क्या पैसा कमाने के लिए मनुष्य कुछ भी कर सकता है आशय स्पष्ट कीजिए? - kya paisa kamaane ke lie manushy kuchh bhee kar sakata hai aashay spasht keejie?

Rajasthan Board RBSE Solutions for Class 11 Hindi Antra Chapter 3 टार्च बेचने वाले Textbook Exercise Questions and Answers.

RBSE Class 11 Hindi Solutions Antra Chapter 3 टार्च बेचने वाले

RBSE Class 11 Hindi टार्च बेचने वाले Textbook Questions and Answers

प्रश्न 1. 
लेखक ने टार्च बेचने वाली कम्पनी का नाम 'सूरज छाप' ही क्यों रखा ? 
उत्तर : 
सूर्य प्रकाश फैलाता है और अन्धकार दूर करता है, टार्च भी अन्धकार दूर करके प्रकाश फैलाती है। टार्च बेचने वाला जीवन निर्वाह के लिए टार्च बेचता था। वह टार्च की विशेषता बताता है। यह अन्धकार दूर करती है, मार्ग दिखाती है। घर में व्याप्त अन्धकार को दूर करती है। प्रकाश फैलाने का कार्य करने के कारण ही उसने अपनी कम्पनी का नाम सूरज छाप रखा। 

प्रश्न 2.
पाँच साल बाद दोनों दोस्तों की मुलाकात किन परिस्थितियों में और कहाँ होती है ? 
उत्तर : 
एक शाम को एक शहर के मैदान में दोनों की मुलाकात हुई। मैदान में खूब रोशनी थी और लाउडस्पीकर लगे थे। एक मंच था जो बहुत सजा हुआ था। मंच पर सुन्दर रेशमी वस्त्र धारण किए हुए एक भव्य पुरुष बैठे हुए थे और प्रवचन कर रहे थे। प्रवचन करने वाला भव्य पुरुष टार्च बेचने वाले का मित्र था। जब वह मंच से उतर कर कार में बैठने लगा तो टार्च बेचने वाला उसके पास पहुँचा। भव्य पुरुष ने उसे पहचान कर अपने साथ कार में बैठा लिया। इस प्रकार दोनों की मुलाकात हुई।

क्या पैसा कमाने के लिए मनुष्य कुछ भी कर सकता है आशय स्पष्ट कीजिए? - kya paisa kamaane ke lie manushy kuchh bhee kar sakata hai aashay spasht keejie?

प्रश्न 3.
पहला दोस्त मंच पर किस रूप में था और वह किस अँधेरे को दूर करने के लिए टार्च बेच रहा था ? 
उत्तर : 
टार्च बेचने वाले का दोस्त मैदान में बने मंच पर विराजमान था। वह संत के रूप में था और प्रवचन कर रहा था। उस का भव्य रूप था, शरीर पुष्ट था। उसने रेशमी वस्त्र धारण कर रखे थे। उसकी लम्बी दाढ़ी थी और पीठ पर लम्बे केश लहरा रहे थे। वह फिल्मों के संत की तरह लग रहा था। वह गुरु-गंभीर वाणी में प्रवचन कर रहा था। इस रूप में उसने अपने मित्र को देखा। टार्च जिस प्रकार प्रकाश करके बाहर के अन्धकार को दूर करती है। उसी प्रकार वह अन्दर के अँधेरे को दूर करने के लिए अध्यात्म की टार्च बेच रहा था। वह अपने प्रवचन से लोगों के हृदय में ज्योति जगाने का अश्वासन दे रहा था।

प्रश्न 4. 
भव्य पुरुष ने कहा - "जहाँ अन्धकार है वहीं प्रकाश है।" इसका क्या तात्पर्य है ? 
उत्तर : 
मंच पर विराजमान उस भव्य पुरुष ने जो संत सरीखा दिख रहा था पहले तो लोगों को अंधकार की बात कहकर भयभीत किया फिर उन्हें आश्वस्त करते हुए कहा कि जहाँ अंधकार होता है, वहीं प्रकाश भी होता है। इस कथन का आशय यह है कि ज्ञान और अज्ञान अर्थात अंधकार और प्रकाश दोनों मनुष्य के मन में रहते हैं। मन में छाए अंधकार को दूर करके ज्ञान के इस प्रकाश को प्राप्त कर सकते हैं। अंधकार यहाँ दुख, कष्ट, विपत्ति, अज्ञान का प्रतीक है और प्रकाश सुख, आनंद, सम्पत्ति, ज्ञान का प्रतीक है। 

प्रश्न 5. 
भीतर के अंधेरे की टार्च बेचने और 'सरज छाप' टार्च बेचने के धंधे में क्या फर्क है ? पाठ के आधार पर बताइए। 
उत्तर :
लेखक की दृष्टि में दोनों ही दोस्त टॉर्च बेचने का धंधा करते हैं। पहला दोस्त सूरज छाप टार्च बेचता है। अपनी टार्च बेचने से पहले लोगों का मजमा इकट्ठा कर वह उन्हें अंधकार के बारे में और इससे होने वाली हानियों के बारे में बताता है जिससे वह टार्च खरीदने को तैयार हो जायें। दूसरा दोस्त साधु-संतों के वेश में रेशमी वस्त्र धारण किये, लम्बी दाढ़ी बढ़ाकर, मंच पर बैठकर आध्यात्मिक प्रवचन देता है। वह भी लोगों को अज्ञानरूपी अंधकार से डराकर उन्हें ज्ञानरूपी टार्च खरीदने को प्रेरित करता है। यह प्रकाश उसके साधना मंदिर में प्राप्त होता है। इस प्रकार टार्च दोनों ही बेचते हैं। एक सूरज छाप टार्च बेचता है तो दूसरा सनातन कंपनी की अध्यात्म टार्च बेचता है। पहले वाले की गिनी-चुनी आमदनी होती है जबकि दूसरे वाले की इतनी आमदनी होती है कि उसके ठाठ-बाट देखते ही बनते हैं। 

क्या पैसा कमाने के लिए मनुष्य कुछ भी कर सकता है आशय स्पष्ट कीजिए? - kya paisa kamaane ke lie manushy kuchh bhee kar sakata hai aashay spasht keejie?

प्रश्न 6. 
'सवाल के पाँव जमीन में गहरे गढ़े हैं। यह उखड़ेगा नहीं।' इस कथन में मनुष्य की किस प्रवृत्ति की ओर संकेत है और क्यों ? 
उत्तर : 
उपर्युक्त कथन में यह संकेत है कि प्रत्येक मनुष्य पैसा पैदा करने की चिन्ता से ग्रसित है। टार्च बेचने वाले तथा उसके मित्र के सामने मूल समस्या पैसा पैदा करने की है। मनुष्य पैसा पैदा करने के अनेक उपायों पर विचार करता है किन्तु समाधान नहीं होता। कारण यह है कि पैसा कमाने का कोई निश्चित और एक तरीका नहीं है। यह समस्या सभी के सामने है। यह समस्या अर्थात् सवाल बहुत कठिन है और मनुष्य सदैव इसके समाधान का प्रयत्न करता रहता है। पर सभी को समान सफलता नहीं मिलती।

प्रश्न 7. 
'व्यंग्य विधा में भाषा सबसे धारदार है।' परसाई जी की इस रचना को आधार बनाकर इस कथन के पक्ष में अपने विचार प्रकट कीजिए। 
उत्तर : 
हरिशंकर परसाई जी ने व्यंग्य विधा की विवेचना करते हुए कहा है कि 'व्यंग्य विधा में भाषा सबसे धारदार है' अर्थात् एक अच्छा व्यंग्य तभी लिखा जा सकता है जब व्यंग्यकार की भाषा धारदार हो। धारदार का अर्थ है-अर्थवत्ता से युक्त, पैनी, प्रहार करने की शक्ति रखने वाली। व्यंग्यकार भाषा के द्वारा ही सामाजिक विसंगतियों पर प्रहार करता है। इस पाठ में अध्यात्म पर एवं धार्मिक प्रवचनकर्ताओं पर भाषा के माध्यम से व्यंग्य किया गया है। लोगों को अँधेरे से भयभीत करके ये प्रवचनकर्ता अध्यात्म की शरण में जाने को विवश करते हैं। लेखक इसीलिये उन्हें टार्च बेचने वाला कहता है। ये 
है। प्रवचनकर्ता लोगों के मन में व्याप्त, अज्ञान के अंधकार को दूर करने और ज्ञान का प्रकाश फैलाने का दावा करके अपने अध्यात्म की टार्च बेचते हैं। यह सनातन कंपनी की टार्च ही तो है। इस प्रकार धारदार भाषा के माध्यम से व्यंग्यकार परसाई ने अपना कथन स्पष्ट किया है। इससे स्पष्ट है व्यंग्य की भाषा धारदार हो 

प्रश्न 8. 
आशय स्पष्ट कीजिए -
(क) क्या पैसा कमाने के लिए मनुष्य कुछ भी कर सकता है? 
आशय - प्रत्येक मनुष्य का स्वविवेक होता है। हर मनुष्य उसका इस्तेमाल अपने अच्छे-बुरे कार्यों में करता है। पैसा मत नहीं है, लेकिन गलत तरीकों से पैसा कमाना गलत है। कछ व्यक्ति स्वार्थवश, कछ परिस्थितिवश गलत संगत में पड़कर गलत तरीके से पैसा कमाते हैं, लेकिन अंत में उनको दुष्परिणाम भुगतना पड़ता है। सभी मनुष्यों के विचार-व्यवहार अलग-अलग होते हैं। कुछ व्यक्ति चाहे कितनी भी कठिनाइयाँ आएँ, गलत तरीके से पैसा नहीं कमाते। वे अपने सिद्धांतों पर चलते हैं। अधिकतर व्यक्ति पैसा कमाने के लिए अपने आदर्शों को ध्यान में रखते हुए सभी उपायों को काम में लेते हैं। 

(ख) 'प्रकाश बाहर नहीं है, उसे अन्तर में खोजो। अंतर में बुझी उस ज्योति को जगाओ।' 
आशय - यह कथन दूसरे मित्र का है जो ढोंगी है और संत बन गया है। प्रवचन देकर लोगों को ठगता है। वह आत्मा के प्रकाश की बात करता है। आत्मा में अज्ञान का अन्धकार है। आत्मा की आँखें ज्योतिहीन हो गई हैं। आत्मा की ज्योति (ज्ञान) को जगाने की आवश्यकता है। लोग उसके 'साधना-मन्दिर' में आकर ज्ञान की ज्योति जगाएँ। 

(ग) धंधा वही करूँगा, यानी टार्च बेचूंगा। बस कंपनी बदल रहा हूँ।'
आशय - 'सूरज छाप' कम्पनी की छाप बेचने वाले को जब यह पता लगा कि उसके मित्र ने साधु भेष में प्रवचन दे खूब पैसा कमाया है तब उसका मन बदल गया। उसने कहा मैं भी धंधा बदलूँगा और 'सूरज छाप' टार्च न बेचकर अध्यात्म की टार्च बेचूंगा। मैं धार्मिक प्रवचन करूँगा और पैसा कमाऊँगा।

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प्रश्न 9. 
उस व्यक्ति ने 'सूरज छाप' टार्च की पेटी को नदी में क्यों फेंक दिया ? क्या आप भी वही करते? 
उत्तर :
टार्च बेचने वाले का एक मित्र था, जब वे दोनों बेरोजगार थे तब एक दिन उसके मन में एक सवाल पैदा हुआ कि पैसा कैसे पैदा किया जाए। इस कठिन समस्या को हल करने के लिए दोनों मित्रों ने तय किया वे अलग-अलग स्थानों पर अपनी किस्मत आजमाने के लिए निकलें। यह भी निश्चित हुआ कि पाँच साल बाद दोनों मित्र उसी स्थान पर मिलें। . एक मित्र ने टार्च बेचने का धंधा आरम्भ किया। 

वह लोगों को अँधरे के भय और हानियाँ सुनाकर डराता और अपनी टार्च बेचता था। पाँच साल पूरे होने पर वह उसी स्थान पर आ पहुंचा जहाँ दोनों मित्रों को मिलना था, पूरे दिन प्रतीक्षा करने पर भी जब मित्र नहीं आया तो उसे चिंता हुई और वह उसे खोजने को चल पड़ा। जब वह एक शहर की सड़क पर जा रहा था, तो उसे पास ही रोशनी से जगमगाता मैदान दिखाई दिया जहाँ हजारों लोगों को बड़ी श्रद्धा से एक भव्य स्वरूप वाले व्यक्ति का प्रवचन सुनते दिखाई दिए। प्रवचनकर्ता ने रेशमी वस्त्र धारण कर रखे थे। लम्बे केशों और दाढ़ी वाले वह प्रवचनकर्ता परमज्ञानी संत प्रतीत हो रहे थे। 

टार्च विक्रेता ने पास जाकर सुना तो वह संसार में छाए हुए अज्ञानरूपी अंधकार से मुक्ति पाने का उपाय बता रहे थे। टार्च बेचने के लिए लोगों जो कुछ वह कहता, वे ही बातें वह भी ज्ञान और अध्यात्म में लपेट कर श्रोताओं को सुना रहे थे। प्रवचन की समाप्ति पर वह संत के समीप पहुंचा तो उन्होंने उसे पहचान लिया। वह उसे गाड़ी में बिठाकर अपने 'साधना मंदिर' में ले गए। वहाँ संत के ठाट-बाट देखकर वह चकित रह गया। दोनों में मित्रों की तरह खुलकर बातें हुई। टार्च विक्रेता ने इस ठाट-बाट का रहस्य पूछा तो संत ने कुछ दिन अपने पास रखा। 

टार्च विक्रेता समझ गया कि बिजली की टार्च बेचने के बजाय अध्यात्म की टार्च बेचने का धंधा ही सबसे लाभदायक धंधा है। अतः उसने अपनी 'सूरज छाप- टार्चा की पेटी को नदी में फेंक दिया और दाढी-केश बढ़ाना आरम्भ कर दिया। आज के सामाजिक परिवेश में धन कमाना ही जीवन का प्रमुख लक्ष्य बन गया है। चाहे उसके लिए कुछ भी उपाय क्यों न अपनाना पड़े। मेरा मानना है कि धनार्जन ही जीवन का उद्देश्य नहीं हो सकता। 

जीवन मूल्यों की रक्षा करते हुए धन कमाने में कोई बुराई नहीं, लेकिन छल, कपट, पाखंड और ठगी से कमाया गया धन समाज में ईर्ष्या, द्वेष और असंतोष पैदा करता है। आज कोरोना महामारी इसका प्रत्यक्ष उदाहरण है जहाँ अरबों-खरबों की संपत्ति कमाने वाले इससे नहीं बच पा रहे हैं। अतः मैं टार्च विक्रेता बना रहना उचित मानता हूँ। परिश्रम की कमाई पर निर्भर होना ही श्रेष्ठ समझता हूँ। पाखंडी संत बनकर करोड़पति नहीं बनता।

क्या पैसा कमाने के लिए मनुष्य कुछ भी कर सकता है आशय स्पष्ट कीजिए? - kya paisa kamaane ke lie manushy kuchh bhee kar sakata hai aashay spasht keejie?
 

प्रश्न 10. 
टार्च बेचने वाले किस प्रकार की स्किल का प्रयोग करते हैं ? क्या इसका 'स्किल इंडिया' प्रोग्राम से कोई संबंध है ? 
उत्तर :
टार्च बेचने वाले टार्च बेचने के लिए सड़क किनारे या चौराहों पर मजार लगाकर लोगों को अपनी नाटकीय भाषा-शैली के द्वारा प्रभावित करते हैं। वे अपने टार्गों की खूबियाँ का बखान करते हैं। लोगों को अँधेरे से होने वाली हानियों और परेशानियों को बढ़ा-चढ़ाकर पेश करते हैं। टार्च बेचने वाले पाठ में टार्च बेचने वाला इसी स्किल का प्रयोग करके लोगों को टार्च खरीदने को प्रेरित करता है। 

टार्च बेचने वालों की इस प्रकार की स्किल का स्किल इंडिया प्रोग्राम से कोई सीधा संबंध तो दिखाई नहीं देता किन्तु इस प्रोग्राम का उद्देश्य भी कारीगरों को स्किल्ड बनाना ही है। विभिन्न प्रकार की वस्तुएँ बनाने वाले या बेचने वाले लोगों और शिल्पियों को कार्य-कुशल बनाना, नई तकनीकों के प्रयोग के लिए प्रेरित करना, समयानुकूल सुधार और डिजायनें बनाने का प्रशिक्षण प्राप्त करना आदि इस प्रोग्राम के उद्देश्य हैं। टार्च बेचने वाला कुछ बनाता नहीं बेचता है। अत: मार्केटिंग का कौशल सिखाना प्रोग्राम का हिस्सा माना जा सकता है। 

योग्यता-विस्तार -

प्रश्न 1. 
पैसा कमाने की लालसा ने आध्यात्मिकता को भी एक व्यापार बना दिया है।' इस विषय पर कक्षा में परिचर्चा कीजिए। 
उत्तर : 
छात्र स्वयं करें। 

प्रश्न 2. 
समाज में फैले अंधविश्वासों का उल्लेख करते हुए एक लेख लिखिए। . 
उत्तर : 
समाज में आज भी अनेक प्रकार के अंधविश्वास फैले हुए हैं। इनमें से अनेक अंधविश्वास जीवन के विविध क्षेत्रों में संबंध रखते हैं - 
सामाजिक अंधविश्वास - इनमें अनेक प्रकार के टोने-टोटके, भूत-प्रेत, देवी-देवता का आवेश होना, छींक आने को अपशकुन मानना, किसी विशेष तिथि या वार में कुछ कार्य न किया जाना, दक्षिण दिशा को अशुभ मानना, बिल्ली का रास्ता काट जाना आदि आते हैं। 

धार्मिक अंधविश्वास - धार्मिक कर्ताओं, कथावाचकों की बातों पर अंधविश्वास, धार्मिक कट्टरता के कारण अन्य धर्मावलम्बियों को हानि पहुँचाना, कबीर आदि संतों के मतानुसार मूर्तिपूजा करना, मूर्तियों द्वारा दूध पिया जाना, रोना, दूषित जलाशयों के जल का आचमन करना और उनमें स्नान करना, धर्म के आधार पर अनुचित भेद-भाव बरतना, धर्म की आड़ लेकर लोगों को कष्ट पहुँचाना आदि ऐसे ही अंधविश्वास हैं। 

राजनीतिक अंधविश्वास - स्वार्थी राजनेताओं की बातों का अंधानुकरण करना, अंधविश्वासों ने मानव समाज को सदा हानि पहुँचाई है। विशेष पर्वो पर किसी मंदिर या तीर्थस्थल में लाखों की भीड़ होने से अनेक दुर्घटनाएं होती रही हैं। जिनमें हजारों लोगों की मृत्यु हो जाती है। कोरोना महामारी के समय चिकित्साकर्मियों पर किए जाने वाले हमले, अंधविश्वास के आधार पर हो रहे हैं। स्वस्थ और विकसित समाज के लिए हमें अन्धविश्वासों से बचना चाहिए, क्योंकि किसी भी घटना या मान्यता पर बिना तर्क और विचार के विश्वास में लेना बहुत हानिकारक है। 

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प्रश्न 3. 
एन.सी.ई.आर.टी. द्वारा हरिशंकर परसाई पर बनाई गई फिल्म देखिए। 
उत्तर : 
छात्र स्वयं करें। 

RBSE Class 11 Hindi टार्च बेचने वाले Important Questions and Answers

बहुविकल्पीय प्रश्न - 

प्रश्न 1. 
टार्च बेचने वाला अपनी टॉर्च बेचता था -
(क) गलियों में 
(ख) पार्कों में 
(ग) चौराहों पर 
(घ) बाजारों में 
उत्तर :
(ग) चौराहों पर

प्रश्न 2. 
लेखक ने हरामखोरी बताया है - 
(क) काम न करने को 
(ख) संन्यास लेने को 
(ग) परिश्रम से बचने को 
(घ) ठगी करने को 
उत्तर :
(ख) संन्यास लेने को 

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प्रश्न 3. 
दोनों मित्रों के सामने सवाल था - 
(क) विदेश कैसे जाएँ 
(ख) पेट कैसे भरें 
(ग) शोध कैसे पूरे करें
(घ) पैसा कैसे कमाएँ 
उत्तर :
(घ) पैसा कैसे कमाएँ 

प्रश्न 4. 
टार्च विक्रेता लोगों को टार्च बेचता था - 
(क) टार्च की खूबियाँ बताकर 
(ख) टार्च के साथ इनाम देकर 
(ग) टार्च की उम्र लंबी बताकर 
(घ) अँधेरे से डराकर 
उत्तर :
(घ) अँधेरे से डराकर 

प्रश्न 5. 
टार्च विक्रेता कौन-सा नया धंधा करने जा रहा था - 
(क) कपड़े बेचने का 
(ख) गाइड बनने का 
(ग) प्रवचन करने का
(घ) जादू दिखाने का 
उत्तर : 
(ग) प्रवचन करने का

अतिलघूत्तरात्मक प्रश्नोत्तर - 

प्रश्न 1. 
टार्च बेचने वाले की वेश-भूषा में क्या अंतर आ गया था ? 
उत्तर :
टार्च बेचने वाले ने दाढ़ी बढ़ा ली थी और लंबा कुरता पहन रखा था। 

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प्रश्न 2. 
टार्च बेचने वाले ने टार्च न बेचने का क्या कारण बताया ? 
उत्तर : 
टार्च बेचने वाले ने बताया कि उसकी आत्मा के भीतर प्रकाश या ज्ञान का टार्च जल उठा था। अतः सूरज छाप टार्च बेचना बंद कर दिया था। 

प्रश्न 3. 
लेखक ने हरामखोरी किसे बताया ? 
उत्तर : 
लेखक ने संन्यास लेने को हरामखोरी बताया। 

प्रश्न 4. 
टार्च बेचने वाले को लेखक की किस बात से पीड़ा हुई ? 
उत्तर : 
आत्मा में प्रकाश फैलने को हरामखोरी बताए जाने से उसे पीड़ा हुई। 

प्रश्न 5. 
टार्च बेचने वाले के संन्यास लेने के बारे में लेखक ने क्या-क्या अंदाज लगाए ? 
उत्तर : 
लेखक ने अंदाज लगाए कि उसकी बीबी ने उसे त्याग दिया था या उधार नहीं मिल रहा था या साहूकार तंग कर रहे थे अथवा वह चोरी में फंस गया था।

प्रश्न 6. 
टार्च बेचने वाले और उसके मित्र के सामने कौन-सा कठिन सवाल खड़ा था ? 
उत्तर : 
सवाल था कि जीवनयापन के लिए पैसा कैसे पैदा किया जाए 

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प्रश्न 7. 
दोनों मित्रों ने पैसा कमाने के लिए क्या निश्चय किया ? 
उत्तर :
दोनों मित्रों ने तय किया कि वे अपनी किस्मत आजमाने के लिए, अलग-अलग दिशाओं में जाएँ। 

प्रश्न 8. 
टार्च बेचने वाला टार्च बेचने के लिए लोगों को किस प्रकार प्रेरित करता था ? 
उत्तर : 
वह बड़ी प्रभावशाली और नाटकीय भाषा-शैली में लोगों को अँधेरे से होने वाली हानियों के बारे में बताता था। 

प्रश्न 9. 
पाँच साल बाद, मिलने की जगह पर मित्र के न आने पर टार्च बेचने वाले ने क्या किया ? 
उत्तर : 
टार्च बेचने वाला, मित्र के न आने पर उसे खोजने चल दिया। 

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प्रश्न 10. 
टार्च बेचने वाले की अपने मित्र से किस रूप में और कहाँ भेंट हुई ? 
उत्तर : 
मित्र से उसकी भेंट एक मैदान में, संत की वेश-भूषा में प्रवचन देते हुए हुई। 

प्रश्न 11. 
संतरूपी मित्र किस विषय पर प्रवचन कर रहे थे ? 
उत्तर : 
संत, संसार में चारों ओर छाए अज्ञानरूपी अंधकार की भयानकता का वर्णन कर रहे थे। 

प्रश्न 12. 
संत अज्ञानरूपी अंधकार को दूर करने के लिए क्या उपाय बता रहे थे ? 
उत्तर : 
संत बता रहे थे किस प्रकार लोग उनके साधना मंदिर या आश्रम में आएँ और अपने अंतर की ज्योति को जगाएँ। 

प्रश्न 13. 
टार्च बेचने वाले को संत अपने साथ कहाँ ले गए ? 
उत्तर :
संत उसे अपने आश्रम में ले गए। 

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प्रश्न 14.
टार्च बेचने वाले ने अपने मित्र संत को क्या बताया ? 
उत्तर : 
उसने अपने मित्र को भी ज्ञान या अध्यात्म रूपी टार्च बेचने वाला बताया। 

प्रश्न 15. 
संत मित्र ने अपनी टार्च के बारे में क्या बताया ? 
उत्तर :
संत ने बताया कि उसकी टार्च बहुत सूक्ष्म थी लेकिन बिजली वाली टार्च से उसकी कीमत बहुत अधिक मिल जाती थी। 

प्रश्न 16. 
अपनी टार्च की पेटी को टार्च वाले ने नदी में क्यों फेंक दिया ? 
उत्तर :
उससे प्रवचन के धंधे में बहुत लाभ दिखाई दिया। अतः उसने पेटी फेंक कर प्रव वन देने का धंधा अपना . लिया। 

लघु उत्तरात्मक प्रश्न - 

प्रश्न 1.
टार्च बेचने वाले को देखकर लेखक को क्या जिज्ञासा हुई और दोनों में क्या वार्ता हुई ? 
उत्तर : 
कुछ दिन बाद लेखक ने टार्च बेचने वाले को देखा, जिसकी दाढ़ी बढ़ी हुई थी। लेखक को जिज्ञासा हुई कि इसने दाढ़ी क्यों बढ़ा रखी है। इसका भेष बदला क्यों है ? पूछने पर उसने कहा, "मैंने टार्च बेचने का धंधा बन्द कर दिया है। आत्मा के भीतर की टार्च जल चुकी है। पुराना धंधा व्यर्थ लगता है।" लेखक ने उसकी बात सुनकर कहा-'जिसकी आत्मा में प्रकाश फैल जाता है, वह इसी तरह हरामखोरी पर उतर आता है।' लेखक ने उसके भेष को देखकर व्यंग्य किया। 

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प्रश्न 2. 
ये 'सूरज छाप' टार्च अब व्यर्थ मालूम होती है ? टार्च बेचने वाले ने अपने कार्य को व्यर्थ क्यों बताया ? 
उत्तर : 
'सूरज छाप' टार्च बेचने वाले और उसके मित्र के मन में अधिक पैसा कमाने की प्रबल इच्छा थी। दोनों अलग-अलग दिशा में गए। टार्च बेचने वाले ने तो टार्च ही बेची, जिससे अधिक पैसा नहीं मिला किन्तु उसके मित्र ने प्रवचन द्वारा अधिक पैसा कमाया और वह धनाढ्य हो गया। मित्र की सम्पन्नता को देखकर टार्च बेचने वाले ने भी अपना धंधा छोड़ दिया और प्रवचन करने के कार्य करने का निश्चय किया। संत वेशधारी मित्र को देखकर उसे टार्च का धंधा व्यर्थ लगा।

प्रश्न 3. 
"अब तो आत्मा के भीतर टार्च जल उठा है।" टार्च बेचने वाले के कथन का आशय स्पष्ट कीजिए। 
उत्तर : 
टार्च बेचने वाले मित्र को यह अनुभव हो गया कि टार्च बेचने से कोई लाभ नहीं था। अतः उसने टार्च बेचने का काम बन्द कर दिया। उसने लेखक को बताया कि उसकी आत्मा के भीतर भी टार्च जल उठा था। अर्थात् उसे खूब सारा धन कमाने की युक्ति मिल गई। अब उसे टार्च बेचने की कोई आवश्यकता नहीं थी। 

प्रश्न 4.
टार्च बेचने वाले ने लेखक की किन आशंकाओं को गलत बताया ? 
उत्तर :  
टार्च बेचने वाले को संत की वेशभूषा में देखकर लेखक को कुछ अजीब-सा लगा। इसलिए उसने प्रश्न किया कि उसमें एकाएक ऐसा परिवर्तन कैसे हुआ ? बीबी ने त्याग दिया, उधार नहीं मिला, साहूकारों ने तंग किया अथवा चोरी के मामले में फंस गया था? बाहर का टार्च आत्मा में कैसे प्रवेश कर गया। उसने लेखक की बात सुनी और उन सारी शंकाओं को गलत बताया। उसने एक घटना सुनाई जिसके कारण उसमें यह परिवर्तन हुआ। 

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प्रश्न 5.
टार्च बेचने वाला किस प्रकार लोगों को टार्च खरीदने के लिए आकर्षित करता था ? 
उत्तर :
टार्च बेचने वाला चौराहे या मैदान में लोगों को इकट्ठा करके नाटकीय ढंग से अपनी टार्च बेचता। वह कहता "सब जगह अँधेरा रहता है। रातें बहुत काली होती हैं, हाथ से हाथ नहीं सूझता। अँधेरे में गिरने से लोग चोटिल हो जाते हैं। शेर, चीते और साँप चारों तरफ घूमते रहते हैं। साँप के इसने का डर रहता है। अँधेरा घर में भी होता है। वहाँ भी टार्च की आवश्यकता होती है। इस प्रकार बातें बनाकर और लोगों को डराकर अपनी टार्च बेचता था। 

प्रश्न 6. 
टार्च बेचने वाला मित्र को ढूँढ़ने क्यों निकला और क्या देखा ? 
उत्तर :
पाँच वर्ष बाद भी वायदे के अनुसार जब उसका मित्र निर्धारित स्थान पर नहीं आया तो उसने सोचा क्या वह वायदा भूल गया या संसार छोड़ गया ? वह उसकी खोज में निकला। एक शाम जब वह शहर की एक सड़क पर चल रहा था तो उसे पास के मैदान में खूब रोशनी दिखी। वहाँ मंच सजा था, लाउडस्पीकर लगे थे। मंच पर फिल्मों के संत जैसे दिख रहे एक भव्य पुरुष बैठे थे। हजारों नर-नारी श्रद्धा से झुके बैठे थे। वे भव्य पुरुष गुरु-गंभीर वाणी में प्रवचन कर रहे थे।

प्रश्न 7. 
मंचासीन भव्य पुरुष के प्रवचन का मुख्य विषय क्या था ? 
उत्तर : 
भव्य पुरुष के प्रवचन का मुख्य विषय था 'अपने अंतर के प्रकाश को खोजो।' वे कह रहे थे आज का मनुष्य घने अन्धकार में है, उसके भीतर कुछ बुझ गया है। यह घना अंधकार सम्पूर्ण विश्व को अपने उदर में छिपाए है। अंतर की आँखें ज्योतिहीन हो गई हैं। सबकी आत्मा भय और पीड़ा से ग्रसित हैं। अंधकार में प्रकाश की किरण को खोजो। प्रकाश को बाहर नहीं अन्दर खोजो। उनके प्रवचन का मुख्य विषय धार्मिक था, आत्मा को जगाने का था, जिसे वे दार्शनिक रूप से गंभीर वाणी में व्यक्त कर रहे थे। 

क्या पैसा कमाने के लिए मनुष्य कुछ भी कर सकता है आशय स्पष्ट कीजिए? - kya paisa kamaane ke lie manushy kuchh bhee kar sakata hai aashay spasht keejie?

प्रश्न 8. 
"तू भी टार्च का व्यापारी है।" टार्च बेचने वाले ने भव्य पुरुष को टार्च का व्यापारी कैसे बताया ? 
उत्तर : 
टार्च बेचने वाले ने भव्य पुरुष से कहा कि तुम साधु, दार्शनिक या संत जो भी हो पर तुम वास्तव में टार्च बेचने वाले ही हो। हम दोनों के प्रवचन एक से हैं। तुम भी लोगों को अंधेरे का डर दिखाकर अपनी कम्पनी का टार्च बेचना चाहते हो। तुम जैसे लोगों के लिए हमेशा ही अन्धकार छाया रहता है। तुम जैसे लोग कभी यह नहीं कहते कि दुनिया में प्रकाश फैला है क्योंकि तुम्हें अपनी कम्पनी का टार्च बेचना है। भव्य पुरुष अपनी बात की पुष्टि के लिए कहना चाहता था कि अन्दर जब प्रकाश व्याप्त हो जाता है तो किसी प्रकार का भय नहीं रहता। टार्च बेचने वाला बोला-मैं भी टार्च बेचता है। भर-दोपहर में कहता हूँ अन्धकार छाया है। इन तकों से उसने मित्र को टार्च का व्यापारी सिद्ध कर दिया। 

निबंधात्मक प्रश्न -

प्रश्न 1. 
"जिसकी आत्मा में प्रकाश फैल जाता है, वह इसी तरह हरामखोरी पर उतर आता है। किससे दीक्षा ले आए ?" कथन में व्यक्त व्यंग्य को स्पष्ट कीजिए। 
उत्तर : 
लेखक के कथन में साधु वेशधारी धूर्तों पर व्यंग्य है। वे धार्मिक प्रवचन करके लोगों को भ्रमित करते हैं और लूटते हैं। आत्मा के प्रकाश की बात करने वाले लोग हरामखोर होते हैं। वे परिश्रम से जी चुराते हैं। लोगों को परलोक का भय दिखाकर उनका शोषण करते हैं। उनसे प्राप्त दान के धन से ऐशोआराम की जिन्दगी बिताते हैं। ऐसे पाखण्डियों ने धर्म को एक व्यवसाय बना लिया है। इन संतों ने जनता की आस्था को बाजारू बना दिया है। इससे ईश्वर और धर्म के प्रति आस्था समाप्त होती जा रही है। टार्च बेचने वाले का मित्र भी संत का भेष धारण करके लोगों को ठग रहा था। अपने 'साधना-मन्दिर' में बुलाकर लोगों को ठगना चाहता था। 

प्रश्न 2.
"मुझे हंसी छूट रही थी।" टार्च बेचने वाले को भव्य पुरुष का प्रवचन सुनकर हँसी क्यों आ रही थी ? 
उत्तर : 
भव्य पुरुष का प्रवचन सुनकर टार्च बेचने वाला हंस रहा था। उसने अपने दोस्त को पहचान लिया था। वह सोच रहा था कि जो पैसा कमाने की चिन्ता में निकला था वह आज कैसा संत बन रहा है और लोगों की श्रद्धा का पात्र बना हआ है। यह कैसा बहुरूपिया है। जिसके स्वयं का अन्तर प्रकाशित नहीं है वह दूसरों को अन्तर में प्रकाश खोजने की प्रेरणा दे रहा है। वह धार्मिक प्रवचन देकर लोगों को ठग रहा है। 'साधना-मन्दिर' में बुलाकर ज्योति को जगाने का उपदेश दे रहा है। यद्यपि उसका उद्देश्य वहाँ बुलाकर उनसे खूब धन प्राप्त करना था। यह सोचकर ही उसे हँसी आ रही थी। 

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प्रश्न 3.
"बँगले पर दोनों मित्रों की बातें सहज और बनावटरहित थीं।" पाठ के आधार पर स्पष्ट कीजिए। 
उत्तर :
बँगले में पहुँचकर टार्च बेचने वाला मित्र के वैभव को देखकर थोड़ा झिझका, फिर उसने खुलकर बात करना आरम्भ कर दिया। उसने कहा यार, तू तो बिल्कुल बदल गया। मित्र ने कहा-परिवर्तन जीवन का क्रम है। वह गाली देकर बोला-फिलासफी मत बघार। तैने इतनी दौलन कैसे कमाई, यह बता। भव्य पुरुष के पूछने पर उसने कहा-मैं तो धूम-घूम कर टार्च बेचता रहा। पर वह क्या करता रहा? क्या वह भी टार्च का व्यापारी है। भव्य पुरुष ने उसे विस्तार से अपनी कथा सुनाई तो टार्च बेचने वाले ने कहा हम दोनों अँधेरे का डर दिखाते हैं। भव्य पुरुष ने कहा-मैं तो साधु, दार्शनिक और संत कहलाता हूँ। टार्च बेचने वाले मित्र ने कहा कि वह (संत) अपने को चाहे जो बताए पर वह भी टार्च बेचने वाला ही था। बस दोनों की कंपनियाँ अलग थीं।

प्रश्न 4. 
परसाई जी का व्यंग्य-रचना 'टार्च बेचने वाले' के उद्देश्य पर प्रकाश डालिए। 
उत्तर :
प्रस्तुत रचना में परसाई जी ने धार्मिक आडम्बरों पर करारा व्यंग्य किया है। संत कहलाने वाले लोग वेश तकर किस प्रकार लोगों को ठगते हैं. लोगों की आस्थाओं से किस प्रकार खिलवाड़ करते हैं, इसे स्पष्ट करना लेखक का उद्देश्य है। पैसा कमाने के लिए दुनिया कितनी पागल है। साधु का वेश धारण करके लोग दुनिया को ठगते हैं। वे स्वयं अज्ञानी होते हैं और दूसरों को ज्ञान का उपदेश देते हैं। अपने अनुयायियों से प्राप्त अकूत धन के बल से उनके आश्रमों का निर्माण होता है। जहाँ वे ऐश्वर्य का जीवन जीते हैं। जबकि दूसरों को त्याग और आत्मज्ञान का उपदेश दिया करते हैं। इस रचना का उद्देश्य ऐसे लोगों पर करारा व्यंग्य करना है।

टार्च बेचने वाले Summary in Hindi

लेखक परिचय :

हिन्दी के सुप्रसिद्ध हास्य-व्यंग्यकार हरिशंकर परसाई का जन्म मध्य प्रदेश के होशंगाबाद जिले के जमानी ग्राम में 22 अगस्त 1922 को हुआ था। नागपुर विश्वविद्यालय से हिन्दी में स्नातकोत्तर उपाधि प्राप्त कर आप स्वतंत्र लेखन में जुट गए। सन् 1995 में आपका निधन हो गया।

आप जबलपुर में 'वसुधा' नामक साहित्यिक पत्रिका निकालते रहे। आपने हास्य-व्यंग्य विधा को साहित्यिक प्रतिष्ठा प्रदान की। आपने सामाजिक विसंगतियों, विडम्बनाओं पर करारा व्यंग्य किया है। आपके व्यंग्य पाठकों को झकझोरने वाले हैं। आपकी भाषा में लक्षणा एवं व्यंजना शब्द शक्ति का प्रचुर मात्रा में प्रयोग हुआ है।

रचनाएँ - हँसते हैं रोते हैं, जैसे उनके दिन फिरे (कहानी संग्रह), रानी नागफनी की कहानी, तट की खोज (उपन्यास), तब की बात और थी, भूत के पाँव पीछे, पगडंडियों का जमाना आदि (निबन्ध संग्रह) ठिठुरता गणतंत्र, तिरछी रेखाएँ (हास्य-व्यंग्य संग्रह)। आपका सम्पूर्ण साहित्य 'परसाई रचना वली' (छह भाग) के रूप में छप चुका है। 

संक्षिप्त कथानक - एक टार्च बेचने वाले ने टार्च बेचना छोड़कर संत का वेश धारण कर लिया था। वह सूरज छाप टार्च बेचना बन्द कर चुका था। उसने लेखक को एक घटना सुनाई। हम दो मित्र थे। दोनों ने पैसा कमाने के लिए नया धन्धा करने का निश्चय किया। दोनों अलग-अलग गए और अलग होते समय पाँच साल बाद इसी स्थान पर मिलने का वचन दे गए। टार्च बेचने वाले ने पाँच साल तक सूरज छाप टार्च बेची और उसका मित्र संत बनकर प्रवचन करने लगा। उसने खूब धन कमाया। एक बार दोनों मित्रों की अचानक मुलाकात हो गई। टार्च बेचने वाले ने मित्र से कहा हम दोनों ही टार्च बेचते हैं। आज से मैं भी कम्पनी बदलकर टार्च बेचूँगा। 

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कहानी का सारांश :

टार्च बेचने वाला - लेखक को एक चौराहे पर एक टार्च बेचने वाला अक्सर दिखाई देता था। एक बार वह कुछ दिनों के बाद दिखाई दिया तो लेखक ने उससे पूछा कि इतने दिन तक कहाँ रहा ? उसने दाढ़ी बढ़ा ली थी और लम्बे बाल भी रख लिए थे। लेखक की जिज्ञासा शांत करने के लिए उसने अपनी कहानी बताई। उसने बताया कि उसने बिजली की टार्च बेचना छोड़कर आत्मा की टार्च बेचना आरम्भ कर दिया था। 

जीवन बदलने वाली घटना टार्च बेचने वाले ने लेखक को पाँच साल पुरानी घटना सुनाई जब वह मित्र के साथ पैसा कमाने निकला। दोनों ने ऐसा धन्धा करने का निश्चय किया जिससे पैसा मिले। पाँच साल बाद इसी स्थान पर मिलने का वचन देकर हम दोनों अलग-अलग हो गए। मैंने पाँच साल तक सूरज छाप टार्च बेचने का काम किया, उसने प्रवचन देने का काम किया। उसने लोगों की आत्मा की टार्च जलाने का कार्य किया और धनवान बन गया।

टार्च बेचने की पटुता-टार्च वाला लोगों को इकट्ठा करके नाटकीय ढंग से टार्च बेचता। वह कहता सब जगह अँधेरा रहता है। रात के अंधेरे में अपना ही हाथ नहीं दिखता, रास्ता भटक जाता है। आदमी गिर जाता है, काँटे चुभ जाते हैं। रात में शेर-चीतों का डर रहता है। साँप जमीन पर रेंगते हैं। घर में भी अँधेरा रहता है। वहाँ भी टार्च की जरूरत होती है। इस पटुता से टार्च वाला लोगों को प्रभावित करके अपनी टार्च बेचता। 

संत का प्रवचन उसका मित्र संत बनकर गुरु-गंभीर वाणी में प्रवचन करके लोगों को प्रभावित करता। उसका विषय आध्यात्मिक होता, आत्मा की टार्च जलाने का होता। उसका प्रवचन होता मनुष्य आज अंधकार में है, उसके भीतर कुछ बुझ गया है। सारा विश्व अन्धकार में डूबा है। मनुष्य के अन्तर मन की आँखें ज्योतिहीन हो गई हैं। मनुष्य की आत्मा भय और पीड़ा से ग्रसित है। अन्तर् मन में बुझी ज्योति को जगाओ। हमारे 'साधना मन्दिर' में आकर उस ज्योति को जगाओ।

संत का प्रभाव टार्च बेचने वाले पर संत बने मित्र का प्रभाव पड़ गया। संत प्रवचन करके खूब धन कमाता है। वह टार्च बेचकर अधिक धन नहीं कमा सका। संत ने कहा था कि टार्च की दुकान बाजार में नहीं, हृदय के अन्दर है। उसकी अधिक कीमत मिलती है। टार्च बेचने वाले ने निश्चय किया कि वह सूरज छाप कम्पनी की टार्च नहीं बेचेगा, कम्पनी बदलकर आत्मा की टार्च बेचेगा। 

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कठिन शब्दार्थ : 

  • व्यर्थ = बेकार, अनुपयोगी। 
  • संन्यास = सांसारिक विषयों का त्याग। 
  • हरामखोरी = बिना श्रम की कमाई। 
  • दीक्षा = गुरु से मंत्र लेना। 
  • अंदाज = अनुमान।
  • हताश = निराशापूर्ण, आशा रहित। 
  • किस्मत आजमाने = भाग्य की परीक्षा करने। 
  • नाटकीय = अभिनेता की भाँति। 
  • असार = सारहीन, क्षणभंगुर। 
  • गुरु गंभीर वाणी = आत्मविश्वास से पूर्ण वाणी प्रभावशाली और विचारों से पुष्ट कथन। 
  • सर्वग्राही = सबको ग्रहण करने वाला सबको प्रभावित करने वाला। 
  • पथभ्रष्ट = रास्ते में भटका हुआ। 
  • अंतर की आँखें = विवेक या समझा। 
  • स्तब्ध = चकित, हैरान। 
  • आह्वान = पुकारना, बुलाना। 
  • शाश्वत = सदा रहने वाली। 
  • मौलिक रूप = पहले जैसा, परिवर्तन रहित। 
  • ठाट = ऊँचा रहन-सहन। 
  • वैभव = धन-धान्य। 
  • फिलासफी = दर्शन शास्त्र की बातें, ज्ञान की बातें। 
  • बधारना = सुनाना। 
  • रहस्यमय ढंग = गहरा प्रभाव डालने वाला ढंग। 
  • प्रवचन = उपदेश।
  • सनातन = सदा से चली आ रही।
  • कम्पनी = नाम, छाप। 

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महत्वपूर्ण गाशों की मप्रसंग. व्याख्याएं - 

1. मैंने कहा, "तुम शायद संन्यास ले रहे हो। जिसकी आत्मा में प्रकाश फैल जाता है, वह इसी तरह हरामखोरी पर उतर आता है। किससे दीक्षा ले आए?" मेरी बात से उसे पीड़ा हुई। उसने कहा-"ऐसे कठोर वचन मत बोलिए। आत्मा सबकी एक है। मेरी आत्मा को चोट पहुँचाकर आप अपनी आत्मा को घायल कर रहे हैं।" 

संदर्भ - प्रस्तुत पंक्तियाँ हास्य-व्यंग्यकार हरिशंकर परसाई की व्यंग्य रचना 'टार्च बेचने वाले' से ली गई हैं। यह व्यंग्य रचना पाठ्य पुस्तक 'अंतरा भाग-1' में संकलित है। 

प्रसंग - लेखक का कुछ दिन बाद 'दुबारा उसे' टार्च बेचने वाले से साक्षात्कार हुआ। उसकी दाढ़ी बढ़ी हुई थी। उसके वेश को देखकर लेखक ने व्यंग्य किया। 

व्याख्या - लेखक ने उससे कहा जो लोग आत्मा का प्रकाश फैलाने की बात कहते हैं वे परिश्रम और काम से जी चुराने वाले होते हैं। वह भी शायद संन्यासी होना चाहता है। संसार के कर्तव्यों से विमुख होकर ही ऐसा हो पाता है। क्या उसने वह किसी धर्मगुरु का शिष्य बन गया है? लेखक की बात में निहित कठोर व्यंग्य उसे दुःखदायी लगा। उसने लेखक से कहा कि वह वैसी कठोर बातें न कहे। उसने जो वेश धारण किया है, वह हरामखोरी के लिए नहीं किया। उसकी आत्मा प्रकाशित हो गई है। व्यंग्य करने से उसकी आत्मा को कष्ट पहुँचता है। सभी में एक ही आत्मा है। यदि उसकी आत्मा को कष्ट होगा तो लेखक की आत्मा को भी कष्ट होगा। जो दूसरों को कष्ट पहुँचाता है, उसकी स्वयं की आत्मा पतित होती है। 

विशेष :

  1. दूसरों को मानसिक पीड़ा पहुँचाना अच्छा नहीं है, यह संदेश दिया गया है। 
  2. सांसारिक कर्तव्यों से विमुख करने वाली संन्यासी होने की प्रवृत्ति पर कठोर व्यंग्य किया गया है। 
  3. भाषा सरल है तथा शैली व्यंग्य-विनोद पूर्ण है। तत्सम शब्दों का प्रयोग हुआ है। 

2. मगर यह बताओ कि तुम एकाएक ऐसे कैसे हो गये ? क्या बीवी ने तुम्हें त्याग दिया ? क्या उधार मिलना बंद हो गया ? क्या साहूकारों ने ज्यादा तंग करना शुरू कर दिया ? क्या चोरी के मामले में फँसे गये हो ? आखिर बाहर का टार्च भीतर आत्मा में कैसे घुस गया ? 

संदर्भ - प्रस्तुत पंक्तियाँ हरिशंकर परसाई की व्यंग्य रचना 'टार्च बेचने वाले' से ली गयी हैं, जिन्हें हमारी पाठ्य-पुस्तक 'अंतरा भाग-1' में संकलित किया गया है। 

प्रसंग - लेखक का परिचित टार्च बेचने वाला जब बहुत दिनों बाद दिखा तो उसने देखा कि अब उसने दाढ़ी बढ़ा ली थी और लम्बा कुर्ता पहन रखा था। 

व्याख्या - लेखक ने उस टार्च बेचने वाले व्यक्ति को जब दाढ़ी बढ़े हुए और लम्बा कुर्ता पहने देखा और पूछे जाने पर उसने बताया कि उसने टार्च बेचने का काम बंद कर दिया था। क्योंकि उसकी आत्मा के भीतर की टार्च जल उठी थी। उस प्रश्न करते हुए कहा-क्या उसकी बीबी ने उसे छोड़ दिया या उसे उधार मिलना बंद हो गया। कहीं ऐसा तो नहीं है कि जिन महाजनों (साहूकारों) से उसने कर्जा लिया था वे उसे ज्यादा तंग करने लगे थे? क्या इसी वजह से उसने व काम छोड़ दिया था। कहीं ऐसा तो नहीं था कि चोरी के मामले में फँस गये हों। अतः संसार से निराश होकर संन्यासी का चोला (वस्त्र) धारण कर लिया था। ये उसकी बाहर वाली टार्च आत्मा में कैसे घुस गयी, जो वह संत-महात्माओं जैसी बातें करने लगा था। 

विशेष :

  1. लेखक ने यह व्यंग्य किया है कि ज्यादातर लोग बीबी के त्याग देने से, उधार मिलना बंद हो जाने से, साहूकारों या पुलिस के डर से संसार त्यागकर संत-महात्मा बन जाते हैं। यह पलायनवादी प्रवृत्ति है। 
  2. संतों के वेश में कामचोर छिपे पड़े हैं। 
  3. भाषा सरल, सहज व प्रवाहपूर्ण है। 
  4. व्यंग्यात्मक शैली का प्रयोग है।

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3. पाँच साल पहले की बात है। मैं अपने एक दोस्त के साथ हताश एक जगह बैठा था। हमारे सामने आसमान को छूता हुआ एक सवाल खड़ा था। वह सवाल था - 'पैसा कैसे पैदा करें ?' हम दोनों ने उस सवाल की एक-एक टाँग पकड़ी और उसे हटाने की कोशिश करने लगे। हमें पसीना आ गया। पर सवाल हिला भी नहीं। दोस्त ने कहा- “यार, इस सवाल के पाँव जमीन में गहरे गढ़े हैं। यह उखड़ेगा नहीं। इसे टाला जाए।" 

संदर्भ - प्रस्तुत पंक्तियाँ हास्य-व्यंग्यकार हरिशंकर परसाई की रचना 'टार्च बेचने वाले' से ली गई हैं जो कि पाठ्य पुस्तक 'अंतरा भाग-1' में संकलित है। 

प्रंसग - इन पंक्तियों में टार्च बेचने वाला लेखक को अपनी पाँच साल पुरानी कहानी सुना रहा है। 

व्याख्या - टार्च बेचने वाला कहने लगा कि पाँच साल पहले वह अपने मित्र के साथ बड़ा निराश होकर एक स्थान पर बैठा था। दोनों मित्र मन में उठने वाले एक विराट सवाल को लेकर बड़े परेशान थे। सवाल यह था कि जीवनयापन के लिए पैसे कैसे कमाए जाएँ ? कोई अन्य उपाय न सूझने पर दोनों ने उसे अपने मन से यह प्रश्न निकाल देने की कोशिश की लेकिन पूरा दम लगाने पर भी सफलता नहीं मिली। तब उसने अपने मित्र से कहा कि यह साधारण नहीं थी। उसे हल कर पाना उतना आसान नहीं है। अतः इसे भुला देना ही सही रहेगा। 

विशेष :

  1. धन कमाने की युक्ति, निर्वाह पाना आजकल आसान नहीं है, इस समस्या की ओर ध्यान आकर्षित किया गया है। 
  2. भाषा सरल है और शैली व्यंग्यात्मक है। 

4. आजकल सब जगहे अँधेरा छाया रहता है। रातें बेहद काली होती हैं। अपना ही हाथ नहीं सूझता। आदमी को रास्ता नहीं दिखता। वह भटक जाता है। उसके प्राँव काँटों से बिंध जाते हैं, वह गिरता है और उसके घुटने लहूलुहान हो जाते हैं। उसके आसपास भयानक अंधेरा है। शेर और चीते चारों तरफ घूम रहे हैं, साँप जमीन पर रेंग रहे हैं। अँधेरा सबको निगल रहा है।

संदर्भ - प्रस्तुत पंक्तियाँ 'टार्च बेचने वाले' नामक व्यंग्य रचना से ली गयी हैं, जिसके लेखक 'हरिशंकर परसाई हैं। यह पाठ हमारी पाठ्यपुस्तक 'अंतरा भाग-1' में संकलित है। 

प्रसंग - टार्च बेचने वाला व्यक्ति चौराहों या मैदानों में लोगों को प्रभावित करने के लिए जो कछ कहता है, उसका विवरण इसमें प्रस्तुत हुआ है।

व्याख्या - टार्च बेचने वाला व्यक्ति सूरजछाप टार्च बेचने से पहले भूमिका बनाने हेतु लोगों का मजमा इकट्ठा करता और भाषण देता हुआ कहता था कि आजकल चारों ओर इतना घना अँधेरा छाया रहता है कि उसमें हाथ को हाथ नहीं सूझता, रास्ता नहीं दिखता इसलिये व्यक्ति रास्ता भटक जाता है। पैरों में काँटे लग जाते हैं और गिरने से उसके घुटने भी छिल जाते हैं। इस भयानक अँधेरे में शेर, चीते, साँपों का भी उसे भय रहता है। अतः यदि अँधेरा भगाना है तो उसकी टार्च खरीदो। अँधरे के प्रभाव से कोई नहीं बच पाया है। टार्च की रोशनी से अँधेरा समाप्त होगा, साफ-साफ दिखेगा और वे खतरों से बचे रहेंगे।

विशेष : 

  • तरह -तरह से भय दिखाकर लोगों को टार्च खरीदने को प्रेरित किया गया है। 
  • टार्च विक्रेता श्रोताओं की दुर्बलता को पहचानता है। 
  • भाषा सरल, सहज व प्रवाहपूर्ण है। शैली शब्द-चित्रात्मक है।

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5. मैं आज मनुष्य को एक घने अंधकार में देख रहा हूँ। उसके भीतर कुछ बुझ गया है। यह युग ही अंधकारमय है। यह सर्वग्राही अन्धकार संपूर्ण विश्व को अपने उदर में छिपाए है। आज मनुष्य इस अंधकार से घबरा उठा है। वह पथभ्रष्ट हो गया है। आज आत्मा में भी अंधकार है। अंतर की आँखें ज्योतिहीन हो गई हैं। वे उसे भेद नहीं पातीं। मानव आत्मा अंधकार में घुटती है।.मैं देख रहा हूँ, मनुष्य की आत्मा भय और पीड़ा से त्रस्त है। 

संदर्भ - प्रस्तुत गद्यांश पाठ्य पुस्तक 'अंतरा-भाग-1' की व्यंग्य रचना 'टार्च बेचने वाला' से लिया गया है। इसके लेखक हरिशंकर परसाई हैं। 

प्रसंग - मित्र को टार्च विक्रेता खोजने के लिए निकला, मित्र को भव्य पुरुष के रूप में मंच पर बैठे हुए देखा। वह प्रवचन कर रहा था। वह प्रवचन में जो कह रहा था, उसी प्रसंग का यहाँ वर्णन किया गया है। 

व्याख्या - टार्च विक्रेता का मित्र संत बनकर मंच पर बैठा था और कह रहा था कि चारों ओर अंधकार व्याप्त है। मनुष्य उसी अंधकार से घिरा हुआ था। उसके भीतर का प्रकाश बुझ गया था। उसे अन्दर से कोई प्रेरणा नहीं मिल रही थी। यह युग ही अन्धकारमय है। वह इस अन्धकार में मार्ग भूल गया था। ऐसा लगता है मानो अन्धकार ने सबको अपने में छिपा लिया था। अंधकार की इस भयानक स्थिति को देखकर सब घबरा रहे थे। वे निश्चय नहीं कर पा रहे कि क्या करें? उसे अपने अन्दर अन्धकार दिख रहा है। जिस प्रकार बाहर संसार में अन्धकार व्याप्त था। उसी प्रकार उसे आत्मा में भी अन्धकार दिख रहा था। वह प्रकाश के लिए भटक रहा था। उसके मन की आँखें निस्तेज हो गई, उनमें ज्ञान का प्रकाश नहीं जाग रहा था। मनुष्य की आत्मा इस अज्ञान के अँधेरे से घिरकर व्याकुल हो रही थी। उसे साफ समझ आ रहा था कि मनुष्य की आत्मा को डर और पीड़ा सता रहे थे। 

विशेष :

  • संतों के चोले में छिपे पाखंडियों से सतर्क रहने का संदेश है। 
  • भाषा सरल है और प्रवाहपूर्ण है। 
  • शैली व्यंग्य-विनोद से पूर्ण और चुटीली है। 

6. भाइयो और बहनो, डरो मत। जहाँ अंधकार है, वहीं प्रकाश है। अंधकार में प्रकाश की किरण है, जैसे प्रकाश में अंधकार की किंचित कालिमा हैं। प्रकाश भी है। प्रकाश बाहर नहीं है, उसे अंतर में खोजो। अंतर में बुझी उस ज्योति को जगाओ। मैं तुम सबका उस ज्योति को जगाने के लिये आह्वान करता हूँ। मैं तुम्हारे भीतर वही शाश्वत ज्यो पारे 'साधना मंदिर' में आकर उस ज्योति को अपने भीतर जगाओ। 

संदर्भ - प्रस्तुत पंक्तियाँ 'हरिशंकर परसाई' की व्यंग्य रचना 'टार्च बेचने वाले' से ली गयी हैं। यह रचना हमारी पाठ्यपुस्तक 'अंतरा' में संकलित है। 

प्रसंग - धार्मिक प्रवचन करने वाले किस प्रकार लोगों को पहले तो भयभीत करते हैं और फिर उस भय से मक्ति का मार्ग बताते हैं। इसी का वर्णन लेखक ने व्यंग्य के माध्यम से इस अवतरण में किया है। 

व्याख्या - धार्मिक प्रवचन करने वाले उस भव्य पुरुष ने पहले तो चारों ओर छाए अज्ञान के अंधकार का उल्लेख करके . लोगों को भयभीत कर दिया तत्पश्चात् उन्हें निश्चित रहने का उपाय बताते हुए कहा कि जहाँ अज्ञान का अंधकार छाया है, वहीं ज्ञान का प्रकाश भी है, इसलिये डरने की आवश्यकता नहीं। इस प्रकाश को अपने भीतर खोजो क्योंकि वह बाहर न होकर उनके भीतर विद्यमान है। वे हृदय में बुझी उसी ज्ञान ज्योति को जगाएँ। वह आप सबका आह्वान करता है कि वे अपने भीतर छिपे उस ज्ञान के प्रकाश को जगायें। वह उन्हें ऐसी विधि बताएगा जो इस ज्ञान ज्योति को जगाने के लिये आवश्यक है। 

विशेष :

  • लेखक ने धार्मिक पाखण्ड तथा धार्मिक प्रवचन करने वालों पर व्यंग्य किया है। 
  • लेखक ने व्यंग्य किया है कि दोनों ही मित्र टार्च बेचने वाले हैं। एक बिजली की टार्च बेचता है तो दूसरा अध्यात्म ज्ञान की टार्च बेचता है। दोनों लोगों अंधकार से डराकर कमाई कर रहे हैं। 
  • विषय के अनुरूप तत्सम शब्दों का प्रयोग हुआ है। 

क्या पैसा कमाने के लिए मनुष्य कुछ भी कर सकता है आशय स्पष्ट कीजिए? - kya paisa kamaane ke lie manushy kuchh bhee kar sakata hai aashay spasht keejie?

7. मैंने कहा- "तुम कुछ भी कहलाओ, बेचते तुम टार्च हो। तुम्हारे और मेरे प्रवचन एक जैसे हैं। चाहे कोई दार्शनिक बने, संत बने या साधु बने, अगर वह लोगों को अँधेरे का डर दिखाता है, तो अवश्य ही अपनी कंपनी का टार्च बेचना चाहता है। तुम जैसे लोगों के लिये हमेशा ही अंधकार छाया रहता है। बताओ, तुम्हारे जैसे किसी आदमी ने हजारों में कभी भी यह कहा है कि आज दुनिया में प्रकाश फैला है ? कभी नहीं आज दुनिया में प्रकाश फैला है? कभी नहीं कहा। क्यों? इसीलिये कि उन्हें अपनी कम्पनी का टार्च बेचना है। 

संदर्भ - प्रस्तुत पंक्तियाँ 'टार्च बेचने वाले' नामक व्यंग्य कथा से ली गयी हैं। इसके रचयिता 'हरिशंकर परसाई' हैं। यह पाठ हमारी पाठ्यपुस्तक 'अंतरा' में संकलित है। 

प्रसंग - इन पंक्तियों में टार्च विक्रेता और प्रवचनकर्ता मित्रों के बीच वार्तालाप हो रहा है। 

व्याख्या - टार्च बेचने वाले व्यक्ति ने धार्मिक प्रवचन करने वाले अपने उस मित्र से कहा कि भले ही वह साधु-संत का बाना पहनकर प्रवचन करे किन्तु बेचते वह भी टार्च ही था। हाँ, यह बात अलग है कि कम्पनियाँ अलग-अलग हैं। दोनों ही लोगों को अँधेरे का भय दिखाते हैं। इस प्रकार अपना माल बेचने से पहले जो प्रवचन वह करता है, लगभग वैसा ही प्रवचन वह टार्च विक्रेता भी करता है। अगर कोई अँधेरे का भय लोगों को दिखाता है तो समझ लो कि वह अपनी कंपनी का टार्च बेचना चाहता है। हम जैसे लोगों के लिये अंधकार कभी समाप्त नहीं होता। कभी भी उसने हजारों की भीड़ में यह नहीं कहा होगा कि आज दुनिया में प्रकाश फैला है। ऐसा वह इसलिये नहीं कह सकता क्योंकि उसे अपनी कंपनी का टार्च बेचना है। 

विशेष : 

  • धार्मिक पाखण्ड पर व्यंग्य किया गया है। 
  • भाषा सरल, बोलचाल की तथा प्रवाहपूर्ण है। शैली व्यंग्य प्रधान है।

क्या पैसे कमने के लिए मनुष्य कुछ भी कर सकता है?

आज की भागदौड़ वाले जीवन में मनुष्य के मन में शान्ति नहीं है। वह शान्ति की तलाश में धर्म गुरूओं का सहारा लेता है। यदि कुछ को छोड़ दिया जाए, तो अधिकतर धर्म गुरूओं का धर्म से कोई लेना-देना नहीं है। वह जनता को केवल उनका धन लुटने के लिए प्रयोग कर रहे हैं।

पैसे कमाने के लिए इंसान को क्या करना चाहिए?

इस दुनिया में ऐसा कौन है जो पैसा कमाना नहीं चाहता है. पैसा कमाने के लिए कोशिश जरूरी है. इसके लिए जरूरी है कि सबसे पहले आप अपनी कुशलता बढ़ाएं..
सपने जरूर देखें सपने देखने का मतलब है इमेजिनेशन. ... .
अपनी कुशलता की पहचान करें ... .
कड़ी मेहनत का विकल्प नहीं.