क्या हार में क्या जीत में किंचित नही भयभीत में कर्तव्य पथ पर जो भी मिले जीत भी सही और हार भी सही? - kya haar mein kya jeet mein kinchit nahee bhayabheet mein kartavy path par jo bhee mile jeet bhee sahee aur haar bhee sahee?

अटलजी सबके थे और सब अटलजी के शायद यही वजह थी कि जिस पार्टी से वे जुड़े थे उसके नेताओं को धुर वैचारिक विरोधियों का यह उलाहना कि “अटलजी तो अच्छे हैं लेकिन उनकी पार्टी खराब है” अक्सर सुनने को मिलता था।

पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी अपनी वाकपटुता के लिए हमेशा याद किए जाते हैं. उनके शब्द विरोधियों के साथ-साथ दोस्तों को भी सीख दे देते थे.आज भी जब 2002 के गुजरात दंगों की चर्चा होती है तो अटल बिहारी वाजपेयी के राजधर्म की सीख की चर्चा भी जरूर होती है. यह वाकया तब का है जब गुजरात में हुई हिंसा के बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने राज्य का दौरा किया था. उस समय गुजरात में भी भाजपा की सरकार थी और नरेंद्र मोदी मुख्यमंत्री थे. गुजरात में अटल बिहारी वाजपेयी जब प्रेस कॉन्फ्रेंस कर रहे थे तब एक पत्रकार ने उनसे सवाल किया कि क्या आप मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी के लिए कोई संदेश लेकर आए हैं.

इस सवाल का जवाब वाजपेयी ने अपनी चिरपरिचित शैली में दिया. उन्होंने कहा, ‘मुख्यमंत्री के लिए मेरा सिर्फ एक संदेश है कि वह राजधर्म का पालन करे…राजधर्म… ये शब्द काफी सार्थक है. मैं उसी का पालन कर रहा हूं. पालन करने का प्रयास कर रहा हूं. राजा के लिए, शासक के लिए प्रजा-प्रजा में भेद नहीं हो सकता. न जन्म के आधार पर, न जाति के आधार पर,न संप्रदाय के आधार पर.’

जब वाजपेयी राजधर्म का संदेश दे रहे थे तब उनके बगल में तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी भी बैठे थे. बीच में ही नरेंद्र मोदी ने कहा, ‘हम भी वही कर रहे हैं साहेब.’ इसके बाद वाजपेयी जी ने आगे कहा, ‘मुझे विश्वास है कि नरेंद्र भाई यही कर रहे हैं.’।

वे जबतक देश के प्रधानमंत्री रहे उन्होंने न केवल राजधर्म का पालन किया बल्कि देश को परमवैभव पर पहुंचाने के लिए वज्र जैसी दृढ़ता और सिंह जैसी निर्भीकता दिखाई । परमाणु परीक्षण हो या कारगिल का युद्ध अटलजी न किसी के सामने झुके न डरे। वे अटलजी के नेतृत्व का ही कमाल था कि विश्व की महाशक्ति अमेरिका द्वारा दम्भ के साथ भारत पर थोपे गए आर्थिक प्रतिबंधों को औंधे मुंह धराशायी होना पड़ा था। वास्तव में वे भारत के रत्न हैं । बहुमुखी प्रतिभा से ओतप्रोत उनका सम्पूर्ण बेहद बेहद शिक्षाप्रद है। कई वक्तव्य , कई जनसभाएं, कई यादें अटल जी के जाने के बाद भी अटल हैं। अटल बिहारी वाजपेयी भारतीय राजनीति के युग पुरूष थे। उनकी संप्रेषण की कला पर भारतीय ही नहीं दुनिया भी मोहित थी। कहते हैं जो भी अटल जी मुख से निकला वह शब्द , वो कविता , वो भाषण उनका ही होकर रह गया।अमूमन अपना लिखने वाले अटल जी हमेशा एक कविता दोहराते थे। उस कविता के रचियता शिव मंगल सिंह सुमन थे लेकिन जब यही कविता अटल जी के ओजस्वी स्वर से होकर जनमानस तक पहुंची तो सुमन जी की यह कविता अटल जी कविता हो गई। कई बार लोग इस कविता को अटल जी की मानते हैं।

आएं जाने उस कविता के बारे में जिसे हमेशा अटल जी दोहराते थे…

यह हार एक विराम है
जीवन महासंग्राम है
तिल-तिल मिटूँगा पर दया की भीख मैं लूँगा नहीं
वरदान माँगूँगा नहीं

स्मृति सुखद प्रहरों के लिए
अपने खंडहरों के लिए
यह जान लो मैं विश्व की संपत्ति चाहूँगा नहीं
वरदान माँगूँगा नहीं

क्या हार में क्या जीत में
किंचित नहीं भयभीत मैं
संधर्ष पथ पर जो मिले यह भी सही वह भी सही
वरदान माँगूँगा नहीं

लघुता न अब मेरी छुओ
तुम हो महान बने रहो
अपने हृदय की वेदना मैं व्यर्थ त्यागूँगा नहीं
वरदान माँगूँगा नहीं

चाहे हृदय को ताप दो
चाहे मुझे अभिशाप दो
कुछ भी करो कर्तव्य पथ से किंतु भागूँगा नहीं
वरदान माँगूँगा नहीं

जन्मदिन पर उन्हें सादर नमन

क्या हार में, क्या जीत में,

किंचित नहीं भयभीत मैं,

कर्तव्य पथ पर जो भी मिला,

यह भी सही, वो भी सही।

वरदान नहीं मांगूंगा,

हो कुछ पर हार नहीं मानूंगा।

आपकी किस्मत आपको मौका देगी,

मगर आपकी मेहनत सबको चौका देगी।

आँख खोलू तो चेहरा मेरी माँ का हो,

आँख बंद हो तो सपना मेरा माँ का हो,

मैं मर भी जाऊ तो कोई गम नहीं, लेकिन,

गर कफन मिले तो दुपट्टा मेरी माँ का हो।

क्या हार में क्या जीत में किंचित नही भयभीत में कर्तव्य पथ पर जो भी मिले जीत भी सही और हार भी सही? - kya haar mein kya jeet mein kinchit nahee bhayabheet mein kartavy path par jo bhee mile jeet bhee sahee aur haar bhee sahee?

भरोसा खुद पर रखो तो ताकत बन जाती है, और

दूसरों पर रखो तो कमजोरी बन जाती है…

खैरात में मिली हुई खुशी हमे पसंद नही है,

क्यूंकि हम गम में भी नवाब की तरह जीते है।

यह हार एक विराम है
जीवन महासंग्राम है
तिल-तिल मिटूँगा पर दया की भीख मैं लूँगा नहीं।
वरदान माँगूँगा नहीं।।

स्‍मृति सुखद प्रहरों के लिए
अपने खंडहरों के लिए
यह जान लो मैं विश्‍व की संपत्ति चाहूँगा नहीं।
वरदान माँगूँगा नहीं।।

क्‍या हार में क्‍या जीत में
किंचित नहीं भयभीत मैं
संधर्ष पथ पर जो मिले यह भी सही वह भी सही।
वरदान माँगूँगा नहीं।।

लघुता न अब मेरी छुओ
तुम हो महान बने रहो
अपने हृदय की वेदना मैं व्‍यर्थ त्‍यागूँगा नहीं।
वरदान माँगूँगा नहीं।।

चाहे हृदय को ताप दो
चाहे मुझे अभिशाप दो
कुछ भी करो कर्तव्‍य पथ से किंतु भागूँगा नहीं।
वरदान माँगूँगा नहीं।।