक किसे कहा है और क्यों?Answer: जनता का लेखक श्री प्रेम चंद्र जी को कहा गया है यहां प्रेमचंद जी के फटे जूते पाठ से है। Explanation: इसमें यह बताना चाह रहे हैं कि जो प्रेमचंद है वह जनता के जो समाज में अपराधों कुरीतियों बुराइयों का सामना करना पड़ रहा है वह अपनी लेखनी मे लिखकर जनता का लेखक बन गए हैं इसलिए उन्हें जनता का लेखक कहा गया है।
लेखक ने सामान्य जनता को क्या कहकर पुकारा है?वह स्वयं सोच-विचार नहीं करता। वह दूसरों के कहे अनुसार काम करता है। इसलिए लेखक ने साधरण आदमी को मूर्ख कहा है।
लेखक ने प्रेमचंद को क्या कह कर संबोधित किया है?लेखक ने प्रेमचंद को जनता के लेखक' कहकर उनकी किस विशेषता को बताना चाहा है?
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