कैसे व्यक्ति पशु के समान है? - kaise vyakti pashu ke samaan hai?

नीतिशास्त्र के महान ज्ञाता रहे आचार्य चाणक्य के सिद्धांत और उनकी नीतियां सदियां गुजरने के बाद भी प्रासंगिक हैं. विष्णुगुप्त और कौटिल्य के नाम से मशहूर और कुशल अर्थशास्त्री चाणक्य ने अपनी किताब चाणक्य नीति में मनुष्य और पशु के फर्क को बताया है. मनुष्य और पशु कई क्रियाएं एक समान करते हैं इसके बावजूद चाणक्य एक श्लोक द्वारा बताते हैं कि शरीर की संरचना के अलावा किस आधार पर मनुष्य पशु से श्रेष्ठ हो जाता है. आइए जानते हैं इस बारे में...

आहारनिद्राभयमैथुनंच सामान्यमेतत् पशुभिर्नराणाम्।

थर्मोहितेषामधिको विशेषो धर्मेण हीनाः पशुभिः समानाः।।

चाणक्य इस श्लोक के माध्यम से बताते हैं कि मनुष्य किस प्रकार पशुओं से अलग है और कौन सी प्रवृति मनुष्य को श्रेष्ठ बनाती है. संसार के सभी जीवों की तरह मनुष्य भी उदार-पोषण, भय, निद्रा, संभोग और संतानोत्पति का काम करता है.

इस दृष्टि से देखा जाए तो मनुष्य में और पशुओं में शारीरिक बनावट को छोड़ दें तो कुछ ज्यादा अंदर नहीं दिखता. लेकिन आचरण मनुष्य को पशुओं से अलग और श्रेष्ठ बनाता है. मनुष्य के आचरण में धर्माचरण अत्यंत महत्वपूर्ण है, यानी धर्म का ज्ञान और उसके मार्ग पर चलने की प्रवृति मनुष्य को पशुओं से अलग करती है.

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जो धर्म-कर्म और नौतिक गुणों से युक्त है, वास्तव में वहीं मनुष्य कहलाने का अधिकारी है. इसके विपरीत व्यक्ति में अगर धर्म-कर्म, नैतिकता न हो तो वह पशु के समान ही है. इसलिए नैतिक गुणों से युक्त व्यक्ति ही बुद्धिमान है.

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पशु और मनुष्य के बीच अनेक भिन्नताएं हैं

पशु और मनुष्य के बीच अनेक भिन्नताएं हैं। इन भिन्नताओं में एक भिन्नता महत्वपूर्ण है कि मनुष्य को अपने पुण्यकर्मो और स्व-श्रम से विद्या, धन व शक्ति जिस रूप में प्राप्त हो जाती है वैसी प्राप्ति पशुओं को कभी नहीं होती।

पशु और मनुष्य के बीच अनेक भिन्नताएं हैं। इन भिन्नताओं में एक भिन्नता महत्वपूर्ण है कि मनुष्य को अपने पुण्यकर्मो और स्व-श्रम से विद्या, धन व शक्ति जिस रूप में प्राप्त हो जाती है वैसी प्राप्ति पशुओं को कभी नहीं होती। मनुष्य सामान्यत: इन प्राप्तियों से लोक जीवन में सुख पाने के लिए इनका प्रयोग एक विशेष साधन के रूप में करता है और यह भूल जाता है कि इन प्राप्तियों में यदि उसका श्रम इसके मूल में है तो ईश्वर कृपा भी इसके आधार में है, अन्यथा सभी अपनी-अपनी इच्छानुसार विद्या, धन व शक्ति पा लेते, किंतु ऐसा होता नहीं है। इसलिए यह कहा जाता है कि जिस पर भी ईश्वर कृपा होती है वही विद्या, धन व शक्ति सहज में ही पा लेने का अधिकारी बन जाता है। बुरे कर्मो से हमें नर्क और सुकर्मो से स्वर्ग, भक्ति व ज्ञान की प्राप्ति के साथ ही ईश्वर की प्राप्ति भी होती है। तब हम शाश्वत आनंद की प्राप्ति के अधिकारी बन जाते हैं। यही मनुष्य जीवन का परम लाभ व लक्ष्य भी है।

इसलिए हमें यह भी ध्यान रखना चाहिए कि संसार में प्राप्त होने वाली जिन उपलब्धियों पर हम इतराते हैं उनका यदि हमने अपने पारलौकिक जीवन को संवारने के लिए साधन के रूप में प्रयोग नहीं किया तो उनसे विकृति का ही जीवन मिलेगा। जो लोग विद्या, धन और शक्ति से संपन्न होकर विकृति का जीवन जीते हैं वे विद्या से अहंकारी बन जाते हैं और अपने से वरिष्ठ लोगों और विद्वानों का अपमान करने लगते हैं। धन के घमंड में चूर होकर भोगों में लिप्त हो जाते हैं और प्रभु कृपा से इन्हें जो शक्ति मिली हुई है उससे ऐसे लोग दूसरों का उत्पीड़न करने लगते हैं। जीवन में प्राप्त श्रेष्ठ साधनों का ऐसा प्रयोग विकृति का प्रयोग है, जो हमारे पतन का कारण बनता है। सज्जन व्यक्ति अपनी विद्या से ज्ञान प्राप्ति की ओर बढ़ते हैं। वे यह निश्चय कर लेते हैं कि परम ज्ञान का आधार हमारी विद्या ही है। इसलिए न तो वे विद्या प्राप्ति के संदर्भ में अहंकार करते हैं और न ही किसी का अपमान करते हैं।

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शिक्षा के बिना मनुष्य पशु के समान

बगहा। कहा गया है कि शिक्षा के बिना मनुष्य पशु के समान है। शिक्षा न सिर्फ मनुष्य को मानव धर्म का बोध

बगहा। कहा गया है कि शिक्षा के बिना मनुष्य पशु के समान है। शिक्षा न सिर्फ मनुष्य को मानव धर्म का बोध कराती है बल्कि शिक्षा से सामाजिक कुरीतियों का नाश भी होता है। बुधवार को बगहा दो प्रखंड के उत्क्रमित उच्च विद्यालय रामपुर के प्रांगण में आयोजित 'आज के परिवेश में शिक्षा और शिक्षा की भूमिका' विषय पर विचार गोष्ठी को संबोधित करते हुए वरीय शिक्षक क्यूम अंसारी ने कही। इससे पूर्व कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे प्रधान शिक्षक घनश्याम शुक्ल ने उपस्थित छात्र छात्राओं को संबोधित करते हुए कहा कि आज के इस युग में शिक्षा ग्रहण करना न सिर्फ प्रत्येक छात्र की ड्यूटी है बल्कि जरूरत भी। वर्तमान परिवेश में शिक्षकों की जिम्मेवारी और बढ़ गई है। बच्चों के लिए बेसिक शिक्षा की सरकारी व्यवस्था उनके लिए पर्याप्त है। शिक्षक अभय कुमार सिंह और शैलेश कुमार पासवान ने कहा कि विषयगत शिक्षकों की पढ़ाई के साथ बच्चों के लिए तकनीकी शिक्षा भी उतनी ही जरूरी है। संचार क्रांति के इस दौर में कंप्यूटर की जानकारी होना अनिवार्य हो गया है। दूसरी ओर अभिभावकों को भी बच्चों की रूचि के अनुसार उन्हें कैरियर चुनने का अवसर देना चाहिए। इस विचार गोष्ठी को शिक्षक परमानंद प्रकाश, संदीप कुमार, बच्चा पड़ित, रीमा कुमारी, मोती सिंह, गिरिजा कुमारी, लक्ष्मण प्रसाद समेत छात्र सुनील कुमार, पल्लवी कुमारी, गीता कुमारी, जितेंद्र राम, रितेश कुमार आदि ने भी संबोधित किया।

पशु और मनुष्य में क्या समानताएं हैं?

मनुष्य और जानवर में क्या समानता है? भोजन करना, सोना तथा सेक्स करना मनुष्यों तथा जानवरों में समान होता है! मनुष्य के पास नयी चीजे सीखने का गुण है जिससे यह विकसित होते चले गये जबकि जानवरों में यह गुण नहीं होता है जिससे वह आज भी ऐसे है तथा अपना विकास नहीं कर पाए!

क्या मनुष्य पशु के समान है?

चाणक्य ने कहा है कि जो मनुष्य ईश्वर को नहीं मानता और उनके बताए रास्ते पर नहीं चलता है तो वह पशु के समान माना जाता है। जीवन में हमेशा सत्कर्म करने और ईश्वर की आराधना करने से मान-सम्मान और यश में वृद्धि में होती है। तपस्या से आत्मा शुद्ध होती है और ईश्वर की प्राप्ति होती है।

पशु और मनुष्य में सबसे बड़ा अंतर क्या है?

पशु और मनुष्य के बीच अनेक भिन्नताएं हैं। इन भिन्नताओं में एक भिन्नता महत्वपूर्ण है कि मनुष्य को अपने पुण्यकर्मो और स्व-श्रम से विद्या, धन व शक्ति जिस रूप में प्राप्त हो जाती है वैसी प्राप्ति पशुओं को कभी नहीं होती। पशु और मनुष्य के बीच अनेक भिन्नताएं हैं।

क्या शिक्षा के बिना मनुष्य पशु के समान है?

कहा गया है कि शिक्षा के बिना मनुष्य पशु के समान है। शिक्षा न सिर्फ मनुष्य को मानव धर्म का बोध कराती है बल्कि शिक्षा से सामाजिक कुरीतियों का नाश भी होता है।