क्या हिंदू शब्द एक गाली है? - kya hindoo shabd ek gaalee hai?

क्या हिंदू शब्द एक गाली है? - kya hindoo shabd ek gaalee hai?



हिन्दू एक गाली है, क्या आप जानते हैं ?

हिंदू कहलाने वालो के धर्मग्रंथों के लिस्ट में 4 वेद, 18 पुराण, 6 शास्त्र, 64 कला इनका समावेश करने का शौक हिंदुत्ववादी लेखकगणों को हैं ।लेकिन इस मे से एक भी ग्रंथ में हिंदू शब्द का कोई आस्तित्व नही है। हिंदू अगर धर्म होगा, तो हिंदू शब्द इन मे से किसी भी धर्मग्रंथ में होना चाहिए था। लेकिन नही है। इतना ही नही हाली के समय के वैष्णव, शैव, चैतन्य, नाथ आदी सांप्रदायांको के वाङ्ग्मयो में भी हिंदू यह शब्द दिखता नही है। इसके विपरीत आर्य ओर ब्राह्मण इनका वर्णन जगह जगह मिलता है। 

लिखित स्वरूप में हिंदू शब्द पहली बार आता है सिखों के गुरु गुरुनानक के लेखन में। हिंदू धर्म के अंदर जो भेदभाव और जातिवाद और आडंबर है उसे दूर करने के लिए नानकदेवजी ने स्वतंत्र धर्म स्थापन किया यह सर्वविदित है। गुरुनानक जी का समय इस्लामी आगमन का समय था। 

हिन्दू यह शब्द मराठी शब्द नही है , हिंदी भी नही , संस्कृत भी नही , अंग्रेजी भी नही , मगधी भी नही , एवम यह शब्द भारतीय भी नही है यह शब्द "परशियन" "फारशी" शब्द है।

इ.स. 12 वे शतक में मोगल जब भारत मे आये। वह धर्म से इस्लामिक थे लेकिन उनकी बोली ओर लिखने की भाषा 'परशियन' 'फारशी' थी। भारत मे आकर जब उनोने भारत के लोगो को हराया तब हारे हुए लोगो को "हिंदू" यह तुच्छास्पद गाली दी। उसी वक्त से "हिंदू" शब्द प्रचलित हुआ ।

भारत मे कलकत्ता में मोठी लायब्रेरी में परशियन डिक्शनरी है उस मे हिन्दू शब्द का अर्थ आप लोग भी देख सकते हो Analysis of हिंदु:- परशियन डिक्शनरी में हिन्दू शब्द का अर्थ हीनदू = गुलाम , चोर , गंदा , काले चेहरे का 

( Analysis of हिंदुस्तान :-हिन = मतलब तुच्छ , दलिद्र , गंदा । दून = मतलब लोग , प्रजा , जनता । 

(स्थान)= मतलब जगह। 

हिन्दू यह शब्द दो शब्दों से बना हुआ नही है बल्की यह तीन शब्दो से {हि+न+दू} इस प्रकार बना हुआ है । उसी का अपभ्रष होकर दो शब्दी हिंदू इस प्रकार बना है) 

दयानंद सरस्वती जिनोने "आर्य समाज" स्थापन किया । उनके "सत्यार्थ प्रकाश" इस पुस्तक में वह 'हिंदू यह मुगलो ने दी हुई गाली है ऐसा नमूद करते है । उसके बाद हिन्दू से 'हिंदूस्थान' मुगलो ने ही किया । "भारत" कभी भी हिंदूस्थान' नही था और नही है ।

इ.स. १२ वे शतक के पहले हिंदू शब्द किसी भी ग्रंथ में, बोलने में या तक लिखने में आया नही था। इसी के कारण तो नीचे दिए हुए ब्राह्मणी ग्रंथ - रामायण , महाभारत, उपनिषदे , भगवत गीता, ज्ञानेश्वरी , श्रृति , स्मृति , मनुस्मृति , दासबोध , ४ वेद , १८ पुराण , ६४ शास्त्र ओर बहुजन संतों के अभंग वाणी में , गाथोओ में , दोहों में , भारुडो में कही भी "हिंदू" यह शब्द नही मिलता है। इतिहास चेक कर लो।

"गर्व से कहो हम हिंदू है।" गाली हम गर्व से कैसे कहे ? 

हिन्दू धर्म का जाल

: *✍सन 1819 से पहले किसी शूद्र(OBC SC ST) की शादी होती थी तो ब्राह्मण दुल्हन को उसका शुद्धीकरण करके 3 दिन अपने पास रखते थे उसके उपरांत उसको घर भेजते थे। इस प्रथा को अंग्रेजों ने 1819 ईस्वी में बंद करवाया*✍

✍✍ *चरक पूजा अंग्रेजों ने 1863 ईस्वी में बंद कराई इसमें यह होता था कि कोई पुल या भवन बनने पर शूद्रों(OBC SC ST) की बलि दी जाती थी*✍✍

: *✍नरबलि  जोकि  शूद्रों (OBC SC ST)की दी जाती थी अंग्रेजों ने  इसे रोकने के लिए 1830 में कानून बनाया था*✍

*✍✍ शूद्रों (OBC SC ST) को अंग्रेजों ने 1835 ईस्वी में कुर्सी पर बैठने का अधिकार दिया था इससे पहले शूद्र कुर्सी पर नहीं बैठ सकते थे✍*

*✍✍ सन 1919 ईस्वी में अंग्रेजों ने ब्राह्मणों के जज बनने पर रोक लगा दी थी अंग्रेजों ने कहा था कि इनका चरित्र न्यायिक नहीं होता है।✍✍✍*

: *✍✍✍ शासन व्यवस्था पर ब्राह्मणों का अनियंत्रित 100 परसेंट कब्जा था अंग्रेजों ने इन्हें 2.5 परसेंट पर लाकर खड़ा कर दिया था✍✍✍*

*✍✍✍भीमराव अम्बेडकर  के प्रयासों द्वारा शुद्रओ(OBC SC ST) को 1927 में सार्वजनिक जगहों पर जाने का हक मिला था✍✍

✍✍✍ब्राह्मण शूद्रों(OBC SC ST)का पहला लड़का गंगा में दान करवा दिया करते थे, क्योंकि वह जानते थे कि पहला बच्चा हष्ट पुष्ट होता हैऔर उनका ही खून होता है जो कभी भी उनके सामने विरोधी बन न जाये, इसीलिए उसको गंगा में दान करवा दिया करते थे। अंग्रेजों ने इस प्रथा को रोकने के लिए 1835 में एक कानून बनाया था✍✍✍*

: *✍✍देवदासी प्रथा अंग्रेजों ने ही बंद कराई इस प्रथा में यह होता था कि शूद्र समाज की लडकिया मंदिरों में देवदासी के रूप में रहती थी और उनसे जो बच्चा पैदा होता था उसे हरिजन कहते थे इसीलिए  हरिजन एक गाली है जिस शब्द को गांधी ने अछुतो पर थोपा*✍✍

: *✍✍✍क्या आप लोग जानते हैं अंग्रेजों ने अधिनियम 11 के तहत शूद्रों(OBC SC ST)को 1795 ईस्वी में संपत्ति रखने का अधिकार दिया था✍✍✍*

 हिन्दू गाली है 
ऐसा ब्राम्हणो का नेता स्वामी दयानंद सरस्वती ने कहा था। वे अपने आप को हिन्दू नही आर्य नस्ल के कहते थे,ब्राम्हण कहते थे। अब मोहन भागवत हिन्दू शब्द का प्रयोग क्यों करना चाहता है?
हिन्दू शब्द ब्राम्हणो के धर्म ग्रंथ में भी मिलता नही है।
रामायण,महाभारत,गीता,विष्णु पुराण,भागवत पुराण में भी हिन्दू शब्द नही मिलता, तो फिर हिन्दू है कौन?हिन्दू शब्द आया कहा से? हिन्दू शब्द पर्शियन भाषा का शब्द है।यह 12 वी शताब्दी में आया। हिन्दू शब्द का अर्थ काला चोर,काला डाकू,काले गुलाम और नाजायज यह होता है।इसके लिए सबूत के साथ यह पोस्ट कर रहा हु।
भारत के संविधान में हिन्दू शब्द नही है । sc, st, ओबीसी हिन्दू नही है। हिन्दू का अर्थ गंदी गालिया है। मोहन भागवत सबको हिन्दू क्यों कह रहा है?संविधान विरोधी शब्द हिन्दू,हिन्दुस्थान शब्दो का प्रयोग करके मोहन भागवत संविधान द्रोह कर रहा है फिर भी भागवत को राष्ट्रपति कोविंद जेल में क्यों नही डाल रहा है।
मोहन भागवत नाजायज ,चोर,डाकू,गुलाम हो सकता है भारत की प्रजा हिन्दू नही है।
विदेशी ब्राम्हणो ने evm पर नाजायज तरीके से कब्जा करने के कारण उनकी यह अवकाद बढ़ गयी है।
मोहन भागवत को खुली चुनोती किसी भी tv चनेल पर बहस करते है कि ब्राम्हण विदेशी है डीएनए के आधार पर और sc, st, ओबीसी हिन्दू नही।
एक बाप की अवलाद है तो बहस के लिए तैयार हो जा।
*-प्रा.विलास खरात.*


*जिस धर्म के धर्मसास्त्रों में ऐसी बातें लिखी है, क्या वह धर्म धर्माचरण करने लायक है*
जब हम पढ़े लिखे नहीं थे तो हमारी मजबूरी थी । लेकिन आज शिक्षित समाज को ऐसे धर्म के धर्माचरण क्यों करना चाहिए ?

1 - यह जो ब्राम्हण, क्षेत्रीय, वैश्य व शूद्र जो विभाजन है वह मेरा द्वारा ही रचा गया है।
         - :गीता 4-13

2 - मेरी शरण में आकर स्त्री ,वैश्य , शूद्र भी जिन कि उत्त्पति पाप योनि से हुई है, परम  गति को प्राप्त हो जाते है।
           -:भगवत गीता 9-32

3 - शूद्र का प्रमुख कार्य तीनों वर्णो की सेवा करना है।
         -: महाभारत  4/50/6

4 - शूद्र को सन्चित धन से स्वामी कि रक्षा करनी चाहिये।
    -:  महाभारत 12/60/36

5 - शूद्र तपस्या करे तो राज्य निर्धनता में डूब जायेगा।
      -: वाo .रामायण 7/30/74

6- ढोल .गवार .शूद्र पशु नारी  |
 सकल ताड़ना के अधिकारी ||
       -: रामचरित मानस 59/5

7- पूजिये विप्र सील गुन हीना, शूद्र न गुण गन ग्यान प्रविना।
            -:रामचरितमानस 63-1

8- वह शूद्र जो ब्राम्हण के चरणो का धोवन पीता है राजा उससे कर TAX न ले।
 -: आपस्तंबधर्म सूत्र 1/2/5/16

9 - जिस गाय का दूध अग्निहोत्र के काम आवे शूद्र उसे न छुये। 
  - : कथक सन्हिता 3/1/2

10- शूद्र केवल दूसरो का सेवक है इसके अतिरिक्त उसका कोइ अधिकार  नही है।
  -: एतरेय ब्राम्हण 2/29/4

11- यदि कोइ ब्राम्हण शूद्र को शिक्षा दे तो उस ब्राम्हण को चान्डाल की भाँति त्याग देना चाहिये।
    -: स्कंद पुरान  10/19

12 - यदि कोइ शूद्र वेद सुन ले तो पिघला हुआ शीशा, लाख उसके कान में डाल देना चाहिये।
यदि वह वेद का उच्चारण करे तो जीभ कटवा देना चाहिये। वेद स्मरण करे तो मरवा देना चाहिये।
  -: गौतम धर्म शूत्र 12/6

13 - देव यज्ञ व श्राद्ध में शूद्र को बुलाने का दंड 100 पर्ण।
     - : विष्णु स्मृति 5/115

14 - ब्राम्हण कान तक उठा कर प्रणाम करे, क्षत्रिय वक्षस्थल तक, वैश्य कमर तक व शूद्र हाथ जोड़कर एवं झुक कर प्रणाम करे।
 -: आपस्तंब धर्म शूत्र 1,2,5,/16

15 - ब्राम्हण की उत्पत्ति देवता से, शूद्रो की उत्पत्ति राक्षस से हुई है।
 -: तेत्रिय ब्राम्हण 1/2/6/7

17 - यदि शूद्र जप ,तप, होम करे तो राजा द्वारा दंडनिय है।
  -: गौतम धर्म सूत्र  12/4/9

17- यज्ञ करते समय शूद्र से बात नहीं करना चाहिये।
  -: शतपत ब्राम्हाण 3;1/10

18- जो शूद्र अपने प्राण, धन तथा अपनी स्त्री को, ब्राम्हण के लिए अर्पित कर दे ,उस शूद्र का भोजन ग्राहय है।
    - : विष्णु पुराण 5/11

👉महाभारत"कहती है - शूद्र राजा नहीं बन सकता।

👉"गीता" कहती है - शूद्र को ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्यों की गुलामी करनी चाहिए ।

👉"रामायण" कहती है - शूद्र को ज्ञान प्राप्त करने पर मृत्युदंड मिलना चाहिए ।

👉"वेद" कहते है कि शूद्र ब्रह्मा के पैरोँ से पैदा हुआ है इसिलिये वो नीच है ।

👉"मनुस्मृति" के अनुसार - शूद्र का कमाया धन ब्राह्मण को बलात् छीन लेना चाहिए ।

👉"वेद" कहते है - शूद्र का स्थान ऊपर के तीनों वर्णों के चरणों में है। तीनों वर्णों की सेवा करना हीं उसका धर्म है ।

👉"पुराण" कहते हैं - शूद्र केवल गुलामी के लिए जन्म लेते हैं ।

👉"रामचरित मानस" कहती है - शूद्र को पीटना धर्म है ।

फिर भी एक सहनशील "शूद्र" अब भी इन हिंसक धर्म ग्रंथो और इन देवी देवताओं को सीने से लगाए फिरता है ।
*जागो शुद्रों जागो*
*गुलामी की बेड़ियॉ तोड़ डालो*
*ब्राहमणवाद को इस देश से समाप्त कर डालो*



 मलेशिया की राजधानी कुआलालम्पुर में प्रथम विश्व दलित सम्मेलन में साहब कांशीराम का भाषण..


*जातिविहीन समाज की स्थापना के लिए आपको देश का हुक्मरान बनना होगा* :


मलेशिया की राजधानी कुआलालम्पुर में प्रथम विश्व दलित सम्मेलन के उद्घाटन के अवसर पर, मुख्या वक्त के रूप में मान्यवर कांशी राम जी ने जनता को सम्भोधित करते हुए कहा की सबसे पहले मै आपको जातिविहीन समाज के निर्माण की दिशा में इस अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन का आयोजन करने के लिए हार्दिक बधाई देना चाहता हुँ.. मुझे दुःख है की पार्टी के कार्यो में अति व्यस्तता के कारण मै इस अवसर पर दिए जाने वाले अपने भाषण को लिख नहीं पाया, इसलिए मै सीधे ही आपसे मुखातिब हो रहा हुँ.


जाती का विनाश :


सन 1936 में लाहौर के जात-पात तोड़क मंडल ने बाबासाहब अम्बेडकर से जाती विषय पर उनके द्वारा लिखे गए निबंध को मंडल के अधिवेशन में पढ़ने के लिए आमंत्रित किया.. लेकिन उस अधिवेशन में बाबासाहब अम्बेडकर को वह निबंध प्रस्तुत नहीं करने दिया गया, वह निबंध बाद में एक पुस्तक के रूप में प्रकाशित किया गया, जिसका शीर्षक था, “एनिहिलेशन ऑफ़ कास्ट” (Annihilation of Caste) “अर्थात जाती का विनाश”. 1962-63 में जब मुझे इस पुस्तक को पढ़ने का मौका मिला, तो मुझे भी ऐसा महसूस हुआ की शायद जाती का विनाश संभव है, लेकिन बाद मै मैंने जाती व्यवस्था और जातीय आचरण का गहराई से अध्यन किया तो मेरी सोच में परिवर्तन आने लगा.. मैंने जाती का अध्यन महज किताबो से नहीं, बल्कि असल जिंदगी से किया है, जो लोग करोडो की संख्या में अपने-अपने गाँव छोड़कर दिल्ली, मुंबई, कोलकाता तथा अन्य बढे-बढे शहरो में आते है, वे अपने साथ और कुछ नहीं बल्कि अपनी जाती को लाते है.. वे अपने छोटे-छोटे झोपड़े छोटी-छोटी जमीने और मवेशी आदि सब कुछ पीछे गाँव में ही छोड़ आते है और केवल अपनी जाती को साथ लेकर ही शहर की गन्दी बस्तियों, नालो, रेल की पटरियों के किनारे बस जाते है.. अगर लोगो को अपनी जाती इतनी ही प्रिय है, तो हम जाती का विनाश कैसे कर सकते है? इसलिए मैंने जाती के विनाश की दिशा में सोचना बंद कर दिया..


आप लोगो ने जातिविहीन समाज की दिशा में बढ़ने के उद्देश्य से इस सम्मेलन का आयोजन किया है; मेरा उद्देश्य भी एक जाती-विहीन समाज की स्थापना करना है, लेकिन जाती कोई ऐसी चीज़ नहीं है जिसे मात्र आपके चाहने भर से नष्ट किया जा सकता है.. जाती को नष्ट करना लगभग असंभव है, तो हमे क्या करना चाहिए ?


जाती के निर्माण के पीछे एक विशेष उद्देश्य है :


जाती का निर्माण बिना किसी उद्देश्य के नहीं किया गया है, इसके पीछे एक गहरा उद्देश्य और स्वार्थ छिपा हुआ है.. जब तक यह उद्देश्य अथवा स्वार्थ जिन्दा रहता है, जाती का विनाश नहीं किया जा सकता.. आप ब्राह्मणो अथवा सवर्ण जातियों को इस प्रकार जातीविहीन समाज की पुनरस्थापना के लिए सम्मेलन, विचार-गोष्ठी आदि आयोजित करते हुए नहीं देखेंगे.. ऐसा इसलिए है, क्योकि जाती का निर्माण इन्ही वर्गों द्वारा अपने नीच स्वार्थो की पूर्ति के लिए किया गया है, जाती के निर्माण के कारण केवल मुट्ठी भर सवर्ण जातियों को ही फायदा हुआ है और 85 प्रतिशत बहुजन समाज को पिछले हज़ारो वर्षो से पीढ़ी-दर-पीढ़ी नुक्सान ही होता रहा है और वे अपमान और शोषण का शिकार बनते रहे है.. अगर जाती के निर्माण से सवर्ण वर्गों को ही फायदा होता रहा है, तो भला वे इसके विनाश के लिए पहल क्यों करेंगे ? इस तरह की कॉन्फ्रेंस(सम्मेलन) केवल हम लोग ही आयोजित कर सकते है, क्योकि हम जाती व्यवस्था के शिकार है.. इसका फायदा पाने वालो को जाती के विनाश में कोई रूचि नहीं हो सकती, बल्कि वे तो जाती व्यवस्था को और अधिक मजबूत देखना चाहते है, ताकि जाती के आधार पर उन्हें मिलने वाली सभी सुविधाये भविष्य में भी जारी रहे..


इस सभाग्रह में जो लोग बैठे है, उनमे से अधिकांश शायद आज स्वयं परोक्ष रूप से जाती के शिकार न हो; लेकिन हम सभी का जन्म ऐसे लोगो अथवा समाज के बीच हुआ, जोकि जाती के शिकार है.. इसलिए हमे जाती के विनाश की दिशा में सोचने की जरुरत है..


लेकिन जब हम जाती के विनाश की बात करते है, तो इसके लिए भी सर्वप्रथम जाती के अस्तित्व को स्वीकारकरना होगा.. जाती की अनदेखी अथवा उपेक्षा करके हम जाती का विनाश नहीं कर सकते है..


हमारे अंदर जातीविहीन समाज का निर्माण करने की भावना हो सकती है, लेकिन इसके साथ यह भी सत्य है की निकट भविष्य में जाती के विनाश की सम्भावना लगभग न के बराबर है.. तो जब तक जाती का पूरी तरह विनाश न हो जाये, तब तक हमे क्या करना चाहिए ? मेरा यह मानना है की जब तक हम जातीविहीन समाज की स्थापना करने में सफल नहीं हो जाते, तब तक जाती का उपयोग करना होगा अगर ब्राह्मण जाती का उपयोग अपने फायदे के लिए कर सकते है, तो मै उसका इस्तेमाल अपने समाज के हित में क्यों नहीं कर सकता ?


दोधारी तलवार :


जाती एक दोधारी तलवार के समान है, जो दोनों तरफ से काटती है.. अगर आप इसे इस तरफ से चलाए(अपने हाथ को दाई तरफ ले जाते हुए), तो यह इस तरफ काटती है; अगर आप इसे दूसरी दिशा मे ले जाए(हाथ को बाई तरफ लहराते हुए),तो यह दूसरी तरफ से काटती है.. तो मैने जाती को दोधारी तलवार की तरह इस्तेमाल करना शुरू किया की इसका फ़ायदा बहुजन समाज को मिले और उच्च वर्ग को इसका फ़ायदा पहुँचना बंद हो जाए.. बाबासाहब अंबेडकर ने जाती के आधार पर ही अनुसूचित जाती और अनुसूचित जनजाति के लोगो को उनके सामाजिक और राजनैतिक अधिकार दिलाए.. जाती का सहारा लेकर ही उन्होने सन 1931/32 राउंड टेबल कान्फरेन्स मे इन वर्गो के लिए पृथक निर्वाचन की व्यवस्था करवाई.. लेकिन इस मुद्दे पर गाँधीजी के आमरण अनशन के कारण, इन वर्गो को पृथक निर्वाचन का अधिकार खोना पड़ा..


पृथक निर्वाचन :


कई लोग मुझसे अक्सर पूछते है की जिस तरह बाबासाहब अंबेडकर ने पृथक निर्वाचन के लिए संघर्ष किया, उसी प्रकार का संघर्ष आप भी क्यो नही शुरू करते ? आज तक मैने अपना एक भी मिनट पृथक निर्वाचन के मामले मे खराब नही किया है, अगर पृथक निर्वाचन अधिकार बाबासाहब अंबेडकर द्वारा ब्रिटिश शासन के दौरान भी संभव नही हो सका, तो आज यह मेरे लिए किस प्रकार संभव हो सकता है, जब की देश मे मनुवादी समाज के लोगो का राज है.. आज यह एकदम असंभव है..


जाती के विशेषज्ञ :


बाबासाहब अंबेडकर ने अनुसूचित जातियो और अनुसूचित जनजातियो के लोगो को जाती के हथियार का इस्तेमाल करने लायक बनाया था, इसी कारण वे ब्रिटिश हुकूमत से इन वर्गो के लिए कई सुविधाए जुटाने मे सफल रहे.. लेकिन अंग्रेज़ो के भारत छोड़ने के बाद केवल तीन लोग ही ऐसे रहे है, जिन्हे जाती के हथियार को इस्तेमाल करने मे महारत हासिल है, सबसे पहले व्यक्ति जवाहर लाल नेहरू थे, दूसरी श्रीमती इंदिरा गाँधी थी और तीसरा व्यक्ति कांशी राम है.. (तालिया)


नेहरू ने जाती के हथियार को इतनी निपुणता और कामयाबी के साथ इस्तेमाल किया की बाबासाहब अंबेडकर लगभग असहाय से हो गये.. नेहरू जाती के उपयोग एवम् मनुवादी सामाजिक व्यवस्था को बनाए रखने की कला मे पारंगत थे, उनके बाद श्रीमती इंदिरा गाँधी भी जाती का हथियार चलाने और ब्राह्माणवादी व्यवस्था को उसका लगातार फ़ायदा पहुँचाने के खेल मे माहिर थी.. लेकिन आज अगर दिल्ली के किसी भी कांग्रेसी से आप पूछे की क्या आपको जाती के इस्तेमाल से कोई फ़ायदा मिल रहा है ? तो वो यही कहेंगे, “नही हमें जाती का कोई लाभ नही मिल रहा है, हमें नही मालूम की किस तरह जाती से फ़ायदा उठाया जा सकता है, यह तो सिर्फ़ कांशीराम को मालूम है की किस तरह जाती का इस्तेमाल अपने हित मे किया जा सकता है



 #ब्राह्मण (इस धरती के )शैतान हैं । कैसे ?

1) छूत - अछूत किसने बनाया* #ब्राह्मण* नें।
2 ) एकलव्य का अंगुठा किसनें काटा *#ब्राह्मण* नें।
3 ) वर्ण व्यवस्था किसने बनाई *#ब्राह्मण* नें।
4 ) वर्ण व्यवस्था मे शुद्रों को शिक्षा से वंचित किसने किया *#ब्राह्मण* नें।
5 ) शुद्रों को 6743 जातियों में किसने बाँटा *#ब्राह्मण* नें ।
6 ) छत्रपती शिवाजी महाराज को शुद्र कह कर राज्याभिषेक का विरोध एवं बायें पैर के अंगूठे से तिलक किसनें किया *#ब्राह्मण* नें।
7 ) छत्रपती शिवाजी महाराज की धोखे से हत्या किसने की *#ब्राह्मण* नें।
8 ) मौर्यवंश के अंतिम शासक बृहद्रथ मौर्य की हत्या किसने की *#ब्राह्मण* नें।
9) भगवान बुद्ध के देश को अन्धविश्वास और जातियों में किसने बांटा *#ब्राह्मण* नें ।
10 ) राष्ट्रपिता जोतीराव फुलें का विरोध किसने किया *#ब्राह्मण* नें ।
11 ) माता सावित्रीबाई फुलें को लड़कियों को शिक्षा देने की वजह से उनके ऊपर गोबर फेक कर किसने मारा *#ब्राह्मण* नें ।
12 ) गो हत्या पाप है , ऋग्वेद में विष्णु को गाय की बली देने का आदेश किसने दिया ।*#ब्राह्मण* नें।
13)भारत देश के मूलनिवासियों को गुलाम किसने बनाया  *#ब्राह्मण* नें।
14 ) डॉ बाबासाहब आंबेडकर का विरोध कौन करता था *#ब्राह्मण*।
15 ) शुद्रों को मंदिर मे जाने से किसने रोका *#ब्राह्मण* नें।
16 ) भारत देश मे मनुस्मृति का कानून किसने लागू किया  *#ब्राह्मण* नें।
17 ) संत तुकाराम महाराज की हत्या किसने की  *#ब्राह्मण* नें।
18 ) मुगलों ( भारत के मुसलमान अपनें को मुगल न समझें , भारत के मुसलमान ओबीसी , एससी , एसटी से धर्म परिवर्तित लोग हैं ) द्वारा दी हुई गाली हिंदू जिसका अर्थ काला चोर , डाकू एवं काफिर होता है। हिन्दू शब्द का इस्तेमाल करके मुगलों की वफादारी कौन कर रहा है *#ब्राह्मण* ।
19 ) शुद्रों के गले मे मट्का , कमर में झाड़ू और सर पर चपल किसने  लगवाया *#ब्राह्मण* नें।
20 ) 52 साल तक किसनें अपनें संगठन के मुख्यालय पर भारत देश का तिरंगा नहीं लहराया। 2002 में सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद से लहराना शुरू किया। *#ब्राह्मण* नें ।

इससे साबित है कि भारत देश के मूलनिवासी बहुजन समाज के लोगों के दुश्मन केवल और केवल ब्राह्मण हैं अन्य कोई नही!
मूलनिवासी बहुजन समाज के जो लोग ब्राह्मणों एवं उनके संगठनों / राजनीतिक पार्टियों से जुड़े हुए हैं। ऐसे लोग ब्राह्मणों के दलाल , भड़वे एवं पिछलग्गू लोग हैं। यही लोग मूलनिवासी बहुजन समाज की बर्बादी के कारण हैं। ऐसे लोग ब्राह्मणों के पालतू कुत्ते हैं , जो ब्राह्मणों के तलवे चाटने का काम करते हैं और ब्राह्मणों के इशारे पर अपनें ही समाज के लोगों को काटनें का कार्य करते हैं। दुश्मनों से पहले मूलनिवासी बहुजन समाज के लोगों को ऐसे दलाल , भड़वे एवं पिछलग्गुओं की खबर लेनी चाहिए। बोल 85 जय मूलनिवासी। ब्राह्मण विदेशी। 🙏🤝💪


**   धर्म और ईश्वर  **

    मार्क्स ने कहा धर्म अफीम है। लेलिन ने कहा धर्म एक निजी मामला नहीं है। आज हमारे बीच ये लोग नहीं रहें। मगर धर्म है। मार्क्स- लेलिन के सिद्धांत पुराने पड़ चुके हैं। लेकिन धर्म पुराना हो कर भी खत्म नही हुआ। यह निरंतर फैल रहा है, या कहें हम धर्म को अपनी सुरक्षा के लिए फैला रहे है। हम डरे हुए हैं। धर्म से अलग नहीं होना चाहतें हैं। धर्म और ईश्वर हमारा सहारा है। यहां हर कोई धर्म और ईश्वर की छतरी में खुद को सुरक्षित महसूस करता है ।
       धर्म कितना ही अफीम हो, मगर हम उसे खाने से कभी कोई कोताही नहीं बरतते। धर्म को जबरन निजी मामला बताकर अपनी धर्मांधता दुसरो पर थोपना चाहते हैं। हमें अपने माता-पिता के समक्ष नतमस्तक होने में परेशानी हो सकती है, मगर धर्म के नही। बेसक सदी और समय बदल रहा है, मगर धर्म नहीं​ । धर्म की प्रवृत्ति​ नहीं। धर्म के मान्यताएं नहीं। धर्म को हमने अफीम के सहारे लड़ने- मरने का हथियार बना लिया है। धर्म के बीच गहरी मगर घातक बहस चल पड़ी है कि उसका धर्म मेरे धर्म से श्रेष्ठ कैसे।
                     मैक्सिम गोर्की ने कहा था ईश्वर खोजें नहीं जाते, उनका निर्माण किया जाता है। हम ईश्वर को इस लिए खोजने जाते हैं, ताकि हमारा उद्धार हो सके। हम धर्म से चिपके रहते हैं, ताकि संकट से बचें रहे। कमाल देखिए हम २१ वीं सदी में भी धर्म और ईश्वर की खोज में व्यस्त हैं। ईश्वर प्रसन्न करने अमरनाथ तक हो आते है । धर्म बचा रहे इस लिए उसे बाजार से जोड़ रहे हैं। दिन के 24घंटे में से 23.99घंटे धर्म और ईश्वर की शरण में ही बिताना चाहते हैं। हमारे दिमाग में बेहद गहराई से यह भर दिया गया है कि खबरदार जो धर्म और ईश्वर से अलग हुए तो....... अनर्थ हो जायेगा। अनर्थ कहने बताने वाले खुब जमकर " पैसा " बटोर रहे हैं धर्म के जानकार शानदार गाड़ियों में घुम रहे हैं। लैपटॉप की सहायता से हमारा- आपका भविष्य बता रहे हैं। धर्म और ईश्वर उनके गुलाम है। उन्हें जब, जैसे, जहां चाहे चलाएं। जनता उनके लिए पागल है। लोग उनकी भविष्यवाणी में अपना सुख खोज रही है।
              मार्क्स और लेनिन की धर्म पर दी गई स्थापनाएं अब किताबी से अधिक कुछ नहीं लगती । ऐसा इसलिए है क्योंकि धर्म और ईश्वर के प्रति हमारी अंध-भक्ति ने हर प्रगतिशील विचारधारा को ध्वस्त कर दिया है धर्म इस लिए सफल हो सका क्योंकि हमने कुपमंडुता से बाहर निकल की कभी कोशिश ही नहीं की। जहां डर होगा, वहां ईश्वर होगा ही होगा, यह मानकर चलें।
     आप मानकर चलें अब धर्म पहले से कहीं ज्यादा मजबूत हो गया है। यह सहिष्णुता की हदों को पार कर चुका है। यहां भुख का भी धर्म है। बाजार का भी धर्म है। आतंकवाद का भी धर्म है।जाति का भी धर्म है। विचार और सोच का भी धर्म है। आज धर्म मार्क्स की अफीम से कहीं ज्यादा खतरनाक है। अब धर्म को राजनीति और आतंकवाद पाल रहे हैं।
        जहां और जिसे डर लगता है बस धर्म और ईश्वर की शरण में चले जाओ। यही हमें हरदम पढ़या और सिखाया जा रहा है।अब खुद पर विश्वास करना बंद कर दिया है। क्योंकि हमारे डर के लिए धर्म और ईश्वर मौजूद है।
            धर्म और ईश्वर की वहशियत में मर जाना मंजूर है, लेकिन उसे त्यागना नहीं।
             हम नहीं समझ रहे हैं, मगर सौ फीसद सत्य है कि आंतकवाद धर्म के रास्ते ही हमारे बीच आया है। अब यह हमें निरंतर मार और परेशान कर रहा है। हद है कि हम न धर्म को छोड़ना चाहते हैं न ईश्वर को।तो ऐसे ही रोते-बिलखते रहिए, जब तक धर्म और ईश्वर का डर हमारे बीच मौजूद है ।



 *🙏कैसे कह दूँ हम हिन्दू है?🙏*

*👉2⃣0⃣1⃣7⃣ की वो  घटनाएं है जो अछूतों के साथ घटी है वह भी मुस्लिम द्वारा नही खुद हिंदुओं द्वारा।*


*1⃣राजा रावण के साथ बाबासाहेब डॉ भीमराव अंबेडकर की प्रतिमा को जलाया गया।*

*2⃣रावण दहन के समय ज्योतिबा फुले आदि की मूर्ति का भी दहन किया गया।*

*3⃣गुजरात में तो गरबा देखने में अछूत को मार ही डाला गया।*

*4⃣गांधीनगर,  गुजरात में अछूतों के मूछ रखने पर हमला किया गया मारा पीटा गया।*

*5⃣भारत में ही अनेको जगह मंदिर जाने पर अछूतों को मारा पीटा गया।*

*6⃣भारत में ही मूर्ति विसर्जन करने पर अछूतों की मार पीटकर टाँगे तोड़ दी गई।*

*7⃣राजस्थान में अछूत की बेटी नल से पानी लेली तो सवर्णो ने उसे बुरी तरह पिट पिट कर अधमरा कर दिया।*

*8⃣आगरा में तो अछूत को नल से पानी नही भरने दिया गया उसके साथ भी मार पिट की गई।*

*👉और यह सब घटना को अंजाम देने वाले मुसलमान नही थे। अपने आपको हिन्दू कहने वाले लोग थे। फिर कैसे कह दूँ कि मुझे हिन्दू होने पर गर्व है? कोई बतायेगा?*

*👉हिन्दू राष्ट्र की कल्पना पाले बैठे हमारे देश के कई संगठन और राजनैतिक पार्टियां तथा व्यक्ति विशेष यह जान लें कि ऐसा हिंदुत्व तालिबान से भी खतरनाक है अछूतों के लिए।*

*👉👉आतंकवादी गतिविधियों से जितने पुरे विश्व में बेगुनाह मारे जाते हैं वह भारत में हिंदुत्व की वजह से मरने वाले बेगुनाहों का एक चौथाई हिस्सा है।*

*👉👉अब सोचिये विचार करिए की यह कैसा हिंदुत्व है? कैसी विचारधारा और संस्कार,हिन्दू धर्म का है?*

*👉इस हिंदुत्व में सबसे बड़ी बात यह है कि कोई भी संगठन, पार्टी, व्यक्ति इसके खिलाफ दो शब्द कहने को हिम्मत नही जुटा पाता। एक पहलू खान गाय के चक्कर में मारा गया, एक हिन्दू ऑस्ट्रेलिया, कनाडा में रंगभेद की वजह से मारा गया, इण्डिया गेट में मोमबत्तियां जलती है, सोशल मीडिया में विरोध प्रकट होता है लेकिन एक व्यक्ति इसलिए मारा जाता है क्योंकि उसने गरबा देखा, मूँछे रखी, सोचिये कहाँ है हम? और कुछ भी नही होता। भारत के संविधान निर्माता का रावण के साथ फोटो जलाया जाता है इससे गिरा हुआ समाज कहीं और नही मिलेगा आपको।। हर व्यक्ति के मन केवल नफरत और जहर बढ़ रहा है बस और कुछ नही।*

फैसला आप को करना होगा

क्या रामायण में हिंदू शब्द है?

चारों वेद, छह शास्त्र, 11 मुख्य उपनिषद, वाल्मीकि रामायण, रामचरितमानस, महाभारत, गीता तथा पुराणों में भी हिंदू शब्द नहीं हैं।

क्या हिन्दू शब्द एक गाली है?

उदाहरण के लिए हिन्दू शब्द को ही लें । यह हमारी गुलामी मानसिकता का प्रतीक तो है ही, इसमें गाली भी छुपी है । इतिहासकारों का मानना है कि हिन्दू शब्द ईरानियों का दिया हुआ है ।

अरबी में हिंदू शब्द का अर्थ क्या है?

अरबी-फारसी में हिंदू का अर्थ "चोर" होता है | जागन सिंह राकेश | The Finder - YouTube.

हिंदू कौन सी भाषा का शब्द है?

हिंदू फारसी भाषा का शब्द है जिसे पुराने जमाने में भारत के लिए प्रयोग किया जाता था। संस्कृत में इसका मूल रूप था सिंधु, जो देश, समुद्र और नदी आदि कई अर्थों में प्रयुक्त हुआ है।