बेटी के घर खाना क्यों नहीं खाना चाहिए - betee ke ghar khaana kyon nahin khaana chaahie

Sunday Special: संतान जब तक पांच वर्ष की ना हो जाये तभी तक उसका लाड़-प्यार करना चाहिए। उसके बाद सदा संतान की शिक्षा की ओर ध्यान देते हुए उसका पालन-पोषण करना चाहिए। नहलाना-धुलाना, उत्तम वस्त्र पहनाना, अच्छे भोजन का प्रबंध करना चाहिए। ये सभी बातें संतान की पुष्टि के लिए आवश्यक हैं। साथ ही पुत्रों को उत्तम गुण और विद्या की ओर भी लगाना चाहिए। पिता का कर्त्वय है कि, वह संतान को सदगुणों की शिक्षा देने के लिए सदा कठोर बना रहे। केवल पालन-पोषण के लिए ही उसके प्रति मोह ना रखें। पिता को चाहिए कि, वह पुत्र के समाने कभी भी उसके गुणों का वर्णन ना करें। उसे राह पर लाने के लिए कड़ी फटकार सुनाये। तथा इस प्रकार उसे साधे जिससे वह विद्या और गुणों में सदा निपुण होता रहें। जब माता अपनी कन्या, सास अपनी पुत्रवधु और गुरु अपने शिष्यों को ताड़ना देता है तभी वे सीधे होते हैं। इसी प्रकार पति अपनी पत्नी को, राजा अपने मंत्री को दोषों के लिए फटकार लगाता है। शिक्षा बुद्धि से ताड़न और पालन करने पर संतान सद्गुणों द्वारा प्रसिद्ध लाभ प्राप्त करती है।

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पुत्री अपने पिता के घर में रहकर जो पाप करती है उसका फल माता-पिता को भी भोगना पड़ता है। इसीलिए समर्थ पुत्री को अपने घर में नहीं रखना चाहिए। जिसके साथ उसका विवाह किया गया हो, उसी के घर में उसका पालन-पोषण करना उचित है। ससुराल में रहकर भक्तिपूर्वक जो उत्तम गुण वह सीखती है और पति की सेवा करती है, उससे कुल की कीर्ति बढ़ती है और पिता भी सुख पूर्वक जीवन व्यतीत करता है। ससुराल में रहकर यदि वह पाप करती है तो उसका फल उसके पति को भोगना पड़ता है। वहां सदाचार पूर्वक रहने से वो सदा पुत्र-पौत्रों के साथ वृद्धि को प्राप्त होती है। पुत्री के उत्तम गुणों से पिता की कीर्ति बढ़ती है। इसीलिए दामाद के साथ भी कन्या को अपने घर नहीं रखना चाहिए। कन्या को अपने माता-पिता के घर क्यों नहीं रहना चाहिए, आइए जानते हैं इस संदर्भ में एक पौराणिक कहानी के बारे में...

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कथा

पौराणिक कथा के अनुसार, आपने मथुरा का नाम तो सुना ही होगा। जहां के राजा का नाम उग्रसेन था। वहीं विदर्भ देश का राजा सत्यकेतु था। जिसने अपनी पदमावती नाम की पुत्री का विवाह मथुरा के राजा उग्रसेन के साथ किया था। इस पदमावती को पवन रेखा भी कहते हैं। पवनरेखा सभी गुणों में संपन्न थी। राजा उग्रसेन भी पदमावती के स्नेह और प्रेम से मुग्ध हो चुके थे। उन दोनों के बीच अटूट प्रेम था।


एक दिन राजा सत्यकेतु ने अपनी पुत्री से अधिक मोह होने के कारण उसे देखने की इच्छा से मथुरा के राजा अपने दामाद उग्रसेन को सूचना भेजकर अपने यहां बुलवा लिया। पदमावती भी अपने पिता के घर पहुंचकर बहुत खुश हुई। वह पहले की तरह ही अपनी सखियों के साथ इधर-उधर विचरण करने लगी, कभी घर पर तो वह कभी तालाब पर जाती थी, कभी बगीचे में तो कभी वह वन में घूमने के लिए जाया करती थी, मायके आकर वह फिर से बालिका बन गई। उसके बर्ताव में लाज या संकोच का भाव नहीं रहा।

एक दिन पदमावती अपनी सखियों के साथ एक सुन्दर पर्वत पर सैर करने के लिए गई, जिसकी तराई में बहुत सुन्दर वन था, जहां पर एक सर्वतुभद्र नाम का तालाब था।उस तालाब में वह अपनी सखियों के साथ स्नान करने लगी। उसी दौरान धन के देवता कुबेर का एक सेवक दैत्य जिसका नाम गोविन्द था, जिसे दुर्मलिक असुर भी कहते हैं। वह विमान पर बैठकर आकाश मार्ग से कही जा रहा था। जैसे ही उस असुर की नजर तालाब में स्नान करती हुई पवनरेखा पर पड़ी, तो उसने अपनी माया से उसे छलने के लिए महाराज उग्रसेन का रुप बना लिया और उसने पवनरेखा को अपनी चिकनी चुपड़ी बातों में फंसा लिया। तथा उसके साथ दुष्कर्म कर उसके सतीत्व को नष्ट कर दिया। जब पवनरेखा को इस बात का ज्ञान हुआ कि, ये मेरे पति के छद्भ भेष में असुर है तो उसे बहुत दुख हुआ।

इसके बाद वह असुर कहने लगा कि, हे! सुन्दरी तुम गृहस्थ धर्म का त्याग करके पति की सेवा छोड़कर यहां किस लिए आयी हो और इतने पर भी तुम अपने मुख से कहती हो कि, मैं पतिव्रता हूं। कर्म से तुम पतिव्रता मालूम पड़ती नहीं हो, तुम डर, भय और लाज को छोड़कर पर्वत और वनों में मतवाली होकर घूमती-फिरती हो, इसीलिए तुम पापनी हो, मैने तुम्हें ये महान दण्ड देकर तुम्हें सीधी राह पर लगाया है। जिस समय तुम्हारे मन में पिता के घर आने की खुशी थी, उसी समय तुम पति की भावना को छोड़कर उनके ध्यान से मुक्त हो चुकी थीं। पति का निरंतर चिंतन ही सती स्त्री के ज्ञान का तत्व है। जब ज्ञान नेत्र ही फूट गया तो तुम मुझे कैसे पहचानती।

जब यह बात राजा सत्यकेतु को पता चली तो उन्होंने अपनी पुत्री को मथुरा के लिए भिजवा दिया। उसी असुर के अंश से रानी पवनरेखा ने एक पुत्र को जन्म दिया, जोकि महाबली कंस के नाम से विख्यात हुआ। इस प्रकार पिता के घर रहने वाली कन्या बिगड़ जाती है। अत: माता-पिता को अपनी कन्या को अपने घर में रखने का मोह नहीं करना चाहिए। इससे ही बेटी का घर सुरक्षित रहता है।

(Disclaimer: इस स्टोरी में दी गई सूचनाएं सामान्य मान्यताओं पर आधारित हैं। Haribhoomi.com इनकी पुष्टि नहीं करता है। इन तथ्यों को अमल में लाने से पहले संबधित विशेषज्ञ से संपर्क करें)

  • बेटी के घर खाना क्यों नहीं खाना चाहिए - betee ke ghar khaana kyon nahin khaana chaahie

    रिश्‍तों में दरार पैदा करती हैं ये चीजें

    बेटियों को लेकर हर माता-पिता का यही सपना होता है कि जब वह शादी के बाद अपने घर जाएं तो अपने परिवार में खूब खुश रहें। उन्‍हें किसी प्रकार की परेशानी न हो और ससुराल वालों से उन्‍हें खूब प्‍यार मिले। लेकिन कई बार जाने-अनजाने में हम ही कुछ ऐसी गलतियां कर देते हैं कि उनका जीवन दुख से भर जाता है। आज हम आपको बता रहे हैं कि बेटियों को विदाई के वक्‍त कौन सी 4 चीजें हैं जो भूलकर भी नहीं देनी चाहिए।

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  • बेटी के घर खाना क्यों नहीं खाना चाहिए - betee ke ghar khaana kyon nahin khaana chaahie

    मिर्च

    भूलकर भी लड़कियों को विदा करते समय उनके साथ मिर्च न रखें। ऐसा करना उनके नए शादीशुदा जीवन में कड़वाहट घोलने के बराबर है। माना जाता है कि बेटियों के साथ मिर्च रखेंगे तो नए रिश्‍तों में शुरुआत से ही तकरार हो सकती है। अगर आपको उनको विदाई में कुछ देना ही है तो फल और सूखी मेवा रखना शुभ माना जाता है।

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    चूल्हा

    कुछ लोगों के घरों में ऐसा देखने में आता है कि बेटियों को घर गृहस्‍थी का सामान देते हैं तो उसके साथ चूल्‍हा भी देते हैं। ऐसा भूलकर भी न करें। अगर आप ऐसा करते हैं तो यह गलत है। इसका अर्थ यह माना जाता है कि आप बेटी को चूल्‍हा देकर इस बात को बढ़ावा दे रहे हैं कि वह नए परिवार में जाते ही अपना चूल्‍हा अलग कर लें। बेटियों को चूल्‍हे की बजाए आप डिनर सेट या फिर अन्‍य घर गृहस्‍थी से जुड़ी वस्‍तुएं दे सकते हैं।

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    नमक

    भूलकर भी बेटी को विदा करते समय उसे नमक नहीं देना चाहिए। नमक देने का अर्थ है कि आप नए रिश्‍तों में बेटी को सामंजस्‍य बैठाने से रोक रहे हैं। इससे यह संदेश जाता है कि आप चाहते हैं कि बेटी केवल मायके के रिश्‍तों को ही निभाए। नए रिश्‍तों में मिठास बनी रहे इसलिए बेटियों को विदाई के वक्‍त मीठी वस्‍तुएं दी जाती हैं। बेहतर होगा कि आप उन्हें नमक की बजाए मिठाइयां देकर विदा करें।

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    अचार

    विदाई के वक्‍त बेटियों के साथ अचार भूलकर भी न रखें। ऐसा माना जाता है कि बेटियों को अचार देने से नए रिश्‍ते बनने से पहले ही उनमें खटास आ जाती है। अचार की प्रकृति खट्टी होने की वजह से ऐसा माना जाता है। विदाई के वक्‍त उनके साथ खाने-पीने की अन्‍य चीजें रख सकते हैं, लेकिन अचार भूलकर भी न रखें।

बेटी के घर का क्यों नहीं खाना चाहिए?

इस प्रकार दान दी हुई बेटी के घर की किसी भी चीज पर माता पिता का कोई अधिकार नहीं होता। जिसको दान दिया जाता है ( दामाद) उसे भी अपने से ऊंचा मानते हैं। तो इसलिए माता पिता अपनी बेटी के ससुराल में खाना नहीं खाते हैं और कई लोग तो बेटी के घर का पानी भी नहीं पीते। पर अब ये सब मानने वाले न के बराबर है।

बाहर का खाना क्यों नहीं खाना चाहिए?

हमें बहार का खाना क्यों नहीं खाना चाहिए ? बाहर का खाना अशुद्ध हो सकता है वो अपने सामने नहीं बनाते, पुरानी चीजें उसमे काम ले सकते हैं। मसाले आदि ज्यादा काम लेते हैं। लगातार बाहर का खाना खाने से बीमार हो सकते हैं।