कश्यप ऋषि किस जाति के थे - kashyap rshi kis jaati ke the

अक्सर हम कश्यप ऋषि और उनके गोत्र की बातें सुनते हैं। पुराणों में कश्यप ऋषि के बारे में बहुत कुछ लिखा हुआ है। आओ जानते हैं कि आखिर ये कश्यप ऋषि कौन थे, कहां रहते थे और क्या था इनका कार्य।


1. ऋषि कश्यप ब्रह्माजी के मानस-पुत्र मरीची के विद्वान पुत्र थे। इनकी माता 'कला' कर्दम ऋषि की पुत्री और कपिल देव की बहन थी। मान्यता अनुसार इन्हें अनिष्टनेमी के नाम से भी जाना जाता है।

2. ऋषि कश्यप का आश्रम मेरू पर्वत के शिखर पर था, जहां वे परब्रह्म परमात्मा के ध्यान में लीन रहते थे। माना जाता है कि कश्यप ऋषि के नाम पर ही कश्मीर का प्राचीन नाम था। समूचे कश्मीर पर ऋषि कश्यप और उनके पुत्रों का ही शासन था। कश्यप ऋषि का इतिहास प्राचीन माना जाता है। कैलाश पर्वत के आसपास भगवान शिव के गणों की सत्ता थी। उक्त इलाके में ही दक्ष राजाओं का साम्राज्य भी था।

3. पुराण अनुसार सृष्टि की रचना और विकास के काल में धरती पर सर्वप्रथम भगवान ब्रह्माजी प्रकट हुए। ब्रह्माजी से दक्ष प्रजापति का जन्म हुआ। ब्रह्माजी के निवेदन पर दक्ष प्रजापति ने अपनी पत्नी असिक्नी के गर्भ से 66 कन्याएं पैदा की। इन कन्याओं में से 13 कन्याएं ऋषि कश्यप की पत्नियां बनीं।

4. इस प्रकार ऋषि कश्यप की अदिति, दिति, दनु, काष्ठा, अरिष्टा, सुरसा, इला, मुनि, क्रोधवशा, ताम्रा, सुरभि, सुरसा, तिमि, विनता, कद्रू, पतांगी और यामिनी आदि पत्नियां बनीं।

5. मुख्यत इन्हीं कन्याओं से सृष्टि का विकास हुआ और कश्यप सृष्टिकर्ता कहलाए। ऋषि कश्यप सप्तऋषियों में प्रमुख माने जाते हैं। विष्णु पुराणों अनुसार सातवें मन्वन्तर में सप्तऋषि इस प्रकार रहे हैं- वसिष्ठ, कश्यप, अत्रि, जमदग्नि, गौतम, विश्वामित्र और भारद्वाज।

6. कश्यप को ऋषि-मुनियों में श्रेष्ठ माना गया हैं। पुराणों अनुसार हम सभी उन्हीं की संतानें हैं। सुर-असुरों के मूल पुरुष समस्त देव, दानव एवं मानव ऋषि कश्यप की आज्ञा का पालन करते थे। कश्यप ने बहुत से स्मृति-ग्रंथों की रचना की थी।

7. ऋषि कश्यप की 13 पत्नियां और उनकी संतानें :

1.अदिति : पुराणों अनुसार कश्यप ने अपनी पत्नी अदिति के गर्भ से बारह आदित्यों को जन्म दिया, जिनमें भगवान नारायण का वामन अवतार भी शामिल था। माना जाता है कि चाक्षुष मन्वन्तर काल में तुषित नामक बारह श्रेष्ठगणों ने बारह आदित्यों के रूप में जन्म लिया, जो कि इस प्रकार थे- विवस्वान्, अर्यमा, पूषा, त्वष्टा, सविता, भग, धाता, विधाता, वरुण, मित्र, इंद्र और त्रिविक्रम (भगवान वामन)।

ऋषि कश्यप के पुत्र विस्वान से वैवस्वत मनु का जन्म हुआ। महाराज मनु को इक्ष्वाकु, नृग, धृष्ट, शर्याति, नरिष्यन्त, प्रान्शु, नाभाग, दिष्ट, करूष और पृषध्र नामक दस श्रेष्ठ पुत्रों की प्राप्ति हुई।

2.दिति : कश्यप ऋषि ने दिति के गर्भ से हिरण्यकश्यप और हिरण्याक्ष नामक दो पुत्र एवं सिंहिका नामक एक पुत्री को जन्म दिया। श्रीमद्भागवत् के अनुसार इन तीन संतानों के अलावा दिति के गर्भ से कश्यप के 49 अन्य पुत्रों का जन्म भी हुआ, जो कि मरुन्दण कहलाए। कश्यप के ये पुत्र निसंतान रहे। जबकि हिरण्यकश्यप के चार पुत्र थे- अनुहल्लाद, हल्लाद, भक्त प्रह्लाद और संहल्लाद।

3.दनु : ऋषि कश्यप को उनकी पत्नी दनु के गर्भ से द्विमुर्धा, शम्बर, अरिष्ट, हयग्रीव, विभावसु, अरुण, अनुतापन, धूम्रकेश, विरूपाक्ष, दुर्जय, अयोमुख, शंकुशिरा, कपिल, शंकर, एकचक्र, महाबाहु, तारक, महाबल, स्वर्भानु, वृषपर्वा, महाबली पुलोम और विप्रचिति आदि 61 महान पुत्रों की प्राप्ति हुई।

4.अन्य पत्नीयां : रानी काष्ठा से घोड़े आदि एक खुर वाले पशु उत्पन्न हुए। पत्नी अरिष्टा से गंधर्व पैदा हुए। सुरसा नामक रानी से यातुधान (राक्षस) उत्पन्न हुए। इला से वृक्ष, लता आदि पृथ्वी पर उत्पन्न होने वाली वनस्पतियों का जन्म हुआ। मुनि के गर्भ से अप्सराएँ जन्मीं। कश्यप की क्रोधवशा नामक रानी ने साँप, बिच्छु आदि विषैले जन्तु पैदा किए।

ताम्रा ने बाज, गिद्ध आदि शिकारी पक्षियों को अपनी संतान के रूप में जन्म दिया। सुरभि ने भैंस, गाय तथा दो खुर वाले पशुओं की उत्पत्ति की। रानी सरसा ने बाघ आदि हिंसक जीवों को पैदा किया। तिमि ने जलचर जन्तुओं को अपनी संतान के रूप में उत्पन्न किया।

रानी विनता के गर्भ से गरुड़ (विष्णु का वाहन) और वरुण (सूर्य का सारथि) पैदा हुए। कद्रू की कोख से बहुत से नागों की उत्पत्ति हुई, जिनमें प्रमुख आठ नाग थे-अनंत (शेष), वासुकी, तक्षक, कर्कोटक, पद्म, महापद्म, शंख और कुलिक।

रानी पतंगी से पक्षियों का जन्म हुआ। यामिनी के गर्भ से शलभों (पतंगों) का जन्म हुआ। ब्रह्माजी की आज्ञा से प्रजापति कश्यप ने वैश्वानर की दो पुत्रियों पुलोमा और कालका के साथ भी विवाह किया। उनसे पौलोम और कालकेय नाम के साठ हजार रणवीर दानवों का जन्म हुआ जो कि कालान्तर में निवातकवच के नाम से विख्यात हुए।

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कश्यप समुदाय भारत देश का एक विशाल जातीय समूह है जो किसी एक राज्य की सीमा के अंदर तक ही सिमित न होकर , भारत के कोने-कोने में अलग-अलग नामों से निवास करता है।  कश्यप समाज को एक ही राज्य के अंदर अलग-अलग नामों  से जाना जाता है। उदहारण के लिए उत्तर प्रदेश जैसे विशाल राज्य के पश्चिमी भाग में कश्यप समाज को धींवर/झींवर नाम से जाना जाता है, वहीं प्रदेश के अन्य हिस्से में कश्यप समुदाय के लोगों को निषाद, केवट व मल्लाह आदि नामों से जाना जाता है तथा अन्य राज्यों में महार, धुरिया, तुराहे , कहार , महार , मेहरा , खेवट , मछवाहा , भोई , बाथम , बिन्द , मांझी  व कोल आदि भिन्न-भिन्न नामों से जाना जाता है। जिन के गुण, कर्म, स्वभाव,वर्ग व व्यवसाय मिलते जुलते हैं। जिनकी भारत में लगभग 20 करोड़ की जनसंख्या हैं।और नाम के अलग-अलग होने के कारण एक ही जाति  से होने के बावजूद पुरे देश में अलग-थलग पड़े हुये हैं, और एकता न होने के कारण आज तक राजनैतिक पार्टियों के वोट बैंक के अलवा कुछ नहीं बन पाये। सरकार के इसी परायेपन के चलते आज  कश्यप समाज आर्थिक, सामाजिक व राजनैतिक स्तर पर अन्य पिछड़ी जातियों की तुलना में बहुत अधिक पिछड़ चुकी हैं। 1947 के स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद दलित जातियों के जीवन स्तर को सुधारने हेतु उनकें लिए 20 वर्षो तक आरक्षण का प्रावधान किया गया, पिछले 75 वर्षो में दलित जातियों ने आरक्षण का लाभ लेते हुए वर्तमान में अपनी आर्थिक, सामाजिक व सबसे महत्वपूर्ण राजनैतिक स्तिथि बहुत मजबूत कर ली हैं। और वहीँ कश्यप समुदाय आज भी अशिक्षा, गरीबी व लाचारी से निरंतर झूझता आ रहा हैं। कश्यप समाज की इस स्तिथि का कारण समाज में एकता का न होना ही हैं, आज समुदाय की इस दयनीय स्तिथि को भारत की राजैतिक गलियारों तक ले जानें व सुनने वाला कोई नहीं है। 

समाज की इसी स्तिथि से तंग होकर आज समाज के युवाओं ने समाज को नई दिशा प्रदान करने की ठान ली हैं , इस प्रयत्न को सफल बनाने हेतु देश के विभिन्न भागों में बहुत से संगठन काम कर रहें हैं , जिनमें कश्यप एकता क्रांति मिशन आदि सराहनीय कार्य कर रहें हैं।  

अंग्रेजी में एक कहावत है कि "History repeats Itself. " अर्थात इतिहास खुद को दोहराता है।  इसीलिए यदि किसी देश या समाज को अपना भविष्य सुधारना है तो उसे अपने इतिहास को जानना अति आवश्यक है। कश्यप समाज का इतिहास भी गौरवशाली रहा है , अज्ञानता व अशिक्षा के चलते हमारा समाज अपने गौरवशाली इतिहास से अनजान हैं। किसी समाज के  गौरवशाली इतिहास का ज्ञान होना आज की पीढ़ी में आत्मविश्वास का संचार करता है। इसीलिए हमारी ये वेबसाइट KashyapSamaj.com ने समाज के उत्थान हेतु समाज की युवा पीढ़ी को उनके इतिहास व समाज के महान व्यक्तियों के जीवन से अवगत करा कर उनमे नयी ऊर्जा, स्फूर्ति व आत्मविश्वास जगाने का संकल्प लिया है।  

आज के इस आर्टिकल में हम कश्यप समाज के प्रचीन, मध्य व आधुनिक इतिहास को संक्षिप्त रूप से जानने का प्रयास करेगें। 

 १. कश्यप जाति का प्राचीन इतिहास :- 

मानव जाति के आरंभ में कोई जातियां नहीं थीं परन्तु समय के साथ-साथ मानव बुद्धि के विकास होने के साथ ही मानवों में ईश्वर के होने की मान्यता ने जन्म  ले लिया , शुरू में भगवान  को मानने  वाले आस्तिक व न मानने वाले नास्तिकों के बीच संघर्ष होते रहना आम बात थीं। प्राचीन इतिहास के वैदिक काल  में वर्ण व्यवस्था की उत्पत्ति हो गयी थीं।  वर्ण व्यवस्था में , 

  • ब्राह्मण का कार्य पढ़ना,पढ़ाना ,यज्ञ हवन करना व दान दक्षिणा लेकर जीवन यापन करना।  
  • क्षत्रियों का कार्य देश को चलाना व बाहरी आक्रमणों से देश की सुरक्षा करना।  
  • वैश्य के लिए वाणिज्य, व्यापार , खेतीबाड़ी , पशुपालन जैसे कार्य निर्धारित थे।  
  • शूद्रों  के लिए सेवा का कार्य था तथा सेवक का स्थान प्राप्त था। 

शूद्रो ब्राह्मणतां एति ब्राह्मणश्चैति शूद्रताम् ।  

क्षत्रियाज्जातं एवं तु विद्याद्वैश्यात्तथैव च।  

                                         (मनुस्मृति अध्याय 1  , श्लोक 65) 

अर्थात विद्या विहीन ब्राह्मण शुद्र होता है। अध्ययन से शुद्र ब्राह्मण पद प्राप्त कर सकते थे वैसे ही क्षत्रि और क्षत्रिय वैश्य आदि वर्णों को ग्रहण कर सकते थें। जैसे गाधी पुत्र विश्वामित्र, क्षत्रिय कुल से ब्राह्मण ऋषि हुए हैं। और ऋषि वाल्मीकि जिन्होंने निम्न वर्ण से उच्च पद प्राप्त किया और महान ग्रंथ वाल्मिकीय रामायण लिखी, महाभारत वेद, शास्त्र व पुराणों के रचयिता महर्षि वेदव्यास हुए हैं। बाद में मनुस्मृति आदि ग्रंथों को गलत रूप से प्रस्तुत कर निम्न वर्गो के लोगों को समाज के निम्न पायदान पर धकेल दिया व उनकी स्थिति बद से बद्तर होती चली गईं। शूद्रों से पढ़ने लिखने, कोई संपत्ति रखने, उच्च वर्ण की कन्या से विवाह करने आदि के अधिकार छीन लिए गए, जिससे शुद्र उच्च वर्ग के लोगों के ’दास’ बन कर रह गए । अलग अलग जाति के माता-पिता से पैदा होनेें वाली संतानों की अलग जाति बनती चली गई जैसे -

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इस कारण से किसी भी जाति/वर्ण का व्यक्ति किसी भी जाति/वर्ण का कार्य कर सकता था, कालांतर में उनकी पीढ़ी भी अपने पूर्वजों से मिले काम-धंधों में ही लगे रहे और फिर अलग अलग काम करने वाले व्यक्तियों की अलग अलग जाति बनती चली गई , जैसे मिट्टी के बर्तन बनाने वाले लोग कुम्हार, लकड़ी का काम करने वाले बढ़ाई, मछली पालन,पालकी ढोने वालें, पानी पिलाने वाले कश्यप जाति बन गई । यही कारण है एक ही गौत्र सभी जातियों में पाया जाता हैं। इसी प्रकार ऋषि कश्यप के कुल के जो लोग पढ़ने, पढ़ानें,पूजा पाठ , कर्म काण्ड आदि कार्य में लगे रहे वो आज भी कश्यप गोत्र वाले ब्राह्मण बनें रहें और जिन लोगों ने ब्राह्मणों वालें काम छोड़कर अन्य व्यवसाय करने लगें वो कश्यप जाति बन गए, जो अपने पिछड़ेपन के कारण मध्य काल में शूद्रों की श्रेणी में आ गए। इसीलिए प्राचीन काल में कश्यप जाति का संबंध ऋषि कश्यप से था।

प्राचीन ग्रंथों के अनुसार ऋषि कण्व( पूज्ये बाबा कालू जी महाराज) ने नारद को गुरु ज्ञान दिया था और नारद को 84 लाख योनियाँ भोग कर ब्राह्मण पद प्राप्त करने की विधि बताई। तब नारद ने ब्राह्मण पद ग्रहण किया अन्यथा कोई भी नारद को बैठने तक नहीं देता था। जब नारद ने अपने गुरु ऋषि कण्व का नाम देवताओं को बताया तो उन्होंने ऋषि कण्व को धींवर( अत्यंत बुद्धिमान ) कह कर संबोधित किया। तथा उन्हें कालू की जगह ऋषि कण्व नाम दिया। समय के साथ धींवर नाम बिगड़कर झीवर हो गया।

उत्तर प्रदेश के मेरठ जिले के हस्तिनापुर क्षेत्र पर श्री राम के परम मित्र अजयमीढ़ का राज था। अजयमीढ़ के पिता श्रीहस्ती थे जिन्होंने हस्तिनापुर नमक नगर बसाया था। अजयमीढ़ एक प्रतापी राजा थें जिनका समस्त उत्तर भारत पर शासन रहा। कश्यप जाति के हस्तियान गोत्र वाले पूर्वज हस्तिनापुर के शासक रहें हैं। शायद इसी कारण देश के अन्य भागों की तुलना में उत्तर प्रदेश,दिल्ली,हरयाणा ,उत्तराखंड , हिमाचल,पंजाब व राजस्थान राज्यों में कश्यप जाति की अधिक जनसँख्या निवास करती हैं।

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श्री राम के समकालीन रहें व श्री राम के परम मित्र निषाद राज गुहा ऋंगवेरपुर(वर्तमान गोरखपुर ) के राजा थे, उनका नाम गुह था। वे निषाद समाज के राजा  थे और उन्होंने ही वनवासकाल में रामसीता तथा लक्ष्मण को गंगा पार करवाया था। कहार भील निषाद समाज आज भी इनकी पूजा करते है। महाभारत काल में महान धनुर्धर वीर एकलव्य हुए हैं। जिसने गुरु के कहने पर गुरु दक्षिणा में अपना अंघूटा ही दे दिया था ये जानते हुए  भी के ऐसा करने के बाद वो कभी धनुषबाण का प्रयोग करने में असमर्थ होँगे।  

२. कश्यप जाति का मध्य कालीन इतिहास :-  

भारत के मध्य कालीन इतिहास में कश्यप समाज का पतन शुरू हो गया था। मध्य कल में इस्लामी आक्रांताओं के बढ़ते प्रभाव  व अत्याचारों के कारण हिन्दू व अन्य गैर इस्लामी धर्मो में हर प्रकार ( आर्थिक,सामाजिक व राजनैतिक ) से बहुत परिवर्तन का सामना करना पड़ा। विभिन्न जातियों ने अपने ने अपना रहन - सहन बदल लिया।  जैसे - महार जाति एक योद्धा जाति हुआ करती थी परन्तु मध्य काल में ये जाती गांव के बाहर निवास करने लगी।  महार गांव को बाहरी हमलें चोरों व लुटेरों से सुरक्षित रखती थीं।  समय के साथ इस जाति ने सूअर व अन्य जानवरों का पालन करना शुरू कर दिया और मांस भी खाने लगें जिससे अन्य हिन्दू जातियों में महार जाति निचले पायदान पर आ गयी व कभी लड़ाका जाति रहीं महार अति पिछड़ी जातियों की श्रेणी में आ खाड़ी हुई।  

 भारत के मध्य कालीन इतिहास में अरब से आयें मुस्लिम आक्रांता अपने साथ पानी लेकर चलने वाले लोगों या दासों को अपने साथ लाये क्योकि अरब क्षेत्र एक रेगिस्तानी व बहुत सूखा क्षेत्र है, वहां पानी की बहुत किल्लत रहती थीं इसलिए अरबी मुस्लिम आक्रांता लम्बी लम्बी यात्रा करके भारत के उत्तरी-पश्चमी क्षेत्र तक आते थे,तो पानी लेकर चलना अति आवश्यक था। पानी पिलाने वाले लोगों को देखा-देखी नदियों के किनारे रहने वाली कुछ हिन्दू जातियों ने भी ये काम अपना लिया। बाद में ये काम करने वाले लोग झींवर जाती के कहलाये जाने लगे। जो मुख्य रूप से पंजाब क्षेत्र में पाएं जाते हैं। 

सिख धर्म के इतिहास में कश्यप समाज के कई ब्यक्तियों का जिक्र हुआ है। सिख धर्म के दसवें गुरु गोबिंद एक आध्यात्मिक गुरु, योद्धा, कवि और दार्शनिक थे। उन्होंने अपने जीवनकाल में सकारात्मक परिवर्तन की बात कही और इसे करके भी दिखाया। उन्होंने धर्म की रक्षा के लिए तलवार तक उठायी। पंज प्यारों के चुनाव और खालसा की स्थापना की बात आती है, तो गुरु गोबिंद सिंह का नाम उभर कर सामने आता है। खालसा की स्थापना को सिख धर्म के इतिहास महत्वपूर्ण घटनाओं में से एक माना जाता है। सिख धर्म के दसवें गुरु 'गुरु गोबिंद सिंह जी' ने 13 अप्रैल 1699 को बैशाखी के दिन आनंदपुर साहिब के विशाल मैदान में एक विशाल सभा को बुलाया और वहां सभा में 5 लोगों को आगे आने को बोला जो धर्म के लिए अपने सिर देने को तैयार हो तभी सभा से एक-एक करके आगे आये जो भाई साहिब सिंह, भाई धरम सिंह, भाई हिम्मत सिंह झींवर , भाई मोहकम सिंह और भाई दया सिंह थें। भाई हिम्मत सिंह जग्गन्नाथ पूरी ओडिशा से 8 वर्ष की आयु में पंजाब आ गए थे। 

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सिख धर्म के लिए बलिदान देने वाले मोती राम मेहरा जी भी रहें हैं जो भाई हिम्मत सिंह झींवर जी के भतीजे थे। मोती राम मेहरा गुरु गोबिंद सिंह परम भक्त थे। जब मुग़ल सेनापति वज़ीर खान ने गुरु गोबिंद सिंह की माता गुजर कौर , पुत्र बाबा जोरावर सिंह व बाबा फ़तेह सिंह जी को बंदी बना लिया व उन्हें भूखा-प्यासा रखा जाने लगा , तो वहां बंदीगृह में हिन्दू बंदियों के लिये खाना बनाने वाले मोती राम मेहरा जी थे। उन्होंने अपने प्राणों  की चिंता न करते हुये माता गुजरी कौर जी , बाबा जोरावर व बाबा फ़तेह सिंह जी को 3 दिनों तक छिप छिप कर दूध पिलाया।  वज़ीर खान को ये बात पता चलने पर वज़ीर खान ने बाबा मोती राम मेहरा जी को उनके परिवार सहित तेल निकलने वाले कोल्हू में पिसवा दिया। 

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बाबा मोती राम मेहरा दूध पिलाते हुए 

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मध्य काल में बाबा हिम्मत सिंह व बाबा मोती राम मेहरा के जैसे समाज से और भी बहुत से वीर बलिदानी व्यक्ति रहें हैं जिनके बारे में हम आने वेक पोस्ट में विस्तार से। 

३. कश्यप समाज का आधुनिक इतिहास- 

कश्यप समाज आधुनिक समय में अपनी दयनीय स्तिथि में आ पहुँचा। मध्यकाल में मुस्लिम शासकों के शासन में हिन्दू धर्म की सभी जातियों का शोषण हुआ। जज़िया कर जैसी कुरीति से बचने के लिए लाखों गरीब हिन्दुओं ने मुस्लिम धर्म अपना लिया। सम्भवता मुस्लिम बनने वालों में कश्यप समाज के लोगों की बड़ी संख्या रही होगी , जिनकी आज पहचान करना असंभव हैं। मध्यकाल में मुस्लिम व आधुनिक काल में अंग्रेज़ों के शोषण के चलते कश्यप समाज अपनी निम्नतम पायदान पर आ गया। सन् 1871 में अंग्रेजी सरकार ने 'आपराधिक जनजाति अधिनियम (Criminal Tribes Act, 1871)' निकाला जिसका जिसका उद्देश्य उन जातियों को चिन्हित करना था जिनका काम - धंधा अंग्रेजों के अनुसार चोरी, लूटपाट करना था। ऐसी जातियों की सूची में कश्यप समाज की धींवर,झींवर, निषाद,केवट व मल्लाह जैसी जल संबंधी काम करने वाली लगभग हर जाति सहित कुल 127 जातियां शामिल थी जो 1923 आते आते 300 से अधिक हो गई ।


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The Criminal Tribe Act Enquiry Committee 1949, Government of India

इन जातियों के सदस्यों को पुलिस थाने जाकर खुद को रजिस्टर कराने का आदेश दिया गया। उन्हें गांव से बाहर जाने के लिए भी पुलिस से लाइसेंस लेना पड़ता था। 

ये लाइसेंस भी जिले के कुछ ही छोटे से क्षेत्र के लिए हुआ करता था। एक गांव से दूसरे गांव जाने पर रास्ते में पड़ने वाले हर पुलिस अधिकारी को ये लाइसेंस दिखाना होता था । रहने के स्थान को बदलने के लिए भी पुलिस से इजाज़त लेनी पड़ती थी।

यदि इन ‘आपराधिक जनजातीय समुदायों’ का कोई भी व्यक्ति बिना लाइसेंस के पाया जाता था तो उसे 3 साल तक की कड़ी जेल की सज़ा दिए जाने का प्रावधान था। 

इन जातियों के हर माता पिता से उनके बच्चों को अलग करके उन बच्चों को सुधार गृह रूपी जेल में रखा जानें लगा । आज जैसे चीन में उइगुर मुस्लिमों के साथ चीन की सरकार कर रही है। ऐसे ही परिवारों को बिना कोई अपराध करें ही अंग्रेज यातनाएं देने लगे ।

हालाँकि, स्वतंत्रता प्राप्ति के उपरान्त इस विषय पर कई आयोगों एवं समितियों की स्थापना की गई, लेकिन इस सन्दर्भ में सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण है अयंगर समिति, जिसकी सिफारिशों के पश्चात 1952 में ‘आपराधिक जनजाति अधिनियम’ को निरस्त कर दिया गया| 

इसी कानून के कारण इन जातियों ने समाज से कट कर रहना शुरू कर दिया । बड़ी बड़ी भूमियों के मालिक होते हुए भी अपने घर बार छोड़ कर कही और जाकर बसना पड़ा। और भूमि के मालिक मजदूर बन कर रह गए। आज तक ये जातियां इस काले कानून का दंश झेल रही हैं। और ये जातियां अति पिछड़ेपन व बहुत गरीबी में जीवन यापन कर रही हैं।

सन् 1800 के बाद से अंग्रेजी दस्तावेजों के अनुसार कश्यप समाज की विभिन्न जातियां जल से जुड़े काम जैसे मछलीपालन, सिंघाड़े लगाना, पानी पिलाना आदि , गुड़ बनाना,टोकरे बनाना,हुक्का बनाना जैसे काम धंधों में लगी हुई थी ।

पानी पिलाने वाली कश्यप जातियों का इतिहास।

मिट्टी के घड़े से दिया जाने वाला पानी केवल उच्च या समान जाति के व्यक्ति के हाथ से ही स्वीकार किया जा सकता था, लेकिन पीतल के बर्तन से परोसा जाने वाला पानी जाति के पैमाने पर थोड़ा नीचे से भी लिया जा सकता है। इस नियम के अपवाद जलवाहक (भोई, हिंदी में) जाति के सदस्य हैं, जो कुओं से अमीरों के घरों तक पानी ले जाने के लिए कार्य करते थे और जिनके हाथों से सभी जातियों के सदस्य प्रदूषित हुए बिना पानी पी सकते हैं, भले ही जलवाहक हैं जाति के पैमाने पर उच्च स्थान पर नहीं।

इससे साबित होता है की कश्यप जातियां शुद्र जातियां नही थी ।

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परंतु आज कश्यप समाज मछलीपालन, सिंघाड़े लगाना, पानी पिलाना, टोकरे बनाना,हुक्का बनाना आदि काम छोड़ कर , हालवाई, कोल्हू लगाना , अपना कोई छोटा मोटा बिजनेस व कुछ सरकारी सेवा में कार्यरत हैं । आज कश्यप समाज का लगभग हर राज्य से बहुत नेता मंत्री, विधायक, सांसद आदि राजनीति के क्षेत्र में समाज का प्रतिनिधित्व कर रहें हैं ।  आगे आने वालें पोस्ट में हम कश्यप समाज के सभी महान व्यक्तियों के जीवन से आपका परिचय कराएंगे।   स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद कश्यप समाज विभिन्न जातियों जैसे धींवर, झींवार, निषाद, केवट, कहार , बिंद, मांझी, कीर,  राजभर, तुरैया आदि उपजातियों में बंटा हुआ था। आजादी के पहले से ही समाज के बुद्धिजीवियों ने समाज को एक करने का प्रयास करना शुरू कर दिया था । 

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क्या कश्यप ब्राह्मण है?

कश्यप गोत्र के लोग ब्राह्मण भी होते हैं, राजपूत भी माने जाते हैं, कश्यप जाति प्राचीन समय और विशिष्ट ब्राह्मण की है। कश्यप ऋषि प्राचीन समय में महान ऋषियों में से एक थे। कश्यप जाति राजपूतों की Caste है।

कश्यप कौन जाति में आते हैं?

कश्यप जाति मुख्य रूप से हरियाणा, महाराष्ट्र, उत्तराखण्ड, जम्मू और कश्मीर, पंजाब, चंडीगढ़, हिमाचल, उत्तर प्रदेश, दिल्ली और राजस्थान मे निवास करती है ये जाति उत्तर भारत मे अधिकांश में संख्या में है,जिन्हे कश्यप,खरवार, कहार, गौड़, निषाद, इत्यादि नाम से जाना जाता है। उत्तर प्रदेश में ये जाति ओबीसी में आती है।

कश्यप के पिता कौन है?

इनके पिता ब्रह्मा के पुत्र मरीचि ऋषि थे। इन्हें परमपिता ब्रह्मा का अवतार माना गया है।

कश्यप गोत्र में कौन कौन से ब्राह्मण आते हैं?

कश्यप गोत्र ब्रह्मण भी है ,कश्यप गोत्र राजपूत भी है ,कश्यप पिछड़ी जाति वाले भी है ,वशिष्ट ब्रह्मण भी है और दलित भी है। इस समुदाय के लोग बिहार ,पंजाब ,हरियाणा और पश्चिम उत्तर प्रदेश में ही पाये जाते है कहार स्वयं को कश्यप नाम के एक अति प्राचीन हिन्दू ऋषि के गोत्र से उत्पन हुआ बतलाते है।